Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन---प्रथम उद्देशक
डालकर एक दूसरे की चुगली खाकर आपस में भिड़ा देना, पवश-रोषवश तरहतरह की यातनाएँ या शारीरिक सजाएँ देना, धूप में खड़ा कर देना, अत्यन्त बोझ लाद देना, इधर-उधर तेजी से दौड़ाना, प्राणियों को आपस में लड़ाकर मारना या तलवार, बन्दूक आदि शस्त्रों के प्रहार से घायल कर देना या मार देना--ये और इस प्रकार की हिंसा की विविध प्रक्रियाएँ हिंसा हैं । जान से मार डालना हिंसा की अन्तिम क्रिया है।
हाँ तो वे दस प्राण इस प्रकार हैंपंचेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च, उच्छ्वास-निश्वासमथान्यदायुः । प्राण दशैते भगवद्भिरुक्तास, तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा ॥
लोक में प्राग, अपान समान, उदान और व्यान के नाम से पंचप्राण प्रसिद्ध हैं, वे प्राणवायु हैं। 'श्वास और उच्छ्वास' नामक दो प्राण ही प्राणवायु के अन्तर्गत आते हैं, लेकिन जैन शास्त्रों में 'प्राण' एक पारिभाषिक शब्द है, उसका विशिष्ट अर्थ होता है। उसके निम्नोक्त दस प्रकार हैं--(१) श्रोत्रन्द्रिय-बल प्रा, (२) चक्षुरिन्द्रिय-बल प्राण, (३) घ्राणेन्द्रिय-बल प्राग, (४) रसनेन्द्रिय बल प्राण, (५) स्पर्शनेन्द्रिय-बल प्राण, (६) मनोबल प्राण, (७) वचनबल प्राण, (८) कायबल प्राण, (६) श्वासोच्छ्वासबल प्रागः और (१०) आयुष्यबल प्राण। ये दस द्रव्य प्राण हैं; और चार भावप्राण हैं-ज्ञान, दर्शन, वीर्य और सुख । इन दस द्रव्यप्राणों और चार भावप्राणों में से किसी भी एक या अनेक का प्राणी की आत्मा या शरीर से वियुक्त (पृथक) करना प्राणातिपात या हिंसा है। निष्कर्ष यह है कि इन दस द्रव्यप्रागों या चार भावप्राणों में से किसी भी प्राण को चोट पहुँचाना, हानि पहुँचाना, पीड़ा देना, दबाना, सताना, डराना, डुबाना, जलाना, विकास में रुकावट डालना, आपस में टकराना, फेंकना, पीटना, श्वास रोक देना, जान से मार देना, बेहोश कर देना, दुखित कर देना, हैरान-परेशान करना, भगाना, थकाना, भूखे-प्यासे रखना, जकड़कर बाँध देना, अतिभार लादना आदि सब प्राणघातक क्रियाएँ प्राणातिपात (हिंसा) के अन्तर्गत आ जाती हैं।
इसलिये हिंसा का लक्षण है-एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के प्राणियों
१. जैसे कि इरियावहिया (ईर्यापथिक) पाठ में हिंसा की विविध क्रियाएँ बताई हैं---
जे मे जीवा विराहिया, एगिन्दिया, बेइन्दिया, तेइन्दिया, चरिदिया, पंचेन्दिया, अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया,
उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ वबरोविया । २. प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा ।
-तत्त्वार्थसूत्र
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