________________
[१८]
न कोऽपि लोकेऽस्ति कुटुंबवर्गः, श्रेष्ठोऽपि नाको न च भोगभूमिः ॥ ३३ ॥ न कामधेनुर्न च कल्पवृक्ष, श्चिन्तामणिर्वा न च तंत्रमंत्रः । सम्यक्त्वरत्नं प्रविहाय कोऽपि, मोक्षप्रदाता भवजन्महर्ता ॥ ३४ ॥
इस संसारमें एक सम्यग्दर्शनरूपी रत्न ही मोक्ष देनेवाला है और यही संसारके जन्म-मरणोंको हरण करनेवाला है | इस सम्यग्दर्शनरूपी रत्नके सिवाय माता, पिता, भगिनी, स्त्री, भाई, पुत्र, मित्रवर्ग, कुटुंबवर्ग, स्वर्ग, भांगभूमि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, चिंतामणि और तंत्रमंत्र आदि कोई भी न श्रेष्ठ हैं न मोक्ष देनेवाले हैं और न संसारके जन्ममरणके हरण करनेवाले हैं। एक सम्यग्दर्शनरूपी रत्न ही श्रेष्ठ है, मोक्ष देनेवाला है आर जन्ममरण को हरण करनेवाला है ||३३|३४||
सम्यग्दर्शनचिन्हानि साम्प्रतं वद भो गुरो । प्रश्नः - ३ गुरो ! अब सम्यग्दर्शनके कौन कौन चिन्ह हैं ? उन्हें बतलाइये |
सम्यक्त्वचिन्हं प्रतिपाद्यते हि, श्रद्धा च भक्तिर्गुरुदेवशास्त्रे ।