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[४१] एवं सदा रक्षति राज्यतन्त्र, ज्ञातुं नृपः कोऽपि भवेन्न शक्तः । तत्कार्यसिद्धिं यदि वीक्ष्य शक्तो, भवेत्कदाचित्खलु नान्यथैव ॥७५॥ ब्रवीति यः कार्यवशाद्यथैव, करोति कार्यं सुखदं तथैव । सर्वस्वनाशेऽपि न चान्यथैव, करोति भूपोऽस्ति स मध्यमो हि ॥७॥ करोमि चैवं हि करोमि चैवं, खैरं सदा जल्पति यत्र तत्र । न किंतु किंचित्स्वपरार्थकार्य, करोति मूढो ह्यधमः स एव ॥७७॥ उत्तरः-जो राजा अपने राज्यतंत्रको इस प्रकार सुरक्षित और गुप्त रखता है कि कोई भी अन्य राजा उसे जानने में समर्थ नहीं हो सकता। जब उस राज्यतंत्रका कार्य सिद्ध हो जाता है तब उस कार्यको देखकर उस राज्यतंत्रका अनुमान भले ही लगा सकता है अन्यथा नहीं । ऐसे राजाको उत्तम राजा कहते हैं । जो राजा अपने कार्यके निमिचसे जैसा कहता