Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ orowww 143-147 वैमानिक देव : दो प्रकार (देवों के विविध स्वरूप : भवन-प्रावास आदि 114) द्वितीय स्थानपद : 117-200 प्राथमिक 117-116 148-150 पृथ्वीकायिकों के स्थान का निरूपण पाठ पृथ्वी-रत्नप्रभा आदि का वर्णन (120) पृथ्वीका यिकों का तीनों लोकों में निवासस्थान कहाँ कहाँ ? (121) 151-153 अप्कायिकों के स्थान का निरूपण 123 सात घनोदधि आदि का वर्णन (123) 154-156 तेजस्कायिकों के स्थान का निरूपण 125 दो ऊर्ध्वकपाट : विवेचन (127) 157-156 वायुकायिकों के स्थान का निरूपण 126 160-162 वनस्पतिकायिकों के स्थानों का निरूपण 163 द्वीन्द्रिय जीवों के स्थानों का निरूपण 164-165 त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जीवों के स्थानों का निरूपण 166 पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान की पृच्छा 134 167-174 नैरपिकों के स्थानों की प्ररूपणा रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियों का स्थान, वर्ण, गंध, मोटाई, संख्या आदि का निरूपण (136-145) पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के स्थान की प्ररूपणा 145 मनुष्यों के स्थानों को प्ररूपणा 146 सर्व भवनवासी देवों के स्थानों की प्ररूपणा 146 178-180 असुरकुमार आदि के भवनावास तथा अन्य वर्णन 146-150 चमरेन्द्र व बलीन्द्र का वर्णन (152) दाक्षिणात्य असुरकुमारों (चमरेन्द्र) का वर्णन (153) उत्तरदिशावासी असुरकुमार बलीन्द्र-वैरोचनेन्द्र का वर्णन (155) 181-183 नागकुमारों का वर्णन 155 दाक्षिणात्य तथा उत्तरदिशावासी नागकुमारों का वर्णन 156 184-187 सुपर्णकुमार देवों के स्थान आदि का वर्णन 158-162 188-164 समस्त वाणव्यन्तर देवों के स्थानों की प्ररूपणा 163-170 165 ज्योतिष्क देवों के स्थानों की प्ररूपणा 170-172 सर्व वैमानिक देवों के स्थानों की प्ररूपणा 167 सौधर्मकल्पगत देवों के स्थान की प्ररूपणा 118 ईशानकल्पवासी देवों के स्थान की प्ररूपणा 176 196-206 सनत्कुमार आदि पारण-अच्युतकल्प-वासी देवों के स्थानों की प्ररूपणा 177-185 176 174 [27] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org