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संवत् १९८० में श्रीपालितानाकी यात्रा की, उस समय वहांपर २२५) खर्च कर धर्मशालेकी एक कोठडी बनवाई ।
__संवत् १९८४ में तारंगाजीमें एक हजार रु. खर्च कर कोटि शिलापरं एक जिनबिंबकी स्थापना कराई । ____संवत् १९८५ में धर्मपत्नी माणिकबाईने १० उपवास किये उस समय शेठजीने अपने घर समवशरण की रचना कर बहुत ही ठाठवाटके साथ व्रतोद्यापन विधान किया। इस कार्य में उन्होंने करीब ३०००) का व्यय किया।
पेथापुरमें मुनि मुनींद्रसागरजीने सं. १९८६में चातुर्मास किया उस समय शेठजीने स्वत: बहुत ही अधिक खर्चा किया।
संवत् १९९२में जब परमपूज्य श्री १०८ आचार्य शांतिसागर संघका पदार्पण श्री तारंगाजीपर हुआ उस समय शेठजीने वहांकी धर्मशालाकी कोठडी के लिये २५१) दिये । ___गतवर्ष पेथापुरमें मुनि वीरसागरजीका चातुर्मास हुआ उस समय शेठजीने पेथापुरकी पाठशालाके लिये १०००)की सहायता दी।
संवत् १९९३ में पूज्य मुनिराज कुंथुसागरजी महाराज श्री तारंगाजी पर आये जब सेठजीने ४०१) शास्त्रदान में दिये जिससे यह ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । इस प्रकार शेठ अमथालालजीने अपने द्रव्यका अनेक प्रकार से सदुपयोग किया है व कर रहे हैं। वे अत्यंत सरलहृदयी, धार्मिक व गुरुभक्त हैं । उनका जीवन अनुकरणीय है।
पेथापुर ता. २६-१०-३७,
गुणानुरागी. चंदुलाल मणीलाल शाह.