Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SĀDHĀRANA'S VILĀSAVAIKAHĀ L. D. SERIES 61 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH EDITED BY R. M. SHAH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 भारतीय L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 જાદ છે Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SÃDHĀRAŅA'S VILĀSAVAĪKAHĀ L. D. SERIES 61 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH EDITED BY R. M. SHAH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9. - WER Ger L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9, wiemy 'भाबाट Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Mahanth Tribhuvandasji Shastri Shree Ramanand Printing Press Kankaria Road, Ahmedabad-22. and Published by Nagin J. Shah Director L. D. Institute of Indology Ahmedabad-9, FIRST EDITION October 1977 PRICE RUPEES 40/ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणविरइया विलासबईकहा संपादक 1. म. शाह mmam प्रकाशक Hदलपत Anoter Aamie लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद -९ "त्मदाबाद Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOREWORD It is indeed a matter of great pleasure to place before lovers of Indian literature the present critical edition of Sadbarana's Vilasavaīkaha, a hitherto unpublished Apabhraņģa work. This edition is based on the two palm-leaf mss. belonging to the Jesalmer Bhandara (Kramānka 267-268 in the 'Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts - Jesalmer Collection, L. D. Series 36). The author of the Vilāsavaikaha supplies some biographical details in bis praśasti at the end of the work. His remote ancestry goes back to a family of traders, His gana is Kotika, his sakha is Vajra and his vamsa is Candrakula. In the gaccha of Yaśobhadrasūri there flourished Bappabhatuisūri? who was a crest-jewel of the royal court. In this very gaccha there rose Säntisūri who headed the gaccha in the Mathurā territory. He was succeeded by Yasodeya who had a pupil Siddbasenasūri, well known as Sādbārana. Sadhārana composed the Vilasavaskaha at the request of Sahu Laksmidhara, a resident of the Gwalior Fort and the progency of SriBhillamälakula, He picked up the story of the Vilasavaikaha from the Samaräiccakaha (Bhava V) of Ac. Haribhadra (c. 750 A. D.). The Vilasavat was completed in 1123 V. S. (= 1066 A, D.) Though he has picked up the story from the Samarāiccakaha, he has made it an independent literary work by additions, alterations and elaborations. Āc. Haribhadra divided his composition in Bhavas and wrote in mixed verse and prose in Jaipa Mabārāştri Prakıit, whereas Sadbārana sets out to write in Apabhramśa, the divisions in his work being called Sandhis. The tale of Sanatkumāra-Vilāgavati is a part of a bigger network of tales in the Samarāiccakha and it illustrates the result of nidana, whereas it is developed as an independent tale in the Vilasavarkaha and it illustrates grave consequences of a slight pramāda. The Vilasavaikaha being an independent dharmakatha has a mangala of its own. Though Sadhārana has taken his theme from the Samarāiccakaha of Ac. Hajibhadra he has hardly missed any opportunity to offer a poetic description, to elaborate a context surcharged with some rasa or the other and to sketch a scene decked with poetic embellishments. His descriptions have a poetic flavour and he has a variety of them scattered all over the work. The entire work is divided into eleven Sandhis and each Sandhi consists of several Kada. vakas. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The study of such an Apabhramsa work is important in more than one respect. Apart from its literary value, its prime importance at present lies in the help that it renders to the students of modern Indian regional languages in tracing out their development. Dr. R. M. Shah bas critically edited the Apabhramsa text with Gujrati Introduction and several important indices. This editing work has earned him the Ph. D. Degree of the Gujarat University. Dr. Shah carried out this research work under the able guidance of Pt. Bechardasji Doshi. I am most thankful to Dr. Shah for agreeing to the publication of this work in the L. D. Series. I hope the publication of this hitherto unpublished Apabhramsa work will be of very great value to the students of Apabhramśa language and literature, L. D. Institute of Indology Ahmedabad-380009 1st Oct., 1977 Nagin J. Shah Director, Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पृष्ठ १-६६ Mmm ५-२४ २४-२८ २८-३२ ३३-४३ ४४-४७ ४८-५२ प्रस्तावना १. प्रति-परिचय अने संपादन-पद्धति २. ग्रन्थकार-परिचय ३. कथासार ४. समराइच्च-कहा साथे साम्य अने मौलिकता ५. महाकाव्य तरीके मूल्यांकन ६. कथानकोनी पूर्वपरम्परा ७. विलागवई-कहामां देखातां समाजजीवननी रूपरेखा ८. छंदोरचना ९. भाषा अने व्याकरण १०. कहेवतो, रूढिप्रयोगो अने सुभाषितो ११. संदर्भ-ग्रन्थ-चि विलासवई-कहा मूल संधि १. सनत्कुमार-विलासवती समागम , २. विनयंधर-वृत्तांत ३. भिन्न-वहाण ४. विद्याधरी-वृत्तांत ५. विवाह-वियोग ६. विद्या-सिद्धि ७. दुर्मुख-वध ,, ८. अनंगरति-विजय अने राज्याभिषेक ,, ९. विनयंधर-मिलाप ,, १०. जनक-समागम , ११. सनत्कुमार-विलासवती निर्वाण-गमन प्रशस्ति ५६-६१ ६२-६६ १-१९५ १-१६ १७-३१ ४५-५८ ५९-७७ ७८-९६ ९७-११२ ११३-१३४ १३५-१५३ १५४-१७१ १७२-१९४ १९५ १-१९ २०-३५ २०-२२ २२-२४ २४-२६ २६-२७ २७-२९ २९-३० शब्दकोश परिशिष्टो १. व्यक्ति-नामो २. भौगोलिक-नामो ३. वृक्ष-वनस्पति ४. पशु-पक्षी ५. खाद्य-पदार्थों ६. शस्त्रास्त्र ७. वाद्यो ८. जैन पारिभाषिक शब्दो ३० ३०-३५ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना १. प्रति-परिचय अने संपादन-पद्धति प्रति-परिचय जेसलमेरना जैन ग्रन्थ भण्डारमा उपलब्ध थती 'विलासवई-कहा' नी बे ताडपत्रीय प्रतोनी फोटोस्टेट नकलो स्व० पूज्य आगम-प्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजीए वर्षो पूर्वे करावेली. जेसलमेर ग्रन्थ भण्डारोना तेमणे ज सम्पादित करेल सूचिपत्रमा नोंधायेली नं. २६७-२६८ नी ताडपत्रीय प्रतिओनो ज आ फोटोस्टेट कोपीओ छे'. आ फोटोकोपीओना आधारे में आ संपादन कयु छे. आ बन्ने फोटोकोपीओनी विगत नीचे मुजब छे (१) ला० प्रति-श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थालयमां आ फोटोकोपी क्रमांक २८३४२ नी छे. जेसलमेरना उपर जणावेला सूचिपत्रमा नं. २६७ नी जे प्रति छे तेनी ज आ फोटो-नकल छे. अन्तिम फोटो प्लेटमां 'जे. भ. १६७' आवी नोंध मूकायेली छे. आ १६७ जूनो नंबर छे. ११४९१ (से. मी. २८४२४) नो साईझनी ४२ प्लेटोमां ताडपत्रना कुल २०६+२ (प्रकीर्ण) पत्रो (जेनुं माप सूचिपत्र मुजब १६१४२३" छे) समायेल छे. १०८ मुं पत्र आमां खूटे छे. अन्य २०७ पत्रोमां प्रतिपृष्ठ ५ पंक्ति अने प्रतिपंक्ति ६० थी ६५ अक्षरो (नागरी लिपोमां) छे. मूळना अक्षर सुवाच्य होवा छतां फोटो कोपी जूनी अने झांखी पडी गयेली होवाथी वाचनमां खूब ज मूश्केल छे. ___आ प्रतिमां भलेमीडुंना प्रतीक पछी तरत ज "बहुरयण ..."थी काव्यनी शरूआत थाय छे अने ११ मी सन्धिना अन्ते प्रशस्ति पछी "जय तियसिंद सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुहयण-विदिन्न-वाणी सरस्सई सयल-सुह-खाणी । __ए सरस्वतीना जयशब्दोथी समापन थाय छे. (२) पु० प्रति-आ फोटोनकल उपर दर्शावेल जेसलमेर-सूचिपत्रनी नं. २६८नी प्रतिनी छे. स्व. पू. आगमप्रभाकरश्रीना अंगत संग्रहनी आ फोटोकोपी पण हाल ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर, अमदावादना संग्रहमा ज छे. एनो क्रमांक २८ ३ ४ ३ छे. आमां ११११४९" (से.मी. २९४२४) ना मापनी २७ फोटो-प्लेटमां ताडपत्रना १४४२" ना मापना) कुल २०३ पत्रो आवेल छे. आमां मूळना पत्र-२, ५४, ९९, १३० अने १३८ना फोटो कोई कारणसर लेवायेल नथी. मूळ प्रतिमा प्रतिपृष्ठ ५ पंक्ति अने प्रतिपंक्ति ५० थी ५२ अक्षर छे. अक्षर सुवाच्य छे. फोटो पण प्रथम प्रति करतां अधिक स्पष्ट छे. आ प्रतिना प्रारंभ 'भलेमोंडु'ना चिह्न पछी "नमो वीतरागाय ॥ बहुरयण..." थी थाय छे. अने अंते १. जेसलमेरु-दुर्गस्थ हस्तप्रतिसंग्रह-गतानां संस्कृत-प्राकृतभाषा-निबद्धानां ग्रन्धानां नूतना सूची, संकलयिता-मुनिराज श्री पुण्यविजयजी, पृ. १११-११२. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा "समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहलेण एसा..." थीं प्रशस्ति अपूर्ण रहे छे. आ बन्ने प्रतिओमा एमना लिपिकार अने लेखन-स्थळ के समय विशे कोई उल्लेख नथी. स्व. पू. आगमप्रभाकरश्रीए बन्नेनो लेखनसमय चौदमी शताब्दी होवानुं अनुमान करेलु. प्रतोनी लाक्षणिकताओ प्राचीन हस्तलिखित प्रतोमां लहियाओनी असावधानी अने अज्ञानना कारणे जे भूलो होय छे ते अहीं-बन्ने प्रतोमां पण देखा दे छे. बन्ने प्रतोनी लाक्षणिकताओ नीचे दर्शावी छे. (१) म-स, च्छ-स्थ, त्थु-छु, दृ-दू, ए-प, वच, य-प, उ-ओ अक्षरो वच्चेनो भेद न सम जवाने कारणे लहियाओए एकनी जग्याए बीजो अक्षर लखी नाखेल छे. (२) पडिमात्रा समजवामां पण घणीवार लहियाओए भूलथाप खाधी छे. (३) सादृश्यने कारणे 'ईसाणचंदु' नु' ईसाणुचंदु ' अने 'वरिस-सरिस'- 'विरिस सरिस' जेवी भूलो जोवा मळे छे. (४) सामान्यतः बन्ने प्रतोमां परसवर्णना स्थाने अनुस्वार आवे छे, परन्तु केटलीकवार 'न्त' (किरन्ति, कन्ति जेवा रूपोमां) जोवा मळे छे. (५) निरर्थक अनुस्वार पण घणी जगाए नजरे पडे छे; ते ज रोते अनुस्वार छूटी गयाना पण घणां उदाहरणो छे. (६) 'य' श्रुतिनी बाबतमा बन्ने प्रतिओमां एकवाक्यता नथी. पु० प्रतिमा 'य' श्रुति विशेषताथी छे. (७) बन्ने प्रतिओमां आदि 'न' अने मध्यवर्ती संयुक्त 'न्न' सुरक्षित छे, जो के पु० प्रतिमां तेवा केटलाक स्थानोमां 'ण-ण्ण' छे. (८) धम्म, कम्म इत्यादि धम, कम लखायेला छे. (९) आदि 'भ' नो पण केटलीक वार 'ह' करवामां आव्यो छे. (१०) प्रथमा एकवचननो 'उ' प्रत्यय अनेक स्थळे छे, परंतु क्यांक क्यांक 'अ'कारान्त रूप पण जोवा मळे छे. (११) बन्ने प्रतिओमां एकंदर महत्त्वपूर्ण पाठभेद जज जोवा मळे छे. संपादन-पद्धति संपादनमां में नीचे मुजबना नियमोनु पालन कयु छे(१) हस्तप्रतोने अनुसरी उद्वृत्त स्वरोना स्थाने 'य'-श्रुति राखी छे. (२) परसवर्णना स्थाने अनुस्वार मूकेल छे. (३) आदि 'न' हस्तप्रतोने अनुसरी सर्वत्र सुरक्षित राखेल छे. (४) स्वर-मध्यवर्ती असंयुक्त 'न' नो 'ण' करेल छे. (५) संयुक्त 'न' माटेनो निर्णय एना संस्कृत रूपने आधारे कर्यो छे. संस्कृतमा 'न' होय तो 'न' अने 'ण' होय त्यां 'ण' राखेल छे. दा.त. 'मन्यते'='मन्नइ' पण 'कर्णधार'= 'कण्णधार'. (E) प्रतिओमा प्रायः 'ब'ना स्थाने 'व' ज मळे छे, अहीं मूळ संस्कृत रूप अनुसार यथा. स्थान 'ब'-'व' मूक्या छे. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना (७) सामासिक शब्दोने - चिह्न (हाइफन) द्वारा छूटा पाडी दर्शाव्या छे. (८) अस्पष्ट के अनिर्णित स्थान (?) चिह्न थी अंकित कर्या छे. (९) पाठान्तरो कडवक अने पंक्ति-संख्या थी दर्शाव्या छे. (१०) अभ्रंशमां ह्रस्व ए, ओ दविवा जरूरी होवा छतां अलग टाइप न होवाने लीधे ते विना चलावी लेवू पडयु छे. (११) एत्यंतरे एत्थं तरि, तीय-तीए जेवा अनेक वार मळतां पाठोनी नोंध मात्र शरूआतमां ज लीधी छे. २. ग्रंथकार-परिचय विलासर्वई-कहा ना रचयिता सिद्धसेनसूरि अपरनाम 'साधारण' कविना जीवन-कवन विशे आ कृतिनो प्रशस्ति सिवाय बोजी कोई जगाओथी वधु माहिती प्राप्त थती नथो. प्रशस्ति नीचे मुजब छे वाणिज्ज-मूलकुले कोडिय-गणे विउल-वइर-साहाए । विमलम्मि य चंद-कुले वंसम्मि य कव्व-कलाण संताणे ॥ रायसहा-सेहर-सिरि-बप्पहटि-सूरिस्स । जसभद्दसृरि-गच्छे महुरादेसे सिरोहाए ॥ आसि सिरि-संतिसूरि तस्स पए आसि सूरि जसदेवो । सिरि-सिद्धसेणसूरि तस्स वि सीसो जडमई सो । साहारणो त्ति नामं सुपसिद्धो अत्थि पुव्व नामेणं । थुइ-थोत्ता बहु-भेया जस्स पढिज्जंति देसेसु ॥ सिरि-भिल्लमाल-कुल-गयण-चंद-गोवइरि-सिहर निलयस्स । वयणेण साहु-लच्छिहरस्स रइया कहा तेण ।। समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहलेण एसा पसन्न-वयणा विलासवई ।। एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस-वरिस-अहिएहिं । पोस-च उद्दसि सोमे सिद्धा धंधुक्कय-पुरम्मि । एसा य गणिज्जतो पाएणाऽणुठ्ठभेण छंदेण । संपुण्णाई जाया छत्तीस-सयाई वीसाई ॥ जं चरियाओ अहियं किं पि इह कप्पियं मए रइयं । पडिबोह-कारणेणं खमियव्वं मज्झ सुयणेहिं ॥ जयइ तियमिंद-सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुयण-विदिण्ण-बाणी सरस्सई सयल-सुह-खाणी ।। कवि पोताने वाणिज्यकुल, कोटिक गण अने विशाळ वज्रशाखामां, काव्य-कलाकोविदोनी परंपरावाळा चंद्रकुल (उपकुल) मां उत्पन्न गणावे छे. राजसभाना मुकुटसमान श्री बप्पमट्टिसूरिनी परंपरामां स्थपायेला प्रसिद्ध यशोभद्रसूरि-गच्छमां, मथुरा प्रदेशमा जे अग्रणी के संघपति हता तेवा श्री शांतसूरिना पट्टशिष्य श्री यशोदेवसूरि हता. कवि नम्रतापूर्वक पोताने आ श्री यशोदेवसूरिना 'जडमति' शिष्य तरिके ओळखावे छे. तेओ पूर्वाश्रममां (मुनि-जीवन अंगीकार Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा कर्या पूर्वे) 'साधारण' ए उपनामथी प्रसिद्ध हता. अमना रचेला स्तुति-स्तोत्रो देशभरमां गवाती हता. आवा कविए भिन्नमाळ-कुळना, गोपगिरिशिखर(हालना प्रसिद्ध ग्वालियर)ना रहेवासी साधु ( सद्गृहस्थ ) लक्ष्मीधरनी विनंतिथी 'समराइच्चकहा'(आचार्य हरिभद्रसूरि-रचित प्राकृतभाषा-निबद्ध महाकथा 'समरादित्यकथा')मांथी वस्तु लईने, शुद्ध सन्धिबन्धमां, कुतुहलपूर्वक आ प्रसन्न मधुर वाक्योवाळी विलासवती-कथा रची छे. गुजरातना धंधुकानगरमा विक्रम संवत् ११२३ (ईस्वी सन १०६७) ना पोष चतुर्दशीने सोमवारना दिवसे रचना पूर्ण थई. अनुष्टुभ् छन्दना मापथी गणतां लगभग त्रण हजार छसो वीश (३,६२०) गाथा आमां छे. पाठकोने उपदेश करवा खातर मूळ वस्तुमा पोतानी कल्पनाथो केटलोक उमेरो कर्या बदल कवि सज्जनो पासे क्षमा याचे छे. अंते इन्द्रनी अप्सराओ जेना चरणकमलने वंदे छे, जे बुधजनोने वाचा आपनारी छे, जे सकल सुखनी खाण छे एवी पद्मासना सरस्वतीनो जय वांछी कवि प्रशस्तिनु समापन करे छे. भगवान महावीरनी शिष्य-परपरामां दशमा पट्टधर आर्य सुहस्तीना बार शिष्यो पैकी पांचमा आर्य सुस्थितसूरि(ई. स. पूर्व २८४)थी शरू थयेल कोटिक गणनी १. उच्चनागरी, २ विजाहरी, ३. वईरी अने ४. मज्झिमिल्ला ए चार शाखाओ अने ए शाखाओना अनुक्रमे १. बंभलिज्ज २. वत्थलिज्ज ३. वाणिज्ज अने ४. पण्हवाहणय कुळो हतां. आमांनी रोजी वईरी-वज्रशाखानो उद्भव आर्य वज्रस्वामिथी (ई. स. २१-५७, वीर सं. ५४८५८४) मनाय छे.' आ वज्रशाखाना नागेन्द्रकुल, चन्द्रकुल वगेरे उपकुलो हता. कवि आमांनी वज्रशाखाना हता अने वाणिज्यकुल एमनु मुख्यकुल तथा चन्द्रकुल उपकुल हतुं. आ परंपरामां कनोजना राजा आमराजने प्रतिबोधनार आचार्य बप्पमट्टिसूरि (ई. स. ७४४-८३९) थया. ते ज सुप्रसिद्ध आचार्यनो पर परामां, यशोभद्रसूरि-गच्छमां प्रस्तुत कवि थया. यशोभद्रसूरि-गच्छ कोनाथी अने क्यारे स्थपायो ते विशे कोई माहिती प्राप्त थती नथी. कविना गुरु-प्रगुरु विषये पण कोई उल्लेख अन्यत्र मळतो नथी. प्रशस्तिपरथी एटलं जाणी शकाय छे के यशोभद्रसूरि-गच्छ मथुराप्रदेशमां ते काळे विद्यमान हतो. आचार्य बप्पट्टिसूरिनी कर्मभूमि मोढेरा (गुजरात) थी मांडी मथुरा अने पटणा सुधीना विशाळ प्रदेशमा विस्तरेली हती. मोढेरानां मोढ-गच्छ अने मोढ-वणिकोना संबंधन पगेरु धंधुका सुधी आवे छे'-अहीं ए नोंधq रसप्रद थशे के आ धंधुकामां ज महान आचार्य हेमचन्द्रसुरि, 'विलासवतीकथा'ना रचनाकाळ पछी त्रेवीसमा वर्षे (वि.सं. ११४५, ई.स. १०८८मां) मोदज्ञातिमा ज जन्म्या हता--आम कवि सिद्धसेनसूरिनु कार्यक्षेत्र धंधुकाथी मांडी प्रशस्तिमा जे गोपगिरिनो उल्लेख छे ते ग्वालियर सुधी विस्तृत हशे अम मानी शकाय. 'साधारण'उपनामथी गृहस्थ-जीवनमां ज प्रसिद्धि, स्तुति-स्तोत्रो सर्वत्र प्रचलित हता तथा विलासवतीनी रचना आचार्यपदे हता ते दरमियान पूर्ण करी, आ बघा उल्लेखोथी अमनी १. जुओ जैन परंपरानो इतिहास भा. १ पृ. २११-२१९. २. एजन पृ. २८४-३०० ३. एजन पृ. १७७ ४. पट्टावली समुच्चय खं. १ पृ. ५२. ५. प्रभावकचरितम- २१ श्री बप्पभट्टिसूरिचरितम्, पृ. ८०-१११. ६. जैन परंपरानो इतिहास भा. १ पृ. ५२२-५२४. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना काव्यसाधना लांबा काळनी होवानुं कल्पी शकाय छे. आथी 'विलासवती ने एमनी प्रौढवयनी रचना मानवानुं प्राप्त थाय छे। अने तो कविनो जीवन- काळ ईस्वीसननी अगियारमी सदोनो पूर्वभाग - प्रथम के द्वितीय दशकथो मांडी आठमा नवमा दशक सुधीमां — आंकी शकाय. कविए पोते अनेक स्तोत्रो रच्यानो निर्देश कर्यो छे, पण तेमनुं एक मात्र स्तोत्र अत्यारे उपलब्ध छे. ते प्राकृत भाषाबद्ध 'सकलतीर्थस्तोत्र' नामक ३६ गाथानी लघु कृति छे.' तेनी एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रति पाटणना संघवी पाडाना ग्रंथसंग्रहमां छे. अने ला. द. विद्यामंदिर, अमदावाद खाते बे कागळनी प्रतिओ मळी आवी छे. आ कृतिमां कविना समयना अने पूर्व परंपरा अनुसार प्रसिद्ध एवा जैन तीर्थोनी वंदना करवामां आवी छे. ऐतिहासिक दृष्टिए जोतां मां केटोक मूल्यवान सामग्रो मळे छे. एनी अंतिम गाथाओ आ प्रमाणे छे - कित्तिम अकित्तिमा वि य तित्थयरा वंदिया मए सव्वे । जिण भवण - सन्निविद्या साहारण भत्ति-राएण ।। ३५ ।। मरहम मणुअ - विहिया मोहारि - दुष्प - माहप्पा | सिरि-सिद्धसेणसूरिहिं संयुया सिव-सुह दिंतु ||३६|| कविनी बीजी एक कृति 'एकविंशतिस्थान- प्रकरण' प्रकाशित थयेली मळी आवे छे. जे प्राकृत भाषामा छे अने जेमां चावीसे तीर्थंकरोना च्यवन, जन्म, जनक- जननी इत्यादि एकवीश स्थान- विगतो ६६ गाथाओमां आपवामां आवेल छे. तेनी अंतिम गाथा नीचे प्रमाणे छे - इय इक्कवीस ठाणा उद्धरिय सिद्धसेणसूरिहिं । चवीस- जिणवराणं असेस - साहारणा भगिया || ६६ || बन्ने कृतिओना अंते आवता 'साहारण' शब्द उपरथी आ कृतिओना कर्ता सिद्धसेनसूरि ते प्रस्तुत 'साधारण' कवि ज छे तेम खात्रीथी कही शकाय . 'विलासवई कहा 'ना प्रत्येक संधिना अंते कविए श्लेष द्वारा पोतानुं नाम सूचयुं छे. ते हकोकत उपरोक्त विधानने पुष्ट करे छे. ३. कथा - सार संधि- १ कथाना प्रारंभमां काव्यरूपी हारनी प्रशंशा करीने मंगळमां कवि चोवीस तीर्थंकरोनी दरेकना नाम दईने स्तुति करे छे. पछी सिद्ध, आवार्य, उपाध्याय अने साधुओने प्रणाम करीने श्रुतदेवी सरस्वतीनुं स्मरण करे छे. ( १ ) पछी श्रोता- पाठकोने संबोधी परदोपदर्शन, परजनपीडा अने प्रमादना कडवा फळ विशे दृष्टांतरूपे विलासवतोनी कथा ध्यानपूर्वक सांभळवा कही कथा शरू करे छे. (२) आ भारतवर्षमां श्वेताम्बी नामे सुंदर नगरी हती ज्यां यशोवर्मा नामे राजा शासन करतो हतो. तेने कीर्तिमती नामे गुणवंतो पटराणी हती. तेनी कुक्षिए रूपगुणमां उत्तम एवो १. ला. द. विद्यामंदिर, अमदावाद तरफथी प्रकाशित थनार 'चैत्य परिपाटि - संग्रह 'मां में संपादित करेल आ स्तोत्रनो समावेश करायो छे. 2. Descriptive Catalogue of Mss. in the Jain Bhandars at Pattan Ed. by L. A. Gandhi. pt. PP. 155-56. ३. एकविंशतिस्थानप्रकरण - संपा० मुनि देवविजयजी, प्रकाशक - शेठ खीमचंद फूलचंद, सीनोर, ई० स० १९२४. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा कुमार जन्म्यो. कुमारना जन्मसमये ज नैमित्तिको(ज्योतिषीओ)ए भाख्यु के आ कुमार सकल विद्याधर राजाओनो अधिपति थशे. कुमारनुं नाम सनत्कुमार पाडवामां आव्यु'. बधाने प्रिय एवो कुमार वैभवपूर्वक उछरवा लाग्यो. (३) ___ एक वखत अश्वक्रीडाएथी पाछा वळतां कुमारे रक्षको द्वारा पकडीने मारवा माटे लई जवाता केटलाक चोरोने जोया. चोरोनी शरण-याचनाथी कुमारे तेमने छोडाव्या. नगरजनो आ जाणी गुस्से थया. रक्षकोए आ वात राजाने कही. राजाए कुमारथी खानगो रीते, नगरजनो ने जाण थाय ए रीते चोरोनो वध करवा रक्षकोने आज्ञा करी. कुमारथो आ छूपु न रहयु अने ते पोताना पिताथो रिसाईने त्यांथी चाली नीकळ्यो. (४) पोताना परिजनोए वारवा छतां ते केटलाक वफादार माणसोने साथे लईने नगरी छोडी चाली नीकळ्यो, ने समुद्रतीरे आवेली ईशानचंद्र राजानी राजधानी ताम्रलिप्ति नगरीए आवी पहोंच्यो. तेना आगमननी जाण थतां ईशानचंद्र राजाए सपरिवार सामे जईने तेनु स्वागत कर्यु, नगरमां लई जई सुसज्ज निवासस्थान आप्यु अने आ पण तेनु पोतानु ज राज्य छे एम गणवा का . सनत्कुमार त्यां सुखपूर्वक समय पसार करवा लाग्यो. (५) ईशानचंद्र राजाए तेने कोई मनगमतो आजीविका स्वीकारवा कह्युपण कुमारे ना पाडी. एटलामा बहुविध विलासवाळो मनहर वसंतमास (वर्णन) आवी पहोंच्यो. अने मदननो महोत्सव उजववा नगरजनोनी साथे ज मित्र-परिवार सह कुमार पण अनंगनंदन नामना उद्यान तरफ चाल्यो. (६-७) राजमार्गे पसार थता कामदेव समा कुमारने पोताना महेलनी बारीमा बेसी मार्गर्नु अवलोकन करती ईशानचंद्र राजानी रूपवती पुत्रो विलासवतीए जोयो. जाणे के पूर्व-जन्मनी प्रीत होय तेम तेणीने कुमार तरफ भाव प्रगट्यो. पोताना हाथे गूंथेली बकुलमाळा तेणे नीचेथी पसार थता कुमार उपर फेंको, ते बराबर कुमारना गळामां जई पडी. जेवू कुमारे ऊंचे जोडे के अनुरागवती राजकन्याने जोई. तेने पण अत्यंत प्रेम उत्पन्न थयो. कुमारना प्रिय मित्र वसुभूतिए आ बधु जोयु अने तेने पण आ बन्नेना परस्पर अनुरागनी तत्क्षण झांखी थई. (८) उद्यानमां जईने मनोहर क्रीडाओमां जोडावा छतां कुमारनुं हृदय तो विलासवतीना सुंदर मुखनं ज चितन करतुं रा. पछी नगरीमा पाछा फरी पोतानुं कामकाज आटोपी तेणे दिवस जेमतेम पूगे कर्यो. पण प्रियाविरहे तेनी रात्रि लांबी अने दुःसह बनी गई. (९) प्रभाते मित्रो आव्या. तेमनी साथे कुमार क्रीडा माटे भवनोद्यानमा गयो. पण कोई रमतमां तेनो जीव लाग्यो नहीं. वसुभूतिए आ जोयु अने तेणे कुमारने माधवीमंडपमां लई जई विषादनुं कारण पुछ्युं. शरमना मार्या कुमारे प्रथम तो बहानां बताव्यां पण अंते पोतानी विरहपीडानो एकरार को. (१०) वसुभूतिए हसीने पोते ए जाणे छे एम कही आश्वासन आप्यं के 'मित्र ! तारा उार ए कुंवरी पण एटली ज आसक्त छे, ए तेणे फेंकेली बकुलमालिकारूपी प्रणयदती ज साबित करे छे. एटले ते पण तारो समागम ईच्छे छे ज, माटे शोक न कर. (११) पोते विलासवती साथे कुमारनो मेळार करावी आपवा जरूर उपाय करशे एम कुमारने मनायो, वसुभू तेए विला सवती नी धावमातानी पुत्रो अनंगसुंदरी साथे संबन्ध जोडवानी युक्ति अजमावी. थोडा दिवस अमज पसार थतां कुमारने वसुभूतिना वचनमां पण विश्वास न रह्यो अने ते कामज्वरथी खूब पीडावा लाग्यो. (१२) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना: के लोक काळ व वसुभूति आव्यो, तेने खुश जोईने कुमारेः तेनो सफळतानु, अनुमान कर्यु. कुमारे पूछवाथी तेणे कहूयुं के पोते अनंगसुंदरीने मळवा गयेल, त्यां तेनेः दुःखनुं कारण पूछ्यूँ अने पोते ते दूर करवामां मदद करवा तत्परता दर्शावी. (१३) त्यारे अनंगसुंदरी कछु' - 'मारी प्रिय सखी विलासवती अकाळे ज अंतिम अवस्थामां आवी पड़ी छे. मदन - महोत्सव समये कोई अजाण्या अप्रतिम सुंदर युवकने जोईने तेनामां अनुरक्त थई अने तेना विरहे तेनी आ अवस्था थई छे. ते युवानने जोई प्रेमथी तेणे तेना गळामां बकुलमाळा नाखी, जे ते युवाने सहर्ष स्वीकारी. बस, त्यारथी मांडी ते शून्य. हृदय बनी गई छे. आ सघळु दासी वासेथी जाणी कुंवरीनो अना प्रियतमनी साथे मेळाप करावी. आपवा में माथे लीधुं. आ पछो में सर्वत्र ते युवाननी खोज करी पण क्यांय तेनो पत्तो लागतो नथी. आ मारा दुःखनु कारण छे.' (१४-१५) विरहाग्निमां आ रीते विलासवती प्रजळी रही छे अने तेनी अवस्था अत्यन्त खराब थई । गई छे अम सांभळतां ज सनत्कुमार तेने बचाववा जवा माटे व्याकुळ थई गयो. वसुभूतिअ ने वार्यो अनेक' के 'आ तो अनंगसुंदरीओ मने जे कद्दु तेनी वात मात्र छे'. (१६) आगळ वात चलावतां वसुभूति कछु - " अनंगसुंदरीए कुंवरीने बचाववा पोते ते युवकनो पत्तो मेळयानी बनावटी वात करी अने कुंवरीए राजो थई अनंगसुंदरीने पोतानो कटिमेखला उतारी भेट आपो एटलामां विलासवतीनी माताए आवी तेणीने महाराजा समक्ष वीणावादन करवा जवानो आज्ञा कही संभळावी. विलासवती वीणावादन माटे गई. अनंगसुंदरी पोताना घरे आवी अने विला सवतीनो तेना अजाण्या प्रियतम साथै केम मिलाप कराववो तेनी चिंता करवा लागी. में (वसुभूतिए) तेने आश्वासन आप्युं अने कछु के ते युवानने हुं जाणुं कुं. राजकुमारीनी पीडा जरूर दूर थशे. ते युवक मारो परममित्र सनत्कुमार छे. अने विलासवती सानो तेनो राग मदन - महोत्सव वखते में अनुभव्यो छे. कुमार तेणोने मळवा अत्यन्त आतुर अने प्रयत्नशील छे. आ पछी में अने अनंगसुंदरीए तमारा बन्नेना मिलन माटे भवनोद्याननु स्थळ पसंद कयुं छे. हवे कुमारनी जेवी आज्ञा." आ सांभळी अनुपम आनंद अनुभवता सनत्कुमारे वसुभूतिने कडांनी जोड भेट आपी दीधी. (१७-२० ) पछी संकेत-समये वसुभूतिने साथै लई सनत्कुमार बधी ऋतुओना फूल ज्यां एक समये ज खील्यां छे एवा मनहर भवनोद्यान ( वर्णन ) मां पहोंच्या. त्यां अनंगसुंदरी मळी अने चंदनलतागृहमां पधारवा बन्नेने विनंति करी. तेओ चन्दनलतागृहमां गया. त्यां आगळ स्वसखीओवळाली अप्रतिम रूपवती विलासवती (विस्तृत वर्णन ) ने कुमारे जोई. (२१ - २३ ) अन्योन्य प्रीतिपूर्वक ओळखाणविधि थई. विलासवतीए तांबुलादिकथी कुमारनु स्वागत क. बन्ने एक आसने वेठा. तेवामां राजानु तेडुं लईने मित्रभूति नामे माणस आवो पहोंच्यो. तेणें विलासवतीने आगला दिवसे बराबर वीणा वादन न थवाथी राजाना गुस्से थवानी वात करी अने फरी वीणा वादननी राजाज्ञा संभळावी. नाछूट के जतां जतां पालुं वळी वळी अतृप्त नजरे कुमारने निहाळती विलासवती त्यांथी चाली गई. फरी प्रियाथी छूटा पडवानु दुःख अनुभवतो कुमार पण मित्र साथै पाछो फर्मों. पाछा फरता तेने राजानी अनंगवती नामनी राणीए जोयो अने तेनी मति रूपाळा कुमारने जोई विकारथी चलित थई. ( २४ - २५ ) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा कुमार तरफ अनंगवतीने राग उत्पन्न थयो अने कार्याकार्यनो विवेक भूली ते कुमारर्नु चिंतन करवा लागी. आ तरफ विलासवतीए पोताना प्रणयीजन कुमारने अनंगसुंदरी द्वारा कुसुम, तंबोल वगेरेनी भेट मोकलावी. कुमारे अत्यन्त आदरपूर्वक ते उपहारनो स्वीकार कर्यो. आ रीते ते सुखपूर्वक काळनिर्गमन करवा लाग्यो. (२६-२७) संधि-२ ___ एक दिवस अनंगवतीए दासी द्वारा सनत्कुमारने पोताना महेले पधारवा आमन्त्रण मोकलाव्यु. राणीने माता समान समजी निर्दोषभावे कुमार महेले गयो. पण राणीए तेनी पासे अघटित मागणी करी. (१-२) सनत्कुमार आ जाणी चोंकी उठ्यो. तेणे राणीनी मागणीनो इन्कार को अने पोते तेणीना पुत्र समान होई आई अपकृत्य पोतानी पासे नहीं कराववा अनुरोध को तथा राणोने पण आवी दुष्टभावनाथी पर थवा उपदेश आप्यो. शील अने नीतिमां कुमारनी मक्कमता जोई राणीए पण फेरवी तोळ्यु अने पोते तो मात्र तेनी परीक्षा ज करतो हती तेवो देखाव करी कुमारने जवा दीधो. पोताना निवासस्थाने जई सनत्कुमार वसुभूति वगेरे मित्रो साथे फरी क्रीडामग्न बन्यो. (३-४) एवामां राजानो विश्वासु मित्र नगररक्षक विनयंधर कुमार पासे आव्यो अने एकांतमां कईक कहेवानी अनुमति मागी. कुमारे रजा आपता तेणे वात शरू करी- " तमारा पिताना राज्यमा स्वस्तिमती नामना गाममा वोरसेन नामे एक वोर, उदार अने परोपकारो सुभट रहेतो हतो. तेनी गर्भवती पत्नोने लईने एकदा ते जयस्थलपुर नामे नगरमां आवेला पोताना श्वसुरगृहे जवा नीकळयो. श्वेताम्बो नगरोना पादरे ते आव्यो त्यारे राजानो गुनो करीने भागी छूटेला एक चोरे तेनो आश्रय मागी पोतानु जीवन ब वाधवा विनंति करी. तेनो गुनो नहि जाणता उदार वोरसेने पत्नीना वारवा छतां तेने शरण आप्यु. (५-७) . चोरने शोधवा नी कळेला राजाना सैनिको ते जगाए आवी पहोंच्या. वोरसेने चोरने रक्षण आप्यु छे ते जाणो तेमणे वीरसेन पासे राज्यगुनेगारने पाछो सोंपवानी मागणी करी. टेकीला वीरसेने कोई पण भोगे शरणागतने सोपवा इन्कार को. राजाज्ञाथी सैनिकोए तेना पर हुमलो कयौं. त्यां एक धिंगाणुं (वर्णन) मची गयु. ए ज वेळाए तमारा पिता यशोवर्मदेव (ते काळे युवराज) अश्वक्रिडा करी त्यांथी पसार थता हता. तेमणे समग्र वृत्तांत सांभळी वीरसेनने शर णागत-वत्सल जाणो बचावो लीघो. वीरसेन निर्भय बनी सपत्नीक जयस्थलपुर पहोंच्यो. त्यां तेनी पत्नीए पुत्रने जन्म आप्यो. ते पुत्र ते हुं (विनयंधर) पोते. आ रोते तमारा पिता मारा कुटुंबना उपकारी छे". (८-१२) पछी पोते अत्यारे आववानु प्रयोजन जणावतां विनयंधरे आगळ का के “ राणी अनंगवतीए ईशानचन्द्र राजा पासे तमे (सनत्कुमारे) तेना पर कुदृष्टि करीने अपमानित कर्यानी फरियाद करी छे. आथो कोपायमान थयेला राजाए कोई न जाणे एवी रीते तत्काल तमारो वध करवानो मने आज्ञा करी छे. हवे आ कपरी अने अनिच्छित राजाज्ञा कई रोते पार पाडवी एनी मुंझवणमां पडेलो हुँ राजभवनमांथो नोकळ्यो, त्यां सिंहद्वारे ज कोईए छोंक खाधी. त्यां रहेला सिद्ध नैमित्तिके आ जोई भाख्यु- 'विनयंधर ! जा, तारं कार्य ईच्छा मुजब सफळ थशे.' आ पछी घेर पहोंचता मारी माताए मने उदास होवानु कारण पूछ्यु. में तेने सघळं का, त्यारे तेणे मने उपरोक्त उपकारनी वात करो अने तमारा जेवा उत्तम माणसने न मारवा कह्य'. आ पछी पण ओक सामुद्रिक लक्षगोथी तमारो निर्दोषतानी खात्रो मेळवतो हूं तमारी पासे आव्यो छु. हवे तमने योग्य लागे तेम उपाय करो". (९-१५) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सनत्कुमारने आखो वात जाणी स्त्रीओनी कुटिलता विशे मनोमन खूब उद्वेग थयो. पहेलां तो साची वात राजा समक्ष रजू करवानो तेने विचार थयो. पण तेम करवा जतां राणीनो घात थशे एम विचारी तथा पोताना कर्मनो ज आमां वांक छे एम गणो परोपकारी कुमारे विनयंधरने पोतानो ज वध करवा का. पण कुमारना निर्दोषपणाने जाणनार विनयधरे तेम न करतां राजा पासे राणीनी दुष्टता उघाडी पाडवा आग्रह कर्यो. अने पछी पोते पण राजाने सत्य हकीकत कहेवा जवा तैयार थयो. पण कुमारे तेने वार्यो. गुरुजनोने संताप करवो योग्य नथो माटे पोतानो ज वध करवा फरी फरी कुमारे आग्रह कर्यो. विनयंधरे अंते कोई मध्यम मार्ग काढवा कह्यु के जेनाथी साप मरे नहि अने लाठीये भांगे नहि. बुद्धिमान कुमारे पोते छूपी रीते नगर छोडी चाल्यो जाय अने विनयंधर राजा पासे एनी हत्या कर्यान जाहेर करे एवो वचलो मार्ग काढयो. पछी ते ज दिवसे समुद्रदत्त नामे सार्थवाहना सुवर्णभूमि तरफ जतां वहाणमां वसुभूति साथे सनत्कुमारने छूपो रीते बेसाडी विनयंधरे लागणीपूर्वक विदाई आपी. (१६-२३) संधि-३ वहाण आगळ वध्यु अने वसुभूतिए सनत्कुमारने आ रीते एकाएक चाली नीकळवार्नु कारण पूछयु. जवाबमां कुमारे अनंगवतीवाळो समग्र बनाव कह्यो. बे महिना पछी तेओ सुवर्णभूमि आवी पहोंच्या. (१-२) वहाणमांथी ऊतरी तेओ श्रीपुरनगर गया. त्यां वेपार माटे आवेल, श्वेताम्बीनो रहेवासी शेठ समृद्धदत्तनो पुत्र, मनोरथदत्त नामे बालमित्र कुमारने अचानक ज मळी गयो. तेणे खूब आग्रहपूर्वक बन्नेने पोताना निवासे रोकी राख्या. (३) कुमारे पोते पिताथी रिसाई घर छोड्यानी तथा हाल पोताना मामा सिंहलद्वीपना राजा पासे जई रह्यानी वात कही अने पोताना माटे सिंहलद्वीप जतां वहाणनो प्रबंध करी आपवा मनोरथदत्तने कह्यु. मित्रनो वियोग थशे ए बी के मनोरथदत्ते घणा दिवसो सुधी वहाणनो प्रबंध को नहीं. (४) अंते कुमारना कामनी अगत्य जाणीने तेणे कुमारने सिंहल जनारा वहाणनी खबर आपी. तेणे जेने ओढवाथी ओढनारने कोई जोई शके नहि एवु चमत्कारिक 'नयनमोहन' नामर्नु एक पटवस्त्र कुमारने भेट आप्यु. ते केवी रीते प्राप्त थयु एम कुमारे कुतूहलथी पूछतां मनोरथदत्ते पोताना सिद्धसेन नामना एक तान्त्रिक मित्रद्वारा विधिपूर्वक यक्षकन्यानी साधना करीने तेनी पासेथी केवी रीते 'नयनमोहन' पट मेळव्यो तेनी विगते वात करी. (५-९) कुमारे वस्त्र स्वीकार्यु. त्यारबाद मनोरथदत्ते पोताना जाणीता ईश्वरदत्त नामना सार्थवाहना वहाणमां बन्ने मित्रोने बेसाडी, सार्थवाहने तेमनी भलामण करी, सिंहलद्वीप जवा विदाय कर्या. (१०) तेरमा दिवसे समुद्रमां भयानक तोफान (वर्णन) आव्यु. कर्मसंजोगे वहाण भांगी गयु माणसो समुद्रमां डूबवा लाग्या. सदभाग्ये एक पाटियु कुमारना हाथमां आवी गपुं. त्रण दिवसे कुमारे किनारे जोयो. (११-१२) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा किनारे आदी कुमारे आश्चर्य साथे जोयु तो पेलुं वस्त्र पाणीथो भीजान हतुं. कुमार ने ते जोई विधिनी लीलानु स्मरण थयु. वसुभूतिनी याद आवतां तेने मित्र विना जीवद्यु दुष्कर लाग्यु. (१३) मित्र विना जीवन निष्प्रयोजन होई तेने आत्महत्या करवानी इच्छा थई, पण तेने ए विचार आव्यो के कदाच वसुभूतिने पण पोतानी जेम कोई पाटियु मळी जवाथी ते पण जीवतो होई शके. आथी पोते निराश न थतां जीवयु जोईए. आम विचारी ते फळाहार बगेरेनी शोधमां नीकळयो . (१४) .., एक रमणीय वन (वर्णन) मां एक नदीतीरे तेणे फलादिकनुं भोजन कयु. त्यां एक आम्रवृक्षनीचे तेणे प्रियानु मनरंजन करता सारसने जोयो अने तेने पोतानी प्रिया विलासक्तीनु स्मरण थयु. (१५) मनुष्यो करतां वननां पशु-पक्षीओ केटलां मुखो छे एनो विचार करतां सांज पडीगई अने थाकेलो कुमार निद्राधीन थयो. (१६) - प्रभाते जागी पुनः ते वनमां फरवा नीकळयो. त्यां किगारानी सुंदर रेतीमां कोईनी नाजुक पदपक्तिओ पडेली जोईने एटलामां कोई स्त्रीनी हाजरी होवानु तेणे अनुमान कयु'. (१७) तेवामां थोडे दूर डाबा हाथे फूलछाबडी लईने जमणा हाथे फूलो चूंटती कोई सुकुमार तापसकन्या (वर्णन) तेणे जोई. अरण्यमां आवी सुंदरता जोई आश्चर्य अनुभवता कुमारे वृक्ष पाछळ छूपाईने तेनु निरीक्षण कर्यु. (१८) ___ मात्र वल्कल सिवाय ते तापसी अने विलासवतीमां कोई भेद नथी ए जोई कुमारना शरीरमा कामाग्नि प्रजळी उठयो. छाबडी भरीने जेवो तापसी नजोकथी नीकळी के कुमार पण विकारने दबावी तेनी सन्मुख जई ऊभो. प्रणिपात करी, पोतानी वीतककथा कही पछी आ कयो प्रदेश छे तथा ते कया आश्रममा रहे छे वगेरे प्रश्नो कुमारे पूछया. कुमारने जोतां ज दिग्मूढ बनेली तापसी क्षणमात्र आंखो नीचे ढाळी ऊभी रही अने पछी कई पण जवाब आप्या विना ज चालवा लागी. एकली तापसकन्याने पोते आ रीते पुछवु न होतु जोईतु एम विचारतो कुमार कुत्हलथी तेनी हिलचाल छुपाईने जोवा लाग्यो. कोईने आसपास न जोतां पोतार्नु वल्कलवस्त्र ठीकठाक करतां ते तापसकन्याए अंगभंग करी निश्वास मूक्यो. कुमारने तेनुं आ कार्य समजायु नहीं. पोतार्नु आ रीते जोवु अधर्म्य छे एम मानी अंते कुमार त्यांथी फरी पाछो नदीतीरे आव्यो. फलाहारथी तृप्त थई रात्रि थतां ज निद्राधीन थयो. निद्रामां तेणे कोई दिव्य स्त्रीए पोताने मनोहर पुष्पमाळा आपी अने पोते ते सहर्ष कंठमां धारण करी एवं स्वप्न जोयु. सारसना मधुर रवथी जागी जतां कुमारे विचार्यु के आ स्वप्न नजीकना भविष्यमा ज कन्यालाभ सूचवे छे. (१९-२१) कुमारने शंका थई के आ वनमां कन्या शी रीते मळे ? पण आगला दिवसे मळेली विलासवती जेवी ज तापसकन्यानी स्मृति तथा शुभसूचक इतर शुकनो द्वारा कुमारने स्वप्न फळवानी आशा बंधाई. विलासवतीए व्रत धारण कर्यु होय तो पोते पण व्रतग्रहण करशे एम विचारतो ते फरी ते तापसकन्यानी शोधमा प्रवृत्त थयो. अथाक अविरत प्रयत्न छतां तेने क्यांय तापसकन्यानो पत्तो न लाग्यो. (२२-२३) संधि-४ ३ते दरमियान एक आम्रवृक्षनीचे विलासवतीना विचारमा मग्न कुमार बेठो हतो त्यां एक मध्यम वयनी तापसी (वर्णन) त्यां आवी अने कुमारनुं नाम दई संबोधन कयु", पछी तेना मस्तके कमंडळना पाणीथी अभिषेक करी, मनोरथ पूर्ण थवानो आशीर्वाद आप्यो. (१) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ११ . कुमारे तेनुं अभिवादन कर्यु कुमारने पासे बेसाडी तेणे पोतानी वात शांतचित्ते सांभळवा क; अने पछी वात कहेवी शरू करी - "आ भारतवर्ष मां वैताढ्य नामे श्रेष्ठ पर्वत ( वर्णन ) छे. तेना पर विद्याधरोनुं गंधसमृद्ध नामे प्रसिद्ध नगर आवेलु छे, जेनो सहस्रचल नामे राजा छे अने सुप्रभा नामे राणी छे. तेमनी मदनमंजरी नामनी हु प्राणप्रिय पुत्री छु. विलासपुरना राजकुमार पवनगति साथे मारा लग्न करवामां आव्या हता. ( २ - ३ ) एक खत विमानमा बेसी आकाशमार्गे बन्ने क्रीडनार्थे नंदनवनमां गया. त्यां अचानक सुवर्ण सिंहासनेथी पडी जतां पवनगतिए प्राण त्यज्या अत्यन्त शोकथी विलाप करती हुँ बेभान बनी गई. भान आवतां ऊडवानो प्रयत्न कर्यो तो ऊडी शकी नहीं; मारी आकाशगामिनी विद्या निष्फल गई. एकली हु अरण्यरुदन करती रही. एवामां मारा पिताना मित्र देवनंद विद्याधर तापसं त्यां वो चड्या. तेमणे मने रुदननु कारण पूछयु में अथेति वात करी. तेणे मने आश्वासन आप्यु अने संसारनी असारता समजावी. संसारमां प्रवज्या - व्रतग्रहण ए ज एक मात्र सुखनो मार्ग छे एवं प्रतिपादन करी तेमणे मने तापस-दीक्षा लेवा प्रेरी में तैयारी बतावी. पछी पोताना प्रभावथी मारा पिताने पण त्यां हाजर करी, श्वेतद्वीप उपर जई, विधिपूर्वक तेणे मने तापस- दीक्षा आपी. (४-८) आ ते व्रत धारण करती हुं एक वखत फळादिक माटे घूमती घूमती सागरतीरे ( वर्णन ) आवी. त्यां एक पाटिया साथे वळगेली बेभान लावण्यमयी कन्या में जोई, कमंडलु - जळनो छ'टकाव करी में तेने भानमां आणी. शोक अने भयथी विह्वळ बनेली तेने में पराणे फलाहार कराव्यो. आश्रमे लई जईने में कुलपतिने तेनी सोंपणी करी. (९-१०) ते अभिजात कन्याए शरमना मार्या पोते ताम्रलिप्सिनी निवासी छे ते सिवाय बीजु कई कछु नहीं. संध्यावश्यक बाद में कुलपतिने ज तेना विशे पूछ्यु तपोबळथी कुलपतिए बतायुं के 'ते ताम्रलितिना राजा ईशानचन्द्रनी पुत्री छे अने प्रियतमना विरहथी आ अवस्था पाभी छे, कन्या होवा छतां मनथी ते यशोवर्मा राजाना पुत्र सनत्कुमारने परणी चूकीं छे. निर्दोष कुमारने ईशानचन्द्र राजाए मरावी नाख्यो एम सांभळी पोते आत्महत्या करवानो इरादो करी, एक रात्रिए चोकीदारो न जाणे तेम ते घरथी भागी छूटी, पण राजमार्गेथी चोरोना हाथमां पडी. चोरोए तेने लुंटी लईने पछी अचल नामना सार्थवाहने वेची. अचल तेने साथे लई वाणद्वारा बर्वरकुल तरफ रवाना थयो; पण वहाण अधवच्चे ज तूटी गयुं एक फलक हाथमां आवी नतां तेणी आ रीते किनारे घसडाई आवी. तेना पति साथे तेनो अवश्य संगम थशे अने तेनु जीवन सफळ थशे.' (११-१२ ) कुलपतिए तेनो पति पण शोकाकुल तेने में आश्वासन माटे तत्पर थई. पण में तेने प्रियतम जीवित होवानुं जाणी जीवित होवानुं जणान्युं तेथी मने खूब ज हर्ष थयो. आपी संसारनी गति विषे उपदेश कर्यो, तेथी ते व्रतग्रहण अटकावो अने कुलपतिए करेल भविष्यवाणी तेने संभळावी. अति प्रसन्न थई. (१३-१५) केटलोक काळ ते तापसकन्यारूपे ज पसार कर्यो. एकदा कुलपति भगवान पोताना धर्म - कुसुम-समिघ लईने पाछो फरतां तेने में रोतो दीठी. स्वजनोनी याद आवी गई. में तेने कुलपति आवसे आश्वासन आप्यु. पण ते दिवसथी तेणे देवपूजा, अतिथि बंधुना दर्शनार्थे श्रीपर्वत गये त्यारे में पूछतां तेणे कछु के आज पाताना एटले तेना घेर पहोचाडशे एवं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा सत्कार, कुसुमचयन बधां ज कामो बंध करो दोधां अने यौवनसहज कामचेष्टाओ दाखववा लागी. (१६-१७) ___बीजे दिवसे ते आश्रमथी बहार जवा नीकळी त्यारे मने तेना वर्तनमा शंका पडी. आथी हुँ पण तेनी पाछळ पाछळ छुपाती चाली नीकळी. अशोकवीथिकामां जईने तेणे रुदन करतां करतां विधाताने ठपको आप्यो. पछी हाथ जोडी वनदेवताओने संबोधीने पोताने प्रियतम अहीं ज मळेलो अने पोते शरमना भारथी तेने जवाब पण न आप्यो तेनो पश्चात्ताप करवा लागी. (१८-१९) ___ केटलीकवार पछी कोई जोतुं तो नथी ने एनी खात्री करी, गहन वृक्षझुडमां प्रवेशीने, प्रियतमने तथा माता समान एवी मने, वनदेवताओ द्वारा संदेशो पाठवोने, गळामां लतापाश नाखी आत्महत्या करवानी तेणे तैयारी करी. ते जोई चोंकी ऊठेली हुँ 'बचावो' 'बचावो' एवा साद साथे तेने बचाववा दोडी गई. तेनो पाश में खूचवी लीधो. आयु अकार्य आचरवा माटे में तेने ठपको आप्यो. तेनी वात में जाणी छे एम कही आश्वासन आप्यु; अने कुलपति भगवानना वचनमां श्रद्धा राखवा का. आ पछी तेने समजावीने आश्रमे लावी. तारी(कुमारनी) शोध माटे में पहेलां तो मुनिकुमारोने मोकल्या, छतां तेमने तारी भाळ न मळी एटले छेवटे हु ज तने शोधवा निकळी. हवे हे कुमार ! ते स्वजन विनानी सुकोमळ कन्याना प्राणनी रक्षा तारे हाथ छे, माटे तुं मारी साथे चाल.” (२०-२३) संधि-५ तापसीनी साथे कुमार दिव्य तपोवनमां आव्यो. त्यां विरहकृश विलासवती साथे ते नो समागम थयो. कुमारनो आश्रमउचित सत्कार करी तापसीए आश्रममां ज साधुजनोनी हाजरीमा तेना विलासवती साथे विधिपूर्वक लग्न कर्या. (१-३)। __लग्नबाद सुंदरवन नामे नंदनवन जेवा मनोहर उद्यान (वर्णन) मां आनंदप्रमोद करी कुमार अने विलासवती आश्रममां पाछा आल्या. आश्रमउचित कार्यो करता करतां सुखपूर्वक समय पसार करवा लाग्या. (४-७) अक दिवस समिध-काष्ठ वगेरे लेवा बन्ने वनमां गया. त्यां विलासवतीना स्नेहनी कसोटी करवा कुतूहलथी सनत्कुमारे नयनमोहन पट शरीरे ओढी लीधो. कुमारने न जोवाथी व्याकुळ विलासवती मुञ्छित थई जमीन पर पडी. आ जोई कुमारने पोताना कार्यनो पश्चात्ताप थयो. तेणे पट दूर करी विलासवतीने आश्वासन आपी भानमां आणो, नयनमोहन पटनी वात तेने कही अने ते तेने आप्यो. (८-९) ते पण ते वस्त्र जोई आश्चर्य साथे आनंद पामो. ___आनंदविनोदमां केटलोक समय पसार कर्या पछी कुमारे विचार्यु के गृहस्थोने माटे वनवास करतां नगरवास उत्तम, माटे पोते हवे स्वदेश प्रति जवू जोईए. विलासवतीए पण तेनी वातनु अनुमोदन कयु. आथी कुमारे दरिया-किनारे एक ऊंचा वृक्षनी टोचे भांगेला वहाणनी निशानीरूप ध्वज बांध्यो. थोडा दिवसो पछी केटलाक खलासीओ ए ध्वज बांधनारनुं नाम पूछता कांठे आवी लाग्या. (१०) सनत्कुमारे ध्वज बांध्यो छै एम जाणी तेमणे तेने कह्यं के 'अमे महाकटाहद्वीपना निवासी सानुदेव नामना सार्थवाहना खलासीओ छोए. अमारु वहाण मलयदेश तरफ जई रयु छे. तमारो ध्वज जोई अमारा मालिके अमने तपास करवा अने कोईने मलयप्रदेशे आवq होय तो लई आववा मोकल्या छे.' आ सांभळी कुमारे तापस-तापसीओनी अनुमति लई, विलासवती Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना साथे नाविको द्वारा लवायेल होडीमां बेसी प्रस्थान कर्यु. भगवतीए आशीर्वाद साथे विलासवतीने गद्गद् कंठे विदाय आपी. विलासवतीए दुःख साथे सहुनी विदाय लोधी. (११-१२) सार्थवाहे बहुमानपूर्वक बन्नेने वहाणमां बेसाड्या. वहाण पवनवेगे उपयु. रात्रिना अंतिम प्रहरे लघुशंका माटे ऊठेला कुमारने, विलासवतीपर आसक्त थयेला सानुदेवे धक्को मारी समुद्रमां फेंकी दीधो. एक पाटियु कुमारना हाथमां आवी जतां पांच दिवसे मुश्केलीथी समुद्र पार करी मलयतीरे पहोंच्यो. (१३) कुमारे तीरे आवी विचार्यु के 'सार्थवाहने विलासवती पर आसक्ति थवाना कारणे ज मने मारवानी योजना करी. पण ए जाणतो नथी के विलासवती मारा विना पलमात्र पण जीववा ईच्छशे नहि. अने जो विलासवती जीवित न होय तो मारे पण जीवनथी हवे शु काम छे ?' आम आत्महत्यानो विचार करतो ते एक लीमडाना वृक्ष नीचे आवी ऊभो. त्यां नजीकमां ज मान-सरोवर जेवडु मोटुं एक सरोवर (वर्णन) तेणे जोयु, जेना किनारे पोतानी प्रियतमाथी विखूटो पडेल एक कलहंस (वर्णन) ऊभो हतो. तेनी विरहावस्था जोईने समदुःखी कुमारे पण दुःख अनुभव्यु. (१४-१६) विधातानी आवी लीला जोईने सनत्कुमार प्रेमना परिणामनो असारता विचारतो हतो तेवामां ज कलहंसने तेनी प्रिया मळी गई. ए जोई हंसने हंसी फरी मळी तेम पोताने पण प्रियतमानो फरी समागम शक्य छे एम विचारी कुमारे मरणनो निश्चय फेरव्यो अने विलासवतीने शोधवा पुनः प्रयत्न शरू कर्यो. (१७-१८) एवामां समुद्रकिनारे चालतां चालतां अ| योजन दूर जतां समुद्रमा तणाता आवता एक पाटिया पर बेभान विलासवतीने कुमारे जोई. तेणे उपचार करो तेने भानमा आणी. भानमा आवतां ज ते कुमारने जोई रोवा लागी. कुमारे आश्वासन आपी शांत पाडी, तेनी वीतककथा पूछी. विलासवतीए जवाबमां कह्यु-“वहाणमांथी पडी गया पछी, प्रभाते वहाण एनो मार्ग चूकी गयु अने समुद्रमां छुपायेल कोई खडक साथे अथडाईने लूटी गयु. हुं पण समुद्रमां डूबवा लागी, पण पाटियु हाथमां आवी जतां आ रोते बचीने अहीं सुधी घसाई आवी.” सार्थवाहनी दुष्टताना आवा करुण परिणाम विशे सांभळीने कुमारने कर्मना अबाधित नियमनी प्रतीति थई. (१९-२०) पछी विलासवतीए कुमारनो वृत्तांत पूछयो. पारकाना दोष प्रगट न करवा जोईए एम विचारी कुमारे पोते प्रमादवश पडी गयानु अने फलक मळी जतां बची गयानु कह्यु. चालतां चालतां रस्तामा विलासवतीने खूब तरस लागी. ते चालवा पण असमर्थ बनी गई. आथी तेने एक वटवृक्षनीचे पांदडानी पथारीमां सुवडावो, रक्षणार्थे नयनमोहन पट ओढाडी कुमार थोडे दर आवेला सरोवरेथी पाणी लाववा गयो. नलिनीदलना पडियामां पाणी लई ते पाछो फर्यो, पाणी पीवा माटे विलासवतीने कहेवा छतां तेने कोई जवाब न मळ्यो. फरी फरी बोलाववा छतां तेने कोई जवाब न मळतां कुमारे पथारीमां तपास करो तो ते खाली हती. विलासवतीना गुम थवाथी गभराटमां कुमारना हाथमांनो पडियो पडी गयो. व्याकुळ बनी ते चोतरफ विलासवतीने शोधतो घूमवा लाग्यो. एटलामां एनी नजरे अजगरना चालवाथी पडेल चीलो पड्या. ते चीले चीले चाल्यो तो नजीकनी बनराजिमां एक भयंकर अजगर जोयो, जेना मोंमां नयन Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ विलासबई-कहा मोहन पट हतो. आ जोई विलासवतीने आ अजगर ज गळी गयो हशे एम मानी शोकाकुळ. कुमार मुञ्छित थई धरणीपर ढळी पड्यो. (२१-२५) समुद्रना शीतळ वायुथी चेतन प्राप्त करतां ज, अजगरना पेटमां प्रियानो समागम थशे एम मानी, पोतानी जातने पण अजगरने स्वाधीन करवानु नक्की करो, कुमार अजगर पासे गयो. लाकडी मारी छंछेडवा छतां अजगरे कुमारने गळयो नहीं अने उलटुमोमांनो नयनमोहन पट काढी नाखी, कूडाळानो जेम गोळ वळी गयो. आम अजगरे पोताने गळयो नहि एथी कुमारे झाड उपर चडी फांसो खाई मरवा निर्णय कयों. एक वटवृक्ष पर चडी तेणे गळामां फांसो नाख्यो अने लटकी पड्यो. (२६-२७) थोडीवारे आंखो खोली तो कोई मुनिने पोताना अंगोनु कमंडलुना शीतळ जळथी सिंचन करतां जोया. मुनिए केवी रोते तेने वृक्ष पर लटकतां अने फांसो तुटो जता नीचे पडतां जोयो तथा बचाव्यो तेनी वात करो. मुनिए आम आत्महत्या करवानु कारण पूछतां कुमारे तेमने ज्ञानी जाणी निःसंकोच पोतानी समग्र कथा कही अने पोताना प्रियतमा-वियोगना दुःखनो कोई उपाय बताववा तेमने विनंति करी. आथी मुनिए तेने मलयपर्वत पर आवेला मनोरथ-पूरण नामना एक शिखरनी वात करी, के ज्यांथी पडनार दरेक मनुष्यना मनोरथ पूरा थाय छे. मुनिए तेने त्यां जई मनवांछित प्रणिधान करी शिखरेथी पडवा कयु. आथी मुनिने नमन करी, प्रियानी प्राप्ति माटे मनोरथपूरण शिखरेथी पडी मरणने भेटवा सनत्कुमार चाली नीकळयो. (२८-३१) संधि-६ त्रण दिवसे कुमार उत्तुंग मलयपर्वते आवी पहोंच्यो. प्रियाविरहथी मूढ बनी गयेला तेणे मनोरथपूरण शिखर पर चढी प्रार्थना करो के, 'हे शिखर ! तारी कृपाथी बीजा जन्ममां मने विलासवतीनो संगम होजो'. आवु प्रणिधान करी जेवो तेणे कूदको मार्यो के अधवच्चेथी 'ज आकाशमार्गे जता कोई विधाधरे तेने पकडी लीधो अने शीतळ आवासस्थानमा लई जई, आश्वासन आपी, आवो उत्तम आकृतिधारी पुरुष थईने आवी हलकी चेष्टा करवाने कारण पूछय कुमारे तेने अथेति वात कही. (१-३) _ 'स्नेह आवु आंधळं साहस करावे छे' एम कही विद्याधरे कुमारने उपदेश आप्यो के 'दान, तप, शोल, वगेरेना पालनथी सुफळ मळे छे, नहि के कोई बाह्योपचारथी'. तेणे एक पति -पत्नीनु दृष्टांत आप्यु, जेमा पति तेनी पत्नीने मुद्दल चाहतो न हतो; ज्यारे पत्नी पतिने अत्यंत चाहती हती. अणगमती पत्नीथी छूटवा पतिए मनोरथपूरण शिखर उपरथी पडी एवी प्रार्थना साथे प्राण छोडया के बीजा जन्मे ते पत्नी न मळजो. पति-मरणथी व्याकुळ पत्नीए पोताने भवोभव ए ज भर्तार मळजो एवी इच्छा व्यक्त करी ए ज शिखर उपरथी पडतु मूक्यु ! बन्नेनी विरोधी इच्छाओने शिखर कई रीते पूरी करवानु हतु ? आथी आवु तर्कहीन निष्फळ कृत्य डाह्या माणसे कदी न करतुं जोईए, एवो उपदेश विधाघरे आप्यो. (४-७) आ पछी तेणे कुमारने तेनी प्रिया क्या अने क्यारे गुम थई ए पूछय. त्रण दिवस पूर्वे अने दश योजन दूर तेणो खोवाई छे ते जाणी विधाधरे कुमारने चिंता छोडी देवा कयु. तेणे कध', 'आ क्षेत्रमा अमारा स्वामी श्री चक्रसेन राजाए अप्रतिहतचक्रा विद्यार्नु आराधन कयु छे. अडतालोस योजन सुधीना समग्र विस्तारमा तेणे क्षेत्रशुद्धि करी छे. आ विस्तारनी अंतर्गत समग्र वनमां बधां जीवोने अभय प्रदान करेलु छे. सात दिवस सुधी हिंसातुं निवारण Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना कर्यु छे. ते अमारा राजाने आजे सात दिवस पूरा थतां प्रभाते विद्यासिद्धि थशे. आ रीते तारी प्रियाने कोई आंच नहीं आवी होय.' कुमारने विद्याधरनी कातमा विश्वास बेठो अने तेने आनंद थयो. (८-९) कुमारे विद्याधरनो आभार मानी प्रियानी शोध माटे जवा माटे रजा मागी, पण विद्याधरे ते काम पोते ज करी आपशे तेम कही तेने रोक्यो. ते ज प्रभाते विद्याधर-स्वामी चक्रसेन ने विद्यासिद्धि मेळवी आकाशमार्गे जतो बन्नेए जोयो. विद्याधर कुमारने साथे लई निवृतिकर नामना मलयशिखरे चाल्यो. (१०-११) । त्यां विद्याधरोनी महासभामध्ये बिराजता चक्रसेनने कुमारे जोयो. कुमारना वंदन स्वीकारी, विद्याधर पासेथी सघळी वात जाणी, चक्रसेने कुमारने तेनी प्रियतमा पोते जरूर शोधी आपशे अम आश्वासन आप्यु. एटलामां बे विद्याधरो अजगरथी डरेली अने पतिथी जुदी पडी गयेली तथा पतिना नामर्नु ज स्मरण करती एक स्त्री ने बचाव्याना समाचार लाव्या. (१२-१३) __ आ जाणी कुमारे ते स्त्री ज विलासवती होवार्नु अनुमान कयुं अने तेणे ते विद्याधरो साथे जईने जोयुं तो ते विलासवती ज हती. कुमारे आम चक्रसेननी मददथी फरी विलासवतीने प्राप्त करी. उत्तमाकृति अने प्रशस्त गुणोथी कुमार विद्याधरोनो सम्राट थशे ए जाणी चक्रसेने तेने अजितबला नामे दुःसाध्य विद्या पण आपी. कुमारने पण नैमित्तिकोनी भविष्यवाणी साची पडती होय तेम लाग्यु. तेणे संपूर्ण साधनविधि साथे विद्या ग्रहण करी. (१४-१५) सिद्धिक्षेत्र जेवा उत्तम क्षेत्रमा ज विद्यानी साधना करवानी कुमारने इच्छा थई, परंतु उत्तर-साधक (सहायक) कोण बने ए विचारे ते मुंझायो. तेने वसुभूतिनो याद आवी गई. ए ज समये दैवयोगे तापसवेशधारी वसुभूति सनत्कुमारनी शोध करतो करतो त्यां आवी चब्यो. कुमारने जोतां ज ते भेटो पड्यो, कुमार तथा देवीने प्रणाम करी शुभाशीर्वाद उच्चार्या. अवाज परथो वसुभूतिने ओळखी कुमार हर्षविभोर थई गयो. आहारादिक सत्कार करी कुमारे मित्रने पोतानाथी छूटा पड्या बाद शु बन्यु ते कहेवा जणाव्यु. (१६-१७) वसुभूतिए मांडीने वात कही-"आपणु वहाण डूब्या पछी मने एक पाटियु मळी जतां तेना सहारे हुं पांच दिवसे अहीं मलयप्रदेशना किनारे आवी पड्यो. एक दयाळु तापस मने एक आश्रममा लई गयो. आश्रमना कुलपतिए मारी वात जाणी मने आश्वाशन आप्यु अने संसारनी असारता समजावी, धर्माचरण करवा उपदेश आप्यो. मित्रविरहना दुःखथी अने संसारनी असारता समजावाथी में कुलपति पासे तापसव्रत ग्रहण करवा इच्छा बतावी. तेमणे व्रतोनी कठिनता बतावीने तथा तमारी साथे भविष्यमा थनारा संगमनी आगाही करीने मने व्रत लेतां रोक्यो. तेमणे ज मनोरथपूरण शिखर तरफ तमारा गमननी वात कही. आथी हुं ते शिखर सुधी गयो, त्यां एक विद्याधरे मने तमारी सघळी माहिती आपी, एना आधारे हुँ अत्रे आवी पहोंच्यो.” (१८-२१) ___ वसुभूतिना समागमथी विद्याप्राप्ति माटे वधु उत्साहित थयेल कुमारे छ मास सुधी दृढ मौनव्रत साथे ब्रह्मचर्य- पालन अने वनफळनुं सेवन करी विद्यासाधनानी पूर्वभूमिका बांधी. (२२) पूर्वभूमिका पूरी करी अंतिम तथा कठिन क्रिया अने विघ्नभय थी भरपुर मुख्य साधनभाग शरू करवा तेणे तैयारी करी. विलासवती स्त्रीसहज भयथी छळे नहीं ते माटे तेने मलयपर्वत Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा नी एक गुफामां राखी, वसुभूतिने तेनी रक्षानो भार सोंप्यो. पछी पांच जातना पुष्पो तथा बीजां जरूरी उपकरणो समीपे राखीने, मुद्रा तथा मंडळर्नु आलेखन करीने, पद्मासने बेसीने कुमारे लक्ष मंत्र-जाप शरू कर्यो. (२३) ___ जप शरू करतां ज प्रचंड कोलाहल साथे धरतीकंप थयो अने पछी भयानक वनगज, दुष्ट पिशाचिका, वेताल अने डाकणो, क्रूर सिंह, उग्र विषधर सर्प अने अनेक राक्षसीओए आवी कुमारने चलायमान करवा प्रयत्न कर्यो (वर्णन). पण कुमारे आ बधां ज उपसर्गो स्वस्थ, शांत चित्ते सहन करीने जाप चालु राख्यो. अंते विद्यादेवीए पोतानुं सुंदर स्वरूप एनी समक्ष प्रगट कर्यु. (२४-३०) अजितबलादेवीए कुमारना सत्वथी प्रसन्न थई तेने दर्शन आप्या. कुमारे शेष जाप पूर्ण करी पछी देवीने वंदन कर्यु. अनेक विद्याधरो जयशब्द बोलता त्यां आवी लाग्या. देवीए चंडसिंह नामे शूरवीर सेनापतिना आधिपत्य नीचेनुं विशाळ विद्याधर-सैन्य कुमारने सोंप्यु अने विद्याधरेन्द्र तरीके तेनो अभिषेक करवा इच्छा दर्शावी. सनत्कुमारे विला. सवती अने वसुभूतिनी उपस्थितिमा ज अभिषेक करवा विनंति करी. (३१-३३) संधि-७ वसूभूतिने बोलाववा छतां कई जवाब न मळयो. आथी कुमारे गुफामां तपास करी तो त्यां विलासवती पण न जणाई. आशंका साथे कुमार विद्याधर-सैन्यने लई गगनमार्गे सघळो मलयगिरी घूमी वळयो त्यारे एक वनकुंजमां वसुभूतिने विक्षिप्तावस्थामा एकलो भमतो जोयो. कुमार तथा विद्याधर सैन्यने विलासवतीने उठावी जनार समजी विक्षुब्ध वसुभूति वृक्षनी डाळी लई सामो थयो. कुमारे तेने अटकावीने पोतानी ओळख आपी शांत कर्यो. पछी विलासवतो विशे तेने प्रश्न कर्यो. कोई विद्याधरोद्वारा एक मोटा विमानमां, मदद माटे अवाज करती विला. सवतीने लई जवायानी अने पोते पाछळ पडवा छतां कई न करी शकवानी वात वसुभूतिए खेद साथे करी. कुमारे तेने आश्वासन आप्युं के अजितबला-विद्यानी मददथी विलासवतीने पाछी मेळववा पोते समर्थ छे. (१-३) एटलामा अजितबला देवी ज त्यां आवी पहोंची अने विलासवतीना अपहरणना समाचार जाणी तेणीए पवनगति वगेरे पोताना आकाशगामी अनुचरोने दशे दिशामां तपास माटे मोकली दीधा. कुमार सपरिवार मयलशिखरे रह्यो. त्रोजा दीवसे हर्षभर्या पवनगतिए कुमार पासे आवी विलासवतीनो पत्तो लाग्याना समाचार आपतां कडं-'वैताब्य पर्वतनी जमणी हारमाळामां रथनूपुरचक्रवाल नामे नगर छे. त्यां जतां मने त्यांना नगरजनो पासेथी भाळ मळी के ते नगरनो गर्विष्ठ अने अनीतिमान विद्याधर राजा अनंगरति कोई साधनामग्न महापुरुषनी पत्नीनु अपहरण करी लावो, बलात्कारे तेने पोतानी राणी बनाववा प्रयत्न करी रह्यो छे.' आटलं सांभळतां ज कुमारनो क्रोधाग्नि भडकी ऊठ्यो. ते दुष्टने हवा ते तलपापड थई गयो. पण पवनगतिए तेने शांत पाडी आगळ वात चलावी-'अनंगरतिना आवा दुराचारथी कोपायमान महाकाळीदेवीए प्रत्यक्ष थई तेने वार्यो अने सती स्त्री प्रत्ये आवं आचरण करवाथी ते जो रूठशे तो सत्यानाश करशे एवी बीक बतावी. आवो बीकथी ते दुष्टे विलासवतीदेवीने एक उद्यानमां आम्रवृक्ष नीचे विद्याधरोना पहेरा हेठळ राखेल छे. आपनी आज्ञा न होवाथी मळ्या विना दूरथी ज देवीना दर्शन करो हुं पाछो फर्यो छु. हवे आपने योग्य लागे ते प्रमाणे करो.' पवनगतिनुं निवेदन पूरुं थतां सनत्कुमारे वसुभूतिनी सलाह मागी. वसुभूतिए दूत मोकली विलासवतीनी मागणी करवानी सलाह आपी. (४-९) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वसुभूतिए साम, दाम, भेद अने दंडथी बनेला नीतिमार्गनी विस्तृत समीक्षा करीने पहेलो, साम एटले के समजावटना मार्गे काम लेवानी सलाह आपी. (१०-११). दूत-प्रेषण ए तो स्वमानभंग छे एबु मानता, युद्ध भाटे तलपापड एवा सनत्कुमारना शूरवीर योद्धाओए तो एकी अवाजे युद्धनी मागणी करी. पण सुभटोने परिस्थिति समजावी, सनत्कुमारे पवनगतिने दूत तरीके मोकल्यो. तेनी साथे सनत्कुमारे अनंगरतिने तेना कर्त्तव्यनी याद आपी विलासवतीने पाछी सोंपवानो संदेश मोकल्यो, अने जो ते न माने तो पछी विलासवतीने आश्वासन आपी पाछा फरवानी आज्ञा आपी. पवनगति पाछो रवाना थयो. (१२-१३) तरत पाछा फरी पवनगतिए कुमार पासे निवेदन कर्यु-"ते दुष्टने आपनो संदेशो आपता ज गुस्से भराईने तेणे अपमानजनक वचनो उच्चायाँ अने देवीने पाछा सोंपवा इन्कार कयों. में वळतां कटुवचनो कह्यां तेथी उइकेराई तेणे मारा पर घा करवा खड्ग उगाम्यु, हुं पण वळतो जवाब कटारीथी आपवा तत्पर थयो. पण सभामांना डाह्या माणसोए दूत अवध्य छे एम कही तेने रोक्यो अने विलासवतीदेवीने पाछी सोपवा समजाव्यो. पण अनंगरतिए कोईनुं न मान्यु. हु पण देवीने मळी, आफ्नो संदेशो आपीने अत्रे पाछो फर्यो'. (१४-१७) पवनगतिन निवेदन सांभळतां ज सर्व सुभटो उश्केराईने युद्धावेशमां आवी गया (वर्णन). सनत्कुमारे ते दुर्जन अनंगरतिने पोते एकलो ज लड़ाई आपीने धरणीगोचर मनुष्यनी शक्ति बतावी आपशे एवो निश्चय जाहेर को. बधा सुभटोए तेने वार्यो. समग्र विद्याधर-सैन्य एकठं थयु. अजितबलादेवीए कुमार माटे सुप्रशस्त विशाळ विमान तरत ज रच्यु. वसुभूति साथे कुमार तेमां बेठो.