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निजात्मबुद्धिर्निजराज्यमूल्यं, परात्मबुद्धिर्भवदुःखबीजम् । निजात्मसेवैव सुखस्य दात्री,
स्वर्मोक्षदात्री गुरुदेवसेवा ॥६॥ उत्तरः-अपने आत्माका ज्ञान उत्पन्न होजाना आत्मा स्वराज्यका मूल्य समझना चाहिये अर्थात् आत्मज्ञानसे ही आत्मासद्धि होती है। इसके विपरीत परपदार्थोंमें आत्मबुद्धि करना संसारके दुःखोंका कारण है। इसीप्रकार अपने आत्माकी सेवा सुख देनेवाली है और भगवान अरहंत देवकी सेवा तथा निग्रंथ गुरुको सेवा स्वर्ग मोक्ष देनेवाली
स्ववोधरहितो जीवः कमनर्थ करोति भो।
प्रश्नः—हे गुरो जो जीव आत्मज्ञानसे रहित है वह क्या क्या अनर्थ उत्पन्न करता है ?
भुंक्ते हि दुःखं च सुखस्य हेतोलाभस्य हेतोर्हि करोति हानिम् । कीर्तेश्च हेतोस्सुकरोत्यकीर्ति, कार्यस्य हेतोश्च करोत्यकार्यम् ॥१॥