Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 467 467 467 468 505 507 667-668 एकेन्द्रिय से लेकर मनुष्य पर्यन्त उच्छ्वास-विरहकाल-निरूपण 666 वाणव्यन्तर देवों में उच्छ्वास-विरहकाल-प्ररूपणा 700 ज्योतिष्क देवों में उच्छ्वास-विरहकाल-प्ररूपणा 701-724 वैमानिक देवों में उच्छवास-विरहकाल-प्ररूपणा (प्राणमंति, पाणमंति प्रादि पदों की व्याख्या (503) अष्टम संज्ञापद : 505-512 प्राथमिक 725 संज्ञाओं के दस प्रकार (संज्ञा की शास्त्रीय परिभाषा 507) 726-726 नैरयिकों से वैमानिकों तक (24 दण्डकों में) संज्ञा की सद्भाव-प्ररूपणा 730-731 नारकों में संज्ञाओं का विचार (अल्प-बहुत्व) 732-733 तिर्यचों में संज्ञानों का विचार (अल्प-बहुत्व) 734-735 मनुष्यों में संज्ञाओं का विचार (अल्प-बहुत्व) 736-737 देवों में संज्ञाओं का विचार (अल्प-बहुत्व) नवम योनिपद : 514-525 प्राथमिक शीतादि त्रिविध योनियों की नारकादि में प्ररूपणा 736-752 चौवीस दण्डकों में शीतादि योनियों की प्ररूपणा जीवों में शीतादि योनियों का अल्प-बहुत्व 754-762 नैरयिकादि जीवों में सचित्तादि विविध योनियों की प्ररूपणा 763 सचित्तादि विविधयोनिक जीवों का अल्प-बहत्व कथन 764-772 सर्वजीवों में संवृतादि त्रिविध योनियों की प्ररूपणा 773 मनुष्यों को त्रिविध विशिष्ट योनियां 508 506 510 511 512 514-515 516 520 522-523 524 [31] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org