(१८-२०) विविध युद्धवाद्यो (वर्णन) वागवा लाग्यां. देवो पण आ दृश्य जोवा टोळे वळयां. विविध वाहनो पर चढी सैनिको नीकळी पड्या. कुमारना जयनाद साथे समग्र सैन्य अनेक प्रदेशो वींधतुं वैताढ्यपर्वतनी तळेटीमां आव्यु. त्यां पडाव नाखवामां आव्यो. कुमारे त्यां विद्यादेवीनी आराधना माटे त्रण अहोरात्र उपवास कर्या अने बधी विद्यादेवीओनुं पूजन कयु. अनंगरतिना विरोधी राजाओ तथा बीजा अनेक विद्याधरो कुमारना पक्षे लडवा माटे आवी मळया. अनंगरतिए सनत्कुमारने आवेलो जाणी प्रतिकार माटे दुर्मुख नामे सेनापतिने सैन्यसह मोकल्यो. दुश्मननुं लश्कर आवतां ज कुमारन सैन्य सावधान थयु. (२१-२३) अनंगरति जाते आव्यो नथी अने दुर्मुख सेनापति लडवानो छे एम दूत पासेथी जाणी, कुमारना बदले तेना सेनापति चंडसिंहे सैन्यनी आगेवानी लीधी. पछी बन्ने सेनापतिओना सैन्य रोषपूर्वक परस्पर टकरायां अने तुमुल युद्ध(वर्णन) जाम्यु. (२४-२७) दुर्मुखना सैन्यना धसाराथी पोताना सैन्यने पार्छ हठतुं जोईने चंडसिंह उग्र बनी शत्रसैन्यनुं निकंदन काढवा लाग्यो, ते जोई दुर्मुख तेना सामे धसी आव्यो अने तेने ललकार्यो. बन्ने बच्चे दारुण द्वन्द्व खेलायु. अंते चंडसिंहना एक सफळ प्रहारथी दुर्मुख हणायो. सेनापति मरातां तेनू सैन्य भागवा लाग्यु. चंडसिंहना विजयने देवोए जयनादथी वधावा लीधो. (२८-२९) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ विलासवई-कहा संधि-८ दुर्मुखने मारीने तथा तेना सैन्यने हरावीने कुमार विद्याधरो साथे वैताब्यगिरि उपर आव्यो. त्यांथी तेणे रथनूपुरनगर (वर्णन) - विहंगावलोकन कयु. पछी अनंगरतिने नगर छोडी जवा अथवा युद्ध माटे बहार नीकळवानो संदेश आपी बे विद्याधरोने मोकल्या. तेमणे पाछा फरी अनंगरतिना घमंड नी तथा युद्धनी तैयारीनो वात कुमारने कही, तेना युद्ध-प्रयाण प्रसंगे ययेला अनेक अपशुकनोनुं वर्णन कयु अने नगरजनोमां पडेला प्रत्याघातोनो चितार आप्यो. (१-७) __ आ सांभळी कुमारे पण पोताना सुभटोने संग्रामभेरि वगाडवा आज्ञा आधी. युद्धनी नोबत सांभळी कुमार- सैन्य विविध आयुधो सजी तैयार थयु (वर्णन). कुमारे सैन्यने पद्मव्यूहमां गोठव्यु. सैन्याने चंडसिंह रह्यो, डाबो-जमणी बाजु अनुक्रमे समरसेन अने देवौषध रह्या. आ रीते बीजा महारथीओ पण यथास्थान गोठवाया. अनंगरतिना शकटव्यूहमां ऊभेला सैन्यमां अग्रभागे महारथी कंचनदाढ हतो. अनंगरति पोते पाछळना भागे रह्यो हतो. (८-१०) ___बन्ने सैन्यो वच्चे घमसाण युद्ध शरू थयु (वर्णन, ११-१३). चंडसिंह अने कंचनदाढ वच्चे भयानक युद्ध थयु. चंडसिंहे कंचनदाढनुं विमान तोड़ी पाड्यु. क्रोधाविष्ट कंचनदाढे अंते प्रचंड प्रहारथी चंडसिंहने हण्यो. सेनापतिना मरणथी हताश थयेला कुमारना सैनिकोमां नासभाग थवा लागी. (१४-१५) पोताना पराक्रमथी सैनिकोने प्रेरतो, तीरोथी आकाश छावरी देतो सनत्कुमार हवे मोखरे आवी लडवा लाग्यो. कुमारना दारुण युद्ध(वर्णन)थी रोषे भराई अनंगरति दिव्य विमान लई सामे आवी लाग्यो. निर्दोष सैनिकोनो होम अटकाववा कुमारे अनंगरतिने पोतानी साथे द्वंद्व-युद्ध करी हारजोतनो निर्णय करवा आह्वान कर्यु. देवोओ अभिमानी अनंगरतिने कुमार साथे द्वंद्व करवा. मनाव्यो. बन्ने सैन्यो खसी गयां. कुमार अने अनंगरति वच्चे राम-रावणना युद्ध समुं भीषण युद्ध थयु. समोवडिया बन्ने विविध आयुधोथी विविध प्रकारे लडवा लाग्या. अनंगरतिना एक गदा-प्रहारथी कुमार निश्चेष्ट थई गयो. पण क्षणमां ज चेतन प्राप्त करीने तेणे अनंगरतिने गदा-प्रहार करो पछाड्यो. बेभान अनंगरतिने कुमारे शीतळ जळथी भानमा आण्यो. फरी बेउ हाथोहाथना युद्धमा प्रवृत्त थया. अंते सनत्कुमार ना प्रहारोधी भूमिपर पडेलो अनंगरति कुमारना आह्वान छतां ऊठी शक्यो नहीं. तेणे कुमार पासे हार कबुल करी अने वनमां जवा मागणी करो विलासवती सिवाय बीजु न इच्छता उदार कुमारे तेने क्षमा आपी पुनः पोतानुं राज्य संभाळवा का. पण अनंगरति वनवास जवाना निर्णयमा अडग रह्यो. कुमारनो जयनाद चोतरफ प्रसरी रह्यो. कुमारे अनंगरतिना सैनिकोने मुक्त करी अभयदान आप्युं. त्रण दिवस कुमार त्यां ज रह्यो.(१६-२४) पछी अजितबलादेवीधे रचेला विमानमा आरोहण करी कुमार सैन्यसह रथनूपुर नगरमां आवी पहोंच्यो. अनेकविध शणगारोथी शोभायमान नगरमां कुमारनुं नगरजनोए विविध उपहारथी स्वागत कयु (वर्णन). पौरांगनाओ वडे कुतुहलथी नीरखातो अने नागरिको वडे वधावातो कमार राजमहेले आवी पहोंच्यो (वर्णन). त्यांथी मित्रो साथे उद्यान तरफ चाल्यो, ज्यां विलासवती केदमा हती. (२५-३३) Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना कुमारना विरहथी दुःखी विलासवतीने कुमारे आश्वासन आपी प्रसन्न करी. राजभवनमां आवी विलासवती साथे विविध विलेपनादिकथी तेणे स्नान कयु. पछी देव-गुरु-पूजाथी निवृत्त थई सपरिवार कुमार भोजन करवा गयो. अनेक मनहर वानगीओ (सविस्तार वर्णन) नुं भोजन आरोगी ते मनोहर आसन पर विराज्यो. अजितबला देवोना आज्ञाधारक अवा बन्ने श्रणीना विद्याधरोए रथनूपुरचक्रवालनगरना अधिपतिपदे सनत्कुमारनो अभिषेक कर्यो. विलासवतो महाराणी बनी. महामात्यपदे वसुभूतिने स्थापवामां आव्यो. पछी समग्र प्रदेशो कुमारे स्वाधीन कर्या अने प्रा पक्षीओना समग्र सैन्यो जोतो लीघां. विविध विद्याधर राजाओओ तेनी साथे पोतानी कन्याओ परणावी. बधा विघ्नो दूर करी सनत्कुमारे चक्रवर्तीपद प्राप्त कयु. (३४-३८) संधि-९ सुखपूर्वक राज्य करतां अने विविध भोगो भोगवतां सनत्कुमारनो काळ पसार थवा लाग्यो. एवामां एक दिवस अंतःपुरमा विलासवती अने वसुभूति साथे सनत्कुमार गोष्ठी करी रह्यो हतो त्यारे प्रतिहारीए कोई विद्याधरकुमारना आगमननी तेने जाण करी. कुमारे तेने अंदर लाववा आज्ञा करी. कुमारे आदरपूर्वक तेनुं ओळखाण अने आगमननुं कारण पूछ्यु. तेणे विनयपूर्वक कहेवू शरू कयु-"अहींथी उत्तरे आवेला किन्नरगीतनगरना विधाघर राजा वज्रबाहुनो हुँ अनिलवेग नामे पुत्र ढुं. मारे चंद्रलेखा नामे एक बहेन छे. तेने योग्य पति शोधवानी मारा पिताने खूब ज चिंता हती. (१-३) एक वखत अमारा नगरने पादर एक महाज्ञानी चारण मुनि आव्या. तेमना दर्शनार्थे नगरजनो साथे मारा पिता राजा वज्रबाहु पण गया. मुनिए विस्तारथी धर्मतत्त्वाख्यान(१-८)कयु. पछी राजाए पोतानी कन्या कोने वरशे तेवो प्रश्न मुनि पासे कर्यो. मुनिए भावि-कथन करतां का के 'अनंगरतिने जीतीने रथनूपुरनगरनो राजा थनार तारी पुत्रीनो स्वामी थशे'. आ जाणी राजाए पोतानी पुत्री विद्याधरोमांना कोईने पण न परणावी. (९) एवामां गंधर्वपुरना अधिपति अशनिवेगना बळवान पुत्र चित्तवेगे चंद्रलेखानु मागुं मोकलाव्यु. पण राजाओ तेनो अस्वीकार कर्यो. आथी खिजाइने चित्तवेग चंद्रलेखानुं अपहरण करी आकाशमार्गे मलय तरफ नासी छूट्यो. आ जाणतां ज में तेनो पीछो कर्यो . अमारा बे वच्चे भयानक द्वंद्र-युद्ध (वर्णन) थयु. चित्तवेगना अक मुद्गरप्रहारथी घवाई हुं नीचे समुद्रमा जई पड्यो. सद्भाग्ये अंक तापसे मने जोयो अने दिव्य औषधिथी बचावी लीघो. उपकारी तापसनुं नाम, त्यां होवानुं प्रयोजन अने ते दिव्य औषधिन प्राप्तिस्थान पूछतां तेणे मने कह्यु-'ताम्रलिप्तिनगरीना राजा ईशानचंद्रनो हुँ विनयंधर नामे सेवक छ. खोवायला सनत्कुमारने शोधवा राजाओं मने मोकलेलो, पण कुमार न जडतां बळीने आत्महत्या करवा तत्पर थयेला मने वनदेवताओ रोक्यो अने दिव्य संजीवनी बुट्टी लई मलयकुले जई समुद्रकिनारे रहेवा कयुं अने त्यां कोई विद्याधरकुमार घायल थईने पडशे अने दिव्य औषधि द्वारा बचाववाथी मारुं काम सफळ थशे अम कयुं. आथी हुँ तापसवेश धारण करी तमारी ज राह जोतो अत्यार सुधी अत्रे रह्यो छु. वळी आज फळ वगेरे लेवा जतां वनमा मने रुदन करतो एक बाळा मळी. सांत्वन आगी में तेनी हकीकत पूछी, ते विद्याधर राजा वज्रबाहुनी चंद्रलेखा नामे पुत्रो हनी.' पछी तापस-रूपधारी विनयंधरे तमने (सनत्कुमारने) Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा मळवानी इच्छा व्यक्त करी. में तेने वचन आप्यु के चित्तवेगने हरावीने पछी हुँ तने सनकुमार साथे मेळवी आपीश. आ पछी में विमानमार्गे जई चित्तवेगने हण्यो. पछी चंद्रलेखा तथा विनयंधरने लई हु स्वस्थाने गयो. अने आज विनयंधरने साथे लई, हे देव ! तमारी समक्ष आव्यो छु. विनयंधर आपनी आज्ञानी राह जोतो सिंहद्वारे खडो छे.” अनिलवेगनी आ वात सांभळी आनंदपुल केत हृदये कुमारे विनयंधरने त रत अंदर तेडाव्यो. विनयंधरने मळी सनत्कुमारने अति हर्ष उपज्यो. कुमारे तेने ताम्रलिप्ति नगरी तथा राजा-राणीना कुशळ-समाचार विगते पूछथा. (१०-१८) विनयधरे मांडीने वात कही-"तमने वहाणमां बेसाडी विदाय कर्यां पछी मने खूबज आघात लाग्यो . बोजा दिवसे राजा ईशानचंद्रे मने बोलावी तमारा वधनी वात पूछी. में तमारो घात कर्यानी बनावटी वात करी . ते सांभळी राजा अने अनंगपती राणी खुश थया . (१९-२०) एवामां नगरजनोमां राजाए तमारो वध कराव्यो छे एवो वात फेलाई गई. तमारा साथीओ ऐ समाचार जाणी खूब दुःख साथे श्वेताम्बी चाल्पा गया . लोकोमा तमारा वध अंगे जात जातनी वातो चालवा लागी. कोई राजाने दोषित ठरावतुं हतुं तो कोई तमने गुन्हेगार गणतुं हतुं. (२१-२४) तमारा अपमृत्यु विशे सांभळीने राजकुमारी विलासवती वियोग-दुःख सहन न थतां मरणनी इच्छाथी एक राते महेल छोडी भागी नोकळी. पुत्री ना आवी रीते चाल्या जवाथी तेनी माता शृंगारवती राणीने तथा राजाने खूब आघात लाग्यो. बन्ने मुञ्छित थयां. मूर्छा वळतां ज राजाए नगरमा चोपास विलासवतीनी तपास करावी. शृगारवतीदेवी पण भान आवतां विलासवतीने याद करी करी रोवा लागो. (२५ - २७). राजानी मूर्छा विशे सांभळी अनंगवती राणी महेलना उपरना माळे दोडोने चडवा जतां पग लपसवाथी नीचे पडी. तेणीना हाथ-पग भांग्या अने आखा शरीरे खूब वायुं . राजा ए सांभळी तरत त्यां आव्या ने तेनी सारवार करी भानमां अपणो . आ प्रसंगथी पोताना पापनो पश्चात्ताप थतां राणो अनंगवत ए पोते सनत्कुनार पर खोटें आळ चडावेलु एम राजा समक्ष प्रगट कयु. राजाने ए जाणी पोते निर्दोष कुमारनो वध करातार्नु भान थयु अने तेओ बळी मरवा तैयार थया. (२८-२९) राजा-राणीए मरणने भेटवा तैयारी करी ए वेळाए ज नैनित्तिकनी भविष्यवाणी थई के 'सनत्कुमार हजु जीवे छे अने विलासवती तेनी महाराणी बनशे. बन्ने उत्तम पद पामशे अने तमने फरी मळशे. तेथी हे राजन ! आपघात न करतां तेमनी शोध करावो'. आवु नैमित्तिकनुं वचन सांभळीने राजाए तरत मने बोलाव्यो अने अभयवचन आपी साची वात कहेवा जणाव्यु. में तमने बचाव्यानी बधी वात तेमने कही . राजाए तमने गमे त्यांथी फरी शोधी लाववानु कार्य मने ज सोप्यु . (३०) में तेमनी आज्ञा माथे चडावी अने वरसमां ज तमने ( सनत्कुमारने ) न शोधी लावू तो अग्निमां पडो बळो मरवानी प्रतिज्ञा करी. पछी हुँ तमने शोधवा समुद्रमार्गे नीकळी पड्यो. श्रीपुरनगरमां मनोरथदत्त श्रेष्ठी पासेथी समाचार जाणी हुं सिंहलद्वीप जवा नोकळयो. (३१) Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ___२१ सिंहलद्वीप पहोंची त्यांना राजा अरिकेसरिने तमारा विशे पूछतां तेणे तमे हजु सुधी सिंहलमां न पहोंच्याना अने वहाण डूबवाना समाचार आप्या. आ जाणी हताश थई हूं समुद्रतटे चिता खडकी बळी मरवा तैयार थयो. मरतां पहेलां, वनदेवताओ अने पांच लोकपालोने प्रार्थना करी मारा प्रतिज्ञापालनना साक्षी थवा विनंति करी, एक वृक्षनी टोचेथी में चितामां झंपलाव्यु. पछी आंखो खोली तो हुँ एक पद्मसरोबरमा हतो. वनदेवताए प्रत्यक्ष थई का'पुत्र ! तारा सत्त्वथी हु प्रसन्न छु. में ज तने अग्निमांथी बचाव्यो छे. तुं इच्छा होय ते माग'. आथी में तमारो मेळाप थाय एवं करवा विनति करी. ते वनदेवताए कयु, 'तेम थशे, पण हजी वार लागशे. तुं आ दिव्य औषधि ले अने मलय प्रदेशमा जा. त्यां समुद्रतीरे रहेजे. एक प्रहार-जर्जरित विद्याधर-वीर उपर आकाशमांथी पडशे. तेने आ औषधथी तुं बचावजे. ते तने सनत्कुमारना दर्शन करावशे'. आ ज प्रमाणे हे देव ! सघळु बन्यु. अने मारा मनोरथ लांबा काळे पूर्ण थया छे. हवे आप ताम्रलिप्ति पधारो अने पश्चात्तापथी बळता राजा-राणीने शांति आपो". (३२-३४) संधि-१० विनयंधरना साहसपर वारी जई सनत्कुमार तेने भेटी पड्यो. विलासवतीए पण विनयं. धरनी प्रशंसा करी अने तेनी विनंति स्वीकारी ताम्रलिप्ति अने पछी श्वेताम्बी जई माता-पिताने मळवा जवा माटे कुमारने आग्रह कर्यो. कुमार पण तेम करवा राजी थयो. (१) अनिलवेगे सौ प्रथम चंद्रलेखानु पाणिग्रहण करो पछी ताम्रलिप्ति जत्रा कुमारने अनुरोध कर्यो. तेनी वात स्वीकारो कुमारे ज्योतिषो बोलावी लग्नमुहूर्त जोवराव्यु अने पछी समग्र विद्याघर लोकमां निमन्त्रणो मोकलाव्यां. (२) विलासवती, वसुभूति अने अनेक विद्याधरो साथे जान लई सनत्कुमार किन्नरगीतनगरमां आवी पहोंच्यो. राजा वज्रबाहुए जाननो सत्कार कर्यो. पछी विधिपूर्वक चन्द्रलेखा साथे कुमारना लग्न थयां (विस्तृत वर्णन) (३-६). पछी समग्र परिवारसह सनत्कुमार ताम्रलिप्तिनगरीए गयो. विनयंधर अने अनिलवेगे पहेलां जई ईशानचन्द्र राजाने कुमारना आगमनना समाचार आया. राजाने परम हर्ष थयो. तेणे समग्र परिवार-मंडळ साथे जई कुमारनुं सामैयु कयु. कुमारने मळी राजाए पश्चात्ताप साथे क्षमा मागी. उदारचेता कुमारे पोताना कर्मनो ज सघळो दोष गणान्यो. पश्चात्तापथो रुदन करती राणी अनंगवतीए पण कुमारनी क्षमा मागी. कुमारे पोताने कोईना प्रत्ये रोष नथी एम कही क्षमा आपी, विषाद छोडी देवा विनंति करी. विलासवती पण मातापिताने आनंदाथ साथे भेटी. माता शंगारवतोए पुत्रीने आशीर्वाद आप्या. नगर आखामां आनंदोत्सव थई रह्यो. (७-१२) ताम्रलिप्तिथी अनिलवेग साथे वसुभूतिए श्वेताम्बी जईने यशोवर्मा राजाने सनत्कुमारना सघळा समाचार आप्या. राजाए पुत्रने तेडवा ते बन्ने साथे मंत्रीपुत्र अमरगुप्तने ताम्रलिप्ति मोकल्यो. (१३) ताम्रलिप्ति पहोंचेला अमरगुतनुं हर्षथो सन्मान करी कुमारे पोताना माता-पिता वगेरेनी कुशळवार्ता पूछी, पोताना चाल्या गया पछी शुं शुं घटनाओ बनी ते जाणवा इच्छ्यु. अमर Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा गुप्ते कडं, 'तमारा गया पछी तमारा पिताए बधा प्रदेशोमां तमारी शोध करी पण क्यायथी तमारो पत्तो न लाग्यो. एवामां ताम्रलिप्तिमां तमारो वध थयान जाण्यु एथी राजा-राणी बन्ने खूब ज दुःखी थई विलाप करवा लाग्या. जे नैमित्तिके तमे विद्याघर सम्राट थशो एवी भविध्यवाणी करेली तेने पण फरी बोलावी राजाए. तमारा अकाळ-मरणनो खुलासो माग्यो. ते नैमित्तिके निश्चयपूर्वक पोते साची छे अने कुमार जीवित छे, पण तेना कर्म मुजव शुभाशुभ फळ भोगवीने अंते आकाशचारोओनो अधिपति ज़रूर थशे एवो खुलासो को, पछी ईशानचन्द्र राजाना पश्चात्ताप अने विनयंधरना तमारी शोध माटेना विदेशगमन विशे सांभळीने तथा मनोरथदत्त पासे थी तमारी सिंहलगमनना समाचार जाणीने बघाने शांति यई. अंते तमारा ताम्रलिप्तिमां आगमनना समाचार जाणी राजाजीए तमने श्वेताम्बी लई आववा मने मोकलेल छे.' आ रीते अमरगुप्ते का एटले विलासवतीए पण अविलंब श्वेताम्बी जवानी इच्छा व्यक्त करी. पछी सनत्कुमारे श्वेताम्बी जवा माटे ईशानचन्द्र राजानी रजा मागी. विलासवतीए पण गद्गद्कंठे पिता-मातानी आशीष साथे विदाय लीधी. (१४-१८) विमाने चढी आवता चक्रवर्ती पुत्रने लेवा यशोवर्मा राजा नगरजनो साथे सामे आव्या. पिता-पुत्रनुं हृदयंगम मिलन थथु. माता-पिताए पुत्र तथा बन्ने पुत्रवधूओने आशीर्वाद आप्या. नगर बधुं उल्लास-उत्सवमय बन्यु. नगरजनो कुमारने तथा तेना परिवारने जोवा टोळे वळ्यां. (१९-२१) सुखपूर्वक केटलाक दिवसो वीत्यां. बाद राजाए कुमारनो राज्याभिषेक करवानी इच्छा व्यक्त करी. कुमारे पोताने मळेलु राज्य पूरतुं छे एम कही अनिच्छा दर्शावी अने जल्दी रथनूपुर नगर जवा तैयारी करी. माता-पिताने तेणे पोतानी साथे आववा विनंति करो. नाना पुत्र की तिवर्माने श्वेताम्बीना राज्यासने स्थापी यशोवर्मा समस्त अन्तःपुर अने परिजनो साथे सनत्कुमार साथे जवा नीकळयो. (२२-२३) रथनूपुर चक्रवालनी समृद्धि अने सौन्दर्य जोई यशोवर्माने आनन्द थयो. तेणे एक प्रासादमां सपरिवार निवास कर्यो. कुमारे पोताना मित्रोने जुदा जुदा स्थानो पर नियुक्त कर्या. आ रीते शांतिपूर्वक कुमारनु शासन चालवा लाग्यु. क्यारेक राणीओ साथे अंतःपुरमा प्रहेलिकाओ द्वारा गोठडी करीने, क्यारेक रम्य उद्यानमा विहार करीने, क्यारेक कथावार्ता सांभळीने, क्यारेक वीणावादनथी एम अनेक प्रकारे विविध सुखो भोगवतो सनत्कुमार काळ-निर्गमन करवा लाग्यो. (२४-२६) वखत जतां विलासवतीने अजितबल आदि पांच पुत्रो थया. चन्द्रलेखा तथा बीजी राणीओने पण पुत्रोत्पत्ति थई. आम पूर्वपुण्योदय यो सनत्कुमार सुखपूर्वक विद्याधरराज्य भोगववा लाग्यो. (२७) संधि-११ ___एकदा चित्रांगदसरि नामे चतुर्शानघारक लब्धिवान महामुनि रथनूपुरचक्रवालमां पधार्यां अने शिप्य-परिवारसह नगरोद्यानमा उता. ए जाणीने सनत्कुमार सपरिवार तेमना दर्शन माटे गयो. मुनिवरो वच्चे चिराजेला आचार्य (वर्णन) ने राजाए सर्व जनो साथे वंदन कर्यां. गुरुसहित सर्व मुनि जनाए ‘धर्मलाभ' ना आशीर्वचन उच्चार्या. (१-२) Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना २३ सूरिजीए पछी धीरगंभीर स्वरे संसारनी असारता, मनुष्यजन्मनुं दुर्लभपणु, जिन-भाषित धर्मनु पालन करवाथी थतो दुःखोनो नाश अने पुण्यनी प्राप्ति वगेरे, प्रख्यात मधुबिन्दु-दृष्टांत साथे विशद छणावट करी समजाव्यु अने धर्मर्नु पालन तथा प्रमादनो त्याग करवा उपदेश को. (३-१२) उपदेश पूरो थतां सनत्कुमारे जिज्ञासाथी पूछयु के पोते पूर्वजन्ममा झुं अशुभ कर्म करेल के जेथी पोताना प्रियपात्रथी लांबो वियोग थयो अने कया सुकृत्यो करेल के जेथी विद्याधरोनो पण चक्रवर्ती बन्यो ? जेना जवाबमां सूरिए अवधिज्ञान द्वारा जाणीने का-“आ भारतवर्षमां पांचाल देशमां गंगातटे आवेला कांपिल्यनगरना चन्द्रगुप्त नामे राजानो कुवलयश्री नामे राणीथो जन्नेल तुं रामगुप्त नामे पुत्र हतो. विलासवती गीजनीपति तारापीडनी हारप्रभा नामे राजकुमारी हती तमारा बन्नेना लग्न थयेलां. परस्पर प्रेममां डूबेला तमे बन्ने एकवार गंगातीरे क्रीडानिमित्ते गयेला, त्यां गम्मत खातर एक हंसयुगलने पकडी तेमनां शरीर कुंकुमथी रंगी दीवां. हंसहंसी लाल रंगे रंगावाथी एकबीजाने सारस समजी ओळखी नहि शकवाथी विरहव्याकुळ बनी करुण कूजन करवा लाग्यां, अने आहार पण छोडी मरणने इच्छवा लाग्यां. मरणने इच्छतां ते बन्ने पाणीमां डूबवा लाग्यां त्यारे पाणीथी तेमनो कंकुनो लेप धोवाई जवाथी फरी अन्योन्य ओळखी गया. आ थोडी वारन जे अंतराय कर्म तमे बांध्यु तेना कारणे तमारे आ जन्ममां वारंवार विलासवतीनो वियोग सहन करवो पड्यो. हवे उत्तम पद-प्राप्ति थई तेनु कारण ए छे के तमारो मनोरथदत्त मित्र पूर्वजन्ममां पण चन्दन नामे तमारो अनन्य मित्र हतो. तेणे तमने मिथ्यात्वथी दूर करी जिनधर्ममा श्रद्धावान करेला. (१३-१६) चंदन धर्मरत श्रावक हतो. ते तमने धर्मघोष नामना मुनिराजना दर्शने लई गयेल, जेणे तमने पति-पत्नीने विस्तारथी जिन-धर्मना बोध कर्यो, नवतत्वो विशे समजण आपी, श्रावक (गृहस्थ)धर्म समजावी ते ग्रहण करवा अनुरोध कर्यो. तमे श्रावधर्म स्वीकारी, एन रूडी रोते पालन कर्यु. ए पुण्योपार्जनथी तमने आ सघळां वैभवनी प्राप्ति थई.'' (१७-२५) चित्रांगदसू रिना मुखे पोताना पूर्व जन्म अने कर्मनी हकीकत सांभळी सनत्कुमार तथा बीजाओने ज.तिस्मरण-ज्ञान थयु. विलासवनीने पूर्व कर्मनो आवो विपाक जाणी विस्मय थयु अने जिनधर्म-दीक्षा लेवा आतुरता थई. सनत्कुमारे पण तेगीनी वातनुं अनुमोदन कयु. यशोवर्मा राजाने पण वैराग्यभावना थई (२६-२७). यशोवर्माए मुनिपासे दीक्षा लेवा इच्छा जाहेर करी. सनत्कुमारे पण तेमनी साथे दीक्षा ग्रहण करवा अनुमति मागो. अजितबल कुमारने विद्याधर-राज्य सोंपी कुमारे दीक्षा माटे तैयारी करवा मांडी. दीक्षामार्गनी कठोरता जाणवा छतां पण विलासवती दीक्षा लेवाना निश्चयमां मक्कम रही. अंत मुनिराजे आपेलो दीक्षानो दिवस आवी पहोंच्यो. सनत्कुमारे पंच परमेष्ठिनी भावपर्वक प्रार्थना करो. (३०-३२) प्रभाते व्रतग्रहणनी सघळी तैयारी करी, स्नानविलेपन दिथी परवारी, सुंदर वस्त्रोमां सज्ज थई, विशाळ पालखीमां बेसी, पिता यशोवर्मा अने समग्र विद्याधर सैन्य साथे राजमार्ग प्रजाजना द्वारा अनेक जातना भावोथो वधावाता सनत्कुमारे गुरु समक्ष जई विधिपूर्वक मुनिव्रत ग्रहण कयु. राजा यशोवर्मा, राणीओ, मित्रो बधा पण मुनि पासे दीक्षित बन्या. (३३-३५) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ विलासवई - :-कहा तपश्चर्या करता करता अने समग्र देशमां विहार करतां करतां सनत्कुमारमुनिने क्रमे क्रमे ज्ञानप्राप्ति थई. परिभ्रमण करतां करतां ते मुनि शत्रुंजय गिरिए आग्या. त्यां अनेक मुनिजनो साथै अनशन ग्रहण करी, निःशेष कर्म खपावी, केवलज्ञान प्राप्त करी सिद्ध थया. बीजा पण मुनिपोतपोताना कर्म खपावी जुदा जुदा देवलोकमां गया. (३६-३९) ४. समराइच्च - कहा साथे साम्य अने मौलिकता विलासवई - कहानी प्रशस्तिमां कवि नोंधे छे समराइच्चकहाओ उद्धरिया सुद्ध-संद्धि-बंधेण । कोऊहले एसा पसण्ण-वयणा विलासवई ॥ जं चरियाओ अहियं किं पि इह कप्पियं मए रइयं । पडिबोह - कारणेण खमियव्वं मज्झ सुयणेहिं || ' में (साधारण कविए) समराइच्चकहामांथी वस्तु लई कुतूहलपूर्वक शुद्ध सन्धि-बन्धमां आ प्रसन्नकर पदरचनावाली विलासवतीकथानी रचना करी छे. चरित्र (समरादित्य-चरित्र के समराइच्च-कहा ) करतां आमां (विलासवई - कहामां) जे कई वधारे छे ते पाठकोने उपदेश आपका माटे में कल्पनाद्वारा रचेलुं छे, तो सज्जनो ते बदल मने क्षमा करे. ' विलासवई-कहानो उद्गम- स्रोत आम प्रसिद्ध आचार्य हरिभद्रसूरि ( ई०स०७००-७७०)'रचित प्राकृत भाषाबद्ध महाकथा समराइच्चकहा? छे ते स्पष्ट छे. समराइच्च-कहामां गुणसेन (नायक) अने अग्निशर्मा (प्रतिनायक ) वच्चेनी वैर-परम्परानी भवन कथा वर्णवाई छे. पूर्व पूर्वना भवना अनुसन्धानमां कथा आगळ वघती होवा छतां प्रत्येक भव एक एक स्वतन्त्र कथा समान छे. तेमां पांचमा भवमां आडकथा रूपे सनत्कुमार अने विलास तीनी प्रणयकथा विस्तारथो आवे छे. साधारण कविए समराइच्च-कहामांनी आ विलासवती - सनत्कुमारनी वार्ता लई तेना आधारे ज पोतानी कृति रची छे. पोतानी प्रतिभाना बळे विलासवई - कहाने एक मौलिक अपभ्रंश धर्मकथा - काव्यनुं रूप आपवामां साधारण विकेटला सफळ रह्या छे ते जोतां पहेलां समराइच्च - कहाना पंचम-भवनो साधेनुं विलासवई - कहानुं साम्य नोंध जोईए. विलासवई - कहा प्रथम आठ संधि सुधीनी - विलासवती अने सनत्कुमारना संयोग वियोग अने पुनः संयोग सुधीनी - समग्र कथा अवान्तर घटनाओ साथ समराइच्च - कहानी कथाम कशाये फेरफार विनोज साधारण कविए उद्धृत करी छे. आठ संधि सुधी घटनाओनी रजुआत अने क्रममां पण कोई फेरफार नथी. एटले ज नहि, तदुपरांत विलासवईकारे समराइच्च-कहामांथी शब्दो, वाक्यो, भावो, अलंकारो अने केटलीक वार तो पूरा वर्णनखंडो शब्दशः पोतानी रचनाम ग्रहण कर्या छे. ने कृतिओमांथी लीघेला नीचेना उद्धरणो आ हकीकत स्पष्ट करे छे: १. जुओ हरिभद्राचार्यस्य समयनिर्णय: - मुनि जिनविजय, २. समराईच्च - कहा, सम्पादक-प्रकाशक : पं० भगवानदास, Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना समराइच्च-कहा (१) विद्धो य तीए दिठ्ठिपाय-च्छलेण मयण-सर-धोरणीहिं । पृ० ३७० (२) तत्थ पुण मुच्छिओ विय मूढो विय मत्तो विय मओ विय भीओ विय गह-गहिओ विय बेवमाण-हियओ......... पृ० ३७१ (३) विरला जाणन्ति गुणा, विरला जंपन्ति ललिय-कव्वाइं । सामण्ण-धणा विरला, परदुक्खे दुक्खिया विरला ॥ पृ० ३७२ विलासवई-कहा दिट्ठि-च्छलेण विद्धो य तीए तुहुं मित्त मयण-सर-धोरणीए । १ ११.५ तहिं नावइ मत्तउ पर-आयत्तउ नाइ मूदु नं मुच्छियउ । नावइ गह-गयिउ अहवइ भीयउ वेवमाण-तणु अच्छियउ।। १.१२ विरल च्चिय जाणहि गुणह भेउ । विरल च्चिय विरयहिं ललिय-कव्व, विरल च्चिय जण सामण्ण-दव्व । विरल च्चिय पर-कज्जई कुणंति, पर-दुक्खे दुक्खिय विरल हुंति । (४) तओ एयं सोऊण मोहदोसेणाई सव्व-सोक्खाणं पिव गओ पारं, पीईए वि य पाविओ पीइं, धिईए व अवलंबिओ धिई, ऊसवेण वि य कओ मे ऊसवो । दिन्नं वसुभूइणो कडय-जुयलं । पृ०.३७७ (५) जओ सोम्मा नाम सत्तमी एसा छिक्का आरोग्ग-फला अणन्तरा अपुव्व-अत्थ-लाभोत्तरा य । तहा य भणियमिणमिसीहिंपतिसेहमजत्तं वा हाणिं वुड्ढेि खयं असिद्धिं वा । आरोग्गमत्थलाभं छीयमि पयाहिण-दिसासु ॥ पृ ३९२-९३ (६) एवं गच्छमाणाण तेरसमे दियहे उन्नओ अम्हाणमुवरि कालो व्व कालमेहो, जीवियासा विय फुरिया एरिसु निसुणेवि सणकुमारु, सव्वाहं वि सोक्खह गयउ पारु । नं पीइहिं पडियउ, नं घिइहिं चडियउ, नाइ महूसउ पावियउ । वसुभूइहि तुट्ठउ, पुणु सुविसिट्ठउ कडय-जुयलु तसु दावियउ ।। १.२० सत्तमिय छिक्क एह सोम नाम, आरोग्ग महा-फल होइ ताम । होसइ आरोग्ग-महाफला य, तह चेव अत्थ-लाभोत्तरा य । इय साहिय छिक्क रिसीहिं जेण, अट्ठसु वि दिसासु पयाहिणेण । पडिसेहु अनिव्वुइ हाणि विद्धि, खउ अंतरु खेमु तहेव रिद्धि । २.१४ इय तहिं जाणवत्ति पवहंतए, तेरसमइ वासरि संपत्तए । सव्वह कालु नाइ उक्कंठिउ , Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा विज्जुलेहा, उम्मूलिय-गिरि-काणणो य कालउ मेहु नहंगणे उट्ठिउ । आगम्पयन्तो जलनिहिं, उक्खिवन्तो तो अंबरि विज्जुलिय झलक्किय, महन्त कल्लोले, वियम्भिओ जीविय-आस तेहिं नं मुक्किय । विसम-मारुओ, निवडियं असणि-वरिसं, तह गिरि-काणण-उम्मूलंतउ, उम्मेण्ठ-मत्त-हत्थी विय अणियमिय- तं जलनिहि-जलु हल्लावंतउ । गमणेणं अवसीहूयं जाणवतं, अइ-महल्ल-कल्लोल खिवंतउ, विसण्णा निज्जामया । वाइउ विसम-पवणु सुमहंतउ । पृ० ४०३ निवडिउ असणि-वरिसु अइ दारुणु, इय उप्याउ जाउ जण-मारणु । अणियमिय-गमणु जाणयं अणवसिहूयउ न मग्गु पावए । उम्मिठ-करि व्व मत्तउ खणि खणि सयल-दिसासु धावए ॥ (७) एत्थ खलु सुमिणय-संपत्तितुल्लाओ एत्थ य खलु सिमिणय-सन्निहाउ, रिद्धिओ, अमिलाण-कुसुममिव रिद्धिउ मणुण्णउ बहुविहाउ । खणमेत्त-रमणीयं जोव्वर्ण, अमिलाण-कुसुमसमु जोव्वणं पि, विज्जु-विलसियं पिव दिट्ठ-नट्ठाई सुमुहुत्तमेत्त-रमणीउ तं पि । सुहाई, अणिच्चा पियजण-समागम स्ति । खणमेत्त-दिट्ठ-नैट्ठाई सुहाई, पृ० ४१७ जिह नहयले विज्जु-विलसियाई । पिय-जणहं समागम तिह अणिच्च, ठक्कुरहं भयट्ठहं जेम भिच्च । ४.१४ (८) पहाणकाय-संगया सुयन्ध-गन्ध-गन्धिया । पहाण-काय-संगया, सुदिव्व-वत्थ-रंगया । अवाय-मल्ल-मण्डिया पइग हार-नन्दिमा ।। सुपंध-गंघ-गंधिया, विसिट्ठ-पुष्प-बंधिया । लसन्त-हेम-सुत्तया फुरन्त-आउह-प्पहा । मियंक-सोह्यिाणणा, जलंत-सीस-भूसणा । चलन्त-कण-कुण्डला जलन्त-सीस-भूमणा ॥ चलंत-कण-कुंडला, फुरंत-दित्ति-मंडला । निबद्ध जोवणुद्धुरा सुकंत-कन्न-संगया । लसंत-हेम-सुत्तया, सतेय-हार-जुत्तया । मियंक-सोहियाणणा नवारविन्द-सच्छहा ॥ फुरत-आउहप्पहा, नवारविंद-सच्छहा। समत्त-लक्खणकिया विचित्त-कामरूविणो। अवाय-मल्ल-मंडणा, विपक्ख-दोस-खंडणा। समुद्द-दुन्दुहि-स्सणा पणाम-संठियञ्जली ।। निबद्ध-जोवणुदुरा, विलास-सोह-बंधुरा । पृ० ४५२-५३ समत्त-लक्खणंकिया, जयम्मि जे असंकिया।। विचित्त-कामरूविणो, सुसामिसाल-सेविणो । समुद्द-दुंदुभी-सणा, रणम्मि जे सुभीसणा । ६.३२ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना आ ते साधारण कविए 'समराइच्च-कहा ' मांथी पोतानी कृतिनुं समग्र कलेवर घड्युं होवाने कारणे 'विलासवई - कहा ' केटलीकवार तो जाणे के प्राकृत 'समराइच्च कहा ' ( पंचम भव) नो शब्दश: अपभ्रंश अनुवाद होय अबुं लागे छे परंतु ज्यां एक बाजु आम कथानकनी दृष्टि साधारण कवि हरिभद्रसूरिना आभारी छे तो बीजी बाजु एमनामां रहेली नैसर्गिक कवि-प्रतिभा एनी आगवी मौलिकता पण दर्शावी शकी छे. आपणे एमनी ए विशेषताओ जोईए. समराइच्च-कहा प्राकृतभाषामां छे अने तेनुं स्वरूप गद्य-पद्य मिश्रित चम्पूकाव्यनुं छे. ज्यारे विलासवई कहा अपभ्रंश भाषामा संधिधमां गुंथायेल संपूर्ण पद्यरूपे छे. गद्य अने ते पण कादम्बरीनी शैलीवालुं होवाथी समराइच्च - कहा समास - बहुलता, शब्दाडंबर अने घणीवार तो क्लिष्टतामां सरी पडे छे. ज्यारे अपभ्रंशभाषानी प्रवाहिता ने कारणे अने कविनी सरळ शब्दोनी पसंदगीने कारणे विलासवई कहा ललित मधुर पदावलीथी जनमनरंजन करवानी अपूर्व क्षमता धरावती काव्यरचना बनी शकी छे. अपभ्रंशना विविध गेय छंदो उपरनुं प्रभुत्व पण विलासवई - कहा ने स्वतन्त्र महाकाव्यनु रूप आपवामां कविने सहायकारी बन्युं छे. 24 पोते नवी ज धर्मकथा रची रह्या होई साधारण कविए कृतिना प्रारम्भमां चोवीस तीर्थकरोनी स्तुतिरूप मंगळ पण पोतानुं स्वतन्त्र आप्युं छे. हरिभद्रसूरिओ समराइच्च-कहामां कथाना १. अर्थकथा २. कामकथा ३. धर्मकथा अने ४. संकीर्णकथा अवा चार भेद पाड्या छे. तथा पात्रभेदनी अपेक्षाए १. दिव्य २. दिव्य - मानुषी अने ३. मानुषी सेवा कथावस्तुना त्रण प्रकार गणाव्या छे.' एमां समराइच्चकहा दिव्यमानुषी पात्रोवाळी धर्मकथा छे. ए ज रीते विलासवई- कहा पण दिव्यमानुषी पात्रोवाळी धर्मकथा छे. परन्तु समराइच्चकहाकारनुं लक्ष्य समरादित्यना चरित्रद्वारा निदान अने तेनुं फळ बताववानुं छे ज्यारे विलासवईकारनो हेतु अल्प प्रमाद - स्वच्छंद पण दारुण विपाकनुं कारणं बने छे ते दर्शाववानो छे. विलासवई - कहाना पहेला संधिना बीजा कडवकमां पोतानी काव्य-रचनानो हेतु जणावताँ कवि कहे छे थेवो वि हु कीरइ जो पमाउ, सो पर भवे होइ महा- विवाउ | एत्थ व पत्थावे कहा कहेमि, ते भव्वहं अभत्थण विहेमि ॥ जिव सह भत्तारं पाण-पियारिं गुरु पमाय- फल अणुहवइ । तिह चोज्जुप्पायणि गुण-सय-दायणि कह निसुणेहु विलासवर || आम साधारण कविए साधारण जनोने सरळताथी धर्मबोध आपवाना उद्देश माटे विलासवती- सनत्कुमारना कथानकनो सफळ उपयोग कुशलताथी कर्यो छे. समराइच्च - कहा (पंचम भव) मां जय-विजयनी कथाना संदर्भमां सनत्कुमारनी कथा कहवाई छे.. राजकुमार जय अश्वक्रीडाए जतां सनत्कुमार नामना अतिशय तेजस्वी मुनिराजर्षि - ना दर्शनथी प्रभावित थई तेमने राजपाट तजो वैराग्य धारण करवानुं कारण शुं एat प्रश्न करे छे, जेना जवाबमां सनत्कुमार आचार्य - १. समराइच्च - कहा (भूमिका). Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा 'सुणिऊणऽप्पनियाणं महाविवागं च कम्मपरिणामं चित्तंगयविज्जाहरसमण-समीवंमि निक्खतो । किह ? अस्थि इहेव भारहे वासे सेयविया नाम नयरी । तत्थ जसवग्मो राया । तस्स पुत्तो सणकुमाराभिहाणो अहं । .........' एम शरूआत करी स्वमुखे ज आत्मकथा कहे छे. विलासवई-कहा मां आ नायकना आत्मकथानकनी शैली छोडी दईने कवि पोते ज कथा कहे छे.. आ रीते बोजापुरुषमां कथा कहेवाने लोधे कवि नायक, नायिका अने बीजा पात्रोना व्यक्तित्वने यथोचित उठाव आपी शक्या छे. बलासवई-कहा ना अन्तिम त्रण संधि-नव, दश अने अगियार तो साधारण कवि पोते ज कल्पेला कथानकवाळा अने कविनी मौलिक प्रतिभानो परिचय करावनारा छे. आठमी संधि सुधीनी कथाना अनुसंधानमां नवमी संधिथो शरू थतुं चन्द्रलेखानुं कथानक (९. १-१८) समराहच्च-कहामां नथी. कथाना प्रवाहने क्षति पहोंचाइया सिवाय साधारण कविए तेने सनत्कुमारनी कथा साथे जोडीने श्रोतावाचकोमा विशेष औत्सुक्र अने रस प्रगटाववानो उत्तम प्रयास को छे. आ ज रीते अ संधिमां आवतुं संसार-सागर अने धर्मनौकानुं रूपक (९. ४-६), पांच महाव्रतरूपी रत्नोनुं वर्णन (९. ६.८), दशमी संधिमां प्रश्नोत्तर-प्रहेलिका (१०.२५), अगियारमी संधिमां वीतराग-वर्णन (११.१९), श्राविका सुन्दरोनु कथानक (११. २३-२५), समराइच्च-कहामां ढूंकाणमां आपेला मधुबिन्दु दृष्टांतनुं विस्तृत निरूपण (११. ७-१२) अने प्रशस्तिमा पोते स्तु तस्तोत्रोना रचयिता तरीके ख्यात छे एवं नोंधता कविनी तद्विषयक ख्याति योग्य हती एना उदाहरणरूप भाववाही पंच-परमेष्ठिस्तोत्र (११. ३२-आ बधा प्रसंगो कविनी नैसर्गिक प्रतिभाना परिचायक छे. आ रीते केटलाक तद्दन नवा उमेरा कर्या छे ते उपरांत विलासर्वई-कहा नी प्रथम संधिथी ते अंत सुधीमां, समराइच्च-कहामां जे कथा एकदम ट्रंकी हती ते समग्र कथाने ठेर ठेर विगतो भरीने, हकिकतोने संवादनु रूप आपीने, समास-बहुलता अने भाषानी कठिनता दूर करी, श्रोता-पाठकोना हृदयने स्पर्श तेवी रसमय बानीमां मूकोने, लौकिक उक्तिओ, रूढिप्रयोगो, कहेवतो ओ सुभाषितोथी शगगारीने, जे जे स्थळो समगइच्व-कहा कारे मात्र अछइता उल्लेखथी ज पताचो दीघेला तेवा स्थळोमां पण रससंभार भरीने साधारण कविर विलासर्वईने खरे ज 'पसण्णवयणा' बनाव? छे. ५. महाकाव्य तरीके मूल्यांकन संस्कृत महाकाव्यने ज मळतो अपभ्रंशनो आगवो काव्यप्रकार संधिबंध-चरित काव्यनो छे. संस्कृत महाकाव्य जेम सर्गौमां वहेंचायेलं होय छे तेम अपभ्रंश महाकाव्य संधिओमां विभा. जित थयेल जोवा मळे छे. अपभ्रंश महाकाव्योना खास करोने बे विभाग पाडी शकाय-एक तो पचासथी मांडी सवासो सुधीनी संधि-संख्या धरावता पौराणिक काव्यो अने बीजा बे थी मांडी बार सुधीनी संधि-संख्यामां समाता चरित-काव्यो. प्रथम प्रकारमा स्वयंभूनुं पउमचरिउ, पुष्पदन्तनुं महापुराण वगेरे आवे. बीजा प्रकारमा युष्पदन्तना जसहरचरिउ ने णायकुमारचरिउ, पद्मकीर्तिनु पासणाहचरिउ, वीर कवितुं जंसामिचरिउ, धाहिलनु पउमसिर चरिउ इत्यादि आवे. विलासवई-कहानो समावेश आ बीजा प्रकारमा थाय छे. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना २९ संस्कृत अने तेने अनुसरीने प्राकृत महाकाव्योना जे लक्षणो मनाय छे ते ज सामान्य लक्षणो परंपराथी अपभ्रंश महाकाव्यामां जळवाइ रहेलां जोवा मळे ले. आचार्य दण्डिए महाकाव्यना लक्षणो आ प्रमाणे कह्यां छे___ 'महाकाव्यनी कथा सामा आबद्ध होय छे अने तेनो प्रारंभ आशीर्वाद, नमस्क्रिया के वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरणथी थाय छे. एनी कथानो आधार ऐतिहासिक कथा या अन्य श्रेष्ठ कथा होय. एनो नायक चतुर अने उदात्तचरित व्यक्ति होय. एमां नगर, समुद्र, पर्वत, ऋतु, सूर्य, उद्यान, जलक्रीडा, मद्यपान, प्रेमोत्सव, मिलन, विवाह, कुमारजन्म, मंत्रणा, दूतप्रेषण, युद्ध अने नायकना अभ्युदयन वर्णन होवु जोईए. उपर्युक्त बधां वर्णनो चमत्कारपूर्ण अने रसयुक्त होवां जोईए. सप्रमाण सर्गोमां भिन्न भिन्न वृत्तान्त के घटनाओनुं वर्णन होवु जोईए. प्रति सर्गने अंते भिन्न वृत्त-छन्दनो प्रयोग थवो जोईए. काव्य अलंकारपूर्ण अने लोकरंजक होवू आवश्यक छे केम के ए गुणो वडे ज ते चिरकाळ लोकोमा प्रचलित रहे. जो कोई महाकाव्यमां उपरना गुणोमांथी कोईनो अभाव होय तो पण रसनी पुष्टि थती होय तो ते महाकाव्य दूषित नहीं गणाय." आमांना बधां ज लक्षणो विलासवई-कहामां जोई शकाय छे. विलासवई - कहानो प्रारंभ तीर्थकरोनी स्तुतिरूप मंगलथी थाय छे. कथानो आधार एक प्रसिद्ध महाकथा-समराइच्चकहा छे. नायक धीरोदात्त राजपुत्र छे. समुद्र, पर्वत, उद्यान,ऋतु, सैन्य-प्रयाण, युद्ध, दूतप्रेषण, मंत्रणा, नायक-नायिका-मिलन, कुमार-जन्म अने नायकनो अभ्युदय इत्यादि अनेक वर्णनोथी कृति सभर छे. सप्रमाण संधिओ (संस्कृत सर्गने स्थाने अपभ्रंश संधिओ) मां अने कडवकोमा काव्य विभक्त छे. प्रति सर्गान्ते छंद बदलवानो नियम प्रति कडवकना अंते जुदा छंद-प्रयोगमां सचवाई रहेलो जोवाय छे. वर्णनो चमत्कृतिपूर्ण अने रसालंकारथी भरेला तथा कथानक लोकरंजक छे. आम प्रस्तुत कृतिमां महाकाव्यना बधां लक्षणो घटावी शकाय छे. समराइच्च-कहाथी विशिष्ट अने साधारण कविए पोते ज उमेरेलां एवा वर्णनोमांथी अहीं प्रकृत-वर्गन, अलंकारो आदिना उद्धरणो आप्यां छे, जे साधारण कविनी वर्णनशैली अने कवित्व-शक्तिनो परिचय करावे छे. प्रकृतिवर्णन- विलासवई-कहामा प्रसंग मळतां ज साधारण कविए प्रकृतिनी विविध लीलाओना सुंदर वर्णनो आप्यां छे. प्रथम संधिमां अनंगनंदन उद्यान- (१.७)अने पांचमी संधिमां सुंदरवन उद्याननुं सुंदर वर्णन (५.४) छे. सुंदरवन-वर्णनमां कविए अनेक वृक्ष-वनस्पतिना नामो आप्यां छे. आवी वृक्ष-राजिथी समृद्ध रमणीय एवा वनने कवि नंदनवननी उपमा आपे छे. वोजी संधिमांनु (३. २२) संध्यावर्णन विविध उत्प्रेक्षाओथी मनहर बन्युं छे. 'राती संध्या नभस्थळमां सोहाय छे, जाणे के नरपति(ईशानचन्द्र राजा) पर क्रोधथी राती न बनी होय ! चक्रवाक युगलो छूटां पडयां-जाणे के कुमारना समसुखदुखिया न होय ! देवळोमां शंखो अवाज करी रह्या-जाणे कुमारना जबाथी धा नाखता न होय ! घरदोवडाओनी वाट संकोराई-जाणे के कुमारने जोवा माटे ऊंची थई न होय ! समग्र नगरी घन अंधकारथी भराई गई-जाणे कुंवरना उद्वेगथी झांखी पडी न होय !' १. काव्यादर्श- दण्डि, १. १४-२० Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई - कहा ए ज संधिमा ( ३. १५) गिरिनदीनं शब्दालंकारसपर सजीव चित्रण छे. पांचमी संधिमां (५.७) सूर्यरूपी सिंहना किरणरूपी करथी हणायेला अंधकाररूपी हस्तीनुं अने कराळ रविसिंहना भयथी भागी गयेला हरणांरूपी ताराओनुं रूपक बरावतु सुंदर प्रभात-वर्णन छे. ३० वे पर्वतानां वर्णनो, वैताढ्य अने मलयगिरिनां क्रमे चोथी संधि ( ४.२ ) अने छट्ठी संधि (६.१) मां आवे छे 'आ भारतवर्षमां सुवर्णरंगनो, सुंदर उपवनो अने कंदराओथी रमणीय, ऊंचा शिखरोथी गगन मार्गने रुंधतो, सकळ वनस्पतिसमूहने धारण करतो, किन्नरोना गीतोथी गुंजतो, बहु रत्नोना किरणथी चमकता तटवाळो, निर्झर झरतां झरणांना झंकारथी भरेलो, मयूरोनी कळाथी मनहर, अभिराम विद्याधरयुगलाने धारण करतो वैताढ्य नामे श्रेष्ठ गिरि छे. उभय श्रेणीरूप कुंभस्थळ ने शिखररूपी दांतधारण करतो, वहेता झरणाना जळरूपी मदवाळो ते जाणे के दीर्घदन्तुशळवाळो दिशागज न होय !' आताढ्यनुं वर्णन छे. तो मलयगिरिनुं वर्णन जुदी ज छटा धरावे छे. चोथा संधिमा (४.९) समुद्रनुं सरस वर्णन छे, तो पांचमा संधिमनुं सरोवर - वर्णन (५.१५) जुदुं ज कल्पना - चित्र खडुं करे छे 'थोडे दूर तेणे धरतीपर जाणे के मानस सरोवर उतर्यु होय तेवुं सरोवर जोयुं. जेना तीरे कुरर, क्रौंच कलहंसादि पक्षीओथी गुंजता अनेक वृक्षझुंड हतां जेनुं पाणी श्वेत, निर्मळ अने शीतळ हतुं जेने सिद्धो, यक्षो अने देवोना युगलो भोगवतां हतां. विकसमान शतपत्ररूपी वदनवाळो, नीलकमलरूपी लोल नयनवाळो, उज्जवळ कुमुदखंडरूपी हास्यवाळो, घन परागकेसररूपी विलासवाळो, पवनथी चलित मोजारूपी बाहुवाळो, हंसना शब्दोरूपी नूपुरशब्दोवाळ, चक्रवाकयुगलरूपी पयोधरवाळो, राता कमळरूनी अधरवाळो, भ्रमरगुंजारव रूपी गीतवाळो नारीसमूह जाणे के एकठो थयो होय ( ते सरोवर हतुं ) '. प्रकृति-चित्रणनी साथे साथे ज कविए मानव स्वभाव अने मानव प्रवृत्तिओनां पण सुंदर चित्रो आलेख्यां छे. बीजी संधिमांनु स्त्री-स्वभावनुं वर्णन (२०१९) अने विलासवतीना अनंगरतिए करेला अपहरण छतां सनत्कुमार पहेलां दूत मोकलवानी सलाह स्वीकारे छे, त्यारे तेना युद्धोत्सुक सुभटोना प्रत्याघातनुं वर्णन ( ७.१२) - बन्ने वर्णनो कविनी मानव-स्वभावनी जाणकारीना द्योतक छे. मदनमंजरीना विलापमा (४.५ ) पण विशिष्टता छे. युद्धभेरी वागतां नगरजनो अने सैनिको मां पडता प्रत्याघातोनुं वर्णन ( ८.३ ) तादृश छे. युद्धनां वर्णनो पारम्परिक होवा छतां कविनी विशिष्टता घणी जगाए जगाई आवे छे. युद्ध-वर्णन एक करतां वधारे वार आवे छे. (२.११, ७.२६ - २९, ८. ११, १३, १६, १७, २१, २२ वगेरे ). सनत्कुमार ने अनंगरतिना द्वंद्वनुं वर्णन कवि करे छे 'चमकती तरवारो हाथमा लईने बाणधारी वेउ रणमां उत. वेय बलवंता, वेय शूर, जाणे तेजस्वी चंद्र ने सूर्य बन्ने एवा भिडाया जाणे के देवदानव, बन्ने एवा धीर के जाणे सिंह. जाणे वेड गुरुकाय पर्वतो, पत्रनथी टकरायला जाणे वे मेत्र. बेय जाणे मत्त वनहाथी, Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना २ बळवान देहवाळा जाणे बे आखला. (एकबीजाने घडीमां) बेउ वळगता, वळता अने प्रहार करी पाछा छूटा पडता. बन्ने (घडीमां) आकाशमां उछळना, तो पाछा (वडीनां) जमीन पर टकराता. बन्ने आघा खपता, पाछा अन्योन्य पेंतरा रवी नजीक आवी अथडाता. अनेक उत्तम शस्त्रो धारण करनारा बेउ समर्थ योद्धाओना युद्ध राम-रावणना युद्धने पण जीती लीधु'(८.२१) _आ उपरांत सैन्य-प्रयाण (७.२२), रथनूपुर-नगरनुं वर्णन (८.२६) व. पण भाववाही छे. सनत्कुमारने नीरखवा नोकळेली नगरसुंदरीओ जुदा जुदा देवो साथे कुमारनी सरखामणो करे छे अने पछी एक पछी एक दरेक देवमां कईक खामी बतावी ए बधाथी सनत्कुमारनुं चहियातापणु दर्शावे छे ए वर्णन (८. ३१) कविनी काव्यसूझनो उत्तम नमूनो छे. रसः- विलासवई कहानो प्रधान रस शान्तरस छे कर्तानो हेतु संसारनी असारता अने वैराग्यनी महत्ता दर्शाववानो होई वारंवार जीवननी क्षणभंगुरतार्नु वर्णन अने वैराग्यनो उपदेश जोवा मळे छे. शांतनी सर्वोत्कृष्ट निष्पत्तिनुं उदाहरण अगियारमी संधिनुं बत्रीसमुं कडवक आखं छे. जेमा समग्र राजपाट छोडी मुनिजीवन अंगीकार करवा तत्पर थयेल सनत्कुमार निर्मळहृदयपूर्वक अने प्रशान्त चित्ते पंच परमेष्ठिनी स्तुति करे छ नमिमो अरहंतह, उत्तम-सत्तहं, नमिमो सिद्धहं गणहरहं । नमिमो उज्झायहं कय-सज्झायहं, नमिमो सव्वहं मुणिवरहं ।।.... जिणवरा सिद्ध-सूरीहिं संजुत्तया, थुणिय उज्झाय साहु य तिहिं गुत्तया। देंतु बोहिं समाहिं च सुहकारणा, भीम-भव-खुत्त-सत्ताण साहारणा ।। आ स्तोत्र एक स्वतंत्र काव्य जेवु ज अने भाववाही बन्युं छे. समग्र स्तोत्र शांतरसथी सभर छे. शांत पछी प्रमुख स्थान वीररसनुं छे. ठेर ठेर युद्धभेरीनी गर्जना संभळाय छे अने - फुट्ट ने बंभंडु उच्छलियउ तूराउ । नं रणदंसण-कज्जे हूउ देवहं हक्कारउ ॥ ७. २१ आवा युद्धनां दृश्यो वीररसनु आस्वादन करावे छे. वीर पछी शृंगारमा अहिं संभोग-शृंगार तथा विप्रलंभ-शृंगार बन्नेना निदर्शनो मळी रहे छे. प्रथम संधिमानुं नायक-नायिकानुं मिलन अने पछी अनेक वखतना विरहना वर्णनोमां आ बन्ने शृंगारन कविए निरूपण कर्यु छे. परंतु साधारण कविनो शृंगार मर्यादान उल्लंघन क्यांय पण करतो नथी. __ आ त्रण मुख्य रसो सिवाय करुण(मदनमंजरोनो विलाप-४.५), बीभत्स अने भयानक (सनत्कुमारनी विद्यासाधना प्रसंगे देखा देती विभीषिका मोना वर्णनमां-६. २४-२९), रौद्र . (७.१८) वगेरे थोडा-झाझा प्रमाणमां कविए यथास्थाने निष्पन्न कर्या छे. अलंकार-महाकाव्यनी परिपाटी मुजब विलासर्वई-कहामां पण अलंकारोनी विपुलता छे. शब्दालंकारोमां अंत्यानुप्रास तो अपभ्रंशमां अनिवार्य अंग बनी गयेल तेथी सर्वत्र छ ज. तदुपरांत वर्णानुप्रास, (३.१५,९.१) शब्दानुप्रास (यमक) (६.१४,७.२६ इत्यादि) अने श्लेष (४.८; १.१६ वगेरे ) अहिं जोवा मळे छे. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ विलासवई-कहा आ सिवाय दरेक संधिना अंतिम कडवकना पत्तामा कविए पोतार्नु नोम 'साहारण' श्लेषमां मूकेलं छे. अगियारमी संधिना बत्रीसमा कडवकमां आपेली वीतरागस्तुतिना अंते पण 'सिद्धसूरीहिं' अने 'साहारणा' बन्ने शब्दो श्लेषथी कवितुं नाम सूचवे छे. इलेषनो कविने आम शोख लागे छे. . अर्थालंकारोमां कविने उपमा अने उत्प्रेक्षा अधिक प्रिय छे. बन्नेना अनेक उदाहरणो मळे छे. ए उपरांत रूपकनो पण उपयोग अनेक वखत थयेल छे. सिवाय दृष्टांत, विरोधाभास अने स्वभावोक्तिना निदर्शनो मळे छे. उपमा-१.७.६; १.१०; १.२६; २.७; ८.२०:८.२२ इत्यादि उत्प्रेक्षा-१.६; १.७, ४.२, ५.२८, ८.१६ वगेरे ४.२ मां वैताड्यना वर्णनमा उत्प्रेक्षा साथे श्लेष पण छे. रूपक -१.९.४, ९.२७.१६ व. नवमी संधिमांनु भवसागरनुं रूपक (९.४-६) मालारूपकनु उत्तम उदाहरण छे. ____ अने मधुबिन्दुनु कथानक (११.७-१२) तो एक सर्वागसंपूर्ण धार्मिक रूपक छे जेर्नु विवेचन कथानकोनी परम्पराना प्रकरणमां करवामां आव्युं छे. दृष्टांत-१.१४; ६.४, विरोधाभास -२.२३ व्यतिरेक-८.३१ स्वभावोक्ति-४.१.६-१० आ रीते संस्कृत-प्राकृत महाकाव्योनी परंपरानु अनुसरण करवामां आव्युं छे, तदुपरांत अपभ्रंशना प्राचीन काव्योमां जणाती घणी काव्य-रूढिओर्नु पण विलासवई-कहामां पालन करवामां आव्युं छे. युद्धना वर्णनो, भोजन समारंभर्नु वर्णन, विविध आयुधोनु वर्णन, वाजिंत्रोनु वर्णन, ध्वन्यात्मक शब्दोना प्रयोगो, प्रहेलिका-ऊखाणा-आ बधा तेना उदाहरणो छे. __ जैन कविओनु लक्ष्य जनसाधारणना हृदयतल सुधो पहोंची तेने दुराचरणथी विमुख करी सदाचरण तरफ प्रवृत्त करवानु हतु . विलास बई-कारनु पण ए ज लक्ष्य हतुं, ए पहेलां कहेवाई गयु छे. आथी कथानी साथे साथे ज कवि वारंवार उपदेशवाणीमां सरी पडे छे. एनाथी काव्यना प्रवाहमा शिथिलता आवे छे अने कदिक रस-अति पण थाय छे. परंतु उपदेशप्रधान काव्यमा ए अनिवार्य छे. एकंदर विलासवई-कहा शृंगार अने वीररसथी परिपोषित शांतरस-प्रधान, अनेकविध अलंकारोथी सुशोभित,वर्णनोथी समृद्ध, लोकरंजन साथे उपदेश करवामां सफल महाकाव्य तरीके अपभ्रंश साहित्यमा आगq स्थान धरावी शके तेवी कृति छे. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. कथानकोनी पूर्व - परंपरा विलासवई - कहानुं मुख्य कथा - कलेवर अगाउ जोयुं तेम समराइच्च - कहा उपरथी घडायुं छे. पण साधारण कविनी दृष्टि समक्ष समराइच्च्च - कहा उपरांत विविध बोधकथाओथी सभर टीकाओ साधेनुं विशाळ जैन आगम साहित्य, समराइच्च - कहानाये स्रोत जेवी वसुदेवहिंडी', रामायण अने भारतनी जैन परंपराए विकसावेली कथाओनी संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंशमां रचायेली कृतिओ, कालिदास, बाण, दंडि, हर्ष आदि संस्कृतना महाकविओनी कृतिओ, प्राकृत अने अपभ्रंशनुं साहित्य तथा तत्कालीन लोक-साहित्य जरूर होवुं जोईए. आ बधी सामग्रीनी एक या बीजा स्वरूपनी असर विलासवई - कहा मां अत्रतत्र स्पष्ट जोवा मळे छे. समृद्ध भारतीय कथा - साहित्यमां प्रचलित एवा केटलाक कथानको अने कथारूढ़िओ विलासवई-कहामां सुंदर रीते गूंथायेला जोवा मळे छे. आवा कथानकोनी पूर्व-परंपरानो अभ्यास रसप्रद छे. ( १ ) ईशानचंद्र राजाए जेने पुत्रवत् राख्यो छे एवा सनत्कुमार प्रति अनंगवती राणीने आसक्ति प्रगटे छे, पण विनवणी करवा छतां सनत्कुमार अघटित कार्य करवाथी दूर रहे छे. त्यारे छंछेडायेली राणी स्त्रीचरित्र करी राजा पासे कुमारना दुष्टपणानी खोटी फरियाद करी तेने मारी नखाववानी कोशीष करे छे. आ घटना द्वारा ज सनत्कुमार अने विलासवतीना वियोगनो प्रारंभ थाय छे. आम कथाने संघर्षना चरमबिंदुए लई जई नाट्यात्मक वळांक आपवानुं कार्य आचारूप घटना करे छे. आ जातनुं - स्त्री तरफथी अनुचित प्रेम - प्रस्ताव अने पुरुषनो अस्वीकार – कथानक भारतीय साहित्यमां घणुं जूनुं छे २ ऋग्वेदना यम यमी संवादमां आ कथानकना अति प्राचीन स्वरूपनी झांखी थाय छे. यम-यमी जोडिया भाई बहेन छे. यमी यम पासे अघटित प्रेम प्रस्ताव मूके छे. यम तेणीने धर्मविरुद्ध आचरणथी दूर रहेवा समजावे छे. उ - ऋग्वेदमां ज आवुं बीजुं कथानक इन्द्राणी - वृषाकपि विषेनुं छे. पोताना प्रेम प्रस्तावने वृषाकपिए ठुकराववाथी कुद्ध इन्द्राणी इन्द्रगसे वृषाकपे विरुद्ध फरियाद करे छे. * महाभारतमां आरण्यक - पर्वमा आवतुं उर्वशी अने अर्जुननुं आख्यान पण आ ज कथा - न धरावे छे. अर्जुन प्रत्ये आकर्षायेली उर्वशी तेनी समीपे भोग माटे प्रार्थना करवा जाय छे. पुरुवरानी उत्पन्नकर्त्ता जननी गणी अर्जुन तेनी प्रार्थनानो सादर अस्वीकार करे छे. मानभंग थली क्रुद्ध उर्वशी तेने शापे छे. ५ १ गुणाढ्यनी अद्यापि अनुपलब्ध पैशाची भाषाबद्ध बृहत्कथाना प्राचीनतम प्राकृत रूपान्तर तरीके आधुनिक साक्षरो द्वारा ओळखाती अने मोडामां मोडी विक्रमनी छडी शताब्दीमां रचायेली मनाती, संघदास गणिनी रचना वसुदेवहिंडी, हरिभद्रसूरिनी समराइच्च - कहाना मुख्य कथानकनुं उद्गम स्थान छे. जुओ- हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्यका आलोचनात्मक परिचय, पृ० १८८ २. आ कथानकना घर्णा दृष्टांतो डॉ० हिरालालजी जैने नोंध्यां छे. (सुदंसण - चरिउ, प्रस्ता चना पृ० १७ ) में तेमां केटाको उमेरो करी ते बधां अहीं ट्रंकमां नोध्यां छे. ३. ऋग्वेद १०.११ ४. ऋग्वेद १०.८६ महाभारत आरण्यक पर्व भा० २. परिशिष्ट - ६, पृ० १०४७-५३० 4. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासबई - कहा बौद्ध जातकोमां पण आ कथावस्तुवाळा जातको मळे छे. समिद्धि जातकमां बोधिसत्त्व उपर आसक्त एक देवकन्यानी प्रणय-याचना अने बोधिसत्त्व तरफथी उपदेश साथे अस्वीकारनी कथा आवे छे.' ३४ बंधन - मोक्ष जातकमां बोधिसत्त्व एक राजपुरोहित होय छे. राजानी गेरहाजरीमां स्वैरचारिणी राणी तेने पोतानी साथ संबंध करवा ललचावे छे. वफादार राजसेवक ( बोधिसत्त्व) इन्कार करे छे. राजा पाछो फरतां राणीए राजपुरोहित विरुद्ध पोताना शीलभंगनो प्रयत्न करवानी फरियाद करी. राजा राजपुरोहितना वधनी आज्ञा करी. पण अंते राजपुरोहिते चतुराईपूर्वक राजाने साची वातनुं भान कराव्यु . * - महापद्म- जातक कथामां अपर पुत्र पर कामासक्त थई तेना तरफथी निराशा प्राप्त थतां तेना पर वेर लेवाना राणीना प्रयासनो जे कथा छे ते प्रस्तुत अनंगवती राणीना कथानक साथै घणुं ज साम्य धरावे छे. आ जातकमा बोधिसत्त्व वाराणसीना राजा ब्रह्मदत्तना पद्मकुमार नामे पाटवी कुंवर होय छे. एकदा तेनी अपरमाताए राजानी गेरहाजरीमां तेनी पासे अघटित प्रस्ताव मूक्यो. विनयी कुमारे अस्वीकार कर्यो अने तेने आवा निंदनीय मार्गथी दूर रहेवा उपदेश आप्यो. हताश राणीए राजाना पाछा आवतां ज पोताना उपर कुमारे बलात्कार करवानो प्रयास कर्यो होवानो देखाव करी कुमार पर आळ चढान्युं राजाए पद्मकुमारने चोर-प्रपात परथी फेंकी तेनो वध करवानी सेवकोने आज्ञा करी. पर्वत-स्थित देवतानी सहायथी कुमार बची गयो अने प्रव्रजित थई हिमाचलमां तप करवा लाग्यो. पाछळथी साचो वात जाणतां पश्चात्तापदग्ध राजाए कुमारने पाछो लाववा प्रयत्न कर्यो . वसुदेवहिंडीमां पण आ जातनी एक कथा मळे छे. कृष्णपुत्र प्रद्युम्नने जन्मतांवेत एक पूर्वभवनो दूश्मन देव उपाडी जाय छे अने एक अटवीमां फेंकी दे छे. त्यांथी पसार थता कालसंवर अने कनकमाला नामे विद्याधर पति-पत्नी तेने बचावी लई उछेरे छे. ते युवान थतां तेना रूपथी मोहित थई कनकमाला तेनी पासे प्रेम-प्रार्थना करे छे. मातृरूप गणी प्रद्युम्न तेने टाळे छे. कोपायमान कनकमाला प्रद्युम्ननो वध कराववा तलर थाय छे. ४ समराइच्च कहा पछीना काळमां पण आ कथानक अनेक कथाओमां दृष्टिगोचर थाय छे. नवकार मंत्रना जापनो प्रभाव दर्शात्रतो सुदर्शन श्रेष्ठिनी प्रसिद्ध जैन कथामां पण राणीनी नायक प्रति आसक्ति अने तेना तरफथी सहकार न मळतां बदलो लेवा माटे तेना पर बलात्कार करवानो आक्षेप मूकी राजा द्वारा वधनी सजा कराववी ए कथानक पण आपणी कथाना कथानकने मळतु छे. हरिषेणना संस्कृत बृहत्कथाकोष आवे छे." आज कथा लईने दिगंबर कवि नयनंदिए अपभ्रंशमां सुदंसण - चरिउ (वि. सं. १९०० ) (वि०सं० ९८९) मां आ कथा १. जातक - (हिन्दी भाषान्तर) भदन्त आनन्द कोसल्यायन, खण्ड- २, जातक - १६७, पृ०२२७ २. जातक खण्ड -२ पृ० ६५ ( जातक - १२० ) ३. जातक खण्ड - ४ पृ० ३८६ ( जातक - ४७२ ) ४. वसुदेवहिंडी - भाषान्तर पृ० १११. ५. बृहत्कथाकोष - हरिषेण संपा०डो, आ. ने, उपाध्ये Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ३५ रचेल छे.' वि. सं. ११२७ लगभगमां पाटणमा रचायेला श्रीचंद्र मुनिना अपभ्रंश कथाकोश (कह-कोसु) मां पण आ कथानक जोवा मळे छे. बृहत्कथाना प्रसिद्ध संस्कृत रूपान्तर कथासरित्सागर - जेनी रचना ई०स० १०६३ थी १०८१ वच्चे सोमदेवे करी होवानुं मनाय छे-तेमां पण आ ज कथानकवाळी एक करतां वधु कथाओ छे. अष्टम लंबकमां षष्ट तरगंमांनी गुणशर्मा ब्राह्मणनी कथानुं कथानक घणा अंशे प्रस्तुत कथानकने मळतुं छे. कथासरित्सागर ए बृहत्कथा उपरथी रचायेली होई एमांना कथानकोने बृहत्कथा जेटलां प्राचीन मानवामां बाध नथी. आम प्राचीन काळथी आ कथानक भार• तीय कथाकाराने आकर्षतुं रा छे विलासवई-कहामां साधारण कविए आ कथानकने आकर्षक रीते रजू कयुं छे. (२) आ कथामां आवतुं मधुबिन्दु-दृष्टांत (संधि-११ कडवक-७-१२) तो भारतीय साहित्यमां घणु जुन अने विन्टरनित्झे जेने भारतीय श्रमण काव्यनी अभिजात नीपज का छे तेवू सुदंर रूपक छे. __ आ दृष्टांत अंगे विन्टरनित्झ लखे छे-'आनुं मूळ बौद्ध छे एम कहेवाय छे, पण जैनोना अने अन्य भारतीय श्रमण संप्रदायोना जीवनना ख्याल साथे आ उराख्यान एटलु ज संगत छे जेटलु बौद्धोना. तेम छतां आ कथानकनो पश्चिममा जे संचार थयो तेमां आ उपाख्यानना बौद्ध रूपान्तरो कारणरूप छे'.. __आम भारत बहार प्रसरीने आ कथानके आंतरराष्ट्रिय स्वरूप धारण कयु हावापण विन्टरनित्झना उल्लेख परथी जाणी शकाय छे. जैन परम्परामां आ कथानक सहु प्रथम वसुदेवहिंडीनी कथोत्पत्तिमां नजरे पडे छे. नीचे वसुदेवहिँडीमांना ते रूकनु भाषांतर आप्यु छे.. विषयसुख संबंधमां मधुबिन्दुनु दृष्टांत अनेक देशो अने नगरोमां फरतो कोई पुरुष सार्थ साथे एक अटवीमा प्रवेश्यो. त्यां चोरोए सार्थने लूटी लीधो. सार्थथा छूटा पडी गयेला, दिशामूढ थयेला अने आमतेम भमता ते पुरुष उपर मदजळवडे सिक्त मुखवाळा वनगजे हुमलो कर्यो. नासता एवा तेणे तृण अने दर्भवडे ढंकायेलो पुराणो कूवो जोयो. ते कूवाने कांठे मोठे वटवृक्ष ऊगेलं हतुं अने तेनी वड़वाईओ कुवामां लटकती हतो. भयग्रस्त ते पुरुष वडवाई पकडीने कूवामां लटकी पडयो. अने नीचे जुए छे त्यां मुख पहोलु करीने तेने गळी जबाने उत्सुक एवो महाकाय अजगर तेनी नजरे पड़यो. ववर्मा चारे तरफ भीषण सर्पो दंश करवानी इच्छावाळा वळगेला हता. वडवाईने उपरथी काळो अने घोळो अब वे ऊंदरो कापता हता. पेलो वनइस्ती ए पुरुचना केशाग्रने पातानी सूंढथी १. सुदंसण-चरिउ -नयनंदि, संपा०डो. हिरालाल जैन. ....२. कहकोसु (कथाकोष-अपभ्रंश) श्रीचंद्र, संपा० . हिरालाल जैन ३. नानाकथाऽमृतस्य बृहत्कथायाः सारस्य सज्जन मनोम्बुधिपूर्णचन्द्रः । सोमेन विप्रवरभूरिगुणाभिरामरामात्मजेन विहितः खलु संग्रहोऽयम् ।। (कथासरित्सागर प्रशस्ति) ४. हिस्टरी ओफ इन्डियन लिटरेचर, वो. १ पृ. ४०९ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा स्पर्श करतो हतो । ए वटवृक्ष उपर एक मोटा घेरावावाळो मधपूडो हतो. हाथीए झाड़ने हलावतां पवनना वेगथी केटलाक मधुबिन्दुओ पेला पुरुषना मुखमां आवो पड्यां. ते ते स्वादथी चाटवा लाग्यो तेने करडवा माटे ऊडेली मधमाखीओ चारे तरफथी अने घेरी वळी. जंबुकुमारे आ प्रमाणे प्रभवने का अने पूछयु के 'आवी दशामा रहेला ए पुरुषने शुं सुख छे प्रभवे विचार करीने जवाब आप्यो-'तेणे मधुबिन्दुनु आस्वादन कर्यु एटलं ज सुख, एम धारं छु, बाकीनु दुःख.' ___ जंबुकुमारे का', 'एम ज छे. आ दृष्टांतनो उपसंहार आवो छे - पेलो पुरुष ते संसारी जीव. अटवी ते जन्म, जरा, रोग, मरणथी व्याप्त एवी संसाररूप अटवी. वन हस्ती ते मृत्यु, कूवो ते देवभव अने मनुष्यभव. अजगर ते नरक अने तिर्यच गतिओ. सर्पो ते दुर्गतिमा लई जनारा क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार कषायो. वडवाई ए जीवनकाळ. काळा अने धोळा ऊदंगे ते कृष्ण अने शुक्ल पक्षो, जे रात्रि-दिवसरूपी दांतथी जीवितनो क्षय करे छे. वृक्ष ते कर्मबंधनना हेतुरूप अविरति अने मिथ्यात्त्व. मध ते शब्द, स्पर्श, रस, रूप अने गंध ए इन्द्रिय-विषयो. मधमाखीओ ते शरीरमांथो पेदा यता आगन्तुक व्याधीओ. आवी रोते अनेक भयनी वच्चे पडेला ते पुरुषने सुख क्याथी होय १ मधना बिन्दुओनो स्वाद ए तो सुखनी कल्पना ज मात्र छे. ___ हे प्रभव ! कोई रिद्धिमान गगनचारी ए पुरुषने कहे के, 'आव सौम्य ! मारो हाथ पकड, तने अहींथी बहार काढु. तो ते पुरुष हा पाडे खरो ?' प्रभवे का, 'ए दुःखपंजरमांथी छूटवाने केम न इच्छे ?' जंबुए कह्यु 'कदाचित् मधुरसने चाटतो ते मूढताथी कहे के, मने मधुरसथी तृप्त थवा दे, पछी मने बहार काढजे, पण एम तृप्ति थाय क्याथी ? वडवाईरूपी तेनो आधार कपाई जतां ते अवश्य अजगरना मुखमां पडवानो'.' ___ आम जबुकुमार अने प्रभवना संवादना एक अंग तरीके आ दृष्टांत वसुदेवहिंडीमां रज करायुं छे, अने ए द्वारा प्रभवे विषयसुखनी जे प्रशंसा करेली तेनो रदियो अपायो छे. हरिभद्रसूरिए समराइच्च-कहाना बीजा भवमां धर्मघोष आचार्यना मुखे सिंहकुमारने उपदेशरूपे कहेवायेलं आ दृष्टांत गूंथ्युं छे. अहीं गद्यपद्य मिश्रित वर्णनसभर भाषामां आ रूपक कहेवायं छे. वृद्धावस्था माटे राक्षसी अने मोक्ष माटे वटवृक्षनुं रूपक आमां वधारवामां आव्यु छे. सिवाय बन्ने तद्दन समान छे .२ ।। साधारण कविए आ दृष्टांत (संधि ११ कडवक ७-१२) विस्तारीने रजु कयु छे. अहीं राजाने धर्मोपदेश करतां चित्रांगदसूरि आ दृष्टांत कहे छे. समराइच्च-कहा करता रूपको वधारोने दृष्टांतने परिपूर्ण बनाववामां आव्युं छे. मूळमां सार्थ साथे जतो पुरुष ईने जंगलमा भूलो पडवानी विगत छे. आमां भुवनपुर-निवासी पुरुष दुःखी धनहिन होवाथी १. वसुदेवहिंडी - (प्रथम खंड-भाषांतर)- अनु० डो. भो. जे. सांडेसरा पृ. १० २. समराइच्च-कहा पृ. १३४-१३९ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सुखनी शाधमां नीकळे छे एवो फेरकार छे. ते पुरुष देशांतर जतां रस्तो भूली अटवीमां भमे छे. मार्गमां अनेक भयावह प्राणीओथी त्रास पामे छे, तरसथी व्याकुळ बने छे , मृगजळथी लोभाय छे, अनेकविधि अलंध्य घन लताजाळवाली झाडीओमां अटवाय छे, ऊंचा टेकराओ अने ऊंडा खाडाओ, वनदवो अने वांकीचूकी नदीओ, मधुर स्वादवाळा पण झेरी फळोवाळा वृक्षो, घोर बाघ-सिंह वगेरे उपसर्गा एने नडे छे अने दिशाभान गुमावता एने मार्ग सुझतो नथी. एवामां एक चालकर्ण, चाईन्त, लांबी सूंडवाळो, अनेक जोवोने संहारनार वनहस्ती तेना तरफ धनी आवे छे. सामे एक लोहा-मांस भक्षण करती विकराळ राक्षसी नजरे पड़े छे . नजीकमां रहेला अनेक पक्षी मोन। कलरववाळा एक ऊंचा वटवृक्ष तरफ तेनी नजर जाय छे. आ वृक्ष पर चडी जत्राय तो बचा जवाय एम विचारी ते तेना मूळ पासे पहोंचे छे पण चडी शकतो नथी. 'आवा ऊंचा वृक्षपर आरोहण करवान नभचरा -विद्याधरोनु काम, अमारा जेवार्नु नहों' एम विचारी पाछो पड़े छे. एवामा वडा नीचे घास वेलावेलीओथी छवायेला मोढावाळो एक जनो कूवो जोई तेमां पड] मूके छे अने त्यां ऊगेला शर - मुंजना तृणसमूहने वळगी लटको पडे छे. ज्यां कूवामां नीचे नजर करे छे तो नीचे मोढुं फाडेलो एक घोर अजगर जोयो अने चोपास फेण ऊंची करो डसवा माटे तैयार चार सर्पो. 