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उत्तरः-जो मनुष्य क्षुधा, तृषा, रोग, वियोग आदिके दुःखोंसे भरे हुए अत्यंत भयानक और क्षणभरमें ही दिखाई देकर नष्ट होनेवाले इस संसारसे विरक्त हैं, जो भोगोंसे विरक्त हैं, शरीरसे विरक्त हैं, श्रेष्ठ जीवनसे विरक्त हैं, पुत्र पात्रोंसे विरक्त हैं, श्रेष्ठ मित्रवर्गोंसे विरक्त हैं, छहों खंडके राज्यसे विरक्त हैं, अपनी स्त्रियोंसे विरक्त हैं, स्पर्श रस आदि इन्द्रियोंके विषयोंसे विरक्त हैं और रागादिक कामदेवके सहायकोंसे विरक्त हैं । इस प्रकार जो मनुष्य इस संसारमें संसार शरीर; भोगादिकोसे विरक्त हैं और अपने आत्मजन्य आनन्दामृतरसमें लीन हैं वे ही मनुष्य इस समस्त संसारमें शूरवीर समझे जाते हैं। ९३ ॥ ९४॥
स्वानुभूत्याः पतिः को वा भवेदात्मा गुरी! दिश ?
प्रश्नः—हे गुरो ! कृपाकर बतलाइये कि अपने आत्माकी अनुभूतिका स्वामी कौन है ?
न वस्तु गृह्णन्ति निजात्मबाह्यं, विनाशशीलं विपरीतभूतम् । नैवं निजानन्दपदं स्वकीयं, त्यजति चानन्दरसं कदापि ॥९५॥