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[ १६ ] सम्यग्दर्शनमाहात्म्यं । कृपा कृत्वा गुरो वद । प्रश्नः - हे गुरो ! कृपा करके सम्यग्दर्शनका माहात्म्य तो कहिए ।
सद्दृष्टिमाता हृदि यस्य नित्यं । स्यात्तस्य सिंहोपि मृगो हि शीघ्रम् ॥ गजोप्यजो भीमफणी च माला । बहिश्च तोयं रिपवः सखायः ॥२९॥
जलं स्थलं ह्येव विपत्सु संप- । चौराः सुदासाश्च विषं सुधैव ॥ जरारुजादिः खलकंटकादि । दुष्टग्रहादिः सुखसाधकाः स्युः ||३०||
उत्तर: – जिस मनुष्य के हृदय में सम्यग्दर्शन रूपी माता सदा विराजमान है उसके लिए सिंह भी शीघ्र हिरण हो जाता है, हाथी बकरा हो जाता है, भयानक सर्प माला बन जाता है, अग्नि जलरूप हो जाती है, शत्रु मित्र हो जाते हैं, जल स्थल हो जाता है, समस्त विपत्तियां संपत्ति के रूपमें बदल जाती है, चोर दास हो जाते हैं, विष अमृत हो जाता है और बुढापा, रोग, दुष्ट, कंटक, दुष्ट ग्रह आदि दुःखके कारण सब सुखके साधन बन जाते हैं।