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प्रश्न-हे गुरो ! आप कहिए कि इस संसारमें चतुर कौन हैं ! .
स एव धीमान्निपुणोपि दानी। ज्ञानी च साधुः सुखशांतिभोगी ॥ यो मोहजालं प्रविहाय शीघ्रं । स्थातुं स्वधर्म यतते सदैव ॥७॥ उत्तरः-जो मनुष्य मोहजालको छोडकर शीघ्र ही अपने आत्मधर्ममें स्थिर होनेके लिए सदा प्रयत्न करते रहते हैं इस संसारमें वे ही बुद्धिमान हैं, वे ही निपुण हैं वे ही दानी हैं, ये ही ज्ञानी हैं, वे ही साधु हैं और वे ही सुख और शांतिको भोगनेवाले हैं ॥७॥ धर्मेण हीना शोभन्ते । नरा वा न कचित्कदा ॥
प्रश्नः-जो मनुष्य धर्मरहित हैं वे कभी किसी जगह शोभायमान होते हैं वा नहीं ?
यथा सरो भाति न पद्महीनं । तोयेन हीना न नदी न वापी ॥ जीवेन हीनं न वपुर्विभाति ।
गन्धेन हीनं कुसुमं न तैलम् ॥८॥ उत्तरः-जिस प्रकार कमलोंसे रहित सरोवर सुशोभित नहीं होता, विना पानीके नदी और बावडी सुशोभित