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[२] चिन्तामाणिश्चिन्तितवस्तुदानात्,
तस्मै सदा सद्गुरवे नमोऽस्तु ॥१३०॥ उत्तरः- गुरु सब जीवोंकी रक्षा करते हैं इस लिये वे ही सब जीवोंको माता है, सब जीवोंको शिक्षा देते हैं इस लिये गुरु ही पिता हैं, गुरु ही लक्ष्मीको बढाने वाले हैं इसलिये वे ही सब जीवोंके बंधु हैं, गुरु ही समस्त जीवोंका हित चिंतन करते रहते हैं इस लिये वे ही जीवोंके मित्र हैं, गुरु ही सब जीवों को सुख देते हैं इस लिये गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शुद्ध आत्माका ज्ञान कराते हैं इस लिये गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही इच्छानुसार पदार्थोंको देनेवाले हैं इस लिये गुरु ही चिंतमणिरत्न हैं। अत एव ऐस उन श्रेष्ठ गुरुओंको मैं बार बार नमस्कार करता हूं ॥ १२९ ॥ १३० ॥
हन्ति रक्षति जीवोयं केन वा कारणेन भोः ?
प्रश्न:-हे गुरो ! यह जीव किन किन कारणोंसे अन्य जीवोंको मारता है वा उनकी रक्षा करता है ?
धनस्य मानस्य च जीवनस्य, कतिश्च जिह्वारमणस्य हेतोः । परान् स्वयं हन्ति च हन्यतेऽपि, परेण यो रक्षति रक्ष्यते च ॥१३१॥