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[३८] सम्पूर्णराज्यं च गजाश्वहर्म्यमुपार्जितं तिष्ठति यत्र तत्र ॥७०॥ न याति सार्द्ध किमपि त्वयैव, किंचित्कदाचिद्यदि याति किंवा । त्वया समं याति च पुण्यपापं,
ज्ञात्वेति शीघ्रं कुरु पुण्यकार्यम् ॥७१॥ - उत्तरः-हे जीव ! देख ये तेरे कुटुम्बी लोग श्मशानभूामितक तेरे साथ जाते हैं, यह तेरा शरीर स्वभावसे ही भस्म हो जाता है और यह समस्त राज्य, हाथी, घोडे, राजभवन आदि जो कुछ तूने लिये हैं वा बनवाये हैं वे सब जहांके तहां पडे रह जाते हैं, इनमेंसे कोई भी पदार्थ कभी किसी समयमें भी तेरे साथ जानेवाला नहीं है। यदि तेरे साथ कोई जानवाला है तो वह पुण्य और पाप है। यही समझकर तुझे शीघ्रताके साथ पुण्यकार्य ही करते रहना चाहिये ॥ ७० ॥ ७१ ॥
गुणी गृह्णाति किं लोके दोषी किं वा
प्रश्न:-हे जगद्गरो ! इस संसार में गुणी पुरुष क्या ग्रहण करता है और दोषी पुरष क्या ग्रहण करता है ?