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यथार्थबुद्धिर्हदि यस्य चास्ति, किं तस्य मोहोपि करोति तीव्रः ॥५६॥ यस्यास्ति चित्ते जिनधर्ममंत्रः, किं तस्य कुर्याद्धि पिशाचवर्गः। क्षमादिधर्मो हृदि यस्य चास्ति, किं तस्य कुर्यात्प्रबलोऽपि दुष्टः ॥५७॥ उत्तरः-जिसके हृदयमें सतोषरूपी संपदा विद्यमान है, उस मनुष्यको तीव्र आपत्ति भी कुछ नहीं कर सकती। जिसके हृदयमें आत्मज्ञानरूप यथार्थबुद्धि विद्यमान है उस को तीत्र मोह भी कुछ हानि नहीं पहुंचा सकता । जिसके हृदयमें जिनधर्मरूपी मंत्र विद्यमान है उसको कितने ही पिशाचोंका समूह दुःख नहीं दे सकता और जिसके हृदय में उत्तमक्षमा आदि दशधर्म विद्यमान हैं उसको सामर्थ्यवान् दुष्ट लोग भी कुछ दुःख नहीं दे सकते ।। ५६।५७ ॥ ___मोहक्रोधादयो लोके कीदृशाः सन्ति भो गुरो।
प्रश्नः-हे गुरो ! इस संसारमें मोह, क्रोध आदि कैसे गिने जाते हैं ?
बंधो न मोहादपरोस्ति कोपि, शत्रुर्न कोपादिह तस्य कर्ता ।