'आ तृणसमूह ज्यां सुधो टूटे नहीं त्यां सुधी ज जीवतो छ' एम विचारी एना मूळमां जोयु तो काळो-धोळो एवा बे ऊंदरो तीक्ष्ण दाढोथी शरमना मूळने कापी रह्या हता. कूवा कांठे ऊमेली राक्षसी पळे पळे तेना कातिल काती (छरी) थी डरावती हतो. अने पेलो वनगज रोषमा समग्र वडवृक्षने हचमचावतो हतो. अथो वडनी एक डाळीए लागेलो मधपूडो भांगी जतां तेमांथी मधना टीपां ऊडीने पेला पुरुषना माथे पडयां अने त्यांथी ओगळी एक टीपुं तेना मुखमां उतयु. तेना स्वादमां पथिकने क्षणभर हर्ष थयो भने बीजी बधी आपत्तिओ वीसराई गई. मघपुडानी मधमाखोओ खीजाईने तेने वळगी. ते दाख सहन करतो छतो ते बीजु टीपु मोमां पडे तेनी इच्छा करवा लाग्यो. एवामां कोई विद्याधर त्यां आवी चड्यो अने आवा संकटमा फसायेला ते पुरुष उपर दया लावी वड उपर चडाववानी मदद करवा तैयारी बतावी. त्यारे ते पुरुष कहे छे, 'एक पळ थोभो, आ एक टी पडवानी तैयारी छे . करि-रक्खसि अयगर-मूसय-विसहर अगणेवि महुमक्खियह डरु । अवमन्निय-खेयरु वज्जिय-वडतरु आसायइ महुबिंदु नरु ! ॥ हाथी, राक्षसी, अजगर, ऊंदर, सर्प अने मधमाखीओना भयने गणकार्या विना. आकाशचारीनी मददनी अवगणना करीने, वड (उपर चडो रक्षण मेळववान) ठकरावाने ते माणस मधुबिंदुनो आस्वाद ले छे ! आ रीते दृष्टांत आपी तेनो उपनय समजाव्यो छे के - भुवनपुर एटले लोकाकाश दुःखी दरिद्र पुरुष एटले धर्मधनरहित जीव, जे सुखनी शोध करवा छतां धर्महिनताने कारणे पामी शके नहीं. देशान्तर एटले भवान्तर-जन्मान्तर, महाटवी एटले संसार . मार्गभ्रष्ट भयो एटले जिनधर्मरूपी मार्गथी भ्रष्ट थयो. भय-शोक-दुःखरूपी वनप्राणिओथी त्रस्त थयो. तषित थयो विषयतृषाथी अने आशारूपी मृगजळथी भ्रमित थयो. कर्मरूपी तरुओथी' भरचक Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा संसाररूपी अटवीमां अटवायो, ज्यां मद-मान-रूपी दुर्गम पर्वतो, क्रोधरूपी उग्र दावानळ, मायाप्रपंच-कुटिलतारूपी वांकीचूकी नदीओ, लोभादिक ऊंडी गर्ताओ, विषयरूपी मधुरस्वादवाळा पण विकमां विषमय वृक्षो, ठट्ठा-मश्करीरूप कषायस्वादु आमळा-बहेड़ा-हरडे जेवां वृक्षो, अने राग-द्वेषरूपी वाघ-सिंड्ना विघ्नो हता. मिथ्यात्त्वरूपो भ्रमने लई कुधर्मरूपी दिशाभ्रममां पडयो. तेनी पुंठे यमरूपी हाथी पडयो जेने चारप्रकारना आयुष्य (देव,मनुष्य, तिर्यंच, नारक )रूपी चार दंतुशळ हता, समयादिथी जे चपलकर्ण-सावधान हतो, अने लांबी सूढरूप दूरथी ज जोवने खेंची लेवानी तेनी शक्ति हतो. सामे धसो आवती विकराळ राक्षसी ए एवाज स्वरूपवाळी वृद्धावस्था हतो. ऊंचं वटवृक्ष ते मुक्तजीवरूर पक्षीओवाळु, मरणभयरहित मोक्षधाम हतु, विषयातुरो त्यां जवा शक्तिमान न थई शके. जुनो कूवो ते मनुष्य-भव, जे चोरासीलाख योनिरूप लताओवडे ढंकायेल मुखवाळो हतो. तेमां शरणंम ते आयुष्य. नीचे रहेल अजगर ते नरकावास. चार सर्पो ते चार कषाय - क्रोध, मान, माया अने लोभ. आयुष्यरूपी शरथंभने कापनारा धवल-कृष्ण ऊंदरो ते महिनाना धवल-कृष्ण बे पक्ष-पखवाडिआ. मधमाखीओ ते शरीर-व्याधिओ. क्षणमात्र सुखवाळा मघुबिन्दुओ ते विषयसुखो. दयावान विद्याधर ते भवभयमांथी तारनार धर्मगुरु. आम मधुबिन्दुरूप तुच्छ भोगोनी पकडमां पकडायेलो विमूढमति जीव अनेक दुःखो सहन करवा छतां धर्ममा उद्यम करतो नथी. आ रीते योग्य नवा रूपकोनी उमेरणीथी सर्वागसंपूर्ण बनावीने अने पोतानी प्रसन्न-मधुर शैलीमां काव्यरूप आपीने आ रूपकने कविए नर्बु ज सौन्दर्य आप्यु छे. जैनोनी श्वेताम्बर-दिगम्बर बंने परम्परामां अनेक कथाओमां, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने गुजराती सुद्धामां, छेक वीसमी सदी सुधोनी कृतिओमां आ दृष्टांत देखा दे छे. नीचे एवी घणी कृतिओनी नोंध आपी छे. दिगम्बर-परम्परामां सौ प्रथम शिवार्य (के शिवकोटि आचार्य) - जेनो समय ईसवी पहेली शताब्दी सुधी जूनो होई शके एवी डो. ए. एन. उपाध्येनी मान्यता छे' - नी भगवतीआराधनामां आ दृष्टांत जोवा मळे छे.' अहों हाथीने बदले वाघ मूकवामां आवेल छे. (परवर्ती बधी दगंबर कृतेओ हाथीना स्थाने वाघ, ज रूपक आपे छे.) ते सिवाय वसुदेवहिंडीनी समान ज आखु रूपक छे.ते पछी गुणभद्राचार्य रचित उत्तरपुराण के जे संस्कृतभाषामां ई० स० ८५० थी ९०० कच्चे रचायानो संभव छे, तेमा ७६ मा पर्वमां जंबूविषयक कथामां ढंकमां आ दृष्टांत आवे छे." बीजी बे रचनाओ १ प्रभाचंद्र-कृत कथाकोष (संस्कृत, रचना समय-११मी सदी) अने २ नेमिदत्त-रचित आराधना -कथाकोष (संस्कृत, १६ मी सदीनी शरूआत)-जे बन्ने पूर्वोल्लिखित भगवती-आराधनाना आधारे रचाई छे-मां पण आ दृष्टांत आवे छे." हरिषेणना बृहत्कथाकोश (ई० स० ९३१-३२ मां सौराष्ट्रना वढवाणमां रचायेल, संस्कृत पद्यमय) मां त्रिविक्रम-कथानक नामे ९२मी कथा आ ज दृष्टांतविषयक छे.' १. बृहत् कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ५५ २. बृहत् कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ७६. ३. महापुराण-जिनसेन प्रस्तावना पृ० ३४ ४. उत्तरपुराण-गुणभद्र पृ० ५३५-३६ ५. बृहत्कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ७६ ६. बृहत्कथाकोष-मूळ पृ० २१७ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ३९ जयरामे गाथा छंदमां धर्मपरीक्षा नामे कृति रची हती. एने हरिषेणे वि० सं० २०४४ मां अपभ्रंशमां पद्धडिया बंधनां गूंथी. आ धम्माक्खामां तेमज वि० सं० १०७० मां अमितगतिए संस्कृतमां रचेलो धर्म रीक्षामां मधुविन्दु-दृष्टांत होवानो उल्लेख र्डा० उपाध्येए बृहत्कथाकोषना टिप्पणमां कर्यो छे. ' साधारण कविना समकालीन दिगंबर मुनि श्रीचंद्रे अणहिलपुर पाटणमां ज जेनी रचना विलासवई - कहानी रचना पछीना बे त्रण वर्णमां ज करेली छे, तेवी अपभ्रंश 'कहकोसु' मां पण आ कथानक आवे छे. २ जंबूस्वामी विषयक अनेक रचनाओमां आ दृष्टांत संभवे छे. (कारण वमुदेवहिंडीमा जंबूस्वामीना कथानक मां ए दृष्टांत आबेलुं छे.) आवी बे दिगंबर कृतिओ - १. ब्रह्म जिनदास रचित संस्कृत जंबूस्वामि चरित्र (वि. सं. १५२० ) अने २. पं० राजमल्लविरचित संस्कृत जंबूस्वामि चरित्र (वि. सं. १६३२) - मां आ दृष्टांत होवानी नोंध ङ. वी. पी. जैने लीधी छे. उ श्वेताम्बर परंपरामां वसुदेवहिंडी अने समराइच्च-कहानी नोंध लेवाई ज गई छे. त्यारबाद जयसिंहसूरिना धर्मोपदेशमाला विवरणमां आ दृष्टांत सुंदर रीते रजू थयुं छे. आ संस्कृत रचना वि. सं. ९१५ मां थयेल छे. अगियारमी सदीना पूर्वकाळमां प्राकृत जंबूचरियं, जेनी रचना गुणपाल मुनिए करी छे, तेना आठमा उद्देशमां आ दृष्टांत छे. “ हेमचंद्राचार्यना परिशिष्ट - पर्वना प्रथम सर्गमां श्लोक दृष्टांत जंबूचरित्र अंतर्गत आवे छे ५ १९९ थी २२३ सुधी विस्तारथी आ वि. सं. १२७९-१२९० ना समयमा उदयप्रभसूरि-रचित संस्कृत धर्माभ्युदय - महाकाव्यमां पण आ दृष्टांत आवे छे ७ समराइच्च-कहा उपरथी रचायेल प्रद्युम्नसूरिना संस्कृत समरादित्य- संक्षेप ( रचना संवत • (१३२४) मां बीजा भवमां उपनय साथे (श्लोक ३१० - ३४४) आ दृष्टांत आवेल छे. गुजराती भाषामा उपाध्याय यशोविजयजी रचित जंबूस्वामी - रास (वि. सं. १७३९) मां अने पद्मविजयना समरादित्य केवलीनो रास (वि. सं १८३९ ) ० मां बीजा खंडनी पंदरमी दाळमां आ दृष्टांत वणायेल छे. ए उपरांत मधुबिंदुआनी सज्झाय नामे एक स्वतंत्र सज्झाय - जेना कर्त्ता १. बृहत्कथाकोष - टिप्पण पृ० ३८८ २. कह - कोसु ( कथाकोश) पृ० ३५३ ३. जंबूसामिचरिउ - वीर, प्रस्तावना पृ० ६२. ४. धर्मोपदेशमाला - विवरण, कथा ७३ मो, पृ० १४३. ५. जंबूचरियं गुणपाल, पृ० ८३. ६. परिशिष्टपर्व - हेमचंद्र पृ० ६२-६५ ७. धर्माभ्युदय महाकाव्य - उदयप्रभसूरि, संपा० मुनि चतुरविजय तथा पुण्यविजयजी, पृ० ७० ८. समरादित्य - संक्षेप, संपा. जेकोबी. पृ० ५०-६० ९. जंबूस्वामीरास - उपाध्याय यशोविजयजी, संपा० डा. रमणलाल ची. शाह, पृ० ३२-३५ - १०. समरादित्य केवळीनो रास पं०पद्मविजयजी पृ० ६० - ६२. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा कोई चरणप्रमोद छे अने जे केटलाक दशकाओथी जूनी नथी-पण आ दृष्टांत उपर रचायेली मळे छे.' .. आ सुंदर रूपकनु पगेरू ब्राहाण-परंपरामां छेक महाभारत-स्त्रीपर्वमां मळे छे. त्यां पुत्रशोकथी व्यथित धृतराष्ट्रने विदुरजी संसारनुं स्वरूप समजावतां आ दृष्टांत कहे छे. केटलाक फेरफारो सिवाय आ समग्र कथानक श्रमण-परंपराना दृष्टांत जेवू ज छे. बौद्धोना अवदान-साहित्यमां आ रूपक होवानी नोंध डॉ. जगदीशचंद्र जैने तेमना 'प्राकृत जैन कथा-साहित्य' मां लीधी छे. हिन्दु, जैन, बौद्ध उपरांत मुसलमान, खिस्ती अने यहुदी धार्मिक साहित्यमां पण, बोधकथा तरीके सरखं महत्व घरावता, आ बिनसांप्रदायिक कथानकनो प्रसार होवानी शोध डॉ० अन्स्ट कुहने (Ernst Kuhn) करी होवानु विन्टरनित्झ नोंधे छे." (३) त्रीजें सुंदर कथानक अगियारमी संधिमा आवतु हंस-हंसीनु कथानक छे (वि०११. १३-१६). सनत्कुमार चित्रांगद मुनिने विलासवती साथेना पोताना वारंवारना वियोगनु कारण पूछे छे. भयवं किं परभवे आसि, मई पाविउ जे बहु-दुक्ख-रासि ? । बहुवार विलासवई-विओउ, विरहम्मि तीए किं दुसहु सोउ ? ॥११.१३.५ एना जवाबमा मुनि सनत्कुमारने तेना पूर्वजन्मनी वात कहे छे- जेमां सनत्कुमार कांपि. ल्य-नगरनो राजकुमार रामगुप्त हतो अने विलासवती गर्जनकाधिपतिनी पुत्री हारप्रभा हती बन्नेना लग्न थयेल हता. विविध भोगो भोगवता ते नवयुवान पति-पत्नी एकवार गंगाना रमणीय तटे क्रीडार्थे गया. केसर आदि सुगंधी द्रव्योथी तेआ शरर -विलेपन करी रह्या हता. तेवामां एक सुंदर हंसयुगल त्यां आवी चड. हारप्रभाने हंसहंसीने केसरथी रंगीने मजाक करवानो विचार आव्यो. बन्नेए हंसजोडाने केसरनुं विलेपन करी रंगी दीधु. रंग लागवाथी हंसहंसी एकबीजाने चक्रवाक-चक्रवाकी समजवाथी ओळखी शक्या नहीं अने विरहथी झूरवा लाग्यां. थोडी ज वारमा अन्योन्यना विरहथी अत्यंत दुःखी बन्ने मरवा तत्पर थयां. मरवा माटे ते बन्ने पाणीमां पडया. पण पाणीमां पडवाने लीधे विलेपन धोवाई जतां फरीथी ए बीजाने ओळखी गया, अने बची गया. हंस-हंसीने विरह कराववाथी जे अंतराय-कर्म सनत्कुमार-विलासवतीए बांध्यु तेना ज कारणे तेमने आ जन्ममां वारंवार वियोगदुःख भोगव७ पडयु. आ कथानकने तद्दन मळती कल्पना राजशेखर (ई० स० ८५५-९३०)-रचित प्राकृत सट्टक कर्पूरमंजरीमा जोवा मळे छे, नायक चंडपालने केतकीपत्र पर लखी मोकलावेला प्रेमपत्रमा नायकना विरहमां दुःखी नायिका कर्पूरमंजरी लखे छे १. सज्झायमाळा-शा. चंदुलाल छगनलाल, पृ० ४४४-४४६. २. महाभारत-स्त्री पर्व, अध्याय-५-६ पृ० १९-२४ ३. प्राकृत जैन कथा साहित्य-ॉ. जगदीशचंद्र जैन. पृ. ९८ टिप्पण ४. हिस्टरी औफ इन्डियन लिटरेचर, विन्टरनित्झ, भाग १ पृ. ४०९ ५. कर्पूरमंजरी-राजशेखर, संपा० एन० जी० सुरु, प्रस्तावना पृ० १४१ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ४५ हंसि कुंकुमपंकपिंजरतणुं काऊण जे वंचिओ तब्भत्ता किल चक्कवाअघरिणी एस ति मण्णतओ। एहं तं मह दुक्कअं परिणअं दुक्खाण सिक्खावणं । एक्कत्थो वि ण जासि जेण विसयं दिद्वित्तिहाअस्स वि।। (कप्पूरमंजरी-२.८) 'हसीने केशर-विलेपनथी पीळी रंगीने तेना प्रियतम हंसने (में) ठगेलो, जेथी ते हसीने चक्रवाकी मानवा लागेलो. ते मारुं दुष्कृत्य मने ज दुःखनी शिखामण आपनारु बनी गयु के एक ज स्थानमा होवा छतां तु मारी नजरे पडतो नथी .' ए जोई शकाय छे के बन्नेनी कल्पनामां सहेज ज तफावत छे. राजशेखरे आ कल्पना समराइच्च-कहा उपरथी लीधी होवानो संभव छे. कदाच बन्नेनो स्रोत कोई त्रीजी ज प्राचीन कृति होय. (४) विलासवतीनु विद्याधर राजा अनंगरतिए करेलु अपहरण, अशोक-वाटिकामां विलासवतीने केद राखवी, पवनगतिने दूत तरीके मोकलवो, दूत पवनगतिनो अनंगरति साथे विवाद, अंते सनत्कुमारनी अनंगरति परनी चडाई अने युद्ध- आ समग्र कथानक पर रामकथानी स्पष्ट छाप जणाई आवे छे. पवनगतिनु नाम पवनसुत हनुमाननुं स्मरण करावे छे. अशोकवाटिकामांमी विलासवती लंकामां अशोकवनिकामा रहे ली सीतानी आबेहूब प्रतिच्छवि लागे छे.' (५) नायकनु सनत्कुमार नाम, तेनुं चक्रवर्तीपणु, विद्याधरोनो तेणे करेलो पराभव, विद्याधर कन्या- पाणि ग्रहण-आ अंशो जैन साहित्यमा प्रचलित सनत्कुमार चक्रवर्तीनी कथाना केटलांक अंश साथे साम्प धरावे छे जैन परंपामां प्रसिद्ध त्रेषठ शलाका पुरुषो-महापुरुषोमां बार चक्रवर्तीओनो समावेश थाय छे. आ बार चक्रवर्तीओमां चोथा चक्रवर्तीनुं नाम सनत्कुमार छे. अनेक कृतिओ-खास करीने पुराण ग्रन्थो-मां आ सनत्कुमार चक्रवर्तीन चरित्र जोवा मळे छे. आ सनत्कुमारनी कथाना घटकोनुं विगतवार विश्लेषण करी डो. एच.सी. भायाणीए तेमां त्रण घटको समायेला होवान सिद्ध कयु छे. ते त्रणमां बीजो घटक आपणी कथा साथे साम्य घरावे छे.२ (६) विलासवती अने सनत्कुमारनी तापस-आश्रममांथी विदाय शाकुन्तलना चोथा अंकनी यादी आपे छे. ३ (७) विलासवती प्रियतम विरहथी दुःखी थई, लतापाशथी गळे फांसो बांधी मरवा तत्पर बने छे ते प्रसंग श्रीपनी नाटिका रत्नावलीमां आवता सागरिकाना लतापाशवडे फांसो खाई मरसाना प्रयत्न स.थे घणो मळनो आवे छे. (८) विलासवई -कहा (६. १-७)मां आवतुं मनोरथ-पूरण शिखरनुं कथानक अंधश्रद्धा अने वहेमनी ठेकडी उड़ाडतुं एक सुन्दर कथानक छे. एमां आवतुं मनोरथ-पूरण शिखर, १. वाल्मीकि रामायण २. सणतुकुमार चरिय-संपा. डो० एच. सी. भायाणी, एम. सी. मोदी-प्रस्तावना पृ०३-१३. ३. अभिज्ञान शाकुन्तल, अंक-४ ४. रत्नावली -श्रीहर्ष , संपा०सी० आर० देवधर अने एन० जी० सुरू पृ० ६३ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ विलासबई कहा एन नाम सूबवे छे तेम, तेना परथी पडीने मरनारनी इच्छा संतोषे छे-पूरे छे. सोमदेवना कथासरित्सागरमां आवो ज एक कथा छे.' जेमां नायक मनमान्या पत्नी-मित्र मेळववा शिखरेथी पडतुं मूके छे - भार्यामित्रे इमे एव भूयास्तां स्मरतो मम । अन्यजन्मन्यपीत्युक्त्वा हृदि कृत्वा च शंकरम् ॥१६४।। मया गिरितटात्तस्मान्निपत्य प्रसभं ततः । ताभ्यां स्वपत्नीमित्राभ्यां स मुक्तं शरीरकम् ॥१६५॥ (कथासरित्सागर लं०४.) 'तदनन्तर मानव-शरीर छोडवानी इच्छाथी में अन्तिम काळे ए कामना करी के पछीमा जन्ममां पण ए ज बन्ने मारा पत्नी अने मित्र थाय . आ प्रमाणे मनमा शंकरखें ध्यान करीने पर्वत-हिमालयना शिखर परथी पडीने मित्र अने पत्नी साये में देह छोड्यो'. ७. विलासबई-कहा साथे नाम-साम्य धरावती इतर रचनाओ विलासवई-कहा साथे नाम-साम्य धरावती केटलीक संस्कृत-प्राकृत कृतिओ के कृतिओना उल्लेखो मळे छे. तेनी अहीं नोंध लेवी अनुचित नहीं गणाय. (१) सौथी प्रथम उल्लेखनीय छे प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचंद्रसूरिना शिष्य कवि देवचंद्र गणि-विरचित संस्कृत नाटिका विलासवती. अद्यावधि आ नाटिकानो उल्लेख मात्र मळतो हतो. परंतु ला० द० विद्यामं देर, अमदावादना हस्तप्रत-संग्रहमांथी आनी एक अपूर्ण प्रत मळी आबी छे.' पांच अंकनी आ नाटिका विलासवती अने सनत्कुमारनी प्रणयकथानो ज विषय लई रचाई छे. तेना पांव अंकोना नान आ प्रमाणे छे - (२) विलास वती-लाभोपायः । (२) विलासवती-लाभः । (३) देशान्तर-गमन-मन्त्रः । (४) विलासवती-विप्रलम्भः । (५) विद्याधर-चक्रवर्तित्व-लाभः । अंकोनां नाम परथी जणाय छे के आमां सनत्कुमार चक्रवर्तीपद प्राप्त करे छे त्यां मुधीनी कथा वणो लेवामां आवी छे. नाटिकाना प्रशस्ति-लोको नीचे आप्या छ - धवलयति कलाभिर्यावदिन्दुस्त्रिलोकी हरति तिमिरभारं भानुमानेष यावत् । अभिनव-चरितार्थ नाटकं तावदेतत् प्रथयतु जगति श्रीदेवचन्द्रस्य कीर्तिम् ।। १. कथासरित्सागर - भा० १ पृ० ४५०-५१ २. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ०२८० (पेरा०४०१) ३ ला० द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावाद, प्रति नं० ३६६२ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना जीयाज्जैनमतान्तरिक्ष तरणिः प्रज्ञाहुताशारणिलोन्मुद्रित शेष भाग्यसरणिः श्रेयः सुधासारणिः । सर्वाकारपरोपकारविपणिः श्रीचित्रचिन्तामणिः लोकाविष्कृतकीर्तिधौतधरणिः श्री देवचन्द्रो गणिः || (२) उद्योतनसूरिनी प्राकृत कुवलयमाला ( रचना ई० स० ७७९) मां कोई हालिक कविनी विलासवती - कथानो उल्लेख होवानुं आ० जिनविजयजीए जणायुं छे.' पण आ कृतिनी कोई प्रति के बीजा कोई स्थळे आनो उल्लेख पण मळतो नथी. वळी कुवलयमालानी प्रस्तानामां तेना विद्वान सम्पादक डो० आध्ये पण कुवलयमालामां उल्लिखित अन्य कविओ कृतिओना नामोमां आवा कोई कवि के कृतिनी नोंध लीधी नथी. * (३) जिनरत्न कोषमां डो० वेलणकर, साधारणकृत विलासवई - कहानी साथे साथे ज एक लक्ष्मीधर महर्षित 'विलासवई - कहा ' नी प्रति जेसलमेरना भंडारमां होवानुं नोंघे छे. परन्तु आ माहिती भ्रामक जणाय छे, कारण के जेसलमेरना बन्ने सूचिपत्रो आवी कोई कृतिनी नोंध आपता नथी. वळी साधारण कविनी 'विलासवती' नो प्रशस्तिमां साधारण कविने काव्य रचवा प्रेरनारनं नाम 'लच्छीहर साहु' (लक्ष्नीवर साधु ) एवं आपेल छे, " ते नामते भ्रमथी कनुं नाम मानो लई, विलासवई - कहा लक्ष्मीधर साधु महर्षिनी रचना होवानुं मानी लीधुं जणाय छे. 8 (४) पाटण - सूचिपत्रमा एक संस्कृत विलासवती - कथा नोंधायेल छे. ५२२ गाथा प्रमाणनी आ गद्यकथानुं विषय वस्तु शुं छे ते जाणो शकायुं नथी. पण ते शील विषये छे, तेवी नोंध छे. तेनो रचना - समय अज्ञात छे, पण जे ताडपत्रीय हस्तप्रतमांथी ते मळे छे तेनो समय चौदमी शताब्दी आसपासनो होई, कृतिनी रचना ते पूर्वेनी मानी शकाय ४३ (५) विश्वनाथ ( १४ मी सदी) साहित्यदर्पणमां विलासवती नामे एक नाट्यसकनो उल्लेख करे छे." पण तेनां विषय-वस्तु के कर्त्ता विशे कोई माहिती तेथे आनी नथी. (६) प्राकृतसर्वस्वना कर्त्ता मार्कण्डेय ( ई०० १७ मी सदी अनु० ) पोते ज रचेल एक विलासवती - सहकनो उल्लेख करे छे. प्राकृत - सर्वस्व (५.१३१) मां उदाहरणरूपे तेणे तँ नाकानी निम्नलिखित बे पंक्तिओ पण आपी छे पाणा गओ भमरो लब्भइ दुक्खं गईदेसु । अने सुहाअ रज्ज फिर होइ रण्णो । परन्तु आना कथावस्तु के पात्रो विशे कोई माहिती उपलब्ध नथा . १. कुवलयमाला भा-१ ( किंचित् प्रास्ताविक, पृ०१३ ) २. कुवलयमाला भा - २ Introduction P. 76 ३. जिनरत्नकोष पृ० ३५८ ४ जुओ जेसलमेर सूचिपत्र - इलाल अने जेसलमेर सूचिपत्र - मुनि पुण्यविज्ञ पंजी विलासवई कहा - प्रशस्ति पृ० १९५. ५. ६. पाटण सूचिपत्र - दलाल पृ० १७६ ७. साहित्य-दर्पण, विश्वनाथ पृ० ३४७ ८. प्राकृत - सर्वस्त्र मूल पृ० ६५, प्रस्तावना पृ० १८-१९ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७-विलासबई-कहामां देखाता समाजजीवननी रूपरेखा इतिहासेतर कथावस्तु धरावता काव्यादिना वर्णनोमां कल्पना प्रधान भाग भजवती होय छे. विलासवई-कहा पौराणिक कथावस्तुवाळी होवाथी अने वळी ए वस्तु पण समराइच्च-कहा पर मोटा भागे आधारित होवाथी एमांना घणा वर्णनो परंपराप्राप्त छे. छतां कोई पण लेखकना लेखनमां तेना समयनुं समाजजीवन अनायास वणाई जाय ज. विलासर्वई-कहामां पण अनेक वर्णनस्थळो आवां छे, जेमा साधारण कविना समकालीन सनाज, राज्य, धर्म वगेरे अनेक पासा पर ओछो वधतो प्रकाश पडे छे. राजकीयः विलासवई-कहानी रचना थई ते समये गुजरातमां सोलंकी वंशना राजा कर्ण पहेला (वि० सं० ११२०-५० )नुं शासन तुं'. पण तत्कालीन राज्यप्रकरणविषयक कोई उल्लेख कृतिमां नथी. दूतप्रेषण, मंत्रणा, सैन्यप्रयाण, युद्ध वगेरेना वर्णनो परंपरागत छे. छतां ए वर्णनोमांथी कविना समयनु जीवन आर्छ आर्छ तारवी शकाय छे. ते काळे राजकाज अने युद्धमा राजपूतोनी बोलबाला हती. राजपूतो शूरा, लडायक अने युद्धप्रेमी हता. शरणागत माटे प्राण आपवो ए टेकीला राजपूतोने रमत हती. राजाज्ञानो डर सर्वत्र हतो. ईशानचंद्र राजाए सनत्कुमारने मरावी नाख्यो ते जाणी नाराज थयेला वेपारी-वाणिया तेमनी पारसी ( सांकेतिक भाषा) मां जे घुसपुस करे छे ते रमूज साथे ज राज्यदंडनी बीकनु स्मरण करावे छे. (९.२३) - लडाईना आयुधोना घणा नामोनो उल्लेख अहीं छे. पण तेमनो आकार-प्रकार केवो हतो ते विशे कई निर्देश नथी. तेमांना तरवार, धनुष्य-बाण, भालो, गदा, छरी, त्रिशूल, लाठी, वन, शक्ति वगेरे भारतभरमां प्राचीन काळथो जाणीता छे. ज्यारे वावल्ल, सेल्ल, फलह, कुंटि अत्यारे ओळखी शकाता नथी. नगर अने नगरजनोः नगरो विशाळ अने विविध बजारोथी शोभता हता. उत्सव-प्रसंगे ठेरठेर तोरणो, धजा-पताकाओ बांधवामां आवती. लोको उत्सवाप्रेय हता. वसंतनो उत्सव युवानोनो प्रिय उत्सव हतो. त्यारे लोको विविध आसवो पीता, गीत-नृत्य अने चर्चरीथी वातावरण उल्लासमय बनतुं, घरे घरे युवतीओ हिंडोळे हिंचती नजरे पड़ती. (१. ६-७) राजा जेवी व्यक्तिना स्वागतप्रसंगे नगरो नबुं रूप धारण करता, दुकानोनी शोभा वधी जती, जगाए जगाए तोरणो बंधाता, चोरे-चौटे साथिया पूराता अने गोपुरोमां वंदनमालाओ बांधवामां आवती, कमळथी ढांकेला पूर्ण कलशनी स्थापना थती अने धवल-गृहोमां पुतळीओ ऊभी कराती. (८.२८) उच्चवर्गना लोको समय पसार करवा माटे वीणा-वादन, कथाश्रवण, उद्यानक्रीडा, काव्यविनोद अने प्रहेलिका-ऊखाणाओ आदिनो आश्रय लेता. (१०. २५-२६) पुत्र-जन्मने उत्सव मनातो. समाजमां स्त्री करतां पुरुषतुं स्थान ऊंचु गणातुं. पुत्रीना लग्न माटे सदा पिताने चिंता रहेती. गृड्-कारभार पिताने हस्तक हतो. वर्णाश्रम विशे कोई उल्लेख नथी. लग्नमां विधि करावनार पुरोहितनो उल्लेख छे. ब्राह्मणो लग्नादि विधि तथा ज्योतिषनुं काम करता. क्षत्रियोन मुख्य कार्य लडाईनु हतुं. वैश्योमां १. गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास, भा० १, पृ० २३० २. जुओ परिशिष्ट-६. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वाणिया-वेपारीनो उल्लेख छे. शूद्रोनो उल्लेख नथी. बर्बरिका चेटी-दासीनो उल्लेख नोंधपात्र छे. (१. १४-१५) बर्बर के यवन देशनी मूल निवासी स्त्री - बर्बरिका. बीजा प्राचीन ग्रंथो अने संस्कृत नाटकोमा पण बर्बरिका के यवनीना उल्लेखो मळे छे. विवाह : ___समराइच्च कहामा सनत्कुमारने मात्र विलासवती एक ज पत्नी हती एवो उल्लेख छे, ज्यारे विलासवई-कहामां चक्रवर्तीपद पाम्या पछी सनत्कुमारने अनेक राजाओए पोतानो कन्याओ पर. णान्यानो उल्लेख (९. ३८) छे. आ परथी ते काळे पण प्राचीनकाळनी जेम बहुपतीत्वनुं महत्त्व हतु ते सूचवाय छे. वळी सनत्कुमारना चंद्रलेखा साथेना विवाहनो प्रसंग कविए खास उमेरेलो छे (१०. ३-६). तेमां तत्कालीन विवाहविधिनु हूबहू वर्णन छे. विवाह माटेनु शुभ मुहूर्त जोवरावी, स्नेही-संबंधिोने आमंत्रण पाठवायां पछी मोतीना चोक पूराया, मनोहर आसने बेठेला कुमारनी सामे पूर्णकु भनी स्थापना करवामां आवी. चंदन-दहिदुर्वांकुर वगेरे वांदवामां आव्या. त्यारबाद अनेक वाहनो-परिचरो-स्नेहीओना समूह साथे, उत्तम मुहूर्ते वाजिंत्रोना नाद साथे सनत्कुमारनी जान जोडाई. श्वसुरना नगरे पहोंचतां ज सनत्कुमारना श्वसुर राजा वज्रबाहुए सपरिवार सामे आवी जाननु सामैयु कयु, पछी जानने श्रेष्ठ उतारो आपवामां आव्यो. स्तान, विलेपन, भोजन, तांबुल आदिथी सर्वनी सरभरा करवामां आवी. पछी शुभ चोघडिये वाजिंत्रोना रव साथे ठाठथी वर-यात्रा नीकळी. राजद्वारे पहोंचतां ज स्त्रीओए आगळ आवी कुमारना ओवारणा लीधा. दहि, अक्षत, चंदन वादवामां आव्या. कुमारनी आरती उतारी, लूण उतारवामां आव्यु तथा धुंसरं अन सांबेलुं बताववामां आव्यां. अंगारा भरेला कोडियाना संपुटने पग तळे कचरीने सनत्कुमार वधूभ्राता अनिलवेगनो दोरातो वधूना निवास स्थाने आवो पहोंच्यो. त्यां अनेक स्त्री ओए वरनो मार्ग रुंध्यो अने पोतानु दाण माग्यु. हर्षपूर्वक कुमारे दाण आप्यु अने भवनमा प्रवेश कर्यो, ज्यां रत्नमोतीना आभरणो अने उपर श्वेत वस्त्र पहेरेली नवोढा चंद्रलेखा मार्तृकाओनी समक्ष बेठेली हती. नववधूने घूघट खोलाववा माटे साळीओ वगेरेने माग्या मुजब दाण आपी संतोषवामां. आवी. पछी मंगळ गीतो साथे वरकन्यानो हस्तमेळापविधि संपन्न थयो. पछी अत्यंत शोभायमान चोरीमा वरे कन्यानो हाथ पोताना जमणा हाथमां लई मंगलफेरा फरवानी विधि अग्निनी साक्षीए करी. चारे फेरामां कन्याना पिताए वरने अढळक धन, सुवर्ण, रत्नो, वस्त्राभरण, राचरचीखें अने वाहनादि आप्यां. पतिना अभ्युदयमां विलासवतीए पण नृत्य करीने भाग लीधो. बहु खानपानसमेत उत्सव संपन्न थई गयो. जाने विदाय लीधी. हजार वर्ष पूर्वेना गुजरातना उच्च-वर्गना लोकोनी विवाहविधि उपर आ वर्णन सारो प्रकाश पाडे छे. तेमांनी घणी विधिओ गुजरातमां आज पण प्रचलित छे. वाजिंत्रोः __ कविए वर्णवेला वाद्योमा घणा तत्काले वगाडातां हशे एम जणाय छे. सैन्य-प्रयाण, युद्ध, लग्न अने बीजा मांगलिक प्रसंगोमां वाद्यो वगाडाववानो रीवाज प्राचीन छे. ते समये वगाडवामां Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा आवता वायोमाथी कसाल, शंख, झालर, डमरू, वीगा वगेरे आज पण प्रचलित छे. ज्यारे ढक्का, मुरव, चक्क, अने मद्दल अत्यारे वोसरायां छे.' वनस्पतिः - ___ साधारण कविने वृक्ष-वनस्पति प्रत्ये घणो प्रेम होवो जोईए. एमणे सो उपरांत वनस्पतिना नाम, उद्यान-वर्णनना प्रसंगे गणाव्या छे.' आ बर्ध बनस्पति अक साधे अकठी होवो दुर्लभ छे. परन्तु अहीं उल्लिखित बधी वनस्पति विशाळ भारतमा ए काळे उगती अने जाणीती होवानुं अनुमान करी शकाय. भोजन-समारंभः . विलासवई-कहामांनुं सनत्कुमारना भोजन-समारंभy वर्णन तत्कालीन कृतिओमां अनोखं ज छे. एमां कविना समयमा खवाता अनेक मिष्टान्न, पक्वान्न अने शाकभाजीनां नामो आवे छे. एक ज टंके जोके ए बधां खवातां होय ते शक्य नथी, परन्तु वर्णन खातर काव्यमां ते बधा एकत्र रजू करवामां आव्यां छे. देवगुरुपूजन करोने, दानादिक दईने पछी सपरिवार सनत्कुमार भोजन शाळामां जाय छे. सौ प्रथम द्राक्ष, खजूर अने खडहडिय (आ कोई फळ होय तेवु लागे छे, पंदरमी सदी लगभगमा थयेला साधुराजगणिनी 'भोज्यादिनामगर्भिता जिनस्तुति' मां खडहडी नामे खाद्यपदार्थनो बीजा फळो साथे उल्लेख छे) साथेनुं वर्षोलक'- एक मिष्टान्न पीरसायुं. ते खाईने हाथ धोया पछी सेंधव लवण साथेनां सालण (ए कोई मीठामा आथेली वस्तु होय तेवू डा० सांडेसराए नोध्यु छे.) पीरसायां-त्यारबाद काकडी, गाजर, आदु कुंवारनो गर्भ (?), केरडा, करमदां, वांस, आमळा, वेंगण इत्यादिना अथाणां (विविह संघाणयं) पीरसायां. पछी घउं-चोखा अने मगनी दाळना लोटना बनेला, कालागुरु अने हिंगथी सुवासिन, त्रण प्रकाग्ना पापड पीरसाया. ए पछी खांड अने गोळना विविध मिष्टान्न अव्यां. पछी चणानो लोट नाखेला, काशमर्दथी वघारेला रिंगणा अपायां. तिंडिस (?), काचरी, आंबोळिया अने खांडभरेला तुर्डरिया (?) पीरसायां. अनेक प्रकारनी वडी-पट्टवडी, बोरवडी अने वडा-आदुवडा, मरचावडा, खीरवडा, दुधवडा पण पीरसायां. शाकमां कविए कंचणार, केरडा, तर्कारी, फोग, सरगवो, पडोळा, कंकोडा, कारेला, रीगणां, कालिंगडा, काकडी, करमदां, सूरण, टिंट (?) वगेरे नाम गणाव्यां छे. मिष्टान्नमां खांडना घेबर, फेणी, सुंवाळी, कंसार, मुरकी, कोक्करी (?), लापसी, लावणा मोतिया अने सिंह केसरा एवा त्रण प्रकारना लाडु, अढ़ार जातना खाजा अने पछी शिखंड पीरसायो. बधु आरोग्या पछी सुंठ, मरी अने खांड नाखेलु कढेलु तरियुं दूध पीरसायु. अन्ते हाथ-मों साफ करवाना उबटन थी साफ करीने बधाने पानबीडा आपी पछी पोतानु पानबीडुं लईने कुमारे सभास्थानमां बेठक लीधी (८. ३५-३८ ). १. जुओ परिशिष्ट-७ २. जुओ परिशिष्ट-३ ३. जुओ परिशिष्ट-५ ४. जैन स्तोत्र संग्रह, भा० २, ५. वर्णक-समुच्चय भा० २ पृ० १९९ ६. वर्णक-समुच्चय भा० १ पृ० १८ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना अहीं आवती अनेक वानगीओमांथी मोटा भागनी अत्यारे पण गुजरातमां प्रचलित छे. भोजन पछी तांबुल पान खावानो रीवाज घणो जूनो छे. आभ्रंश काव्योमा घणीवार 'सवाण तंबोलु ' ( सवर्णक ताम्बूल ) नो उल्लेख जोवा मळे छे. तंबोल - नागरवेलना पानमां वर्णक एटले सुगंधीदार मसालो नाखवामां आवतो. विलासवई कहा मां नायिका विलासवतीए तेना प्रिय. तम सनतकुमारने आयुं पान बीजा उपहार साथे मोकल्यानुं वर्णन छे. (१.२६ ) ते पानमां कक्कोल, एलायची, जाईफल, कपूरवेलोना पान, सोपारी इत्यादि नाखेल हतुं अने जे नवा खेर अने केरीना स्वादवाळु हतुं. मित्रोनी मिजलसमां पण तांबुल आपवानों रीवाज हतो ( ९. १० ) एक जगाए पंचवासु तंबोलु ( पांच प्रकारना सुगंधि पदार्थोवाळु पान ) नो उल्लेख पण छे. ( १. २४) धर्मः - ४७ ते काळे लोको धार्मिक आस्थावाळा हता. अनेक लौकिक देवताओनी पूजा प्रचलित हती. शैव संप्रदायना जोर साथै ज गुजरातमां जैनोनो श्वेताम्बर संप्रदाय बळवान बनी रह्यो हतो. हेमचन्द्राचार्या समय सुधीमां तो एणे राज्याश्रय पण प्राप्त करी लीधो हतो. साधारण कविए महादेव ने बीजा लोक - प्रसिद्ध देवताओनां शिथिलाचारनी निन्दा करी छे, ( ११.२९) ते शैवो अने सनातनीओ साथेना जैनोना विरोधन सूचन करे छे. चमत्कारिक गणाता देव-देवीओ थी लोको डरता महाकालीदेवीना प्रक्रोपनी वात तेनु उदाहरण छे. (७.७) अशांति निवारण माटे बलि चडाववानुं, यज्ञयागोनुं अने सिद्धायतनोमां पूजोपचारनु वर्णन (७५) सामान्य जनोमां प्रचलित क्रियाकांडनी महत्ता दर्शावे छे. संसार त्याग करनारा साधु-सन्यासीओनुं लोकोमां बहुमान हतुं दीक्षार्थी प्रत्ये लोको अहोभावथी जोता. जैन उपदेशको देशकाळने अनुसरी सामान्य जनोने उपदेश आपवा माटे भय अने प्रलोभननो शैलीनो उपयोग करता धर्मपालनथी थता अलौकिक भौतिक लाभो अने स्वर्गीय सुखो तथा धर्मविमुखताथी थती हानि अने नरकनी यातनाओना कल्पनासभर चित्रो, इतर तत्कालीन कृतिओनी जेम विलासवई कहामां पण देखाय छे. (९.५-८) जैन तीर्थोमां शत्रुंजयनं अत्यंत माहात्म्य हतु (११.३८) वारतहेवारे लोको नगरना बघा देवळोनी यात्रा करता. (१.६ ) ज्योतिष, नैमित्तिकोनी भविष्यवाणी अने शुकन अपशुकन: ते काळे लोकमानस आज करतां विशेष वहेमी अने शुकन अपशुकनमां माननारुं हतुं. ज्योतिषनी तो वे लबाला होय तेम जणाय छे, पुत्र जन्म, लग्न, दीक्षा वगेरे प्रसंगमां ज्योतिपीओने पूछीने निर्णय लेवामां आवतो. सनत्कुमारना जन्मसमये सांवत्सरिकाए तेना विद्याधरचक्रवर्तीवनी आगाही करी दीघेली (१.३) सनत्कुमारना चंद्रलेखा साथेना लग्ननुं मुहूर्त कविए --पोतानुं ज्योतिष ज्ञान दर्शावतां - विस्तारथी वर्णव्युं छे. (१०.२) विलासवई कहामां देखाती ते काळनी शुकन अपशुकननी मान्यताओ हजु ये केटलाक अंशे भारत ने खास करीने गुजरातमां देखा दे छे. विनयंधरने जुदा जुदा प्रकरनी छोंको द्वारा सनकुमारनी निर्दोषता समजाई गयेली (२.१४-१८). छींक उपरथी शुकन अपशुकन जवानुं आखुं एक शास्त्र होय तेम लागे छे. एवी ज मान्यता स्वप्नफल विषयक छे. सनत्कुमारने शुभ स्व नवरा स्त्री लाभनो सूचना मळे छे. (३.३१) अनंगरता सैन्यप्रयाण वखते थयेला अनेक आशुनोनी यादी (८.६ - ७) कविना समयमा प्रचलित अपशुकनोनी यादी बनी छे. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. छंदोरचना विलासवई - कहा अगियार संधिमा विभक्त छे. अगियारे संधिना नाम तथा कडवकोनी संख्या नीचे मुजब छे -- संधि नाम १ सणकुमार - विलासवई -समागमो नाम ... संघी २ विणयंधर - संधी... २७ २३ २३ २३ ३१ ३३ २९ ३८ ३४ १० जणय समागमो नाम... संधी... २७ ११ सणकुमार - विलासवई - निव्वाणगमणो नाम.... संधी... ३९ विलासवई - कहा नी बन्ने प्रतोमां प्रथम अने अन्तिम संधिना नाम नथी. पं० बेचरदासजी दोशी ते बे संधिना जे नाम सूचवेला ते अत्र आप्या छे.' अगियार संधिना मळी कुल ३२७ कडवक थाय छे. नानामां नानुं क्डवक ८ पंक्ति एटले के १६ पादनुं (संधि - ४, कडवक - ९ तथा संधि - ६, कडक - २५ ) छे अने मेटामां मोटुं कडक ५२ पंक्ति एटलेके १०४ पाद के चरणनुं ( संधि - ११, कडवक - ३२) छे. पण मोटा भागना कडवको १० थी ९२ पंक्तिना छे. दरेक संधिना प्रारम्भे एक श्लोक - ध्रुवक छे. ते पछी प्रथम कडवक शरू थाय छे. दशम संधिना प्रथम चार कडवकमां पण प्रारम्भे जुदा छंदमां एक एक गाथा मळे छे. सिवाय समग्र कृतिमां कोई कवकमां आद्य गाथा नथी. दरेक कवकना अन्ते घत्ता रहेल छे. ३ भिन्न वहण संधी... ४ विज्जाहरी - संधी... ५ विवाह - विओय - संधी .... ६ विज्जा - सिद्धि- संधी ... ७ दुम्मुह - वहो नाम... संधी... ८ अनंगरइविजय- रज्जाहिसेय- संधी ... ९ विणयंधर- संयोगो नाम.... ... संधी... कडवक-संख्या दरेक संधिना अंतिम घत्तामां कविए श्लेषपूर्वक पोतानुं नाम 'साहारण' युक्तिथी गुंथी लीघेलुं जोवा मळे छे. संधिना आद्यश्लोक - ध्रुवक - अने ते ते संधिना कडवकोना अंतिम श्लोक - घत्ता-ना छंद एक ज छे, ज्यारे कडवकना छंदो अने घताना छंदो अपभ्रंश संधिबंध काव्योमा सामान्य रीते होय छे तेम जुदा ज छे. नीचे पहेला कडकना अने पछी ध्रुवक ने घत्ताना छंदोनु विश्लेषण कर्तुं छे. कडवकना छंदो:-- १) पद्धडिया (सं० पद्धति के पद्घटिका ) कवकोना छंदोमां साधारण कविने पद्धडिया प्रिय छंद लागे छे. ३२७ कडवकोमांथी २३८ कवकोमां ते वपरायेल छे. लक्षण:- चार चतुष्कल गण ४ x ४ = १६ मात्रा अने अंतिम अनुप्रास. १. भारतीय विद्या पत्रिका, वर्ष-५, अंक - ४-५- ६. पृ० २२, Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधारण कविना पद्धडियामा अन्त्य चतुष्कल नियमित रीते 'ज' गण छे. नीचेना संधि अने कवकोमां पद्धडिया वपरायेल छे संधि १ २ ३ ४ t us 9 ८ ९ १० ११ संधि १ ३ ४ प्रस्तावना ६ ७ (२) वदनक लक्षणः- ६+४+४+२ = १६ मात्रा, अन्त्यानुप्रास, समचतुष्पदी. नीचेना संधि - कsasोमां ते वपरायो छे कडवक ७ १-६, ९-१४, १७, २०-२३ ३ कडवक १-६, ९-२२, २४-२७ १-७, ९-१५, १७-२३ ७, १९ १-२, ४-८, १०-२३ १७, १९, २१, २६ १-१८, २०-२४, ३१, ३३ १-११, १३-१७, १९, २२-२६, २८-२९ १-४, ६-८, १०, १२, १४-१६, १८-२६, २८, ३०-३२, ३४, ३८ १-२६, २८-३४, १-४, ६-८, १० १४, १६ २०, २२-२७ १, ३-१८, २०-३१, ३३-३७ ८ ९ १० ११ कुल ५१ कवकोमां वदनक छंद छे. १-३, ५-१४, १५ (पंक्ति १ थी ८), १८, २२-२३, ३१ १९ १२, २१ ५, ११, २७, ३३, ३७ २७ १५ ३२ (पंक्ति १-२४), ३८-३९ (३) मदनावतोर लक्षण: - चार पंचकल गणो, ४ x ५ = २० मात्रा, समचतुष्पदी, पादान्त अनुप्रास. संधि २ ३ ४९ कडवक १६ ८, १५, Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासबई-कहा १६, २० ३२ (पंक्ति ४५-५२) कुल १० कडवको आ छंदमां रचायेला छे. (४) पादाकुलक लक्षणः---गणव्यवस्था नथी, आदि 'ज'गण निषिद्ध, कुलमात्रा १६, अत्यानुप्रास, समचतुष्पदी नीचे मुजबना ८ कडवकोमा आ छंद मळे छे. कविए घताना छंद तरीके पण आ छंद प्रयोज्यो छे, जेनी नोंध घत्ताना छंदोमां लीधी छे. संधि कडवक २४ थी ३० ९, १७ लक्षणः -४ पंचकल, २० मात्रा, दरेक पंचकलनो अंत्य गुरु (लदादा लदादा लदादा लदादा) नीचेना कडवकोमा मळे छेसंधि कड व क nan - " लक्षण-४ पंचाल, २० मात्रा, दरेक पंचकलनो अंत्य लघु (दादाल दादाल दादाल दादाल) नीचेना कडवकोमा मळे छे संधि कडवक ६ १८ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना लक्षणः ---१० मात्रा, २ पंचकर, अंत्य लघु, ( दादाल दादाल.) नीचेना कडककोमा मळे छे संधि कडवक २७ ३. (पंक्ति २५.४४) (८) रासावलय लक्षणः- २१ मात्रा-अंतिम 'न' गण साथे, १४ मात्रा पछी यति, अंत्यानुप्रास. संधि-३ ना कडवक १८ मां आ छंद वपरायो छे. (९) प्रमाणी लक्षणः- लधुगुरु x४ = १२ मात्रा अथवा 'ज' गण 'र' गण अने अंते लघु-गुरु. आखा काव्यमा एक मात्र मात्रावृत्त 'प्रमाणी' ज मळे छे.' नीचेना कडवकोमा ते प्रयोजायो छे कडवक ५, १५ (पंक्ति ९-१४) संधि ३२ ४ १ २७ (१०) करिमकरभुजा लक्षण- १ चतुकल+ज गण-८ मात्रा संधि- ६ कडवक २९ मां आ छंद वपरायेल छे. (पंक्ति ४ मां अंते ऋण लघु छे.) लक्षण १० मात्रा, बे पंचकल, प्रथम पंचकलनो अंत्य लघु, बीजानो अंत्य गुरु, (दादाल दालदा ) संधि ७ कडवक २० (१२) ? लक्षण- १२ मात्रा (दाल दाल दाल दाल) संधि ६ कडवक ३० १ आ प्रमणी-छंद समराइच्च-कहामां पण वपरायेलो छे. (जुओ समराइच्चकहा पृ. ३७२ पंक्ति १-८) Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहाँ घत्ता तथा ध्रुवकना छंदोः(१) षट्पदी छड्डणिका लक्षण- १० + ८+ १३-३१ मात्रानी बे पंक्ति १० अने १८ मात्राए यति, पाद-१-२, ४-५, ३-६ अंत्यानुप्रास. संधि १, ८ अने ११ ना ध्रुवक अने घत्ता मां आ छंद प्रयोजायो छे. हेमचंद्राचार्ये आ छंदने द्विपदी मां गणाव्यो छे. हेमचंद्रे आपेला उदाहरणमां पण दश अने अढार मात्रा पछी यति छे, परन्तु अनुप्रास मात्र ३१ मात्रा पछी छे. एटले के हेमचन्द्राचार्ये बे ज पाद मान्या छे.' पारे स्वयंभू-छंद मा छ पाद गणी पहेला-बीजा, चोथा-पांचमा अने त्रीजा-छट्ठा पादना अंते प्रास गणावेल छे. साधारण कविए सर्वत्र आ बीजा प्रकारनी छड्डणिका प्रयोजेल छे. (२) पादाकुलक लक्षण:- गणव्यवस्थारहित, १६ मात्रा, अंत्यानुप्रास. संधि ६ अने ९ ना ध्रुवक तथा पत्ता मां आ छंद छे. कडवकोमा आवेल आ छंदनी नोध आगळ आवी गई छे. (३) पारणक लक्षण- १५ मात्रा प्रति चरण. संधि- १० कडवक १-२-३ घत्ता तथा घुवक. ? (आंतरसमा चतुष्पदी) मात्रा २१, यति ११, १० संधि ५ तथा ७, बधा कडवक-घत्ता तथा ध्रुवक (५) ? (आंतरसमा चतुष्पदी) मात्रा २९, यति १३, १६ संधि ४ बधा घत्ता तथा ध्रुवक (६) ? (आंतरसमा चतुष्पदो) मात्रा ३०, यति १४, १६. संधि-३ बधा घत्ता-ध्रुवक (७) ? (आंतरसमा चतुष्पदो) मात्रा २८, यति १५, १३ संधि-२ बधा घत्ता ध्रुवक ? (आंतरसमा चतुष्पदी) मात्रा २८, यति १६, १२ संधि-१० कडवक ४ थी २७ ना घत्ता. प्राकृत भाषामां रचायेल कवि-प्रशस्ति प्रसिद्ध आर्या छंदमां छे. १. छन्दोनुशासन ७. १७. २. दसकलपरिबद्धहे, अट्ठणिबद्धहे, तेरहकल संभाविअहे । पढमविदिअपअ कुणु, तइअ पुणु विउणु, छइडणिआ छप्पाइअहे ।। स्वयंभू० ८ ११ (८) ? Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. भाषा अने व्याकरण ई. स. १९१८ मांडॉ. याकोबीए भविसयत्तकहा प्रसिद्ध करी त्यार थी मांडी आज सुधी. मां घणा अपभ्रंश ग्रंथो प्रकाशित थई चूक्या छे. अने अनेक विद्वानोए अपभ्रंश भाषा अने साहित्यना विविध पासाओनी छणावट करी छे. गुजराती, मारवाडी अने पश्चिमी हिंदी बोलीओ जेमांथी विकसी आवी ते अपभ्रंश भाषा ईसवी पांचमी सदी आसपास भारतना पश्चिम कांठानी निवासी प्रजाओनी बोलचालनी भाषा हती अने पाछळथी पंडितो द्वारा तेमां साहित्य लखायाथी साहित्य-भाषा बनी स्थिर थई तेटलो हकीकत तो लगभग सर्वस्वीकृत छे. आ स्थिर साहित्यीक के शिष्टपान्य अपभ्रंशने विद्वानोए नागर अपभ्रश कह्यो छे.' __ अपभ्रंशनुं व्याकरण आचार्य हेमचन्द्रसूरिए पोताना सिद्ध हेमशब्दानुशासनमां अष्टम अध्याय (पाद-४,सूत्र ३२९-४४८) मां उदाहरणो साथे अप्युं छे. हेमचन्द्राचार्यनी संचयलक्षी दृष्टिने कारणे तेमणे आपेला उदाहरणोमां अपभ्रंशना बोलीभेदोनी भात जणाई आवे छे. परंतु एमणे प्रतिपादित करेल अपभ्रंश एकंदरे नागर अपभ्रंश छे.२ विलासर्वई-कहानी भाषा आ नागर अपभ्रंश छे. अपभ्रंश व्याकरण- अनेक जगाए आलेखन थई चूक्युं होवाथी अहीं समग्र व्याकरण न आपतां विलासवई-कहाना अपभ्रंशनी मुख्य मुख्य लाक्षणिकताओ नोंधवामां आवी छे. ध्वनिपरिवत्तन : (१) ध्वनि विषयक लाक्षणिकताओमा प्रथम नोंघनीय छे 'न' कार-विषयक वलाण. हस्तप्रतोना परिचयमा जणाव्या मुजब बन्ने प्रतोमां आदि 'न' अने मध्यवर्ती संयुक्त 'न' सुरक्षित छे. (२) 'य' श्रुति : सि. हे. ८. १. १८० 'अवर्णो यश्रुतिः 'विधान उपरथी प्रतीत थाय छे के व्यंजन लोप पछी अवशिष्ट 'अ' ने 'आ'नी मध्ये 'य' श्रुति मूकवामां आवती. परंतु जै। हस्प्रतो सर्वत्र उद्वृत्त स्वर देखतां ज 'य' मूकी दे छे. विलासर्वई-कहा पण एमां अपवाद नथी. उदा० पहयर १. १. १, सयल १. २. ८, पय १. १. १०, पमाय १. २. ११, नायर १. ४. ७, विणिज्जिय १. १. ३, वइयर १. ४. ११, नियय (निजक) १. ५.४ दियह (दिवस) १. ५. ११ गेय (गीत) १. ६. १० असोय १. ७. ४ णेय १. ६.१०. सेयविया १. ३. १ लोय १ ४. ७ सीयल १. १. ७ सुय १. १. १३ कामुय १, ६. ४ धूय १. ८. २ (३) द्विस्वरान्तर्गत 'म' नी जाळवणी . उदा० कमल १. ९. १२ भमर १.२३.९ रमणीउ ५.९.१९ नाम १. ३. १ जेन ४. ११. ९ जो के घणा ओछ। शब्दोनां आ वलण जोवा मळे छे. (४) हेमचंद्राचार्ये नोंघेला तृणु, सुकृदु जेवा 'ऋ' कारवाला शब्दोनो अभाव. १. वागल्यापार डॉ० हरिवल्लभ भायाणी पृ. १४७. २. एजन पृ. १३५-१४८ ३. प्रा० व्या० ४. ३९७ ४. प्रा० व्या० ४. ३२९ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा आख्यातिक रूपः-- (१) वर्तमानकाळ प्रथम पुरुष एकवचनमा मुखपत्वे 'मि' अने गौणताथी'उ' प्रत्यय उदा० थुणामि १. १. ३. विहां १ १८. १२ जाणामि १. १८. ११ भण २. ५. ३ करेमि १. १. ११ कर १. २१. १ कहेमि १. २. १० वह ५. २९. ८ (२) 'ए' विकरणवाळा संख्य बंध रूपोः । उदा० जाणेइ १. ४. ९ पलोएइ १. ८. ३ नासेमि ५. १४. ७, करेमेि १. १. ११ कहेमि १. २. १० मेलेनि १. १५. १० करेंति २. २. ७ बोलेंति १. ७. ९ चिंते. तउ १. २४. ६ (३) वर्तमानकाळ त्रीजो पुरुष बहुवचनमा 'ति' (अनुस्वार+ति) तेम ज 'हिं' प्रत्यय उदा० खेल्लंति १. ६. ९ फुट ते १. ६. ६ जाणहिं १. १३. १२ विरयहिं १. १३. १३ वोलेंति १. ७. ९ मुझंति २ ३. ५ खंचहिं २. ३. पालहिं २. ३. १५ परिच्चयंति २. ३. १२ __(४) आज्ञार्थ बीजो पुरुष एकवचनमा 'हिं' (अहि-एहि) तथा 'इ' प्रत्यय. कवचित् 'उ' तथा 'सु' प्रत्यय. अक्खहि १. ११. २, छडूडहि १. ११. ३, लेहि १. ६. १, करहिं १. ४. ४ उठेहि १. १८. २; कार १. ११. १३, कहि १. १०. ९, लइ २. ३. १७ एव्वउ ५. ११. ३, मुच्वउ १. १६. १२; ठायसु ५. १३. ८ साहेसु ३. १९. १२, सुणसु ६. ५. १२ (५) भविष्यकाळमां 'ह' विकरणवाळा रूपोनो लगभग अभाव. 'स' कारवाला अंगोनी प्रचुरता लहिस्सइ ४. १३. १३, होसइ १. ३. १० होइसइ.४. १७. ११ करिस्सइ ५. ११. १० लहेसइ २. १९. ३ दइस्सइ ३. २२. १ भुजिस्सहि ४. ११. १३ भविस्सइ ५. ११. १०. पेच्छिसु ५. १२. २ (६) संबंधक भूत कृदन्तमा 'एवि', 'इवि', 'अवि', 'एविणु', 'ए प्पणु', प्रत्ययो मुख्यताथी अने 'इ' अने 'इउ' गौणताथी वपरायेल छे सुमरेवि १. १. ५ झाएवि १. १. ६. हवेवि ६. १०. ८ करेवि १. १ ९ वंदिवि १. १. ४ नमिवि १. १. १० भूसिवि १. ७. ११ पेच्छवि १. १३. २ होवि ४. २०. ४. भावेविणु १. १, ४ सुमरेप्पिणु १. १. १३ पणमेप्यिणु १. १. ३ . देखि १. २५. १६ पेच्छि ५. ७. ३ होइउ ३. ९. ३ नामिकरूपो: (१) पुल्लिंग-नपुंसकलिंग अकारान्त नामोनी प्रथमा-द्वितीया विभक्ति एक वचनमा मात्र 'उ' प्रत्यय मळे छे. हेमचंद्राचार्य नोंधेल 'आ' प्रत्यय नथी मळतो. उदा. मणाहरू, सगुणु, कन्वहारु, संभवु, कण्णु, कम्मजालु इत्यादि. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ताय? (२) पुंल्लिंग-नपुंसकलिंग अकारान्त अंगोना तृतीया विभक्ति एकवचनना प्रत्ययो 'इ', 'ई', एं' अने 'एण'. इ-कारणि १. १७. ११ वयणि २. १. १२ ई-भत्तारिं १.२.१९ पियारि १.२.११ वियारि १.१५.१२ सहत्थि १.१२.१२, एं-कुमरें १. ४. ३ विणएं १. ५. पसाएं १. ८. १२ एण-कुमरेण १. ५. ६ नामेण १. ५. ५ कारणेण १. ६. २ (३) पंचमी तेमज षष्ठो एकवचनमा 'हु, 'हो' अने 'ह' तथा बहुवचनमा 'हं' प्रत्या- . पंचमी - एक वचन - षष्ठी आसणहो ५. ३. ४ मयरद्धयहो ५. ५. २ रायकुलहो २. १. १ वक्कलहो ५, ३. ४. हत्थह ५. २४. ७ भवणह १. २५. १५ उज्जाणह १. २५. १५ घरह १. २५ १० रायह १. ४. १२ तायह १. ४. १२ १. ३. ११ लयहरह १. २५. ६ चायहु तुहु, महु वगेरे षष्ठी - बहुवचन पणईयणंह १. ३. ११ इत्थीयणहं १. ३. १२ कन्नयहं १. १९. ११ पुरिसह १. १९. १२ मित्तहं १. ९. ३ (४) सप्तमी एकवचनमां 'ए', 'ह' तेम ज 'हिं' प्रत्ययो, इ- भरहवासि १. ३. १ ए- काले १. ४. १ सयणि १. ९. १० भवणे १. २५. ९ चित्ति २. १०. ११ मणे २. २. १४ कंठि हिं - कंटहिं १. ८. ११ नयरिहिं १. ९. ७ सेन्जहिं पीइहिं १. २०. १२ (५) अंगने अनुरूप षष्ठीना प्रत्यय -- अकारांत अंगोमां एकवचन अने बहुवचनमां क्रमे 'ह' अने 'ह',' इकारान्तमा 'हि' अने 'हिं,' उकारान्त 'हु' अने 'हुँ' अ- सुंदरह २. ५. १२ सहियणहं १. १६. २ कुलहरह २. ५. १३ कन्नयहं १, १९. ११ पुरिसह १. १९. १२ इ - सामिणिहि १. २०. ५ नरवइहि १. ४. ८ नयरिहि १. ७. १२ 3 - पिउडु २. ५. ६ दुहुँ ६. ६, ६ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा (५) बीजा पुरुष सर्वनामनु षष्ठी एकवचनन रूप 'तुद्ध' आमां बे वार मळे छे ( २. ३. २ अने ७. १३. ९) (धनपालनी 'भविसयत्तकहा' मां पण आ रूप मळे छे. अने 'घाहिलना' 'पउमसिरिचरिउ'मां पण). आमांना केटलांक लक्षणो, जेवां के (१) स्वरमध्यगत 'म्' अने 'व्' नी जाळवणी (२) 'स' कारवाळा भविष्य काळनां अंगो अने 'ह' विकरणवाळा प्रत्ययोनो अभाव (३) आज्ञार्थ बीजो पुरुष एकवचननो 'इ' प्रत्यय (3) संबंधक भूत कृदंतनो इउ' प्रत्यय (५) पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति एक वचननो 'उ' प्रत्यय अने (६) अंगने अनुरूप षष्ठिना प्रत्ययो - परथी विलासर्वई कहानो अपभ्रंश गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन भाषाना प्रभाववाळो साहित्यिक अपभ्रंश छे ए स्पष्ट थाय छे. तत्कालीन भाषाना प्रभावना द्योतक अन्य चिह्नो कहेवतो अने रूढिप्रयोगोना प्रकरणमां पण नोध्यो छे, विलासवई कहानी भाषानी बीजी लाक्षणिकता छे ते तेना परनो प्राकृतनो घनिष्ठ प्रभाव. समराइच्च-कहाने आधारे साधारण कविए आ रचना करो होवाथी प्राकृतनो आ रीतनो प्रभाव अपेक्षित ज छे. प्राकृतना अनेक प्रत्ययो अने रूपो आमां ठेर ठेर वपरायां छे. तदुपरांत संस्कृतना सिद्धरूपोर्नु प्राकृतीकरण करवाना पण अनेक दृष्टांतो जोई शकाय छे. आम विलासर्वई-कहानो अपभ्रंश एकंदर शिष्टमान्य साहित्यिक अपभ्रंश छे अने तेना पर गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन भाषानो प्रभाव जोई शकाय छे. १० कहेवतो रूढ़िप्रयोगो अने सुभाषितो साधारण कवि जनसाधारणना कवि हता. कथारूपी गोळ वोटोने उपदेशरूपी कडवं औषध पावानी आख्यानकारनी शैली तेमने सिद्ध हती आवी लोकरजनी शैली माटे भाषा पण लोकप्रचलिन जोईए. विलासवई-कहामां सर्वत्र दृष्टिगो वर थता रूढ़िप्रयोगो कहेवतो अने सुभाषितो कविनो आ बाबतनी निपुणताना सूचक छे. ते काळे प्रचलित एवा केटलाक भाषाप्रयोगो अने कहेवतो आज पण आपणने गुजराती भाषामां ते ज स्वरूपे अने केटलाक थोड़ा बदलाईने वपराता जोवा मळे छे. नीचे आवा रूढिप्रयोगो, कहेवतो अने सुभाषितो नोध्या छे. रूढिप्रयोगो १. को मह पाणेसु धरतएसु, एक्कु वि उप्पाडेइ तुज्झ केसु ? ॥ २. ६ 'ह जीयु छु त्यां सुधी तारो एक पण वाळ उखाडवा कोण समर्थ छ ?' 'एक वाळ पण वांको करवानी कोईनी ताकात नथी' एवो प्रयोग अत्यारे प्रचलित छे. २. तुहु अज्जु जमु रुटु । २. ८ 'आज तारा उपर जम रूठ्यो छे.' आ प्रयोग पण जाणितो छे. ३. म करहि काणि । २. १० 'काण न कर.' काण करवी - मोटा नूकसानवाळो प्रसंग ऊमो करवो ए अर्थमा हाल पण 'म्होकाण करवी' ए प्रयोग प्रसिद्ध छे, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ४. रुट्ठउ नरिंदु जीविउ हरेइ, तो मुदिहि उप्परि को लुणेइ ? ।। २.११ खीजायेलो राजा प्राण लई लेशे. ( एथी वधु शु १) मूठीनी उपरथी कोण कापी शकवानुं छे ? कापवानी वस्तु मूठीमां पकडाय, त्यारे तेथी नीचेनो भाग ज कापी शकाय. आ प्रयोग अत्यारे जागीतो नथी. ५ चोरु समप्पडं एउ नाहि, मुय उम्परि गडूडा किं न जाहिं ? ॥ २.११ आ चोर हुनहीं सोपु, मरेला उपर गाडा केम नथी चालता ? (?) आनो अथे अस्पष्ट छे. ६ सुमरिउ कसु जमेण १। २.१३ कोने जमे याद कर्यो छे ! आ प्रयोग पण वपराशमां छे. ७. पत्तु न सोक्खु, न दोसह छायणु । तुम्हह हुयउ न मिक्ख न भायणु ॥ ३.२ तने सुख मळयुं नहीं, दोष दकाणा नहीं. न मळी भीख ने भाजन-वासण पण रयु नहीं. बावाना बेय बगड्या-ए कहेवतनी याद अपावतो आ प्रयोग अत्यारे प्रसिद्ध नथी. ८. जाणेइ विरालिय दुद्ध-साउ, __ पेच्छइ न पडतउ लउडि-घाउ । ५.२१ बिलाडी दूधनो स्वाद जाणे छे पण लाठीनो धा पडतो जोती नथी. ९. ता किं अत्ताण न य मुणेइ ?, ससओ पि हु लउडउ पेक्ख लेइ । कहिं मसउ ताव कहिं होइ हथि, एयं पि हु तस्स न जाणु अत्थि ॥ ७.१४ शु ते पोतानी जातने य नथी जाणतो ? जोने ससलो वळी लाकडी ले छे ! क्यां मच्छर अने क्यां हाथी एटलुं य भान तेने नथी. मांकडने मुछो आवी- ए कहेवतने मळतो आ प्रयोग छे. १० तो तस्स परिणि न य पट्ठवेमि, नासाए हिंगु परहय देमि ? । जसु भावइ तसु जाएवि कहेउ, किं कस्स वि तिहुयणे हउँ विहेउं ? ॥ ७.१५ बो तेनी पत्नी पाछी नहीं आपुं. पारकाने काजे हुं नाके हिंग शुं करवा दउं ? तेने फावे तेने जईने कहे. हुं शुं दुनियामां कोईनो गुलाम छु ? । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहा तेने फावे ते करी ले-ए प्रयोग प्रचलित छे. ११. कुक्कुरु वि खाइ निच्छउ छलेण । ७.१६ कपटथी तो कुतरं पण पेट भरी शके छे. १२. जिह दुम्मुहु मई वि गणेइ तेंव, मिरियाई वि चावइ चणय जैव ॥ ८.२ जेवो दुर्मुख एवो मने पण गणे छे. चणानी जेम मरचाने चाववा धारे छ ! १३. जं सीसि चडाविय राणएण, ते गवि न गणइ कि पि तेण । गरुयइ पइट्ठाविय अइ पयंड, निक्खत्तु नइस्सइ सयलु रंड ॥ ९.२४ राणाजीए एवी माथे चडावी छे के गर्वमां कोईने य गणती नथी. बहु मोटा स्थाने बेसाडो छे. पण रांड बधानुं नक्खोद वाळशे. माथे चडाव-खुब लाडथी बहेकावq ए प्रयोग आज पण अत्यंत प्रसिद्ध छे. १४. उट्ठाविय पेटु मलेवि वाहि । ८.३ पेट चोळीने पीडा ऊमी करपी-ए खूब ज जाणीतो प्रयोग छे. १५. ता मारउ सो कहिं दिछु जाइ, सूयारहं सालहि ससउ नाइ । ८.२ सूपकारनी शाळा-रसोडामाथी छटकीने ससलु क्यां जशे ? ज्यां जुओ त्यांथी मारो. - कहेवतो १ दिट्टो च्चिय पर मालवउ देसु, मंडा वि न खद्धा इय विसेसु ॥ १.२५ माळवा देश जोयो, पण मांडा न खाधा. 'तळावे जईने तरस्या आल्या' जेवो घाट अहीं सरप कहेवतमा व्यक्त थयो छे. मंड-मांडां माळवार्नु एक मिष्टान्न छे. २. ता पढम-गासि मक्खिय पइट्ट । १.२५ प्रथम ग्रासे मक्षिका-पहेला कोळिये माखी वाळी आ जाणीती कहेवत छे. ३. एक्कहिं दिसि अच्छइ तडु विसाल, अन्नहिं वि वग्घु दादा-करालु । २.१४ 'इतस्तटी ततो व्याघ्रः' ए संस्कृतमां जाणीती कहेवत छे. गुजरातीमां पण आ वपराय छे. ४. भायणु वि भग्गु अहवा न भग्गु, मारेइ टणक्कउ कह वि लग्गु । २.१७ वासण भांगे के न भांगे पण ज्यां पण अथडाय के टणकारो करे. ५. जो खाइ करंबउ एत्थु लोइ, बहुभेय विडंबण सहइ सो इ । २. २० Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्त वना आ लोकमां जे करंबो (एक प्रकारनी वानगी) खाय, बहु जातनी विडंबना पण ते सहन करे. माल खाय ते मार खाय-ने मळती कहेवत. ६. जं पुव्वविहिउ तं एइ मइड, मुडिज्जई किं सई सियमड्ड ? २.२० जे पूर्वनिश्चित छे ते बलात्कारे पण थईने रहे छे ज. तो पोते ज पोतानी हजामन शा माटे करवी ? ७, सप्पु न मरइ न लहिया वि भज्जइ । २.२१ साप मरे नहीं अने लाठी भांगे नहीं. आ कहेवत हिंदीमां पण प्रसिद्ध छे. ८. विहवो वि छड्रिडउ दोस उवज्जिय सुप्पु वि दड्ढउ चणा न भुजिय । ३.२ वैभव तो छोडी दोधो अने दोष पेदा थयो. सुपडु बली गयु अने चणा न भुंजाणा. ९. वाएं निज्जइ हस्थि जहिं तत्थ वुड कि पूणिय जोयइ १ ४.६ पवनवडे ज्यां हाथी उडाडी जवाता होय त्यां वृद्ध बीचारो पूणीने शु जुए ? १०. सच्चं चिय किर वणु होइ जस्स, सो चिय पर जाणई पीड तस्स ।४.२३ साचे ज जेने गुमडु थयु होय ते ज तेनी पीडा जाणी शके. ११. जो दुढे दड्ढउ किर हवेइ, दहियं पि हु फुक्कवि सो पिएइ । ७. ८ दुधना दाझ्यो छाश पण फूकीने पीवे-ए कहेवतमां अहीं छाशनी जगाए दहि शब्द मात्रनो ज फेर छे. १२. भुजंतु चणउ जई उल्ललेइ, ते भाडह रुट्ठउ किं करेइ ? ७. १५ मुंजातो चणो अगर खीजाईने उलळे तो पण भट्टीने शुं करे ? १३. बहुएहिं वि किर मूसय-सएहिं किं नाडउ पुज्जई मेलिएहिं ? ७. १५ बहु सेंकडो उंदर भेगा थईने य शुं बिलाडाने पहोंची शके ? १४. अहवा खयकालि समुट्ठियाहं ___ उठेति य पंख पिपीलियाहं । ७.१५ प्रलयकाळे कीडीओने पांखो फुटे छे. १५. बहु धन्न पलालेहिं वि मुणति । ७. १६ धान्य-अनाजनी परख एना फोतरा पर थी ज थई जाय छे. १६. गोसामिय अद्धिंधणु वि होइ । ७. २९ गोस्वामि-चळदना ये छाणानु तो बळतण ज होय. (?) Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई-कहां १७. किं जमह दूरे मालवउ होइ १ । ८.१ जमने झुं माळवु आधु पडे ? १८. हत्थे वि कंकणु किं दप्पणेण ? ८.२ हाथकंकणने आरसीनो शी जरूर ? १९. महिलचरिउ महिला विआणए, सप्पप्पसिणि सप्पो जि जाणए । ९.२४ स्त्री-चरित्रने स्त्री ज समजी शके. साप जेम एने जणनारी सापणने जाणी शके. २० अग्गि-दड्ढि अग्गी वि ओसहं । ९. ३० आगथी दाझेलांने आग ज औषध. सुभाषितो १. थेवु वि जे उत्तम पुरिस होंति, अबमाणु कया वि न ते सहति । १. ५ जे सहेज पण उत्तम पुरुष होय ते अपमान कदी सहन न करे. २. विरल रिचय विरयहि ललिय-कव्व । विरल च्चिय जण सामण्ण-दव ।। विरल चिय पर-कज्जई कुणति । परदुक्खें दुक्खिय विरल हुति ॥ १.१३ विरला ज मधुर काव्य रचे छे, श्रामण्य-साधुतारूपी धन विरला जनो पासे न होय छ, पारकाना काम विरला ज करे छे, पारकाना दुःखे दुःखी थनारा विरला ज होय छे. ३. सत्ताहिय ते च्चिय पुरिस होंति, अब्भत्थण विहल न जे करेंति । २. २ सत्वशाळी पुरुषो ते गणाय छे जे याचनाने निष्फळ नथो करता ४. परिपंथ न किज्जइ तासु लोइ, जो माणुसु को वि विसिछु होइ । २.१० जगतमा जे कोई विशिष्ट मानवी होय तेनी जोडे दुश्मनावट न करीए. ५. जो मित्तु वि वंचइ, परु दुहइ, विहुरे वि जेण सामि छड्डिज्जइ । सरणाइउ जो किर परिहरइ, तिं पर दिहएण व्हाइज्जइ ॥ २. १० जे मित्रने ठगे छे, पारकाने दुभवे छे, मालिकने संकटमा छोडी जाय छे, शरणागतने त्यजी दे छे तेवाने तो जोईने ज स्नान करी लेवु जोईए. ६. वरि दुज्जण-संगमु होज्ज लोइ, विरहम्मि जस्स बहु सोक्खु होई । मा होज्ज समागम सज्जणस्स, विरहेण दुक्खु बहु होइ जस्स ॥ २. २३ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना जगतमां भलो दुर्जननो संगम थजो के जेनो विरह थवाथी बहु सुख थाय, सज्जननो समागम मा थजो के जेना विरहथी बहु दुःख थाय ! ७. विहिणो वि विचित्तई विलसियई, कज्जई संभवहिं अचिंतमई । ५.१८ विधातानी लीला विचित्र छे, अणधार्या कार्यो संभवित बने छे. ८. जो जसु चिंतइ पावु परजणह अपावह । तं तसु वलिवि पडे कलुसिउ नियपावह ॥ ५. २० जे निर्दोष परजन उपर पाप ढोळवा विचारे छे, तेना पोताना ज उपर पाप पार्छ वळीने पडे छे. ९. लोहह पंजरि पल्लिय कत्थ वि. सीह जेंव सीयंति समत्य वि । तिह पुरिसा वि हु सत्त समिद्धा, अच्छहिं दुत्तर-नेह -निबद्धा ॥ ६. ४ लाढाना पांजरामां घालेला सिंह समर्थ होवा छतां सीदाय छे, तेम सत्वशाळी पुरुषो पण दुस्तर स्नेहथी जकडायेला सीदाय छे. १० जणणी-जणया वि हु आवइए, कारणु हवइ कम्मह गइए । जणणी-जंघा वि हु वच्छयस्त, धभत्तु घरइ अंघणे अवस्स ॥ १०. १० कर्मनी गतिथी माता-पिता पण आपत्तिनुं निमित्त बनी जाय छे, गायनी जांघ ज वाछरडाने बंधन माटेना थांभलानु रूप धारण करे छे. ११ आहार-निहा-भय-मेहुणाई, माणुसह वि तिरियाण वि समाई । अब्भहिउ धम्मु पर माणुसाण, सो जाह नरिथ ते पसु-समाण ॥ ११.६ आहार, निद्रा, भय अने मैथुन तो मनुष्य अने पशु बन्नेमा समान छे. पण माणसमां पधारानो गुण धर्म छे. ए जेनामां न होय ते पशु समान छे. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ-ग्रंथ-सूचि अनुशीलनो-डॉ० हरिवल्लभ चू० भायाणी, पोप्युलर पब्लिशिंग हाउस, सुरत, १९६५. अपभ्रंश काव्यत्रयी-जिनदत्तसूरि, संपा-पं० ला० भ० गांधी, प्रका० ओरिएन्टल इन्स्टिट्युट, वडोदरा, १९२७. अपभ्रंश पाठावली मधुसूदन चि० मोदी, गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी, अमदावाद, १९३५. अपभ्रंश भाषा और साहित्य--डा. देवेन्द्रकुमार जैन, __ भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १९६६. अपभ्रंश व्याकरण-डॉ० हरिवल्लभ चू० भायाणी, फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १ली आवृत्ति १९६०. अभिधान चिन्तामणि-हेमचन्द्राचार्य, व्या० पं० हरगोविन्द शास्त्री, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १९६४. आख्यानकमणिकोशः-नेमिचन्द्रसूरि, संपा० मुनि पुण्यविजयजी, प्राकृत टेष्ट सोसायटी, वाराणसी, १९६२. उत्तरपुराण---गुणभद्र, संपा० अनु० पं० पन्नालाल जैन, ___ भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १९५४. ऋग्वेद-संहिता. प्रका० वैदिक संशोधन मण्डल, पुना, १९२३-५१ एकविंशति-स्थान-प्रकरण-सिद्धसेनसूर (साधारण' कवि) संपा० ___ मुनि देवविजय, प्रका० शेठ खीमचन्द फूलचन्द, सीनोर, १९२४. कथासरित्सागर-सोमदेव, संपा० अनु० ५० केदारनाथ शर्मा, खंड-१ बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना. १९६०-६१. कर्पूरमञ्जरी-राजशेखर, संपा-प्रका० प्रा० एन० जी सुरू, मुंबई, १९६०. कह-कोसु (कथा-कोश )-श्रीचन्द्र, संपा० डॉ० हिरालाल जैन, प्राकृत टेष्ट सोसायटा, अमदावाद, १९६९. काव्यादर्श-दण्डि, संपा० व्या० पं० रामचन्द्र मिश्र, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, १९५८. कुमारसालप्रतिबोध-सोमप्रभाचार्य, संपा० मुनि जिनविजयजी । ओरिएन्टल इन्स्टिट्युट, वडोदरा, १९२० कुवलयमाला भा. १-२-संपा० डॉ० ए. एन. उपाध्ये, भारतीय विद्या भवन, मुंबई. १९५९-१९७० गजरातनो मध्यकालिन राजपूत इतिहास-दुर्गाशंकर शास्त्री, खंड-१-२, गुजरात विद्यासभा, अमदावाद (आवृत्ति-२), १९५३. 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Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ विलासवई - कहा हरिभद्राचार्यस्य समय - निर्णयः मुनि जिनविज५, जैन साहित्य संशोधक सभा, पुना, १९१९, हैम धातुपाठ (संस्कृत धातुकोष) संपा० प्रका० अमरतळाल अमरचंद सलोत, पालीताणा, १९६२. Catalogue of Mss. at Jesalmere, Ed. L. B. Gandhi, Oriental Inst. Baroda, 1923. Critical Study of Mahapurana of Puspadanta by Dr. (Smt) Ratna Shreyan, L. D. Inst. of Indology, Ahmebabad 1961 Descriptive Catalogue of Mss. in the Jain Bhandars Pattan, Pt. I. Ed. by Pt. L. B. Gandhi, Publ. Oriental Inst., Baroda, 1937 at Geographical Dictionary of Ancient and Medieval India by Nundo Lal Dey, (2nd Ed.) Luzac & Company, London, 1927. History of Indian Literature--M. Winternitz, vols. 1-2, Calcutta University, Calcutta, 1927-33. Journal of the Shivaji University No. 2, 1970. (The Vilasavai of Sànhärana-An Introductory Study by Dr. A. N. Upadhye). Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारण-कइ-विरइया विलासवई-कहा Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारण कई - विरइया विलासवई - कहा संधि - १ [+] बहु-रयण-मणोहरु निम्मल-पयहरु सगुणु सुवण्णाहिट्ठियउ । मोहइ कव्वहरु कंठट्ठियउ ||१|| भण कस्स न सोहइ जणमणु पढमउं पणमेपिणु उसह- सामि संभव भावेविणु भव-विणासु ५ सुमरेवि सुमइ सुगिहीय- नामु झावि सुर-संसिउ सिरि-सुपासु विष्फुरिय-कंतु जिणु पुप्फयंतु सेयं असेस-मुहाण खाणि जिणु विमल अणंतु वि संभरेवि १० पय नमिवि कुंथु अर - सामियाहं गउ सरणु मल्लि मुणिसुव्वयाहं । नमि पण मिवि तह य अरिनेमि पुणु पास- वीर-वंदणु करेमि । पुणु अजिउ विणिज्जिय-भउ थुणामि । वंदिवि अभिनंदणु गुण-निवासु । कीरइ पउमप्पह - जिण-पणासु । चंदप्पहु चिंतिवि चत्त-पासु । सीयल दुरियारि - महाकथंतु । वसुपुज्जु वि रंजिय-सयल - पाणि । तह धम्म-संति-संधुइ करेवि । पणमेपिणु सिद्धहं सोक्ख समिद्धहं आयरिज्झायहं मुणिहिं । कय-पोत्थय - हत्थ हे नाण - महत्यहि सुमरेष्पिणु सय- सामिणिहि ॥१॥ [ २ ] जण एक्कु खर्णतरु कण्णु देहु जाव य दूमिज्जइ अन्नु लोउ जाव य परतत्तिर्हि जाइ कालु सव्वहो परदोसुघट्टण अक्खमि धम्मक्रु तं सुणेहु | ता वरि किउ धम्म- कहा- विणोउ । ता वरि परिभाविउ कम्म- जालु । गुणु कवणु होइ चिंतहु मणेण । [१] १. पु० पहयरु २. पु० नयणु मोहइ ३. पु० पढमं पणमेप्पुणु, ला०- भय ४. पु० वंदेवि ५. ला० सुमरेमि, पु० सुगहिय० ६. ला० झायवि जिण सुपसंसिउ सुपासु, ला० वसुपुत्रो ९ पु० पर्णमप्पिणु, ला० माणस पु० चिन्तवि चित्तपासु ७ पु० विष्फुरिय - कित्ति जिण ८. अतो १०. ला० नमवि ११. ला० पणमवि १२. पु० मिद्धहं, पु० उज्झाहं १३. ला० हत्थहि, पु० सामिणिहिं. [२] १. ला० पु० कंतु देहु, भक्खमि २. ला० पु० जाय. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [१. २५ संतेहिं य अहव असंतएहिं किं परदोसेहिं पयासिएहिं । लब्भइ जसु अत्थु न तेत्थु कोइ अन्नु वि सो चेव य वइरि होइ । उप्पज्जइ पर-जण-पीड जेण तं कज्जु न किज्जइ बुह-जणेण । जं कम्मु हसंतउ किर करेइ तं रोवंतउ वि न नित्थरेइ । थेवो वि हु कीरइ जो पमाउ सो पर-भवे होइ महाविवाउ। १० एत्थ व पत्थावे कहा कहेमि ते भव्वहं अब्भत्थण विहेमि । जिंव सह भत्तारि पाण-पियारि गुरु-पमाय-फलु अणुहवइ । तिह चोज्जुप्पायणि गुण-सय-दायणि कह निसुणेहु विलासवइ ॥२॥ इह भरहवासि सुमणाभिराम वर-नयरि अस्थि सेयविय नाम । सरयब्भ-धवल-पासाय-सोह देवउल-पंति-तोसिय-जणोह । पमुइय-सउण्ण-जण-सेवणिज्ज बहु-दिवस-सहस्से हिं वण्णणिज्ज । पवणुद्धय-धय-पतिहिं विहाइ हक्कारइ अमर-समूह नाइ । ५ पडिवक्ख-रुक्ख-उक्खणिय-कंदु जसवम्मु नामि तहिं नरवरिंदु । जो तरुण-तरणि-संनिह-पयाओ बह-नरवइ-मउड-निहिट-पाओ। तस्स वि सयलं तेउर-पहाण कित्तिमइ य रण्णि बहुगुण-निहाण । ताण य उप्पन्नउ भुवण-सारु नंदणु नामेण सणंकुमारु । तसु जम्म-दिवसि फुड-भासएहिं आइछ एउ नेमित्तिएहिं । • एहु बाल सयल-लक्खण-सहाउ होसइ विज्जाहर-राय-राउ । अइवल्लहु तायहु मंदिरु चायहु कप्पदुमु पणईयणहं । दक्खिण्ण-निविट्ठउ परियण-इट्ठउ कामएउ इत्थीयणहं ॥३॥ [४] अह अन्नहे काले अलक्खिएहिं के वि गहिय चोर आरक्खिएहिं । ते तेहिं विडंबेवि बहु विचित आढन नेवि मारण-निमित्त । एत्तहि वि वाहियालिहिं गएण ते कुमरें दिट्ट नियत्तिएण । तो भणि उ तेहि दय करहि देव अम्हे सरणागय तुम्ह चेव । किंउ एक्क-चार सामिअ अजुत्तु पर अज्ज वि चोरिय-फलु न भुत्तु । [२] ८ ला० पु० रोवतु [३] १. ला० सेयविय तात. १. ला० चाइ ५. ला० पु० जसुवम्मु ११. पु० मन्दिरु वायहु [४] १. पु. अन्नहि २. ला० विडं बिवि Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. ६-] तं वयणु सुणेवि नरवइ-सुएण जं कुमरे मेल्लिय चोर दिट्ठ विनउ एहउ आरक्खए हिं तेण वि आइउं निच्चियारु १० गिव्हिवि दिक्खालेवि नायराण विलासवईकहा सो वारिजंतु वि परियणेण वो वि जे उत्तम पुरिस हौति हियइच्छिय कइवय- पुरिस-जुत्तु जहिं नियय-विव-मंडिय-धरित्ति ५ तहिं पणय वग्ग वड्ढिय पसाउ जाणिउ तेणावि सणकुमारु कुमरेण वि विणएं नमिउ राउ भणिओ य वच्छ तई कियउं मुठु एयं पितुहु अप्पणउं रज्जु मेलाविय सव्वे दया-जुएण । तं सव्व वि नायर-लोय रुट्ठ | after असे नरवरहि तेहिं । जिह नवि जाणेइ सर्णकुमारु । far कुह विणिग्गहु तक्कराण अह ते गेहेविणु मारिय नेविणु कुमरें वइयरु जाणियउ । तो रु यह सो नियन्तायह नोसरियड अवमाणय ||४|| [] नयरीए विणिग्गउ तक्खुणेण । अवमाणु कयाविन ते सहति । रयणायर-तीरहिं सो पहुत्त । वर-नयरि वस सिरि-तामलित्ति । ईसाणचंदु नामे राउ । संमुह विणिग्गज सपरिवारु । तेण वि बहुमन्नि किउ पसाउ । जं इह संपत्तउ जणय-रुछु | ता पुत्त कहेज्जहि नियय-कज्जु । ३ १० तो नयरि पविउ लोएहि दिट्टउ नयणाणंदणु चंद जिह | आवासु विदिण्णउ धण - संपुण्णउ सोक्खेहिं बोलहिं तसु दिह ||५|| [ ] भणियउ दिणेहि केहि वि गएहिं जीवणु हियइच्छिउ वच्छ लेहि । कुमरेण वि केण वि कारणेण न पडिच्छिउ जीवणु किंपि तेण । एत्थंतरि पसरिय बहु-विलास मणहरु संपत्तु वसंत- मासु । अविवेय लोय आणंदयारु पायडिय - विविह-कामुय - वियारु ५ माणिणि जण माणु त्रिनिद्दलंतु पसरिउ मलयानिल महमहंतु । पहु, नरवइहे पु० आयद्रठ १० पु० ला० [४] ७ पु० कुमरं, पु० सब्वेवि दिक्खालिव ११. ला० तं गिरविणु [५] १. ला० पु० वारिज्जतो २ ला०वि जि, हुति ८ पु० भणिउं १० पु० नयरि य प०, ला० लोयहि [६] १. ला० पु० हियइच्छियउ ३ पु० मणुहरु, ला० वसंतु Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [१. ७वियसंति सयल-काणण-वणाई फुल्लंति नाइं पहिय-मणाई । घरि घरि अंदोलय गामिणीओ कीलंति कलालय-कामिणीओ। पिज्जति जत्थ विविहासवाई पेम्मइं पसरंति पुणन्नवाई । दिज्जति जत्थ चच्चरि विचित्त खेल्लंति जुवाण पहिट-चित्त । १० वर-पंचम-गेयहं झुणि पयत्त कीरति सयल देउले हि जत्त । लय-पुच्छ-मणोहरु वियसिय-केसरु पाडल-कुसुम-सलोयणउ । महुमासु वि मयवइ काणणे धावइ गयवइयह उव्वेवणउ ॥६॥ जत्थ विउल दल-कमल-सालिणी सरवरेसु उल्लसिय कमलिणी । महमहंत-मयरंद-पिंजरी सहइ जत्थ सहयार-मंजरी । फार फुल्ल मेल्लंति कुज्जया उल्लसंति वियइल्ल-पुंजया । तह असोय-बउला रमाउला कलयलंति कल-सह-कोइला । ५ कुसुम-भार-विणमंत तरुवरा गुमुगुमंति महु-मत्त-महुयरा । रत्त-कुसुम-पावरिय-अंसुया नव-वर व्य दीसंति किंसुया । सिंदुवार-विडवा सुसोहिया पाडलाओ मयरंद-मोहिया । मयरकेउ-मुक्क व्य कंडया महमहंति माहविय मंडया । मंद मंद वोलेंति वासरा नव-वसंत-दसणे-कयायरा । १० कुसुम-रेणु-पडलं पि पसरियं भुवण-पासु नं काम-विरइयं । इय मयण-महूसवि अप्पउं भूसिवि निय-गेहह मित्तेहिं कलिउ । उज्जाणि मणोहरि नयरिहि सेहरि सो अणंग-णंदणे चलिउ ॥७॥ [] तओ णेय-लीला-विलासेहिं जुत्तो महाराय-मग्गम्मि गंतुं पयत्तो । इओ तत्थ ईसाणचंदस्स धृया विलासवइ नामेण अच्चंत-रूवा । सगेहस्स वायायणे संनिविठ्ठा पलोएइ तं रायमग्गं विसिहा । तओ तक्खणे तीए दिट्ठो कुमारो सदेहो य पच्चक्ख नं सो ज्जि मारो। ५ पुणो पुव्व-जम्मंतरब्भासओ से पयट्टोऽणुरानो दिसाए व्व गोसे । [६] ८. ला० पेनि जेन्थु, पु० पिम्मई ९. ला० जेन्यु. पु० खिल्लंति १०. पु० सुणि पयत्त, देउलिहिं १२. पु० महुमासो [v] ३. ला० फुलल फार, पु० कुंजया ५. ला. गुमगुर्मेति ७. ला० पाडलाउ८. पुरु ___माहविहिं ९. पु० मंदमंदु १०. ला० पडलं व पं० ११. ला० भूसवि १२. पु० नंदणं [८] २. पु० रुया ३. ला० वायायण Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. ९-] सुधा य खित्ता सहत्थेण गुत्था चलंतस्स वायायणासन्न - हेट्ठ पलोएइ जा उप्परं ताव दि पुणो तस्स अइवल्लहो एग-चित्तो १० अणेणावि सो लक्खिओ ताग भावो विलासवई कहा पुणु तच्छंतिहि वियसिय-नेत्तिहि बउल- माल कंठर्हि निसिय । तें तासु पसाएं हरिस-विसाएं रायकन्न खलु नीससि ||८|| [s] अह सो पर वोलिउ कमेण पाविय अनंगनंदण-वणम्मि मिह उवरोहें बहु विचित्तु तं वयण कमल तीय वि सुतारु ५ बिबाहर - कंतिय- विष्फुरंतु वियसाविय - लोयण-दल-विसालु तो उचिय-काले नयरिहिं पविठु वासरु वि जांव बोलिउ कमेण तो दुक्ख सिरु इय भाणिऊण १० गउ वास - भवणि मणहरि विचित्ति एत्यंतरि आगय ते वयंस उवणीयई तो पवरासणाई पच्छा भवणुज्जाणह समित्तु नाणा - कीलाहिं य बहु-पयारु ५ कीलंतर चित्तें सुन्नएण तारायणु फुट्टउ कमल विसट्टउ सेज्जहिं वेल्लंce विरह - पत्तिह वरिस - सरिस वोलिय रयणि । तरणि तेउ पसरिउ गर्याणि ॥ ९ ॥ [9] ११. पु० सेज्जह विल्लंतह [१०] ४. कुमारस्स बउलाण माला पसत्था । पहुत्ता कुमारस्स सा झत्ति कंठे । मुहं रायकन्नाए अच्चंत - इटुं । सयासम्मि वसुभूः नामेण मित्तो । कुमारस्स जाओ महंतोऽणुराओ । [८] १० पु० भाओ १२. ला० तें तासु पसाई हरिसविसाइ [९] ३. पु० मित्तहं, ला० पु० कह विचित्तु ७ ला "इल क पु० णागाकीलाहिं, ला अवहरिउ कारण विकेवल न य मणेण । आढत्त मणोहर कील तम्मि | कील कुमारु अवहरिय-चित्तु । वायायण-सर-नोसरिउ सारु । सिय-दसण - किरण - केसर धरंतु । अच्छिउ चिंतंत को वि कालु । किउ दियस - कज्जु सयलु वि विसिठु । संपत्त रत्ति पूरिय तमेण । पेसिय वयंस संमाणिऊण । परिसंठिउ सयणि महामर्हति । पणमंति कुमारह कय-पसंस । तंबोलई सयलहं दावियाई । चल्लिउ कुमारु कीला - निमित्तु । अवहरिय-चित्तु कीलइ कुमारु । लक्खि वसुभूइ-वयंसएण | Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [१. ११जं अज्जु कुमरु विच्छाय-देहु तं निच्छउ मयण-वियारु एह । अह वित्तइ कीला-वइयम्मि गय दोणि वि माहवि मंडम्मि । वसुभूइ पभणिउं भो वयंस कहि पुहइ-नारि-कण्णावयंस । तुहुं अज्ज कोस विच्छाय-काउ जिह दिवस-मज्झि नक्खत्त राउ । १० पुणु खणे विनिवारिय-सयल-चेछु अच्छहि मुणि जिह झाणोवविदछु । खणे लद्ध-लाहु जूयारु जेंव परिओसु वहहि निय-चित्ति तेंव । तेण वि गोवंति मुहूं जोवंतिं पाण-पियस्स वि कहिउ पुणु । हउं किं पि न लक्खमि जं तुह अक्खमि जेण मयणु विवरीय-गुणु ॥१०॥ वसुभ्रूइ पणिउं तो हसेवि मा लक्खिउ वर जोइमु गणेवि । कुमरेण वि जंपिउ किं तयं ति अहि वयंस जं लक्खियं ति । ते जंपिउं नरवइ-बालियाए मिसु लेविणु बउलह मालियाए । आरोविउ गरुयउ चिंत-भारु तं तुह सरीरे एरिसु वियारु । ५ दिदिच्छलेण विद्धो य तीए तुहुँ मित्त मयण-सर-धोरणीए । तरलेहि व मुद्ध-विसालएहिं तुहुं मुट्ठ नयण-कुसुमालएहि । अन्नह अयंडे किर कवणु कज्जु परिपंडुरु दीसइ वयणु अज्जु । अन्नु वि अलद्ध-निदा-सुहाई आयंबई तारई लोयणाई । तह दीह दोह नीसास-पंति अच्चंत दुक्खु हिययह कहति । १० कीला वि सन सुन्नउ करेहि बत्तासु सुन्नु हुंकारु देहि । ता मा संतप्पहि किं पि मित्त तुह उवरि सा वि अणुरत्त-चित्त । बहुमाणे सरिसिय दुईय पेसिय बउल-माल में तुह उवरि । तेण य तुह संगमु तिहुयण-उत्तमु इच्छइ सा वि म सोउ करि ॥११॥ [१२] अन्नु वि अवस्स-भवियव्वएमु अवहिउ विहि सव्व-पओयणेसु । चिंतइ कज्जाइं अणागयाई अहिमुह दूरह वि घडइ पियाई । [१०] ६. ला० कुमर ११. पु० नियचित्ते १३. ला० तुहु [११] ५. ला० तुह मित्त नयण - ६. ला० मुछ नयण सुकुमालएहिं ७. ला० परियंडुरु १०. पु० सुन्न हुंकार ११. पु० तुहु १२. ला बहुमाणि, दूइ पेसिय पु० जि तुह १३. पु० मं सोउ [१२] १. ला• अवस्सु २. ला० महिमुहु Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. १३-] विलासवईकहा ता भो कुमार छड्डहि विसाउ अहमेव करमि किंचि वि उवाउ । पडिवन्नु कुमारे हरिसिएण वसुभूइ विसज्जिउ तत्थ तेण । ५ एत्तहे विलासवइ-धावि-धृय नामें अणंगसुंदरि मुख्य । तीए सह संगाल कियउ तेण सा लग्ग तासु परिसह गुणेण । एवं चिय वोलिय दिवस के वि सो चिंतइ आस परिच्चएवि । महु कज्जु न अज्ज वि किंचि तेण साहिउ वसुभूइ-वयंसएण । अहवा नवि पसरिय बुद्धि तासु ते कज्जे एइ न मज्झ पासु । १० इय सो एवं चिय चितयंतु गउ सेज्जहिं कज्जु परिच्चयंतु । तहिं नावइ मत्तउ परआयत्तउ नाइ मृटु नं मुच्छियउ । नावइ गह-गहियउ अहवइ भीयउ वेवमाण-तणु अच्छियउ ॥१२॥ जा थेव-वेल ता तुट-चित्तु वियसिय-मुहु सो वसुभूइ पत्तु । सो पेच्छवि तो लक्खिउ इमेण अइवियसिय-वयण-वियारएण । जिह दोसइ एह विम्हय-सहाउ साहेविणु कज्जु अवस्स आउ । तें जंपिउं छड्डहि मित्त सोउ अंगोकरेहि गरुयउ पमोउ । ५ उज्झेहि सेज्ज पोरिसु करेहि निमुणेहि वत्त साहसु घरेहि । संपन्नउं तुज्झ समीहियं ति सो भणइ मित्त अक्खहि कहं ति । तें कहिउ अज्जु हउं गयउ आसि मंदिरि अणंगसुंदरिहि पासि । सा दिठ्ठिय मई पव्याय-वयणि ईसीसि-अंसु-पगलंत-नयणि । मई पुच्छिय मुंदरि कहहि मज्झु निव्वेयह कारणु कवणु तुज्झु । १० अह भणिउ तीए कि अक्खिएण दुक्खेण तस्स सहरिस-मणेण । निम्मल-दप्पणे पडिबिबु जेंव संकमइ जस्स न वि दुक्खु तेंव । मई वुत्तउं सुंदरि सव्वु एउ विरल च्चिय जाणहि गुणहं भेउ । विरल च्चिय विरयहिं ललिय कन्य विरल च्चिय जण सामण्ण-दव्य । विरल च्चिय परकज्जई कुणंति परदुक्खें दुक्खिय विरल हुंति । १५ तह वि हु मयलोयणि दुज्झ पोणि संपाडेवइ अस्थि मणु । ता कहि अवियप्पिउ तीए वि जंपिउ जइ एरिसु ता कहमि सुणु ॥१॥ [१२] ८. पु० कज्ज १०. ला• कज्ज [१३] ९. पु० मज्झ तुज्झ, १२, ला० विरला जाणति गुणाहं हेण, १३ पु० सामन्तं दंव्व १४. पु० परदुर्विष १५. ला. तुझु१६. ला० तीय Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ साधारणकविरइया [१४] नामेण विलासवर ति कन्न । पच्छिम अवत्थ हु हु अकालि । सा भइ मयण - गह- पीडणेण । निज्जिय-नीसेस सुरासुरस्स । वियलिय-राएण व जिणवरेण । पर एत्तिउ मह संताउ चित्ति । कह विहु न मुणिज्जइ एत्थ सोइ । वतइ मयण- महावम्मि । उज्जाण - पयट्टहिं पुरजणे । बब्वरिया चेडिय - संगयाए । अइ-परम- रूबु दिउ जुवाणु । hase धू महुमणे अभिन्न समझ बहिण सहि सामि - सालि मई पुच्छिय कवर्णे कारणेण मई जंपिउं सुंदरि वम्महस्स ५ रइ - नाहह खंडिय आण केण न मुणेमि आण खंडिय न वत्ति जं तसु मण - संठिउ पुरि कोइ मई पुच्छिय किह सा भणइ तम्मि नीसरिय नयरिचच्चरि गणेसु १० अणुमाणें जाणमि कोइ ताए पच्चक्ख- मुत्ति नं पंचवाणु अन्नह कह एरिस कन्न महायस असरिसु कइय विवरु वरई । पंकय- सिरि-मणहर-मोहिय महयर हठ-वणेसु किं रह कर || १४ || [१. १४-१५ [१५] मुक्का य तीए महुयर व माल निय- हत्थ - गुत्थ वर-बउल-माल । पडिया सा तीए मणोरहेहिं तसु कंठ देसि सह महुलिहेडिं । अवलोउ उपरि-हुत्तु तेण तो कंठि निवेसिय सहरिसेण । आणंदु तीए अहिययरु जाउ महु उवरि एहु किर साणुराउ । ५ सो अन्नलोय - संपाय- भीरु तसु हियउं हरेविणु गउ सुधीरु । तप्प विलासवई व देवि अच्छइ वावारु परिच्चएव । तह विहिय हयास वम्महेण जिह कह वि न सक्किज्जइ मुद्देण । एहु वरु महु बब्बरिययाए अक्खिर पुणु तीए विनिव-सुयाए । आसासिय सा मई सुवयणेहि सामिणि विसाउ मा मणि करेहि । १० मेलेमि अवस्सु वि वल्लहेण घडइय कुमुणि मयलंडणेण । एरि भणेवि चर-लोयणेहि जोइउ घर - देउल- उबवणेहिं । [१४] ५. ला० - राएण वि जिण० ८ पु० किविह सा ९ ला० उज्जाणे १० ला० जाणे मि [१५] १. पु० तोय ५. पु० सुवीरु ७. ला० हयासे ८. पु० चच्चरिययाए ९. पु० सुवयणएहि ११. पु० जोविउ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. १७] विलासवईकहा न य सो उक्लद्धउ जिह मयरद्धउ वयणवियारिं तो कलिय । महु मणु वेयारिउ कज्जु न सारिउ एह अणंगसुंदरि अलिय ॥१५॥ निब्भर-उक्कंठा-भरिय-चित्त अह विरह-हुयासिं दिढ-पलित्त । सयणीउ वि तत्तउं उज्झिऊण सहियणहं खंभु अवलंबिऊण । पासाय-सिहरि जाएवि समग्गु अवलोइउ सो च्चिय रायमग्गु । पुणु आसुपासु सयल वि गविठ्ठ मण-वल्लहु तीए न जाव दिछ । ५ तो उपहउं दीहरु नीससेवि बाहप्पवाहिं लोयण भरेवि । मणि वलय-झणझण-रव-सणाहु विहुणिवि कर-पल्लवु ललिय-बाहु । सिढिलेवि तणु धरिय सहीयणेण सा मोहमुवागय तक्खणेण । इय जाव वत्त एत्तिय कहेइ संभंतु कुमरु उद्विवि भणेइ । मण-नयणाणंदणि कत्थ गेहि अच्छइ वयंस सा महु कहेहि । १० तसु एत्तिय जीविय-संसरण किं अज्ज वि मित्त विलंबिएण । वसुभूई हसेविणु भणइ धरेविणु वत्त एह तुहुँ कहिय पहु । एउ देव न सच्चउ संभमु मुच्चउ वत्त-सेसु आयण्णि महु ॥१६॥ तो ईसि हसेवि विलक्ख-चित्तु उवविसिवि सयणे निसुणिवि पयत्तु । वसुभूइ तासु पुणरवि कहेइ एरिसु अणंगसुंदरि भणेइ । तो सा मइ निय-उच्छंगि लेवि वच्छत्थले चंदणु बहलु देवि । किउ कंठि मुणालिय-वलय-हारु परिखिन्तु पवणु मेल्लिय-तुसारु । ५ तो अलमुम्मिल्लिय-लोयणाए कहकह वि लद्ध चेयण अणाए । तो सा मइ पुच्छिय महु कहेहि सामिणि किं बाहइ तुज्झ देहि । तो उक्कड-मयण-वियारयाए अन्नु वि सहियण-लज्जालुयाए । अपरिप्फुड एरिसु जंपियं ति पियसहि तस्सेव अदंसणं ति । [१५] १३. पु० कज्ज [१६] १. पु० हुयासें दढ २. पु० चत्त' ४. पु० आसपास ६. ला० विहुणेवि १२. ला० संभम, वच्च सेस । [१७] १. पु० सयण, ला. निसुणेवि ३. पु० मई, वच्छत्थलि, ला. बहुलु ४. ला० कंठे Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [१.१८तो तीए हियय-साहारणत्थु मई जंपिउ एरिसु अलिय-वत्थु । १० सामिणि तुहुं होहि सधीर-चित्त उवलद्ध सयल मई लासु वत्त । तसु कारणि सामिणि सुललिय-गाििण विन्नवेसु एक्कंतरण । एरिसु निमुणेविणु महु तूसेविणु किउ पसाउ कडि मुत्तएण ॥१७॥ [१८] एत्थंतरि आगय जणणि तासु पभणिय विलासवइ साहिलासु । उठेहि पुत्ति सारेहि वीण महाराएं पेसिय तुज्झ आण । तई तासु पुरउ बहुविह-पओउ कायव्वु अज्जु वीणा-विणोउ । तो उट्ठिवि गुरु-लज्जालुयाए पणमेवि जणणि जंपिउ इमाए । ५ सदावहि वीणायरिणि देवि सहस त्ति चलिय एरिसु भणेवि । अहमवि य विसज्जिउ घरह आय चिंतति य मणि बहुविह उवाय । तो सविसेसेण निरूवियस्स उवलद्ध पउत्ति न का वि तस्स । ता किं अक्खिस्समि निव-सुयाए अद्धासिय चिंत-पिसाइयाए । एयं चिय दारुणु दुक्खु मज्झु नीसेसु वि साहिउ सुहय तुज्झु । १० मई जंपिउ चिंत परिच्चएहि में इह विसाउ सुंदरि करेहि । तुह सामिणि-वल्लहु होइ न दुल्लहु सो जुवाणु जाणामि हउँ । तेण य तुह दइयहे नरवइ-दुहियहे निच्छउ दुहच्छेउ विहउँ ॥१८॥ [१९] पुच्छइ अणंगसुंदरि कहेहि को सो जुवाणु किह तुहु मुणेहि । मई साहिउ मज्झु अभिन्न-चित्तु सामिउ वयंसु अह भाइ-मिस्तु । सो सुंदरि सेयवियाहिवस्स नंदणु जसवम्म-नराहिवस्स । नीसेस-कलालउ भुवण-सारु नामेण पसिद्ध सणंकुमारु । कीला-निमित्तु वण-पत्थियस्स सा बउल-माल निक्खित्त तस्स । तेण वि बहुमन्निय आयरेण इय सुणिवि भणइ सा अलमिमेण। जो जाणिवि सामिणि-हियय-भाउ अच्छइ य निरुज्जमु विगय-राउ । मई जंपिउ नस्थि निरुज्जमो वि परिचिंतइ विविह उवाय सो वि । [१५] १०. पु० सुधीरचित्त [१८] २. ला० महाराई ४. ला० उठेवि ६. ला० अहमवि अविसज्जिय, चितेति य मणे १२. पु० दइयहि नरवइदुहियहि, दुक्खच्छेउ [१९] १. पु० तुहुँ २. पु० मज्झ. ५. ला० बहि पत्थि० Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. २१] विलासवई कहा पर मन्नइ कह वि अनिंदिएण पाविज्जइ जइ केणइ नएण | १० निसृणिवि अगंगसुंदरि भणे ता सामिणि कीस न अवहरेइ । अणुराय सहावहं सम- अणुरुवहं अवहरणु विकुल- कन्नयहं । विहि एहु भणिज्जइ न य निंदिज्जइ पुरिसहं साहस- उन्नयहं ||१९|| [20] पर एरिसि कियइ न होइ सेउ । सव्वत्थ अक्खलिउ तस्रु पयारु । जीवणु महंतु न य गहिउ तेण । तामसावि यावि देइ | atrरु असेसु सामिणिहि साहि । जं दोन्ह वि दंसणु ताण होइ । पुणु सामिणि भवणुज्जाणि नेमि । तो दंसणु होस निव्वियारु । हउं पुणु संपत्त तुह सयासि । संप पुणु कुमरो चिचय पमाणु । सव्वाहं वि सोक्खहं गयउ पारु । मई बोल्लिउ सुंदरि अस्थि एउ अइ-वल्लहु नर-नाहह कुमारु उवणीउ तस्स बहु- माणएण जं कुरु भइ तं चिय करेइ ५ ता अलमिमेण तुहुं ताव जाहि अन्नु वि मह कहहि उवाउ कोइ अह भणिउ तीए एरिस करेमि तुहुं पुणु आणिज्जहि तर्हि कुमारु इय जंपिवि गय सामिणिहि पासि १० एहु वइयरु अक्खिउ मई पहाणु एरिसु निमुणेवि सणकुमारु तं पीsहिं पडियउ धीsहिं चडियउ नाइ महूसउ पाविउ । वसुभूइहि तु ठउ पुणु सुविसिट्ठउ कडय-जुयल तसु दावियउ ||२०|| 3 [२१] वसुभूइ भणिउ तो सबहुमाणु अह ते गय भवज्जाणि दो वि तत्थ व अकाल-कय-दोहले हिं छप्प वि उउ निवसहिं सच्चकालु ५ पढमं चिय तिलयासोय जं तु गिम्दु वि मल्लिय- परिमलु वरंतु [१९] १० पु० निसुणे वि [२०] २. ला०वि तमु अक्खलिय पयारु ५. • पु० तुहु ११ ला० सव्वाहु वि सोअह गयउ [२१] २. ला० भवणुज्जाणे ९. ११ न कयावि करउं तई अप्पमाणु । आढत्त भवि तहिं सव्वओ वि । कुसुमिय-असेस - तरु-मंडलेहिं । उज्जाणु मणोहरु तं विसालु | किय-सिंदुवार - मंजरि वसंतु । पाउसु कयंव वासिय दियं । ला० अलमेएण ८. ला० आणेज्जहि Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ साहारणकविरइया पुणु गय-मय-गंध- सरिच्छए हिं पिंजर-पियंगु-मंजरि विसिदठु उद्दाम - कुंद धवलिय- दिसोहु १० अन्ने वि नाणाविह- कुसुम-वेसु [१.२२ सरउ वि सहिउ सत्तच्छएहिं । बहु-रोद्ध-गंधु हेमंतु दिछु । सिसिरोवि हु पीयय-जणिय- सोहु | कुमरेण पलोइय तरु असेसु । नाणाविह गंधिहिं कुसुम-समिद्धिहिं सव्वकाल-उज्जाणु वणु । रमणीउ विहावइ नंदणु नावइ देवाण वि अवहरइ म ||२१|| [२२] जा हिंडहिं तर्हि अच्छारिय-जुत्त उवसप्पवि भणइ कुमार एह अपणु आसre परिग्गहेण अह सो कुमार-संमुहु भणे ५ अह ते गय चंदण-लय- हरम्मि तारायण परिवुड मुक्क मेह परिवारिय निउण-वयंसियाहि नाणाविह कुसुमोच्चथधरीहिं कोमल- सुतार - गिर भासिरीहिं १० मुत्ताहल - कलिय-पओहरीहिं ताव य अणंगसुंदरि पहुत्त । चंदण-लय-गेहु अलंकरेह । वसुभूइ पलोइउ तो इमेण | कीरउ जं एसा आणवे । दिट्ठा य मज्झ विणिविट्ठ तम्मि । विष्फुरिय कंति जह चंदलेह | नं रायहंसि कलहंसियाहिं । नं कामह रोहिणि उउसिरीहिं । नं मंजरि वेढिय महुयरीहिं । नं जलहि- वेल सुमणोहरीहिं । नं धणु कइंतर सरु संघंतर मयणु निएविणु बल - वियल । विहिणा सुपसत्थिय विहिय सहत्थि य जें सा भिंदर जगु सयल ||२२|| [ २३ ] अह लहुइयारत्त-थल-कमल-सोहेहिं घण- लग्ग - अंगुलि-विनिग्गय-दलोहेहिं । अइ-विमल नहयंद-पसरंत - किरणेहिं कुम्मुन्नएहि सराएहिं चरणेहिं । चरणाणुरूवाहिं गय-रोम - संघाहि कुंकुम - पिंजरिय- सुकुमार - जंघाहि । वम्मह-महामल्ल-तूणीर - तुल्लेण वायाम थोरेण घण ऊरु जुयलेण । ७. पु० सरओ १० पु० कुसुमवेस, १२ पु० अविहरइ [२१] असेस ११. ला०] गंधेहि, पु० उज्जाण [२२] २. पु० उवसप्पेवि ४. पु० कोरइ ६. पु० जिह ८. पु० रिउसिरीहिं ९. ला० महु गरीहिं ११. ला० घण [२३] २. ला० तहइंद Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. २४] विलासवईकहा ५ वित्थिण्ण-मणि-मेहलाहरण-किरणेण सोहइ नियंबेण नं मयण-भवणेण । तेलोक्क लायण्ण-जल-कूय-सरिसेण सम्भाव-गंभीर-नाहिप्पएसेण । कसिणाए नं काम-कोयंड-लेहाए तणु-रोमराईए कय-मज्झ-सोहाए । नव-जोव्वणारूहण-सोवाणभूएण तुच्छेण मज्झेण तिवली-सणाहेण । पइदिवस-परिणाह-उब्भिज्जमाणेहिं लायण्ण-जल-भरिय-कलसेहि सिहिणेहि। १० सुकुमाल-बाहेहिं अप्पत्त-मुल्ले हिं हत्थेहि कंकेल्लि-पल्लव-सतुल्लेहिं । परिमंडलाए तिलेहाए गीवाए अहरस्स सोहाए जिय-बंधुजीवाए । निग्गय-मऊहेहि जिय-कुंद-कुसुमेहिं दंतेहि कंतेहिं घण-निद्ध-सुसमेहिं । तुंगेण सुटेण नासाए वंसेण ससि-बिंब-सारिच्छ-गंडप्पएसेण । तिहुयण-जयत्थं व संनिहिय मयणेहि वियसंत-नव-कुवलयाभेहिं नयणेहिं । १५ वेकेण किर काम-कोयंड-कसिणेण सोहइ सुरूवेण भुमयाण जुयलेण । सोहइ निडालेण अलयालि-सहिएण नावइ मियंकेण दर-राहु-गहिएण । मणि-कुंडलाहरिय-सुइसत्थ-पुण्णेहि मयणस्स हिंदोलएहिं व कण्णेहिं । मिउ-कसिण-सभावेण केस-कलावेण विविह-कुसुम-परिवासिएण । चंपय-लय नावइ सुठु विहावइ भमर-कुलेण व संसिएण ॥२६॥ इय परम-रूव-सोहा वहंति सहियाहिं सहिउ किंचि वि कहति । मणि-मंडिय-कणयासणि निविट्ठ एरिस विलासवइ तेण दिट्ट । सा पेच्छवि मोह-परव्वसेण निय-चित्ति वियप्पिउ एउ तेण । विहिणा इह निरुवम-रूव-देह धुण-अक्खर-नाएं विहिय एह । ५ जइ एरिसु तसु विन्नाणु होइ तो कीस न विरयइ अन्न लोइ । इय सो चिंतेंतउ निय-मणम्मि तीए वि पत्तु दंसण-पहम्मि । पुलइउ सिणेह वियसंतएहिं कसिणारुण-धवल-चलंतएहिं । तारेहिं असमत्तालोयणेहिं ईसीसि सलज्जहिं लोयणेहिं । सा कुमरु निएविणु तक्खणेण सहस त्ति समुट्टिय सज्झसेण । १० कुमरेण भणिय चालिय-करेण सुंदरि अलमलमइसंभमेण । [२३] ६. ला० लावण्ण. पु. कूव १०. ला० किल्लि - १४. पु. कुवलयाहेहिं १५. पु० सरूवेण, ला० भमयाण १८. पु० सहाविण .....कलाविण [२४] १. ला० रूय, पु० सरिसु किंचि. ३. ला० चित्ते ४. ला० रूय,-नाई ६. पु० चितिंतउ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ साहारणकविरइया जंपिउ सहीए एत्थंतर म्मि विठु तत्थ सहरि कुमारु कलहोय-विमल-तलियाए तासु तें जंपिउ आसणु उद्दिसेवि १५ अह सा उवविट्टिय अइसय तुट्टिय जाव खणतरु वोलियउ । ता तत्थ वल्लिउ तीए महल्लउ मित्तभूइ संपावियउ ॥ २४ ॥ पर्णामउ विणण सणकुमारु अह सो विलासas इय भणे ater-yaa वीसरिय जेण ता अज्जु लहुं चिय ते सरेहि ५ एरिसु निमुणेविणु सा भणेइ पडिवज्जिवि तो कंचुइ- समेय जोयंत सिणेह वलंतएहिं मंथर गइ सुललिय- चलिय- हत्थ निय-भवणे किंपि कंपंत-गत्त १० वसुभूइ भइ उट्ठेहि मित्त दिट्ठो च्चिय पर मालवउ देसु छु तुम्ह दंसणमेत्तु जाउ किर गोट्ठि का वि होस विसिद्ध एत्थ वि विलासवइ चज्जिएण बसह विलासव - आसणम्मि । अणुरूव विहिउ महोवयारु । तंबोल वि दिन्न पंचवासु । उवविस विलासवई व देवि । [१.२५ [२५] तेण वि सो विहिउ किrवयारु । नरनाहु कुमरिए आणवे । तुह उवरि कल्लि हउं रुट्ठ तेण । महु पुरउ वीण-वाणु करेहि । जं किंचि ताउ आएसु देइ । लयहरe विणिग्गय सिग्ध-वेय | नयणेहिं कसिणुज्जल-रत्तएहिं । मुहलिय-मणिरसणा खलिय-वत्थ । मयण-सर-घाय-भीय व्व पत्त । निय घरह जाह सुविसत्य-चित्त । मंडा वि न खद्धा इय विसेसु । तो पत्तु महल्लउ अंतराउ । तो पढम - गासि मक्खिय पवि । किं अज्जवि मित्त विलंबिण । १५ निग्गय उज्जाणह चल्लिय भवणह एत्त अस्थि अनंगवर | अंतेउर सारिय नरवर - भारिय कुमरु देक्खि तहिं चलिये मइ ||२५|| [२४] १२. ला० विहियउ १५ ला० अयसय [२५] १. पु० कियोवयारु ४. ला० पुरओ. १० पु० उट्ठिहि.... घरहं जाहं १२. ला० तुम्हह १३. ला० गासे, पु० पइठ १५ ला० अणंगमइ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.२६-] विलासवईकहा जं दिह्र कुमार मणोहरंगु तं तीए परव्वसु हुयउ अंगु । विवरीय-पाउ एहु मयणु होइ जं कज्जाकज्जु न मुणइ कोइ । मुझंति एत्थ नर पंडिया वि पुणु पुणु वि पयट्टहिं खंडिया वि । धत्तुरय खद्धे सुवण्णु जेंव पेच्छति सव्वु अणुकूलु तेंव । ५ कुल सील ठाउ नालोचयंति खणमेत्त सुहत्थु परिचयति । तं कुमर-रूवु परिमावयंति गय भवणुज्जाणि नरिंद-पत्ति । अह ते वि पत्त निय-मंदिरम्मि एत्थतंरे वियलिए वासरम्मि । पट्टविय विलासवईय लेवि कलहोय-विमल-तलियहिं करेवि । विज्जाहर-बंधि-गुत्थयाई कुसुमाइं सिंदुवारुब्भवाइं । १० तंबोलु वि सरिसु विलेवणेण आगय अणंगसुंदरि खणेण । पणिवाउ करेविणु भणिउ तीए सामिय विन्नत्तउ सामिणीए । एयाइं सहत्थे गुत्थयाई कुसुमाई दइय-जण-जोग्गयाई । जइ किज्जइ अम्हह उवरि नेहु अप्पणु अवस्स उवभोगु नेहु । कक्कोल-एला-जाईफले हिं कप्पूर-वेल्लि-बल्लह-दलेहिं । १५ कप्पूर-वास-पोप्फल-कसाउ नव-खइर-सार-सहयार-साउ । तंबोलु सवाणउ अज्जउत्तु अम्हहं पसाउ कोरउ बहुत्तु । तो इय जैतिय कुमरें बुत्तिय देवि किंचि जे आइसइ । तं चेव य किज्जइ न वियप्पिज्जइ मा अन्नह संभाविसइ ॥२६॥ निय-फुल्ल-माल परिहरिवि तेण सा कुसुम-माल धारिय सिरेण । पिय-पेसियं ति बहुमाणएण अंग पि विलित्तु विलेवणेण । तह निययावीलु परिच्चएवि तंबोलु सवाणिउ पिउ करेवि । विहसेविणु भणइ कुमार-इछु सुंदरि तई कुमरह विणउ दिदछु । [२६] २. पु० विवरिउ, जि कज्जाकज्ज ४. पु० खद्धि ५. पु. कुल, खणमित्त ६. ला• कुमरु, भवणुज्जाणे ७. ला० एत्थंतरि १२. ला. सहत्थि, पु० जुग्गयाइं १८. ला० विगपिज्जइ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ५ सा भइ विउ एयारिसे सु इय का विवेकीलहिं गमेवि पण विणु तो नरवर सुयस्स त दिन्नउ कंठ भुवण सारु सुंदरि घरु तुहु अप्पणउं एउ १० जो सामि तुम्हे आए देहु साहारणकविरइया [२७] पाहुडहिं महंतेहिं पेसिज्जतेहि निव्भर-पेम्म-परायण । कइय विदिण वोलिय आस-महेलिय विहिय हियय-साहारणहं ॥२७॥ [इ] विलासवई कहाए पढमा संधी समत्ता || अच्छरिउ होइ न य सज्जणेसु । बहु सपरिहासु बक्करु करेवि । चल्लि अगसुंदरि घरस्स । पडिवत्ति करेवि जप कुमारु । आगमणि करेवउ ता न खेउ । इय भणित्रि पहुत्तिय नियय-गेहु । ८. पु० करिवि ९. ला० आगमणे १०. ला० तुम्हि पु० भणेवि [१. २७ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-२ अह अन्नहिं दिवसि कुमारो तहो राय-कुलहो नीसरियउ । तक्खणे अणंगवइ-चेडीए पणमेविणु विन्नवियउ ॥१॥ अह सा कुमार अग्गइ कहेइ राणिय अणंगवइ इय भणेइ । जइ नाहिं गरुय-उबरोहु कोइ आगमणु करंतहं तुम्ह होइ । ५ ता एत्तिय दूरु कुमार एह अम्हह वि वयणु एत्तिउ करेह । तेणावि नरिंद-पियत्तणेण जंपिउ विसुद्ध-चित्तत्तणेण । अंबाए वि आण करेंतयस्स उवरोहु कवणु महु जंतयस्स । एककल्लउ चल्लिउ तो कुमारु संपत्तउ अंतेउर-दुवारु । तो फुरिउ वाम-लोयणु अणिडु उरोह-सील तह वि हु पविठु । १. सा दिट्ठ विमुक्काहरण-देह गंडस्थल-विउलिय-पत्तलेह । वामय-करग्ग-विणिविट्ठ-वयण परिमंद-ईसि-घोलंत नयण । तो पणमिय कुमरें सायरेण सा भणइ वयणि अपरिप्फुडेण । परितायहि तायहि मई कुमार हउं तुहु सरणागय सत्त-सार । तो जंपइ कुमरु विसन्न-मणु कसु पासह तुहु अंबि भउ । १५ सा मयण-वियारु करेवि भणइ मई अणंगु मारइ अदउ ॥१॥ [२] जदिवसह दिट्ठउ नयण-कंतु तुहुं भवणुज्जाणह नीसरंतु । तप्पभिइ पंचबाणु वि अणंगु दस-कोडिहिं विधइ मज्झ अंगु । ता मई तुहु अप्पिट निय-मणेण तुमए च्चिय बद्धउं गुण-गणेण । अणुराएं भरिउ सुनिन्भरण पज्जालिउ विरह महा-जरेण । ५ संगहिउ सिणेह-महा-गहेण सुपुरिस निय-संगम-ओसहेण । तिव्वयर-मयण-सर-सल्लियं ति निव्यायहि मज्झ सरीरयं ति । [1] १. पु. कुमारु तहे रायकुलह २. पु० भणंगवइचेडियए ५. ला० अम्हह वयणु १२. पु० कुमरिं १३. ला० परितायहिं परितायहि कुमार १४, पु० अंबे [२] ३. पु० तुह, गुणिगणेण ४. ला० अणुराई Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ साहारणकविरइया सत्ताहि ते च्चि पुरिस होंति अन्भत्थण विहल न जे करेंति । कज्जेसु य न य आय गणंति तह दीण-लोय अभुद्धरति । पूरंति य पणइ-मणोरहाई रक्खति तह य सरणागयाई । आसासणु सुहय करेहि मज्झ । अत्थाह-समुद्दे निवाडिओ व्व । मम्मेसु व विद्धउ वइरिएण । सुमहंतु दुक्खु पत्तउ खणेण । १० ता हउं सरणागय कुमर तुज्झ इय निणिवि वज्जें ताडिओ व्व भिन्नो वियलें तिक्खएण सो मुच्चतो वि जीविएण चिंत कुमारु तो नियय-मणे मोह -ऽन्नाण-परव्वसहं । १५ न य किंचि होइ विसयाउरहं अकरणीउ इह माणुस ||२|| [३] इय चितिवि भणइ सणकुमारु जो इह-परलोयहि वि विरुद्ध आलोच्चहि निय-कुलु अइ-विसालु परिभावहि तुहु केवड्डु नामु ५ संभालहि तह केवड्डु ठाउ संकप-जोणि सामिणि अणंगु संपज तिहुर्याणि तह अकित्ति पर-दारि गिद्ध जसु देवि होइ वज्जिज्ज सज्जण - आवलीहिं १० राउलि जणि सर्याणि सया ससंकु ता चरण-पणामु परिच्चएवि सत्ताहि ते पुण पुरिस होंति खंडंति कयावि न नियय-सीलु न य नियय-पयारु विलंघयंति १५ मुज्झति न उचिय-पओयणेसु [२] ८. ला० गर्णेति १० ला० करेह ११. ला० ताडियो, निवाडिउ १२ ला० मम्मेसु य १३. पु० सुमहंत १५. पु० मणुसह [३] २. पु० परलोए वि ८ पु० पर-दार, लोए ११. ला० तुज्झु [ २.३ संकy अंबि वज्जहि असारु । एरिसु न अंब अणुहरइ तुछु | अप्पणउ पेक्खि तु सामिसाल | अणुचितहि दारुणु विसय-गामु । देखहि नरिंद - संति पसाउ । उपाय नरएं सरि संगु । संताउ महंतु करेइ चिति । हलुयत्तणु तासु महंतु लोइ । दंसिज्जइ दुज्जण - अंगुलीहिं । आणेइ सुनिम्मल कुलि कलंकु । महु अंगु न लग्गइ तुज्झ देवि । जे धम्मु न कहवि परिच्चयंति । मणु खंचहिं अंकुसि जैव पीलु ।. निच्चु विवयणिज्जु विवज्जयंति | विणउ च्चिय पालहिं गुरुजणेसु । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. ४-] विलासवईकहा कामो वि हु किह रक्खियइ जहिं उप्पज्जइ असुह-मइ । अहिओ च्चिय वड्ढइ सेवियउ ता विवेय-सन्नाहु लइ ॥३॥ अन्नु वि पडिवन्नउ तुज्झु पुत्तु ता कीस करावहि मई अजुत्तु । पक्खिवहि कीस घोरंधयारि भीसण-नरयम्मि अणोरपारि । धग-धग-धगेंत-हुयवह-करालि बहु दुक्ख-सहस्स-निरंतरालि । ता एहु अहिलासु. परिच्चएहि मं तुच्छ-महिल-चेट्ठिउ करेहि । ५ अन्नु वि तुहुं अम्हहं सामिसालि तं एरिसु वुच्चइ चित्त बालि । जो एरिसु गुरु-पावेहि पयत्तु अणुयत्तइ सामिउ अहव मित्तु । सो घोर-नरय-संपत्थियस्स सर-पंजलु साहइ मग्गु तस्स । एत्थंतरि लज्जिय-वयणियाए जंपिउ अणंगवइ-राणियाए । तई साहु साहु उल्लविउ एउ उचियउ कुमार तुम्हहं विवेउ । १० तुहु रूवुवि सीलु वि अत्थि दो वि तई सरिसु न दीसइ पुरिसु को वि । रूवं च सीलं च विरुद्धयाई किर दोण्ण वि लोए पसिद्धयाई । इय लोय-वयण-विन्नासणत्थु एरिसु अणुचिट्ठिउ मई समत्थु । न य पुणु कुमार सब्भावु एहु ता संपइ वच्चहु नियय-गेहु । तो तहे पणमेवि सणकुमारु निय-भवणि पहुत्तउ सपरिवारु । १५ तो तहिं पावेविणु निय-भवणि दिवस-कज्जु सयल वि कियउ । वसुभूइ-पमुह-मित्तेहिं सहूं का वि वेल लीलहिं ठियउ ॥४॥ एत्थंतरि नरवइ परम-भिच्चु अइ-वल्लहु तह सन्निहिउ निच्चु । नयरह आरक्खिउ गुण-निवासु विणयंधरु पत्तउ कुमर-पासु । जोक्कारु करेविणु कहइ एहु हउं भणउं किंपि एक्कंतु देहु । अस्थाणु पलोइउ तो असेसु वसुभूइ-पमुह गय दूरदेसु । [३] १७. ला० सेवियओ .. [४] १. पु० तुज्झ २. पु. प.क्ख वसि, ला. घोरंधयारे ३. ला० राले ४. ला० परिच्च येहि ५. ला० ति एरिसु ९. ला० उचिओ ११. पु० दोणि १४. ला० तहि १५. ला० नियय १६. ला० लीलइ . [५] १. पु० एत्यंतरे, ला० तहे Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकहविाइया [२.६५ तो भणिउ तेण अवहाणु देवि निमुणह कुमार थिरु मणु करेवि । तुह पिउहु रज्जे सुरपुरि-विसेसु सत्थिमइ नाम वर-सन्निवेसु । तहिं आसि पणइ-जण कामधेणु कुलउत्तउ नामेण वीरसेणु । सो दाण-वसणि अहिमाण-वित्तु सूरउ दयालु य गंभीर चित्तु । पडिवन्न-वयण-पालण-पहाणु किं बहुणा सुपुरिस-गुण-निहाणु । १० सरिसस्स तस्स कप्पमेण निच्चं परत्थ-संपायणेण । मणुयत्तणु-सफलु-करंतयस्स गउ को वि कालु सुह-पत्तयस्स । आवन्न-सत्त पिय-परिणि हुय अह अन्न-कालि तमु सुंदरह । सा लेवि महंतें चडयरेण चल्लिउ तीए वि कुलहरह ॥५॥ [६] सो चल्लिउ जयत्थल-पुर-वरम्मि पत्तउ सेयविया-बाहिरम्मि । आवासिउ तत्थ विहाणएण एत्थंतरि पत्तउ तर्हि खणेण । सुमहंत-सास-परिपुण्ण-वयणु भय-कायर-तरल-चलंत-नयणु । परिखीण-गमणु वियलंत केसु कंठ-गय-विलंबिय-जीय-सेसु । ५ सव्वंग-गलंत-महंत-सेउ कोइ वि कुल-उत्तउ तुरिय-वेउ । भणियं च तेण पर-कज्ज-सज्ज परितायहि परितायाहि अज्ज । पडिवन्नउं मई अज्जस्स सरणु ता रक्खहि महु संपत्तु सरणु । जपिउ एरिसु कुल-उत्तएण मा भाहिसि भद्द भलं भएण । को मह पाणेसु धरंतएमु अक्कु वि उप्पाडइ तुज्झ केसु । १० मा मन्नहि इय घरिणीए वुत्तु आइउ करेवि किंचि वि अजुत्तु । तो घरिणि वीरसेणिं भणिय सुंदरि जइ न दोसु करइ । ता पुरिसु समत्थठ माणुसह अन्नह सरणु किं पइसरइ ॥६॥ ता सुंदरि किमिह वियप्पिएण पडिवन्नउं मई सरणत्तणेण । जो भावइ सो च्चिय एहु होउ पडिवन-सूरु सप्पुरिस-लोउ । भणियउ सो भद्दय उवविसाहि सो भणइ अज्जु महु सोक्खु नाहिं । [५] ९. ला०-पालणु १२. पु० अन्नकाले १३. पु० महंति. [६] ४. ला० गमण ९. ला० उप्पाडेइ ११. ला० घरणि Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. ८] दारिद्देण विय महा-कुलाणि ५ भय - पूरिय - महिला - हियउं जैव पर-निंदा वि सुयण - वाणि १० सीयंति अज्ज महु अंगयाणि । थरहरइ ऊरू-जुयलं पितेव । न वह गई थक्किय महुं नियाणि । पर पर खलंति तिह मज्झ पाय । नरनाह - पुरिस आसन्न हूय । मगत जिह अत्थियहं वाय अइ-दारुण नाइ कयंत दूय तो पुणविभणिउ कुल - उत्तरण मा भाहिसि भद्द अलं भरण | १० को इह पाणेसु थिरे मज्झ उप्पाड एक्कु वि वालु तुज्झ । आवास भतरि पइसरहि भद विसाउ परिच्चयहि । पडिवन्नउं सरणु सदोसह वि मई जीवंति न तुहुं मरहि ||७|| [4] पतहे अणेहिं जमदूय- सरिसेटिं उक्त्त खग्गेहिं कोयंड- हत्थे विलासवईकहा वावल्ल- भल्लेर्हि तो तेहिं चउपासु कलयलु करते ह रे रे दुरायार पावि निधम्म अवहरेवि पर दव्वु चंडस्स देवस्स खंडेवि तुहुँ आ ता जाहिं कहिं दिठु जइ विसहि पायाल अइ-तुरिय- वेगेहिं । अइ-कुद्ध-पुरिसेहिं । पडरुद्ध - मग्गेहिं | आबद्ध-मत्थे । झलहलय- सेल्लेहिं | वेढिय आवासु । अह भणिउ इय तेहिं । परिगलिय- मइसार | कियविहल - निय- जम्म । चेवि जणु स | सिरि- विजयवम्मस्स । देवखत पुरिसाण | तुहु अज्जु जमु रुछु | धरणिंद - फणजालि । २१ [७] ६. ला० वहइ मुद्द ज्जि धम्मद नियाणि ७. ला० मज्झु [4] १. ला० एत्तह ६. ला० तहि ७ ला० इयरेहिं १० ला० अवहरिवि १२. ला० तुंह १४. ला० फणजाले Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [२.९जइ सरणु सुरवइहि तह अंतु पुहईहि । जइ जलहि लंघेहि तो वि जोउ न लहेहि । तो पुच्छिय ते कुल-उत्तएण भदहो काई इमेण किउ । तेहिं पि भणिउ आरुटएहि चोरु एहु पट्टणु मुसिउ ॥८॥ अह भणिउ पुरिस कुल-उत्तएण मई गहिउ सरणु अमुणंतरण । भदहो सरणागय-वज्जणं च अह दुट्ट चोर-परिरक्खणं च । दोणि वि लोयम्मि विरुद्धयाइं ता तुम्हे वि कहह करमि काई । ते पहि जइ पत्तियहि अम्हि तो चोरु समप्पहि एहु तुम्हि । ५ मा चंड-देव-कोवानलम्मि होहिसि पयंगु अइ-भीसणम्मि । सो भणइ न भदहो एत्थु लोइ सप्पुरिसह एरिसु मगु होइ । सयमेव य जो पडिवज्जिउ ति अप्पिज्जइ सो सरणागय स्ति । ते पहिं जइ न समप्पएहिं बलि-मड्डए गिण्हहुं तुहुं धरेहि । आरुटउ कुल उत्तउ भणेइ को महु जीवंतहु एहु लेइ । १० इय जंपिवि सन्नाहिं समग्गु कुल उत्तई मग्गिउ मंडलग्गु । परिवारो वि संनद्धउ सयलु तेहिं वि अवराहिय-भएण । जाएविणु कहिउ नराहिवह एहु वित्तंतु सवित्थरेण ॥९॥ [१०] तो रूसवि भणिउ नरेसरेण महु पट्टणु मुट्ठउ तक्करेण । सो च्चिय सरणागउ धरिउ जेण सो मारह जाएवि सरिसु तेण । तो नरवइ-वयणि अइ-बहुत्तु आवासि तत्थ साहणु पहुत्तु । आवास-भूमि तो तिउण तस्स वेढिय असेस कुल-उत्तयस्स । ५ एत्थंतरि रोस-समुब्भडेहि सो पुण वि वुत्तु नरवइ-भडेहि । भो भो देसंतर-रायपुत्त किर एत्थु बुद्धि तुम्हहं पहुत्त । [८] १६. पु० ता जाइ अइ जलहि तो वि... [९] १. पु० अमुणेतएण २. ला० तहो दुट्ट.... ४. पु० पुच्छियहुं अम्हि, समप्पहु ६. पु० एत्य ७. पु० पडिवज्जओ, सरणागओ ८. ला० वलमड्डए गिण्हहं, पु० गेण्हहुं ९, पु० मई जीवते १०. ला० कुलउत्ति ११. पु. भविराहिय १२. ला० एह [१०] १. पु० मह ३. पु० आवासे Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २.११ - ] अजवि परियच्छहि कज्जु जाणि परिपंथ न किज्जइ तासु लोइ तुहु चोरें सरिसु मरंतयस्स १० तो वोरसेणु जंपर सुणेहु विलासवई कहा सरणाइउ जे नर परिहरति निय वयणे वि न निट्ठा हु जाह तो चोरु समप्प एहु नाहिं ear afi atfar as इय जाव भणिय कुल - उत्तएण गुणवंत वंस - विशुद्धयाई जो मित्तु विवंचइ परु दुइ बिहुरे वि जेण सामि छड्डज्जइ । सरणाइउ जो कर परिहरइ ति पर दिएण हाइज्जइ ॥ १० ॥ [११] २३ एहु चोरु समप्पि म करहि काणि । जो मासुको विविसि होइ । गुणु कवणु होइ जुज्झतयस्स । भो सुडो मा एरि भणेहु । न य विहलिय-जण अब्भुद्धरंति । निक्कारणु सुहत्तणु वि ताहं । मुय उपरि गड्डा किं न जाहिं । तो मुट्ठिहि उपरि को लुणेइ । आओहणु लागउ तो खणेण । तह मुट्ठिहि मज्झि निविडयाई । ५ सु-कलत्ताई व नमंतयाई रक्खस जिह पत्थिय रुहिर-पाण के वि एकमेक हक्कत दुक फारक के वि उक्खित्त-खग्ग के वि आसारोह मुयंति सेल्ल १० सर-वरि निरंतरु करहिं जोह अच्छाई नहलु सर - भरेण एहिं विवाहयालिहि नियत्तु तुह जणउ आस - सारण-समेउ रणु पेच्छिवि पुच्छिय पुरिस तेण १५ नरवर - पुरिसेहिवि कहि सव्वु रे रे जा जीविउ महु धरेइ हाई तेहिं आरोवियाई । आययि तिक्ख सलक्ख बाण | पाइक चक चक्केहि अचुक | ओति घाउ भड-रुद्ध - मग्ग | मेल्लति भल्लि वेल्लंत भल्ल । जुज्झति परोपरु धरिय-कोह | हुउ दारुणु तं रणु तक्खणेण तहिं कालि कुमरु सुमहंत सत्तु । संपत्तउ सिरि- जसवम्मदेउ । रे जुज्झह तुम्हे हि सरिसु केण । तेवि भणाविय ते सगव्वु । सरणागय वच्छल को वहे । [१०] ७. ला० परिभच्छहि मं करहि ९. पु० तुह, ला० चोरिं १४. ला० सरणा[११] १. पु० ता. १०. ला० निरंतर 'जुज्झत १२. पु० काळे १४. ला० पेच्छेवि गउ....... णाइज्जइ. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [२. १२ निय-जीविउ विहवु परिवारु जेण ढोइउ सरणागय-कारणेण । पडिवन्न-सूरु सो राय-उत्तु सुपुरिसु मारिज्जइ किं निमित्तु । रे एह वत्त तायह कहह इय जं कुमरि ते भणिय । २० तें समर-वज्झु उवसंहरवि राय-पासि गय साहणिय ॥११॥ [१२] वइयरु जाणेवि नराहिवेण अवहरिउ कुमर-रूसण-भएण । कुल-उत्तउ कुमरि एउ वुत्तु भो सुहय-सार पइं कियउं जुत्तु । संपइ मा कस्स वि भद्द भाहि वीसत्थउ निय-गंतव्वि जाहि । तो पेसिउ सो सम्माणिऊण वाहुडिउ कुमारु पराणिऊण । ५ कुल-उत्तउ पयत्तु जयत्थलम्मि तत्थ वि पविटु ससुरह कुलम्मि । गेहिणि पसूय कालक्कमेण उप्पन्नउ पुत्तु मणोरहेण । सो पुण अहमेव सणंकुमार तुह जणइं किउ ममोवयार । तुह ताई तइयहु जण समन्नु तायह मह जणणिहि जीउ दिन्नु । मई सयलु वि साहिउ तांव एउ संपइ कुमार कारणु सुणेउ । १० गउ अज्जु नरेसरु वाहियालि वाहेविणु तुरय नियत्तु कालि । तत्थ वि वित्थरिय-महा-सिणेहु गउ झत्ति अगंगवईए गेहु । सा कररुह-विलिहिय-सव्व-देह नयणंसुय-धोय-कवोल-लेह । रोवंति य धरणियलोवविट्ठ एरिस अणंगवइ तेण दिट्ठ । तो नरवइ पुच्छइ ससि-वयणि काई एउ साहहि सयलु । १५ तीए वि सदुक्खिए अक्खियउ एउ सील-रक्खणह फलु ॥१२॥ [१३] तो नरवइ जंपइ कहहि केण किउ एरिसु सुमरिउ कसु जमेण । सा भणइ न मई विन्नत्तु देव जम्हा असमंजसु सव्वमेव । अन्नं पुणु पयडिय-मय-वियारु मई पत्थइ निच्चु सणकुमारु । [११] १७. पु० ढोविउ [१२] ३. ला० बीय पत्थउ ४. ला वाहुडियु ७. ला० किउ अनोवयार ११. ला० वित्थुरिय १२. पु० सयलदेह १४. ला० ससिवयणे १५. ला० सदुक्खि अक्खिन [१३] ३. ला० पुण..."मइवियारु, पु० अन्नह Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. १४] विलासवईकहा दुई-वयणेहिं य सुबहुयाइं पत्थंतहो तहो दिवसई गयाइं । ५ तसु चित्तु चहुट्टउ कहिं वि मोहि पर जंपइ तुहुं महु घरणि होहि । तं वयणु न मई पडिवन्नु जांव सयमेव अज्ज संपत्तु तांव । तो तहविहु देव अणिच्छमाणि हउं एव कयत्थिय विलवमाणि । तं निसुणिवि कुविय-नराहिवेण । अपियारिवि हउं आढन्तु तेण । रे रे विणयंधर पावयारु कुल-फंसणु मारि सणंकुमारु। १० एहु संभविज्जइ दोसु तस्स अन्नह कह निग्गउ निय-घरस्स। जइ मिट्ठइं सुर-वाणि-फलाई गोवालहं किं छुहंति ताई । मई भणिउं देउ जं आण वेइ तो पुणु वि नराहिवु इय भणेइ । तिह तुहं मारेज्जहि जिह न कोइ उवलक्खइ जिह न वि समरु होइ । मई चिंतिउ दारुणे हउँ निउत्तु सो सुपुरिसु न वि मारणहं जुत्तु । १५ एवंफल होइ नरिंद-सेव धन्ना पुण होंति जणा त एव । छड्डे विणु पुर-घर-परियणाई सेवंति य निढुज्जण-वणाई । हा किं कायव्वउं एत्थु मई को उवाउ किह पावियइ । सव्वं चिय सोहणु ता हवइ जइ न कुमरु वावाइयइ ॥१३ ॥ [११] एत्तहि तुहुं कुमर अमारणिज्जु एत्तहि आएसु अलंघणिज्जु । एक्कहिं दिसि अच्छइ तडु विसालु अन्नहिं वि वग्घु दाढा-करालु । इय संकड-वडिउ विचिंतयतु नीसरिउ राय-भवणह तुरंतु । संपत्तउ सीह-दुवार देसि छिक्किउ केण वि तोरण-पएसि । ५ तो जांव विलंबिउ असउणेण ता भणिउ सिद्ध-नेमित्तिएण । भो भो विणयंधर भद्द जाहि जं किंचि पोयणु सिग्घु साहि । सत्तमिय छिक्क एह सोम नाम आरोग्ग महाफल होइ ताम । होसइ आरोग्ग-महाफला य तह चेव अत्थ-लाभोत्तरा य । इय साहिय छिक्क रिसीहिं जेण अट्ठसु वि दिसासु पयाहिणेण । १० पडिसेहु अनिव्वुइ हाणि विद्धि खउ अंतरु खेमु तहेव रिद्धि । [१३] ५. ला० चहुदटू, पु० महुं घरिणि ८. ला. निसुणवि १५. ला० हुति १७. पु० पांवियई [१४] १. ला० एत्तहे ५. ला. विलंबिय Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२. १५ साहारणकविराया ता एहे छिक्कहे एहु विवाउ मई सयलु निमित्त-बलेण नाउ । निदोस-वत्थु-विसओववन्नु राएण विरुद्धाएमु दिन्नु । सगुणस्स उवरि कस्स वि जणस्स न य सो पडिहासइ तुह मणस्स । ता मा संतप्पहि किंपि तुहुं जं चिंतहि तं होइसइ । १५ परमेत्थु पयहि सिग्धयरु अन्नह असुहु पराविसइ ॥१४॥ मई चिंतिउ बहु-पच्चयहं गेहु नेमित्तिउ सिद्धाएसु एहु । ता किं हउँ होसइ इह अदोसु विन्नवणागोयरु देव-रोमु । हा किह करेमि को इह उवाउ भावंतह गुरु-उव्वेउ जाउ । हा विसमु कज्जु एरिसु मणम्मि चिंतंतु पत्तउ निय-घरम्मि । ५ जणणीए भणिउं किं पुत्त अज्जु उविग्गउ दीसहि कहहि कज्जु । मई चिंतिउ जणणि परिच्चएवि वीसास-थाम न य होति के वि । तो अक्खिउ वइयरु सयलु तीए अह जंपिउ इय दुक्खिय-मईए । पुत्तय मा काहिसि एउ अजुत्तु सो अम्हहं कुल-उवयारि-पुत्तु । एउ पुव्व-वित्तु तो कहिउ मज्झु जं सयलु वि अक्खिउ कुमर तुज्झु । १० तो हउं पहुत्तु तुह सन्निहाणु संपइ पुणु कुमरो च्चिय पमाणु । तो कुमरु विसण्णउ चिंतवइ पेच्छह दु-महेलियहं । अइ-दारुणु किह माया-चरिउ पाविट्ठहं कुल-मइलिअहं ॥१५॥ [१६] अहव वीसासु महिलाण को वच्चए जलिय-जलणस्स मज्झम्मि को नच्चए। महिलनामेण विस-पूरिया सप्पिणी कुडिल-चिन्ता य कस्सावि न य अप्पणी। रमणि रमणीय बाहिम्मि दीसंतिया मज्झि विस-सरिस गुंजा जहा रत्तिया। महिल पर-बंधु-हिययाण निन्भेयणी सरिय जिह नीय-गामिणि कुलुच्छेयणी। ५ महिल बहु-कूड-कवडाण मंजूसिया महिल सव्वेसु सत्थेसु अइ-दुसिया । महिल जिय-लोइ नीसेस-दोसग्गला महिल अपवग्ग-गइ-सग्ग-मग्गग्गला । [१५) ११. ला० एहि, पु० सयल १५. ला• परमेत्थ.......असुह [१५] २. ला० ता किंह हउ ३. ला० किं करेमि ६. ला० विसासथामि न हुंत ९. पु० मज्झ......तुज्झ [१६] १ पु० जलणजलियस्स ३. पु० रमणि रमणम्मि Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २.१७-] विलासवईकहा २७ महिल नरयस्स सोवाण-घणपंतिया महिल आणइ अणत्थाई निब्भंतिया । महिल निच्च पि पर- तत्ति-तग्गय-मणा महिल मय-मत्त कारेइ बहु कम्मणा । तिउस कक्कडिय जिह होइ खज्जं तिया । महिल अयसम्मि पाडे दुत्तारए । महिल मुह-महुर परिणाम - विरसिंतिया १० महिल रत्ता विरत्ता य फुड मारए अहवा किमिमेणं वियारिएण विसय- गिद्ध बहु- पाव-रइ | अविवेय- तिमिर-पडिरूद्ध-मइ किं न महिल साहस करइ ॥ १६ ॥ [ १७ ] अह हि पुण ती वि भासिएण अह महिल-वण-वागुरहं मज्झि अहवा ममं पि एरिस अवस्थ जेण य असमिक्खिय - कारयाणि ५ इट्ठा य सा वि किर नरवईस्स ता किमिह जुत्तु किंवा करेमि अहवा जइ साहमि नरवइस्स मई ताव समीहिउ किउ न तीए अकहिज्जेते वि य एत्थ लोइ एरिस पडिवन्तु नराहिवेण । को हरिणु जैव न पडइ असज्झि । संभवहिं दोस जोवणि समत्थ । जीवाण होंति इह जोव्वणाणि । १० भायणु वि भग्गु अहवा न भग्गु मारेइ टणक्कउ कह वि लग्गु । aft वि सहिय कुल - मयलण तहावि ना परह पीड किय सव्वहाव | इय बहु विष्णु परिचितयंतु एत्थंतरि विणयंधरेण वृत्त । ता करहि नरिंदह तणिय आण विणरंधर मई कुल- फंसणेण तो ती विकहिउ पमाणु तस्स । किमि ताव जहउि परिकमि । तो वावाइज्जइ सा अवस्स । पुणु किह दुहु करमि वराइणीए । निच्छउ कुल-लंछणु मज्झ होइ । तो जं कायव्वं एत्थु मई तं कुमारु महु आइसउ । तेणावि भणिउ आइ तुहुं भद्द नरिंद-परव्वसउ ॥ १७॥ [9] पर - लोयह पेसहि मज्झ पाण । गुणु कवणु एत्थु जीवंतएण । [१६] ११. ला० किमिमेण [१७] १. ला० तीय ३. ला० जोवणे ४. ला० असमक्खियकारणाणि हुंति ६. पु० किं ताव ८० पु० म किउ, ला० तीय १३. पु० ता जं कायव्वउं एत्थ. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [२.१९इय अद्ध-पवुत्तइ सिरिहरेण छिक्किउ छड त्ति दूरट्ठिएण । ... तह राय-मग्गि वच्चंतएहिं निय-कज्जु पयंपिउ बंभणेहिं । ५ किं बहुणा यहु जइ दोस-यारि ता दिव्यु लेहं राउल-दुवारि । तं निमुणिवि विणेयंधरु सतोसु जंपइ कुमार तुह नत्थि दोसु । दुरयार-सह तुम्हहं इमेहि न सहिउ छिक्काए निमित्तएहिं । उप्पाइय-बहुविह-पच्चएण सिद्धाएसेण वि कहिउ तेण । निदोस-वत्थु-विसोववन्नु राएण विरुद्धाएमु दिन्नु । १० ता किं इमेण बहु पलविएण साहेहि जहट्ठिउ सव्वु जेण । जाएवि नरिंदह विन्नवेमि तीए च्चिय दुम्मइ-फलु विहेमि । सो जंपइ काई कहेमि तत्थ अंबाए कयत्थण होइ जत्थ । ते भणिउ कुमार न दोसु तुझु स चिय दुट्ट अणंगवइ । अइ-दुट्टहं पोढ-महेलियहं साहसु कवणु न संभवइ ॥१८॥ [१९] एउ जाणिउ मई सामन्नएण किं पुण न मुणेमि विसेसरण । अहवा किं नाएं इय करेमि जाएवि नरिंदह विन्नवेमि । सो चेव लहेसइ एत्थु अंतु विणयंधरु उहिउ इय भणंतु । कुमरेण धरिउ दाहिण-भुयम्मि बइसारिउ सन्निहियासणम्मि । भणिउ य विणयंधर अलमिमेण अंबाए उवरि गुरु-अग्गहेण । जीविउ जाणेवि कयंत-सेसु किह कीरइ गुरुयण-संकिलेसु । इय निसुणेवि विणयंधरेण वुत्तु तुहुँ सिरि-जसवम्मह तणउ पुत्तु । ता कि उप्पज्जइ तुज्झ दोसु एएण वि कारणि मज्झ रोम् । तहे पावहे उप्परि कुमर जाउ ता हत्थह मेल्लहि करि पसाउ । १० जाएमि नरिंदह कहमि जेण पुणु भणइ कुमरु भो अलमिमेण । सो भणइ कुमार नराहिवह विनवियवउं अवस्स मई । कुमरो वि भणइ जइ एउ करहि तो अप्पाणु वहेमि सई ॥१९॥ [१८] ३. पु० सिरहरेण ५. पु० जइ एहु ६. ला० निसुणवि १२. पु० कयत्थणा १३. ला० ते भणिय...दोस [१९] १. पु० मइसामन्नएण ३. पु. लहिस्सइ एत्थ, ला० जंतु १. पु० सन्निहिवासणम्मि ५. पु० भणियउ ता कुमरेण अलमिमेण ....गरुयग्गहेण ६. पु० कयंतु ७. ला० निसुणवि....जयधम्मह ८. पु० कारणे. ९ ला० तह पावहि १२. पु० करेहि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. २०] विलासवईकहा [२०] एरिसु आयण्णवि सो विसन्नु बाहोल्लिय-लोयणु धरिय-मन्नु । सिर-कमले करेविणु दो वि हत्थ विणयंधरु जंपइ एउ तत्थ । भो पेच्छह केरिसु अम्ह देउ चिंतइ असमिक्खिय-कज्जु एउ । में एरिसु पुरिस-रयणु महंतु संभावइ असरिस-दोसवंतु । ५ महिलाण वयणि लग्गइ अभदु ता धिद्धी एयह देव-सहु । तो भणइ कुमरु मा इय भणेहि . तायह अक्कोसणु मा करेहि । विणयंधर तायह कवणु दोसु किज्जइ निय-कम्मह उवरि रोसु । अदिवसई जा मालिणिहिं होंति ता विल्लदलाई विफलु करेंति । जं पुव्व-विहिउ तं एइ मड्ड मुंडिज्जइ कि सई व सियभड्ड । १० मई कासु वि दिन्नउ दोसु आसि सो पत्तु अणंगवईए पासि । जो खाइ करंबउ एत्थु लोइ बहु-भेय विडंबण सहइ सोइ । दिज्जइ न दोसु कस्स वि जणह पुवक्किउ फलु परिणवइ । ता ताउ विसिठु वि किं कुणइ किं व करेइ अणंगवइ ॥२०॥ [२१] तो गरुय-सोय-अभिभूयएण भणियउ कुमारु विणयंधरेण । ता मज्झ सिग्घु आएमु देहि मई कायव्वउं तं कहेहि । तिं भणिउ भद्द आएसयारि तुहुं तेण सिग्घु मई नेवि मारि । किं हउं विणयंधर पाव-कम्मु जीवंतु करेसउं विहलु जम्मु । ५ सो भणइ किं जंपहि तुहुँ कुमार संबंध-विवज्जिउ वार वार । किं तुहुं पुरिसोत्तम पाव-कम्मु तुहुं धन्नु सफलु तुहु चेव जम्मु । जीवहि कुमार तुहुं बहुउ कालु भुंजिस्सहि रज्जु महा-विसालु । ता जइ देवस्स न साहियव्वु तहि पावहि जीविउ रक्खियव्यु । तो चिंतहि अन्नु उवाउ कोवि जिह दोण्ह वि अम्हहं कुसलु होइ । _ [२०] १. ला० आयन्नवि तो विसन्नु, पु० विसण्णु २. ला० हत्थु ४. ला० जिं पुरिस रयणु एरिस ५. ला० ता धी ध्धी अह हा देव सद्द ७. ला० कम्महु ८. ला० जांव मालिणिहिं हुति...व फणु करति ९. ला० पु० सियमेड ११. ला० लोए...सोए. १२. पु० परिणमइ १३. पु० ताओ विसिदठो...के व... [२१] ३. ला० तेण वि ४. ला० कहिउं, पु० करिस्सउं ६. ला० पुरिसोत्तिम ७. ला० तं बहुकालु ९. ला०जिं दुन्हि Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकाविरइया [२. २२१० जिह तुज्झ सुरक्खिय होति पाण जिह मई वि न खंडिय होइ आण । जिह सप्पु न मरइ न लट्ठिया वि भज्जइ तिह चिंतहि बुद्धि कावि । चिंतइ न ताव मई एहु वहेइ अवहंतउ अवराहिउ लहेइ । ता जइ नीसेसु परिच्चयामि वसुभूइ-सहिउ परदेसि जामि । एरिसु चिंतेविणु कहिउ तेण विणयंधरु तुट्ठउ निय-मणेण । १५ जंपइ एउ कुणह महा-पसाउ को अन्नु मुणइ एरिसु उवाउ । अन्नं च पयट्टउं इह वहणु तं सुवण्ण-भूमिहि उवरि । अज्जेव य रयणिहिं मुच्चिस्सइ तेण सरिसु तुहुँ गमणु करि ॥२१॥ [२२] ता अम्हि कुमारु अगुग्गहेउ तेण वि सहुँ चल्लउ सिग्घ-वेउ । कुमरेण वुत्तु जं तुहुं भणेहि ता मइं पुरिसोत्तम तेत्यु नेहि । एत्थंतरि तो अथमिउ सूरु तउ कुमरु पयट्टउ जाव दूरु। आरत्त संझ नहयलि विहाइ नरवइहि उवरि आरुट्ठ नाइ । सरवरि तामरसई मउलियाइं नं कुमर-विओइ करालियाई । मिहुणई चक्कायहं विहडियाइं नं कुमर-सरिसु सम-सुह-दुहाई । अंधारिउ नहयलु तक्खणेण नं चल्लिय कुमर-निरक्खणेण । वित्थरिउ संख-रवु देउले हिं नं कुमार-गमणि धाहविउ तेहिं । उच्छलिय कंति घर-दीवयाहं नं कुमरु जंतु जोवंतयाहं । १० विच्छाय नयरि हुय घण-तमेण नं चलिय-कुमर-उन्वेवएण । वमुभूइ-विणयंधर-सहियउ तामलित्तिपुरि-निग्गयउ । बहु-जाणवत्त-सय-संकुलइ अह वेलाउलि सो गयउ ॥२२॥ दिहउं अह सज्जिउ जाणवत्तु तहिं वहणह सामि समुद्ददत्तु । तो सबहुमाण विणयंधरेण ते तस्स समप्पिय सायरेण । [२१] १०. ला. हुति....म वि... ११. पु० तिहे [२१] १. ला० अम्हे २. ला पुरिसोत्तिम, पु० तत्थ ३. ला० तं कुम: ५. ला० सरवरे ६. ला कुमरेसहिसु १०. ला० विच्छाइय ११. पु० विणयंधरसहिउ [२३] १. ला० सज्जिय २. पु० सबहुमाणु...सादरेण Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ आ २. २३] विलासवईकहा तेणावि पडिच्छिय सव्वहा वि एवं चिय वोलिय वेल का वि । कामिणि-कवोल-पंडुर-सरीरु उग्गउ ससि धवलिय-जलहि-नीरु । ५ संखुद्ध-सयल-जलयर-निनाय -बहिरिय-दिसि जलहिहि वेल आय । वसुभूइ-समन्निउ जाणवत्ति आरूढु तेत्थु जण-रवि पवत्ति । पाएहिं पडवि विणयंधरेण जंपिउ बाहोल्लिय-लोयणेण । खमियव्वउ मज्झ कुमार दोसु कायव्वु न अम्हहं उवरि रोसु । विहिणो वसेण तुम्हारिसेहिं किह लब्भइ संगमु सुपुरिसेहिं । १० वरि दुज्जण-संगम होज्ज लोइ विरहम्मि जस्स बहु सोक्खु होइ । मा होज्ज समागमु सज्जणस्त विरहेण दुक्खु बहु होइ जस्स । अम्हहं गुणु अत्थि न सव्वहा वि दोसेहिं वि सुमरिज्जसि कया वि । खेमेण य तहि निय-ठाणि पत्त पेसेज्जह नियय-सरीर-वत्त । इय जंपिवि पणमवि वाहुडिउ बाहप्पवाहोल्लिय-नयणु । १५ विणयंधरु कुमरु वि जइ नवि सक्कइ साहारणहं मणु ॥२३॥ इइ विलासवईकहाए विणयंधर-संधी दुइया समत्ता ॥ [२३] ६. ला० जाणवत्ते...पवत्ते, पु. तत्थ ७. ला. बाहुल्लिय १०. ला० वर....लोए.... सोक्ख ११. ला० होइ तस्स १२. ला० गुण Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अह तं जाणवत्तु आऊरिउ अइमहंत नंगर उच्चल्लिय ५ दिसिहिं गमणु निज्जामई सज्जिउ बहु- पयार जलहिहि बलि घल्लिय तक्खणि कण्णधारु उवउत्तउ अह पवहणु मग्गउि वच्चइ कत्थ विमयर - घाय - अप्फालिउ १० कत्थवि उच्छलिउ उल्लोलेहिं कत्थ वि जल-करि-दंत-विकत्तिउ कत्थवि सुमूरंतु पवालई कत्थ विविसहर विस - उग्गारेहिं इय तं तुरिय-वेउ तर्हि धाव १५ संधि - ३ [१] वसुभूइ- समणियम्मि जाणवत्त - संठिय कुमारि । आरूढ जणम्मि कय- विविह- मंगलोवयारि ॥ १ ॥ इय पवहणे वतयम्मि पुच्छिउ सो वसुभूरणा । को एसो वयँस मंतो नीसरिउ जेण हेउणा ॥ १॥ [ २ ] तो नीसेसु विवइयरु अक्खिउ कीस नरिंदह फुड न साहिउ तई निच्छउ कुल लंछणु आणिउ पत्तु न सोक्खु न दोसह छायणु [१] ३० पु० आऊरियउ....... पूरियउ ४ धवलु विसाल सिवडु पूरिउ । ठाणे ठाण संटिय आवेल्लिय । सुगहिरु मंगल - तूरु पवज्जिउ । वेजयंति धयवड मोक्कल्लिय । तो अणुकूल पव पवत्तर | कत्थ वि तरल-तरंगिहिं नच्चइ | कत्थ वि मच्छ- पुच्छ उच्छालिउ । हल्लावि महल्ल- कल्लो लेहिं । फुडिय - सिप्पि मुत्ताहल - चित्तिउ । कहिं विदलंतु लुलिय-संख - उलई । ओसरि सुरु झंकारेहिं । खर- धणुक्क मुक्कु सरु नावइ । ला० उच्चल्लिया सुगुहिरू ६. ला० विज्जयंति - ७. ला० तक्खणे ८ ला १०. पु० उल्लोलिहिं....कल्लोलिहि. १२. पु० मुसुमूलंतु ओसारि १६. पु० को एरिसु वयंस [२] १. ला० नीसेसो ४० ला० दोसहं च्छायणु... हयवं न हिक्स.... जंप तो वसुभूइ अवक्खिउ । कवणु कज्जु सायरु अवगाहिउ । कज्जु न तुम्हहं हुयउ न भिक्ख न भायणु । किंचि परियाणिउ । आवल्लिया ५. पु० तरंगेहिं ९. पु० कत्थ य ला० विसहरु... १३ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. ३] विलासवईकहा ५ विहवो वि छड्डिउ दोस उवज्जिय सुप्पु वि दड्ढउ चणा न भुजिय । अकहेविणु ज लोयहं आइउ भूवहं वंसु अलेक्खउ वाइउ । खद्ध कुमंतिर्हि तुम्हहं केरहं चुल्लह खारि देहि न य चोरहं (१)। तो वसुभूइ तेण संबोहिउ हउं वयंस कारुण्णइं मोहिउ। जइ नरवइहि फुडउं साहिज्जइ तो अणंगवइ वावाइज्जइ । १० ता वरि सहिउ निय-कुल-लंछणु मा वयंस पर-पीडा-दंसणु । इय बहु-वयणेहिं वसुभूइ-चित्तु संठावियउं । मासेहिं य दोहि पवहणं तं सुवण्ण-भूमिं पावियउं ॥२॥ अह ते जाणवत्त-उत्तरिया वहण-सामि पुच्छेविणु चलिया। अइ-मणहर रम्मत्तण भाविय दोण्णि वि सिरिउर-नयरि पराविय । एत्तहे सेयविया-वत्थव्वउ कुमरह बाल-मित्तु सरिसव्वउ । सेटि-समिद्धदत्त-वर-नंदणु सरलु वियक्खणु सुयणाणंदणु । ५ पुव्वमेव वाणिज्जि आइउ तेहिं मणोरहदत्तु पलोइउ । ते वि असंभाविय-आगमणे दिह बे वि पवियासिय-नयणें । कहिं मई एह दिट्ठ चितंतउ का वि वेल संठिउ जोवंतउ । तं पेच्छेविणु दोहिं वि विहसिउ अह सो पच्चभियाणिवि हरिसिउ । धाविवि किउ पणिवाउ कुमारह लग्गु कंठि सहयर-परिवारह । अंसु-पवाहु मुएविणु पुच्छिय कुसलें तुम्हें सरीरिं अच्छिय ।' अवि अम्हहं पहुणो तुह तायह कुसलु कुमार किं वम्मह रायह । तो तमु कुसलु कुमारे कहियउ मित्त-सहिउ निय-मंदिरि नीयउ । तो मज्जिय जिमिय परिहिय विहिय मणोरहदत्त-मित्तएण । उवयारे दो वि पूइया नियय-विहव-पीइ-सरिसएण ॥३॥ [२] ५ ला० छम्निउ, पु० दड्ढडं ६. पु० भूयह, ला० अलिक्खठ ७ ला० कुमंत ....] रहं चुग्गह उवरि...घेरहं, पु० कुमंतेहिं १० ला० विसहिउ ११ ला संमवियं १२. ला० भूमि पावियं [३] १. ला० विहणसामि २. ला० हाविय दोन्नि पु० पराइय ३. पु० एस्तहि. ४. ला० सरल ६. ला० आगमणिं ..नयणिं ७. ला० मइ... जोयतठ ८. ला० पच्चहियाणवि १०. पु० कुसलिहिं तुम्हि सरीरेहिं १२. ला० कुमारि ...