________________
[३९] क्षीरस्य पानं न करोति वत्सः, यावद्धि भुंगो न सुगंधपानम् । करोति साधुः स्वरसस्य पानं, यावन्न धर्मी गुरुदेवपूजाम् ॥७२॥ यावन्न गृह्णाति गुणी गुणान् हि, तावन्न शान्ति न सुखं तथैव । दोषी च दोषं हि तथा जलौका, रकं न यावद्धि मलं वराहः ॥७३॥ उत्तरः-जबतक बच्चा दूध नहीं पीलेता तबतक उसे सुख शांति नहीं मिलती । भौंरा जबतक फूलोंका सुगंध पान नहीं कर लेता तबतक उसको सुख शांति नहीं मिलती। साधु पुरुष जबतक अपने आत्मजन्य आनन्दामृतरसका पान नहीं करलेते तबतक उनको सुख शांति नहीं मिलती । धर्मात्मा पुरुष जबतक देवपूजा, गुरुपूजा नहीं करलेता तबतक उसको सुख शांति नहीं मिलती।। उसी प्रकार गुणी पुरुष जबतक गुणोंको ग्रहण नहीं कर लेता तबतक उसे सुख शांति कभी नहीं मिलती। इसी प्रकार जोंक जबतक रक्तपान नहीं करलेती तबतक उसे सुख शांति नहीं मिलती। सूअर जबतक मल भक्षण नहीं कर लेता तबतक उसे सुख शांति नहीं मिलती उसीप्रकार