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आप्तवाणी-२
ऐसा कहकर उसे कब का ही इन सी.आई.डी. डिपार्टमेन्ट के लोगों ने पकड़ लिया होता। लेकिन ऐसा कोई हो तो पकड़ें न?
जगत् का कोई क्रियटेर है ही नहीं। द वर्ल्ड इज द पज़ल इटसेल्फ। पज़लसम हो गया है। इसलिए उसे पज़ल कहना पड़ रहा है। अब इस पज़ल को जो सोल्व करते हैं, उसे परमात्मापद की डिग्री मिलती है और जो सोल्व नहीं करते वे सभी पज़ल में डिज़ोल्व हो गए हैं। बडे-बडे महात्मा, साधु, महाराज, आचार्य, बाबा वगैरह सभी इस पज़ल में डिज़ोल्व हो गए हैं। जैसे पानी में शक्कर डिज़ोल्व हो चुकी हो और कोई कहे कि इसमें शक्कर कहाँ है? क्यों दिखाई नहीं देती? तो हम लोग कहें कि 'भाई, शक्कर पानी में है तो सही, लेकिन वह उसमें डिज़ोल्व हो गई है। उसी तरह इन सभी में चेतन है तो सही, लेकिन वह 'निश्चेतन चेतन' है। 'शुद्ध चेतन' स्वरूप बन जाए, तब हल आएगा।
पाचन क्रिया में कितनी अलर्टनेस? एक बड़ी कैमिकल कंपनी के रिटायर्ड चीफ इन्जीनियर मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझसे कहा, 'दादा, मैं नहीं होऊँ तो मेरी कंपनी चले ही नहीं।'
मैंने कहा, 'क्यों भाई ऐसा तो क्या है आप में?' तब उसने कहा, 'मैं बहुत अलर्ट रहता हूँ। मैं एक दिन नहीं जाऊँ तो सारा काम अटक जाए।' तब मैंने उन्हें कहा, 'जब रात को आप हाँडवा (एक गुजराती व्यंजन) खाकर सो जाते हो, तो रात को नींद में क्या अंदर जाँच करने जाते हो कि किस तरह पाचन हो रहा है? कितना बाइल पड़ा? कितने पाचक रस पड़े? सुबह उस हाँडवे में से खून, खून की जगह पर, पेशाब, पेशाब की जगह पर और संडास, संडास के जगह पर किस तरह पहुँचता है, क्या आप उसकी खबर रखते हो? यहाँ आप कितने अलर्ट रहते हो? अंदर के, खुद के बारे में आप कुछ भी नहीं कर सकते, तो और किस बारे में आप कुछ कर सकोगे? बड़े-बड़े बादशाह चले गए, चक्रवर्ती चले गए, फिर भी राज्य चलता रहा तो आपके बिना क्या अटक जानेवाला है? बड़े अलर्ट नहीं हों जैसे? आपकी तुलना में तो 'ज्ञानीपुरुष' का जूता अधिक