मंदिरे Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ साहारणकइविरइया भुत्तुल्तर-कालम्मि सचिंति पुच्छिउ कुमरु मणोरहदन्ति । किं कारणु तुहुँ एक्क-सहाइउ एत्तिय दुरि कुमार पराइउ । बहुय वियप्प कुणइ अम्हहं मणु ता अक्खहि आगमण-पओयणु । कहिउ तेण रूसेविणु तायह चलिउ पासि हउं सिंहल-रायह । ५ सो माउकउ मज्झु ससिणेहउ मई तुहु कारणु साहिउ एहउ । ता महु एत्तिउ मित्त करेज्जहि पवहणु जंतु तेत्थु जोविजहि । जं आइसइ कुमार भणंति तं पडिवन्नु मणोरहदतिं । तो ससिणेह-सारु निवसंतहं को वि कालु वोलिउ कोलंतहं । अह सो निन्भर-पीइहिं पडियउ बहु-कालह कुमरह संघडियउ । १० सीहल-दीवि जंतु उवलक्खइ निच्चु वि वहणु न कुमरह अक्खइ । इय कोवि कालु वोलिउ तेण वि निम्भर-पीइ-लंघिएणं । निच्चं पि हु जंतु पवहणं कहिउ न कह वि विओय-भीरुएणं ॥४॥ तो जाणेविणु ऊमुय-चित्तउ कुमरु मणोरहदत्ते वुत्तउ । कि अवस्स तुम्हे जाएवउं पवहणु जेण जंतु जोएवउं । भणइ कुमरु महु अत्थि पओयणु तेण मित्त उत्तावलु महु मणु । सो जंपइ ता मज्म खमेज्जह किउ विघाउ जो तुम्हहं कज्जह । ५ जेण य विरह-दुक्ख-बीहंति किउ मई गमण-भंगु जाणंति । अन्नह निच्चु वि एत्थ महत्थई सीहल-दीवि जति बोहित्थई । सो जंपइ जइ एरिसु जोवहि अजं चेव मित्त पट्टावहि । होउ अविग्घु कुमार भणेविणु जोइउ जाणवत्तु जाएविणु । तो असेसु करणीउ करेविणु एत्वंतरि अप्पिउ छोडेविणु । १० भासुर-कंति पमाणिं गरुयउ पडउ कुमारह जणियच्छरियउ । अह ढोएवि तेण जंपियं कुमर सयल-रयणाण सोहणो । गेण्हाहि स-कोउगो इमो पडो नामेण य नयण-मोहणो ॥५॥ [७] १. ला० सचित्ति पु० सच्चित्ति २. पु० एकु बहाइड ६. पु० करेजहि, ला. जोवेहि ९. ला0 कुमर १०. ला. सिंहलदीवि ११. पु० कोई वि। [५] १. ला० मणोरहदत्ति २. पु० तुम्हं...जोएव्वउ ३. पु० महुँ ५. ला० भीयंति... मइ ९. पु० करउ करेविणु एत्यंतरे 10. पु. पड १२. पु. गिहाहि... पड ... Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. ७ ] घिलासवईकहा कुमरिं पुच्छिउ कोउगु केरिमु भणिउ मणोहरदत्ति एरिसु । एएण य पच्छाइय-गत्तउ पुरिसु न दीसइ जोइज्जतउ । तो कुमरिं तहेव विण्णासिउ तं कोउगु पेच्छेविणु हरिसिउ । सो पुच्छिउ अच्छरिय-समिद्धउ किह तई एहु मित्त पडु लद्धउ । ५ सो साहइ महु एत्थ-वसंतह आइउ आणंदउर-महंतह । सिद्धसेणु वर-सिद्ध पसिद्धउ ति सहुँ नेहु अम्हह संबद्धउ । अन्न-दिवसि सो गोटिहिं अच्छिउ तो मई कोउगेण सो पुच्छिउ । किं एउ सच्चउं मित्त सुणिज्जइ मंतेहिं जेण देउ वसि किज्जइ । तिं जंपिउ जो किरिय वियाणइ सत्तवंतु सो देवय आणइ । १० मई जंपिउ महु कोड्ड करावहि देवागमणु किंचि देक्खावहि । सो जंपइ थोवयं इमं कि पि वयंस मसाणे किज्जइ । सिद्धत्थाइहिं मंडलं उवगरणं पि य किं पि निज्जइ ॥६॥ मई भणिउं करेउ वयंसु सव्वु संपाडमि हउं उवगरणु दव्यु । सो जंपइ सामग्गिय करेहि सिद्धत्थ-कुसुम-गुग्गुलई लेहि । अन्नु वि जं जंपिउ कि पि तेण तं मई संपाडिउ तक्खणेण । पत्थंतरि तो अत्थमिउ सुरु वित्थरिउ महीयलि तिमिर-पूरु। ५ मंडल-उवगरण असेसु लेवि नयराउ विणिग्गय अम्हे दो वि । पत्ता य तत्थ भीसण-मसाणि । बहु-किलिकिलंत-वेयाल-ठाणि । डझंत-मडय-वित्थरिय-गंधि घुरुहुरिय घोर-सावय-पवंधि । भल्लउंकि-मुक्क-फेक्कार-सदि बहु-हड्ड-मुंड-रुंडहिं रउदि । तत्थेगदेसि मंडल विसालु आलिहिउ तेण हउं रक्खवालु । १० महु हत्थि समप्पिउ मंडलग्गु पज्जालिउ हुयवहु विहि-समग्र । [६] १. ला० भणिय ४. ला० अच्छिरिउ ५. पु० महं...वसंतहं ...महंतह ६. पु० ते सह नेहु ७. ला० गोदिठं ८.ला० मुणिज्जइ १०. पु० महुँ ला० को ११. ला. इमं किंतु, पु० किज्जए १२. ला० पु० निज्जए [0] १. ला० संपाड १. पु० एत्यंतरे, ला० महियले ५. पु०उवगरणु...नयरामओ. ६. ला० मसाणे...ठाणे ७. ला० गंधे....पर्वधे ८. ला० सद्दे ...रुडेहिं रठद्दे ९. पु० आलिहिउ झत्ति ह... Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ साहारणकविरश्या एत्यंतरि तेण जंपियं होयव्वउं तई उवउत्तरणं । जइ होइ बिहीसियाइयं न य कायव्वउ खोहु चित्तणं ॥ ७ ॥ [4] इय- निसामेवि अहयं पि सन्नद्धओ सिद्धसेणेण जावो समारद्धओ । कोव - वेलाए गयणम्मि आवंतिया नियय-तेएण सव्वं पयासिंतिया । कोमुई - चंद-सारिच्छ वर-वयणिया भमर - संजुत्त - सिय-कमल-दल-नयणिया । गंडवासेसु घोलेंत मणि- कुंडला अहिणवुब्भिन्न- रायंत- थण - मंडला | ५ डि-गेज्झेण मज्झेण सोहंतिया गुरु-नियंषेण सुर-सत्थु मोहंतिया । गमण-वस- खसिय- संठविय उवरिल्लया । किंचि सुकुमाल - पायडिय - उरु जुया । झत्ति दिट्ठा मए जक्ख-वर- कन्नया । पेच्छ मंतस्स माहप्पमच्चतियं । हत्थ जोडेवि परिसंठिया अग्गओ । देवतरु-कुसुम - संजमिय-धम्मेल्लया पवण- उक्खित्त-कर- धरिय- देवंसुया महुय-तरु-पक- वर- कुसुम-सम-वण्णया साय पेच्छेवि पच्छा मए चिंतियं १० सिद्धसेणस्स तीए पणामो कओ बहु-माणें तीए पुच्छियं भयवं किं सुमरण-पओयणं । तेणावि य साहियं इमं मह मित्तस्स य चोज्ज - कारणं ॥ ८ ॥ [3] मज्झ मित्तु दूरंतर - आइउ एय निमित्तु देवि अहिवासिय तो मह सम्मुहु तीए पलोइउ हउं परितुट्ठिय तुम्ह आएं ५ ' ता अक्खहि किं तुह पिउ किज्जइ सामिणि दंसणु लहिवि तुहारउ तीए भणिउ तई जंपिउ सोहणु ता गिन्हहि पड- रयणु सुसोहणु तो तहे संभम वयणु सुणेविणु १० जक्ख - कन्न सिद्धिं पट्टाविय [ ३.८ हु देव - दंसण - अराउ | तं निसुणेविणु जक्खिणि हरिसिय । सविणउ जंपिउ अग्गर होइउ । भद दिव्य-दंसण- अणुराएं । तो मई पणमिवि एउ भणिज्जइ । अन्नु कवणु वरु होस सारउ | तह वि अमोहर देवहं दंसणु । एहु नामेण य नयण - मोहणु । मई गिण्डिउ पय-जुयल नमेविणु । अम्हे दो वि घर संपाविय । [५] ११. ला० होयव्वं १२. पु० न कायव्वउ [८] १. पु० सण्णद्धउ २. पु० घेववेलाए ३. पु० सारिच्छवयणिया ८ पु० कण्णया [s] १. पु० दूरंतरुदिव्वदंसण ३. पु० समुहुं तीए भाई... अणुराई ५ ला पणमवि एव भणिय ९. ला० तर्हि, संभमु; गेव्हिड पलोए वि... अग्गए होएवि ४. ला० ६. पु० होस ८ पु० गेण्हहि Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. ११ ] विलासवई कहा एत्थंतरि रयणि वोलिया उग्गउ दिणयरु कमल- बोहो । ता एय कमेण पाविओ एस पडो नयणाण मोहणो ॥ ९ ॥ [9.] कुमरु भइ मित्त मण -हारिय अह सो सोहy us fruहेविणु आऊच्छेवि विसण्णय चित्तह दिन्नासीस तेहिं बहु मन्निय ५ नाणाविह - बोहित्य-समाउलि दिउं जाणवत्तु तं भरियउं नाणा - भंड- कलिउ जण-मालिउ तो सरदस्ति सविणउ किउ पणिवाउ कुमारह १० ईसरदत्त मणोरहदति सत्थवाह- सुय अम्हहं सामिय जीवि बंधव मित्त वयंसय सो जंपर जारिसा इमे तुह वयंस किं पुणरुत्तएण | म पि हु तारिसा इमे न य कायव्वउ खोहु चित्तएण ॥ १० ॥ [११] पडरयणह उपपत्ति विसारिय । निय-परिणय-मंठ बंधेविणु । परियणु सयल मणोरहदत्तह | चलिय मणोरहदत्त - समन्निय । ि पहुत्त तिन्नि वि वेलाउलि । सुर - विमाणु नाव अवयरिय ं । वैजयंति - झयमालोयालिउ । वह सामिपण तुरंर्ति । दिन्न आसणु सपरिवारह | भणिउ उ करयल जोडंतिं । मई तुह हथि हत्थु पणामिय । ता तुम्हहिं सुंदरु दट्ठव्वय । ३७ तो कुमारु वसुभूई सहियउ तर्हि वर जाणवत्ति आरूहियउ । ऊसिउ सिड जलहिहिं बलि घल्लिउ दिसि सम्मुह निज्जामई मेल्लिउ | तो पणमिवि निब्भरु रोवंतउ से मणोरहदत्तु नियत्तउ । अह तं जाणवत्तु संचल्लउ सील - दीवह सम्मुहु वहिल्लउ । ५ इय तहिं जाणवत्ति पवईतर तेरसमs वासरि संपत्तए । कालउ मेहु नहंगणे उडिउ । सव्वह कालु नाइ उक्कंठिउ [९] ११. ला० कमल-पोहणो [१०] २. पु० गेहेविणु, पु० -गंठिहिं बंधेविणु ३. पु० विसण्णहमित्तह ५. पु० पत्त गिव्हिषि ६. ला० दिठं १०. ला मणोरहदत्तें.. .. जोडेंति १२. ला० तुम्हेंहिं [११] १. ला० जाणवत्त २. पु० उब्भिउ सिड, ला० पलि घल्लिउ ...... सम्मुह निज्जामइ ५. ला० जाणवत्ते पवहंत .. ...... वासरे संपत्तई. ६. ला० सव्वहं Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ साहारणकइविरइया [३.१२ तो अंबरि विज्जुलिय झलक्किय जीविय-आस तेहिं न मुक्किय । तह गिरि-काणण-उम्मूलंतउ तं जलनिहि-जलु हल्लावंतउ । अइ-महल्ल-कल्लोल-खिवंतउ वाइउ विसम-पवणु सुमहंतउ । १० निवडिउ असणि-वरिसु अइ-दारुणु इय उप्पाउ जाउ जण-मारणु । अणियमिय-गमणु जाणयं अणवसिहयउ न मग्गु पावए । उम्मिठ-करि व्य मत्तउ खणि खणि सयल-दिसासु धावए ॥११॥ [१२] तो निज्जामय सव्वि विसण्णा जाणवत्तु धारंत वि खिन्ना । अह कुमरें धीरन्तु धरेविणु सिडु पाडियउ रज्जु छिन्नेविणु। कूवा-खंभय पाडिवि घल्लिय अइ-महंत नंगर आमेल्लिय । तह वि हु जेण भंड अइ-भारिउ जेण य पवणु वाइ अनिवारिउ । ५ जेण सयलु जलनिहि संखुद्धउ जेण य असणि-परिसु संवद्ध । अन्नु विसन्नयाए निज्जामहं तह य विचित्तयाए निय-कम्महं । इत्थिर्हि जिह रहस्सु पत्तउं मणे जाणवत्तु तिह फुट्टउं । तक्खणे बंधव जेंव काल-परियाई विहडिय सयल-सत्त-संघाई । तो कुमरेण फलहु संपाविउ तत्थ विलग्गु कंठ-गय-जीविउ । १० तिहिं दिवसेहिं फलह-संजुत्तउ कह वि कुमारु तीरि संपत्तउ । अंधारय-रेह-संनिहा तो कुमरें वण-राइ दिठिया । ऊससियं झस्ति हियवयं जीविय-आस मणे पइट्ठिया ॥१२॥ तो अच्चंत-खार-जल-भिन्नउ सो कुमारु जलहिहि उत्तिण्णउ । निप्पीलई तेण निय-पोत्तई पुणु वि कियई सरीर-आयत्तई । अह परिहणय-गंठि-निवसंतउं तं पड-रयणु न किंचि वि तितउं । तो कुमारह विम्हउ उप्पन्नउ पेच्छह पड-माहप्पु न भिन्नउ । [११] ८. ला० तहिं १०. पु० असण-वरिसु ११. ला० अणिवसिहूयउ. पु० अणवसिह उ १२. पु० खणे खणे [१२] १. ला० सव्वे......धार ते ३. ला० पाडेवि ४. ला० अणिवारिउ ७. ला० तिर फुटउ, पु० तह फुट्टउ १०. पु० दिवासहिं फलहिं ला० तीरु ११. ला० कुमरिं [१३] २. पु० निप्पोलियह तेग नियणेतह, ला० पुण ३. ला. किंचि विति विर्तितउ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. १५] विलासवईकहा ५ थेव दूरु जाएवि अह दिद्वउ जंबु-रुक्खु तहु तलि उवविद्वउ । जलहि-पवणि आसासिय-गत्तउ तो एरिसु चिंतणह पयत्तउ । एयई ताई जहिच्छाविहियइं विहि-विलसियई अचिंतिय-रूवई । एह सा कम्महं सत्ति अचिंतिय कहिं सेयविय-नयरि परिचत्तिय । कहिं पुरि-तामलित्ति छड्डेविणु कहिं अपारु सायरु लंधेविणु । १० कहिं हउँ सिंहल-दीवि पयट्टउ अंतरालि किह पवहणु फुट्टउ । किह अवत्थ एरिस पाविज्जइ तो अज्ज वि जीविउ धारिज्जइ । एगोयर-सन्निहेण वा विरहियस्स वसुभूइणा । किं अज्ज वि जीविएण मे एरिस विविह-किलेस-भाइणा ॥१३॥ हा सुमित्त हा गुण-रयणायर हा वसुभूइ कत्थ मइ-सायर । हा किह जलहिहि मयि विवनउ तइं विणु किं करेमि हडं सुन्न । आवइ-गयहं सोय-संतत्तहं वाहीणहं देसंतरि पत्तहं । दूसह-दुक्ख-जाल-उत्तारउ मित्तु एक्कु पर होइ सहारउ । ५ तो तसु विरहे जीउ न धरिज्जइ अहवा निच्छउ न वि जाणिज्जइ । जिह इउं वहण-भंगे उव्वरियउ तिह जइ कह वि सो वि उत्तरियउ । कम्मह परिणइ जेण विचित्तय कज्जहं गइ संभवइ अचिंतिय । ता इह फज्जे विसाउ न किज्जइ जीवंतिहिं पर पिउ पाविज्जइ । जिह रणिहिं अंतरियइं दिवसई तिह संजोय-विओयई सरिसइं । मिलइ कयावि सो वि जीवंतउ तम्हा अम्हहं मरणु न जुत्तउ । भुक्खिय-तिसिओ य उढिओ चलिओ उयय-फलाइ-कारणेण । जा वच्चइ उत्तरामुहो अह थोवंतरु ताव तत्थ तेण ॥१४॥ केलि-सहयार-फणसेहिं संच्छन्नया पक्क-नारंग-बिज्जउर-संपन्नया। पउर-पय-पूर-पब्भार-पाडिय-तडा कढिण-कक्कर-कराडीहिं किय-संकडा। [१३] ५. पु० तहे तले ६. पु० जल हि-पवण-आसासिय १०. ला० अंतराले १२. पु० इय गोयर[१४] २. ला० मज्झ ३. ला० देसंतरे १. ला० परो ५. ला• ता, पु० विरहि ६. पु० वहणभंगि ८. पु० कजि, ला० जीवंतेहिं [१५] १. ला० नारंगि-विज्जतरि-संपुण्णया २. पु० कय-संझडा Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधारणकविरा [३. १६ सरस - विय संत - तामरस-सय- सोहिया मच्छ- पुच्छ च्छडा घाय-संखोहिया । तीर-तरु- कुसुम - रय-राय- रंजिय-जला लडिय-तड- विटव- निवडंत-सडिय-फला । ५ कुरर - कारंड - कलहंस-कोलाहला कुंच- चक्काय - सारसिय-सद्दाउला । विविह-विहग- उल - वणराइ - मज्झट्ठिया पवर- निम्मल-जला गिरि-नई दिट्टिया । सरिय-नीरं च पाऊण दुह-मोयणं । तेण नइ पुलिणे अह सारसो दिओ । सरस-सद्देण समयं च वासंतओ । सा विलासवइ - देवी वि तर्हि सुमरिया । ४० तत्थ काऊण फणसाइ-फल- मोयणं तीर-सहयार मूलम्भि उवविद्वओ नियय - दइयाए चाडूणि कुव्वंतओ १० तं च पेच्छेवि कुमरेण निय-भारिया हा मह दइया गुणावली हय-विहिणा विच्छोइया महं । किं काही सा तवसिणी मह विओइ [१६] अहो es अदि- पिय विरह- दुक्खा अविन्नाय - पर- जायणाऽदीण-भावा न दूरप्पवासीय संतोस - जुत्ता सुणंति न दुब्भासियं दुज्जणाणं ५ न याति दारिद्द- चिंताण भारं न कुव्वंति तत्तिं परिचत्त-संगा ओ माणुसणं पि अम्हाण सोक्खं इमं अच्छए जाव सो चिंतयंतो सिलाए विसाला अइ-कोमले हिं १० करेऊण तो देवयाए पणामं जीवस्सए कह || १५ || समुपपन्न-साही आहार- सोक्खा | अपाविय- कलंका अमच्छर - सहावा । सया - पास सन्निहिय- पणइणि-पसत्ता । निवासं च कुव्वंति मझे वाणं । जहिच्छाए कीति इच्छा-विहारं । सुहेण व जीवंति रणे विहंगा । समुपज्जए एरिसं जत्थ दुक्खं । रवी ताव अत्थइरि- सिहर म्मि पत्तो । ओ सत्थरो तेण तरु - पल्लवेहिं । gaurt कर्ड गिहिणं च वामं । मिउ- सुरहि सुगंध - मंदणं आसासिओ सिसिरेण मारुणं । बहु-दिवस- परिसमे से निद्दा वि य संपत्त तक्खणं ॥१६॥ [१७] अह सा सोक्खेहिं वोलिय जामिणि कसिण-वेस असई जिह कामिणि । कमल-वण घण-नि दलंतउ पसरिउ तरणि- तेउ दिष्पंतउ । [१५] ५. पु० कुरकारेंड ६. पु० तत्थ पदंद निम्मल-जला १० पु० देवि तह १२. पु० महा-विओए [१६] १. पु० अहो रड़ दि० ६. ला० सुहेण वि १०. ला० देवयागुरु-पणामं, पु० गेहिऊणं च नाम १२ पु० निदोवियत तक्ख० [१७] २. ला० घण - निलैतड Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. १८] विलासवईकहा कुमरु विउद्धउ पसरिय-रोलिं नाणाविह-विहंग-हलबोलिं । पुणु पय? काणण-जोयंतउ । ५ तो विचित्त-काणण-पेच्छंति मणहर-गिरि-नइ-तीरु सरेंतिं । सुललिय-वलिय-विमल-जल-धोइउ कोमलु वालुय-पुलिणु पलोइउ । तत्थ पसत्थ मुलेहालंकिय सरलंगुलि-तल-कलिय अवंकिय । सुंदर-लक्खण तक्खण-उद्विय वर-पय-पंति तेण तहिं दिट्टिय । तो कुमरिं हरिसेण निरूविय इथिहि एह पय-पंति विहाविय । १० जेण लहुय सुकुमारिय दीसइ कत्थ वि इस्थि एत्थ ता होसइ । इय चिंतेवि कुमरु विम्हिओ सिग्घु पयट्टु तहेव अग्गउ । जा वच्चइ थोवंतरं पय-पंतिहि अणुसार लग्गउ ॥१७॥ [१८] ताव नाइ-दूरम्मि सहिण-बक्कल वसणि, तविय-कणय-अवदायदेह ससहर-वयणि । मण-नीसारिय-राएण चलणालग्गएण, जंघा-जुयलेण गूढ-गुंफण-समग्गएण। मयण-भवण-तोरण-सरिच्छ-उरु-जुएण, रसण-कलावह जोग्गेण विउल-नियंबएण। सज्जण-चित्त-सरिच्छए अइ गंभीरियए, सोहिय-नाहिए नाइ मयण-रस-कूवियए । डिभ-मुष्टि-गेज्झेण य तिलि-अलंकिएण,उबवासेहि खिन्नेण व मझि किसयरेण। तव-निजिणियए नाइ मोह-तिमिरावलिए, हियय-पवेसण-कामए पुणु रोमावलिए। पुण्णहं परिणामेहिं व दूर-समुन्नएहि,सहइ सार-सिहिणेहिं य सुह-रस-पुण्णएहिं । रेहइ सरस-मुणाल-सरिच्छेहिं बाहुएहि,अहिणव-रत्तासोय-सरिच्छेहिं करयलेहिं । कंबुय-परिमंडलए तिलेहालंकियए गीवए, वर-हारह जोग्गाए अवंकियए । १० अइसच्छहिं ससिबिंबसरिच्छ-वोलएहिं,हरिणवहूसारिच्छेहिं तरलेहिं लोयणेहिं । कडुय-तेल्ल-धारासम-नासा-वंसएण, दीहर-पम्हल-चंकेण भमुहा-जुवलएण। सुसिणिद्धेण अद्धिंदु-सरिच्छ-निडालएण,कुडिलें पदिठहिं संठिय-केस-कलावएण। वाम-करेण य पवर-कुसुम-छज्जिय धरइ,सुललिय-दाहिण-हत्थेण कुसुमोच्चउ करइ। संचरंति अन्नोन्न-विविह-तरु-वीहियहि,तावस-कन्न मणोहर कुमरें दिह तहिं । [१७] ५. ला० काणणु. ९. पु० कुमरे १०. ला० सुकुमारी ११. ला० अग्गओ १२. ला० थोवमंतरं ...लग्गओ [१८] २. पु० गण-नीसारिय ५. पु० खिल्लेण व मज्झे ६. ला० निजिणिय नाइ...पुण ८. पु. सरिच्छहिं १२, पु०सुसिणद्धेण अद्धदु...कुडिलं १३. पु०--हत्थिण, ला० कुसुमच्चउ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ साहारणकविरइया १५ सा पेच्छेवि तेण चिंतियं पेच्छह वण- वासे वि महुरया । थेवमंतरं विडवंतरि सविसेसु पुलइया ॥ १८ ॥ जावि [१९] जा मेल्लेव सो वण- वास- वेसु तो जलिय मयण- हुवहु खणेणं छज्जिय कुसुमाण भरेवि पट्ट विणि हिवि तो मयणह वियारु ५ गउ तीए पास तो पण मिऊण भयवह तुह वड्ढउ तव विसेसु सेयविया - पुरिए वत्थव्वउ पुणु तामलित्ति-नयरिहिं पहुत्तु पुणु सिंहल - दीवह हउं पयट्टु १० एक्कल्लउ पाविउ फलहरण एहु को पसु किं दीव कोइ तुम्हाण कत्थ आसमपयं ति तो अदिन्न - पडिवयण तहट्टिया सो वि विलक्खर चिंतइ निय-मणि ता किं पुच्छियाए कायन्त्रउ इय चिंतेवि कुमरु बाहुडियउ ५ कहिं एवं वच्चइ त्ति चिंतिंतर सा वि तत्थ मंथरु वच्चतिय सा कुमरु निवि तक्खणे तं सवलत - तिरिच्छ- दिट्ठिया । दिस जोएवि सज्झसा हया खणमेत्तं च अहोमुही ठिया ॥ १९ ॥ [20] [३. १९ eyers विलासasहि असे । संधुक्किउ सुमरण - मारुणं । सा नियय-वास सम्मुह पयट्ट । लय- जालह नीसरियउ कुमारु । सा भणिय करंजलि विरइऊण | हउं पुरि विमूढ - दिसा-पए । नीसरिउ तत्थ दिव्वह गईए । तत्थ वि यकज्जु निर्वाडिउ विसुत्त । महु अंतरालि बोहित्थु फुट्ट । ता भयवह कहि अणुग्गहेण । किं जलहि-तीरु किं वा न होइ । सासु कवणु तुम्ह वयं ति । नियय- वोवण - सम्मुह पट्टिया । जुवइ तरुणि तावसि एगागिणि । अन्नु को वि माणुसु पुच्छेवर । ठिउ पुणो विलय - गहणंतरियउ । सविसेसं जोयणह पयत्तउ । किंचि वि भूमि-भाउ संपत्तिय । [१८] १६. पु० विडवंतरे [१९] ४. ला॰ विणिगुहेवि ५. ला० पासु ६. ला० वट्टउ... पुरिसो ७ पु० देव्वह ला० नयरिं ९ ला • अंतराले ११. पु० इह को ८. [२०] ३. पु० पोच्छविउ ५. पु० कहि इह Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. २१ ] विलासवईकहा एत्थतरि अवलोइय पिट्ठउ जाव न कोइ सत्तु तहिं दिट्ठउ । तो पच्छा पच्छिय मेल्लेविणु परिहिउ वक्कलु उकेल्लेविणु । केस-कलाउ तीए परिमुट्ठउ पयडिउ अंगहं भंगु विसिट्ठउ । १० बाहु-लयाउ दो वि उव्वेल्लिय विहिउ वियंभणु सास पमेल्लिय । तं पेच्छेविणु कुमरु चिंतए हंत किमेरिसु केण कारणेण । अहवा किं मज्झ एइणा इह-पर-लोय-विरुद्ध-चिंतिएण ॥२०॥ इय चिंतेवि गिरि-नइ जाएविणु पाण-वित्ति किय फल गिण्हेविणु । तो बहु काणणेसु हिडंतह कुमरह माणुसु न य पेच्छंतह । सयल वि वासरु समइक्कंतउ पुव्व-विहाणि चेव पसुत्तउ । रयणिहिं जाममेत्तु जा अच्छइ ता कुमारु सुमिणतरु पेच्छइ । ५ किर कंचण-तरु-मुलि निविट्ठह का एवि दिवित्थिय एमु तुट्ठह । ढोविय सब्बिंदियह मणोहर कुसुम-माल अमोइय-महुयर । भणइ कुमार तुम्हें कुसुमप्पिय ता मई कुसुमहं माल समप्पिय । तुह निमित्तु पुत्वं पि वियप्पिय ता गिण्हह कुमार अवियप्पिय । सा गिण्हवि किर सहरिसु पाविय कुमरि कंठ-देसि आरोविय । १० एत्तहि सारस-रवु वित्थरियउ कुमरु विउद्धउ विम्हय-भरियउ । परितुदृउ कुमरु चिंतए आसन्न-फलु एस सुमिणउ । कन्ना-लाहं च सूयए जेण इयाणि चेव उवनउ ॥२१॥ [२२] अहव अरण्णु एउ किह होसइ को मह रण्णे वि कन्न दइस्सइ । __इय चितंतह सुमिण-पओयणु दाहिणु बाहु फुरिउ तह लोयणु । [२०] ७. पु० एत्थतरे अवलोइउ ८. पु०पच्छिया ....उक्खिलेविण १० पु. बाहुलयाओ ११ ला० पेच्छेवि, पु० किमेरिस वियाम कारणेण १२.पु. चिंतिएणं [२१] १. पु. गेण्हेविणु ३. ला सयलो वि वायरु, पु पुव-विहाणे ५. ला० मूले ६. ला० ढोइय ८. पु० गेण्हह ९. पु. गेण्हेवि... कंठदेसि लंबाविय १०. पु० एत्तहे ११. पु० सुमिणओ १२. पु० उवणओ [२२] २. ला० चितिंतह Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [३. २३ तो कुमरु चिंतइ मणे एरिसु रिसिहि न वयणु होइ अन्नारिमु । सउण सत्थु अणुकूलउ दीसइ रण्णे वि कन्नय-लाभु पयासइ । ५ पर जा सुंदरि भुयण-असेसहं रायहाणि जा सयल-विलासहं । सा य विलासवई वज्जेविणु अन्नहिं कन्नहिं न रमइ महु मणु । सुमिणय-देवयाए पुणु वुत्तिय तुज्झ निमित्तु पुव्व-निव्वत्तिय । अन्नए सरिसु न पुयहि परिचउ ता स च्चिय पावेवि य निच्छउ । जा मई तावसि कल्लि निरिक्खिय सा य विलासवइहिं सारिक्खिय । १० जेण य विहि-परिणाम अचिंतिय कह वि हु सा वि होज्ज संपत्तिय । अन्नह कह सा तावसि दीसइ किह वा मयण-वियारु पयासइ । अहवा जइ सा वि होसइ तहे लाहो वि हु तो अलद्धउ । पडिवन्न-वयाए संजुओ विसय-पसंगु हवे विरुद्धउ ॥२२॥ [२३] अहवा दंसण-सुहु पावंतह पिययम-गहिय-मग्ग-वच्चंतह । वय-गहणं पि हु मज्झु पहाणउं इय चिंतंतह झत्ति विहाणउं । नहयलि अंसुमालि उग्गमियउ नछु तिमिरु गिरि-गुह-संकमियउ । रयणि-विओय-महा-दुह-पडियई चक्कवाय-मिहुणाई वि घडियइं । ५ तो रम्मत्तणेण वण-भायह उक्कडयत्तणेण अणुरायह । लोहवणीययाए तह सुमिणह आस-परत्तणेण तहे ठाणह । तावसि-अन्नेसणह पयत्तउ काम-जरेण कुमरु संपत्तउ । न य सा तावसि कत्थ वि दिहिय वासरु रयणि तहेव य निट्ठिय । तो कुरंगु जिह वग्गह भट्ठउ वण-गइंदु जिह जूह-पणट्ठउ । १० तम्मि चेव काणणि हिंडंतउ कुमरु महंत दुक्ख संपत्तउ । इय तत्थ महंत-काणणि कुमरह कइय वि दिवस वोलिया। न य कत्थ वि सा पलोइया मण-साहारण-सार-मूलिया ॥२३॥ इइ विलासवई-कहाए भिन्न-वहण संधी तइया समत्ता ॥ [२२] १. ला० लाहु ५. पु० परि, ला० भवणि ७. ला० तुज्झु ८. ला० परिच्चउ १२. ला० ताह लाहो वि हु तो..., पु० तहे लाहो वि अलद्धद. १३. ला० तवे विरुद्ध [२३] २. पु० मज्झ ३. ला नहयले...ओग्गमियउ ६. ला० आयरत्तणेण, पु० तहि ७. ला. अन्नेसणहं १०. ला० काणणे. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-४ अन्नहि दियहि भमंतएण माहवि-लय-आलिंगिउ दिट्ठउ । अइ-मणहरु सहयार-तरु तस्स समीवि कुमरु उवविठ्ठउ ॥१॥ सा मुद्ध हरिण-लोयण वणम्मि जा अच्छइ चिंतंतउ मणम्मि । ता मुक्कहं पण्णहं वित्थरंतु आयण्णिउ मरमर-रवु महंतु । ५ तो वालिय-गीव सुविभिएण तदिसि वित्थारिय दिहि तेण । एत्थंतरि उद्ध-निबद्धरण सोहंति य जडहं पबंधएण । धवलेण य भूइ-विणिम्मिएण रेहंति निडालह पुंडएण । रुदक्ख-माल दाहिण-करेण धारंति कमंडलु वामएण । वक्कलेहिं महंतेहिं परिहिएहिं परिमुसिय-देह बहुविह-तवेहिं । १० सम्मुहं आवंतिय अइ-विसिट्ठ मज्झिम-वय-तावसि तेण दिह । तो उछिवि पणमिउ तहि कुमारु विणिगूहिउ सो मयणह वियारु । तीए वि सविसेसु पलोइऊण बाहप्पवाहु आमेल्लिऊण । देवि कमंडलु-सलिलु सिरि भणिउ सणं कुमारु चिरु जीवहि । गुरु-देवहं अणुभावएण हिय-इच्छिया मणोरह पाहि ॥१॥ चिंतइ कुमारु तो मणि पहिछु किह एह वियाणइ मई अदिछु । अह विमल-नाण-लोयण-समेउ किं वा न वि मुणइ तवस्सि-लोउ । एत्थंतरि पुणरवि एउ तीए सुह-वयणु पजंपिउ तावसीए । उवविसह धरायलि इह पसत्थि भणियब्वउं तई सहुं किंचि अस्थि । ५ सविणउ कुमारु तो इय भणेइ कीरइ जं भयवइ आणवेइ । अह तेण पमज्जिउ धरणि-वठु बइसारवि तावसि पुणु निविदछु । [१] १. ला० दियहे २. ला० समीवे.......उवविठ्ठओ ३. ला. हरिणि-लोयण...... चितितउ ४. पु० मरमर-रउ ५. ला० सुविम्हिएण ६. ला० एत्यंतरे ७. ला० रेहति ९. पु० वक्कलिहिं महंतिहिं १०. ला० सम्मुह ११. ला० उठेवि......तहे १३. पु० सिरे भणिउं [२] १. पु० मणे. ३. ला० मुह-वयणइं जंपिउ ४. ला० धरायले ६. ला० तेण य मजिउ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ साहारणकइविरइया [४.४ भणियं च तीए निमुणह कुमार थिरु चित्तु धरेविणु थेववार । इह भरहवासि कलहोय-वण्णु उववण-सुंदर-कंदर-रवण्णु । गुरु-सिहर-निलंभिय-गयण-मग्गु पज्जलिय-विविह-ओसहि-समग्गु । १० अइ-मणहरु किन्नर-गीय-सोहु बहु-रयण-किरण-रंजिय-तडोहु । निज्झर-ज्झरंत-झंकार-रावु मणहर-फुरंत-सिहि-कुल-कलावु । विज्जाहर-मिहुण-मणाभिरामु गिरि-पवरु अस्थि वेयइडु नामु । उभय-सेणि कुंभत्थलई सिहर-दंत-धारंतु विहावइ । वियलिय-निज्झर-मय-सलिलु दीहर-दंतु दिसा-करि नावइ ॥२॥ [३] तर्हि गंध-समिद्ध पसिद्ध पुरु विज्जाहर-नयरहं जं पवरु । तहिं नरवइ आसि सहस्स-बलो विज्जाहर-सामिउ पवर-कलो । तस्साऽऽसि विमल बहु-गुण-धरिणी सुप्पभ नामेण य पिय-घरिणी । ताण य हउं दोण्ह वि पाण-पिया नामेण मयणमंजरि दुहिया। ५ विज्जाहर-लोयण-मोहणयं तो पत्त कमेण य जोव्वणयं । एत्तहे विलासउर-सामियहो खयरिंदहो सिरि-मण-गामियहो । मण-नंदणु नंदणु पवणेगइ सो जणएं चिंतिउ मज्झ पइ । अह तेण सरिसु वीवाहु किउ अच्चंत वि सो मह पाण-पिउ । मह नेह-विमोहिउ एग-रइ पडिकूलु कयावि न सो करइ । १० अह निब्भर-पेम्म-परायणहं गउ को वि कालु सेविय-वणहं । विज्जाहरहं सलाहणिउ विसय-सोक्खु सुंदरु भुजंतहं । को वि कालु तर्हि वोलियउ मणहर-गिरि-काणण-माणंतहं ॥३॥ अह अन्न-कालि कीलानिमित्तु नहयलि विमाणु विरएवि विचित्तु । आरूहवि पवर-सुह-संगयाई दोण्ह वि अह नंदण-वणे गयाइं । [२] ७. ला. निसुणाहि ८. ला० भरह-वासे १०. पु० मणहर १३. ला० सिहर-दंतु [३] १. पु० पसिद्ध २. ला० पवर-वलो ४. ला• दुन्हि ६. पु० एस्तह...क्यरिंदहु सिरिमणि 1. पु०- जणई ८. ला० भच्चतो, पु० महं पाणपिओ ९. पु० एगरई... पडिकूल...करई १०. पु० पेम-१२. पु० तहिं वालियउ [४] १. पु० तह अण्णकालि...विरइवि चित्तु २. ला० मारूहेवि ..दोन्नि Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा तहि नेह-महा-गह-कीलियाई नाणाविह कीलहिं कीलियाई । जाव अयंडे निवडिउ खणाउ पवणगइ कणय-सीहासणाउ । ५ अकहेवि पओयणु तक्खणेण संमिल्लिउ लोयण-जुयलु तेण । पमिलाणु वयण-कमलं पि तासु अइ-रोदु पयट्टउ उद्ध-सासु । निय-ठाणह चलिय सिरोहरा वि तसु वाणि पणट्ठिय सव्वहा वि । इय सो संसार-असारयाए पंचत्तु पत्तु पेच्छंतियाए। तो हउं अणाह जिंव दुद्धरेण संगहिय सोय-गुरु-रक्खसेण । १० सारसि निह अणिवारिय भमंति धरणीयलि निवडिय तो धस ति। चेयण पावेवि जाव हउं उप्पएवि नहयलि पारद्विय । ताव न पसरइ मज्झ गइ केग वि गरुयइं पावि बद्धिय ॥४॥ तो सुमरिय नहयल-गमण-विज्ज सा वि हु कुमार हुय अकय-कज्ज । तो मइं परिचिंतिउ हा किमेउ एयपि दुक्खु निवडिउ अणेउ । तं दुक्खु धरेवि न सहिउ मणम्मि एकल्लिय रोवमि तहिं वणम्मि । हा वल्लह सामिय जीव-नाह हउँ कस्स वि मुक्किय तई अणाह । ५ हा दइय सलोणय रूववंत मई छड्डेवि पवसिउ कीस कंत । हा एग-चित्त हा ललिय-बाह उसरइ मरउं तुहु तणइ नाह। तुहं सामिय एउ भणंतु आसि महुं वल्लह तुहुं पाणह वि आसि । तो मई मेल्लेवि एक्कल्लएण तं सव्वु अलिक्कउं किउ गएण । हा कत्थ पयट्टमि किं करेमि कसु सरणु जामि कस्स व कहेमि । १० हा विहि तई कि उ एउ अजुत्तु अवहिउ अकाले जं अज्जउत्तु । तई सामिय मेल्लेवि मच्च-लोइ केणावि सहारउ नाहिं होइ। हा हा घरु बाहिरु सव्वु सुन्नु सोक्खाहं जलंजलि अज्जु दिन्नु । हा भयवइओ वण-देवयाहु मन्नावहु रुट्ठउ मज्झ नाहु । [४] ५. ला० संमेल्लिय लोयणु ६. ला० पमिलाण ११. ला० वेयण...नहयले १२. पु० मज्झु, ला० गरुइं पावि पद्धिय [५] ३. ला० धरवि ४. पु० कस्स व मुक्किय तइ ५. ला० सलूणय...छडुवि ६. पु० मरउं...तणए... ७. ला० सामि भणंतउ एउ ज्जासि ८. ला. मेल्लवि ११. ला. मेल्लवि...नाहि Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ साहारणकविरश्या किं सामि न उहि घरह जाहं १५ हा सामि सिग्घु पडिवयणु देहि इय जा रोमि तत्थ वणे ताव ताय पिय-मित्तु गुणायरु । पडिवज्जेवि तास वउ आइउ देवनंदु विज्जाहरु ||५|| [६] अह भणिउ तण वच्छे कहेहि भयवं कयंतु विलसर अणज्जु भयवं अवहरियउ मज्झ कंतु भयवं न किंचि कारण मुणे मि ५ निवडिउ सहसा सीहासणाउ जा वलियइ सोय-भुयंग- दट्ठ जंपिउ बाहोल्लिय- लोयणेण किं कीरइ एरि भवु असारु Toभत्यहं अह जम्मतया हं १० बालहं वि कुमारहं तरुणयाहं ईसर - दरिद्द जड पंडियाई सव्वाण वि जीवहं निव्विसेसु विस-मूल- विवइय-संभमेण मारुयनिरोह-सत्थाइएहि १५ देहतरि तक्खणि जीउ जाइ नर- तिरिय - मणु-सुरवर सगव्व जे इंद करंति महा-विलास [ ४. ६ अइ-गरुय वेल इह आगया हूं । अहवा वि ममं चिय तत्थ नेहि । किं पुत्ति मयणमंजरि रूएहि । किं पुत्ति कयतें विहिउ कज्जु । कि पुति तासु पविउ कर्यतु । मरणस्स सवित्रु जं कहेमि । पर- लोई पहुत्तउ तक्खणाउ | भयवं विज्जा मेहु पणट्ठ | वच्छे अलमिह परिदेविएण | पeas कथंतु इह दुन्निवारु । जणणीय वि अंकि पसुत्तयाहं । मज्झत्थहं वुड्ढहं गय-वयाहं । सुहिया व आवइ - खंडियाहं । उप्पज्जइ मरणु महा - किलेसु । जल-जलण- पडण - उल्लंबणेण । अन्नेहि विविविह उवद्दवेहिं । वच्चतह नत्थि परित काई । परिकुविउ काल कवलेइ सव्व । ताणं पि पहुच्चहिं मच्चु -पास | जो इंदाइ वि अवहरेर तत्थ अन्नु माणुसु को सोयइ । वाएं नज्जइ हत्थि जहिं तत्थ वुड्ढ किं पूर्णिय जोय || ६ || [५] १४. पु. घरहं [६] १. ला० भणिय.... रूवेहि २. ला०. कयंति ३. पर- लोए पहुत्तओ तो खणाउ बालह ११. पु० - दलिद्द, विस-मूल- १५. ला० देहंतरे माणुसु १९. ला० वाई, पु० निज्जहिं... पोणीय ला० मज्झु .... पहविय ५. पु० ६. पु० महुं ९. ला० ला० सुहियाहि १२. तक्खणे.... वच्चतहं १७. पु० जें १८. पु० अन्न को अंक- पसुत्तयाहं १० ला० ला० मरण १३. ला० Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. ७ ] वच्छे न य किज्जइ एत्थ सोउ लक्खिवि खण-भंगुर - संगमाई सुमरेवि विसय विरसावसाण अइ-दुलहु लहिविणु मणुय- जम्मु ५ मई भणियउं भयवं एवमेउ ता मज्झ अणुग्गहु पहु करेहि तिं भणिउ पुत्ति तुह एउ जुत्तु जेण य दारिदिय - दूहवाहं अवमाण - कलंकिं दूसियाहं १० दुक्खह उत्तारु न अन्नु कोइ विलासवई कहा [3] अह पुणु अक्खहि एउ महुं अचलिय- सम्म - विहाण - अणुट्ठिय । कवणें कारणें पुत्ति तुहु नहयल-गामिणि विज्ज पणट्ठिय ॥७॥ अबु जाणेविणु जीव-लोउ । आलोच्चिवि चंचल इंदियाई । trafar फल असमंजसाण । धन्ना करिति पव्वज्ज-धम्मु । वय - गहण होइ पर दुक्खच्छेउ । एस च्चिय तावस - दिक्ख देहि | गि-वासि दुक्खु महिलहं बहुत्तु । विवहं परिवज्जिय- बंधवाहं । महिलहं पर कम्मु करंतियाहं । पव्वज्ज एक्क पर सरणु होइ । ४९ [4] महं भणिउ न याणमि झत्ति का वि नाणेण निरूविउ भयवया वि । वच्छे गुरु-सोय-अभिहुयाए एउ सिद्ध-कूड लंघिउ तुमाए । सिहरम्मि पडिउ तुह कुसुम-दामु तिं विज्ज न पहवइ गइय-थामु भवं विज्जाहिं वि अलमिमाहि इह- लोय-मे-फल- साहयाहिं । ५ ता देहि दिक्ख करि महु पसाउ उप्पन्नउ वर पव्वज्ज-भाउ । आऊच्छिवि तो मह ताउ तेण आणिय तवस्स पभावएण । इह सेय-दीव - उकंठयम्मि दिक्खिय कुमार सोहण - दिणम्मि | आयारु असेसु वि तेण सिद्ध जो तास धम्मि किलोवइ । तो मज्झ करंतिहिं तव विसालु वोलिउ कुमार इह को वि कालु । १० अन्नहिं दिणि कुस - समिहा - निमित्तु गय जलहि-तीरे काणणु विचित्तु । लहेविणु... करेंति ६. ला० मज्झु ७. पु० दूहवाहुं ९ पु० -कलंकेहि... महिलह, ला० करेंतियाहं १०. ला० दुक्खहं ११. पु० अवलिय- १२. ला० पुत्तु, पु० पुत [७] २. ला० लक्खेवि ... आलोच्चेषि ४. ला० ते... तुहु, ला पुत्त... ८. ला० [4] १. ला० याणउ भत्ति का वि ३. पु० ते ५. पु० महुं ६. ला० आऊच्छेवि... आणीय ७. ला० -उक्कंठयम्मि ८. ला० आयरु.... धम्मे ७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [४.१० मच्छरसायणु मयरहिउ पावियपउमझायनिविद्वउ । गरुयउ नीरसु सत्त-धरु मुणि-वर-सरिसउ सायरु दिट्ठउ ॥८॥ [९] . तं च सुमहल्ल-कल्लोल-मालाउलं विउल-विलुलंत-संखउल-वेलाउलं । कहिं वि उदंड-डिंडीर-पंडुर-तडं कहि वि जुज्झंत-संघडिय-जलकरि-घडं। कहिं वि मुत्ताहलालुद्ध-जलमाणुसं कहिं वि गुरु-रोस-पमुक्क-विसहर-विसं । कहि वि परिहत्थ-मच्छेहिं उच्छालियं कहिं वि गुरु-मयर-कर घाय-अप्फालियं । कहिं वि आरत्त-दीसंत-वर-विद्रुमं कहिं वि लहरीहिं हल्लंत तीर-दुमं । कहिं वि उदंत-आवत्त-अइ-दग्गम कहिं वि अन्नोन्न-जल-वन्न-नइ-संगमं । कहिं वि जालावली-जलिय-वडवानलं कहिं वि बहु-रयण-किरणेहि रंजिय-जलं । एरिसं तीर-परिसंठिया सायरं गरुय अच्छरिय पेच्छामि रयणायरं। अह मई दिट्ठ कुमार तहिं जलनिहि-जल-कल-कल्लोल-पणोल्लिय । १० कतिहिं ससहर-रेह-सम फलहय-लग्ग कन्न एकल्लिय ॥९॥ [१०] एरिसु निसुणेवि पमोय-सारु चिंतइ निय-चित्ति सणंकुमारु । एह ताव मणोरह-पायवस्स दीसइ कुसुमुग्गमु मुह-फलस्स । तावसि कहेइ अच्छरिय-जुत्त हउं तीए पासि तक्खणे पहुत्त । दिट्ठिय सा कन्नय अइ-पहाण लायण्णे जाणिय जीवमाण । ५ सित्ता य कमंडलु-पाणिएण आसासिय तेण सुसीयलेण । उम्मेल्लिय लोयण-जुयल ताए उससिउ सरीरु ससज्झसाए। मई वृत्तिय वच्छे धीर होहि हउं तावसि मा तुहं भउ करेहि । तो नयणेहिं असुय मेल्लिऊण हउं पणमिय सविणउ उढिऊण । बइसिवि बहु खिज्जिउ चित्तएण मई तीए भाउ लक्खिउ मणेण । १० चितिउ इमाए मुसहावयाए भवियव्वु महाकुल-संभवाए । तो मई उवणीयइ वर-फलाइं कह कह वि तीए पडिगाहियाई। [८] १२. पु० संतवरु [९] २. ला० जुग्गंत. ५. पु०प्रत्याम् “ कहिं वि आरत्त... " त: प्रारभ्य कडवक-१०, पंक्ति-६ पर्यन्त पाठः न विद्यते । [१०] ७. ला० भय ८. ला० मेल्लेऊण, पु० पणविय ९. ला० बइसवि Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . ४. २१] विलासवईकहा तो आहारु न अहिलसइ पाणवित्ति कह कह वि कराविय । नेविण निय-आसमह पइ पच्छा कुलवईहि मई दाविय ॥१०॥ विणएण पणय कुलवइहि सा वि अहिणंदिय सायरु भयवया वि । मज्झण्हावस्सउ किउ असेसु तो सा मई पुच्छिय वत्त सेसु। वच्छे कहि तुम्हहं तणिय वत्ति भयवइ निवासु पुरि तामलित्ति । मई पुच्छिय का तुहुँ कहिं पयट्ट किह एत्तिय वाहिय जलहि वट्ट । ५ तो तीए सुदीहरु नीससेवि अहिययरु न सकिउ परिकहेवि । मई चिंतिउ गरुय-कुलप्पसूय एह नूण का वि वर राय-धूय । ता किह अत्ताणउं परिकहेइ महु पुरउ लज्ज गरुइय वहेइ । ता किं मह एयए पुच्छ्यिाए पुच्छिमि वइयरु कुलवइ इमाए । वासरु वि जाव वोलिउ कमेण किउ संझावस्सउ मुणिजणेण । १० तयणंतर गय कुलवइहि पासि सा पुणु तहिं झाण-निविठु आसि । पणमेविणु पुच्छिउ महु कहेह भयवं किर कन्नय कवण एह । कत्थ जाय किह नीसरिय किह अवत्थ संपाविय एरिस । किं वा अग्गइ पाविसइ भयवं कम्महं परिणइ केरिस ॥११॥ [१२] उवओगु देवि तो मज्झु तेण साहियउं तवस्स पभावएण । एह तामलित्ति-नयरिहिं पसूय ईसाणचंद-नरनाह-धूय । भत्तार-सिणेह-परब्बसाए एरिस अवत्थ पाविय इमाए । मई भणिउ किन्न एह कन्नय त्ति तिं जंपिउ कन्नय दव्वउ त्ति । ५ भावेण य पुण भत्तार-जुत्त मई पुणरवि पुच्छिउ किह भयंत । भयवंति साहिउ सुण इमाए निर-घर-वायायण-संठियाए । वट्टतइ मयण-महूसवम्मि चल्लिउ अणंगनंदण-वणम्मि । कोला-निमित्तु मित्तेहि जुत्तु जसवम्म-नराहिव तणउ पुत्तु । . [११] ३. ला. कह ... त्ति...तामलत्ति ४. ला० कहि एत्तिय ८. ला० एयइ ९. ला० वोलिय १४. ला० कम्मह [१२] २. पु० इह, ला० इमाई ३. ला० -सेणेह- ४. ला० ते ५. पु० भत्तारजुस्तु ६. ला० भासिट सुण ८. ला० मित्तेहि Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [४. १३ जोव्वण-विलास-रूवेहिं सारु नामेण य दिठु सणंकुमारु । १० भत्तारु पवन्नु मणोरहेहिं परिणीय न पुण पुन्वक्कएहिं । कइहिं वि दिवसेहिं वोलिएहिं जण-रवाओ एयए आयण्णिउ । राएं सो मरावियउ निदोसु वि किर दोस मन्निउ ॥१२॥ सो देवि उवरि बद्धाणुराउ राएण वि माराविउ वराउ । इय सुणेवि नेह-मोहिय-मणाए निय-मणि चितिउ एरिसु इमाए। हउं तं चिय पिउवणु पाविऊण पंचत्त-गउ वि पिउ पेच्छिऊण । पावुक्कड पाण परिच्चयामि किह विरह-दुक्खु दारुणु सहामि । ५ इय चिंतिवि जायए अड्ढरत्ति नीसेस-राय-परियणि पसुत्ति । कंचुइ-आरक्ख-समाउलाउ एगागिणि निग्गय राउलाउ । अवयरिय विसालए राय-मग्गे ___अत्यमिय चंद घण-तम-समग्गे । एत्थंतरि पर-जण-धण-हरेहिं सा गहिय महंतेहिं तक्करेहिं । सुमहत्थ-वत्थ-आहरणु लेवि वेलाउलि तो विक्किणिय नेवि । १० अह बब्बर-कूल-पयट्टएण सा गहिय अयल-संजत्तिएण । गेण्हेवि जाव कूलह पयट्टु ता जाणवत्तु अंतरे विफुटु । एसा वि हु पाविअ-फलहएणं इह कूले पहुत्त ति-रत्तएणं । एरिसु पत्तु कुमारियए अग्गइ पुणु भत्तारु लहिस्सइ । मुंजेवि भोय करेवि वउ सफलउ माणुस-जम्मु करिस्सइ ॥१३॥ मई भणिउ किं न वावाइउ ति भयवं जो एयहे वल्लहो ति । एवं ति पयंपिउ भयवया वि मइं चिंतिउ सोहणु सव्वहा वि । गय सा वि रयणि दुइयइ दिणम्मि आसासिय सा मई अवसरम्मि । छड्डहि विसाउ हो राय-पुत्ति अवलंबहि धिइ संतोसु चित्ति । [१२] १०. ला परणीय १२, ला० राई, पु० मारवियठ, ला. निद्दोसो...दोस-समन्निउ [१३] २. ला० सुणवि, पु० मणे ३. पु० पियवणु...पंचत्तु. ४. ला० दुक्ख ५. ला० एउ चिंतेवि ५. ला विसालइ ९. पु० वेलाउले, ला० विक्कीय ११. ला. , गिहिवि, पु० अंतरि १२. पु० कुलि [११] १. पु० एहए ४. ला० छन्नहि, पु० भो राय Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा ५ एरिसु असारु संसारु एहु नाणाविह-दुक्ख-सहस्स-गेहु । एत्थ य खलु सिमिणय-सन्निहाउ रिद्धीउ मणुण्णउ बहुविहाउ । अमिलाण-कुसुम-समु जोव्वणं पि सुमुहुत्त-मेत्त-रमणीउ तं पि । खण-मेत्त-दि-नट्ठई सुहाई जिह नहयले विज्जु-विलसियाइं । पियजणहं समागम तिह अणिच्च ठक्कुरहं भयहं जेम भिच्च । १० गय-कण्ण-ताल-चलु जीवियव्वु खण-भंगुरु भवह सरूवु सव्वु । को संसारि सया मुहिउ कस्स व सयल मणोरह पूरिय । कस्स न उप्पज्जइ खलिउ कस्स न आस-महद्दुम चूरिय ॥१४॥ [१५] इय दुक्खई देखेवि पुत्ति तेण कीरइ धम्मुज्जमु मुणिजणेण । तो तीए वि जंपिउ एवमेउ भयवइ पसाउ ता महु करेउ । दुक्खह निद्दारणु सुह-निहाणु कीरउ अचिरेण वयप्पयाणु । मई वुत्तिय धीरिय पुत्ति होहि वय-गहणि बुद्धि मा तुहुं करेहि । ५ जीवाण पढम-जोव्वणगयाण दुविसह होति इह मयण-बाण । अन्नु वि मई पुच्छिउ सावसाणु तुह वइयरु कुलवइ दिव्व-नाणु । अह तेण असेसु वि मज्झ सिठ्ठ जिह सेयवियाहिव-तणउ दिछ । ता म संतप्पहि निय-मणेण होसइ तुह संगमु सरिसु तेण । सो अज्ज वि जीवइ दीह-आउ इय निमुणेवि तहि परिओसु जाउ । १० अणुहुंजिवि सोहण सा अवत्थ निय-कण्ण हिं घल्लिय दो वि हत्थ । अणहोतु वि निय-चित्तएण कुंडल-जुयल उत्तारेवि दिन्नउं । हारह कारणे खिन्तु करु नियय-कंठु तो पेच्छइ सुन्नउं ॥१५॥ तो जांव न किंचि वि तीए पत्तु ता पुणरवि ठाणे निविठ्ठ चित्तु । सा विलिय अलिय निय-चिट्ठिएण मई वुत्तु पुत्ति किं संभमेण । . [१४] ६ ला० सुमिणय-सलिहाउ ७. पु० सुमहुत्त ८. पु० खणमित्त ९. ला० हइट्ठहं, पु० जेंव १० पु० ताल जण-जोवियव्वु, ला० खणहंगुरु हवह [१५] १. पु० दिक्खिवि २ ला० मह ३. ला० दुक्खहं . ला. गहणे ९. ला. निसुणवि १०. ला० अणुहुंजवि ११. ला० अणहुंतु, पु०-जुयलत्तारेवि १२. ला० नियय-कंतु [१६]. १. पु० जाव २. ला० चिट्ठएण ...वृत्त Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ साहारणकइविरइया [४. १७ उचिया तुहुं दाणह एरिसस्स तेण य न ताव तावस-वयस्स। सा पभणइ जं तुहं आणवेहि जं मई कायव्वउं तं कहेहि । ५ तो तावस-कन्न-विहाणएण तहिं को वि कालु वोलिउ सुहेण । अह अन्न-कालि कुलबइ-भयंतु गउ धम्म-भाइ-दसण-निमित्तु । सो जाव पत्तु सिरि-पव्ययम्मि एत्तहि कुमार अन्नहि दिणम्मि । गय एह कुसुम-समिहा-निमित्तु आगमणह अवसरु तीए वित्तु । अह काए वि वेलए वोलियाए अ वसेरिहिं महुं जोयंतियाए । १० एत्थंतरि पिट्टि पलोयमाणि अविरल-नयणंसुय पुंछमाणि । सेय-जल-पवल-संसित्त-काय नं खण महणुट्ठिय लच्छि आय । अच्चंत-अरइ-परिगय-मणम्मि संपत्त एह आसम-पयम्मि । सा पेच्छेविणु मई भणिय राय-पुत्ति किं रुयहि अवारिउ । तीए वि पिउ अज्ज मई भयवइ निय-बंधुयणह सुमरिउ ॥१६॥ मई भणिय पुत्ति मा तुहुँ रुवेहि कइय वि दिवसई परिवालएहि । कुलवइ भयंतु जा एत्थ एइ ता सो तई निय-बंघवहं नेइ । पडिवन्नु विलासवईए एउ तदिवसह न य पूएइ देउ । न य विहइ अइहि-बहुमाणु किं पि न करेइ कह वि कुसुमोच्चयं पि । ५ न य पणमइ सुहुय-हुयासणस्स न य विण उ अणुटुइ गुरुयणस्स । लिहइ य विज्जाहर-मिहुणयाई अवलोयइ सारस-जुयलयाई । मणहर करेइ जोव्वण-वियार अवलोयइ अप्पउं वार वार । मिहुणाणुराय-मुह-संगयासु तूसइ सा पोराणिय-कहासु । मई चिंतिउ वयह विसेसरण गहियउंजीवणु एयहे मरण । १० मउ मेयणि मयणु विलास-सारु जोवणु संभवइ न निव्वियारु । सो न अत्थि न य होइसइ जीउ को वि पाएण सदेहउ । जो जोव्वणु संपावियउ कुणई कया वि वियारु न एहउ ॥१७॥ [१६] ४. पु० ता जं... कायव्वउ १३. पु० रुयहिं १४. ला० जंपिउ मज्झु . [१५] १. पु० कुसुमुच्चयं ८. ला० मिहुणाणराग- ९. ला० एयहे जोव्वण-मएण १०. पु० मयणे मयण Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा [१८]] अह दुइय-दिवसि दिट्टउ इमाए वेढिउ पोफलि-तरु फणि-लयाए । आसन्नु दिछ वर-हंसु तीए चाडुयई करंतउ सहयरीए । तो सुललिय-कर-पल्लवु धुणेवि बाहोल्लिय-लोयण नीससेवि । नीसरिय झडत्ति तवोवणाउ मई तीए असोहणु कलिउ भाउ । ५ पेच्छामि ताव कहिं जाइ एह हउं गय पच्छइ पच्छन्न-देह । अगहिवि कुसुमच्छज्जिय करेण कुसुमोच्चय-भूमिहि गय खणेण । तो तरल-तार-नयहिं असेसु जोइउ कुमर सो वर-परसु । तो मइं परिचिंतिउ नियय-चित्ति किं एह एत्थ अवलोयइ ति । जोएविणु दिट्टिए दीहियाए गय एह असोयहं वीहियाए। १० अहमवि पेच्छमि घण-पत्त-जालि परिसंठिय केलि-वणंतरालि । अह तहिं पइसेवि तरु-गहणे तीए सुनिभर-धाहहिं रुन्न । दिन्नउ ओलंभउ विहिहि निदिउं जम्मु रूवु तारुण्णउं ॥१८॥ कर जोडिवि निब्भर-रोइरीए इय घग्घर-वयणए भणिउ तीए । हो भयवइओ वण-देवयाओ निमुणेह वयणु मह अवहियाओ। एसो च्चिय ताव हिं सो परसु जहिं वल्लहु दिट्ठउ पहिय-वेसु । तो तावसि तेण वियाणिऊण हउं पुच्छिय सविणउं पणमिऊण । ५ भयवइ तुह वढउ तव-विसेसु हउं पुरिसु विमूढ-दिसा-पएसु । वत्थव्वउ सेयविया-पुरीए नीसरिउ तत्थ देव्वह गईए। पुणु तामलित्ति-नयरिहिं पहुत्तु तत्थ वि य कज्जु निवडिउ विसुल्तु । पुणु सीहल-दीवह हउं पय? महु अंतरालि बोहित्थु फुटु। एक्कल्लउ पाविउ फलहएण ता भयवइ कहहि अणुग्गहेण । १. एह को परसु किं दीवु कोइ किं जलहि-तोरु किं वा न होइ । तुम्हाण कत्थ आसमपयं ति साहेसु कवणु तुम्हहं वयं ति । [१८] १. ला० दिवसे....पोफलतरु ३ ला० पल्लव ५. ला० पेच्छमि ६. ला० आगहेवि, पु० -भूमिहिं ७. पु० -नयणिहिं....जोविउ ९. पु० असोयह १० ला० -जाले... वणंतराले. ११. पु० तरुग्गहणे...सुनिब्भरु १२. ला० अस्सु [१९] १. ला० जोडेवि.... वयणई ४. पु० सविणउ ७. पु. वज़ 4. ला० सिंहल-, - पु० सींहल- १० ला० एह Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [४.२१ इय पुच्छंतह मज्झ पुणु सज्झसेण पडिवयणु न भिन्नउं । मयणि वाम-सहावएण नाइ मज्झ मुहि थंभणु दिन्नउं ॥१९॥ अह केत्तिय-मेन्तु वि जाइऊण धीरत्तु चित्ति अवलंबिऊण । अवलोइउ पिट्ठउ न वि य दिछु कत्थ वि घण-काणणि सो पविठ्ठ। ता एउ न निच्छउ हउं मुणेमि उपेक्ख एह एरिस कलेमि । किंवा वि विणिग्गउ महु मणाओ विज्जाहरु होवि नहंगणाओ । ५ किं अज्जउत्त-वेसेण होवि उवलोहइ मई अमणुस्सु कोवि । किं सुमिणु पलोइउ आलजालु किं वा तं दिवउं इंदयालु । किं सच्चउं सो च्चिय अज्जउत्तु मई पुच्छिउ तं तह विणयजुत्तु । अहवा जं होइ तमेव होउ हउं सहवि न सक्कउं तहो विओउ । महु जलिउ अंगु मयणानलेण परम्मुहिउ होइ विणु जीविएण । १० ता करमि नियय-पाणह विणासु बंधिवि अइमुत्तय-लयहि पासु । तो भयवईओ वण-देवयाओ कर जोडेवि अन्भत्थियाओ । साहेज्जह वइयरु वल्लहस्स तह कुसल करेज्जह देहि तस्स । अन्नु वि जणणि-समाणियहे मज्झ अणुहिउ एरिस कज्जह । तीए अकारण-वच्छलहे जाएवि भयवईए साहेज्जह ॥२०॥ [२१] लज्जाए परव्वस हउं वि तीए साहेवि न सक्कउं भयवईए । एरिसु कुमार बहुविहु भणेवि वम्मीय-सिहरि तो आरूहेवि । लय-पासु निबद्धउ तक्खणेण तो मइं परिचिंतिउ निय-मणेण । भो नत्थि किंचि दुक्करमिमस्म अनिवारिय-मयण-महा-गहस्स । ५ पइसिज्जइ पजलिय-हुयवहम्मि खज्जइ विसु बुड्डिज्जइ दहम्मि। कुलु सील धम्मु वज्जियइ लोइ मरणं पि न दुक्करु तस्स होइ । [१९] १३. ला० मुह-थंभणु [२०] २. ला० अवलोइय...काणणे ४. पु० मह ५. ला० होइ ६. ला० इंदियालु ७. पु० पुच्छइ ८. ला० सहेवि....ताहे विओउ १२. पु० देवि तस्स १३. पु० अणट्ठिउ ११. पु० अकारणि वच्छलहि...साहिज्जह. [२१] २. ला० कुमारु, पु० सिहरे १. पु० दुक्खरुमिमस्स, ला० महागयस्स ५. पु० बुड्डुज्जइ ६. ला० लोए Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. २२] विलासवईकहा इय जाव वियप्पमि निय-मईए गुरु-देवहं किउ पणिवाउ तीए । सो पासउ दिन्नु सिरोहराए अप्पउं आढत्तु मुएवि ताए । एत्थंतरि धाविय हउं तुरंति परितायह परितायह भणंति । १० गय तीए पासि पासउ हरेवि मई वुत्तिय सा उच्छंगि लेवि । तुह दक्खिण्ण-महोयहिहि राय-पुत्ति किं एरिसु जुज्जइ । किर आसन्ने वि चल्लिएहिं बंधु मित्तु परियणु पुच्छिज्जइ ॥२१॥ तई पुणु पर-लोए पयट्टियाए हउं कह वि न पुच्छिय पेच्छ माए। हउं जणणिसमाणिय पुत्ति तुज्झ ता किं न पओयणु कहहि मज्झ । तो हद्धी सयलु वि मह इमाए पलविउ आयण्णिउ छन्नियाए । इय लज्जिय-वयणए भणिउ तीए न य मह रूसेवउं भयवईए । ५ लज्जाए एह अवराहु सव्वु ता अम्ह पसाई मरिसियव्वु । अह सा मई वुत्तिय राय-पुत्ति मा कोवासंक करेहि चित्ति । परु जारिसु तारिसु मुद्धि होउ न य कोवु करेइ तवस्सि-लोउ । साहेहि ताव किं तई अउव्वु इह अइहि को वि दिट्टउ सुरूवु । पुणु भणिउ तीए सुलज्जियाए भयवइ असेसु निसुणिउ तुमाए। १० ता किं पुणु पुणु मई लज्जवेहि मई वुत्तु पुत्ति तुहुं धीर होहि । कुलवइ भयवंतु अमोह-वाणि आसन्नउ ता पिय-संगु जाणि । जइ इह काणणे आइयउ सो तुह वल्लहु जो तई दिहउ । राय-पुत्ति तो तुह मिलइ सव्वउं जं कुलवइ उवइट्ठउ ॥२२॥ [२३] ता एहि जाहं आसमपयम्मि तुह पिउ जोयावमि इह वणम्मि । जं आणवेहि एरिसु भणंति संचलिय किंचि पहरिसु वहति । गय दो वि अम्ह आसमपयम्मि बइसारिय सीयल-उडवम्मि । [२१] १०. ला० पासे ११. ला० -महोवहिहि १२. पु० आसण्णि [२२] ३. ला० सयलु १. ला० -वयणइ ७. ला० मुद्धे, पु. होइ ९. ला. पभणिउ १०. पु. वृत्त, ला० पुत्त १२. ला. जां तइं। [२३] ३. ला० गय अम्हे दो वि Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 १० साहारणकइविरइया [४. २३ पट्टाविय तो मई मुणिकुमार सव्वत्थ मुणिय-काणण-वियार । ५ तुझं च्चिय अन्नेसण-निमित्तु जोवेह सयल-काणणु विचित्तु । अहमवि य पुराण-कहा कहंति ठिय तीए पासि परिसंथवंति । अह वणु भमेवि पच्चागरहिं मह साहिउ साहु-कुमारएहिं । जिह सयल वि वण-काणणु गविठ्ठ सो पुरिसु न अम्हहिं कहिं वि दिछु। मई चिंतिउ पुत्त करेमि काइं पर-कज्जइं होंति सुसीयलाई । सच्चं चिय किर वणु होइ जस्स सो चिय पर जाणइ पीड तस्स । तो राय-पुत्ति परिसंथवेवि परियणु वि तीए सन्निहि धरेवि । जीवियह उवाउ न अन्नु कोइ किल काल-विलंबि एत्थ होइ । सयमेव चलिय काणणु विचित्तु तुम्हहं कुमार जोयण-निमित्तु । तमवस्सकज्ज-करणुज्जयाए दंसिउ तुहुं महु भवियव्वयाए । १५ ता एहि सिग्घु आसम-पयम्मि अच्छइ विलासवई दुहिय जम्मि । सा दड्ढिय विरह-हुयासणेण पर सुहिय होइ तुह दसणेण । कन्नहे तीए अबंधवहे अन्नु न किंचि वि जीविय-कारणु । तो कंठट्ठिय-जीवियहे करहि कुमार पाण-साहारणु ॥२३॥ ॥ इइ विलासवई-कहाए विज्जाहर-संधी चउत्थिया समत्ता ॥ [२३] ५. पु० काणण विचित्त ८. पु० प्रह, ला० सयल...अम्हेसिं ९. ला० हुंति १२. पु० जीवियहि...को वि, ला० न एत्थ १६. ला० तुहु १७. ला० ___ कन्नहि १८. पु० -जीवियहि....सहारणु. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि - ५ [१] एरिसु वयणु सुणेवि तावसि-उवइट्ठउ । पाविउ रयण-निहाणु नावइ मणि तुट्ठउ ॥१॥ अह सो कर जोडि वि इय भणेइ कीरइ जं भयवइ आणवेइ । तावसि अणुमग्गिं चल्लियउ तहिं दिव्व-तवोवणि पावियउ । ५ पढम पि पइद्विय तावसिया तो तीए विलासवई भणिया । उहि विलासवइ पुत्ति लहु आइउ दुवारि सो कंतु तुहु । तो रुट्ठिय भणइ विलासवई वेयारहि भयवइ काई मइं । जो किर सुमिणम्मि वि दुल्लहउ सो किह पाविज्जइ वल्लहउ । इय जाव न बालिय पत्तियई सन्निउ कुमारु तो पविसरई । १० उवणीउ तस्स आसणु पवरु उवविठ्ठ तत्थ सहरिसु कुमरु । तो तेण पलोइय राय-सुया अइ-सिसिर-मुणालिय-हार-जुया । ओल्लरिय नलिणी-दल-सत्थरए सविसेस विहिय कामज्जरए । अह सा कुमरु निएवि सयणीय उठ्ठिय । अभिंतरि वेगेण लज्जाए पइट्ठिय ॥१॥ तो तावसीए आसम-उचिउ कुमरस्स अग्घु सुंदरु विहिउ । तावसि चयणेण मराल-गई जल गिहिवि पत्त विलासवई । संठविय-सिहिण-वर-वक्कलया सव्वत्थ वि जोविय-दिसि-वलया। लज्जाए वलिय वियसिय-नयणा कुमरस्स तीए धोविय चलणा । ५ एत्थंतरि खर-किरणो तरणि गयणह मज्झ ठिउ दिवस-मणि । तावस-लोएण य तत्थ खणे किउ सयल वि नियय-निओउ वणे। १] २. ला. पावेवि रयण-निहाणुं नावइ मणे ३. ला जोडवि... भणइ...आणवइ १. पु० अणुवग्गिं, ला. तवोवणे ५. पु०पइट्ठिया ८. पु. सुवणम्मि १०. ला उवइठु १३. पु० नियवि [२] २. ला• गिण्हेवि ५. पु० एत्यंतरे Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० आणीय फणसाइय-फलई तो पाण-वित्ति सव्वेहिं किया भो रायपुत्त तई जारिसह १० फल- मूल - वित्ति वक्कल-वसणो तं हविलासवई दुहिया पुव्यहिं दिन्निय विहिणा वि सई १० साहारणकविरश्या अह सा कुमरेण इमं भणिया संसार- सरू मुणेहि सई ता ता - कन्नई ढोविययं अंतेण पमज्जिउ वक्कलहो ५ अह विहिणा पज्जा लिउ जलणो तावसि एउ भणेवि सोयाउल - चित्तिय । वक्कलि वयणु वेवि रोएवि आढत्तिय ॥ २ ॥ [3] सानियाहरण-- विहूसियया ते विसा पढमं गहिय मणे भमियाई असेसई मंडलई तावसि - आपसि सुत्थियइं जहिं अणेय पायवा असोय-आरु- आमला कथंब - उंब - उंबरा [ ५.४ आहरियई वर- निज्झर - जलइ । एत्यंतरि जप तावसिया । ss तास - आसमे आगयहं । किंगर कुणइ तवस्सि - जणो । मह पाणE पासह वल्लहिया । एवहिं संपाडिय तुज्झ मई । भवइ सयमेव सयाणिइया । तो कि आढत्तउं एउ तई । farer सलिल मुहु धोविययं । पुणु तावसि उट्ठिय आसणहो । हक्कारिउ स वि साहु-जणो । कुमरस्स करम्मि समप्पियया । पच्छा करयलि पस्सेय -घणे । पणमिय भयवइ तावसि कुलई । उज्जाणि मनोहरि पत्थियई । सुंदरवणु नामेणं उज्जाणु रचणउं । दिउं दोहिं वि तेहिं आसम - आसन्न || ३ | [४] निसिद्ध-सूर-आयवा । अवाड - से दि-सिंबला । कसेरु किंपि केसरा । ते [२] ७. पु० आणिवइ फलपाइ० ८. ला०कया १०.ला० गउरउ कीरइ ११. पु० [३] २. ला० –सरूव ३. ला• कन्नए ढोवियं... धोवियं ६. पु० संनिययाहरण - ९. ला० उज्जाणे मणोहरे ११. ला० दिट्ठ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा करंज--खज्ज-खंजणा रिउंज--मुंज--अंजणा । ५ नग्गोह-सिग्गु--गंगया नारंग--पूग-नागया । कक्लोल--केइ--कंचणा धवालि--धाइ--धम्मणा । पियाल-पीलु-पिप्पला पलास--केलि-जुला । मायंद-कुंद-चंदणा कयंदु-तेंदु-वंदणा । अंकोल्ल-विल्ल -मल्लिया वेइल्ल--सल्लइलया । १० वहेड--ताडि-दाडिमी सिरीस-सिंसवा--समी । तलत्तमाल--तालया सेहाल--सेलु-सालया । एरंड-चंड-पाडला फणस्स-साफ-पोफला । मंदार-देवदारया हलिह-सिंदुवारया । तिणीस-सत्तिवण्णया ससोठि-गंठिवन्नया । १५ खज्जूरि-दक्ख-खीरिया जासोण-जाइ-जूहिया । जंबोर-जंबु-अंबया बब्बुल-बेरि-निंबया । बिज्जेउर-सज्ज-कुज्जया सअज्जुणेहिं विज्जया । चिंचा य चारु चंपया कप्पूर-पारियायया । इय नाणा-रुक्खेहिं रमणीउ विहावइ । तिहुयण-विम्हयणीउ नंदणवणु नावइ ॥४॥ तं कुलहरु नाइ वणस्सइहे मेलावउ नावइ उउ-सिरिहे । पवणह आवासु सुयंधयहो आययणु नाइ मयरद्धयहो । तत्थ वि वर-मालइ-वेढिययं कप्पूर-रसेण य सिंचिययं । एलालयाहिं परिणद्ध घणं दिउं हरियंदण-वण-गहणं । ५ तहिं लवलि-लवंग लयाउलए तरु-पण्ण-समुट्ठिय-ताल-लए । महुयर-रुय-गीय-सुहावणए पइसेवि मणोहर-उववणए । [४] ६. पु० कककोड- ९. ला०-बिल्लि- १२. ला० सप्पु- १४. पु० ससुंठि १५. ला. खोरया १६. ला० जंबीरि, पु० बोरि १७. ला० सअज्जुणेहि विजया १८. पू. पारिवायया [५] । ला० माइ उऊसिरिहे ४. ला० दिळं हरियंदणु Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया ५.७मलयानिल-संग-पणच्चिरिओ पेच्छइ पियंगु-वर-मंजरिओ । अन्नु वि हु तरु नाणाविहए अवलोयइ नयण-मणोसुहए । तहिं दोणि वि नेहुक्कंठियइ सुमहंत-विलासे हिं संठियइ । १० वासरु वि जाव वोलिउ सयलु रविणा विवज्जिउ गयणयलु । सिंदूरारुण-वण्णो दिण यरु अत्थमियउ । नहयल-रुक्खह नाइ पक्कउ फलु पडियउ ॥५॥ जाव सूरु अत्थमणु पावियउ ताव तिमिर-रिउ-सेण्णु धावियउ । ताम चर व्ब गय सूर-दंसिणो चडिय वास-तरु-सिरि सिहंडिणो । सहइ संझआरत्तमंबरं प हर पडिय सूरस्स वंऽबरं । तिमिर-केस विरलेवि जामिणी पडिय नाइ रवि-विरहि कामिणी । ५ वित्थरंति गयणम्मि तारया तुट नाइ गयण-सिरि-हारया । सरवरेसु कमलेहि मउलिय नाइ मित्त-पडिवन्नु पालियं । चक्कवाय-जुयलं पि विडियं गरुय-विरह-तावेण विनडियं । नासयंतु अइ-कसण-तम-मसी दुद्ध-धवलु अह उग्गओ ससी । तं निएवि कुमरे सवित्थरो पल्लवेहिं किउ तत्थ सत्थरो । १० तम्मि परम-आणंद-जुत्तयं तं सुहेण मिहुणं पसुत्तयं । उप्पन्नउ वीसंभो घण-नेह-समिद्धई । जायए विमल-पहाए अह दो वि विबुद्धई ॥६॥ एत्थंतरि कर-हय-तिमिर-करी नह-काणणि उठिउ सूर-हरी । ताव य कराल-रवि-सीह-भया तारय-कुरंग निन्नासु गया । [५] ७. पु० -संग य णच्चिरिओ....मंजरीओ ८. पु० सव्वे वि हु १०. ला० वोलियु [६] १. ला० तिमिर रिवु- २. ला० तम चर, पु० सूर-असिणो ३. पु० सूरस्स चवरं १. पु० तिमिरु-...रवि-विरह .५. ला० नाइ निसि-नारि-हारया ८. ला० उग्गउ ९. ला० कुमरि ११. ला० -वोसंहो १२. पु० जायई... विउद्धई [७] १. ला० काणणे Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.८ ] पिउ पेच्छि पर्यंगु पहठ-मणा पवणुद्धय-पयलिय - पत्त-करा ५ केसर - सुवण्ण - गहियाहरणी चक्काय-मिहुण-संजोय करे करणी करेविणु सुत्थियई सो कुमरु विलासवई - सहिओ इय निच्चु विणय करणुज्जयहं १० मय दिवस के वि अह अन्न दिने विलासवई कहा गहिय तह फणसाइय-फलई सा पुण विक्खित्त विलासवई अह कोमल पवण- पर्यंपियहिं सुकुमाल - सरीर-पलोहियहिं ५ उभिन्न कुसुम - कलियाधरहिं नाणावह समिहाओ कुमरें गहियाओ । सुद्धभूमि सजडेहिं दब्भेहिं सहियाओ || ७ || [2] बहु-कुसुम - गंध-लोहिल्लए हिं अह तीए कुसुम - छज्जिय भरिया तो जाव न कुसुमोच्चउ मुयई हउं नयण-मोहु पड़ पाउरमि १० पच्छन्नउ जोवमि किं करइ ६३ पविसिय सिय-पंकय-वयणा । महुर- झंकार - सुगीय-सरा | नारि व्व नाइ नच्चइ नलिणी । वर्द्धतइ तत्थ पहायभरे । तो तावस- आसमे पत्थियई । तावसि तावस- चरण नमिओ । संपाडिय - मुणियण - कज्जयहं । कुस समिह निमित्तु गयाई वणे । उच्चिणियई कुसुमई उज्जलाई । सरिए विन कुमुमोच्उ मुयई । कुसुमोच्चयम्मि कर - चप्पियहिं । आलिंगिय नावइ वण-लयहिं । नं जोविय रोमंचिय-तरुहिं | नं वेढिय भमर - जुवाणएहिं । वच्चम्ह एहि कुमरिं भणिया । तो कुमरु एउ मणि चिंतवई । तो विप्पलंभु एयहि करमि । मई विणु उप्पज्जइ किं व रई । आसन्ने वि ठिएण सो पडु पावरियउ । नासउ जिह अहमेणं हि तें अंतरियउ ॥८॥ [७] ५. पु० - गहियाभरणा ६. ला० वटतए .... पहायहरे ८० ला० तो कुमरु ९. पु०. - करणुज्जुयहं .... मुणिवर- ११. ला० कुमरिं १२ ला० सऊडेहिं [4] १. पु० गहियह.... उठिवणिवइ ३. पु० पर्यंपिएहिं ७. ला० अह वीय कुसुम- ८. ला० कुसुमुच्चउ....मणे, पु० चिंतवेई ९ ला० पाउरमी, पु० पायरमो... एयह करमी १०. ५० उप्पण्णइ किं धरेइ १२. ला० नास वि जिह Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ साहारणकविरश्या [3] तो पदिठहिं तीए पलोइयउ मेल्लेवि उ इय संभम-भरिया पच्छिय छड्डेविणु मुच्छियया तो कुमरु वियप्पर एउ सई ५ पडु मेल्लिवि तो आसासिया भणियं च तीए कि एउ पिया सा जंप कीस न दि तुमं हा कीस न याणसि कहहि लहुँ एहिं चिय कीस न दिट्ठ मए १० तो चिंतइ संक-परायण इं तो तीए वि सो विन्नासियओ इय निम्भर - पेम्म-परायण हं अह अन्न- दिवसे चिंतइ कुमरो संपs निय-देसह जाइयई ५ जर तुहु पडिहासइ ससि वयणे जइ नवि फुड कहेमि तो अणहिउ लक्खर । इय चिंतेवि कुमारो पड - वइयरु अक्ख ॥ ९ ॥ [१०] सा जंपइ जं पडिहाइ तुहं पेच्छामि जत्थ तुम्हहं चलणे जं जुत्तु तह वि अणुचिट्ठिय तो जलहि-तीरे जाएवि कओ न यदि समीवि वि संठियउ । हा अज्जउत्त भणमाणिइया । सहसा धरणीयले सापडिया । हा कि अणुचिह्नित एउ मई । किं देवि विमुच्छिय पुच्छियया । किं तं कहि कुमरें भणिया । सो भणइ न याणमि देवि इमं । उप्पन्नउ सज्झ गरुउ महुँ । परमत्थु कहहि जो कि तुमए । कायर होंति इत्थिर्हि मणई । [५.१० पच्चर पेच्छेवि पडो गहिओ । उ को वि कालु सेविय-वहं । aण वासु सकामहं नाहि वरो । तो पुच्छिय तेण विलासवई । ता करमि जन्तु देसह गमणे । तं चैव य भावइ नाह महं । र मज्झ नाह एत्थं पिवणे । किं अज्जउत्त मह पुच्छिय | तरुसिहरे भिन्न- बोहित्य - ओ । [९] २. ला० मेल्लवि ४. ला० अणुचेठिङ ५. ला० मेल्लवि ६. ला० कुमरि ९. ला० इह १०. ला०हुति ११. पु० कहेमी [१०] १. ला० तीय, पु०विण्यासियउ, ला०पेच्छिवि ३. ला० कुमारी ५. पु० तुह ६. ला० परिहासइ ८ पु० पुच्छियई Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा १० दीहर-वंसम्मि सुउज्जलयं बंधेवि महंतउं वक्कलयं । कइय वि दिवस गय एत्थंतरे आगय । . निज्जामय-पुरिस लहु-बेडिय-संगय ॥१०॥ [११] ते तावस-आसमि संपत्ता दिट्ठ कुमारि मुणि पुच्छंता । केण निबद्ध भिन्न-पोयद्धउ भणइ कुमार एहु मई बद्धउ । भणिउ तेहिं पुरीसोत्तिम सुव्वउ दीवे महाकडाहे वत्थव्वउ । साणुदेउ नामेण समिद्धउ सत्थवाहु सव्वत्थ पसिद्धउ । ५ तेण य मलय-विसइ वच्चंते जाणवत्तें वेगेण वहंते । पेच्छेवि एहु भिन्न-पोयद्धउ जलहि-तीरे जो तुम्हे हिं बद्धउ । तो गालवाहियहि चडाविय तुम्ह निमित्तु अम्हे पट्ठाविय । ता अम्हहं पसाउ लहु किज्जइ नंगरियइ पवहणि जाइज्जइ । कुमरें जंपिउ पाण-पियारिय भद्दहो अस्थि दुइज्जि भारिय । १० ते भणंति को दोसु भविस्सइ चलउ सा वि किं भारु करिस्सइ । तो तावस-जणु आपुच्छेविणु चलिउ कुमारु कंत गिण्हेविणु । तावस-लोए अणुगम्मतउ तक्खणि जलहि तीरि संपत्तउ । तो पणमेविणु सव्वे तावस पट्ठाविय । तावसि सविसेसेणं कुमरेण खमाविय ॥११॥ [१२] भयवइ पणमेवि विलासवई घग्धरिय-कंठ निब्भरु रुयइ । भयवइ पुणु कइयहं हउं विमलं पेच्छिसु वियसिउ तुह मुह-कमलं । [१०] १० ला० महंतं ११. ला0 एत्थंतर [११] १.ला० -आसम, पु० कुमरि २. पु० केण निविदछु ३. पु० पुरिसुत्तम ५ ला० वच्चंतई जाणवत्त... वहंतेइ ६. ला० पेच्छिवि ७. ला० अयालवाहियहि. पु० अगालिचाहियहि ८. पु० पवहणे ९. ला० कुमरि...दुइज्जिय ११ पु० गेण्हेविणु १२. ला. तक्खणे....तीरे [१२] १. ला० ग्घग्घरियकंठ २. पु० पेच्छिविसु Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [५.१३ निय-घरे जिह हउं वणवासे थिया तुह पासि वक्ख न का वि किया। मई दुक्खु न जाणिउ कि पि वणी वीसारीय भयवइ तई जणणी । ५ तुह पाय-पसाइं पाण-पिओ भयवइ दुल्लहु वल्लह मिलिओ । तइं पाण वि दिन्न मरंतियहे आसासिय वयणि कुलवइहे । एत्तिउ पर दुक्खइ मह हियए जं कुलवइ-पाय न दिट्ठ मए । केत्तिय गुण सुमरमि माए तुहं तई सहुं: पुणु दसणु होइ कहं । तो भयवइ भणइ उबाहुलिया हउं निच्चु वि तुह मणि संन्निहिया । १० ता तुहं सुमरेज्जसि पुत्ति ममं अणुयत्तहि तह निय-कंतमिमं । उत्तम-धम्म-पर गुरुयण-सम्माणिय । पुत्ति विलासवइ तुहुं होज्ज सयाणिय ॥