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[४३] उत्तरः-अर्थपुरुषार्थका मूल कारण धर्म है तथा धर्म और अर्थ ये दोनों ही कामपुरुषार्थके मूल कारण हैं और मोक्षपुरुषार्थका मूलकारण अपने आत्मासे उत्पन्न हुए आनंदामृतरसका पान करना है । जिस प्रकार विना मूलके वृक्ष नहीं बढता, मूलके होनेसे ही वृक्ष बढ़ता है उसी प्रकार धर्मसे अर्थ और अर्थसे कामकी सिद्धि होती है । इस प्रकार अनुक्रमसे जो धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थका सेवन करते हैं उनको सबके अंतमें मोक्षकी प्राप्ति अवश्य होती है। जो मनुष्य ऊपर कहे हुए अनु-. क्रमके अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्षपुरुषार्थका सेवन करते हैं उनको राज्यकी प्राप्ति होती है, आत्मजन्य स्वराज्य की प्राप्ति होती है और आत्मजन्य अनंत सुखकी प्राप्ति होती है । ७८ ॥ ७९ ॥
कोऽस्ति पापी च कृपणः को मूर्खःश्वभ्रगश्च कः ? ___ प्रश्न—हे गुरो ! इस संसार में पापी, कृपण, मूर्ख और नरकगामी कौन है ?
ध्यानं सुदानं न तपो जपोऽपि, पूजां प्रतिष्ठां न च तीर्थयात्राम् । न स्वात्मशुद्धिं स्वपरोपकारं, धर्मप्रचारं स्वगतर्विचारम् ॥८॥