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नहीं होती, विना जीवके शरीर सुशोभित नहीं होता और विना सुगंधके पुष्प वा तेल सुशोभित नहीं होता ॥८॥ दुग्धेन हीना न च भाति धेनुः । शीलेन हीनो न नरो न नारी ॥ लता न वृक्षः सुफलेन हीनः । स्नेहेन हीनो न सखा न बंधुः ॥ ९ ॥ जिस प्रकार दूधके विना गायकी शोभा नहीं है, शीलके विना स्त्री पुरुषकी शोभा नहीं है श्रेष्ठ फलांके विना लता और वृक्षोंकी शोभा नहीं है तथा प्रेमके विना मित्र और बांधवों की शोभा नहीं है || ९ ||
पक्षेण हीनो न च भाति पक्षी । पुत्रेण हीना न च भाति राज्ञी । अन्नं च खाद्यं लवणेन हीनं ।
कण्ठेन हीनं न च भाति गीतम् ॥१०॥ जिसप्रकार पंखों के विना पक्षियोंकी शोभा नहीं है, पुत्र विना रानीकी शोभा नहीं है, नमकके विना अन्न वा खाद्य पदार्थोकी शोभा नहीं है और कंडके ( मधुर कंठके ) विना गीतकी शोभा नहीं है ॥ १० ॥
न भाति लोके मतिहीनमंत्री | देवेन हनिं न च चैत्यधाम ॥