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[३] परान् स्वयं पुष्यति पोष्यते च, पतत्यारिं पातयति प्रयत्नात् । त्यक्त्वा स्वधर्मं निजबोधशून्यो,
भ्रमच्चिरं घोरभवार्णवेऽस्मिन् ॥१३२॥ उत्तरः-यह जीव धन, मान, जीवन, कीर्ति, जिव्हा इंढियकी लोलुपता और स्त्रीसेवनके लिये दूसरे जीवोंको मारता है वा दूसरोंके द्वारा मारा जाता है । अथवा इन्हीं कामोंके लिये दूसरों की रक्षा करता है वा स्वयं दुसरेके द्वारा सुरक्षित रहता है । अथवा इन्ही कामोंके लिये दूसरों का पालन पोषण करता है वा स्वयं दूसरोंके द्वारा पालन पोषण किया जाता है। अथवा इन्ही कामोंके लिये यह जीव स्वयं पतित होता है वा दूसरोंको प्रयत्न पूर्वक पतित कराता है । इस प्रकार जो जीव अपने आत्मज्ञानसे शून्य है वह अपने धर्मको छोडकर इस संसाररूपी समुढमें चिरकालतक इसी प्रकार परिभ्रमण करता रहता है ॥ १३१ ॥ १३२॥
सज्जनानां स्वभावो वा कीदृशोऽस्ति गुरो वद ?
प्रश्नः-हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि सज्जनोंका स्वभाव कैसा होता है ?