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[१३] संसारकूपाद्धि तरन्ति शीघं। धर्मस्य लोके महिमा ह्यचिन्त्यः॥२४॥ उत्तरः-इस संसारमें धर्मके प्रसादसे श्रेष्ठ बंधु प्राप्त होते हैं श्रेष्ठ गुरु प्राप्त होते हैं । पिता, पुत्र, मित्र भगिनी स्त्री आदि सब कुटुंब वर्ग प्राश होता है ! जो अन्य जीवों को न मिल सकें ऐसे इस संसारके सारभूत समस्त पदार्थ प्राप्त होते हैं और धर्मके ही प्रसादसे यह साम्राज्य लक्ष्मी अपनी दासी हो जाती है । इस धर्मके ही प्रसादसे समस्त जीव अनुक्रमसे स्वराज्य लक्ष्मी का अनुभव करते हुए इस संसार सागरसे बहुत शीघ्र पार हो जाते हैं । अतएव कहना चाहिए कि इस संसार में धर्म की महिमा अचिंतनीय है ॥२३॥२४॥ दुःखहर्ता च को लोके । के वा सन्ति न भो गुरो ।।
प्रश्न:-हे गुरो ! इस संसारमें दुःख हरण करनेवाला कौन है और कौन नहीं है ?
पिता न माता भगिनी न भार्या । पुत्रो न मित्रं न च कोपि बंधुः ॥ स्वामी न भृत्यो न च कापि देवी। देवो न दैत्यो न च कोपि वैद्यः ॥२५॥