________________
[५८]
उत्तरः—यह तारुण्यरूपी वन अत्यंत भयानक है और सब लोग इसको चाहते हैं, ऐसे तारुण्यरूपी वनमें रहता हुआ भी जो उस तारुण्यवनमें लिप्त नहीं होता उससे विरक्त रहता है, और जो सदा अपने आत्मजन्य आनंदरसमें लीन रहता है, वह वर्षों के हिसाबसे वृद्ध न होनेपर भी संसारमें सर्वोत्कृष्ट वृद्ध समझा जाता है ॥ १०४ ॥
कोऽसौ सखा मनुष्यस्य लोकेऽस्मिन् भो गुरो !वद ?
प्रश्न:-हे गुरो ! कृपाकर बतलाइये कि इस संसारमें मनुष्यका मित्र कौन है ?
रोगेऽप्यरोगे खल हानिलाभे, क्षुधातृषायां भुवने वने वा । मानापमाने च सुखेऽपि दुःखे,
सखा स एवास्ति समानभागी।।१०५॥ उत्तरः-जो पुरुष रोग वा नीरोग अवस्थामें, हानि वा लाभमें, भूख या प्यासमें, राजमहल वा वनम, मान और अपमानमें तथा सुख और दुःखमें जो समान भाग लेता है वहीं इस संसारमें मनुष्योंका मित्र कहलाता है ॥१०५॥
आशाचिन्तादुराचारः प्रणश्यन्ति च के गुणाः