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[२४] माप्त होता है, श्रेष्ठ विभूति प्राप्त होती है, श्रेष्ठ दिव्य शरीर प्राप्त होता है, धर्मानुकूल कुटुंबवर्ग प्राप्त होता है, छहो खंडका मनोहर राज्य प्राप्त होता है, अनुक्रमसे समस्त अनुपम पदार्थ प्राप्त होते हैं । जो अन्य किसीको पात न हो सके और अनंत कालतक सदा निश्चल बना रहे ऐसा आत्माका मोक्षरूप स्वराज्य प्राप्त होता है और अत्यंत इष्ट ऐसा शुद्ध आत्मजन्य अनंत सुख प्राप्त होता है। यह सब अहिंसा धर्मका ही फल समझना चाहिये ॥४२॥४३ ॥४४॥४५॥ पिता पुत्रादयः सर्वे स्वकीयाः सन्ति वा न वा? प्रश्नः-पिता पुत्रादिक कुटुंबी लोग अपने हैं वा नहीं ? पितापि माता भगिनी सुभार्या, पुत्रोऽपि मित्रं सकलोऽपि बंधुः। दासी च दासः सकलापि संपत्, अश्वो गजः सर्वजनोऽपि चान्यः ॥४६॥ वस्त्रं सुमाल्यं च विभूषणं यत्, किंचित्प्रियं वस्तु तदेव सर्वम् ॥ स्यात्स्वात्मनोऽन्यं सकलं च राज्यं, न याति केनापि समं ह्यमुत्र ॥४७॥