Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 30
________________ 307 mr r mr m चतुर्थ स्थितिपद : 264-353 / प्राथमिक 264-265 335-342 नैरयिकों की स्थिति की प्ररूपणा 266-300 343 देवों और देवियों की स्थिति की प्ररूपणा 301 345-353 भवनवासियों की स्थिति-प्ररूपणा 302 354-365 एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 366-368 वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 313 द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 314 श्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 315 371 चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 315 372-386 पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति-प्ररूपणा 316-325 360-362 मनुष्यों की स्थिति-प्ररूपणा 326 363-364 वाणव्यन्तर देवों की स्थिति-प्ररूपणा 327 315-406 ज्योतिष्क देवों की स्थिति-प्ररूपणा 328 407-437 वैमानिक देवों की स्थिति-प्ररूपणा 335-353 पंचम विशेषपद (पर्यायपद) : 354-436 प्राथमिक 354-358 (पर्याय के अर्थ, अन्य दर्शनों के साथ सैद्धान्तिक तुलना) 438 पर्यायों के प्रकार जीवपर्याय का निरूपण 440 नैरयिकों के अनन्त पर्याय : क्यों और कैसे? 360 (षट्स्थानपतित्व का स्वरूप) असुरकुमार आदि भवनवासी देवों के अनन्त पर्याय 443-447 पांच स्थावरों के अनन्त पर्यायों की प्ररूपणा 367 448-451 विकलेन्द्रिय एवं तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्यायों का निरूपण 371 452 मनुष्यों के अनन्त पर्यायों को सयुक्तिक प्ररूपणा 372 453-454 वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के अनन्त पर्यायों की प्ररूपणा 373 455-463 विभिन्न अपेक्षाओं से जघन्यादियुक्त अवगाहनादि वाले नारकों की प्ररूपणा 464-465 जघन्यादियुक्त अवगाहना वाले असुरकुमारादि भवनपति देवों के पर्याय 466-472 जघन्यादि युक्त अवगाहनादि विशिष्ट एकेन्द्रिय के पर्याय 373-480 जघन्यादि युक्त अवगाहनादि विशिष्ट विकलेन्द्रियों के पर्याय 481-488 जघन्य अवगाहनादि वाले पंचेन्द्रियतिथंचों की विविध अपेक्षाओं से पर्यायप्ररूपणा 362 486-468 जघन्य-उत्कृष्ट-मध्यम अवगाहनादि वाले मनुष्यों की पर्याय-प्ररूपणा 368 466 वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की पर्याय-प्ररूपणा 405. [26] لا MG GUR لل Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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