Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 407 अजीव-पर्याय 500-503 ग्रजीवपर्याय के भेद-प्रभेद और पर्यायसंख्या 406 504-524 परमाणुपुद्गल आदि की पर्याय सम्बन्धी वक्तव्यता (परमाणुपुद्गलों में अनन्त पर्यायों की सिद्धि (414) परमाणु चतुःस्पर्शी और षट्स्थानपतित (415) द्विप्रदेशी-यावत् दशंप्रदेशी स्कन्ध तक की हीनाधिकता : अवगाहना की दृष्टि से (415) 525-537 जघन्यादि विशिष्ट अवगाहना एवं स्थिति वाले द्विप्रदेशी से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक की पर्याय-प्ररूपणा द्विप्रदेशी स्कन्ध में मध्यम अवगाहना नहीं होती (424) 538-553 जघन्यादि युक्त वर्णादियुक्त पुद्गलों को पर्याय-प्ररूपणा 425 554-558 जघन्यादि सामान्य पुद्गल स्कन्धों को विविध अपेक्षानों से पर्याय-प्ररूपणा छठा व्युत्क्रान्तिपद : 440-464 प्राथमिक 440-442 556 व्युत्क्रान्ति पद के आठ द्वार 443 560-568 नरकादि गतियों में उपपात और उद्वर्तना का विरहकाल निरूपण (प्रथमद्वादश द्वार) 444 566-608 नैर थिकों से अनुत्तरौपपातिकों तक के उपपात और उद्वर्तना के विरहकाल की प्ररूपणा (द्वितीय चतुर्विशति द्वार) 446 606-625 नैरयिकों से सिद्धों तक की उत्पत्ति और उद्वर्तना का सान्तर-निरन्तर निरूपण (तीसरा सान्तर द्वार) 626-638 (चौथा एक समय द्वारः) चौबीस दण्डकवर्ती जीवों और सिद्धों की एक समय में उत्पत्ति और उद्वर्तना की संख्या-प्ररूपणा 456 636-665 (पंचम कुतोद्वार) चातुर्गतिक जीवों की पूर्वभवों से उत्पत्ति (आगति) की प्ररूपणा 456 666-676 (छठा उद्वर्तना द्वार) चातुर्गतिक जीवों के उद्वर्तनानन्तर गमन एवं उत्पाद की प्ररूपणा 481 677-683 (सप्तम परभविकायुष्य द्वार) चातुर्गतिक जीवों की पारभविकायुष्य सम्बन्धी प्ररूपणा 488 684-662 (अष्टम आकर्षद्वार) सर्व जीवों के षड्विध आयुष्यबन्ध, उनके आकर्षों की संख्या और अल्प-बहुत्व सप्तम उच्छवासपद : 465-504 प्राथमिक 465 663 नैरयिकों में उच्छवास-निश्वासकाल-निरूपण 466 664 भवनवासी देवों में उच्छ्वास-विरहकाल-प्ररूपणा [30] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org