१२॥ [१३] तो सा तहेव पाएहिं पडिया रोवंति य तावसि वाहुडिया । कुमरो वि विलासवई-सहिओ निज्जामय-सरिसु समारूहिओ । अह ते गालवाहिय-चडिया तहिं जाणवत्ते वेगेण गया । तो पवहणि तत्थ चडावियउ सत्थाह-सुए बहुमाणियउ । ५ गय दिवस के वि अह अन्न-दिणे सर-वेगें वच्चंतए वहणे । जामिणिहि सेसु वट्टइ पहरो पासवण-कज्जे उट्ठइ कुमरो । अणुमग्गे तस्स वि वेग-जुओ सो साणुदेव सत्थाह-सुश्री । तिं जंपिउ ठायसु ताव तुमं कुमरेण वि तं पडिवन्नु इमं । तो जाणवत्त-निज्जूह-ठिओ सत्थाह-सुएण य पेल्लियो । १० पडियउ अणेय-जलयर-पबले संसार-विसालए जलहि-जले । तो पुव्व-भिन्न-बोहित्थ-मयं कुमरेण झस्ति पाविउ फलयं । जीविय-सेसेण य दुक्ख-निही पंचहि दिणेहिं लंघिउ जलही । [१२] ३. ला० पा न का वि अवत्थ किया ४. ला० वणि ५. पु० पाय पसाएं, पु० पाण-पिउ... मिलिउ ८. पु० माई तुहं....पुण ९. ला० मणे १२. पु० पुत्त [१३] १. पु० पायेहि २. पु० -स'हउ... समारूहिउ ३. ला० ते ५. लो. सरवेगि वच्चंतइ ६. पु. सेस वड्ढइ ...उदिठउ ८. ला० वि तो ९. ला० जाणवस्ति १०. ला० संसार विलासइ ११. ला० बोहित्थगयं...पाविय फलयं Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.१४ ] विलासवई कहा लग्गउ मलय- तडे जलहिहि उत्तिणउ | चिas तो कुमरु निय-मणे अ विण्णउ || १३|| अह पुण सत्थाह- सुयस्स कहं ता अन्तु न कारणु संभवइ ता मूढचित्तु सो वाणियउ साम्म-परायण एग - रइ ५ तइयहं पडण परिक्खियया ता ती विणा किं निष्फलेहिं ता हउं उल्लंबेवि तरु- सिहरे इय मरण - विणिच्छउ तेण किउ दिट्ठो य नाइ-दूरम्मि गरु १० चितइ इह पायवे तुंगयरे पिययम - विओय-संताविययं [१४] ताब नाइदूरम्मि दिट्ठयं विवि-तीर-तरुसंड- मंडियं धवल - विमल सीयल-सुपाणियं विसमाण - सयवत्त वयणयं वावायण- कारणु कवणु महं । ts पर अrिees विलासवर । मह दइया - हियरं न जाणियउं । free मह विओ पाणे घरइ । मरणावेसमणु बहुविहु चिंतंत । ara - तरुस्स तले सो जाव पहुत्तउ || १४ || [१५] ६७ हउं जाव न दिट्ठउ मुच्छ गया । मह अज्ज व पाणेहि धारिएहिं । नामि पाण बहु- दुक्ख भरे । दिसि-मंडलु तो निज्झाइयउ । थल- सिहरि पठिउ नीव तरु | उल्लंबिऊण साहा - सिहरे | निव्वावमि हउं अप्पण हिययं । माणसं व धरणी - निविट्ठयं । कुरर - कुंच - कलहंस- वड्डियं । सिद्ध- जक्ख- सुर- मिहुण-माणियं । नील-वारिरुह-लोल- नयणयं । · [१३] १४. ला० मणे सुविसन्नउ [१४] २. ला० तो... ३. ला० याणियउं ४. पु० कह मह विओवि ५ ला० तइयहुँ ६. पु० धारियेहिं ७. • पु० भोलंबेवि... दुक्ख - घरे ९. पु० गुरु थलसिहर-परिट्रिट, ला० निंब-तरु १० पु० पायवि १३ ला० निंब[१५] २. पु० कुरुर - कुंचला० कलहंस - चड्डियं ४. ला० नीरवारिरुह Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया ५ कुमुय-संड-सुविसटट्-हासयं घण-राय-कुंकुम-विलासयं । पवण-चलिय-कल्लोल-बाहयं - हंस-सह-नेउर-सणाहयं । चक्कवाय-जुयल-पओहरं रत्त-कमल-दल-सोहियाहरं । भमर-राव-पारद्ध-गीययं मिलिउ नाइ नारी-समूहयं । निच्चोल-कोल-खोहियं मुणाल-नाल-सोहियं । १० गईद-विंद-डोहियं भमंत-मत्त-रोहियं । रसंत-कंत-सारसं रमंत-नीर-माणुसं । सुउच्छलंत-मच्छयं विसाल-नील-कच्छयं । विलोल-लोल-नक्कयं फुरंत-चारु-चक्कयं । लुडंत-पत्त-केसरं पलोइयं महा-सरं । अह तहिं विहिहि वसेण निय-दइय-विओइउ । कुमरे तडिहिं ठिएणं कलहंसु पलोइउ ॥१५॥ [१६] सोय निय-कंत-विरहेण किर दुक्खिओ एवमाईहिं चिण्हेहिं उवलक्खिओ । भमइ एगागि दस दिसउ अवलोयए करुणु कूएवि खणु निच्चलु झायए । पिययमा-सरिस जा हंसिया पेच्छए हरिस-वियसंतु तहि सम्मुहो गच्छए । अन्न जाणेवि सविसाउ विणियत्तए मरण-कय-चित्तु जलि अप्पउं घत्तए । ५ जलहउ बुड्डु पुणु रत्त-पंकय-वणे जलिय-जलणं कलेऊण पविसइ घणे । चंद-धवलं मुणालं पि नो पेच्छए सरस-बिस-गासु विस-सरिसु अवयच्छए। पवण-वस-पडिय-तामरस-रस-पीयलं हणइ पंखाहि सर-पाणियं सीयलं । विरह-जलणेण जलियं व दुह-कारयं पुणु वि पुणु धुणइ निय-पिच्छ-पन्भारयं । सिसिर-जल-कणिहिं सिच्चंतु मुच्छिज्जए ससइ जा नलिणि-पत्तेहिं वीजिज्जए। १० सलिल-मज्झम्मि दठूण नियच्छाहियं वहइ परिमोसु दइयत्ति चित्ताहियं । [१५] १४. पु० खुडत-पत्त- १६. ला० कुमरिं [१६] २. ला. दस-दिसिओ...करुण..., पु० खलु, ला० निच्चलो ३. ला० तहे १. ला. जले. पु० अप्पयं ७. पु० पक्खाहिं सरपाणिय ८. पु० निय-पेंच्छ- ९. ला० जल-कणेहि...., पु० वोइज्जए १०. ला० परिओस Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.१७] विलासवईकहा तं पेच्छेविणु चिंता कुमरह उप्पज्जइ । एसो वि दइय-विउत्तो विहिणा विणडिज्जइ ॥१६॥ जा एसो वि विणडिज्जइ वराउ ता दुसहु पेम्मु विस-सम-विवाउ । पिय-विरह-दुक्खु जेण य मुणति तेणेव य पंडिय परिहरंति । बिल-मज्झि पविठ्ठ भुयंगु जेंव पेम्मह परिणामु रउदु तेंव । ताव य पर जीवहं सोक्खु होइ जा चित्ति चहुट्टइ जणु न कोइ । ५ पिय-संगु कह वि पुणु विहिउ जेहिं सोक्खाण जलंजलि दिन्नु तेहि । इय एरिसु चिंता कुमरु जांच कलहंसु वि विहिहि वसेण तांव । संपत्तउ कह वि परिभमंतु उद्देसु एक्कु सरवरह कंतु । पत्त तहिं वि असणि-भय-विप्पणट्ठ भमिऊण विउल सर सुक्क-कंठ । अंगेण विरह-परिदुब्बलेण एवि असमत्थिय सोयएण । १० कुवलयच्छायाए वि सन्निविट्ठ सा तेण नियय कलहंसि दिछ । अह सा पेच्छेविणु तक्खणेण तुट्ठउ कलहंसउ निय-मणेण । पेच्छेविणु कल-हंसु निय-जाया-घडियउ । कुमरह चित्तु वि तांव मरणह वाहुडियउ ॥१७॥ [१८] तो चिंतइ कुमरु विवेय-जुउ कलहंस-हंसि-संजोउ हुउ । तिह कह वि विहिस्स वसेण जए जीवंतहं पिउ माणुसु मिलए । कत्तो पुण उज्झिय-जीवियहं दीहर-संसार-पवासुयहं । ता पाण धरंतु अवस्स नरो उच्छाह-सत्ति-वनसाय-परो । ५ आवइहि विसाउ न जइ करइ ववसाय-सरिसु तो फलु लहइ । अन्नं चिय नाण-महोयहिणा तहे एरिस साहिउ कुलवणा । किर कंतु पाण-पिउ पाविहई भुयणुत्तम भोय वि भुंजिहई । [१७] १. ला० विस-समु २. ला० -दुक्ख ३. ला. पइठु ६. ला० कलहंसो विहिहि ८. ला० एतहे वि असणि- १०. पु० विसण विदछ....हंसि य.... १३. पु० ताव [१८] १. ला० विवेय-जुओ....हुओ ६. ला० महोवाहणा ७. ला. भुवणुत्तम Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [५. २० पच्छा य करेवि तवं विउलं मणुयत्तु करिस्सइ सा सहलं । ता निच्छउ कंत न मे मरइ कह कह वि सा वि जइ उव्वरइ । १० विहिणो वि विचित्तई विकसियई कज्जई संभवहिं अचिंतियई । ता न वि किज्जइ इह मई पाण-विणासणु । पत्तयालु पुणु एउ जं तीए गवेसणु ॥१८॥ इय एरिसु तेण धरेवि चित्ति नारंगिहिं विरइय पाणविन्ति । चल्लिउ जलहिस्प तडं तडेण चित्तेण य आस-समुक्कडेण । संपत्तउ जोयण अद्ध जांच सो जलहि-तीरि पेच्छेइ तांव। सुमहल्ल-लहरि-पेल्लिज्जमाणु तहिं फलहु एक्कु आगच्छमाणु । ५ तसु संमुहु जाव पयट्टु धीरु ता फलहु वि तं संपत्तु तीरु । कंठ-गय-पाण तम्मि य मुलग्ग दिट्ठिय विलासवइ पड-समग्ग। तुटउ कुमारु तो निय-मणेण सा पच्चभियाणिवि तक्खणेण । निब्भरु रोवणहं पयत्ति देवि आसासिय तें अंमुय फुसेवि । भणिया य देवि किह तुहुं पहुत्त सा भणइ सुणिज्जउ अज्जउत्त । १० मह पुण्ण-विहीणहि पिय तुमम्मि ___अत्थाह-जलहि-जल-निवडियम्मि। तुम्हह सोएण य सत्थवाहु आढत्तु करिवि अप्पणु पवाहु । तो मई सहुँ तमु वारण-निमित्तु हुउ परियणु आउलु विगय-चित्तु । ताव य रयणि पहाया दिणनाहु समुग्गउ । पवहणु व खित्ताह(१) अन्नहं गमि लग्गउ ॥१९॥ तो अवट्ट अवट्ट त्ति जपतए कण्णधारे वराए धहावंतए । रज्जु-परिवत्तणुज्जुत्त निज्झामया के वि वेगेण वाहिति आवल्लया । [14] ८. ला० करे सइ ११. ला० किज्जइ ताव निय-पाण[१९] १. ला. मारगेहिं पाणे... ७. लाल पच्चभियाणवि ८. ला० रोवणह पयत्त... ति १०. ला0 महु पुन्नविहीणहे ११. ला० तुम्हहं...करेवि... १२. ला० आउल [२०] १. ला० वहांवतए २. ला. वाहंति Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.२१] विलासवईकहा के वि मउलंति अइ-दक्खिया सिय-वडं के वि संजमहिं विसमट्टियं धयवडं । तह वि जलच्छन्न-गिरि-सिहर अभिट्टयं जाणवत्तं खणेणेव तं फुट्टयं । ५ जलहि-मज्झम्मि सव्वो जणो विहडिओ नाइ गरुयम्मि जम-बयणए निवडिओ। तुज्झ पुण्णेहिं नीरम्मि रंगतयं फलहमेयं मए नाह संपत्तयं । तत्थ लग्गाए उत्तिण्णउ जल-निही तं च दिवो सि अणुकूलउ मे विही । इय निसामेवि कुमरस्स चित्ते ठियं पेच्छ भो सत्थवाहस्स किह चेट्ठिय । पेच्छ माया अहो तस्स संकप्पणा पेच्छ पावं कयं तेण दुट्टप्पणी । १० अहव किं एत्थ अरिउ जाणिज्जए कज्ज-सिद्धी न पावेण पाविज्जए। जो जसु चिंतइ पावु पर-जणह अपावह । तं तमु वलिवि पडेइ कलुसिउं निय-भावह ॥२०॥ [२१] पावायरणं वि हु माणुसाण अणुवाउ एहु इच्छिय-सुहाण । जहिं पढमु वि अप्पणु संकिलेसु पच्छा पर-पीड महा-पओसु । ता किह एरिस आसय-वसेण इह कज्ज-सिद्धि लब्भइ जणेण । तह वि हु महंत मोहं सहाय अवियाणिय-सुह-साहण-उवाय । ५ पावेसु वि पाणि पयट्टयंति खणु अणत्थु नाऽलोच्चयंति । वेयारिउ मच्छउ जिह गलेण सुमहंतु दुक्खु पावइ खणेणे । तिह मूढ विवाय-सुदारुणाए लुब्भंति अत्थ-मुह-संपयाए । जाणेइ बिरालिय दुद्ध-साउ पेच्छइ न पडतउ लउडि-घाउ । इय सो एवं चिय चिंतयंतु तो कुमरु विलासवईए वुत्तु । १० तुहुं अज्जउत्त किह निवडिउ स्ति किह वा वि जलहि उत्तिण्णउ ति । तो चिंतिउ कुमरेण पर-दोस-पयासणु । उत्तिम-पुरिसहं होई सुयणत्तण-नासणु ॥२१॥ [२०] ३. ला० अइ-दक्खिया ४. ला० खणेणं व ते ७. ला० तत्थ लग्गेइ... च ददळूण अणु० १२. ला० वठेवि...कलुसिय [२१] १. ला० पि हु १. ला. मोहिं ५. पु० भणत्थु आलोच्चयंति . पु. लब्भति ८. पु. झाणेइ, ला० लउडघाउ १२. पु. उत्तम Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ साहारणकइविरइया [२२] इय चित्ति धरेविणु साहियउ हउं देवि पमाएं निवडियउ । तो पुन्न-भिन्न-फलहं लहिवी उत्तिण्णउ सायरु कह कहवी । गय का वि वेल तो भणइ पिया हउं अज्जउत्त निठुरु तिसिया । अह तं सुणेवि जंपइ कुमरु इह नाइदूरे सुमहंत-सरु । ५ ता एहि सिग्धु वच्चम्ह पिए जहिं दिव्व-सरोवरि देव-पिए । तं निमुणिवि चलिय विलासवई मय-मत्त-महंत-गइंद-गई। थोवंतरु भूमिहिं जाव गया सक्कइ न चलेवि तिसाभिहया । जं तीए नियंबो वि अइ-गरुओ जं चिय अपारु सायरु तरिभो । जं चिय सुकुमालउं तीए तणु जं चिय वीरत्थउं हुयउं मणु । १० जं चिय सन्निहियउ कंतु तहि तं पाय वहंति न रीणियहि । तो वुत्तिय कुमरेण जइ चल्लेवि न सकहि । इय नग्गोहह मूले तो देवि पडिक्खहि ॥२२॥ - [२३] हउं देवि जाव तं सर-सलिलु आणेमि भरेषिणु नलिणि-दल । सा भणइ न वाहइ तेंव तिसा तुह वयण-कमल-दंसण-सरिसा । सो भणइ देवि धीरिय हवही हउं एहु पत्तु मा भउ करही । तो विहिउ तेण पल्लव-सयणू ओढाविय पड्डु मोहिय-नयण । ५ भणिया य देवि तई एत्य वणे बहु-खुद्द-रोद्द-सावज्ज-घणे । पड-रयणावरिय-सरीरियए अच्छेवउं खणु वि सुधीरियए । तो जइ वि न चित्तह आवडइ पडिकूलु कया वि न सा करइ । पडिवन्नु कह वि चल्लिउ कुमरो तहिं पत्तु सरोवरि सिग्घयरो । बंधेवि विसालइ नलिणि-दले गहियउं जलु तह नारंगि-फले । १० तो पडिमग्गेण पहावियउ तर्हि वडह पएसि परावियउ । [२२] १. पु० चित्ते २. पु० फल लहवो ३. ला० निभा तिसिया ५. ला० तहि दिव्व-सरोवरे १०. ला० तहे ...रोणियहे ११. ला० कुमरेणं....चलेवि १२. ला० इह [२३] ७. ला० से करइ ८. ला० सरोवरे ९. ला० नारंगफले १०. ला० पहावियओ.... परावियओ. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. २४] विलासवईकहा भणिया मेल्लहि देवी पडु नयण-विमोहणु । उठेवि पियहि जहिच्छ आणिउ जलु सोहणु ॥२३॥ [२४] तो जाव न जंपइ तस्स पिया तो पुणु वि कुमरे इय भणिया । परिहासु देवि मा तुहुं करही एहु नयण-मोहु पडु संवरही । तो तह वि न जाव वाहरई आसंकिउ कुमरु वि चिंतवई । इह नूण नत्थि सा देवि महं अन्नह न वि अब्भुटेइ कहं । किह वा न पयच्छइ पडिवयणं इय चिंतेवि ढंढोलिउ सयणं । तो जाव न दिद्विय तहिं सयणे आसंक पडिय कुमरस्स मणे । तह फुरिउ वाम-लोयणु असुहं उप्पन्नु कुमारह चित्ति दुहं । अच्चंत-पयत्तेण वि धरियं तं नलिणि-पत्तु हत्थह पडियं । पुणु सो अच्चंत-विसण्णु मणे तर्हि वुण्ण-वयणु तरलच्छु वणे । १० हा देवि देवि देवि त्ति गिरो . आढत्तु गवेसिवि सा कुमरो। न य सा कत्थ वि लद्धा तहिं ससहर-वयणी । वालुयर्थालहि य दिट्ठ गुरु-अयगर-वहणी ॥२४॥ [२५] तो वेवमाण-निवडिय-हियो तीय वि अणुसारि चल्लियो । दिट्ठो य तेण तरुवर-गहणे जम-दंठु नाइ निवडिउ भुवणे । अलिउल-कज्जल-घण-कसिण-तणू विस-जाल-नित्त-भासुर-नया । मुह-गहिय-नयण-मोहण-पडओ तस्स य गसणम्मि य वाक्डो । ५ बहु-रण्ण-जीव-संहारणओ अयगरु सुमहंतु रुयावणओ। सो पेच्छिवि चिंतिउ मज्झ पिया हद्धी इमेण सा खद्भिया । ता न मुणिउ दिवस्तु न वा रयणी किं गयणु एउ किं वा धरणी। किं उण्हउं किं वा सीउ महं किं दुक्खु एउ किं वा वि सुहं । कि एह महसवु कि वसणं कि जीवियव्वु कि वा मरणं । [२३] १२. ला० उद्विवि [२४] ७. ला० फुरिय, पु० -लोयणहिं, ला० उप्पन्न, पु. चित्ते १०. पु. गवेसेवि १२. ला. वालुयथलिहिं दिठा [२५] ३. ला० -भासुर-वयण, ४. ला० -पडउ...वावडउ ६. पु० पेच्छेवि ८. ला• उण्हं, पु० किं भावि सुहं Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [५. २७ १० किं कहि वि गयउ किं वा वि थिउ सच्चेयणु किं चेयण-रहिउ । इय अकहणिय अवस्था मुच्छाए लहेविणु । निवडिउ धरणिहि वीढि लोयण मीले विणु ॥२५॥ [२६] तो सरय-मत्तु जिह मत्तवालु तिह मुच्छिउ अच्छिउ को वि कालु। अह जल-निहि-मारुय-संगमेण कह कह वि लद्ध चेयण इमेण । तो चिंतिउ अयगरु गरुय-देहु देसंतरि जाव न जाइ एहु । ता हियय-निहिय-दइयंगएण अत्ताणं खावावमि इमेण । ५ इह मज्झ मणस्स वि बहुमओ य देवीए समागमु संगओ य । इय चिंतिवि गउ अयगर-सयासि सो पुणु पेच्छेविणु कुमरु पासि । जिह कुपुरिसु को वि कयावराहु संकुडियउ अयगरु भय-सणाहु । चिंतेइ मयस्स वि पिययमाए दुल्लहउ समागमु मज्झ ताए । तो कुवियउ एहु गसिस्सइ त्ति हउ उत्तमंगि लउडेणे झत्ति । १० तेण वि य गरुय-भय-कायरेण उग्गिलिउ नयण-मोहणु खणेण । मंडलिहूय-तणु हुंकारु मुएविणु । ठियउ सु उब्भडउ फण-भोगु रएविणु ॥२६॥ एहु दइया-देह-परिग्गहिओ इय नेहे तेण पडो गहिओ। वच्छयलि देवि चिंतइ कुमारो अयगरु न ताव भक्खइ सदारो। पड-रयणु करेवि ता वच्छयले नग्गोहि चडेविणु तहिं विउले । अप्पाणउं उल्लंबेवि हउं पाणह वि विणासणु तो विहउं । ५ इय कलिवि विसाय-परिग्गहिओ नग्गोह-महादुमे आरूहिओ । साहा-ठिएण पासो वलिओ किओ गीवहि अप्पा मोक्कलिओ । एत्थंतरि कंठु निरंभियओ तो सास-पवेसो वि थंभियो । भमियाई व गिरि-तरु-काणणाई निच्छुलियई बिण्णि वि लोयणाई। धरणीयले निवडिउ नं गयणू तो अणवसिहुयउं असेसतणू । [२५] १२. ला० वीढे [२६] १. ला. सरय-मत्त ३. ला० चिंतइ ५. पु. देवीई ६. ला० एउ चितवि ७. पु० __कुवुरिसु ९. ला० उत्तमंगे ११ पु० सुंकार [२०] १. ला० नेहि २. पु० वच्छयले ३. पु० नग्गोहे ५. ला० कलेवि,पु० परिग्गहिउ... आरूहिउ ६. ला पासउ, पु० किउ, मोक्कलिउ ७.पु० निरुभियउ...सासपवेसु थंभियव ९. पु. व्यउं सेसतणू [२७॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.२७] विलासवईकहा १० उवरिं पुणु सा तसु हूय गई जा कह वि कहेवि न सक्कियई । जा अणुहविय न पुयहि मुह-दुह अविहाविय । मरण-सहोयरि नावइ सा मुच्छ पराविय ॥२७॥ ___ [२८] जा थेव वेल तिह अच्छियउ ता सुमिणइ जिह ति पेच्छियउ । कर-कलिय-कमंडलु-गहिय-जलो तावस-वेसेण पणढ-मलो । सिंचंतउ गत्तई को वि रिसी चेयण संपाविय तेण इसी । अह चिंतइ किह हउं धरणि-गओ किं मंद-भग्गु अज्ज वि न मओ । रिसिणा वि अंगु तह परिमुसिऊ कुमरेण भणित करुणा-रसिऊ । भयवं किं एरिसु पई विहिऊ तेणावि तस्स एरिसु कहिऊ । निसुणेहि वच्छ हउं एत्थ वणे कुस समिह-निमित्तु पहुत्तु घणे । दूरट्ठिएण ता दिद? तुमं इह आरूहंतु नग्गोह-दुमं । अप्पणु वावायण-उज्जयउ मइं वयण-वियारि लक्खियउ । १० तो चिंतिउ हा एहु कवणु नरो दीसइ मरणज्झवसायपरो । पासउ उड्डे वि सिरोहरहे वच्चइ सुपुरिस-निदियइ पहे । किं वा मरियव्वय-कारणयं इय पुच्छेवि करमि निवारणयं । चिंतंतु तुरिउ हउं चल्लियउ ताव य तई अप्पा मेल्लियउ । मा साहसु मा साहसु करही भो सुवुरिस अप्पा संवरही । १५ एरिसु भणंतु हउं धावियउ तो वडह पएसि परावियउ । एत्थंतरे सहस ति तुह तुट्टउ पासउ । नाइ निरालंबस्स जोगिहि कम्मासउ ॥२८॥ तो धरणिवट्ठि तुहुं निडियउ मई कंठ-पासु निच्छोडियउ । सित्तो सि कमंडलु-पाणियइं चेयण संपाविय कह वि तई । [२८] १. ला०तहिं अच्छि० .. जिह तं २ ला० कर-कमल-कमंडलु ५. पु० तहो ९. पु. वावायणु ...वियारे १३. पु० तुरियउ [२९] १. ला. धरणि-वठे, पु० तुहु, ला• उच्छोडियउ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [५. ३१ पच्छा वि अंगु मइं परिमुसियं एवं चिय सोम मए विहियं । ता धम्मसील साहेहि महं ववसायह कारणु कवणु तुहं । ५ विलिएण कुमारि जंपियई भयवं किं कारणु पुच्छियई । ति भणिउ वच्छ सयलु वि कहही महु पुरउ लज्ज मा तुहुं करही । सव्वस्स वि उवरि विसुद्ध-मणो जणणी-समु होइ तवस्सि-जणो । अवियाणिय-वुत्ततो य हउं किं वच्छ हियाहिउ तुहु कहउं । ती साहहि अह तें चिंतियउ मुणि एह अकारण-वच्छलउ । १० सव्वस्स चेव अहवा गिहिणो माणणिय हवंति सया जइणो । इय चिंतिवि सेयवियापुर-निग्गमणाइउ । उल्लंबण-अवसाणो वित्तंतु निवेइउ ॥२९॥ [३०] भणियं च तेण भो वच्छ इमो संसारु इंदयालेण समो । इह सरय-काल-जलहर-सरिसं जीविउ अणेय-संपाडिय-मिसं । कुसुमिय-तरु-सम रिद्धीओ सया सुमिणोवभोग-सरिसा विसया । अंतम्मि विओय-सुदुग्गमइं . पवराई वि पिय-जण-संगमई । ५ ता एहु ववसाउ परिच्चयही तुहुं वच्छ कुसल-संचउ करही । परिवज्जिअ-पाणो वि एत्थ जिओ कम्मेहिं भवंतरि कहमि थिओ । इंह जइ न कुसल-संचउ करई हिय-इच्छिउ किह तहिं फल लहई। कुमरेण भणिउ तो एरिसयं भयवं न किंचि अन्नारिसयं । पर पिययम-विरह-महा-जलणू भयवं संतावइ मज्झ मण् । १० खणि खणि मरणाउ विसेसयरं हउं सहवि न सक्कमि दुक्ख-भरं । ता भयवं नियमेण मरणुज्जय-चित्तह । साहहि को वि उवाउ दइया-विरहत्तह ॥३०॥ [३१] अज्ज चिय जे परभव-गयए महु होइ समागमु सहुँ पियए । तो जंपिउ जइ निच्छउ मरही तो तुहुं उवाउ एरिसु करही । २९] ५. पु० विलएण ११. ला० चिंतेवि [३०] २. ला० संपडिय ६. ला० भवंतरे ७. ला० तं फलु १०. ला० खणे खणे मरणाओ.... सहेवि न सक्कउ दुकरं १२. ला० उवाओ [३१] १. पु० मज्ज.. मह...सह पियए Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. ३१ ] इहमत्थि मलय पव्वय-पवरे उत्तुंग सिहरु अइ- सोहणयं ५ दुखिय जण सेविउ सुह-चडणं ता तहिं जाएव समारूहहो निवडे विणु उज्झिवि जीविययं एरि निमुणेविणु हरिसियउ भयवं तं कर्हि उद्देवरु १० तेण वि तं दूरह दंसिययं विलासवई कहा तो मुणि नमेवि पयट्टो चिंतिय निय मारण । विविह-फलेहिं करंतो पाणहं साहारणु ॥ ३१॥ || इइ विलासवई कहाए विवाह-विओय-संधी पंचमी समत्ता || [३१] ७. ला० उज्झिय १० ला० -विलग्ग - नाणाविह अइ सय सिद्धि-धरे । नामेण मणोरह- पूरणयं । किर तं च सव्व-कामिय- पडणं । हिय-इच्छिय पणिहाणु विकरही । वच्छ पावेसि समीहिययं । पण मेविण तो मुनि पुच्छियउ । साहेहि सव्व - कामिय-सिहरु | गणग्ग- विलग्गु समूसिययं । ७७ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-६ [१] अह सो मलय-सम्मुहु वच्चंतउ तिहिं दिवसेहिं गिरिहिं पहुत्तउ । सप्पुरिसाहिमाणि जिह तुंगइ आरूढउ गयणग्ग-विलग्गइ । अह मलय-महागिरि तेण दिछ नाणाविहतरु-परिमल-विसिछु । एला-लवंग-लबली-वणेहि कप्पूर-अयरु-हरियंदणेहिं । ५ विप्फुरिय फणस-पोफलि-फलेहिं उबिल्ल वेल्लि-पल्लव-दलेहि । अंतरिय-निरंतर-तरणि-तेउ उच्छलिय-महुर-किन्नर-सुगेउ । घण-किरण-नील-मरगय-तडेसु अविभाविय हरियंकुर-विसेसु । नज्जंति तत्थ निज्झर-जलाई फरिसेण य फलिह-सिलायलाई । कत्थ वि थिय कत्थूरिय-कुरंग उब्भड भमंति निब्भय भुयंग । सिद्ध-बहु मुद्ध अंदोलयंति जहिं सुर वसंत सुर-बहु सुयंति । कत्थ वि कल-कोइल-कलयलेण मंडियउ सिर्हिडिहिं तंडवेण । गुह-मुहहिं सीह जहिं नीसरंति दप्पुटुर वानर वुक्करंति । अह सो दइया-सोय-विमूढउ कोड्ड-विवज्जिउ तहिं आरूढउ । तुंगइ सिहरि मणोरह-पूणि किउ पणिहाणु वि संगम-कारणि ॥१॥ १० कर जोडिवि जंपिउ तो इमेण भो सिहर तुज्झ अणुभावएण । जम्मंतरे वि निय-वल्लहाए महु होज्ज समागमु सरिसु ताए। एरिसु पणिहाणु करेवि तेण अप्पा मुक्कु निरवेक्खएण । एत्तहि हा ह त्ति भणंतरण कह कह वि गयण-गोयर-गएण । ५ धुव्वंत-चारु-चीणंसुएण अइ-गुरुतर-वेग-सम्सुएण । वामंस-निवेसिय-असिवरेण संभमवस-वियलिय-सेहरेण । अच्चंतो वि सोम सुदंसणेण चंदेण व गय-मय-लंछणेण । [१] १. ला० मलय-समुहु, पु० दिवसिहि २. ला० सप्पुरिसाहिमाणे...गयणग्गे... ४. ला०-अयर- ५. ला० उग्वेल्ल ७. ला० हरियं कुरु ११. ला० सिहंडे हिं १२. ला० सीह जिह....वोकरंति १३. ला०-विमूढओ.. आरूढओ १४. ला० सिहरे... कारणे [२] १. ला० जोडवि.. तुज्झु २. पु० मह ४. पु० एत्तहे ७. पु० अच्चत Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.२ ] विलासवई कहा सहस तिललिय-दीहर- करेण नओ य सहाव- सुसीयलम्मि १० संतावासय जलअ व हरम्मि तो आसासिवि तेण य वृत्तउ तुहुं अणन्न- सरिसागर दीसहि भो सुपुरिस किं तई आढत्तउ । एरि कज्जु कीस अज्झवसहि |२॥ [३] तुहुं दीसहि उत्तम गुण-सहाउ ता एरिस कि अणुचिद्रियं ति किं वा तं कारणु कहहि तो इ कुमरेण भणिउ तुह सज्जणस्स ५ नीसेस - दोस- परिवज्जियस्स किं अस्थि किंचि जं अकहणीउ पिययम-विओय-संतावियस्स रिसिणा एउ पडणु निवेइयं ति तो अनुभवम्मि वि सरिसुताए १० इय पणिहि करेविणु मई विशुक्कु अद्धवहे गहिउ विज्जाहरेण । मणि-चंद - कंति-मेल्लिय - जलम्मि । चंदणतरु-तरुण-लयाहरम्मि । नेहो हि सव्व दुक्खाण मूल नेहो fear अविवेयह निवास नेहो च्चिय अग्गल नेव्बुईए नेहो हि कुसल - जोयाहं सत्तु एउ मज्झ मरियव्वय-कारणु पर तई कीस धरिउ निक्कारणु । तो विसेवि भणइ विज्जाहरु भो न किंचि ससिणेहह दुक्करु || ३ || [४] आगि पिसुणिय सप्पुरिस - भाउ | त इयर - पुरिस - अणुरुवयं ति । ज अकहणीउ सुपुरिस न होइ । पर- उवयारेक्क- महा - रसस्स । पवियाणिय-पाणी- धम्मयस्स । ता सुणसु दुक्खु जं असहणीउ । अप्परं वावायण - उज्जयस्स । नामेण मणोरह-पूरणं ति । संगमु हवेज्ज मह पिययमाए । पर तुहु वसेण मरणस्स चुक्कु | नेहो हि महंत हियय-मूल । नेहो च्चिय दारुणु काल-पासु । नेहो च्चिय बंधणु दोम्मईए । नेहो हि असज्झवसाय - मित्तु । [२] ११. ला० आसासेवि [३] १. पु० दीसहिं, ला०आगि २ ला० अणुचेट्ठिय ५ ला० पाणीय - धम्मयस्स १०. ला० इह १२. ला० सिणेहह, पु० ससिणेहह कारणु Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया ५ नेहो हि भवाडवि-सत्थवाहु नेहो हि सयल-दोसहं पवाहु । नेहेण य जे अभिभूय पाणि परिणामु न पेच्छहिं ते नियाणि । कालोच्चिउ कज न जोवयंति सुह-कारणु धम्मु न सेवयंति । जीविउ कुलु सील परिच्चयंति दारुणु विवाउ नालोच्चयंति । परमत्थु वि तस्स न पेच्छयंति नेहेण अंध जिह अच्छयंति । १० लोहह पंजरि घल्लिय कत्थ वि सीह जेंव सोयंति समत्थ वि । तिह पुरिसा वि हु सत्त-समिद्धा अच्छहि दुत्तर-नेह-निबद्धा ॥४॥ विसयम्मि वि एरिसु ताव एहु किं पुणु अविसय-पडिलग्गु नेहु । विसयम्मि नेहु जीवंतएण अविसय-सिणेहु पुणु सहुं मुएण । ता भो सुपुरिस छड्डहि विसाउ अविसय-सिणेहु तुह खयह जाउ । जोवेहि विवेग-पई लेवि अन्नाण-तिमिरभरु अवहरेवि । ५ किह वा विचित्त-कम्मासयाण जीवाण विविह-भव-निवडियाण । साहेहि पडण-अणुभावएण गइ एकक होइ सहुं संगमेण । तहविह-परिणाम-अभावएण तो किं इमिणा आरंभिएण । अहिलसियह साहणि पुणु उवाउ इह दाणु सील तवु गुण-सहाउ । दिट्ठउ परमत्थ-वियाणएहिं सव्वेहि सिद्धंत-कहाणएहिं । १० न य दिट्ठउ अन्नु उवाउ कोइ अहिलसिय सिद्ध किर जेण होइ । एगोवगयउ पीइए पडेविणु भिन्नउं तह पणिहाणु करेविणु । एत्थु वि निसुणसु विसरिस-चित्तई गहवइरियाई खयह संपत्तई ॥५॥ निमुणहि जं वित्तु अईय-कालि एत्थेव मलय-मंडल-विसालि । कणियार-सिवम्मि य सन्निवेसि साभिलउ नाम गहवइ अहेसि । नामेण य तसु अमणाभिराम आसि च्चिय गेहिणि सीह नाम । भत्तारु इछु सो पुण इमीए जीवाउ वि वल्लहु गेहिणीए । [४] ५. पु० महाडवि-१०. ला० पंजरे ५१. ला० दुत्तरे -ह-बद्धा [५] ३. ला० विवाउ ४. पु० जोवेहि विवेगि पईउ...भवहरेह ८. ला० साहणे ९. पु० सव्विहिं [६] १. ला० अईय-काले ...मंडले विसाले Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.६] विलासवईकहा ५ तसु रेसिं सा किर मरु मरेइ सो पुण तहे कहई संवरेइ । एवं च परोप्पर दुहं वि ताण संगम-विओय-इच्छंतयाण । जिह रोज्झ-बलेदह धुरगयाण गउ को वि कालु तिह घरि ठियाण । अह अन्न-कालि कस्स वि मुहेण आयण्णिउं कामिय-पडणु तेण । तो निय-भज्जा-निव्वेय-जुत्तु इह सव्व-काम-पूरणे पहुत्तु । १० आरूहेवि सिहरे अइ-दुखिएण तो एरिसु किउ पणिहाणु तेण । मा जम्मंतरि वि मह भारिय होज्ज एह असुहत्थिय-कारिय । इय एरिसु पणिहाणु करेविणु भंजिउ तें अप्पाणु पडेविण ॥६॥ सो ताव मरिवि गउ निय-गईए एनहि एहु वइयरु मुणिउ तीए । तो गहिय गरुय-उव्वेव्वएण इह पडणि पहुत्तिय तक्खणेण । भत्तार-सिणेह-परव्वसाए पणिहाणु वि एरिसु कियउ ताए । भो सिहर मणोरह-करण-सज्ज जम्मंतरि सो चिय कंतु देज्ज । ५ एरिसु भणेवि अप्पाणु मुक्कु तीए वि तहेव कयंतु दुक्कु । दोण्ह वि अन्नोन्न-विरुद्धयाण तक्कमि न मणोरह पुण्ण ताण : ता किं इह जुत्ति-विवज्जिएण निप्फल-अप्प-चह-कुचेट्टिएण ! साहेहि ताव तुह पिययमाए किह कइयह हुयउ विओठ ताए । तो कुमारु वि चिंतइ निय-चित्ति एहु नहयरु सुंदरु जंपइ ति । १० साहेमि ताव वइयरु इमस्स अक्खिउ अयगर-वित्तंतु तस्स । दिवसु तइज्जउं एयह वित्तह एउ दुक्खु न नियत्तइ चित्तह । तं निमुणेवि भणइ विज्जाहरु केत्तिय दूरे वित्तु एहु वइयरु ॥७॥ [६] ५. पु० पुण तह ६. पु. दुहुँ ७. पु०-बलेद्दहं धरिहियाण ___ ९. ला० -भज्जा य निव्वेय-, पु० काम-पूरण १२. ला ति . [७] १. ला० मरेवि ...एत्तहे २. ला० पडणे ३. ला० कियउं ६. पु० अण्णोभण्ण ९. पु० इह नहया १०. ला० वइयरमिमस्स १२. पु० दूरि वित्तु एह Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [६.९ [] कुमरेण कहिउं दस-जोयणेहिं एयह उद्देसह समहिएहिं । झ्य सुणेवि भणिउ विज्जाहरेण जइ एरिसु ता अलमुव्वेवएण । न विवन्नियः तुह पिय निच्छएण तो सायरु पुच्छिउ सो इमेण । किं कारणु किह वा तुहुं मुणेहि अह तेण वि जंपिउ भो सुणेहि । ५ वेयडूढ-महीहर-सेहराए उत्तर-सेढीए मणोहराए । देवोवम-विज्जाहर निवासु पुरु अत्थि गयण-वल्लहु पयासु । तहिं बहु-विज्जाहर-राय-राउ मणि-मउड-किरण-विच्छुरिय पाउ । विज्जा-बल-गविउ गरुय-तेउ सिरि-चक्कसेणु नामेण देउ । इह सिद्ध-खेत्ति पारद्ध तेण वर-विज्जा-साहणु दढ-मणेण । १० सा पुणु अप्पडिहय-चक्क-विज्ज भो सुपुरिस दुक्ख-पसाहणिज्ज । तहि ताव दुवालस-मास चेव विहिणा किय पुव्वहिं पुव्व-सेव । अडयालिसं चिय जोयणाई किय खेत्त सुद्धि सोहिवि वणाई । सव्वहं जीवहं अभउ दयाएवि सत्त दिवस जा हिंस निवारेवि । तो सव्वत्थ धरिय विहियायर नियय-सरीरभूय विज्जाहर ॥८॥ अह सो पहाण-सिद्धिहि निमित्तु एक्कल्लउ चेव सुधीर-चित्तु । निम्मलउ फलिह-मणि-वलउ लेवि पूयाविहाणु सन्निहि करेवि । एत्थेव सिद्धिनि लयाभिहाए __ अच्छइ पविट्ठ मलयह गुहाए । किय मुद्दा-मंडल देह-रक्ख पारद्ध जावु तो सत्त-लक्ख । ५ पूराणि सत्त-दिवसई सुहेहि तसु सरिसई पणइ-मणोरहेहिं । रयणीए इमीए वि वोलियाए तसु विज्ज-सिद्धि होसइ पहाए । मह सामिहि सुह-पुण्णोदएण हउं जाणमि तो इय कारणेण । [८] २. ला० सुणवि, पु० भणियउ ४. पु० किह कारणु...तुहु ७. पु० -किरण-- विप्फुरि-पाउ ८. पु० -गव्विय ९. पु० सिद्धि-खेत्ति [९] ३. ला. मलय-गुहाए ४. पु० जाव Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.९) विलासवईकहा दस-जोयण-भूमिहि सन्निविट्ठ सा निच्छउ तुह पिय न वि विणट्ठ । जम्हा विज्जाहर-सामि कज्जि उज्जय रक्खिस्सहिं किं न स जि । १० कीडियह वि रक्खिज्जइ विणासु किह माणुसु मरइ तहा पयासु । मई तुहुं वि इमेण वि कारणेण कह कह वि धरिउ धावंतएण । इय निसुणेवि कुमारु सयत्तउ नियय चित्ति चिंतिवि आढत्तउ । जुत्ति-जुत्तु विज्जाहरु भासइ तो जीवंतिय महु पिय होसइ ॥९॥ [१०] अन्नही कह तिह पड-पाउयाए केवल पड-गसणु वि होइ ताए। किह तक्खण-भक्खिय-माणुसस्स कुंडलि-करणं चिय अयगरस्स । चिंतिवि विज्जाहरु तेण वृत्तु भो सुपुरिस तई महु विहिउ जुत्तु । इय चकसेण-पहु-वइयरेण आसासिउ मह मणु तक्खणेण । ५ तो सज्जण तई अवहरिउ सोउ तुह सामि समीहिय-सिद्धि होउ । मह ताव चित्तु मरणह नियतु वच्चामि निरूवणि करमि जत्तु । वारिउ कुमारु विज्जाहरेण अलमिह सप्पुरिस किलेसिएण । अहमेव देव-सासणु करेवि परिपुण्ण-मणोरह तो हवेवि । पुच्छवि विज्जाहर निरवसेस ठाण य पडिरक्खिय नियपएस । १० कल्लि च्चिय तुह पिय संघडेमि दिन्वंतराए जइ न वि पडेमि । तो उवयारि अलंघिय-वयणउ मित्तु एहु पडिवन्न-पहाणउ । जं चिय किं पि भणइ तं किज्जइ इय चिंतेवि कुमरें मन्निज्जइ ॥१०॥ वोलीणउ वासरु रयणि पत्त ठिय दो वि विसिट्ठ-कहा-पसत्त । तो अद्ध-जाम-अवसेसयाए रयणीए सुहेण वि वोलियाए । जाव य संसेविउ सुर-गणेण उज्जोविउ नहयलु तक्खणेण । विणु पवणि संचल्लिउ समुदु हल्लिउ तह मलय-महागिरिंदु । [९] १०. ला० कीरिमहे १२. ला० पु० सइत्तउ, ला० चित्ते चिंतवि । [१०] १. पु० कहविह ३. ला चिंतेवि ४. ला0 महु ५. पु. होइ ६. ला० निरूवण ८. ला० करेमि पडिपुन्न ९. ला० पुच्छेवि १०. ला० कल्ले...तुहु । [११] ४. ला० पवणे Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविराया [ ६. १३ ५ बहु-तूरसह-पसरिउ निनाउ गयणेण य खयर-विमाणु आउ । गिज्जंत-परम-मंगल-पहाणु अइ-मणहरु नावइ सुर-विमाणु । उद्विउ विज्जाहरु संभमेण बोल्लाविउ कुमरु वि तो इमेण । भो पेच्छ पेच्छ अच्छरिउ एउ सिरि-चकसेणु एहु जाइ देउ । संपन्निय सामिहि विज्ज-सिद्धि तो पेच्छहि एयह दिव्व-रिद्धि । १० पेच्छंतह दोण्ह वि आयरेण वोलिउ विमाणु बहु चडयरेण । गलिय रयणि उग्गमिउ दिवायरु कुमरु लेवि चल्लिउ विज्जाहरु । मलय-सिहरि नेव्वुइकर-नामि पाविय दोण्ण वि मण-अभिरामि ॥११॥ विज्जाहर-गरुय-सहा-निविठु सो चक्कसेणु खयरिदु दिदछु । पणमिउ पह-विज्जाहरेण कुमरेण वि ओणामिय-सिरेण । दिन्नई अणुरूवई आसणाई पहुणा कयाइं संभासणाई । कुमरह वित्तंतु सवित्थरेण साहियउ तस्स विज्जाहरेण । ५ पिययम-विओय-संतत्त-देहु मई पडण-पडंतउ धरिउ एहु । भणियउ कुमारु खयराहिवेण भो सुपुरिस मा तप्पहि मणेण । अज्जेव तुज्झ पिय संघडेमि वित्तंतु जांच सव्वहं लहेमि । एत्थंतरि जाइ खणड जाम्ब आगय विज्जाहर दोण्णि ताम्व । तो चक्कसेण-पाएहिं पडेवि एगेणाऽऽढत्तउं परिकहेवि । १० अवहाणु देवि निमुणेहु देव आएसु करंतिहिं तुम्ह चेव । सयल वणंतराइं हिंडंतेहिं तह जीवोवघाउ रक्खंतेहिं । गरुय-काय-अयगर-भय-तटिय अम्हेहिं नारि मणोहर दिद्विय ॥१२॥ [१३] तो उत्तरिउ सा मेल्लिऊण पल्लव-सयणीयह उढिऊण । हा अज्जउत्त इय जंपमाणि तहि एक्क-पएसि पलायमाणि । [११] ५. पु.-पसरिय ६. पु० -मणहर १२. ला०--सिहरे....नामि . दोन्नि...अभिरामि । [१२] १. ला० चक्कसेण ५. ला० पडणि- ७. पु० अज्जे वि, ला० जाव ९ पु०-पायहिं १०. ला० निसुणेहिं...करतेहिं १२. ला० अम्हे नारि [१३] १. पु० उत्तरी सा Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. १३ ] विलासवई कहा अम्हेहिं वावत्तिहिं भीयएहिं उक्खित्त देव दोहि वि जणेहिं । तो मुक्क मलय-सिहरम्मि नेवि पल्लव-सयणोउ विणिम्मवेवि । ५ तर्हि मुच्छिय अच्छिय को वि कालु अणुहुंजिवि दुक्खु महा-विसालु । भय-वे विरंगि उट्ठिय झड त्ति हा अज्जउत एत्तिउ भणंति । आसासिय क्यणे सोयलेण सुंदरि मा भाहि अलं भएण । साहेहि ताव कर्हि अज्जउत्त सो गयउ तुज्झ किं वा निमित्त । तो कहिउ तीए सो तहिं पएसि आसन्नइ सरवरि मज्झरेसि । १० उदयह निमित्तु संपत्थिउ त्ति उपरिं पुण किं पि न याणमो ति । तो अम्हेहि जाएवि गविट्ठउ तहि पएसि सो देव न दिवउ । चिट्ठइ सा वि चत्त-जल-भोयण अज्जउत्त गायत्ति परायण ॥१३॥ एरिसु निसुणेवि पमाणु देउ कि कीरइ तहिं आएसु देउ । तो कुमरु पलोएवि भणिउ तेण सिरि-चकसेण-खयराहिवेण । भो सुपुरिस तुहं जाएवि जोइ सा तुज्झ घरिणि किं वा न होइ । तो वयणें तेण पमोय-सारु विजाहर-दुइयउ गउ कुपारु । ५ चंदण-वणु मणहरु मलय-साणु उग्गमिउ न दी पइ जत्थ भाणु । दिट्ठा य तत्थ परिसुसिय-देह जिह कसि ग-चउसि-चंद लेह । पिययम-विओय-पाविय-अरई कंठट्ठिय-जोय विलासवई । पेच्छेवि ऊसिउ कुमार-चित्तु हरियंकुरु जिह घण-तोय-सित्तु । पेच्छेवि रोवणह पयत्त देवि आसासिय नयशं सुय फुसेवि । पच्छा विज्नाहर-आणिएण सयलिंदियाण उवयारएण । असणेण कराविय पाण-वित्ति दोण्ह वि उप्पन्नु पमोउ चित्ति । तो विज्जाहर-सामिहि साहिउ तुटउ चक्कसेणु मणि साहिउ । भद तुज्झ पिय-संगमु साहिउ अन्नु वि कहहि विहवु तुह साहिउ ।।१४।। कुमरेण वि जंपिउ नत्थि अन्नु करणीउ किं पि महुं सव्वु पुण्णु । महं सफल मणोरह सव्धि जाय खयरिंद दिट्ठ छुडु तुम्ह पाय । [१३] ३. पु० दोहिंमि ५. पु० अच्छेवि को वि...अणहुंजेव ७. ला० वर्याण १०. ला. संपत्थि भो १२. ला--भोयणु [१४] १. ला० पमाण ५. ला० चंदण-वण ६. ला. जह कसिग-चउद्दि सि-८. ला० पेच्छवि...-सित्त । ९. पु० पेच्छिवि १०. ला० सयले देयाण १३. ला० विहउ २. पु. सव्वे....छुडु तम्व पाय । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया सो जंपइ भद्दय तुह इमेहिं हउं जाणमि सुंदर-लक्खणेहिं । होयव्वउं तई सिरि-रामिएण विज्जाहर-नरवइ-सामिएण । ५ ता गिण्ह अजियबल नाम विज्ज ववसायमेत्त-गुण-साहणिज्ज । पाएण एह साहिज्जमाणि विग्याणि पयासइ बहु-विहाणि । परिणामे वि उत्तम-फलई देइ भो सुपुरिस गरुयत्तणु करेइ । तो कुमरि सुमरिउ ताय-पासि जं बाल-कालि आइछु आसि । जिह एह सयल-लक्खण-सहाउ होसइ विज्जाहर-राय-राउ । १. ता सच्चु वयणु नेमित्तियाण न वि अन्नह होसइ कह वि ताण । माणणिय महा-पुरिसा वि होंति कीरइ तं जं चिय आइसंति । इय चिंतेवि कुमरेण भणिज्जइ जं आइसह किं पि तं किज्जइ । दिन्न विज्ज तेण वि पडिगाहिय साहण-विहि नीसेस वि साहिय ॥१५॥ ___[१६] अह सो गएसु विज्जाहरेसु इच्छइ करेवि किरिया-विसेसु । चिंतेइ ताव साहण-निमित्तु एयं चिय सुंदरु सिद्धि-खेत्तु । पर हउं एक्कल्लउ किं करेमि इह उत्तर-साहगु न वि लहेमि । तो कुमरे सुमरिउ नियय-मित्तु आवइहि सहेज्जउ एग-चित्तु । ५ जइ एत्थ काले वसुभूइ होइ ता सिद्धिहि किं संदेहु कोइ । एत्थंतरि कह वि परिब्भमंतु विज्जा-सिद्धिं पिव सूययंतु । तावसहं वेसु सुंदरु धरंतु कुमरस्स वि अन्नेसणु करंतु । तत्थेव य भवियव्यवसेण वसुभूइ पहुत्तउ तक्खणेण । अह ते बाहोल्लिय-लोयणेण उवसप्पिवि तो गग्गय-गिरेण । १० भो पेच्छह विहि-विलसिउ असारु इय जंपेवि आलिंगिउ कुमारु । तेण वि तस्स संमुहूं जोवंतें तावसो त्ति अप्परियाणते । कवणु एहु एरिसु चिंतं किउ पणिवाउ देवि-संजुत्तें ॥१६॥ [१५] ३. पु० सुंदर लहु गुणेहिं । ४. ला० होयव्वं १०. ला० सच्च ११. ला. हुंति १२. ला० आइसह तुम्हे तं [१६] ७. ला० भन्नेसण ९. पु० अह तं १०. पु० आसारु ११. ला. जोवंतिं .. ___अप्परियाणंतिं । १२. ला. चितंति...-संजुति । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. १७ ] विलासवईकहा [१७] विरहाउलु तं सि जीवहि वयंस उज्जोविय-सिरि-जसवम्म-बस । सुंदरि तुम पि अविहव हवेहि अविओउ निच्चु कंतह लहेहि । इय जाव दिन आसीस तेण वसुभूइ वियाणिउ तो सरेण । अह पच्चभि याणिवि नियय मित्तु आणंदह भरिउ कुमार-चित्त । ५ तो बाह-जलोल्लिय-लोयणेण पल्लवमउ आसणु दिन्नु तेण । चलणह पक्खालणु सलिलु लेवि संपत्त विलासबई वि देवि । कम धोय कराविय पाण-वित्ति पच्छा असेस पुच्छिउ पउत्ति । किह तई वयंस तरियउ समुदु किह वा वि दुक्खु वि सहिउ रउदु । कस्स व उद्देसह आगओ त्ति किह तइं हां एत्थ वियाणिओ त्ति । १० वसुभूइ भणइ निसुणेउ मित्तु अवहाणु देवि खणु एक्क-चित्तु । तइयह दारुणि पवणि पवन्नइ जाणवत्ति आवत्त-विवन्नइ । भविय व्य-वसेण मई पत्तउ फल हु एक्कु तहि लग्गु तरंतउ । १७॥ [१८] अह तेण मच्छ-मयरहिं रउद्द पंचहिं दिणेहिं लंघिउ समुदु । तुह मित्त विरह-दुह-भर-समग्गु इह मलय-कूलि उत्तरेवि लग्गु । जल-निहि-तड-दसण-आगएण तो दिठ्ठ विसिद्धि तावसेण । मई पणमिउं दिन्नाऽऽसीस तेण आसासिउ परम-दयालुएण । ५ भणिओ य एहि आसन्नयम्मि गच्छम्ह वच्छ आसमपम्मि । गय दो वि तवोवणे तत्थ दिछु झाणविउ कुलवइ सुहु निविठु । पणमिउ वयंस मई आयरेण तो पाण-वित्ति कारविय तेण । पच्छा पुच्छिउ वच्छय कुओ त्ति एगागि किह व इह आगो ति । तो मई वित्तंतु सवित्थरेण साहियउ तस्स गग्गय-गिरेण । [१७] ७. पु० कराविउ १०. ला० निसुणेहि...एक्कु-११. ला० तइयहु, पु० दारुणे पवणे.. जाणवत्ते....विवण्णए । १२. पु० तुरंतउ [१८] १. ला0 मयरेहिं २. ला० विरह-भर-दुह-समग्गु ३. ला०-दसण-आणएण.. पु० विसढे ४ ला० आसासिय ५. ला० एहिं ६ ला० दो वि ता वणे, पु० सुह निविदछ ७. पु० कारविउ ८. ला० कह व ९. पु० सुवित्थरेण Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [६.२० १० अणुसासिउ तो रिसिणा वि तेण वच्छय अलमिह उव्वेवएण । एरिसु एहु संसारु असारउ पुन्वक्कयहं नत्थि उव्वारउ । तम्हा हरिस-विसाउ न किज्जइ वच्छय धम्मु एक्कु चिंतिज्जइ ॥१८॥ वच्छ एत्थ संसारचारए को इमाई दुक्खाइं विचारए । अत्थि एत्थ जम-हत्थि भीसणो सव्व-भूय-भावप्पणासणो । संचरेइ अचिरेण वा जरा जज्जरेइ जिय-देह-पंजरा । बाहयंति विविहा य वाहिणो तह कसाय वियसंति साहिणो । ५ वच्छ लच्छि च्छाय व्व चंचला बंधु-मित्त-जोगा न निच्चला। देइ दुक्खु दारिद-कंदओ मलइ माणमिह मयण-मंदओ । सोय-सप्प विसरिसु विसप्पए कढिण कोह-फरवत्तु कप्पए । भमइ भीमु भव-भय-भुयंगमो वल्लहेहिं दुल्लहउ संगमो । पिय-विओय-वयणं ति वेयणं पिसुण-सुणय न सुणंति सोहणं । १० जत्थ जीउ जोणीसु छुब्भए तहिं भवम्मि किह सोक्खु लब्भए । मुणि-जणेहिं जेण य मुणिज्जए तेण वच्छ इह धम्मु किज्जए । तो मइं चिंतिउ सोहणु एयं चिय रमणीउ तवोवणु । ता जुत्तउ पिय-मित्त-विउत्तह इह निवासु वेरग्गिय-चित्तह ॥१९॥ [२०] अलमेत्थ मज्झ अन्नहिं गएण एवंविह बहु-दुह-संगरण । निसि-सुमिण-समागम-सरिसएण अलमिह संसार-किलेसरण । चिंतेवि कहिउ कुलवइहि भाउ निय दिक्ख देहि करि महु पसाउ। तें भणिउ वच्छ तुहु उचिउ एउ धन्नाण होइ एरिसु विवेउ। ५. पर कम्महं परिणइ अह-रउद . जोव्वणु दलेइ संजमह मुद्द । दुपरिच्चय होति सिणेह-तंतु वेढिज्जहिं एएहिं सयल जंतु । [१८] ११. ला० उद्धारउ १२. ला० हरिसु [१९] १. ला० दुक्खई, पु० विचारइ ६. पु०-कंदउ...मंदउ । ७. ला० विसरसु...कोह ८. पु० भवे, ला० वल्लहेहि दुल्लहो १२ पु० तो में चिंतिउ [२०] ३. ला• कुलबइहे, महुँ ४. पु० ते भणियउ ५. ला० परि ..अइ-रउद्द ६. ला. दुह-परिचय हुति Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तन्हा ६.२१ ] विलासवईकहा वच्छय विसमाणि य इंदियाणि उम्मग्ग पयट्टइं निदियाणि । इह जाणंतेहिं वि गुण-विसेसु दुपरिच्चउ संसारह किलेसु । १० विसमं चिय मुणि-जण-चरिउ होइ धन्नो च्चिय पालइ सुथिरु कोइ । छड्डिज्जइ जइ पुणु एउ ले वि आणेइ अणत्थु भवंतरे वि । इह लोए वि लज्जावणउं होइ तम्हा असुहावहु उभय-लोइ । आगमत्थु ता सयल मुणेविणु वच्छय अप्पाणउं तोलेविणु। तो संसार-विवज्जण जुजइ अन्नह उभय-लोगु हारिज्जइ ॥२०॥ [२१] तेण य वच्छ तइं हउं भणेमि अन्नु वि नाणेण य इय मुणेमि । तुह अज्ज वि जीवइ पिय-वयंसु होसइ य संगमु ति अवस्सु । एयं चिय ता इह पत्तयालु तुहुं वच्छ पडिक्खहि को वि कालु। मुणियणहं पज्जुवासण करंतु तावसह वेसु एरिसु धरंतु । ५ तो मित्त तेणे मुणि-भासिएण तुह-दसण-जणिय-सुपच्चएण । मुणि-लोयहं विणउ समायरंतु ठिउ एत्तिउ कालु पडिक्खयंतु । तइयइ दिवसम्मि य तावसेण तुह वइयरु वणह समागरण । उल्लंबण-गिरि-पडणावसाणु निसुणिउ कुलवइहि कहिज्जमाणु । सो च्चिय वयंसु मह होसइ ति एरिमु धरेवि तो निय-चित्ति । १० विणएण य कुलवइ विन्नवेवि चल्लिउ वयंस गिरि उद्दिसेवि । तो हउं तुरिय-वेउ आवंतउ कल्लि मणोरह-पूरणि पत्तउ । तत्थ एक्कु विज्जाहरु अच्छिउ तुह वित्तंतु असेसु वि पुच्छिउ ॥२१॥ [२२] तो जेंव पुव्व-भव-बंधवेण तुह कहिय असेस वि वत्त तेण । तो तई वयंस अन्नेसयंतु इह झत्ति पहुत्त परिब्भमंतु । एरिसु वुत्तंतु सुणेवि सारु निय-मणि परितुट्ठउ तो कुमारु । [२०] ९. ला० इय १३. ला० सुणेविणु, पु० अप्पाणं १४ ला) संसार विभज्जणु [२१] ३. पु० पडिक्खिहि७. ला• तुहु ९. पु० नियय-चित्ति ११ ला• कल्ले मणोरह-पूरणे [२२] १. ला० पुव्व-हव- २. ला० अणुसयंतु ३. पु० -मणे, ला० परितुद्व सणंकुमारु १२ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया ___ तो चिंतइ कुमरु असंसयाए होयव्यउं विज्जा-संपयाए । ५ अन्नह किह होइ अयंडि चेव वसुभूइ-समागमु सिग्यमेव । तो साहिउ विज्जा-लाहु तस्स सो ईसि हसेवि जंपइ वयस्स । नेमित्तिय-वयणु म अन्नह त्ति जं चिय विलासवइ हूय पत्ति । हउं जाणमि एएं कारणेण हवियव्वउं पई विज्जाहिवेण । ता कीरउ हियय-समीहियं ति एत्थ वि वयंस अविलंबियं ति । १० तो दिढ-मोणव्वउ सेवंतह परिमिय-वर-फलाई भुंजंतह । सुद्धउ बंभचेरु धारंतह गय छम्मास विज्ज-घोसंतह ॥२२॥ __ [२३] तो पुच-सेव सयल वि समत्त पच्छा विलासवइ तेण वुत्त । तुहं सुंदरि धीरिय ताव होहि मा खेउ चित्ति किंचि वि करेहि । संपन्न मज्झ समीहियं ति किउ सयलु वि जं इह दुक्करं ति। थेवं चिय चिट्ठइ कठु मज्झु फल एक अहो-रत्तेण सज्झु । ५ एरिसु निसुणेविणु तीए वुत्तु पूरेउ मणोरह अज्जउत्तु । पय-कमलु तुम्ह पेच्छंतियाए को चित्त-खेउ सन्निहि ठियाए । तो एह एत्थ बीहिस्सइ त्ति कायर-हियया चिय इत्थिय त्ति । कलिऊण नाइ-दरट्ठियाए सा धरिय मलय-गिरि-वर-गुहाए । अह तिं पारद्ध पहाण सेव पुज्जिय असेस दिसिवाल-देव । १० आणीयइं जल-थल-संभवाई कुसुमइं दसद्ध-वण्णई सुहाई । आउह-वाहण-परियर-समय तहिं ठाविय देवय गरुय-तेय । गुह वारि निवारिय विग्ध-जालु वसुभूइ निवेसिउ रक्खवालु । मुद्दा-मंडलई आलिहियइं उवगरणाइं किय सन्निहियइं । थिरु पउमासण-बंधु निबद्धउ सय-साहस्सु जावु पारद्धउ ॥२३॥ [२२] ४. पु. होएव्वउ ५. ला• कह होइ ६. पु० - लाभु ७. पु० न अन्नह, ला. भूय पत्ति । ८. पु. भवियव्वउ तई ९. ला० नीयय-समीहियं १०. ला. हुंजंतह [२३] ६. पु० को वि खेउ मज्झु सण्णिहि... ७. पु० वि य इत्थिय ९. पु० ते १३. पु० कियई १४. ला० पु० जाव Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. २४ ] विलासवईकहा [२४] जा समइक्कंतिय का वि वेल तो नाइ पल्लिय सव्वि सेल । संचल्लिय गह-तारागणेण हसियं पि य नाइ नहंगणेण । तड-तडिय तरल-विज्जुल-सणेहिं नं पलय कालु गज्जिउ घणेहिं । उज्वेल्ल-सयल-जलहर-भरेण गुलु-गुलिउ नाइ गुरु सायरेण । ५ तरु-पव्वय-नीर-विरेइणीए आयंपिउ नावइ मेइणीए । तं पेच्छेवि चिंतइ कुमरु चित्ति पाविस्सइ भउ मह पिययम त्ति । तो सरिउ वयणु ज कहिउ तेण सिरि-चकसेण-विज्जाहरेण । जिह किर आसन्नउ जइ हवेइ तो अन्न विहीसिय न वि अवेइ । कलेवि सुनिच्चलु धरेवि भाउ पुणरवि पारद्धउ मंत-जाउ । १० निब्भरे मंत-जावे वट्टतए इंदिय-पसरि असेसि नियत्तए । नासग्गे विनिविट्ठ थिर-दिठिय ताव बिहीसिय अन्न समुट्ठिय ॥२४॥ [२५] जाव आरद्ध बहु-जीव-संहारणो दंत-विणिभिन्न-लंबत-आहोरणो। कण्णवालीए घोलंत-लुढियंकुसो अंकुसायास-संजणिय-गुरु-अमरिसो। अमरिसावस-कुंडलिय-दीहर-करो कर-समुक्खेव-विक्खित्त-घण-सीयरो। सीयरासार-निम्महिय-मय-परिमलो परिमलालुद्ध-गुंजंत-महुयर-कुलो । ५ उत्तराहारि मेहो व्व गज्जंतओ फुट्ट-करयडयडमय-वारि-वरसंतओ। तह विलासवइ-देवि पि विलतियं अज्ज उत्त त्ति धाहाहि रोवंतियं । गहेवि सुडाए चंडाए भामंतओ पुणु वि पाएहिं दोहिं पि चंपतो। संमुहो चेव धावंतु अइ-दुओ इय कुमारेण वर-कुंजरो दिहओ । . दंतग्गेहिं कुमारु तें विद्धउ तह वि न किंचि चित्ति संखुद्धउ । १० ता सा अवगय जाव बिहीसिय थेव वेल ता अन्न पयासिय ॥ ५॥ [२४] १. पु० सयल सेल ३. पु० तड तड तरलि विज्जलसणे हिं ने पलयकाले ४. पु०___ जलयर- ६. ला० पेच्छवि ...पावेस्सइ ७. ला० सरिय ८. पु० अन्नु ९. ला० इय कलिय ...मंत-जावु । [२५] १. ला०-आहारगो २. पु०-लुलियंकुसो ३. पु० कर-समुव्वेव ४. पु०-महुवर ५. ला०-वरिसंतओ ७. ला पुण....चंपतउ ९. ला० कुमार विधंतओ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [६.२७ [२६] तो झत्ति अइ-भीसणा कसिण-वण्णेण कुंडलिय-फणि-जुत्त एक्केक-कण्णेण । सोयामणीचल-फुलिंगोवमाणेहिं दस दिसउ जोवंतिया पिंग-नयणेहि । नर-मुंड-मंडियए भीसण-करालाए कंठावलंबियए कर-चरण-मालाए । रुहिरोल्ल-नर-चम्म-निवसण-सणाहेण अंगेण बीभत्थ-कंकाल-तुल्लेण । ५ तक्खण-समुक्किण्ण-माणुस-कवालेण पियमाणि रुहिरासवं रइय-चसएण। गयणं पि अट्टहासानलोहेण पज्जालयंती य संजणिय-खोहेण । तिक्खाहिं दाढाहिं बहु-हड्ड-गब्भाई कडयडए चावंति रोवंति डिभाइं । भय-भीय-लोयण विलासवइ घेत्तण अंताणि खायंति कत्तियए छेत्तूण । रे रे दरायार कावुरिस एएण नट्टो सि विज्जाहराणं कुसंगेण । १० ता जाहि कर्हि दिट्ट एरिस रउद्देण भुवणं बिभेति गंभीर-सद्देण । पवण-वेग उठ्ठिय पवणेण य पाडे तो तरु-गणई खणेण य । कत्तिय ले विणु अहिमुहु धाइय कुमरें दिद्विय दुट्ट-पिसाइय ॥२६॥ [२५] तो परम-सत्तेण खुद्धो न चित्तेण । उसंत तो सा वि गय वेल तर्हि का वि । जाव य अणब्भेहि गज्जियउं मेहेहि। तहि रुधिर-धाराहिं वरसिउ असाराहि । ५ फुक्करिउ रोदाहि अइ-गरुय-सदाहि । धाहा-कालेहि धाविउ वेयालेहि। पयलंत-खंधेहि नच्चिउ कबंधेहिं । तह उद्ध-केसाहिं बोभच्छ-वेसाहि । पजलंत-नयणाहिं आमुक्क-बसणाहिं। १. तिस्सूल-भालाहि कत्तिय-करालाहि । [२६] १. ला. भीसणो कसिण-कन्नोए, पु० एक्केक्क-कल्लेण । ३ पु०-मुंड-मुंडियए ला० कंठावलंबियइ ५. ला समुक्किन्न-माणुस-किवालेण, पु० रइय वसएण । ६. पु० गयणम्भि अट० ७. पु० कडयडए बाधेति ८. ला० अंताई पु० छित्तण १० ला० दिछ पु० भुवणं कि हेमंति १२. ला० अहिमुह...कुमरिं [२७] ३. ला. अब्भे हिं ४ ला. तह रुहि -धाराहिं वरिसिउ ५. पु० पुक्करिउ ६. पु० धाहाकरलाहिं ८. पु० वीभत्थवेसाहिं Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. २८] विलासघई कहा नर-मास-पुट्ठाहिं अच्चंत-दुट्टाहिं। भय-दुक्ख दाइणिहिं किलि-किलिउ डाइणिहिं । वेढिबि ताहिं कुमारु कयत्थिउ तह वि तेण तं भउ अवस्थिउ । थेव वेल जा समइक्कंतिय ताव कमेण अन्न आढत्तिय ॥ २७॥ [२८] तो घोर काओ समुक्खित्त पाओ। सुतड्डविय-कण्णो धराए निसण्णो । समावलिय-पुच्छो फुरंतुद्ध-गुच्छो। सुदाढा-करालो महा केसरालो। विडंबिय होट्टो सुनिठुर-पट्ठो। ललंतग्ग-जीहो सुलंगुल-दीहो । जलंतग्गि नयणो सुफुटत-वयणो । महा-घोर-घोसो पवडूहंत-रोसो । महा-मंस-पुट्ठो जमो नाइ रुट्ठो। १० नहुक्किण्ण-लीहो समावडिउ सीहो । अह सो केसरि बहु रंजेविणु पडिउ कुमारह कम सज्जेविणु। ते दारुण-नह-कुलिसेहिं फालिउ तह वि कुमार न जावह टालिउ ॥२८॥ [२९] गय का वि वेल तो मिलिय-मेल । अइ-कसिण-देह नव नाइ मेह। जम-पास-दीह चल-जमल-जीह । गुंजद्ध-नयण विकराल-वयण । ५ अइ-कुडिल-चार फुकार-फार । दाढा-कराल विसमुक्क-जाल। [२७] ११. पु० नर मंष पुट्ठाहिं १३. पु० ताहि ...कच्छिउ तिहिं वि...अवहच्छिउ । १४. पु० कम्मेण [२८] १. पु० तउ घोर काउ... पाउ । ३. ला-पुंच्छो फुरंतुट्ठगुच्छो । ५. ला विडिबिय महोट्ठो .... सुनिठुर पउट्ठो । १०. ला० समावडिओ ११. ला० बहु भंजेविणु [२९] ४. पु० गुंआड ५. ला० सुंकार फार । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया ऊसिय-तिभाय संजमिय-घाय। मणि-फुरिय-तेय तडि-तरल-वेय। गुरु-धमणि-घोस अइ-परम-रोस । उब्भड-कडप्प धावंति सप्प । कुमरु तेहिं सव्वंगेहिं डसियउ तह वि न किंचि :चित्ति उत्तसियउ । छड्डेवि तइ दिसो दिसि पट्ठिय अन्न बिहीसिय ताव समुट्ठिय ॥२९॥ जाव अप्पतक्किएण केण ई अमाणुसेण । नद्र-चंद-सूरयम्मि घोर-नरय-रूवयम्मि । पायाले व्व भीसणम्मि घल्लिओ य कूवयम्मि । तम्मि चेव भीसणाउ पजलंत-लोयणाउ । दाढा-कोडि-भासुरेहिं लोलमाण-जीहएहिं । विप्फुरंत-ओढएहिं भीसणेहिं वयणएहि । कवाल-ओमालियाहिं भीसणा सिरोहराहि । नाहि-मंडल-गएहिं थणेहिं पलंबएहिं । लंबत-महोयरीउ समंत-पलोइरीउ । सूण-मडय-विन्भमेहि थूलएहि उरुएहिं । हड्ड-चम्म-मेत्तियाहिं सुकियाहिं जंघियाहि । कप्पतीउ भीसणाणि माणुस-कलेवराणि । जम-जीहा-तुल्लियाहिं तिक्खियाहिं कत्तियाहि । छिंद भिंद भासियाउ रक्खसिओ धावियाउ । १५ तह वि य उत्तम-सत्त-समिद्धउ किं पि कुमारु न चित्ति खुद्धउ । तो उसंत असेप बिहीसिय विज्जए सुंदर भाव पयासिय ॥३०॥ तो अद्ध जाम अवसेसयाए रयणीए कमेण य वोलियाए । जा मंतह जावु समत्तपाउ तो सुरहि-सुसीयलु वाइ वाउ । २९] १२. ला० नाइ दिसो विभीसिय [३०] ३. पु० घल्लिऊण कूवयिम्म ८.ला० पलंबिएहि १३. पु० जम-जोहा-१५ पु० चित्ते [३१] २. जाम्वह तह जावु Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. ३१ ] आयासह निर्वाडय कुसुम-बुद्धि जय जय जय त्ति एरिसु विसालु ५ गाइउ कल कंठिहिं किन्नरीहिं अह are fear वेलयाए बहु- देवय परिगय उग्ग-तेय सिह नावइ पज्जलियानलस्स जोन्हा विय छण-मयलंछणस्स १० भणियं च तीए अहो ते विवेउ अहो पुरिसु अहो उपभोगु तुज्झ ता एरिस उत्तम सत्तएण ता वच्छ जावु उवसंवरेहि तेणावि बिहीसिय- संकिरण विलासवई कहा पहाण - काय - संगया सुगंध-गंध-गंधिया मियंक - सोहियाणणा १५ भयवर अप्पणमेविणु दिन्नउ मंतह जावु से संपन्नउ | उट्ठेविणु सा पणमिय पच्छइ ता विज्जाहर सेणि नियच्छइ ॥ ३१ ॥ [३२] चलंत-कण्ण-कुंडला ५ लसंत - हेम- सुत्तया फुरंत आ उहप्पहा अवाय मल्ल-मंडणा निबद्ध-जोव्वणुदधुदुरा समत्त - लक्खणं किया नीसेसहं भूयहं हूय तुहि । कलयल-रखु उट्टिउ एक्कु कालु | नच्चि सचोज्जु विज्जाहरीहिं । उज्जोविउ नहयलु वर पहाए । संपत्तउ अजियबल सिग्घवेय । दिद्विय पह व्व सारय - रविस्स । सिरि जिह वसंत-कमलायरस्स । ववसाउ वच्छ निच्छय-समेउ । अहो निब्भर - भावण उवरि मज्झ । हउं तुझ सिद्ध अवियपिण । मातु विष्णु किंचि वि करेहि । जावेण किंचि असमाणिएण । सुदिव्व-वत्थ-रंगया | विसिद्ध- पुण्फ बंधया । जलंत - सीस-भूसा । फुरंत - दित्ति-मंडला | सतेय-हार-जुत्तया । नवरविंद सच्छा | विपक्ख- दोस - खंडणा । विलास सोह-बंधुरा जयम्मि जे असंकिया । ९५ [३१] ३. पु० भूयह. ला०हइ ४. ला०- ख ५. ला• कलकंठेहिं ७. पु० बहु दोवय परि मिय, ला०- परमिय १० पु० विवेो ववसाओ... समेओ । ११. ला० पोरिस १२. पु० अविपण १४. पु० किं पि १५ ला० संपुन्नउ । १६. पु० पच्छए [३२] ४. दत्ति-मंडला । ७ ला० आवाय मल्ल मंडला वियक्ख-दोस ९. ला० जे य संकिया Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ साहारणकविरइया १० विचित्त-काम- रूविणो समुह दुदुभी सणा करता वेपणा दूर निब्भर - तो स-वियंभिय- गत्ता किंतु विलासवई -संजुत्त सुयह जैव विrg पर - कारणु सुसामिसाल-सेविणो । रणम्मि जे सुभीसणा । अह भणिउ सो तीए देवयाए रंजियउ उ पुरि-गुणेहिं पडिवज्जेवि तुम्हं भिच्च-भाउ भडंत मेह जिह वित्थरंतु ५ बलु चंडसीह - पमुहउ असेसु अह भइ कुमरु विम्हय-सहाउ safa ईस मिय सिरेण एत्यंतरे जंपिउ देवयाए तुह सत्त - परक्कम फलु विहेमि १० विज्जाहरिंद विज्जाभिसेउ जय एरिस जपता । बहुइ तत्थ विज्जाहर पत्ता ||३२|| [३३] [ ६. ३३ पुत्तय तुइ उत्तम-सत्तयाए । उच्छाह-परक्कममाइएहिं । वच्छय देवय-गरुयाणुराउ | एहु मलय-महा-गिरि वुत्थरंतु । तु पणमता इह दिदेिसु । एहु भयवह सलु वि तुहु पसाउ | संमाणिय विज्जाहर वि तेण । समयं चिय विज्जाहर - सहाए । ता पुत्त पडिच्छसु जें करेमि । कुमरेण भणिउ भव करेउ । वसुभूहिं वि देवि पेच्छं हं । तह य इ-मित्त साहारणु ||३३|| || इ विलासवई कहाए विज्जा - सिद्धि-संधी छट्टिया समत्ता ॥ [३२] ११. ला० दुदभी १२. ला० दूर हो [२३] १. ला०तीए सो देवयाए, पु० भणिउ तीए ३. पु० वच्छय चेव य, ला० वच्छय वाढ य गरु० ४. ला० एहो मलयमहागिरि उत्थरंतु । ६ ला० सयलो ७ ला० भणवि Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-७ [१] सदाविउ वसुभूइ सो जाव न भासइ । तो गुह-मज्झि निरूवियउ तहिं जाव न दीसइ ॥ तो जाव न दीसइ गुह-मुहम्मि आसंक पडिय कुमरह मणम्मि । अह सो विज्जाहर-बल-समेउ गयणेण पयट्टउ सिग्ध-वेउ । ५ तो सयलु मलय-गिरि हिंडिऊण आढत्तउ तत्थ गवेसिऊण । अह वण-निगुंजि एक्कहिं भमंतु दिट्ठउ वसुभूई सु आसुरुत्तु । सो वि हु विज्जाहर ते निएवि तरु-साह उभय-करयलेहि लेवि । रे रे दुट्ठहो विज्जाहराओ मह दिहिहि गोयरे ठाहो ठाहो । मह पिय-वयंस-गेहिणि हरेवि वल्लहिय विलासवइ त्ति देवि । १० कहिं जाह दिट्ठ एरिसु भणंतु धाविउ कुमार-संमुहु तुरंतु । तो कुमरु विचितइ तं निएवि निच्छउ केण वि अवहरिय देवि । हा अफलु परिस्समु मज्झ जाउ इह विज्जा-साहणु अंतराउ । तो पुच्छिउ वसुभूइ किं वणु अवगाहहि । कहिं कहिं सा देवि मित्तय महुं साहहि ॥१॥ आसन्नु कुमारु निएवि तेण वइरिय-विज्जाहर-संकिरण । साहाए सिग्घु घल्लियउ घाउ वंचियउ कुमारि विफलु जाउ । अवहरिवि साह तो गिहिऊण हत्थेहिं दोहिं संबोहिऊण । एरिसु पुणो वि पणिउ इमेण अलमन्नह मित्त वियप्पिएण । ५ साहेहि ताव कहि कत्थ देवि पुणु पुच्छिउ अत्ताणउ कहेवि । तेण वि सविसेसु पलोइऊण सो कुमरु एहु परियाणिऊण । जंपिउ वयंस निसुणसु तुमम्मि वा-विज्जा-साहण उज्जयम्मि । [१] १. ला जाव २. पु० गुह-पज्झे ६. पु० एकहि ७. पु० करयलहि ८. पु० गोयरो १०. ला० भणंतो १४. ला० महु [२] २. पु० कुमार विफलउ ३. पु. गेण्हिऊग ५. लाо कह, पु० अत्ताण १३ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [७.४ अह अडूढ-रत्त-समयम्मि पत्ते अइरोद-विहीसिय-भरे पवत्ते । बहु-विह-विज्जाहर-भड-समाणु संपत्तउं एक्कु महा-विमाणु । १० तो मई बिहीसिय-संकिएण अवमन्निउ तो निच्चल-मणेण । वोलिय जावहिं वेल का वि ता चुज्ज-समन्निउ । हा अज्जउत्त इय करुणु सरु देविहि आयण्णिउ ॥२॥ आसंक पडिय तो मज्झ चित्ति किं देवि एह इह निज्जइ ति। तो दिद्विय विज्जाहर-विमाणि आरूढ देवि इय विलवमाणि । वसुभूइ अज्ज हा धावहि त्ति परितायहि मइ परितायहि त्ति । तं सुणेवि वयंस संभमेण गुह-मज्झि निरूविय संकिरण । ५ तहिं जाव नत्थि ताव य तुरंतु धाविउ विमाण-पह अणुसरंतु । गयणेण जंतु अइसय-पहाणु तं मित्त न पाविउ मई विमाणु । संपइ न वियाणमि कत्थ देवि तो तुहुं पमाणु एरिसु सुणेवि । चिंतइ कुमारु तो निय-मणेण अवहरिय देवि विज्जाहरेण । अस्थि य महु नहयल-गमण-सत्ति ता वच्चउ कत्थ नइस्सइ ति । १० आसासिउ तो वसुभूइ तेण मा करि विसाउ किंचि वि मणेण । सिद्धिय सा महं अजियबल बहु विज्जहं सारिय । ता विज्जाहर-अवहरिय लभिस्सइ भारिय ॥३॥ ता थेव कज्जु इय भणइ जाव संपत्त अजियबल विज्ज ताव । भणियं च तीए वच्छय किमेउ कि अज्ज वि किज्जइ काल-खेउ । तो कहिउ तीए वित्तंतु तेण मह घरिणि नीय विज्जाहरेण । तो कुविय विज्ज एरिसु भणेइ को मई विज्जाहरु परिभवेइ । ५ अन्नेसणत्थु तो सिग्घु तीए पट्टविय दिसोदिसु भयवईए । पवणगइ-पमुह नहयर विणीय जाणेवि कहह सा केण नीय । [२] ९. पु० एकु १०. पु० तं निच्चल ११. पु. भुज्ज-समन्निउ [३] ३. पु० मई ४. ला० सुणवि ८. ला0 कुमारो ९. पु० महुं १०. ला० आसासिय ११. पु० बहुं [५] १. ला० थेवु...संपत्ता ३. ला० घरणी ५. पु० सिग्घ ६. ला• से केण Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७.४] विलासवईकहा भयवइ-आएर्सि सपरिवारु तहिं मलय-सिहरि संठिउ कुमारु । अह तइय-दिवसि विय संत-गत्तु पवणगइ कुमारह पासि पत्तु । सविणउ नमेवि लग्गठ कहेवि उवलद्ध देव मई तुम्ह देवि । १० कुमरेण वुत्तु उवलद्ध कत्थ ते भणिउ देव निमुणेहु जत्थ । देवह आएसेण हउं पुहईहि भमंतउ ।। देविहि सुद्धि करंतु गिरि-वेयडूढे पहुत्तउ ॥४॥ तहि दाहिण-सेविहिं गुण-विसालु पुरवरु रहनेउरचक्कवालु । तर्हि तुम्ह घरणि उवलद्ध देव पुणु भणिउ कुमार कहहि केंव । आढत्तु कहेविणु पुणु वि तेण आएसें तुम्हहं हउँ खणेण । भमडंतउ महि-मंडलि विसालि पत्तउ रहनेउरचक्कवालि । ५ तो दिउ पुरवरु तं च देव उबिग्ग-जणाउलु सव्वमेव । सिद्धाययणेसु य बहु-पयारु संपाडिय विविहु पूओवयारु । भामिय-सगड-बलि-सहस्स-सोमु चचर-पारंभिय-लक्ख-होमु । तो मई विज्जाहरु तत्थ एक्कु परिपुच्छिउ नयर-दुवारि थक्कु । तुह भद्द किमेरिसु नयरु एउ तेणावि भणिउ सुपुरिसु सुणेउ । १० एहु अम्ह सामि-दुग्णय-फलस्स दीसइ कुसुमुग्गमु मुविउलस्स । मई पुच्छिउ किड सो कहइ निसुणसु अस्थि अणंगरइ । विज्जा-बल-दप्पिउ अम्ह पहु इह विज्जाहर नयरवइ ॥५॥ अह तें पर-लोय-परंमुहेण अक्कतें मयण महा-गहेण । कस्स वि य महंतह सुपुरिसस्स निय-विज्जा-साहण-उज्जयस्स । पिययम इह आणिय अवहरेवि आढत्तिय निय-गेहिणि करेवि । अह सा वि महासइ विलवमाणि मुंजेवि पयत्तु अणिच्छमाणि । ५ एत्थंतरि एउ निसामिऊण कह एह एउ अवियारिऊण । [४] ७ ला सिहरे ८. ला०-दिवसे ९. ला० मइ १०. ला० निसुणेसु ११. ला० आएसण हं पुहइ भमंतउ १२. पु०-वेयड्ढ [५] २. ला० कुमारि ३. ला० पुण...आएसिं ४. ला० मंडले ६. पु० संपाडिय बहु पृओ. ९. पु० तुह रुद्द किमे० [६] २. पु० महतह ३. पु० इय आणिय ४ पु० अँजिवि ५ ला• एत्यंतरे Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० साहारणकइविरइया कोवानल-जलिउ सणंकुमार तो जंपइ एरिसु दुन्निवारु । रे रे विज्जाहर दुट्ठभाव मज्जाय-विवज्जिय अहम पाव । मह जाय नेवि तुहुं अवहरेहि मई चेव जियंतई ता मरेहि । को एत्थ समप्पह खग्गु खग्गु एरिसु भणंतु उढणह लग्गु । १० सो जाव पयट्टउ अमरिसेण ता धरिउ झत्ति विज्जाहरेण । देव पसाउ पसाउ करि पवणगइ पयंपइ । एउ कहाणउं तुज्झ पहु जं साहिउ संपइ ॥६॥ न य पुणु पहु सीह-किसोर-जाय सयमवि सत्ताहिय पिय-सहाय । अहिहवइ कयाइ वि सारमेउ ता कह-अवसाणु सुणेउ देउ । तो किंचि विलक्खिय-मुह-वियारु उवविदछु पुणो वि सणंकुमारु । पुणरवि आढत्तउं कहेवि तेण इय कहिउ देव विज्जाहरेण । ५ तो सुपुरिस अम्हहं सामियस्स बलिमड्डाए वि पयट्टयस्स। विज्जाहराण असमउ भणेवि रुट्ठिय उद्विय महकालि-देवि । तो भुमिकंपु अइ-रोहु जाउ तह खडहडंतु निवडिउ निघाउ । उक्काउ महंतिउ निवडियाउ उपायहं पंतिउ पयट्टियाउ । भणिउ य अणंगरई वि तीए पच्चक्खए होएवि भयवईए। १० भो भो अजुत्तु तुहुं इय करेवि विज्जाहर रायत्तणु लहेवि। एरिसु कापुरिसह चरिउ जइ पाव करिस्सहि । तो रुवाए महासइए नियमेण मरिस्सहि ॥ ७॥ [८] इय देविहि वयणि भीय गत्तु सो एयह ववसायह नियन्तु । सा दिव्य नारि परहरिय तेण कारण वि केवलु न य मणेण । अह सुपुरिस नयरह देवयाए पुव्वं पि कयाइ पच्चल्लियाए । [६] ८. पु० तुहुं परिहवेहि मई चेव जियंते ९. पु खग्ग खग्गु... उट्ठणहं [७] ३. ला० विलविखउ ६. पु० असमओ भरेवि ७. पु० निहाउ ८. ला० उक्काओ महंतिओ निवडियाओ... पंतिओ पयट्टियाओ ९. ला. भणिओ...पच्चक्खई होइवि १० ला० तुह ११. ला० कावुरिसह १२. पु० मरिस्सइ [4] १. पु०वयणे...सो यह वव० ३. ला० कया वि. पु० य चल्लि. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७.८] विलासवईकहा १०१ हूयउ पुणो वि नयरह विणासु नायरहं तेण उप्पन्नु तासु । ५ तो नयर-विणासासंकिएहिं किउ संति-कम्मु एउ नायरेहिं । जो दुढे दड्ढउ किर हवेइ दहियं पि हु फुक्कवि सो पिएइ । दुह-कारणु सयल वि कहिउ एउ मई भणिउं अन्नु सुपुरिस कहेउ । जसु कारणि नयरहं इय अवत्थ सा दिव्व-नारि तिं धरिय कत्थ । ति अक्खिउ भवणुज्जाणि तस्स छायाहि सहयार-महादुमस्स। . १० तो पुच्छिवि विज्जाहरु खणेण गउ देविहि दसण-कारणेण । नाइदूर गयणि ठिएण अह सा मई दिद्विय । अइ-विसाल-सहयार-तरु-मूलि उवविद्विय ॥ ८ ॥ नाणा-पयार-चाडयकरीहिं सा वेढिय बहु-विज्जाहरी हिं। मुह-कमलु वाम-करयलि वहंति मुत्ताहल-सम अंसुय मुयंति । परिचत्त-पाण-भोयण-विहाण अच्छइ अदिन्न-पडिक्यण ताण । सन्नाह-विविह-आउहधरेहि रक्खिय जा बहु-विज्जाहरेहि । ५ देवह आएमु न आसि जांव हउं देविहि पासु न पत्तु तांव । इय वत्त लहेविणु आउ एत्थ संपइ पुणु देउ पमाणु तत्थ । इय जांव निवेइउ सव्वु तेण वसुभूइ पलोइउ तो इमेण । किं कीरइ विग्गह तहिं न व ति अक्खिज्जउ नियय वियप्पु झत्ति । अह सो वि भणइ भो वर-वयंस निसुणसु विज्जाहर-रायहंस । १० सो ताव नगर-देवय-वसेण विलिओ च्चिय निय-दुच्चेट्टिएण । ता पत्तयालु एउ तत्थ होइ ज तर्हि पेसिज्जउ दुउ कोइ । जो जाएविणु तेण सहुं पर सामु पउंजइ । अह मग्गियउ न देइ तो दंडु वि किज्जइ ॥९॥ [0] ५. ला० इय नायरेहिं ६. ला० दुद्धेहिं डड्डउ' ...पि य, पु०फुक्केवि सो पिवेइ ७. पु० भणिउ ९. ला० तें ... भुवणुज्जाणि ...साहहिं सहयार--१९. लाo.गयणदिठएण १२. पु० अइ-दिहर-सहयार-तरु-मूले [९] २. ला० करयले ४. ला० रक्खिज्जइ बहु- ७. ला० जाव ८. पु. अक्खिज्जइ १०. पु० निय दुब्भेदिठएग ११. पु० पेसिज्जइ १३. पु० मग्गियओ, ला० तो डंडु वि Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७.११ साहारणकइघिरइया [१०] इह होइ चउबिहु नीइ-मग्गु नायव्वु नरिंदेहि सो समम्गु । तहिं सामु भेउ उपप्पयाणु दंडो य चउत्थउ दलइ माणु । तहिं पढमु सामु सहु। रिउजणेण कायव्वु होइ उवसंतरण । महुरेण गुलेण वि जो मरेइ विसु तस्स नराहिव कवणु देह । ५ जं लोलई छिज्जइ किर नहेहिं कट्टिज्जइ तं न कुहाडएहिं । जो कुवियउ थोविं कारणेण सो तूसइ सामेण वि किएण । जो पुणु अइ-कढिणु महंत-रोसु उत्रसमइ न सामेहि बहुय-दोसु । अभंतर-दुट्ठउ कुणइ खेउ कीरइ य वणस्म व तस्स भेउ । पाविय-भेएण वि सीयलेण पन्चय वि पडहिं पेच्छह जलेण । १० भेए नियय-बलह अवीससंतु रिउ जिप्पइ जइ वि महा-महंतु । दुदृ3 जिह पहु अंध-गडु फोडिवि वाहिज्जइ । तिह पडिवक्खु वि अइ-बलिउ भेए साहिज्जइ ॥१०॥ जो पुणु अइ-बलियउ साहिमाणु तमु कीरइ मित्त उपप्पयाणु । दाणेण सुरुटो वि उवसमेइ दाणेण वि अवराहई खमेइ । दाणेण वि भूयई वसि हवंति दाणेण वि वेरइं खयह जति । दाणेण परो वि हु होइ बंधु दाणं पि हणइ आवइ-पबंधु । ५ जो सम-बलु तह वि हु होइ चंड उवगरइ तेण सहु मित्त दंडु । दुहत्तणु न मुयइ सत्तु तांव भज्जइ न मडप्फरु तस्स जांव । उक्खणिय दाढ जइ विसहरस्स ता कवण सत्ति किर होइ तस्स । एहु नीइहि मग्गु चउप्पयारु जाणेवि बलाबलु होइ सारु । जे एय कमेण समायरंति ते लच्छिहि भायण पुरिस हुति । १० इह राय-लच्छि न य विक्कमेहिं पालिज्जइ सम्वेहिं पत्थिवेहि । एगंते विक्कम-रस-पहाण भायणु न होंति नरवइ मुहाण । [१०] २. पु० भेओ ५. पु० लीलइ ६. पु० थोवें...कारण ९. पु० पाविय-भीएण य ...परिहिं १०. ला० तेएं नियय- ११. ला० फोडेवि १२. ला. पडिवक्सो [११] ३. ला० व सह होति ५. पु० दंदु ९. पु. होति Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ ७.११] विलासघई कहा ता साम-नयम्मि वहंतयम्मि भेयह विण्णाणि फुरंतयम्मि । दाणं पि जस्स किर संपडेइ को मित्त दंडि आयरु करेइ । पढमु सामु ता तहिं करहु इय नीइ जहटिय । कहि हुंतहं पडियाहं पुणु भूमि तहट्ठिय ॥११॥ [१२] बंभयत्तु तं निमुणिवि भासइ एहु न मंतु अम्ह पडिहासइ । नियय-कलत्तु चेव आणतह कवणु सामु पर-दप्पु-दलंतहं । समरसेणु पुणु भणइ अलक्खिउ नीइ-मग्गु कहिं एरिसु लक्खिउ । जो पर-नारि-हरणु कुल-दूसणु तस्स वि कांइ दूय-संपेसणु । ५ वाउवेग पुणु चित्ति विसण्णउ महु अहिलसिउ नाहिं संपन्नउ । वाउमित्त-मुहडेण वि वुत्तउं देवो चिय जाणइ जं जुत्तउं । फुरिय-महंत-रोस-पयडेण वि विहसिउ चंडसीह-सुहडेण वि । कोवि वियंभिय-मुहउं धारें उमाडिउ पिगलगंधारें। दप्पेण य पयडिय-मुह-भंगि आयंपिउ सहस ति मयंगि । १० नीससेइ केवल अमियप्पहु खणु वि न चलिउ तत्थ देवोसहु । इय वीरेक्करसाहं तहिं विज्जाहर-मुहडहं । न य पडिहासइ दय-गमु रण-रस-मण-पयडहं ॥१२॥ ठिइ एरिस त्ति तो साहिऊण सव्वे वि सुहड संबोहिऊण । संदिसिय विविह वयणाणुरूउ पवणगइ चेव पट्टविउ दुउ । भणिउ सो भद्दय तर्हि गएण सो भाणियध्वु इय मह मुहेण । जिह भो विज्जाहर नरवरिद कम्मेण जेण जणु कुणइ निंद । ५ जिं अयस-पडहु तिहुयणे भमेइ ज चिय अत्ताणउ हारवेइ । चित्तह धीइ जेण न कह वि होइ हासउं उप्पज्जइ जेण लोइ । [११] १२. ला० विन्नाणे १३. ला. दंडे, पु० आयरु कुणेइ । [१२] १. ला० निसुणेवि ३. ला. अणक्खिउ ५. पु० चित्ते.. अहलसिउ, ला० संपु न्नउ । ६. पु० उत्तउँ ८. पु० कोव-वियंभिय-, ला० ओनाडिउ ९. पु० -भंगि.... मयंगि । १०. ला० खणो [१३] ३. ला० भणियउ...सो भावियव्वु ५. पु० जे ६. पु० लोए Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ साहारणकविरइया सत्तूण कुणइ आणंदुब्भयं च जं गरुयहं हलुयत्तणु करेइ पर-दारु नरिंदहं पुणु विरुद्ध १० असुहउ ववसाउ परिच्चएवि अह न वि मन्नइ एउ तो देवि भणेज्जसि । उवलद्धि तुहुं अम्हेहिं मा खेउ करेज्जसि ॥ १३॥ [१४] पवणगइ पयट्टर पणमिऊण उप्पइयउ तक्खणि नहयलेण । पवणह सुउ व्व सीया - निमित्तु । अह दुइय-दिवसि पत्तउ पुणो वि । आढत्तु कहेविणु एउ तेण । सो पुणु अत्थाणि निवि मई तस्स निवेइउ सव्वमेव । अह एउ भणिउ आरुपण । आए मज्झ पट्टव तो वि । किर महुं पावहि सिन्धु देवि । सओ विहुलउड पेक्ख लेइ । आसि । कहिं मसउ ताव कहिं होइ हत्थि एयं पि हु तस्स न जाणु अस्थि । जं आणवेह इय जंपिऊण अहिणव- तमाल-दल-सामलेण रामेण व रावण पासि खित्तु सो जाएव तर्हि एक्कल्लओ व ५ कुमरह पणमेव निविट्ठएण ग सामिय दुह तस्स पासि तुम्हहिं संदिट्ठ ं जं च देव तं सुणेवि तेण अइ-दृट्ठएण पेच्छह किह धरणी - गोयरो वि • असुहउ ववसाउ परिच्चएवि ता किं अत्ताण न य मुणेइ १ [ ७.१५ जं इह-पर-लोय - विरुद्धयं च । तं सुपुरि केंव समायरे । ता एउ न जुत्तउं होइ तुद्धु । पाहि ता महु तणिय देवि । सो पट्ठावर आण महुं तसु वलियउं खंडउं । पेच्छह किह उलुएण विराहिज्जइ [म] तंडउँ || १४ || [१५] तो तस्स घरिणि ण य पट्टवेमि जसु भावइ तसु जाएवि कहेउं [१३] ८. ला० सुवुरि १० पु० पठावहिं ता अहिहिं करिज्जसि Tere हिंगु urge देमि । किं कस्स वितिहुणे हउं बिहेउं महुं ११. पु० भणिज्जसि १२. पु० [१४] ३. पु० सुओ व ४. ला० जायवि ६. ला० अत्थाणे ७ पु० तुम्हहं ८. ला० तं सुवि, पु० तं निसुणिवि ९. ला० कह धरणी - १० पु० ववसाओ ११. ला० पेक्खु १४ ला० पेच्छह कह... विरोहिज्जइ [१५] १. ला० घरणि, पु० पट्ठविभि २. पु० कहेउ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा भुजंतु चणउ जइ उल्ललेइ तं भाडह रुटउ किं करेइ । जं चिय विज्जाहर मिलिय के वि लाइज्जहिं कि जे वडइ ते वि । ५ बहुएहिं वि किर मूसय-सएहिं किं नाडउ पुज्जइ मेलिएहिं । ता दूय सिग्घु जाएवि कहेसि किं आणिय सा पट्ठवणरेसि । मई ढोविय ताव न घरणि लेहि जं बप्पह भावइ तं करेहि । एरिसु भणंतु गुरु-दप्प-जुत्तु सो अहमु देव मई एउ वुत्तु । तुहूं कालि खद्धउ निच्छएण जंपहि एरिस वयणाई जेण । १० अहवा खय-कालि समुट्ठियाहं उठेंति य पंख पिपीलियाहं । जइ एत्तिय चारहडि तुहु किं सा पयड न अवहरहि । सत्त-हीण जइ तुहुँ दडिउ कीस एव खुरहुर करहि ॥१५॥ तमु समुहु जंपहि तुहुं अणि? पर अज्ज वि रुटह मुहूं न दिछु । जइ तुज्झ का वि किर सत्ति आसि तो कीस न ढुक्कउ तस्स पासि । किं सा वि न आणिय निय-बलेण कुक्कुरु वि खाइ निच्छउ छलेण । ता तुहु कावुरिसु न एत्थ भंति बहु धन्न पलालेहिं वि मुणंति । ५ न य पट्ठवेमि एहु कवणु नाउ जारो वि हु तुहुं घर-सामि जाउ। छुड्डु तुहं पर-दारे पयह गिद्धि हारिहि एह वि राय-रिद्धि । पर-दारु हरेविणु रावणेण किं पाविउ सुर संतावणेण । दोवइहि केस-कडूढणु करेवि किं कउरव-वीर न गय मरेवि । ता तई पि पवन्नउ ताहं मग्गु फिट्टिस्सइ जं पिंजणे वि लग्गु । १० इय कक्कस-चयणेहि महु आरोसिय-चित्तउ । उग्गामिय करवालु मइं हंतूण पयत्तउ ॥१६॥ [१५] ३. ला० उल्ललेवि तो वि भाडह ६. पु० ता दूसिय सिग्घु ८. पु० दप्पयंतु ९. पु० काले १२. पु० तुह [१६] १. पु० तुहु ४. पु० पलावेहिं ५. ला० नाओ....जाओ । ६. ला० पर-दार... हारेस्सहि ९. ला० तइ वि.,.फिटिस्सओ इ ज १० ला० वयणेहि महु Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ . साहारणकइविरइया [७ १८ अह मई वि देव तस्स वि वहत्थु नियच्छुरियहि मुद्धिहि दिण्णु हत्थु । तं पेच्छेवि अवरोप्पर विरोहु उप्पन्नउ गरुयऽत्थाणि खोहु । अह नीइ-मग्गु जाणतएहिं सो धरियउ देव महंतएहिं । भणियउ खयराहिव एत्थ लोइ सव्वत्थ वि दृउ अवज्झु होइ । ५ पर-वयणइं नाह कहत यस्स को देव दोसु यह इमस्स । अन्नं च जुत्तु भासिउ इमेण परिणाम-सुहंकरु तुज्झ जेण । ता एय वयणु सामिय करेहि सा सिग्घु महासइ पट्टवेहि । ताण वि पडिवन्नु न वयणु जांच इउं पत्तउं देवि-सयासि तव । संदिट्ट वयण तुम्हह सुणेवि विण्णवइ एउ परितुट्ट देवि । १० तुइ घरिणी सदु वहतियाए को मज्झ खेउ जीवंतियाए । देविहि पय पणमेवि हउं तो एत्थ पहुत्तउ । इय जाणेविण सामि कुण ह सिग्घु जं जुत्तउ ॥१७॥ [१८] पवणगइ-वयणं च एरिसु निसामेवि संखुहिय विजाहर सुहड सव्वे वि । उप्पन्न-पहरिस-भरिजंत चित्तेण हुंकारियं तक्खणे बंभयत्तेण । रण-रस-वसुच्छलिय-उच्छाह-पुलएण अप्फालिउ निय-भुउ समरसेणेण । उटुंत-गुरु-रोस-रज्जंत-नयणेण किय भिउडि अइ-भिसणा वाउवेगेण । ५ रिउ-पहर-विसमं ति अह परिमुसंतेण उन्नमिउ वच्छत्थलं वाउमित्तेण । कोवानलेणाऽवि अच्चंत-जलिएण अंधारियं नियमुहं चंडसीहेण । उव्वेल्लिय बाह-जुयलं मुहं धारु अहिय वियंभेइ पिंगलु स गंधारु । नीसेस महिहर वि आयपयंतेण आहणिउ धरणीयलं अह मयंगेण । आसन्न-रण-रहस-विदलिय-वणेणाऽवि आससिउ सहस त्ति अमियप्पहेणाऽवि । १० रहसेण नीसेस-गिरि-गुह-भरतेण हसियं च देवोसहेणाऽवि मुहडेण । इय विज्जाहर-सुहडा अहिअहिय वियंभिर गत्ता। खुहिया सव्वे खणेणं नाइ दिसा गय मत्ता ॥१८॥ [१५] १. ला० अहम व य देव ...सुद्धिहि दिन्नु....२. ला० पेच्छवि, पु० अवरोप्पर, ला० गुरु व, पु० थाण-खोहु । ४. पु० लोए ५. पु० दोस ७. ला० पु० पट्टवेह ८. पु० जाव...ताव, ला० सयासे ९. ला तुम्हह मुणेवि, पु. पर तुट्ठ [१८] १. पु. विज्जाहरा २. ला. हंकारियं ३. ला. अफालिओ नियभूओ ७. पु० तुहं __भारु ११. ला0 सुहडा अहिय Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. १९] विलासवई कहा १०७ [१९] पहु जंपइ आसन्न-विणिवाउ सो बुद्धि-विहव वज्जिउ वराउ । तस्सुवरि किमिह संरंभएण चिट्ठह सव्वे वि जहा-सुहेण । अहमेव खग्ग-दुइयउ हवेवि वच्चामि तेण सहं रणु करेवि । दंसेमि तस्स मह केरिसं ति भूमि-गोयरह परक्कम ति । ५ तो सव्वेहि विज्जाहरेहिं वुत्तु मा सामि एउ जंपहु अजुत्तु । तुह भिच्चावयव-परकामं पि पेक्खेवि न सक्कइ थोवयं पि । किं पुण सो देव परक्कम ति ता आणवेह मई मई ममं ति । एत्थंतरे गहियाउह-विसेसु मिलियउं विजाहर-बलु असेसु । एत्तहे वि अजियबल-देवयाए विरएवि अकालक्खेवयाए । १० मणि-रयण-सुवण्णेहिं अइ-पहाणु कुमरह उवणीउ महा-विमाणु । चंदोवय-रमणीउ तारा-पंति-विसिट्ठउं । संझराय-अंबर-कलिउ नं पोस समुट्ठिउं ॥१९॥ [२० जं च अइ-रम्मयं सिप्प-बहु-कम्मयं । कणयमय भूमियं धूव-भर घूमियं । फलिह-मणि-भित्तियं कणय-रस-चित्तियं । रयण-मय-थंभयं रइय-वर-गब्भयं । पवरज्झय-मालियं रम्म-कय-वालियं । चलिय-सिय-चामरं सोह-खुहियामरं । कणय-किकिणि-घणं कुसुम-विहियच्चणं । हार-सुविराइयं दुस-संछाइयं । चंद-पह-सारयं घंट-टंकारयं । विविह-बहु-पहरणं तुंग-वर तोरणं । कणय कलसालयं परम-सुविसालयं । तडिय-सुवियाणयं दिठ्ठ सुविमाणयं । .. अह तहिं पयर-बिमाणि वमुभूई-सहियउ । कय-कोउय-परिकम्मो सो कुमरु आरूहियउ ॥२०॥ [१९] १. ला. पु० आसन्न य निवाउ, पु. सुद्धि विहव – ५. ला० जंपहि ६. पु० परक्कम ति ८. पु० गाहियाउह १२. पु० तं पओस [२०] १३. ला० विमाणे Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ साहारणकविरइया [२१] एतहे लय-कम-तालेहिं सज्जिउ भं भं भेरि सद्दु तर्हि सारउ धुम्मुकु धुम्मुकु मद्दल धुम्मइ तोंग थांगि थगि पहु पवज्जइ ५ दों दो दो दों सह मउंदहं गुईंगुई गुईं गुई गुंज रिउजहं । दुलिलिंदि दुलिलिंदि तिलिम सृणिज्जइ डम डम डम डम डमरू गज्जइ । कण कण कणंति तर्हि भाणई छंछोलई करंति कंसालाई ति झल्लरिउ निसानई । तंडिक्कई झणहणहिं मालई । संख-घोसु आऊरइ नहयलु | इय वज्जई वज्जियई असेसई | तुतु तू तुतु तू काहल - कलयलु १० स र ग म प ध नि वीण तह वसई फुट्टउं नं बंभंडु उच्छलियउ तूरारउ । नं रण- दंसण- कज्जे तो दिसि समुहुं दोलिर-धयाई अणुकूल-पवण-परिपेल्लियाई जय-सूयग-सउण-महा-विसेसु विज्जाहर के वि महागए हिं ५ अन्ने वि पुण सीहेहिं वानरेहिं सव्वहं सुहडहं आणंदु जाउ कुमरह जय सहु सुरेहिं घुट्ठु पेच्छंतर महि-मंडल असे सायर - सरि-सोत्तई सर- जलाइ १० परिचत्तउ गमण - परिस्समेण सुगहिरु मंगल-तूरु पवज्जिउ । टिटिंब टि टिटिंब टि हुउ ढकारउ । fafar fa faaरि कि करडिय सुम्मा | झझगिगि झझगि हुडुक्किय छज्जइ । उ देव हक्कार || २१॥ [२२] [७. २२ उब्भिय उन्भड -भड - चिंधयाई । गयणेण विमाणई चल्लिया । चल्लिउ विज्जाहर-बलु असेसु । आरूढ के वि चंचल -हएहि । संछन्तु गयणु जिह सुर-वरे हिं उक्कुट्ठि करहिं तह सीह - नाउ । सुसुगंधहं कुसुमहं वरिसु बुझ्छु नयरावर - पुर- पट्टण-निवेसु । गामई गिरि-गोंडर - गोउलाइ । वेट पहुत्तउ तक्खणेण । [२१] १. पु० सगहिरु ३. पु० किकिरिकि किरि करि ४. ला० तोंग योंगि ६. ला० दुल्लु दि दुल्लुंदि - ७ पु० त्रह त्रह त्रित् झल्ल० ९ पु० आऊरिय १० ला वीण तहिं ... [२२] ६. पु० आनंद ९ पु० सायर-सर-सोत्तइ... गोपुलाई । १०. पु० परिस्सएण, ला० वेयड्ढे Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. २२] विलासवईकहा अह वेयडूढ-तलम्मि सपरिवारु आवासिउ । खंधावार- कमेण निय- सिविरं पि निवेसिउ ॥२२॥ [२३] तो तत्थ अजियबल - देवयाए सम्मं चिय आराहण - निमित्तु सव्वाओ वि विज्जा - देवयाओ कुमरस्स वियाणिय गुण-विसेस ५ आरु अणंगरइस्स जे वि विज्जा - सहस्स - परिवारियाए । उववासु कुमारिं किउ तिरन्तु । विविहाहिं सुपुज्जहिं पुज्जियाओ | विज्जाहर मेतिहिं गय असेस | for faय परिवारिहि मिलिय ते वि । जाणिउ अगरइणा वि एउ अह तेण अवज्जा - विलसिएण पेसिउ कुमारह मारण - निमित्त १० एत्यंतरि आइउ पर-बलं ति अणुदिणु बले सो विद्धि जाइ ससहरु सिय-पक्खि कलाहिं नाइ । जिह कुमरु पत्तु बहु-बल-समेउ । सेणावर दुम्मुहु सहुं बलेण ! अह सो वि पहुतु सदप-चित्तु । कुमरह बले सयल विलवलं । सन्नहिय सुहड सव्वे विखणेण हय समर भेरि सुगहिर- सरेण तो सुपओहरु सामलउं पर दूसउं हु अंगे सहिउ । तह मुट्ठि मज्झि सुकलत्तु जिह खग्ग-रयणु कुमरें गहिउ ॥ २३ ॥ [२४] तो पर-बलुतं आसन्नि हूउ तो कडय नाइ - दूरट्टिएण भो भुमि गोयर-गय-मणाहो सेणावइस्स सासणु सुणेहु ५ ति हउं अगर इ-वल्लहेण सो भइ काल - संचोइयाण किर भी अप्पडिय - सासणेण सरिसिय उपन्निय समर-सद्ध १०९ एत्थंतरि पत्तउ एक्कु दूउ । एरि विज्जाहर भणिय तेण । दुब्बुद्धिय विज्जाहर-भडाहो | जो बलह मज्झि पहु पत्तु एहु | पेसिउ सेणावइ-दुम्मुद्देण । तुम्हाण भूमि गोयर - गयाण | देवि अणगंर इ- नामएण | जा भुवणि न केण वि कह वि [२२] ११. पु० - तलम्मी [२३] २. पु० कुमारे किउ निरुत्तु । ४. ला मेस्तेहि ५. ला० परिवारेहि ६. ला० विद्धि जाउ ९ ला० कुमार-मारण- ११. ला० भय समर १२. पु० सुपउहरु, ला० पर दूसओ... सहियउ । १३. ला० कुमरिं [२४] ४. ला० सासण ८. पु० भुवणे... कहिं वि लद्ध | Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० साहारणकविरया किर तुम्हे रायहाणिहिं पयट्ट ताकेत्तिय तर्हि वाहेहि वट्ट | १० देवस्स भिच्चु एक्कु वि अहं ति एत्थेव समाणमि विग्गहं ति । जाणेवि सेणावs आवइति भड - मज्झ पढम संपत्त लीहु भणियं च देव आस देहु देवta free froसिउ ममं तु ५ कुमरेण वि चितिउ जुत्तु एउ तो तस्स वि दिष्णउ कुसुम-दामु निय-बल-समेउ कय-कलयलस्स कुमरो विसरि विज्जाहरेहिं एत्यंतरि तहिं सुर सिद्ध जक्ख १० तर्हि वीर - वरण-कय-मच्छराउ आइउ नाहिं अगर एरिस जं कुमरें कलिउ । तं वग्ग - रयणु हत्थह मुयइ बलु सयलु वि मिलिउ ||२४|| [२५] [ ७. २६ एत्थ वि अहं पि सेणावइति । सयमेव समुद्वि चंडसीहु | मज्झं चिय कुणह पसाउ एहु । दूरद्विय विज्जाहर नियंतु । एसो च्चिय सेणावर अजेउ । गिहिउ करेवि तेण विपणामु । धाविउ सम्मुह दुम्मुह-बलस्स । ठिउ गयणि विमाणेहिं सुंदरेहिं । संपत्त समर - पेक्खग असंख | संपत्त बहुत्तउ अच्छराउ । उच्छलियउ तूरावु बहलु एत्यंतरे कय- कलयलई । रोसेण को वि अभिट्टाई चंडसीह-दुम्मुह-बलई ||२५|| [२६] तो वरिस वरिस एरिस भणति पलए व्व घणेहिं निरंतरे हिं खग्गहार निवडंति केंव गय गएहिं तुरंग तुरंगमेहिं ५ तहिं एक्कमेक्कु हक्कारयंति पहराह विज्जाहर पडंति कुंरगेड के वि विभिन्न- देह अन्नोन्न केस - कड्ढणु करेवि [२४] ९ ला ० तो केत्तिय, पु० वाह १२. ला० हत्थ मुयइ, पु० वि लिउ । [२५] १. ला० जाणवि २. ला० संपत्ति ३. पु० आदेसु, ला० मज्झविय ८. ला० ठिओ गयणे १०. ला० -मच्छराओ ११. पु० उच्छलिउ [२६] २. ला०, पलय व्व घणेहि पु० से छाइउ ३. ला० केव... काले... जेव ४. ला० यहिं ७. पु० जुज्झहिं तर्हि वि भव० सर-वरि निरंतर भड मुयंति । संच्छाइ अंबरतल सरेहिं । उपाय- कालि निरघाय जैव । जुज्झति सु सुहिं समेहिं । अवरोप्परु कुल संभालयंति । उद्वेवि पुणो व समावति । जुज्झंति तर्हेव अवगणिय- वेह | गय पहरण छुरियहिं लग्ग के वि । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. २६ ] अवत्थे हत्थे भिडहिं ताव १० रुहिरारुण दोसहि सुहड व १० विलासवईकहा तओ पडत-मत्थयं गलत-सव्व-सत्थयं पडत- छिन्न-छत्तयं अंबरि रणु विज्जाहर हं अंतरालि रणु गिद्धहं । धरणीय रणु सावयहं मंस - रुहिरवस - गिद्धहं ॥२६॥ [२७] विमुच्चमाण सत्तयं छिज्जत - चारु फुहंत - गुंफ- बंधयं विमाण-के-गाणं विमुक्क-सामि सासणं रु-चिंधयं हम्मत मत्तवारणं वहंत-सोणियारुणं १११ तुट्टहिं सिर-कमलाई समई जाव | कुसुमय महु-मासि पलास जेंव । आरुउ निय-चल-परिहवेण रे रे दुम्ह दुरायार- भिच्च तुट्टंत-बाहु-हत्थयं । forage-are-tri | विभिन्न सव्व-गत्तयं । महंत खेय- पत्तयं । तोडिज्माण - खंधयं । सरंधयार - अंधयं । सुकायराण नासणं । सुराण दिन्न हासणं । भज्जत - बाण-वारणं । रणं पयट्टु दारुणं । तो दुम्मुह-वलेण सरवारेण चंडसीह-बलु पेल्लिउ । नं. सायर-नीरें खुहिपण गंगा-जल रेल्लिउ ॥२७॥ सर-रिस कलिउ भग्गमाणु आरोविय धणु-वाणहं निरीहु पर-बल हणंतु तिक्खेहिं सरेहिं अह तं बलु भग्गउं सयल तेण ५ तं पेच्छेवि धणु-तोणीर-हत्थु [२८] 'निय बलु पेच्छेवि पलायमाणु । सयमेव समुट्ठि चंडसीहु | घण- तिमिरु जेंव दिणयरु करेहिं । जिह हरिण - -जूहु पंचाणणेण । धाविउ सम्मुहु दुम्मुहु समत्थु । सो भणिय कुमर - सेणाहिवेण । सुसमत्थिय-निय - सामिय-अकिच्च । [२६] १०. ला० सुहड के वि, पु० - मासे ११. ला० अंबरे.... अंतराले १२. ला० धरणीयले [२७] ४. ला० विमुच्चमाणमत्तयं ७ ला० - केउ नासणं १२. ला० सायर - नीर... जलु नीरेल्लिउ । [२८] १. पु० पिच्छेवि ३. ला० पर-बल... तिमिर ४ ला० हरिणिह ५. ला० पेच्छवि ६ ला • आरुट्ठउ... - पर हवेण... भणिउ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ __ साहारणकविरइया [७. २९ हउं चंडसीहु तुहुँ दुम्मुहो त्ति ता ठाहि पाव मह सम्मुहो ति । सो भणइ भूमि-गोयरह दास रे रे विज्जाहर-कुल-विणास । १० मई सरिसु तुज्झ रणु केरिसं ति कहिं मोत्तिय-सरि कहिं होइ तंति । सो भणइ सुवाणिय निम्मलिय तह सुचित्त-मोत्तियह सरि । गुणवंतिय लग्ग विसिट्टाहं तीए सरिसु किं व तुज्झ सरि ॥२८॥ [२९] पर-दार-रइप्पिउ तुज्झ सामि ता तेण सरिसु हउं तई गणामि । अहवा सुपसिद्धउं सव्व-लोइ गोसामिय अद्धिंधणु वि होइ । इय चंडसीह-भासिउ सुणेवि धाविउ दुम्मुहु गय गरुय लेवि । दिन्नउ पहारु अह दुम्मुहेण तेणावि पडिच्छिउ मत्थएण । ५ तो रोसायबिर-लोयणेण गय गयणे भमाडेवि भणिउ तेण । एहु केरिसु तुज्झ पहारु जाउ संपइ विसहेज्जसु मज्झ घाउ । हउ उत्तमंगि इय भणेवि तेण तसु सीसु विदारिउ तक्खणेण । तेण य विहलंघलु चूरियहि सोणिउ वमंतु गउ धरणिवहि । तो निहउ निएविणु नियय-नाहु दुम्मुह-बलु भग्गउं तं अणाहु । १० उग्घुट्टउ जय-जय-रवु सुरेहिं नच्चिउ सतोसु अच्छर-गणेहिं । कुसुम-वरिसु तह परिसिउ उप्परि सुह-कारणु । चंडसीहु पच्छा करइ निय-बल-साहारणु ॥२९॥ ॥ इइ विलासवई-कहाए दुम्मुह-वहो नाम सत्तमी संधी समत्ता ॥ [२८] ८. ला० महु ११. ला० सवाणिय १२. ला० कहं तुज्झ [२९] १. ला०-रइत्थिउ २. ला० अर्द्धधणु ५. ला० भमाडवि ८ ला० दूरियट्ठि ११. ला० वरिसियउ, पु० उपरे १३. ला० इय, पु० दुम्मुह-वहा नाम सत्तमा Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि [1] सेणावर मारेव बलु संहारेवि कुमरो वि विज्जाहर- सहि । सुर-सिद्ध-सलाहि सयल-कलाहिउ गिरि वेयदि समारुहिउ || सो पंचवीस जोयण- पमाणु तो तर्हि दस-जोयण उपवि ५ रहनेउरपुर-मंडल विसि मंडियउ बावि पोक्खरि-सरेहिं उववण-वण-काणण- देउले हिं अह तत्थ विस आवासिएण भणिया य पणामोणमिय- देह १० भो भो विज्जाहर किं इमेण अज्ज विपरियच्छहि कज्जि ठाहि मोत्तूण रज्जु वण-वासि जाहि । अहवा मह कोविंधण कराले सत्थानल - मुक्क-फुलिंग-जाले । सहस च्चिय अग्गाहुइ हवेहि ता नीसरेवि संगामु देहि । जेइ घरि पविठु छुट्टहि न तोइ किं जमह दूरे मालवउ होइ । १५ तो एरिसु मंतेवि ते गय दोणि वि कुमरह पणमेव पय-जुयलु । थोविय वेला गय पुणु वि समागय उज्जोवंता गयणयल ||१|| उच्चतिं गयण - विलग्ग-साणु । वर-दक्खिण- सेठि समासएवि । धण-कण - समिद्धु कुमरेण दिछु । दीहिय-गंजालिय-निज्जरेहिं । धवलेहिं चरंतेहिं गोउलेहिं । पेसिय विज्जाहर दोणि तेण । जावि अनंगरइ इय भणेह । अप्पोदय- मीण- कुचेट्टिए | पण विणु आढत्तउं कहेवि तो तुम्हेहिं जं चिय भणिउ देव अह हुयवो व्व सित्तउ घिएण हत्थेण महियल आहणेवि [] गय देव अम्हे आए लेवि । भणियउ अणंगर सव्वमेव । पज्जलिउ देव-वयणेण तेण । सो गरुय - सद्दु लग्गउ भणेवि । ला०- जोयणुविलग्गमाणु । ५. ला० कुचिट्टिएण ११. ला० वणि वासि १२. समागया ... गयणि यलु सितउ घण ४ पु० हत्थीण महीयल [१] १. पु० कुमारो २ ला०-वेयड्ढे ३ धण - कणय - ७. ला० चरंतिहिं १० ला पु० सच्छानल १३. पु० हविहि १६. पु० [२] १. ला० आढत्ता.... पु० अम्हि ३ पु० १५ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ [८ ३ ५ रे धरणी - गोयर किं भणेसि अग्गाहुइ हउं तुह होमि पाव थेवंतरू ता किं जंपिएण किं तुहुं अत्ताण न य मुणेसि । न य पुणु तुमं पि मह होसि ताव । हत्थे वि कंकणु किं दप्पणेण । दुम्मुहु मारि कह वि तेण तो दप्पु वहइ सो निय-मणेण । जिह दुम्मुहुं मई वि गणेइ तेंव मिरियाई वि चावइ चणय जेंव । १० अगणेवि पहुत्तणु मज्झ घठु अइ-भूमि भूमि- गोरु पविछु । ता मारउ सो कहिं दिठु जाइ सूयारह सालहि ससउ नाइ । इय भणेवि कोवक्खलियक्खरेण तो निय-निउत्त आइट्ठ तेण । सणाह - भेरि भो सिग्घ देह तह सगड - वृहु सुंदरु र एह । साहारणकविरइया तो देव निउत्तेहिं तेहिं तुरंतेहि समर - भेरि हय तक्खणेण । १५ अह सा वि सुसज्जिय सुगहिरु वज्जिय नं हुंकारउ किउ जमेण ॥२॥ [a] अह भेरि सहु गंभीरु तेहिं पढमं भय-तट्ट विलोयणेहिं आसन्न - विरह- दुह-कायरीहिं चिर-रूढ - फुडिय-वण-कंदरेहिं ५ कय- सामि - सुकय-पडिमोअणेहिं पढम-रण- दंसण- सुए हिं निय निय-निओय उवउत्तएहिं पहु-भणिय महंत य चोइएहिं एउ माए उवद्वि किं अणि १० एरिस सदुक्खु रोवंतिया हि भो भो इमेण दुण्णामएण उद्वाविय पेटु मलेवि वाहि बहु-विहु आयणिउ सेणिएहिं । निसुणिउ भेरी-रखु कुपुरिसेहिं । रोवंतिहिं सुउ सेणाभडीहिं । रण - रहस जाय- पुल- उग्गमेहिं । आयण्णिउ भेरी-खु भडेहिं । अवधारिउ राय - कुमारएहिं । कज्जेसु तुरिउ धावंतएहिं । परियच्छिउ सदु निओइ एहिं । मह पुत्तु वि न सहइ सेन्तु दिछु । सहस त्ति निसामिउ बुढियाहिं । पहुणा पर घरिणिहि लद्धरण | संदेह चडाविउ नयरु ताहि । [२] ६. ला० होइंमि... मम होसि... ९. पु० जई दुम्मुहुं, ला० दुम्मुहु... जेव । १० पु० पहुत्तण ११. ला० सूयारहं सालहिं, पु० सालं हि १२. ला० भणिवि १३. पु० तहिं सगड • ला० सगडवूह १४. पु० मियत्तेहिं [३] २. पु० भेरी - रउ ५. ला०-पडिमोयणे हिं... मेरी - रउ रण- ७ पु० निय - निउय - ९ ला० पुत्तो ११ ला ० भडेहि । ६. ला० पढम य दुन्नान एग... घरणिहि Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ विलासवईकहा अन्नोन्न-भणेतें पुर-जणेण अवधारिउ भेरी-रखु भएण । कायरहं रउदें भेरी-सह ते उच्छाहिउ तं सयलु । १५ निय-पहु-अणुरत्तउ देव तुरंतउं सन्नहेवि आढत्तु बलु ॥३॥ दित्तोसहि-परिगय गिरिवर व्व ढोइज्जहिं कंचण-कवय सव्व । दुज्जण-वाणीओ व भेयणीओ आणिज्जहिं भल्लिओ भीसणीओ। भुक्खिय जम-जीहा संनिहाओ सुहडह रुहिरम्मि व लालसाओ। बहु-जणहं जीय-हरणट्ठियाओ पयडिज्जहिं असि-वर-लट्ठियाओ। ५ वेसाओ व गुणेहिं निवद्धियाओ पयइ-कुडिलाओ वि धणु-हियाओ। खल-जण-आलावय गुण-विमुक्क पर-जणह मम्म-घट्टणे अचुक्क । तिक्ख-मुह सया वि तहा सलोह गाहिज्जर्हि तह नाराय जोह । विप्फुरिय असणि-लय-विन्भमाओ सुहडहं ढोइज्जहिं वर-गयाओ । जम-महिस-सिंग-सारिच्छियाओ कुंटिओ वि कुडिलओ कट्ठियाओ। १० अण्णाई वि तर्हि नाणाविहाई कड्ढियई असेसई आउहाई । सन्नाहावरणई अइ-मणहरणई सव्वह सुहडहं ढोइयई । तह देव पहाणइं तत्थ विमाणइं सिग्यमेव संजोइयइं ॥४॥ पियह पोहर-फंसु निरंभइ इय सन्नाहु को वि न य बंधइ । अन्ने समरबद्ध-अणुराई बहुविह पाविय सामि-पसाई । थोरंसुएहिं ससदु रुयंती न गणिय वहुय सोय-अक्कंती । अन्ने तक्खण सिढिलिय-वलया विरह-सुसिय-दुब्बल-बाहुलया । ५ सहसा वियलिय-कंचीदामा नयण-सलिल-निग्गय-नित्थामा । मंगलत्थु स विलक्खु हसंती गाढ-सोय-संतावु धरती । सुयणु एहु हउं पत्तु भणंतें आसासिय निय पिययम-कंतें । [३] १३. ला० भणंति १४. ला० रउद्दे भेरिहिं सद्दे १५. पु० सन्नेहेवि [0] १. ला० दुज्जण-वाणीउ य व...आणिज्जिहिं भल्लिउ ३. पु० भिक्खिय....य लाल साओ । ४. ला० बुह जणहं ५. ला० गुणेहिं निवदिठयाओ, पु०-कुडिलाए ७. ला० तहिं नाराय ९ ला. पु० कुंगीओ वि . [५] १. ला० पभोहर-दंसु निरूंधइ २. पु० समर-सद्ध-अणुराए ७. ला० भणंती...कंतिं । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ साहारणकइविरइया [८७ अन्नेण वि गमणूसुय-चित्तें पवरु पाणु पिय-सहिउ पियंतें । नेहेण य पियाए मुहि दिन्नउं थोरंसुएहिं तीए जं रुन्न । १० तेण पाण-पूरिउं तं वट्टउं अहिउ भरिउ पिज्जंतु न खुट्टउं । अन्नाए वि कंतह निग्गच्छंतह को वि वियारु न दंसियउ । सहसा गय धरणिहिं मउलिय-नयणिहिं मुच्छए नेहु पयासियउ ।।५।। इय बलु असेसु सन्नद्ध देव चल्लिउ अणंगरइ सिग्यमेव । कय-कोउय-मंगल चलइ जांव छिक्किउ छड त्ति पच्छिमेहि तांव । अगणेवि विमाणे वि जा चडेइ छाहियह छत्तु छुट्टिवि पडेइ । मा जाहि नियत्तहि नत्थि भदु कस्स वि जंतह सुणिउ सहु । ५ उदंड पवणु पडिकूल लग्गु । झउ झत्ति विमाणह तेण भग्गु । वत्थंति विलग्गइ गमु निसिद्ध ___उवविठु विमाणि महंतु गिद्ध । मुक्कउ मउ मत्तेहिं मयगलेहिं किउ कलहु परोप्परु निय-बलेहि । मुत्तहिं हयंति हय-साहणाइं वाहुडेवि एंति घर वाहणाई । पुच्छई जलंति सहसा हयाइं तूरहं रवु नत्थि समाहयाइं । १० उद्धंधुलु सयलु वि दिवसु जाउ सूरो वि तवइ मंदप्पयाउ । इय देव बहुत्तई पहि दुनिमित्तई हूयई तह वि सो पत्थिउ । अच्छिहि पेच्छंतु वि मणेण मुणंतु वि दोसु न पेच्छइ अस्थियउ ॥६॥ नयरह नीसरह नरिंदु जांव दाहिण-दिसि सानु पयट्टु तांव । पत्थरे अवमुत्तेवि कंडुएइ भों भों सदेण य तह भसेइ । [५] ८. ला०-चित्ति पवर ...पियंतिं । ९. पु० मुहे १०. ला० पूरिउ तं वयं १२. ला०-नयणेहिं पू० मुच्छए न हु - [६] १. ला० इअ २. पु०-मंगल बलइ जांक, ला. पच्छिमहं ३. पु० तुटेवि पडेइ । ५. ला० पडिकूल... विमाणहिं ७. ला० मयु मत्तेहिं, पु० मउ मन्नेहिं ८. ला० __ इंति ९. पु० मुच्छइं जलंति...तूरह रउ नत्थि समाहयाहं १०. ला० उदुधुलि ११. ला. बहुत्तई तहिं १२. पु० अस्थिहिं, ला० मुणंतो वि तो वि दोसु ..[७] २. ला० पत्थिरि अवमुत्तिवि Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.७] विलासवई कहा रोवंति नारि मोक्कलिय-केस नरु महिसारूढ दंड- हत्थु ५ दाहिणई दुक्खु अक्खिर खरेण कालउ कुरंगु गाउ पंगुरंतु चिरि चिरि सरेण दाहिणिय साम तह सुक्क- रुक्खे पंखउ धुणेइ भे भेत्ति दंति भल्लय भसेइ १० सव्वहं किलेस साहिउ ससेण इय सामि अणि बहु दिई अवसई सो तह वि पहु । अवमन्नेव चलियउ निय-बल-कलियउ संछायंतउ गयण-पहु ॥७॥ [4] एवं च अणंगरई -बलम्सि वेगेण देव संपत्त अम्हे इय सुणेवि कुमारे दिन्न आण ताडेह सिग्घु संगाम भेरि ५ आए साणंतरु तखणेण अहसा व पवज्जिय घण-सरेण वज्जप्पहार - फुल्याण दस - दिसि भरंति पडिसएहिं तो भेरी-सह-पडिवोहियाण १० जय - लच्छि समागम - लंपडाण ११७ तसु समुह हूय मल-मलिण- वेस | कट्ठाण वि भारउ अपसत्थु । दाहिण -दिसि वासिउ कोसिए । हिदंतु पंथु फणि विष्फुरंतु । कर करण कराइय करइ वाम । दाहिण - दिसि वायसु करकरे | दाहिणिय चिल्ल - तित्तिरु रसेइ । एक्कल्ले कुरुलिउ सारसेण । सव्वम्मि वि नीहरमाणयम्मि । एरि जाणेवि पमाणु तुम्हे | पासद्विय विज्जाहर भडाण । आसन्न व मज्झ वेरि । हय समर भेरि भासुर -भडेण । हुंकारु नाइ मुक्कउ जमेण । उच्छालिउ सहु न पव्वयाण | नं पलय- कालि गज्जिउ घणेहिं । तह समर -कज्जि साहस - रसाण | उउि कलयल - वर-भडाण | के वि हहिं सत्थई बंधहिं भत्थई के वि काए कवयई करहिं ! के वि सज्जहिं जाणई पवर-विमाण के वि आवास संवरहिं ॥८॥ [७] ४ ला महिसारूडओ दंड हन्यु ५ पु० अक्खिओ ६. पु० काएण कुरंगु ८. ला० पंखओ, पु० लुणेइ ९. ला० मेव्भत्ति दिति भल्लुय.. चिल्हं.... १० ला एकल्लि [4] १. ला वोहरमाणयम्मि २. ला० सुगवि कुमारं ५. ५० हय भेरि समर भासुर७. पु० वज्जपहारु ९. पु० मेरि - सद्दि.. सहिसरहसाण । ११ ला० बंधई १२. ला० संवरिहिं । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया ८.१० तो निज्जमाण-सुविलेवणयं हासिज्जमाण-वल्लह-जणय । दिज्जत-कुसुम-माला-थवयं पिज्जंत-विविह-पवरासवयं । सामिय-सम्माण-पसन्न-भडं आलोच्चिय-वर-सन्नाह-पडं । वण्णिज्जमाण-पडिवक्ख-गुणं माणिज्जमाण-दुज्जण-पिसुणं । ५ उब्भिज्जमाण-भड-चिंध-धयं दिज्जत-पडाय-मणोहरयं । लंबिज्जमाण-सिय-चामरयं वज्जत-कणय-किकिणि-सुहयं । विरइज्जमाण-छत्तुज्जलयं संपाडिय-गमण-सुमंगलयं । घोसिज्जमाण-निय-सामि-जयं । निसुणिज्जमाण-पुण्णाह-पयं । पूरिज्जमाण-रायंगणयं धातुत्तावल-परियणयं ।। १० परियड्ढमाण-कलयल-पबलं कुमरस्स विइय सन्नद्ध बलं । चलियाई विमाणई हय-गय-जाणइं विज्जाहर नहि उप्पइय । निय-सेन्नह कुमरें जाणिय-समरें पउम-वूह-रयणा वि किय ॥९॥ [१०] सेणावइ वइरि-गइंद-सीहु ठिउ वूहह अग्गइ चंडसीहु । तह समरसेणु ठिउ वाम-पासि देवोसहु दक्षिण-दिसिहि आसि । सन्नद्ध-बद्ध सहुं निय-बलेण नरवइ मयंगु ठिउ पच्छिमेण । सेन्ने सहुं रक्खिय-खंधारु मज्झं ठिउ पिंगल गंधारु । ५ कुमरो वि वाउवेगाइएहिं ठिउ गयणे सरिसु विज्जाहरेहिं । तो एत्तहे पत्तउ गरुय-मन्नु आसन्न अणंगर इस्स सेन्नु । तो कुमरे पुच्छिउ विमल-मइ पर-बल-निव-नामइं अमियगइ । ते भणियउं सयड वहस्स देव तुंडे ठिउ कंचणदाहु चेव । वाम य दिसाए संठिउ असोउ ठिउ कालजीहु दक्खिणे सलोउ । १० मज्झम्मि विरु उ बहुवल-समे उ पहिहिं अणंगरइ गरुय तेउ । मुत्ताहल-धवलउं किंकिणि-मुहलघु उवरि देव जसु पुंडरिउ । अह सयडह पच्छइ सामिय अच्छइ सो अणंगरइ तुम्ह रिउ ॥१०॥ [९] १. पु०-सुविलेवणई हाहिज्जमाण ५. ला० -चिंधवयं ७. ला० मंडिज्जमाण--छत्तुज्जलयं ८. पु० सामिण्यं १०. पु० परिवड्ढमाण...बिझ्ययं ११. पु० नहे [१०] ३. पु० सहु ४. ला० सेन्नि, पु०सहु...मझे, ला० गिलु ८. ला' भणिउ १२. पु० पच्छए...अच्छए Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. ११] विलासवईकहा ११९ [११] तो पर-बलु पेच्छेवि पराविउ तक्खणि चंडसीह-बलु धाविउ । तसु सम्मुहुँ समरंगणे गाढह सेन्नु परिहिउ कंचणदाढह । तो तहिं समर तूरु अप्फालिउ सुर-सिद्धेहिं नहंगणु मालिउ । हक्कोहक्क-सद्द-संवलियउ कलयल-राउ भडहं उच्छलियउ । ५ मिहुणई जिह उक्कंठा-कलियई सरहसु दोणि वि सेन्नई मिलियई । मिहुणइं जिह उच्चल्लिय-पायई मिहुणई जिह उग्गामिय-घायइं । मिहुणई जिह आयड्ढिय-केसई मिहुणई जिह किय-भमुहावेसई । मिहुणइं जिह विमुक्क-सिक्कारई मिहुणइं जिह विदिण्ण-हुंकारई । मिहणई जिह संड सि-ओटइं मिहुणई जिह आवलिय-पोट्टई । १० मिहुणई जिह नहसंगु करंतई मिहुणई जिह निब्भरु पेल्लंतई । अवरोप्परु कुद्धइं जय-सिरि-लुद्धइं पर-पेल्लणहं पयट्टइं । कय-सामि-पसायई मुक्क-विसायई दो वि बलई अभिट्टई ॥११॥ [१२] अह तर्हि विज्जाहर वग्गयंति अणुरूव-गडाण विलग्गति । तो घाय-पलोट्टिय-रुहिर-सोन्तु उग्धोसिय-पुव्वय-पुरिस-गोत्तु । दप्पिय-भड-मेल्लिय-सीहनाउ तं दारुणु तक्खणे समरु जाउ । तत्थ य खल-रिद्धि-सन्निहाओ। भल्लिओ पडंति असुहावहाओ । तह काल-राइ-संनिह पडंति नाराय निद्द गरुइय करंति । जम-महिस-सिंग-सरिसंगयाओ निवडहिं गयाओ भड कर-गयाओ। नर-रुहिर-मंस-अहिलासिणीओ सत्तीओ वि नावइ साइणीओ । असणिहिं माहप्पु पराजयंता मोग्गर पडंति मुसुमूरयंता । भुक्खियह कयंतह नाइ दंत निवडंति सेल्ल तर्हि झलहलंत । १० जम-जीह-सरिच्छउ तहिं वहंति तरवारिउ विज्जाहर वहति । [११] २ पु० सम्मुहु समरंगण ३. ला0 अप्फालियु ४. ला० कलयल-रावु५. पु० सहरसु ६. ला० उच्चलिय-११. ला. पेल्लणह [१२] २. लाल-पलाहिय-४.ला. खल-रिद्धिओ सन्निहाउ ५. पु० गरुय ९. पु० कयंतहु १०. ला०-सरिच्छओ... तरवारिओ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० साहारणकविरश्या छिन्नाई खुरुप्पेहिं भडेहिं सदप्पेहिं दंड- विहीणई केवलई । दीसंति पडतई धवलई छत्तई उपाए व ससि-मंडलई ||१२|| [१३] असेसम्म सेन्नम्म आवट्टयंते । परिक्खीण बाणो ठिओ चावमेत्तो । कर्यबस्स पुप्फ व सोहइ पडतो । तओ दारुणम्म रणम्मि पवत्ते भडो को वि रत्तच्छ दुप्पेच्छ- नेत्तो भोको विवाह संभिन्न गत्तो भो को वि दंतेहिं दाऊण पायं दस कुंथले देइ घायें । ५ भडो को वि वेगेण उक्खित्त-खग्गो निवाडेवि सुंडं गईदस्स भग्गो । भडो को वि कुंतेण निभिन्न- देहो विवाएइ सत्त अविणाय वेडो । भडो सोणिएणं वित्तिंगवासो दर्द सोहर फुल्लिओ नं पलासो । भोको विखग्गेण दो- खंड - छिन्नो तुरंगस्स पट्टी रित्तणु निवन्नो | भडो को वि पोट्ट-ललतंतजालो परिच्छन्न- सीसो य दीसइ करालो । १० भडो घोर घारण घुम्मंत- नेत्तो ओ धरणिवट्टम्मि सोणिउ वतो । बहु-लोहिय-सती पहरण - जुत्ती तलि रण - ‍ - भूमि विहावर | अच्चिय- सिर-कमलेहिं तोडिय-नालेहिं जम घर-पंगणु नावइ || १३|| तो चंडसी अमरिस- करालु पर-बलु पेल्लंतर जाइ जांव कुमरह सेणावर भइ कुद्ध ता ठाहि पाव मह पुरउ जेण ५ तो कंचणदाढें भणिउ सो वि [१४] चारह डिवाय मइ गुण महग्घ तुट्टो सि घट्ट दुम्मुह वहेण जिह जाणसि तिह पहरेज्ज अज्जु [८. १४ सर-वरि मुयंतु निरंतरालु । सो कंचणदाढें रूद्ध तांव | जइ नवियहि जणणिहि पियहि दुछु ! पेसेमि तई विदुम्ह - पहेण । रण कज्जि न किज्जइ दप्पु को वि । महियल दिग्वाहं वि अस्थि दिग्व । संपs गहिओ सि महा - गहेण । भुंजावमि तई जम- पुरिहिं रज्जु । [१२] ११ पु० खुरुपहिं भहिं सदापि [१३] १. पु० दारुणम्मी रणम्मी ५ पु० निवाडे ८ पु० थिरासगु निविठो । ११. पु० लोहिय-सत्ती तले १२. पु० - घरयंगणु [१४] २. ला० पेल्लं उ... कंचगदाडिं ४ पु० महु पुरओ ८ पु० तिह पहरेज्ज भुंजावमिं त जमपुरिहिं अज्ज । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.१४] ___ विलासवईकहा १२१ इय जंपेवि तेण निरंतरेहिं सो चंडसीहु छाइउ सरेहिं । १० ओसारित तं सर-जालु तेण जलहर-निवहो व्व समीरणेण । अह घण-सर-जाले निरु अ सराले सयलु नहंगणु पूरियउ । समरंगण गाढह कंचणदाढह पुणु विमाणु संचूरियउ ॥१४॥ [१५] अह तेण गरुय अमरिसु बहेवि तक्खणि करालु करवालु लेवि । सिरि उवरि भमाडेवि मुक्कु घाउ सो तस्स फलहें विफलउ जाउ । अह चंडसीह सुहडो वि खग्गु उग्गामेवि तसु पहरणहं लग्गु । अज्ज वि संपडइ न घाउ जांव सो मच्छु व्व तेण छुट्टु तांव । ५ अवरोप्परु इह पहरंतयार अन्नोन्न घाउ वंचंतयाहं । करवाल-खणक्खण-घण-रवेण आऊरिउ अंबरु तक्खणेण । अह तेण सहिउ सो काल दीहु जुज्झंतु विसन्नउ चंडसीहु । तो कंचणदाढ़ें उच्छलेवि रक्खेज्ज घाउ एरिसु भणेवि । तिह उत्तिमंगि तसु दिन्नु घाउ जिह दलिउ सीसु सय-खंड जाउ । १० तो झत्ति भिन्न-सिरताण सीसु धरणीयले निवडिउ नहयरीसु । सेणावइ-मरणें वज्जिउ सरणे कुमर-सेन्नु पडिवक्ख हउ । सहस ति पलाणउ वज्जियमाणउं मणह पड्ढिय मरण-भउ ॥१५॥ [१६] तो बहल पवढिय-कलयलेण बलु पेच्छेवि पेल्लिउ पर-बलेण । सहस ति सरोसु सणंकुमारु सयमेव समुट्ठिउ सपरिवार । भो भो मा भज्जह वर-भडा ओ थिर होहि खणंतरु दुल्लहाहो । इय निय-बल-आसासणु करंतु सविमाणु चेव धाविउ तुरंतु । ५ तूणीरह अहिट्ठिय पट्ठिभाउ ओहलिय वलिय संनाह-काउ । आरोविय वर-कोयंड-हत्थु उत्थरिउ रणंगणे नाइ पत्थु । वरिसंतउ बाणे िकिह विहाइ जल-धारेहिं अहिणव-मेहु नाइ । [१५] १०. ला०-निव्वहो ११. पु० सरालो १२. पु. पुणि विमाणु [१५] २. ला. उवरे भमाडवि मुक्कु ग्घाउ ...फलेहिं निफलउ' ४ . ला० सो मत्थु व्ब त्तिण - छडूडु ५. ला० इय...वंचंतयाउ । १०. पु० सो झत्ति, ला०--सिरवाण [१६] १. ला० पेच्छवि, पु० वर-बलेण ?: पु० भज्जहो ५, ला० तूणीर अहि० ६. लाल ___ कोदंडहत्थु ओत्थरिउ १६ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ साहारणकइघिरइया [८ १८ घण-बाणेहि छाइउ गयणु केंव उप्पाय-काले सलहेहिं जेंव । सो को वि नत्थि विज्जाहराई जो छुट्टु तत्थ कुमरह सराहं । १०सो को वि न हउ गउ धउ विमाणु कुमरम्स न लग्गउ जत्थ बाणु । दस-दिसि पसरतेहिं संतावंतेहिं ओसारिउ कुमरह सरेहिं । पर-बलु सुमहंतु वि भुवणु भरंतु वि तिमिरु जेंव दिणयर-करेहिं ॥१६॥ कय-समरह कुमरह बाण-हया निसुण्णउ चंड हिंडंति हया । पवरंग तुरंगह पट्टि गया दीसंति पडंत फुरंत गया । रोसुब्भड भिउडि भिडंति भडा घुमंत घोर दोघट्ट-घडा । अपमाण विमाण-सिरे धरिया पउरेहिं सरेहिं झया हरिया । ५ उदंडह दंडह तोडियई सिय-गत्तई छत्तइं पाडियई । कण-विकिय-मुक्क-वया कवया अन्नह विच्छिन्न सिरया सिरया । इय तत्थ महा-समरे समरे विहिए कुमरेण भरेण भरे । पिय-विरहिं सोस हयास हुया विहवाउ हुया वहुया बहुया । कुमरस्स वाण-सबलं सबलं वयरीण भग्गु सयलं सयलं । १० विहसंत देव-समयं समयं निय-सामि सया सुगयं सुगयं । बलु वलिउ निएविणु चाउ गहेविणु दिव्व-विमाणि अणंगरइ । धावियउ तुरंतउ रोस-फुरंतउ कुमरे सहुं आहवु करइ ॥ १७ ॥ [१८] दोण्ह वि आओहणु लग्गु ताण खयराहिव-कुमर-महा-भडाण । पडिभडहं महा-भड संघडंति सुर-कुसुम-वुट्ठि उप्परि पडंति । ठिउ कंचणेदाढह तो मयंगु पिंगलगंधारह विरुउ लग्गु । तह समरसेणि सहुँ कालजीहु देवोसह-सहिउ असोयसीहु । ५ अन्ने वि विज्जाहर तर्हि बहुय जुज्झेवि पयट्ट सरिसाणुरूव । [१६] १०. पु० गउ न य विमाणु ११. पु. उसारिउ १२. ला० सुमहतो...भरतो [१७] १. पु० निसुण्ण २. ला• तुरंगहि ३.पु० घुम्मति जेत्थु दोघुट घडा । ५. पु० पडि यइं ६. ला० अन्नहिं ८. पु० विरहे... हुयास, ला० विहियाउ १०. ला• मिय सामि १२.ला० रोस-भरंतउ, पु. कुमरि सहु [१८] १. ला. दुण्ह २. ला. उप्परि घडति । ३. पु० विरउ लग्गु ४. पु० समरसेणे सहु. ला? देवोसहि ५. ला. जुज्झवि Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ ८. १८ ] विलासवईकहा आयणायढिय धणु-गुणेहिं चक्कलिय चाव मुंचंतएहिं । संच्छन्नु गयणु सहसा सरेहि नव-पाउसे नावइ जलहरेहिं । अन्नोन्नावडण-खणखणादि करवाल-घाय-संघट्टणाहिं । अग्गिहि फुलिंग जं नीसरंति तं विज्जु नाइ नहे विष्फुरति । १० हय-गय-नर सर-निन्भिन्न-देह वरिसंति रुहिरु नं पलय-मेह । सुंदर-विमाण सिहरेसु दिन्न तक्खणे खुरुप्प-निवहेहिं छिन्न । सर-घण-अंतरिय विमुक्क-वंस नासंति धवल-धय नाइ हंस । गय-कुंभ-गलिय-मुत्ताहलाई निवडंति करय जिह उज्जलाई । इय पलय-सरिस-वरिसागमेण हुउ भोज्जु सियालहं वि रणेण । १५ धरणीए निवण्णह भडह विवण्णह भल्लुइ पट्ठिहि संवरइ । नं रुट्ठह कंतह विवराहुत्तह निय पिय अणुयत्तणु करइ ॥ १८ ॥ [१९] तहिं रणे अणंगरइ जुज्झमाणु संपत्तु कुमारह सन्निहाणु । आवट्ट पेच्छेवि जणु बहुत्तु सदएण कुमारे एउ वुत्तु । भो भो अणंगरइ केत्तिएण अज्ज वि कायव्वु महा-हवेण । तुज्झ य मज्झ य वट्टइ विवाउ ता किं जणु मारावहि वराउ । ५ मई सरिसउ जुज्झहि निय-बलेण ओसारेवि सेन्नई केवलेण । निसुणेवि अणंगरइ एउ भणेइ तइं भूमि-गोयर को गणेइ । तुहुं धरणि-पुरुसु हउं खयर-राउ मई सरिसु तुज्झ केरिसु विवाउ । किं कइयवि केसरि-कोल्हुयाण दिद्वउ विवाउ तई विसरिसाण । जंपइ कुमारु भो किं इमेण विज्जाहर अप्प-पसंसणेण । १० वीरहं सुवण्ण-वण्णिय-कयम्मि निव्वट्टइ रण-कस-वयम्मि । थेवो च्चिय संपइ एत्थु कालु - दीसइ जो केसरि जो सियालु । परा वि ममर-यवहार-दक्ख पिस्सहिं नहयर देव जक्ख । [१८] १० ला० वरसंति, ० रुहिरि १२. ला. विमुक्क-कंस, पु० नासति १३. ला० मोत्ताहलाई १४ ला• सिवालहं ते रणेण । १५. ला० भल्लु पडिहिं संचरई । [१९] ५. पु० उसारेवि सेन्ने ६. ला० निसुणवि...इय भणेवि ७. ला० मइ ८. पु० विसरिसाणु ११. पु. थोवो, ला० एन्थ, पु० सिवालु १२. पु० एए समर-- Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ साहारणकइविरईया [८. २१ ते वयणे सव्वेहि सुर- गंधव्वेहिं साहु-वाउ कुमरह कियउ । बलु ओसारिज्जउ एउ वि किज्जउ खयर-नाहु मन्नावियउ ॥ १९ ॥ [२०] ओहट्टई तो बिण्णि वि बलाई. वेलाहिं जेंव सायर-जलाई। ठिय समर-सभासय मुक्क-पक्ख विज्जाहर किन्नर सिद्ध जक्ख । एत्थंतरे कुमरह तेण मुक्क धणु संधिय सर पंच वि अचुक्क । अंतरे छिदंतु निविठु तेहिं सो समणु जेंव मयणह सरेहि । ५ कुमरेण वि घल्लिय बाण अट्ट ते तेण निवारिय गयणे नट्ट । तो सोलस कुमरें दुगुण तासु चउसटि सो वि रण-भासुरासु । इय दुगुण-बाण--पसंतयाहं पच्छा असमंजसु समरु ताहं । कुमरस्स उवरि आरुढएण अंगार-वरिसु तो मुक्कु तेण । तं चम्म-रयणु विरएवि ताए किउ विहल अजियबल-देवयाए । १० सयमेव य भासुर-खग्गु लेवि ठिय वाम-पासि कुमरस्स देवि । पुणु ते पजलंतउ सयल दहंतउ अग्गेयत्थु विसज्जियउ । सो वारुण-अत्थे समण समत्थे कोहु जेंव उवसमि जियउ ॥२०॥ [२१] तो तेण विसज्जिय नाय-पास कुमरें गरुडत्थिं किय हयास । तो पेसिउ तामस-अत्थु तेण नीसेसु सेन्नु परिसुयइ जेण । अह सयल-तिमिर-नासण-समत्थु कुमरें घल्लियउ दिवायरत्थु । भणियउ खयराहिव किं इमेण अकयत्थें माया-जुज्झिएण । ५ ता संपइ जुज्झहु निय-बलेण तं कुमर-वयणु पडिवन्नु तेण । भासुर-करवालई करि करेवि बाणारहत्थ ओत्थरिय बे वि । बिणि वि बलइंता बे वि सूर दोणि वि सतेय नं चंद-सूर । दोण्णि वि नं भिडिय सुराऽसुरिंद दोण्णि वि सुधीर नावइ मइंद । दोण्णि वि ने गिरि-वर गरुय-देह पवणाहय दोणि वि नाइ मेह । १० बेण्णि वि वण-कुंजर नाइ मत्त नं वसह दो वि बलवंत-गत्त । दोण्णि वि वग्गंति वलंति बे वि बेणि वि ओसरहिं पहारु देवि । [१९] १४. ला० मन्नाविउ [२०] ३. पु० धणुस ठिय सर ४. पु० छिदंतु न सिद्ध तेहिं ६. पु० तें सोलह ७. ला० पेच्छा ९. पु० ते चम्म...विहल ११. ला० पजलंतओ १२. ला. समण-पसत्थिं [२१] २. ला. परिसुवइ ५. ला० जुज्झहं पडिबंधु ७. ला0 बेण्णि वि बलवंता ८. ला० सुवीर ११. पु० पहार Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. २१] विलासवईकहा १२५ दोण्णि वि आयासह उल्ललंति दोण्णि वि धरणीयले पुणु मिलंति । दोण्णि वि ओहहहिं पुणु अभिट्टहिं अवरोप्परु जोवंति छलु । दोहिं पि समत्थेहिं सुगुणिय-सत्थेहिं विजिउ राम-रावणहं बलु ॥२१॥ [३२] तुट्टइ करवालई जांव दो वि गय गरुय लेवि जुज्झहिं पुणो वि । गय भामेवि घल्लिउ घाउ तेण कुमरस्स सीसि रोसारुणेण । तो घोर-घाय-घुम्मिय-सरीरु मुच्छा-विहलंघलु पडिउ धीरु । एत्तहे वि अणंगरइ-बलेण किउ बहलउ कलयलु केवलेण । ५ अह सो खणेण चेयण लहेवि उहिउ कुमारु गय गरुय लेवि । रोसेण तस्स सिरि दिन्नु घाउ मुच्छाविउ निवडिउ खयर-राउ । एत्त हे तहेव कुमरह बलेण हउ विजय-तूरु कय-कलयलेण । ता रोल निवारेवि सत्त-सारु गउ तस्स सयासि सणंकुमारु । आसासिउ सीयल-जल-कणेहिं विज्जिउ वत्थंत समीरणेहिं । १० सो वि हु कहं वि चेयण लहेवि पुणु बाहु-जुज्झु लग्गउ करेवि । बंधिहिं उबंधिहिं करण-पबंधिहि अवरोप्परु सोहंति किह । जुझंत पयंडे हिं निय-भुय-दंडेहिं भरहाहिव-बाहुबलि जिह ॥२२॥ निब्भर-भुय-पंजर-भीडियाण दढ-मुद्वि-पहारेहिं पीडियाण । वण-विवरप्फुट्ट-रुहिरोल्लियाण मुसुमूरिय-कुंडल-मउडयाण । दोण्ह वि गंधव्व-सुरासुरेहि न मुणिउ विसेसु विज्जाहरेहिं । तो निठुर-कुमर-पहार-भिन्नु न य उहइ खयराहिवु निसण्णु । ५ हक्कारिउ कुमरें रण-निमित्तु सो जंपइ एउ विसण्ण-चित्तु । भो सुपुरिस समरें नत्थि कज्जु ता लेहि सयलु महुं तणउं रज्जु । मई हारिउ संपइ तुज्झ पासिता मइं जाएवउं वण-निवासि । कायव्वु धम्मु जि अन्नलोइ महु एरिसु परिभवु नाहिं होइ । [२१] १३. ला० जोयंति १४. पु० रावणह [२२] २. पु० भामिवि, ला० सीसे रोसाउलेण । ३. पु. वीरु । ७. पु० यहेय...तर ८. पु० तो रोलु...सयासे ९. ला० विजिउ ११. ला० उवबंधेहि [२३] १. पु० पंजर -पीडियाण, ला• दिढ २. ला० रुहिरुल्लियाण मुसुमूरिउ ८. पु० जे... परिभमु Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ तो भइ कुमरु भो खयर - राय १० ता भुंजहि जाए वि नियय-रज्जु साहारणकविरया ता संपइ उहि सेन्तु अहिहि सुहडेहिं भिडंतेहिं रणे पविसंतेहि [२४] जंपs अगरs अत्थि एउ मई इह समरंगणे निज्जिएण ता जीवियन्बु एह सफल होइ परिहव परिमलिय-पयावयस्स ५ इय जंपेवि चल्लिउ साहिमाणु जय सहु कुमारह ताव घुठु गंभीरु वज्जिउ विजय-तूरु एत वि अगरई-भडाण सव्वहं वि अभय कुमरेण दिन्नु १० भड पाडेवि जे रणि गहिय के वि वसुभूइ-मुह-परिवार सारु अजियबल - विज्ज-सज्जिउ विसिद्ध उद्दंड- सुपंडर-पुंडरीउ चलिय-चामीयर - चमर-दंड ५ विज्जाहर - ललिय- विलासिणीहिं तूराव - बहिरिय - गयण मग्गु परंतु गयण मंडल विसालि [ ८. २५ तुहुं अज्जपभिइ महुं जे भाय । निय - भारियाए पर मज्झ कज्जु । सुपुरिस सोउ निवारियर | जिप्पड़ अह वा हारियड़ ||२३|| वण-कम्मकराविय भड संथाविय मयहं अग्गि- सकारु किउ | विज्जाहर तोसिवि पुणु आसासिवि तिण्णि दिवस तत्थेव ठिउ ||२४|| [२५] arrag तह वि संसार-छेउ । किं किज्जइ अज्ज वि जीविएण । जाव य न मलिज्जइ माणु लोइ । मय- सरिसु होइ जीविउ नरस्स । न पडिच्छिउ रज्जु वि दिज्जमाणु । पुणु कुसुम-वरि सुरवरेहि बुट्छु । मिलियउ विज्जाहर - सुहड- पूरु । देसामि य अभउ भणतयाण । तो सामिसाल सो च्चिय पवन्नु । कुमरह वयणेण विमुक् ते वि । आरुrिs विमाणि सणकुमारु । कंचण-मणि- सीहासणि निविट्ठ | उद्दाम सद- बंदिण - सुगीउ । विसिय असेस - भड-कमल-संडु गाइज्जमाणु कल - भासिणीहिं । अकलिय-विज्जाहर-बल- समग्गु । चल्लिउ रहनेउरचक्कवालि । [२३] १० पु० जाइवि निवय रज्जु [२४] ३. पु० मल्लिज्जइ माणु लोए ४. ला ला० पयन्तु १० ला० रणे १२. ला० तोसवि तिन्नि दिवसं [२५] १. पु० - परिवारु... विमाणे ३. ला०- पंडुरीउ ६. ला० अवकल्यि परिमिलिय ५ ला० जंपिवि.... साहिनाणु ९. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. २५] विलासवईकहा धावंति तुरंगम खवखवंत मय-मत्त महा-गय गुलगुलंत । विविहाउह-कर दारिय-सरीर वच्चंति वलंत खलंत वीर । १० अणुकूल-पवण-परिपेल्लियाइं गयणेण विमाणइं चल्लियाई । विज्जाहर वासई विविह-विलासई अवलोयंतु कुमार-वरु । वेगेण पहुत्तउ बल-संजुत्तउ पेच्छइ रहनेउर-नयरु ॥२५॥ [२६] जहिं नाणा-मणि-रयणेहि समेउ पायारु कणय-निम्मिउ सतेउ । जहिं उज्जल-रयण-विनिम्मियाई सुर-लोय सरिच्छई हम्मियाई । बहु-भंड-भरिय-संपय-समग्ग रायति मणोहर हट्ट-मग्ग । रम्मई विसाल-धवलुज्जलाई गयणग्ग-विलग्गई देउलाई । ५ फल-कुसुम-समिद्धई काणणाई सोहंति नाइ नंदणवणाई । जहि एक्कई चेव जलासयाई सर-वावि-कूव न य माणुसाई । दोणि य हवंति सुमणोहराई आरामई कामिणि-विलसियाई । जहिं बहु-सुय तिण्णि वि संभवंति कोडुंबि-सालि-पंडिय न भंति । तिण्णि य कविसीसेहि संकुलाइं पायार-विहारई गिरितडाइं । १० चत्तारि वि जत्थ सवाणियाई तंबोल-हट्ट-सरि-नरमुहाई। सुसराई जत्थ पंच वि सहति घरचीहि-गीय-वर धणु वहति । तं पउर-पयाउलु हरि-कमलाउलु रायहंस-दिय-गण-पउरु । सावएहिं पवन्नउं धरिय-सुवण्णउं सर-वर-काणण-समु नयरु॥२६॥ [२०] तं पुरु पेच्छेवि लच्छिहि भरियउ गयणह सपरिवारु अवयरियउ । एत्थंतरे पुरलोय विणिग्गय कुमरह सम्मुह सव्वि समागय । [२५] ८. पु० धावंतु. ला० गुलुगुलिंत १०. पु० अणकूल [२६] ३. ला०-समग्गु ४. पु० विलास-धवलुज्जलाई ६. पु० सरि-वावि-क्य ८. पु. न भवंति १२ पु० गण -पवरु । [२५] २. ला• कुमर-सम्मुह, पु. सव्वे Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ साहारणकाविरइया [८. २८ नाणाविह-नेवत्थ-मणोहर __ कुंकुम-रस-फसलिय-वच्छत्थल ५ के वि कुसुम करयलेहि करेविणु के वि कुंकुम-मयमय-कपूर के वि विसिट्ठ-इट-तंबोलई के वि कडय-कुंडल-केउरई मणि-माणिक्कई रयण-विसेसई १० कुमरेण वि य दाण-सम्माणेहि मणि-कुंडल-किरीड-मुह-सेहर । वर-तंबोल-भरिय-गंडस्थल । वत्थ पसत्थ हत्थि गिण्हेविणु । अन्ने विमल-मुत्ताहल-हारई । अन्ने विसाल-थाल-कच्चोलइं । अन्ने तुरय-गय वाहण-सारई । कय-पणाम उवणेति असेसई । अहिणं दिय वयणेहिं पहाणेहिं । तो सव्वेहिं लोएहिं तहिं सपमोएहिं सरिसु पविटु कुमारु किह । किय-जय-जय-सद्देहिं सुरवरिंदेहिं अमरावइहिं सुरिंदु जिह ॥२७॥ [२८] आवंतु मुणेवि नव-सामिसालु भूसिउ रहनेउरचक्कवालु । तहिं ठाणे ठाणे किय तोरणाई सुविचित्तई जण-मण चोरणाई । वर-वत्थेहि जण-मण-जणिय-मोह नाणाविह विरइय हट्ट-सोह । महरिह-मणि-रयणेहि मंडियाओ धवल-हरेहिं उब्भिय गुड्डियाओ। मंदिरह दुवारेहिं निम्मियाई सचउक्कई गोमय मंडलाइं । आसत्थरुय-तरु-पल्लवेहि किय वंदण-मालउ गोउरेहिं । वर-वारि-भरिय पउमप्पिहाण तह पुण्ण-कलस ठाविय पहाण । जं नयरि पविट्ठउ खयर-राउ पुर-नारिहि हल्लप्फलउ जाउ । चुंपालय-जाल-गवक्खएसु रत्था-मुह-घर-हम्मिय तलेसु । १० दीति मुहाइं निरंतराई नावइ थल कमलई वियसियाइं । विज्जाहर-सुंदरि खुहिय-पुरंदरि कुमर-रूव-दसण-मणिय । निन्भर-उक्कंठिय निच्चल संठिय किय-तिरिच्छ-थिर लोयणिय ॥२८॥ [२५] ३. पु० नेवच्छ १०. पु० पहाणिहिं । १२. ला० सद्दहिं, पु० सहें [२०] १. पु० आवंतु सुणिवि २. पु० तेहिं ठाणे...३. लाल-जणिय-खोह ४. पु० मंडियाठ... गुड्डियाउ । ६. ला• बंदरवालउ गोयरेहिं ७. ला पउमप्पहाण तहिं पुन्नकलस ९. पु० चौपालय...रच्छामुह Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.३०] विलासवईकहा १२९ सिंजंत-मणि-नेउरा का वि वेगेण धावेइ किर कुमरु जोवेइ मई जेण। अन्ना वि पुण का वि हिंदोलयारूढ जि कुमरु पेच्छेइ मिसु लेवि अइ मूढ । अन्ना वि कंची-कलावम्मि पक्खुलइ कुमरस्स जिं दिट्ठि मह संमुहा वलइ । मरगय सुवाणेसु लहलहइ पुणु अन्न विज्जु व्व घण-मग्गे तवणीय-सम-वण्ण। धावंति क वि भरिय-नीसास-पवणेण वाये व्व बाणेण नं भिन्न मयणेण । तुट्टेहिं हारेहिं अन्नाओ दीसंति धावंति तह चेव मोत्तिएहिं वरिसंति । पासेय-सलिलेण पवहंतिया काइ मयरद्धएं भिन्न वारुण-सरे नाइ । तोरणह साहाए अन्ना पलोवेइ तो सालिहंजियहिं लीला विलंबेइ । अन्ना य घर-देहली-निहिय-निय-पाय अवलोयए कुमरु ओन्नडिय वर-काय। १० वेगेण उच्छु? पहिरणउं धारंति धावेइ कहिं कहिं कुमारो त्ति जंपंति । अन्ना वि उल्लवइ गरुएण सट्टेण मह वयणु आयण्णए कुमरु किर जेण । अन्ना वि पुणु का वि सहियाई सहुँ हसइ कुमरस्स अवलोयणं कह वि अहिलसइ । इय सयल-पुरंघिहिं सहियण-खंधिहिं ललिय-निवेसिय-बाहियहिं । चरणंगुलि-अंतिहिं धरणि-लिहंतिहिं दिडु कुमरु अणुराइयहिं ॥२९॥ कुमरेण पलोइय तत्थ बाल संजमइ सुबद्ध वि का वि बाल । लायण्ण-नीर-परिपुण्ण का वि दंसेइ नाहिं नं मयण-चावि । अन्ना पुण पयडइ पंगुरंति भुय-तल-रोसाणिय-कणय-कंति । संठवइ का वि थण-वटु थोरु सुर-कुंभि-कुंभ-विब्भमहं चोरु । ५ अन्ना रोमावलि-कसिण-भंगु दंसइ मयरद्धय-निहि-भुयंगु । परिमुसइ का वि पुणु अहर-देसु जहि वसइ कामु किर निरवसेसु । निवडेइ का वि पहिरणय-गंठि ऊससिउ मयणु नं वलइ कंठि । [२९] १. ला०-नेउर, पु० मइ २. पु० जें कुमरु ३. पु. जं दिट्ठि ४. ला० मरगय. विमाणेसु ५. पु० वाय व्व माणेण जं भिन्न-६. पु० धायंति ९. पु० उन्नडिय १०. पु० उच्छुट्ट, ला० परिहरणइ धारिंति १३. ला० सयल-पुरंधेहिं सहियण-खंधेहिं १४ ला० पु० अंतेहिं...लिहंतेहिं [३०] १. ला० संजमइ सुवइ वि ३. पु०पुण वा पयडइ पंगुवंति, ला. भुय-तलु ४. ला० संथुणइ का वि ७. ला० परिहणय-गंठि १७ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० साहारणकविरइया [८.३. अन्ना वि कण्णु कंडुयइ मुद्ध मयणेण नाइ तहिं बाण छुद्ध । क वि कुमरु निएविणु गुण-विसाल तक्खणि परिचुंबइ नियय-बालु। १० क वि करइ सहिहिं सहुं अलिय-हासु एसो च्चिय मयरद्धय-विलासु । चालियउ चलंतइ वलिउ वलंतइ कोय वि कंठ तहा वलिउ । जिह कुमरु नियंतिहिं कुवलय-नेत्तिहि वेणि-दंड थण-हरि मिलिउ ॥३०॥ तो कुमरु पलोएवि विम्हियाओ अवरोप्परु जंपहिं महिलियाो । सहि रूचे होइ अणंगु एहु नं नं कहिं पयडउ तासु देहु । सुंदरि ए पुरंदरु न वरि होइ नं नं बहु-लोयण-भरिउ सो इ। ता एहु वयंसिए होइ रुडु नं नं कवाल-सप्पेहिं रउदु । ५ ता एहु नारायणु भुवण-वीरु नं सो अलि-कज्जल-सम-सरोरु । ता फुडउं दिणेसह अणुहरेइ नं नं किं झंखहि सो दहेइ । ता जाणिउ हल सहि एहु मयंकु नं नं सो मुद्धि न निक्कलंकु । ता सहि एहु होसइ देउ कोइ नं नं सो अणि मिस-नयणु होइ । इय उवम कुमारह न य लहंति अन्नाओ वि अन्नह परिकहति । १० सा धन्न सलक्खणि पुण्णमंति जा एयह कुमरह हूय पत्ति । तवु कवणु विलासवईए चिण्णु भत्तारु जेण तहे एहु दिन्नु । अम्हे हिं सुकिउ किय किं पि आसि जे पाविउ एहु पहु गुणहं रासि । जो सुद्ध सहावह जणह अपावहं पिय-वयंसि वंचणु करइ । तसु आवइ आवइ सोक्खु न पावइ जिह संपत्तु अणंगरइ ॥३१॥ __ [३२] क वि कहइ पासे जो सन्निविठु सहि कुमर-मित्तु वसुभूई दिछु । नाणाविह-आउह भिन्न-गत्तु एहु वच्चइ पिय-सहि बंभयन्तु । [३०] १०. पु० मयरद्वय -निवासु । ११. पु० कंतु तहा १२. ला० नियंतहिं, पु० नेत्तेहिं...थण-हरे [३१] १. पु० विभियाओ २. ला० रूविं ३. ला० पुरंदरु तवरु... ४. पु० कवाल सथिहिं ५. पु० नारायण ६. पु० झंखदि ८. ला० अणमिस- ९. ला०भन्नहं १२. पु० सुहिउ किउ, ला० जं पाविउ १३. ला० सहावह...अपावह....वयंसे १४. पु सपछु Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. ३३] विलासवईकहा १३१ एहु समरसेणु एहु वाउवेउ पवणगइ एहु सहि अमिय-तेउ । एहु पुणु मयंगु सहि वाउमिन्तु पिंगलगंधारु सुधीर-चित्तु । ५ देवोसहु पिय-सहि एहु जाइ , एक्कक्कहं परिवारो वि माइ । एहु कंचणदाहु परिग्गहेण सहि चंडसीहु हउ समरि जेण । एहु कालजीहु एहु पुणु असोउ एहु सयलु अणंगरइस्स लोउ । अच्छरिउ पेच्छ इत्थ ए मयच्छि तक्खणेण परव्वस हय लच्छि । सा भणइ अउण्णह घरे न ठाइ पुन्नेहि सयंवर लच्छि जाइ । १० इय नायरियहिं वणिज्जमाणु संपत्तु राय-मंदिरि पहाणु । तं कणय-विणिम्मिउ बहुविह-भूसिउ नाणा-रयणुज्जोइयउ । उत्तुगु मुसोहणु तिहुयण-मोहणु मंदर-सरिसु पलोइयउ ॥३२॥ मिलिय बहल-कालायरु-धूमेण - छाइउ नाइ मेह-संदोहेण । मोत्तिय-हार-सरीहि सुतारेहि वरिसइ नाइ विमल-जल-धारेहिं । वज्जिय-मुरव-महुर-निग्घोसेहिं गज्जइ नाइ जणिय-सिहि-तोसेहिं । जच्च-कणय-राय जं परिसक्कहिं तं तर्हि नावइ विज्जु झलक्कर्हि । ५ धवल-संख-चामरेहि फुरंतिहिं सोहइ नाइ बलाया-पंतिहिं । पंच-वण्ण-मणि-किरणेहि नावइ सुरवइ-धणु य गयणे उठावइ । मरगय-मणि कोट्टिमेहि सिलिसई हरिया सद्दल तहि घर दीसइ । पउम-राय-मणि-खंडई सच्छई दीसहिं इंदगोव-सारिच्छई। वलिय-विलासिणी-नेउर-रावेहि सहइ नाइ ददुरहं पलावेहि। १० निम्मल-फलिह-सिला-घडियंतई दीसहि नाइ जलाइं वहंतई । इय तत्थ अमोल्लइ पाउस-तुल्लइ कुमरु पविट्ठउ निव-भवणे । देवेहिं उम्माहिउ सुहड-समाहिउ पुणु पहुत्तु उज्जाण-वणे ॥३३॥ [३२] ४. ला० गिलु ५. ला. एवके वकह १०. ला० राय-मंदिरु ११. ला० पु० भूमिउ, ला० रयणुज्जोवियं । १२. पु० पलोइयतु । [३३] ३. ला० जणियहिं सिहि - ४ ला परिसक्केहिं . . झलक्केहिं : ६. पु०-किरिणिहिं ७. पु० कोटिमहिं सीलीराई...सदल ११. पु० अमुललइ पाउसु १२ पु० देविहि Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ साहारणकइघिरइया अह तहिं उज्जाणि मणोहरम्मि बहु-भेय-पुप्फ-फल-पूरियम्मि । सहयार-मले मणहरे निविट्ट सा पिय विलासवइ तेण दिट्ट । बहु-दिवस-विरह-परिसोसियंगि धारंति य वयणु करग्ग-संगि । परिहरिय-विलास पण?-गव्व पिय-संगमास-थिर-जीविय व्य । ६ मा पेच्छवि विहसिउ ईसि तेण अह सा वि विलक्खिय निय-मणेण । रोवंति य अब्भुटुंति देवि आसासिय कुमरें धीर देवि । अह परम-रूव-विम्हिय-मणेहि सा पणमिय विज्जाहर-भडेहिं । निय-नाम गोत्त-कित्तणु करंत पणमिय असेस तहे विणयवंत । तीए वि ताण आसोस दिन्न पहसरिस पसाय लोप १० तो देविसरिम सुहडे हिं जुत्तु सो राय-भवणि पुणरवि पहुत्तु । निय-निय-आवासे हिं दिन्न-पएसेहिं सुहड-समृहु विसज्जियउ । पुणु विविह-विहाणेहि सुंदर-ण्हाणेहिं देवि-सहिउ सो मज्जियउ ॥३४॥ देव-गुरु-पूयणं काउ परिपुण्णयं रयण-कणगाइ-दाणं तओ दिन्नयं । भोयणस्थाणि गउ देवि-परिवारिओ सुहंड-वग्गो पसाएण हकारिओ । तत्थ मज्झम्मि मणि-नयण-उच्चासणे कुमरु उवविट्ठउ कणय-सीहासणे । वाम-पासम्मि देवी वि बइसारिया दिव्य-थालाई उवणेति भंडारिया । ५ कणय-मणि-रूप्प-कच्चोल-संपुण्णयं कणय-थालं कुमारस्स वित्थिण्णयं । दक्ख-खज्जूर-खुडुहुडिय उत्तत्तिया दिन्न वरिसोल नव-राय-संजुत्तिया। तं तु भुजेवि किउ हत्थ-पक्खालणं सिंधु-लवणेण सह दिज्जए सालणं। अंब-टीटी-करीराई करवंदर्य विल्लिया कक्कडं गज्जरं अद्दयं । लोणरुक्ख व जिमंति कक्कोडयं कुमर गिरिवइय अंबाड-निंबाडयं । १. वंस आमलय वाइंगणं पिट्टयं विविह संधाणयं तस्स परिविट्ठयं । [३४] २. पु० निवट्ठ ३. ला० करग्गमम्मि । ५. ला० विहडिउ [३५] ३. पु० उन्भासणे, ला० उवविठ्ठओ ४. ला०उवणति ६. ला० तवराय संजुत्तिया । ७. ला० तं पउंजेवि ८. ला० अवं टीटो करीराई, पु० अचिटि दू कोराई ९. ला० पु. जीवंति कक्कोडयं, पु० कुरिगिरि वइय ... १०. पु. वायंगणं पेटूठयं Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.३७] विलासवई कहा १३३ पुणु गोहुम-सालिहिं मुग्गहं दालिहिं पिट्ठेर्हि सज्जिय रस- घडिय । तलिय तिविह पप्पड पडिय ||३५|| कालायर-बद्धा हिंगु-सुगंधा [1] खंड- आपुरिय आपुरिय गुल मिट्टयं तलिय सपलह चणउर- वाईंगणं तिंडिस कच्चरं अंब अंबोइया चमलया चुंचु चणसाइ चलाइया ५ गोहुमा चणय वल्ला य तह संगरो वडिय पट्टविडिया बेरवडि निंबिया कंचणारं कराई टक्कारिया तलिय पडओल कंकोड कारेल्लिया अदवड मिरियवड कंजिए भिन्नया १० वेसवारेहिं कयवंदि तह सूरणं लवणं- ऽबिल-साय धूविय वरचारई बहु-पलेहेहि तह भुजियं पिद्वयं । कासमदेण संसिद्धयं रिंगणं । दिन्न तुंडीरिया खंड - संजोइया । वत्थुलो लोणओ सरिसवी राइया । बहु पयारेहिं निम्मविउ पासुंगरो । हरडइ दाडिमी अंबर संरद्धिया । फोग्ग सोहंजणा दिन्न वधारिया । वंग कालिंग कक्कडिय दिन्नेल्लिया । खीरवड घोलवड दुवड दिन्नया । टिंट करवंद समोसियं पूरणं । कडुय कसायई तिक्ख-महुर-रस-मिट्ठई । दव्वेहि सारई पंजणाई परिविट्ठई || ३६ || [३७] पुणु सुगंध धवलो सुउन्हओ नील- रयण-सम माण वद्धणा नासपेठ मंजिद्र-वण्णयं तो पसाय देविणु बहुत्तया ५ पुणु पति धवलत्थ- -मंडिया चाउ-जाय मुह पाय मंडिया सरस - सेव सहिया संहालिया वर मुरुक्क वडिया मुरुकिया कलम - कूरु कुमरस्स दिन्नओ । दिन्न मुग्ग बल- माण- वद्धणा । घिउ सुतत्तु कुमरस्स दिन्नयं । कुमर - मुह सव्वे पभुत्तया । घेउरा वि बहु-भरिय खंडिया | (अ) सोयवट्टि फीणीओ मंडिया । सन्न चुइय कासार मीलिया । कोक्करि सलप्पसिय दुक्किया । [३५] ११. ला० गोहुम-साले हिं [३६] १. पु० भुंजिय पेट्ठयं २. ला० चणकुर वाइगणं ४. ला० धमलया ( ? ), पु० चणसायबलाइया ५० चणयवन्ना ६० पु० अंवर सरंबिया ७० ला० सोहंजणो ८. ला० कंवकोड कारेल्लया, १०. पु० विंठ करवंद [३७] १. पु० सुउण्हर त्रमल - क्रूर... दिन्नउ । ३. ला० घिउ सुत्ततु ४. पु० देविणु बट्ट - ... सः वे य तुत्तया । ५. पु० धवलच्छ - मंडिया ६. पु० मुहु- पाय... फोणीड ७. पु० सरसासवसहिया वुइय कासार सीलिया । ला० सुहालिया तया... Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ साहारणकइविरइया [८३८ दुद्धवडय तह लड्डु लावणा सीह-केसरा मोत्तिया घणा । १० खंड-खज्जु अट्ठारसं इमं तं कमेण परिविट्ठ उत्तमं । सिहरिणि वर-घोलई पाणई बहुलई भुत्तुत्तरे अइ-मिट्ठउं । सहुं मुंठिहि मिरिएहि खंडेहि तरिएहिं कढिउ दुद्ध परिविट्ठउं ॥३७॥ देवी य वि जं पारणय-जुत्तु तं भोयणु किंचि वि तीए भुत्तु । वर-चास-सुयंधेहिं सीयलेहिं आयमिउ चोक्ख-करवय-जलेहिं । तो गहियई हत्थुन्चट्टणाई . दुग्गंध-नेह-दल-वट्टणाई । सव्वाह वि लोयहं पढमु देवि उद्विउ अप्पणु तंबोलु लेवि । ५ अत्थाणे मणोहरे सन्निविठ्ठ जोइसिएहिं लग्गु विसिठ्ठ सिद्छु । तो उभय-सेणि-विज्जाहरेहिं अजियबल-विज्ज-आणाधरेहिं । अहिसित्तु रज्जे तहिं सुह-विसालि पुर-वरे रहनेउरचक्कवालि । अहिसित्त विलासवई वि देवि वसुभूइ मंति तस्स वि ठवेवि । तो नयर-ववत्थउ ठावियाउ सयल वि पयाउ संठावियाउ । १० साहियई असेसई मंडलाइ निन्जिणियई पडिवक्खहं बलाई । विजाहर-राएहिं गुरु-अणुराएहिं विविह कन्न परिणावियउ । बज्जिय-दुह-कारणु पिय-साहारणु चक्कवट्टि-पउ पावियउ ॥३८॥ ॥ इइ विलासवई-कहाए अणंगरइ विजय-रज्जाहिसेय-संधी अट्ठमी समत्ता ॥ [३५] ९. पु० दुइवट्टय, ला० सिंहकेसरा मोइया १२. पु० कढिग दुधु [३८] ६. पु० विज्जाहरेण ७. ला० रज्जु तहिं सुहु ९. पु. भयरववत्थओ ठावियाओ... पयाभो संठावियाओ । ११. पु० गुरु-अणुवाएहिं । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-९ विणय-पणय-सामंत-चक्कहो तत्थ जेंव सुरलोय-सक्कहो । विसय-पंचविह-सोक्ख-सारहो कालु वच्चइ सणं कुमारहो ॥ परिवड्ढिय-पउर-पयाणुराउ पुहईए पउर-पसरिय-पयाउ । विज्जा-विन्नाण-कला-पसिद्ध बल-भूमि-कोस-वाहण-समिद्ध । ५ सुह-पुन्न-सयल-संपडिय-कज्जु निक्कंटउ जांच करेइ रज्जु । ता अन्नहिं दिवसि नराहिवस्स अंतेउर-सुह-आसण-ठियस्स । वसुभूइ-विलासवइ-जुयस्स मुह-कमल निहिय-लोयण-जुयस्स । सहम त्ति वेत्तलय-कलिय-पाणि कोइल-कुल-मंजु-ललिय-वाणि । सुपोहर पाउस-सुंदरि ब सुह-चंदण-मलय-वणहं सिरि ब्व । १० जिह जलहि-वेल-मोतिय-समग्ग वामं संनिविट्ठ सकोस खग्ग । कर-कमल-मउलि अंजिलि करेवि आढत्त नराहिवु विण्णवेवि । विज्जाहर-नरवइ-जणिय-सेव खणमेत्तु देह अवहाणु देव । को वि रूव लावण्ण-धारो जोव्वणत्थु नहयर-कुमारओ । भवण-दार-देसम्मि अच्छइ देव-दंसण-सुहाई इच्छइ ॥१॥ जइ तत्थ देउ आएमु देइ ता सो पएमु सामिय लहेइ । चिंतइ नरिंदु को होसइ त्ति जंपिय पडिहारि पवेसहि ति । धाविय पडिडारि स तुरिय-वेय पुणु आगय विज्जाहर-समेय । राएण दिछ नहयर-कुमारु वच्छत्थल-घोलिर-दिव्य-हारु । ५ उवसप्पेवि किउ पणिवाउ तेण बहुमाणिउ सो वि नराहिवेण । उवविद्उ पुच्छिउ कुसल-वत्त भणिउ य कहं तह तुम्हे पत्त । 1] १. ला० जेव, पु० सुरलोए ३. पु. पयाणुराओ ..पयाओ। ४. पु० वसु-भूमि ५. ला० सुई-पुन्न-पु०सयल-संपडिअ ७. पु. विलासवई-वयस्स, ला० कमल - विहिय ८. पु०. मंजुल-ललिय ९. पु० पाओस-सुंदरि ११ ला० आढत्तु १३. ला. धारउ । [२] २ पु० पवेसह ६. पु० पुच्छिय ...भणिओ, लाल कह तह Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकहविरइया साहिज्जउ केण व कारणेण तेणावि भणिय विणोणएण । अवहाणु देवि खणु निमुणि देव पिउ किं पि कहिज्जइ तुम्ह चेव । इह उत्तर-सेढिहि मणभिरामु पुरु निवसइ किन्नर-गीय नामु । १० तं पालइ विज्जाहरहं नाहु नामेण पसिद्धउ वज्जबाहु । तस्स सयल-उवरोह-सारिया चित्तलेह नामेण भारिया । ताण देव हउं हियय-नंदणो अनिलवेउ नामेण नंदणो ॥२॥ ध्या वि हरिय-रइ-रूप-रेह नीसेस-कलालय चंदलेह । सा पुण कीलंति सुहेण तत्थ संजाय देव नव-जोवणत्थ । तो कस्स एह किर दिज्जइ त्ति तारण निवेसिउ नियय-चित्ति । भावंतह तायह निय-मईए अणुरूवु कंतु न य लद्ध तीए । ५ तो ताउ विसण्णउ निय-मणेण एरिसु कन्नयहं सरूवु जेण । जाया वि हु कन्नय दुक्खु देइ पद्धति चिंत बहुविह करेइ । दिजंति कुणइ बहुविह वियक्क जणयाहं धूयाहिं न का वि जक्क(झंखा)। अणुवरिस पवडिय कन्नयाओ जणयहं मणु तडु जिह निन्नयाओ । उव्वेयवंति निवाडयंति जहि काले पउहर उन्नमंति । अणुरूवु कंतु अह होइ ताण ता जइ पर-सोक्खु जणतयाण । एव जाव नरवइ विसण्णओ कालु नेइ निय-घरे निसण्णओ । ताव देव चउणाण-धारणो पत्तु एक्कु मुणि विज्ज-चारणो ॥३॥ जं मुणिवरु पत्तउ नाण-रासि तं नरवइ चल्लिउ तस्स पासि । अंतेउर-नायर-लोय-जुत्तु उज्जाणे मणोहरे तहिं पहुत्तु । मुणि-पाय नमेविणु विणय-सारु धरणिहि उवविट्ठउ सपरिवारु । आसीस देवि अह मुणिवरेण आढत्तु धम्मु जलहर-सरेण । [२] ७. ला० केण वि, पु० भणिठ १० पु० नामेण य सिद्धउ [३] २. किलति ३. पु० निदिसिउ ७. ला० दिज्जत... वियक्ख जणयह....जक्ख । ८. ..पु० अणुवरिसु, ला• कन्नयाउ अणयह ९ ला० उव्वेयावंति, पु० जहिं...उण्णयति । ११.ला. निसण्णउ १२. पु० एक्क [४] ३. ला० पुणु पाय ४. पु० देवि तहिं मुणि-,ला• कलहंस-सरेण । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९.५] विलासवईकहा ५ भो भव्वहो भव-सायरे अपारे घण-कम्म-नीर-कल्लोल-फारे । उढत-मोह-आवत्त-दुग्गे बहु-दुक्ख-लक्ख-जल-जीव-उग्गे । निवडिय-बहु-जोणि-नई-पवाहे नरयाऽनल-वडवानल-सणाहे । संजोय-विओय-तरंग-भंगे मणुया-ऽमर सुह-मणि-रयण-संगे । विस-विसम-विसय-उल्लसिय-सप्पे विस्थरिय राग-विदुम-कडप्पे । चउगइ-महंत-वेलाउलम्मि कोहाइ-वेत्त-वण-संकुलम्मि । एरिसम्मि संसार-सायरे बहुविहाण दुक्खाण आयरे । उत्तरंति कह निवडिया जिया जाणवत्त-सम-धम्म-वज्जिया ॥४॥ १० च तं विविह-विरइ-कठेहिं घडिउ सम्मत्त-निबिड-बंधेहिं जडिउ । जुत्तउ तव-कूवाखंभएण आऊरिउ नाण-महासिढेण । तं पंच-महव्वय-रयण-सारु उवरि द्विय जिणवर-कण्णधारु । वाहियइ नियम-आवेल्लएहिं चालिज्जइ गुरु-निज्जामएहि । ५ तहिं कम्म-नीरु छिद्देहिं पविठु आलोयणाहिं कीरइ अदिदछु । दस-विहु पच्छित्तु वि मयणु तत्थ नाइज्जइ छिद्द-पवेसु जत्थ । तं भरिउ मिट्ठ-उवसम-जलेण सीलंग-सहस्स-सुसंबलेण । आगारह अववायह पयाई मुच्चंति काले तर्हि नंगराई । जिण-मुणि-साहम्मिय-भत्ति-राउ अणुकूलु निच्चु तहिं वहइ वाउ । १० नक्खत्तेहि वेप्पइ तत्थ कालु सज्झाय-तूरु वज्जइ वमालु । इंदियाई निजिणिवि चोरया मयरके उ-मय-मच्छ-मयरया । परिहरेवि मिच्छत्त पव्वए सिद्धि-वस हि पर तोरु पावए ॥५॥ एहु माणुस-जम्मु वि रयण-दीवु धन्नो च्चिय पावइ को वि जीवु । जो पंच-महव्वय-रयणु लेवि जिण धम्म-पोए तहिं आरूहेवि । [४] ७. ला०-चहु-जोणि[५] ३. ला. उवर ट्ठिय ४. ला० आवल्लएहिं, पु० वालिज्जइ ५. ला. छिद्देहि ६. पु० दसविह, ला• पच्छित्तो, पु० लाइज्जइ छिटु ७. पु०-सहस्स-सुयं वरेण १०. ला० घिप्पइ [६] २. पु. धम्मु-ला-धम्म--पोइ १८ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ साहारणकइविरइया पर-सासण-अवकूले हिं न जाइ सो सिद्धि-कूले सोक्खेण ठाइ । जो पुण न मुणइ रयणह विसेसु न य पोयह पावइ सो किलेसु । ५ अन्नु वि थोवयर-पभावयाइं जे रयणइं लेति अणुव्वयाई । ते सुर-नर-दीवेडिं वीसमेवि पारंपरि सिव-पुरि जंति ते वि । तो खयर-नाह उज्जमु करेह वय-रयणई एत्थु उवज्जिणेह । तहिं पढमु रयणु अभयप्पयाणु निम्मल उं लेह बहु-गुण-पहाणु । एगिदि-दुइंदि-तिइंदियाई चउरिदिय तह पंचिंदियाहं । १० जीवहं दय कीरइ जत्थ लोइ तं पढमु महव्वय-रयणु होइ । एयस्स पभावे विविह भोय दीहाउ य होति नरा निरोय । जस-भायण सयल-सलाहणीय जिय-लोयह वल्लह गुण-विणीय । न य सोगु न भयं न दीणया बंधणं च न य अंग-होणया । न य अरइ न दुगुछियव्ययं जस्स सुद्ध पढमं महव्वयं ॥६॥ दुइयं च महव्वय-रयणु एउ भासिज्जइ सच्चउं सव्विवेउ । कोहेण व माणेणे व भएण माया-लोभेण व हासरण । भणिएण जेण पर-पीड होइ तं अलिय-धयणु मा भणहु लोइ । सच्चयह पभावें दिव्य-रूय आएज्ज-वयण जण-जणिय-पूय । ५ सोहग्ग-कंति-लायण्ण-पुण्ण सुह-गंध वयण सुस्सर सपुण्ण । घरे बाहिरे थोवु पहुत्तु सव्वु धण-धन्न-चउप्पउ पवर-दव्वु । वज्जियइ अदिण्णउं विविह भेउ तइयं पि महव्वय-रयणु एउ । एयस्स पभावे सुंदराओ रिद्धिओ होति लोयहं थिराओ । अवदारेहिं कह वि न परिवडंति हिय-इट्ठ मणोरह संपडंति । १० वय-रयणु चउत्थर्ड एउ होइ वज्जिज्जइ मेहुणु तिविहु लोइ । [६] ३. ला० सिद्ध-कूले ४. पु० रयणहं ...पोयह ५. ला० लिंति ६. ला० दीवहि, पृ० सिवउरि ७. ला० एत्थ ८. ला० पढम, पु० बहुण-पहाणु १०. पु० कीरउ...... पढम ११. ला० पभाविं...हुति १३. ला० नेय सोगो, पु० बद्धणं १४. ला० ने य अरइ [७] १. पु० दुयं च महावय ३. पु० ते अलिय...भणह ४. ला० पभावि, पु० पहावें ६. ला० श्रोवु वहंतु सब्बु, पु० परह दन्छु । ७. पु० महावय ८ ला सुदराउ रीद्धीउ होंति लोयह १०. ला० वज्जिज्जउ'...तिविह Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवई कहा पर-दारु विके विपरिच्चयंति एयस्स पंभावें फल लहंति । माणुस जम्मे सुउदार - भोय ते वसंत वर-सुंदरी-मणे देव-लोइ अच्छर मणोहरा न कया विहृति पिय-विप्पओय । ताण कित्ति farers तिहुयणे । पिहुल- पीण उन्नय पहरा ॥ ७ ॥ ९.९] पंचमउं महव्वय रयणु एउ अहवा धण-धन्न - सुवण्णएसु airs परिमाणु परिग्गहस्स तियसाहिव अहच हवंति देव ५ मंडलिय इब्भ तह सत्यवाह उपभोग भोग-सिरि-रिद्धिमंत पण्णा - विष्णाण - कलाहिराम ते बंधु मित्त-पोसणु करंति होंतिय गुणवंत विणीय पुत्त १० धूयाओ होंति वर- रूववंत ताण रिद्धि न कयावि खुट्टए संपडेइ सइ खाण-पाणयं भयवं मह वल्लह एक्क धूय जोव्वण- भरे वट्टइ चंदलेह इय पंचविकहिय महा-वयाई फल एरिसु जइ विन निम्मलाई अन्नाई वि उत्तर-गुण-चयाई ता भो भो उज्जमु इह करेह ५ एत्यंतरे अवसरु जाणिऊण [९] ६. पु० परम- रूव [4] किज्जइ न परिग्गहु विविह-भेउ । सव्वे विदुपय-उप्पएसु ! पर- लोए वि लब्भइ फलु इमस्स । चक्कर - नराहिव-जणिय-सेव । aaste से वर नयर - नाह । उप्पज्जहिं तिहुयण - नयण- कंत | हिय- इच्छिय- पाविय-सकल- काम । भिच्च लहिं वित्थरंति । देससंस विस्सुय बुद्धि-जुत्त । ताण वि संपज्जहिं पवर-कंत | १३९ धवल-कित्ति तेलोक्कि फुटए । किrs जेहिं परिग्गह पमाणयं ॥ ८ ॥ [3] [७] १२. पु० कयाइ होंति १४. पु० देव- लोए [८] १. ला० परिग्गह ६ ला उपज्जहि ८ ला० करेति १०. ला० हुति वर - ख्यवंत १२. ला जेहि परिगह तेलोक्के विसयल - वयाहियाइँ | सुद्धई पुणु मोक्ख महा - फलाई । पर एएहिं होंतिहिं होति ताई । जह-सत्ति वय-रयणाई लेह | मुनि पुच्छिउ ताएं पणमिऊण | नीसेस- कलालय परम-रूय । ता कस्स घरिणि होसइ कहेह | Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० साहारणकइविरइया [२. १० मुणि जंपइ एत्थ भविस्स-कालि जो पुरि रहनेउरचक्कवालि। निज्जिणेवि अणंगरइ राउ होइ तुह धूयहे होसइ कंतु सो इ। १० अणु-जेट्ठिय तस्स वि घरिणि एह होसई खयराहिव चंदलेह । इय सणेवि मह ताउ तुट्ठउ मुणि नमेवि पट्टणि पविट्ठउ । खेयरेहिं सा वरिय कन्नया तह वि तेण कस्स वि न दिन्नया ॥९॥ [१०] एत्तहे गंधवपुराहिवस्स सिरि-असणिवेग-विज्जाहरस्स । अंगरुहु अत्थि पहु चित्तवेउ अइ-सूरउ विज्जा-बल-समेउ । अह सा मग्गाविय तेण कन्न तारण तहा वि न तस्स दिन्न । तो कन्नरयणे अणुरायवंतु तायह वि गरुय-अमरिसु वस्तु । ५ पच्छन्नु विवज्जिय-खाण-पाणु अच्छइ छिदाई पलोयमाणु। अन्नहिं दिणे हम्मिय-तले निविट्ठ कीलंति तेण सा बाल दिट्ठ । सहियण-मज्झाओ वि झत्ति लेवि सो नठु मलय-गिरि उद्दिसेवि । निज्जति पलोएवि आउलाहिं धाहाविउ तीए वयंसियाहिं । अवि धावह धावह लेह लेह एह सामिणि निज्जइ चंदलेह । १० पावेण अणिवेयह मुएण तोडिय भग्गासेण सल्लिएण । इय सुणेवि संनद्ध-गत्तउ कढिण-चाव-तूणीर जुत्तउ। अमरिसेण हउं पुद्वि लग्गउ सपरिवारु ताओ वि मग्गउ ॥ १० ॥ [११] तो मइं धावंतउ तुरिय-वेउ दुराओ वि दिट्ठउ चित्तवेउ । भणियउ रे रे निल्लज्ज पाव मज्जाय-विवज्जिय छल-सहाव । पुरिसाहम मदिय-सुहड-रेह मह भइणि हरेविणु चंद लेह । मई दिट्ठउ कुपुरिस कत्थ जाहि ता वलहि पाव महु पुरउ ठाहि । ५ एरिसु महु वयणु निसामिऊण मलयह वणे कन्नय मेल्लिऊण । सहस त्ति विविह-आउह-समग्गु मई सरिसु देव जुज्झणहं लग्गु । [९] ८. ला०-काले . ...वाले । ९. ला० निज्जिवि [१०] २. ला० विजाहर-बल. ५. ला० पच्छन्न ६. पु. हम्मिय तलं... सा कन्न दिछ । ७. ला० मज्झाउ वि, पु० वि सत्ति लेवि ११. ला० गत्तओ....जुत्तओ । १२. ला० लग्गओ...... मग्गो । [११] १. पु० वाह पाव मह, ला० पुरओ ५. पु० म ह Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा अह नहयल-मग्गे निरंतरेहिं पढमं पि ताव वरिसिय-सरेहिं । छिंदत परोप्परु बाण-जालु दिव्वत्थेहिं जुज्झिय को वि कालु । पुणु गेण्हेवि खेडय मंडलग्ग रोसारुण-लोयण चे वि लग्ग । १० वंचंतहं अवरोप्परइं घाउ सुर-पेच्छणिज्जु संगामु जाउ । मेंढय व्य खणे दूरि पाविया खणे पुणो वि संमुह पहाविया । कुक्कुड व्व खणि मिलिय महियले खणि पुणो वि उच्छलिय नहयले ॥११॥ [१२] खग्गेहिं दोण्णि वि भिडिय तांव अह ति रोसारुण-लोयणेण जज्जरिय-सीसु तो तेण चेव मुच्छा-विहलंघलु पत्तलम्मि ५ एत्थंतरि भवियव्वय-वसेण उहाविउ परम-दयालुएण ओसहि-वलएण य सित्तु घाउ अह परम-विम्हियाऊरिएण चिंतिउ अचिंत-सामत्थु होइ पुच्छिउ मई भयवं मह कहेह किं निमित्तु तुहुँ एत्थ पत्तउ कवणु कज्जु जं हउं जियाविउ तुट्टई करवालई दो वि जांव । हउ उत्तिमंगे हडं मोग्गरेण । , सोणिउ वमंतु हउं पडिउ देव । निवडिउ रयणायर-तड-जलम्मि । हउं दिटु पडतउ तावसेण । अहिसित्त कमंडलु-पाणिएण । तो तखणे रूढउ सत्थु जाउ । मइं किउ पणामु तस्सायरेण । ' पेच्छहि मणि-मंतोसहिहिं लोइ । किह ओसहि पाविय दिव्य एह । किह व दिट्ठ गयणह पडतउ । परमु एहु उवयारु किह किउ ॥१२॥ [१३] तें भणिउं महंति य एह वत्त संखेविं निसुणसु तह वि मित्त । हउं तामलित्तिपुरि-वसिउ निच्चु ईसाणचंद-नरवइहि भिच्चु । तेण य पहाविउ पेसणेण पडिवन-पुत्त-अन्नेसणेण । सो उचिय-पएसेहिं मइं गविठु भो सुपुरिस तह विन कहिं दिछ । [११] ८. ला. देव्वत्थेहिं १०. पु. वच्चंतहं....पेच्छणिज्ज ११. ला० सिढिय व्व खण दूर १२. पु० खणे [१२] २. पु० अह तं....उत्तमंगे ९. ला० पेच्छह...मंतोसहिहि १०. ला. कहेहिं ११. ला०पत्तओ...पडतओ १२. पु० कज्ज... जिवाविउ [१३] ३. पु० पडिवन्नु ४. पु० न कत्थ दिदछु Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ५ तो जलणि मरंतह मह दयाए जिह भो विणयंधर मा मरेहि वच्चाहि पुत तुहुं मलय-कूलि जल - निहि तडम्मि तहिं गुरु-पहारु एरण जियावेज्ज खणेण १० तें देवय- वयणे एत्थ आउ तावसाण वेसं धरंतउ तुज्झ चैव हउं दंसणट्ठिउ साहारणकविरइया अज्जं पुण कुस समिहा-निमित्त जा तत्थ रुवंति य अ - विसिह हा ताय सुवच्छल नेह-सार हा माए सहिए तुझ धूय ५ हा वीर सुभाउय अनिलवेय हा मुणिवर - साहिय मज्झ नाह किर तुहुं विज्जाहर-राय-राउ हा देवो पियरहो करहु रक्ख हउँ नियय-कुबह हरिय जेण १० इय जाव कुणइ बहुविह पलाव केण हरिय तुहुं मुद्धे पुच्छिया कहिउ तीए खेयरहं कन्नया [१४] [९. १५ एरिस अक्खिउ वण- देवयाए । मह वयणु ताव एत्तिउ करेहि । गिure संजीवणि दिव्य-मूलि । निवडिस्सर विज्जाहर - कुमारु । तुह कज्ज-सिद्धि सो करइ जेण सेवामि जलहि आसा - सहाउ । 1 कंद-मूल-फल- भुंजयंतउ । एत्तियाई दिवसाई संठिउ || १३|| इह मलय-कूल-काणणे पहुत्तु । मई मित्त मनोहर कन्न दिट्ठ | मह दंसणु देहि न एक वार । कि जीवs एत्तिय दूरे हूय । तु भणि कत्थ आणिय सुतेय । तुह घरिणि कीस निज्जइ अणाह । तं मुणिहि वयणु किं अलिउ जाउ । हा हा वणदेव किं उवेक्ख । सो यह जाउ खलयणु खणेण । धीरविय बाल मई मित्त ताव | कासि सि कर्हि देसि अच्छिया । सिरि- सणकुमारस्स दिन्नया || १४ | [१५] मई पुच्छिय कवणु सणकुमारु अहिणव- विज्जाहर राय-राउ तारण सयंवर तस्स जांव [१३] ६. ला० ता ए एत्तिउ १० ला० तं देवय-वयणि [१४] १. ला० कुले - २. पु० रुयंति ... कन्नि ३. पु० देह ४. पु० भाइ ५. पु० सतेय ८. ला० करहि ... वणदेषहो ९. ला० खयहो ११. पु० अस्थिया । [१५] १. ला०- गोयरह ३. ला० जाव... ताव । सा भइ भूमि - गोयरहं सारु । निज्जिवि अणंगरइ सामि जाउ । उं चिंतिय अह अवहरिय तांव । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलासवईकहा इह चित्तवेय-विज्जाहरेण ताउ वि चलिउ सहुं बहु-बलेण । ५ सो अनिलवेय-सुहडेण दिठ्ठ मइं लेवि मलय-वणे इह पविठु । इह धरेवि करेविणु विज्ज-छेउ भयवं वाहुडियउ चित्तवेउ । उवरिं पुण तक्कमि निय-मणेण जुज्झिस्सइ सह मह भाउएण । अवसरि गरुय मह वहइ चित्ति किं तत्थ रणंगणि होसइ ति । एहु ताव महा-बलु चित्तवेउ ता दुक्करु जीवइ अनिल वेउ । १० मई वुत्तिय धोरिय होहि तांव हउं दोण्ह वि सुद्धि लहेमि जांव । इय भणेवि हउं एत्थ पत्तउ तं सि दिठ्ठ गयणह पडंतउ । ताव सिग्घु हउं मित्त धाविउ ओसहिस्स बलई जियाविउ ॥१५॥ ता एत्तहे वत्तहे एउ सारु देक्खालहि मज्झ सणंकुमारु । तो मई विणयंधरु देव वुत्तु भो परम-मित्त तई कियउं जुत्तु । जं तइं जीवाविउ एत्थ कालि पर वइरि मुक्क मई अंतरालि । सो जाएवि जाव पराजिणेमि तो तइं सणंकुमारस्स नेमि । ५ ता तुम्हे ताव एत्तिउ करेह . जाएवि आसासहि चंदलेह । इय भणेवि तस्स मइं किउ पणामु. उप्पइयउ नहयलु खग्गगामु । तो दिलु विमाणारूढु ताउ मई पेच्छिवि तायह तोसु जाउ । आणंद-जलाविल-लोयणेण आलिंगिउ ताए हरिसिएण । अह सो वि वइरि अम्हहं बलेण वेढिउ खयराहिव कलयलेण । १० तं दलु आरोलिउ तेण केंव सीहेण कुरंग-समूहु जेंव । ता मई वि गरुय-अमरिसु बहेवि सुनिसिय करालु करवालु लेवि । उत्तमंगे तमु घाउ दिन्नउ तेण सीस-सिरताणु भिन्नउ । धरणि पडिउ सोणिउ वमंतउ सो कयंत मंदिरि पहुत्तउ ॥ १६ ॥ [१७] किउ कलयलु तो विज्जाहरेहिं घुट्टउ जय-सहु सुरासुरेहिं । अह चित्तवेउ भडु मारिऊण तर्हि मलय-महावणे जाइऊण । [१] १. ला० वलिउ ६. पु० धरेविणु विजछेउ, ला. विजाछेउ ७. पु० महु ८. ला० रणांगणे १०. पु० सुद्ध [१६] १. ला० एयहे .. पु० तो में विणयं. ५ ला० आसासह ६. ला० भणवि ७. ला० पेच्छवि, पु. पुच्छिवि Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ साहारणकइघिरइया ससिलेहा-विणयंधर-समाणि आरो वय तायह वर-विमाणि । तो देव सयल-परिवार-जुत्त वेगेण नियय-पुरवरे पहुत्त । ५ आणंदियाई जण-परियणाई विहियाई महा-बद्धावणाई । तो सामिय विणयंधर सहाउ पय-कमल-मूले हउं तुम्ह आउ । इय वयणु सुणेवि सणंकुमारु न वहेविणु सक्कइ तोस-भारु । जंपइ लहु अक्खहि अनिलवेय विणयंधरु अच्छइ कहिं सुच्छेय । सो भणइ तुम्ह देसणह रेसि पहु अच्छइ सीह-दुवार-देसि । १० राएण भणिउ जं ऊसुय-मणेण आणेह सिग्घु पेच्छामु जेण । अनिलवेउ तो सिग्घु निग्गउ तेण सहिउ सहसा समागउ । दूरओ वि पहुणा नमंतउ दिठु मित्तु वियसंत-नेत्तउ ॥१७॥ अब्भुट्टेवि खयर-सामिएण आलिंगिउ पसरिय बाहुएण । पणमिय विलासवइ तेण देवि वसुभूइहि विणयंजलि रएवि । तो उवविसंतु धरणियलम्मि बइसारिउ सन्निहियासणम्मि । पुणु पुच्छिउ राएं कुसल-वत्त भी मित्त तुम्हे किह एत्थु पत्त । ५ विणयंधर चोज्जु करेइ मज्झ अम्हहं सयासि भागमणु तुज्झ । उप्पाइय-पणइ-पयाणुराउ अवि कुसलेहिं अच्छइ तुम्ह राउ । राणिय अणंगवइ किं करेइ किं अम्ह न अवगुण संभरेइ । तइयह अम्हाण विणिग्गमम्मि किं पच्छइ वित्तउ पुरवरम्मि । किं विहिउ नरिंदे किं तएं वि किह हूयउं अणंगवइ वि देवि । १० का अम्हहं पसरिय वत्त लोइ कि हूउ विलासवई विओइ । सो अम्हई परियणु किं हूउ किं ताएं पेसिउ को वि दउ । तुहं राणइं पेसिउ किं निमित्तु वाहुडियउं रायह केंव वित्तु । इय असेसु परिपुच्छिउ सम सामिएण विणयंधरो इमं । भणइ देव सयलं कहिज्जए खण-मुहुत्तु महु कण्णु दिज्जए ॥ १८॥ [१७] ८. ला० अक्विहि ९. पु० रेसे... सोहयवारदेसे १२. पु० पहु पय नमंतत्र [१८] ४. ला० एत्थ ५. ला० अम्हं ९. ला० नरिंदि Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९.२०] विलासवईकहा तइयहं रयणायर - भरि पवत्ति सोण य देव विसरण -चित्तु चिंतेमि य नियमणे खयरराय सुर्याणि सहुं कुल उवयारएण ५ हा देवि किं एरिसु तुज्झ जुत्तु अहंसणु वरि सुयणेहिं समाणु हा हा विणयंधर जडहि पाव उवयारह पच्चुवयारु दिन्नु हा नरas निरगुण निव्विवेय १० अहवा सो धन्न पुन्नवंतु [13] तुम्हे आरूढेहिं जाणवत्ति । पव्वालिय- लोयणु हउं नियत्तु । पेच्छह कहिं अवसरि भेट्ट जाय । सुकुलुग्गय- बहु-गुण- सारएण । मेलिउ अकाले जं रायउत्तु । न समागमु इय विरसावसाणु | नीसारेवि सुहि पंजल - सहाव । सय-खंडु किं न तुह हियउं भिन्तु । कुमईओ होंति तुह मणि किमेय । जहिं तहिं न दीसह रायउत्तु । नियय-भवणे हउं देव पत्तउ | दिवस लच्छि हुय रवि करालिया ॥ १९ ॥ एवमाइ बहु चिंतयंतउ रयणि कह विदुक्खेण वोलिया [१०] तम्मिय दिवसम्म घरम्मि चेव पडिहारु पहुंत्तु दुइ दिणम्मि सो पुण अगव-भवणे राउ तो किउ पणामु विणओणपण ५ भ य सुहास - सन्निविट्ठ साहिउ महुं अंगु न पवरु आसि पुच्छिउ नरिंदें पुणु वि एंव ह थक्क उलिन गउ देव । हक्कारेवि नीय राउलम्मि । मई दिठु अप्प - परियर - सहाउ । सम्माणु मज्झ किउ आयरेण । विणयंधर कीस न कल्लि दिछु । तें देव न पत्त तुम्ह पासि । सो दुहसील तई कियउ केंव । मई बोल्लिउ far for सो कुमारु जिह पुण विन पावइ तुम्ह बारु । एरिसु मह भासि तं सुणेवि अणंगव सुट्ट देवि । १० तो दोहिं वि तुट्ठेहिं किउ पसाउ हउं देव विसज्जिउ घरह आउ । १४५ सो वि देव तुम्हह परिम्गहु तुम्ह सुद्धि अलहंतु दुक्ख [१९] १. ला०-भरे पु० पवत्ते... जाणवत्ते ३. ला० अवसरे ४ पु० सुयण [२०] १. पु० राउळे २. पु० पत्तु दुइय..., ला० हत्रकारवि ४. पु० विणउनएण सम्माण, ला० सम्माणु मह ८. ला० तह किरन यावर तुम्ह यारु । ११. पु० तुम्हहं १९ सामि-विरह- अक्कत - विग्गहु | दिवस दोन्नि ठिउ तिसिउ भुक्खिउ ॥२०॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [९. २१ एत्तहे अणगंवइ-परियणाउ परिभमिय वत्त तह पुर-जणाउ । किर देवि उवरि पयडिय-वियारु माराविउ राएं सो कुमारु । तं सुणेवि सोय-भर-भार-भग्गु परिवारु तुम्ह रोवणहं लग्गु । हा सामिय भुवणेक्कल्ल-वीरु किह मरणु जीउ कोमल-सरीरु । ५ हा परम-दयालुय हा उदार हा हा कहिं गयउ सणंकुमार । हा हा दक्खिण्ण-विवेय-वास हा सेवय-वल्लह वर-विलास । हा सामिय किं तुहं इह विएसि अहिमाणे पत्तउ मरणरेसि । जहिं गिरिवर-गुरु गय-वर पडंति पडिभड रोसुब्भड भड भिडंति । जहिं हिंडहिं हय निहयासवार वेल्लिति सेल्ल सल्लिय कुमार । १० तुह मरण रणंगणि सहइ तत्थ किं वा कुनरिंद-पुरम्मि एत्थ । तुहं आसि महेलिय-जणे ससंकु ता एवहि किह पाविउ कलंकु । हा एउ नरिदि किउ अजुत्तु अनिरूविउ मारिउ राय-पुत्तु । इय पलाव बहुविह करतउ गुण-गणोहु तुम्हहं सरंतउ । हय-गइंद-रह-जोह-जुत्तउ सयलु देव सेयविय पत्तउ ॥२१॥ ..[२२] तं जाणेवि लोएहिं राउलेहि नरवइ-देवीण भयाउलेहिं । नाणाविह-जुत्ति-घडंतएहिं बोल्लिज्जइ कुंडय-कुंडएहिं । सो सुकुलुप्पन्नउ विणय-जुत्तु उवसंतु सयाणउ सई सुसुत्तु । उत्तम सत्ताहिउ निम्वियारु किह एरिसु कुणइ सणकुमारु । ५ सुललिय महुरक्खर तासु जीह भड-मज्झि पहिल्लिय तासुलीह। थिर-चित्तु अणुब्भड-वेसु आसि ता एउ न वच्चइ तासु पासि । हा कियउ असोहणु नरवरेण जं मारिउ महिलिय-भासिएण । को वि जंपइ बोल्लह किं निमित्त को जाणइ केरिसु परह चित्तु । भाविज्जइ तस्स वि को वि दोमु उप्पन्नउं रायह तेण रोसु । १० सहसक्खि नराहिव जेण हुंति पायालु वि भिन्नउ किर मुणंति । ता म तंति राउलिय किज्जए जं करेइ तं चिय सहिज्जए । इय भणंति तहिं के वि दुट्टया जेहिं तुम्ह गुण नाहि दिट्टया ॥२२॥ [२१] १. ला० परियणाओ ३. पु० रोयणहं ५. ला० इय विएसि ९. ला० चेल्लिति १०. पु. मरणंगणि सहइ [२२] ३. ला० सतुत्तु, पु० ससुन्तु ४. ला० करइ सणं० १०, पु० होति ११. पु. ता मन्नति राठ० Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. २४) विलासवईकहा ९४७ पुणु आसुपासु जोयंतएहि खुसुफुसहि भणिज्जइ वाणिएहि । भो तुम्हेहिं जाणिय का वि वत्त जा अज्ज-कल्लि राउलहं वित्त । पुणु क सिय वण्ण कक्का कहेहि सो जंपइ अरे भाइय सुणेहि । किल मूलायरणिहि भासिएण तिं दोसि मूलायरियएण । ५ पुत्तलउ सो जि सुत्ते सहाउ उत्तारिय किल तमु पंचभाउ । तो अग्गि पडिय किं एउ होइ पर जुत्ताजुत्तु न मुणइ कोइ । किं बोल्लहं जइ बोल्लणहं जाइ पर अवर भत्ति राउलह काइ । ता विरुयउं हुयउं एउ साहु बलिकिउ एहु पट्टण-तणउ लाहु । सुंदरु वि बलिक्किउ तं सुवण्णु जं परिहिउ तोडइ सो जि कण्णु । १० सो वीस-विसो इउ पुरिसु आसि किं अग्घइ छम्मासिय निवासि । जहिं विचारु कोइ वि न किज्जए तेत्थु नयरि किं ववसिज्जए । इय सदुक्खु बोल्लंति वाणिया जेहिं देव गुण तुम्ह जाणिया ॥२३॥ [२४] अह तुह पहु दुक्ख-करालियाउ बोल्लंति य नयर महेलियाउ । हा विरुयउं हल सहि एउ हूउ मारिउ कुमारु जं दिव्व-रूउ । हा सुहउ सलोणउ ख्ववंतु को दीसइ नयरि परिभमंतु । चंदेण व गयणु सुसोमएण एह आसि अलंकिय नयरि तेण। ५ सो आसि अचंचल मिउ सलज्जु किह बहिणि करेसइ एउ कज्जु । महिलिय-वयणेहिं अयाणएण विरुयउं ववहरियउं राणएण । क वि भणइ म रायह दोसु देहु दुच्चरिउ अणंगवईए एहु । सा चेव य सयल-अणत्थ-मूलु हउं बहिणि वियाणउं तीए सीलु। जं सीसि चडाविय राणएण तें गव्विं न गणइ कि पि तेण । १. गरुयइ पइटाविय अइ-पयंड निक्खत्तु नइस्सइ सयल रंड । [२३] २. ला० वत्ता . राउलह चिंता । पु० राउलेहिं वित्त । ३. ला० सो जपए ४. पु० मलायरिणिहि ५ ला० पंचहाउ ६. पु० सुणइ कोइ । ७. पु. पर पर भवर ८. ला० बलकिउ, पु० इइ ९. ला० बलविकउ....जं परहिउ, पु० जि कण्णु । १०. पु० पुरिसो ११. ला० ववसिज्जइ १२. ला० सक्ख [२४] ३. पु. सलूग र ५. प० इह आसि ८. ला० बहिणे ९. पु० तिं गवि Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ साहारणकइविरइया [९. २५ एवमगइ नाइरिय वग्गओ सयलु देव बोल्लणहं लग्गो । महिल-चरिउ महिला विआणए सप्पप्पसिणि सप्पो जि जाणए ॥२४॥ ___ [२५] अन्नहि पुणु दियहि विहाणयम्मि सहस चिय कन्नतेउरम्मि । आरूढ-तुंग-हम्मिय-तलम्नि आकंदु करंति य राउलम्मि । हा धावह धावह मुट्ठ मुट्ठ पियसहि विलासवइ नट्ठ नट्ठ । हा माए न याणउं कत्थ हुय एरिसु धाहावइ धावि-ध्य । ५ तं निमुणेवि ऊसुय देवि-राय तक्खणि विलासवइ-भवणि आय । पुच्छिय अणंगसुंदर कहे हि किह नह धूय किं तुहुं रुएहि । सा जपइ निसुणह मह सहीए दिट्ठउ कुमारु सो कह वि तीए । भत्तारु पवन्नउ मणण सो वि विन्नवणावसरु न लद्ध को वि । तो परम-नेह-सुह-संगएसु दियहेसु देव केसु वि गएमु । १० जण-रवु आयण्णिउ यहु असारु जिह सो मारियउ सणंकुमारु । तं मुणेवि सोएण दुक्खिया तदिणाउ ठिय तिसिय भुक्खिया । माणुस पि न समीवि पेच्छए निय-मणेण पर मरिउं इच्छए ॥२५॥ मइं जाणिउ तहे मरणाहिलासु तो खणु वि न मेल्लउं तीए पासु । सा पुण अवलोयइ मरण-छिद्द रयणीए वि मज्झ न एइ निद्द । अज्जं पुण मज्झ अउणियाए रयणीए समेण नुवणियाए। कह कह वि खणंतर निद हुय तो कत्थ न याणउं राय-धृय । छलिया हं निद-पिसाइयाए न वियाणउंपिय-सहि कत्थ माए। इय वयणु सुदुस्सहु तं सुणेवि मुच्छिय खणे सिंगारवइ देवि । अच्चंत-सोय-सल्लियउ झत्ति निवडिउ नरिंदु धरणिहिं धस ति । चंदण-जलोल्ल-वर-वीयणेण वीजिउ पासट्ठिय-परियणेण । अह सिसिर-समीरण-संगमेण कह कह वि लद्ध चेयण इमेण । [२४] ११. ला० बोल्लणह [२५] १. ला• अन्नहिं ३. पु० मुट्ठा......नट्ठा ४. पु० माइ १०. पु० अह सो १२. पु० मरिउमिच्छए [२६] १. पु० जाणिउं तह ५. पु० हउ निद्द ८. पु० वींजिउ पासहिय । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. २८] विलासपईकहा १० पहु-मरण-दुक्ख-भय-पोडियाहिं कूविउ अंतेउर-चेडियाहिं । बहु पयारु तो विलवमाणउ नरह देइ आएसु राणउ । सयल-पुरिहिं जोवेह मह सुया केण दिट्ट किर केण वा सुया ॥२६॥ आसासिय देवि सिंगारवइ बाहाउल-लोयण तो रुवइ । हा हा कहिं नट्ठिय मज्झ सुया किं कत्थ वि कूवे पडेवि मुया । किं केण वि दुट्टे अवहरिया किंवा रयणायर-उत्तरिया । हा हा मह धीए विलासवइ किह एह बुद्धि तुह संगवइ । ५ कंचुइ-आरक्ख-समाउलहो किह रणिहिं निग्गय राउलहो । किं कत्थ वि चोरहं पिडि पडिया किं कत्थ वि अच्छहि तुहुं दडिया । हा सुव्व-सलक्खणि हा सुहए हा लोणिए नयण-मणोसुहए । विणयह निहि सयल-कलानिलए हा महुर-वयणि कन्ना-तिलए । पडिवयणु देहि तुहुं कत्थ गया किर जणणी-वच्छल आसि सया । १० मई एरिसु चिंतिउ आसि सुए मेलेवि नरिंद-गणे बहुए। ताण य जो को वि विसिट्टयरी तुह पुत्ति करेस्सहं सो जि वरो । मई चिंतितुह वीवाहि किए जामाउय-माइगणे मिलिए । पच्छा परिपुण्ण-मणोरहिया नच्चिसु उच्चल्लिय-बाहुलिया । मइं चिंतिउ तुह जामाइयहो वंदणु वंदाविसु आइयहो । १५ तं न हुयं एक्कं पि चिंतियं हा हयास विहि केंव पत्तियं । आस-वेल्लि उल्लसिय मण-वणे विहि-गइंदु तोडेइ तक्खणे ॥२७॥ इय जांव पलाव करेइ देवि एत्तहे नरिंदु मुच्छिउ सुणेवि । पासाय-तलह अइ-संभमेण धाविय अगंगवइ तक्खणेण । सुमसिण-सोवाणह पंतियाए तहे ल्हसिउ पाउ धावंतियाए। कर-चरणहं दंतहं हुयउ भंगु संचूरिउ नियय-भरेण अंगु । ५ मुच्छाविय अच्छइ देवि जाव धाहाविउ चेडि-गणेण ताव । [२६] १०. ला० विहु-मरण[२७] १. ला० आससिय, पु० रुयह २. पु० पडेवि धूया । ५. पु० कंचुइ-आलुकख ११. ला० पुत्ते १३. पु० उम्भिं च्चिय बाहु. १५. पु० न हूयउ एक्क पि [२८] १. पु० जाव २. ला० धावइ ३. ला० तहिं ल्हासिउ [२८] Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० साहारणकविरइया नरas कोलाहल सुणेवि तत्थ संवावि तह users देवि आसासेवि पुच्छिय परिकहेहि सा जंपर पच्छायाव - जुत्त १ मई पावु महंत किय देव い राय-नंदण सणकुमारहो निहय-सयल - कलि-पाव-पंकहो [२९] तो अक्खि सयल वितीए वत्त जो सुद्ध-सहावहं दो देह ता पहु पावेण विडंबियाए इय तीए वयणु निसुणेवि एउ ५ हा हा कज्जु मई किउ अजुत्तु खल-महिल- वयण - वामोहिएण जसवम्मह नंदणु कुल-मयंकु १. घीद्धो अइ- चंचल मह सहावु साधन सलक्खण मज्झ धूय • मह पुण अपुण्ण - पब्भारु आसि ता एहु महंत मज्झ सोउ देवी वि विडंबिय किं करेमि ता उवेह भो भो महंतया सारकमाईणि नी हो आउ अणंगवह देवि जत्थ । उद्वाविय नरनाहेण देवि । सुंदरि किं बाहर तुज्झ देहि । कहाणि देहि मह अज्जउत्त । । फलु तस्स एउ महु सव्वमेव । विमल - सत्त-गुण-सील-सारहो । किउ कलंकु मई निक्कलंकहो ||२८|| [९.२९ एरिस अवत्थ मई तेण पत्त । पण सिग्घु तस्स व पडे । किं संपइ मई जीवंतियाए । पच्छायावेण परजु देउ । माराविउ जं सोरायत्तु । a faufts विर्यालय - सोहिएण । तस्स वि आरोविउ मई कलंकु । जं चिंतिउ तस्स वि एउ पावु । जं साणुराय तमु उवरि हूय । कि पाविउ पावइ रयण - रासि । अन्नं च विलासवइ-विओउ । बहु-दुक्ख दद्ध अहमवि मरेमि । [३०] इय देवी सहिउ नरिंदु जाव नेमित्तिउ सिद्धाए पत्तु जसु कारणें तुम्हहं सोय- भारु [२८] ८. पु० आसासिवि - १२. ला० कियु [२९] ६. ला० वयणे वामो० ८. ला० सहाउ ९. ला०साणुख्य [३०] १. पु० मरणहं नेदठंद्धउ ३.ला० कारण मज्झ कज्जु साहह तुरंतया । देह अगि बहु- दुक्ख खीणहो ॥ २९ ॥ मरणहं संनद्ध झत्ति ताव । सो भइ देव मा कुह सत्तु । सो अज्ज वि. जिया सणकुमारु । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - विलासवईकहा १५१ जा पुण विलासवइ नट्ठ कन्न सा तस्स वि होसइ घरणि धन्न । ५ दोण्णि वि पाविय उत्तम-पयाइं कह वि हु तुम्हाण मिलंति ताई। तम्हा पुहई-वइ मा मरेहि ताण वि अन्नेसणु तुहुँ करेहि । इय जाव धरिउ नेमित्तिएण ता हउं हक्कारिउ देव तेण । विणयंधर अभएं कहहि सच्चु कि जियइ कुमरु किं विहिउ मच्चु । मई अक्खिउ सामि सहाय-जुत्तु पेसिउ सुवण्ण-भूमिहि पहुत्तु । १० महि-नाहु भणइ तुह भद्द जाहि कत्थ वि आणेहि कुमारु बाहि । वयण-कमल जइ तस्स दीसए एउ दुक्खु ता सयलु नासए । सो ज्जि हरइ तं दुक्खु दुसहं अग्गि-दहि अग्गी वि ओसहं ॥३०॥ [३१] विणयंधर ता उज्जमु करेहि जइ महुं सुभिच्च जीविउ धरेहि । आणेहि पुणो वि सणकुमारु तुहुं एत्थ कज्जे पर एक्कु सारु । मई वुत्तउ सामि करेमि एउपर मज्झ पइण्ण सुणेउ देउ। जइ वरिस-मज्झि सो नवि लहेमि अप्पाणु जलिय-हुयवहे दहेमि । ५ परिवडिढय-गुरु-संभावणाण एवंविह-कज्जे-निउंजियाण । असमाणिय-निय-पह-पेसणाण मरणं पि य सोहइ सुपुरिसाण । ता वरिस मेत्तु पडिवालि देव अणझाइय कहइ गुवुड चेव । परिसं महु मग्गु पलोयएज्ज उवरि जं जाणसु तं करेज्ज । इय जंपेवि पहु-पाएहि पडेवि हउं जाणवत्ते चल्लि उ चडेवि । १० सेयवियहि आइउ आसि को वि गउ एह वत्त जाणेवि पुणो वि । हउं पुणु पहुत्तु सिरिउर पविठु तहिं सेटि-मणोरहदत्तु दिछु । तुम्ह वत्त सो देव पुच्छिउ कहिउ तेण मह गेहि अच्छिउ । माउलस्स पुण दंसणस्थिउ तत्थ सोहल-दीवि पत्थिउ ॥३१॥ [३२] तो जाणवत्ते पुणु आरूहेवि गउ सिंहल सायरु उत्तरेवि । अरिकेसरि तत्थ नरिंदु दिदछु खयराहिव तुहु आगमणु पुछ् । [३०] ५. ला० दुन्नि ८. ला• अभये, पु० विहिय मच्चु । ९. पु. पत्तु १०. ला० नरनाहु १२. ला० अग्गि-दड्ढे [३१] १. ला० करेह जइ महु, पु० जीविउ वरेहि .. ला० परिवालि देव अणज्झाइय ___ कहइ गुवाडु ८. पु० जाणसि ११ पु० सिरिउरि १२. पु० पुच्छिओ...अच्छिओ । १३. पु० दंसणत्थिओ...पविओ. [३२] १. लॉ० गओ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइघिरइया [९.३३ सो जपइ एत्थ सणंकुमारु अज्ज वि न पहुत्तउ अम्ह बारु । सुव्वइ य विवण्णउं जाणवत्तु मह भाइणेउ संदेहु पत्तु । ५ इय निसुणेवि सोय-वसंगएण मई चिंतिउं साहस-संगएण । उत्तरिउ ताव दुत्तरु समुदु अणुहविउ किलेसु महा-रउदु । तह वि हु उवलक्षु न सो कुमारु तुस-कंडणु केवल किउ असारु । ता पुण्ण-विवज्जिउ किं करेमि सायर-तडे चिय विरएवि मरेमि । गुरु-कज्ज-भार-उव्वहण-सज्ज पारद्ध-निरालस-सिद्ध-कज्ज । १० पहु-पेसणु सफलउं जे करेंति ते अन्न के वि सप्पुरिस होति । पुण्ण-हीणु अम्हारिसो पुणो एउ कज्ज साहेइ किह जणो । ता पइण्ण पूरेमि संपयं निदहेमि जलणेण अप्पयं ॥३२॥ [३३] तो जाएवि रयणायर-तडम्मि बहु सारकट्ठ मेलेवि वणम्मि । पज्जालिउ मई सयमेव अग्गिजाला-कलावु गउ गयण-मग्गि । एत्थंतरे परियरु संजमेवि मई जंपिउं कर-संपुडु रएवि । भो भो निसुणेहु वण-देवयाहो जलनिहि-तड-काणण-सेवयाहो । ५ इह लोय-पाल पंच वि सुगंति जे सयल-लोय-चेद्विउ मुणंति । मई तइयहं ताव नरिंद-पासि परिस पइण्ण किय गरुय आसि । जइ कह वि कुमारु न सो लहेमि अप्पाणु जलिय-हुयवहे दहेमि । सो सयलु गविट्ठउ मइं न पत्तु तो एवहिं पेच्छह मज्झ सत्तु । इय भणिवि चिोवरि मई अकंप तरु-सिहरे चडेविणु दिन्न झंप । १० जा न चिय न दारु न जलणु दिछु अच्छामि पउम-सरवरे निविठु । तो मणम्मि अच्छरिय-जुत्तउ देवयाए पञ्चक्खु वुत्तउ । पुत्त तुज्झ सत्तेण तुठिया देवया अहं वण-अहिटिया ॥३३॥ मई रक्खिउ तुहुं हुयवहे पविठ्ठ वरु वरहि पुत्त जो तुज्झ इटु । मई भणिउ देवि वरु देहि सारु देक्खालहि मज्झ सणंकुमारु । [३२] १. पु०भायणेउ ७. ला० तुस-खंडणु १०. पु० करंति, ला. हुंति। ११. ला० पुण्ण -हीण [३३] १. पु० जायवि, ला० मेलिवि १०. पु० ता न...पिच्छामि......निदिदछु । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. ३४ ] सा जंपइ कीरइ तुझ एउ सो विज्जा-साणु कुणइ जाव ५ ता मलय- कूले तुंहुं वच्छ जाहि ओसहि संजीवणि ह छेहि तहिं एक्कु घाय - जज्जर- सरीरु तो जीवावेज्जसि सो इमेण तं सलु वि देव तदेव जाउ १० अवलोइय पुण्णेहिं तुम्ह पाय विलासवई कहा १५३ पर अज्ज वि होस काल -खेउ । मेलावउ होस तुज्झ ताव | तावसह aataण तत्थ ठाहि । निच्च पि जलहि- सेवणु करेहि । Frases विज्जाहरहं वीरु । दंसिस्स तुज्झ कुमारु जेण । ता इय कमेण तु पासि आउ । चिरयालि मणोरह सफल जाय । ता पसाउ अम्ह दिज्जए पच्छयाव- दद्धस्स सामिणो तामलितिपुरि गमणु किज्जए । कुह चित्त-साहारणं पुणो ॥ ३४ ॥ ॥ इइ विलासवई - कहाए विणयंधर- संजोगो नाम नवमा संधी समत्ता ॥ २० [३४] ४. ला० मेलावउ तें महुं तुम तां । ५. ला० तो मलय- कुठे तुहुं ताव जाहि ... तोवणे ११. ला० अम्ह किज्जए १२ पु० चित्तु Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-१० ववसाय-विणय-साहस-धरहो चेद्विउ सुणेवि विणयंधरहो । ख पराहिवु निय-मणे विम्हियउ नेहेण य सो आलिंगियउ । देविहि वयण-कमलु अवलोइवि भणइ नरिंदु एरिसं । पेच्छह निच्छएण संजुत्तह विणयंधरह साहसं । ५ अह सामि-चयणु एरिसु सुणेवि जंपइ विलासवइ एउ देवि । सच्चउ विणयंधरु एहु देव अणुहरइ असेसु इमस्स चेव । ता अज्जउत्त कीरउ इमस्स सफल पसाउ विणयंधरस्स । सो पच्छायाव-परद्ध ताउ दीसइ पहु मह अंबा-सहाउ । निच्चं किर जे गुरु वंदयंति चिरयालु देव ते नंदयंति । १० जई वि हु पडिकूलु करंति के वि पणमिजहिं पहु उत्तमेहि ते वि । ता तामलित्ति-नयरीए जाह पच्छा सेयविय-पुरीए नाह । तत्थ वि तुह विरह-करालियाई दीसंति जणणि-जणयाइं ताई । पिय एरिसु किर पंडिय भणंति माया-पिय दुप्पडियार हुँति । ते जइ वि परम्मुह कह वि हुंति कीरइ तं तह वि जमाइसंति । १५ किं तीए सिरीए वि सुंदराए वर पहु पर-मंडले पावियाए । आणंदु न मिस्तहं जा करेइ सत्तूण वि सीसु न दुक्खवेइ । इय कंता-वयणुच्छाहियउ वसुभूइ-मंति-संवाहियउ । निय-जणणि-जणय-उम्माहियउ हूउ खयर-नाहु जत्ता-हियउ ॥ १॥ [२] जंपइ अनिलवेउ एत्यंतरे एरिसु देव जुज्जए । पर पढमयरु चंद लेहाए वि पाणिग्गहणु किज्जए। हउं ताए पेसिउ सिग्धमेव अविलबु पयट्टह तत्थ देव । सुविसिट्ठ लग्गु गणियउं इमीए गुरु-वासरे सुकिल-पंचमीए । ५ तो अनिलवेय-उच्छाहिएण सदाविउ संवच्छरिउ तेण । [१] ७ पु० सफलउ १०. पु. पणुमिज्जइ ११. पु. तो ताम० १३. पु० मायपिय.... होति । १७. ला० कंत चेयणिच्छाहियउ [२] ३. पु०-तत्थ चेव ४ पु० सुक्किल Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.३] विलासवईकहा सम्मावि गमणह दिवसु पुठ्ठ सम्मं च निरूववि तेण सिदछु । तिहि कल्लि दुइय पहु सोमवारु नक्खन्तु पुस्मु सिवु जोगसारु । वालवु वि करणु कक्कडई चंदु छ?उ करेइ तुम्हाहिणंदु । मिहुणोदउ बुह घरु चंद-होर देक्काणु बुह दुह-चिंत-चोर । १० नव-बारस-तीसंसेहिं सुहेहिं . सुतिहि ठिएहिं गुरु-रवि-बुहेहिं । दुइयउ ससि धरणी-तणउ छ? तिजउ सणि आयहं भिगु निविदछु । उसा-जोगम्मि य सुहु मुहुन्तु ता देव तत्थ पत्थाणु जुत्तु । इय दिवसु मुहुन्तु वि उवइसिउ सम्माणेवि पेसिउ जोइसिउ । पडिहारह तें जाणावियउ विज्जाहर-लोउ भणावियउ ॥ २ ॥ [३] तो सज्जिय-विमाण-चर-जाणेहिं हय-गय-जोह-जुत्तउ । तक्खणि सपरिवारु खयराहिवु वर-रिद्धिहिं पहुत्तउ ।। अरुणुग्गमे पहय पयाण-ढक्क अप्फालिय झल्लरि मुरव चक्क । आऊरिय मंगल जमल संख आवज्ज पवज्जिय पुणु असंख। ५ मणहर-झय-मालोयालियाई रमणीय-विमाणइं चालियाई । झुल्लत-चमरचय-संख सोह मयगल चलंति किय सेन्न-खोह । मुह-बद्ध-फेण सुचवल तुरंग उच्छलिय नाइ जल-निहि-तरंग । निम्मज्जिय-आउह विविह-वेस चल्लिय विज्जाहर भड असेस । खयराहिवु पुणु निय-मंदिरम्मि मोत्तिय-चउक्के आऊरियम्मि । १० मणहर-सीहासणि समुवविठ्ठ तमु पुण्ण-कलसु अग्गइ निविट्ठ । वंदिउ चंदणु किय अंगलाई दहि-अक्खय-संख-दुव्वंकुराई । वसुभूइ-विलासबई-समेउ - आरूढु विमाणे विसाल-तेउ । विणयंधर-पसुहेहिं अणुसरिउ रहनेउर-नयरह नीसरिउ । पण्णरस-जोयणसिउ पवरु पत्तउ वेयड्ढ-महासिहरु ॥ ३॥ [२] ६. ला० --सम्माणवि १०. ला• मुत्तिहिं ठिएहिं १४. ला० तिं जाणावियउ [३] १. पु०-जाणेहि, ला-जुत्तओ २. ला० पहुत्तओ १३. पु० पमुहहिं १४. पु० विय Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ५ सारणकविरा [8] तो चउरंग-सेन्न- संजुत्तउ आवासिउ विसालए । तहि वेयड्ढ - सिहरि रमणीय -महा-तरु-वर - सुरालए ॥ किउ दिवस - कज्जु वसिऊण तम्मि अह चलिउ पुणो वि विहायस्मि । किन्नर - पुरे पाविउ सिग्धवेउ ५ वद्धाविउ तक्खणे नयर-नाहु उवयारु घरागमु किउ असेसु आवास निरूविय अइ- पहाण सयणीयभंगण जवस खाण इय जाव पहुत्तरं लग्गु सारु १० तूरई पहयाई समोक्कलाई पुरउ for धाविउ अनिलवेउ । सम्मुह विणिग्ग वज्जबाहु | सुमहत्त-विभूइए पुर-पवेसु । संपाडिय भोयण - व्हाण-पाण । तंबोल विलेवण कुसुम ताण । वर - रिद्धिहिं चलिउ सर्णकुमारु । पुरउ पति बंदिण - कुलाई । महिलाणु अग्गर ठियउ तांव । जुय-खंध-मुसल- मुह-ताडणाई | आरत्तिय लोणह भामणाई | दाई दिन्नई हिय- इच्छियई । संपुडमह दलंतउ । राउल दुवारि संपत्तु जांव किय उयारणई निउँछणाई 'दहि-अक्खय- चंदन-वंदणाई आयर सव्व तहिं किय १५ चलणेहिं जल - भरिय - सुसरावहं लग्गउ अनिलवेय-करि बहुयावास दुवारे पत्तउ ॥ ४ ॥ अह तत्थ महिलाउ चित्तई पढावंति अंगुट्ठे लग्गति अह देवितं हि ता तत्थ मज्झम्मि सा दिट्ठ तें बाल उद्धत थणहार संपुण्ण-ससि वयण परिपक्क बिंबो [4] रूंधति बहुलाउ । अचलेहिं खंचति । निय दाणु मग्गति । भवर्णाम्म पविठु | माईण अगम्मि नव-लिणि सुकुमाल | उल्लसिय- सिय-हार । संनिहिय विय गयण । कंकणेहिं सुपओ | [१०.४ [४] २. पु० सिरालए ६. पु० सुमहंत १३. पु० - वंदनई.... भामणई १५ ला० दलंतभो लग्गओ ... पत्तओ । पु० अनिलवेय-करो १६. ला० [५] १. ला० महिलाओ ... बहुलाओ २. ला० पढाविंति पु० अंचलिहिं ५. पु० तो तत्थ ८. ला० संनिहिय ठिय Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ १०.६] विलासपईकहा कुवलय-सरिच्छेहि लोयणेहिं सच्छेहिं । कंकैल्लि-तुल्लेहिं हत्थेहिं अमुल्लेहिं । थल-कमल-हरणेहिं मुसिलिट-चरणेहिं । मिउ-कुडिल-चिहुरेहि नं मिलिय-भमरेहिं । सव्वंगट्ठिय-सोह जण-जणिय-मण-मोह। १५ मुत्ताहल-मणि-रयणाहरिय उवरि पुण धवल-पडावरिय । दिन्नउं मुह-वड-फेडावणिउ साली-पमुहाहिं य ज भणिउ । उभय-दिसाहि साहि उग्घट्टिय गाइय विविह-मंगला । तहि लग्गम्मि पवरि मणि-गम्भिय जोडिय ताण करयला ॥५॥ अह वहुय लेवि दाहिण-करेण बहु-तूर-सह-मंगल-सरेण । मरगय-मणि-खंभ-समाहियाए जरढामल-विदुम-वाहियाए । उल्लोय-दुस-अद्धासियाए नाणा-मणि-रयणुब्भासियाए । वर-कणय-विणिम्मिय-भंडयाए वुस-इंदनील-किय-दंडयाए । ५ मोत्तिय-अवऊल-विराइयाए सुर-भवण-सरिच्छए वेइयाए । आरूढउ पहु अइ-गरुय-तेउ सूरो व्व दिवस-लच्छी-समेउ । एत्यंतरे जलणु पुरोहिएण पज्जालिउ लाया-महु-घिएण । अह मंडलाइं बहुया-सणाहु आढत्तु भमेविणु खयर-नाहु । मंडले पहिल्ले अघडिय-सुवण्णु दस-कोडिउ बहुताएण दिन्नु । १० दइयइ मणि-मोत्तिय-कणय-सारु आहरणु दिन्नु नाणा-पयारु । थालाई रच्छ तिज्जइ समत्थ मंडले चउत्थे सुमहत्थ वत्थ । गय-हय-विमाण-सयणासणाई रयणइं रोगाइ-पणासणाई। । सन्नाहावरण-वराउहई वहु-ताएं दिन्नई बहुविहई। अब्भुदयम्मि तम्मि निय-कंतह ईसा-रोस-वज्जिया । १५ देवी सई विलासवइ तोसेण वद्धावणई नच्चिया ॥ ६॥ [५] ११. ला० अमोल्लेहिं [६] ६. ला० दिब-लच्छि ११. ला० रत्थ तिजइ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ साहारणकइविरइया [१०७ बहु-खज्ज-पेज्ज-भोज्जेहिं सणाहु कुसलेहिं ताव वित्तउ विवाहु । तो वज्जबाहु-पुर-सामिएण वीसज्जिउ खयराहिवइ तेण । सम्माणु सयल-हड हं करेवि दोन्नि वि देवी उ विमाणि लेवि । सहुँ अनिलवेय-विणयंधरेहि वसुभूइ-पमुह-विज्जाहरेहिं । ५ छायंतु नहंगणु रिद्धि-जुत्तु तो तामलित्ति-नयरिहिं पहुत्तु । तो पेच्छवि जपहि नयरि-लोय । कि आवहिं देव महंत-भोय । पेसिउ विणयंधर अनिलवेउ दिट्ठउ नरिंदु अह भणिउ एउ । तुहुं बद्धाविज्जसि अज्जु देव सकयत्थउ तिहुयणे त सि चेव । खयराहिषु पेच्छहि सपरिवारु तुह घरे संपत्तु सणंकुमारु । १० निय-पुण्णेहि गेहिणि जासु हय आइय विलासवइ तुज्झ धय । अह कण्ण-रसायणु तं वयणु निमुणेवि पुलइप-सयल-तणु । ईसाणचंदु पहु उटियउ विणयंधरु दिट्ठ आलिंगियउ । पच्छा अनिलवेउ आलिगेवि नरवइ परम-हरिसिउ । जंपइ साहु साहु विणयंधर जं महुं एहु दरिसिउ ॥७॥ तुहं सच्च-पदण्णउ इय भणेवि परिओस-दाणु अह ताण देवि । आइट्ठ महंत नराहिवेण सज्जह हय-गय-जाणइं खणेण । आएसाणतरु सयलु तेहिं संपाडिउ सिग्घु महतएहिं । बहु रिद्धिहि अंतेउर-सहाउ सम्मुहु नीसरियउ तस्स राउ । आसण्णउ जाव नरिंदु पत्तु तो तेण विमाणु झड ति चत्तु । खयराहित्रु नमइ निवस्स जाव दोहि वि करेहि सो धरिउ ताव । भणियेउ न पुत्त तुहु एहु होइ तुहुँ एक्कु पणामह जोग्गु लोइ । ते भणिउ म जंयह एउ देव गुरुटाणे नमिज्जसि तं सि चेव । सो भणइ पुत्त किह गुरु हवेमि विणिवाउ तुज्झ जो चिंतवेमि । १० खयराहिवु भणइ न तुम्ह दोसु निय-कम्मह उप्परि ताय रोसु । [७] ६. पु० ते पेच्छेवि जंपेहिं ७. पु० विणयंधरु ९ पु० संपत्तउ १०. ला०-पुन्नेहि [८] ३. पु. संपाडिउ सयलु महं० १०. पु० तुज्झ दोसु Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.१०] ५. नरनाहु पपइ पणमियउ न वियारिउ किं पि हियाहियउ विलासवई कहा पाएहिं लग्गेवि अणंगवइ हुं पुत्त सुलक्खण सील-जुउ सत्ताहि तुहु कुल-मंडणउ उवसम पहाणु सुपुरिस हव सपुर अणागउ चितव सुपुरिस-चित्तई थिर-सोहियई सुपुरिसु न पुत्तनिधिणु कर ता जोव्वण-मय- उम्मत्तियए मई तइयहं तुम्ह जं कियउं १० जं अलिउ आलु तुम्हं घडियं ता पच्छायाव - परद्धिय पणयाण पुत्त तिहुयण - तिलय एवं बहुप्पयारु जंपेविणु देवि-नरिंद सम्मुहु तो जंपइ करहि पसाउ पुत्त महु उप्पर पच्छायाव - दद्धहो । पर्णामि एहु तुझ पय-कमलेर्हि पुण्णेहिं कह वि लद्धहो ॥ ८ ॥ [s] [20] उहि देवि मई खमिउ एउ मा करहि विसाउ तुमं पि देव परमत्थें दोसु न तुम्ह कोइ पुव्व-कय-कम्म-फळ परिणमंति ५ जणणी जणया वि हु आवइए जणणी - जंघा विहुवच्छयस्स पुत्तय खमेहि जं मई कियउ । महिला-वयहिं विमोहियउ । 2 पवत - नयण एरिस भणइ । महिलाणु होइ विवेय-चुउ । महिलायणु कुल विइ-खंडणउ । महिलाणु रोसु न जीवइ । महिलहे पुणु पच्छा होइ मइ । afrat हवंति महिला - हियई । महिलायणु सन् समायर । तह मयण - रूव - अक्कंतियए । तं सब्बु खमेज्जसि दुक्कियउं । तं पेच्छ पुत्त मज्झ वि पडियं । महु खमहि स दुह दद्धियहे । सप्पुरिस होंति करुणा - निलय | सम्भावेण खामिउ | विज्जाहरहं सामि ॥ ९॥ [2] ११ पु० खामहि १२.ला० न वियाणिउ पु० महिलायणेहि [९] ८. ला० जोठण - मयणुम्मत्तियए... ९. पु० सई नइयह क्रिययं......दुक्किययं । [१०] २. पु० पुब्बिं ६. ला बंधणु अवस्स १५९ को करइ रोसु जसु मणि विवेउ । पूव्वं पि खमिउ मई सव्वमेव । जीवहं भविrog अवस्स हो । पर पर निमित्त - मेत्तई हवंति । कारणु व कम्म गइए । भत्तु घर बंधणे अवस्स । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० साहारणकइविरइया [१०.११ नर-नाहु भणइ तुहुं पुत्त धन्न तुह सरिसु सुयणु को हवइ अन्न । उल्लविउ परिप्फुड तुम्हे एउ उल्लसइ कम्स एरिसु विवेउ । ता पुत्त एउ तइं किउ विसिठ्ठ जं पुणरवि हउँ जीवंतु दिछ । १० मुह-कमलु तुज्झ पेक्खेवि असेसु उत्तरिउ अज्ज महु संकलेसु । इय जंपेवि सो अवयासियउ पुणु सबहुमाणु संभासियउ । विविहासीसहि अहिणंदियउ नरवइ-लोएण य वंदियउ । तो तकखणे विमाणे उत्तिण्णिय वयणे खयर-रायहो । विलासवइ-देवि आणंदिय पाएहिं पडिय तायहो ॥ १० ॥ - [११] आलिंगिय अंसु-मुयंतरण आसासिय सा वि रुयति तेण । भणिया य पुत्ते तुहुँ एक्क धन्न सयमेव जेण सुपुरिसु पवन्न । चिरु नंदहि ता सरिसिय इमेण निय-कंते निय-पुण्णोयएण । तो दोहि वि सिंगारवइ-देवि पणमिय विणयंजलि सिरि करेवि । आसीस दिन खयराहिवस्स जीवहि अणेय वरिसहं सहस्स । पुणु सा विलासवइ कंठि लेवि बहु रोवइ सिंगारवइ देवि । पुत्तय अइ- निठुर-हियय तं सि निय-जणणि चएविणु नट्ट जं सि । तुह वल्लह-नेह-परव्वसाए वच्छलिय-जणणि विसरिय माए । एरिस विहूइ संपडिय तुज्झ वत्तडिय न केण वि कहिय मज्झ । १० तुह फलिउ मणोरह गरुय रुक्खु अम्हेहिं वि सहिउ विओय-दुक्खु । अज्ज वि य आसि किंचि वि सुकिउ पर-लोइ पुत्त अम्हेहिं विहिउ । तें कंत-सहिय रिद्धिहिं कलिय चिरयालह तुहुं अम्हहं मिलिय । तो आसीस दिन निय-धूयहे पुत्तय होहि अविहवा । संपुण्णिय सउत्त सुलक्खण सुमणोरहि य सूहवा ॥११॥ [१०] १०. पु० मह . [११] २. ला० पुत्त ३. पु० नंदहो, ला० निय-कंति ५. ला० करि करेवि । ११. पु० परलोए पुत्त अम्हेहि Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.१३] विलासवईकहा [१२] वसुभूइ-पमुह विज्जाहरेस पणमंति नदिह ते असेस । संमाणिय ते वि नराहिवेण संभासणाई उचियक्कमेण । नयरिहिं आढत्तु महा-पमोउ नीसरिउ विहूसिउ नयरि-लोउ । रम्मत्तण जण-मण-जणिय-मोह कारविय नरिदि हट्ट-सोह । ५ सोहाविय सयल वि राय-मग्ग किय गंध-नीर-कुसुमे हिं समग्ग । विरइय तोरण मणहर विसाल गोउरेहिं बद्ध वंदणहं माल ! तो चलिउ नराहिवु सपरिवार निय-रिद्धिहि सहिउ सणकुमारु । तूरइं पहयाइं समोककलाई पुरउ पढंति बंदिण-कुलाई । तो परम-विभूइहि पुरि पविठ्ठ असुय-नायरिय-जणेण दिछु । ० काउ वि वणंति सणंकुमारु अन्ना वि सलाहहिं सुपरिवारु । अन्ना वणंति विलासवइ अवरा सउण्णु सलहहिं निवइ । जणु बहु-रुइ जो जसु आवडइ सो तस्स वि गुण-संपय घडइ । परम-पमोय-भरिय-अइ-विम्हिय-नायर-जण-पसंसिउ । सुंदरि नरवरेण सह निय-मंदिरि खयराहिवु पवेसिउ ॥ १२ ॥ तो सपरिवार-खयराहिवस्स उचिउवयारु किउ सयलु तस्स । ईसाणचंद-नरसामिएण जामाउय-धूय-समागमेण । कारावियाई वद्धावणाई विहियई तह बंधण-मोयणाई । दीणाइहिं दाविय विविह दाण आढत्त विलास महा-पहाण । ५ वसुभूइ-सहिउ तो अनिलवेउ पेसिउ सेयवियहिं तुरिय-वेउ । गयणेण विमाणि समारूहेवि तक्खणि सेयवियहि पत्त बे वि । जसवम्मु नराहिवु तेहिं दिदछु । पणमेवि तणय आगमणु सिटु । परितुडु नराहिवु निय-मणेण आलिंगिउ तो वसुभूइ तेण । पुणु अनिलवेउ आलिंगिऊण उचियक्कमेण समाणिऊण । १० मइसायर-मंतिहि तणउ पुत्तु आणयणे निउत्तउ अमरगुत्तु । [१२] १. ला० काराविय ५. ला० सयले ७. ला० रिद्धिं सहिउ ८ ला० पहायाई सुमो[१३] १. ला० उचियव यारु ७. ला० तेग दिदछु क्कलाई Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ साहारणकविरड्या [१०.१४ वसुभूइ-अनिलवेयहं कहिउ एहु जाउ तत्थ तुम्हहिं सहिउ । आणेह सिग्घु सो महुं तणउ चिरयालह सोयानलु हणउ । अह परितुट्ट दाण-सम्माणेहि मज्जिय जिमिय परिहिया । तिणि वि तामलिन्तिपुरि पाविय गयण-विमाण-सोहिया ॥ १३ ॥ [१४] अह चल्लिय खयराहिवह पासि सो पुण विलासवइ-भवणे आसि । पडिहार निवेसिय तहि पविट्ठ दूरह वि पणामु करंतु दिछ । पेच्छेवि पिय-मित्तु सिणेह-सारु उद्विउ आसणह सणकुमारु । आणंद-जलोल्लिय-लोयणस्स तो कंठि लग्गु मंती-सुयस्स । परितुद्वउ खयराहिवु मणम्मि उववेसिउ संनिहि आसणम्मि । तो अमरगुत्तु पुच्छिउ कहेहि किं कुसल असेसहं मज्झ गेहि । सहुँ परियणेण अंबा-सहाउ किं कुसलेहिं अच्छइ अम्ह ताउ । तइयह नीसरियह रूसणेण पच्छइ किं अम्हहं कियउं तेण । पुणु सुणिवि वत्त परियणह पासि महु मुयह मुणेवि किं कियउं आसि । १० जीवंतहं अम्हहं तणिय केण तुम्हाण वत्त साहिय नरेण । सो भणइ देव सुणि सव्वरिय जइयहं रूसेविणु नीसरिय । तहिं नरवइ पच्छुत्तावियउ तुहुं सव्व-दिसिहि जोयावियउ । मालव-मगह-लाड-कन्नाडेहिं उत्तर-दिसिहि वाहियउ । कत्थ वि तुहुं न देव उवलद्धउ न य केण वि साहियउ ॥१४॥ एत्तहिं तामलिस्ति-पुरि हुंतउ तुम्ह परिग्गहु देव पहुत्तउ । तुम्हहं असुह-वत्त जं जाणिय मुच्छिय दो वि नरिंदु वि राणिय । चेयण पावेवि नरवइ वुन्नउ विविह-पलावेहिं देव परुन्नउ । सिढिलिय-केस मुद्ध विहाणिए सपरिवार निरु रोवइ राणिय । ५ हा मह पुत्त सुरूव सुलक्खण हा दक्खिण्णह खाणि वियक्खण । हा सुविणीय देव-गुरु-वच्छल हा सोंडीर पुत्त वज्जियच्छल । १४] २. ला० निवेइय ... दूरहो ३. ला पिच्छवि ६. पु० अम्ह गेहि ८ ला० तइयहुं ९. पु. मुयह भणेवि १२. ला० पच्छोत्तावियउ [१५] १. ला० एत्तहे ३. ला०-गलावेहिं नरवइ रुन्न 3 ४. ला०-केस सुठु विदा० Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.१६] -- हा अहिमाण - मेरु गुण - साबर हो कोमल - सरीर सुललिय--भुय हा हा मरउं पुत्त तुह नयणहं १० पुहइ - -वीदु जइ सयलु गवोसइ हा विहि किं तुह मई अवरद्धउ हा हा मई freeraण माइए इसउ पुत्तु जसु हत्थह छुट्ट मरणहं रेसि पुत्त नीसरियउ १५ जं जम्म-दिवस आइट्टु तुहु नेमित्तिय वयणु विसंघडिउ विलासवई कहा इय देवहि परियंदणु सुणेवि हक्कारेवि पुच्छिय पुणु त्रिवेण ते भणहि चलइ जइ मंदरो वि afa अलिउन होसह देव एउ ५ अन्नाउ वि दीवह सायराउ जिउ कम्मे after जाइ तत्थ ता कुमरह देव इह द्वियस नेमित्तिय वयणु निसुणेवि राउ तो तामलितिपुरि पुरिस खित्तु १० जाणेवि पुण वि पच्चागएण जिह नरवई पच्छुत्तावियउ जिह वरिस - पण वि तें विद्दिय हा ईसाणचंद निक्कारण- वरिय किं अणुद्वियं । मह पुत्तयह आसि न कयाइ वि एरि दुट्ठ-चेट्ठियं ॥ १५ ॥ [ १६ ] पुत्तय विवेय- रयणायर हो । हा पंडिवन्न सूर मइ -संजय । आणदिय-सज्ज हूं सलोणहं । तुह पडिच्छंदु पुत्त न दीसह । जेण पुत्तु देवखणहं न लद्धउ । काई करेहि भग्गे निद्धाहिए । तो वि हयासु न हियडउं फुट्ट । जणय - सिणेह तुज्झ वीसरियउ । किर होस विज्जाहर पहु । तं पुत्त मरणु अंतरे पडिउ । १६३ [१५] १०. ला० पडिच्छंदइ । [१६] ९. ला०-पुरे ११ ला पच्छोत्तवियउ १२ ला० पुरिसं कहिय नेमित्तिय वयणई संभरेवि । far मरणु कुमारह अंतरेण । उगम वरुण-दिसि दिणयरो वि । जीव कुमारु मा करह खेउ । तह चैव दूर देसंतराउ । पावेइ सुहासुह-फलई जत्थ । arrang for होइ तस्स । परिचत्त-सोउ कह कह वि जाउ । तुह देव सुद्धि लहणहं निमित्तु । साहिउ विणयंधर-गमणु तेण । आरक्खउ जिह पट्टावियउ । तिह सयल-वत्त पुरिसेहिं कहिय । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकविरइया [१०.१७ तं निमुणेवि राउ रोमंचियउ नेमिस्तियहं तुट्ठउ ।। रयण-सुवण्ण-धण-धन्न-धारेहिं घणु जिह ताहं वुट्टउ ॥ १६ ॥ अन्नहि खणे पर-तीरह पहुत्तु सेटिहि समिद्धदत्तस्स पुत्तु । नामेण मणोरहदत्तु देव तें कहिउ जहट्ठिउ सव्वमेव । पच्चक्ख निरिक्खिय अक्खणेण आणंदिउ नरवइ तक्खणेण । विणयंधर-आस-परिट्ठियाण गय एत्तिय दिण उक्कंठियाण । ५ वसुभूइ हि वयणि पुणु विराउ अइसय उक्कंठिउ देव जाउ । आणयण-कज्जे एएहिं समाणु हउं पेसिउ संपइ तुहुं पमाणु । अन्नं च देव इय भणिउ तेण मइं नायर-लोयहं कारणेण । अवमाणु कोवि जो कियउ तुज्झ अवराहु एक्कु सो खमहि मज्झ । तं मुणेवि विलासवइए वुत्तु ता कीस विलंबइ अज्जउत्तु । १० वसुभूइ-अनिलवेयाइएहिं तं वयणु समस्थिउ सेवएहिं । ईसाणचंदु नरवइ भणित सुमुहुत्तु गमण-दिवसु वि गणिउ । दोणाइहिं दाणु दियावियउ सव्वहं वि गमणु जाणावियउ । तो अणुगम्ममाणु नरनाहें परिवारिं समग्गउ । पणमिउ बहुमाण-घण-सोएहि लोएहिं पुरिहिं निग्गउ ॥ १७ ॥ तो कि पि दूरु जाएवि तेण खामिउ नरिंदु खयराहिवेण । ते भणिउ पुत्त निय-पुर गओ वि दंसणु देज्जसु कइय वि पुणो वि । पणमेविणु खयराहिवु भणेइ जं किंचि ताउ मई आणवेइ । ताव य तायह पायहिं पडेवि रोवेइ विलासवई वि देवि । ५ तेण वि नयणंसु-फुसंतएण संधीरिय धीय भणंतरण । मा पुत्ति करेजसि किं पि सोउ अम्ह वि दुव्विसह उ तुह विओउ । [१६] १४. पु०-धारहिं [१७] ९. ला० सुगवि ११. ला०-दिवसो १३. ला० नरनाहि...समग्गओ । १४. ला० निग्गओ [१८] १. ला० खामियु ४. पु० कन्न तायह........ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१९ ] विलासवईकहा १६५ पर धृयहि जइ वि सुवल्लहाहि सासुरइ वसेवउं तह वि ताहि । तो जइ हउं वल्लहु ता सरेज्ज पुणु दंसणु कइय वि तुहुं करेज्ज । अह धृयहे दिन्न महत्थ वत्थ सुमहग्ध अणेय महा-पयत्थ । १० पट्टाविय सुंदर दास-दासि पेसिय अणंगसुंदरि सयासि । अह सा जणणिहिं पाएहिं पडिय दोण्णि वि रुयंति कंठहं घडि य । अणवरय-वहंतेहिं लोयणेहिं कह वि हु संथाविय परियणेहिं । पुणु आसीस देवि निय-धूयहे जंपइ एउ राणिया । पुस्त विणीय होज्ज गुरु-देवहं महुरक्खर सयाणिया ॥ १८ ॥ [१९] पडिवत्ति उचिय सव्वहं करेवि पच्छा आरूढ विमाणे देबि । मण हर-विज्जाहर-सेन्न-जुत्तु खयराहिवु सेयवियहिं पहुत्तु । सुर-सेन्नु नाइ नहे वित्थरंतु तं दिछ खयर-बलु अइ-महंतु । अंते उर-नायर-जण-समेउ नीसरिउ सम्मुहुँ जसवम्मु देउ । पेच्छेवि सम्मुहूं आवंतु ताउ उत्तरिउ विमाणह खयर-राउ । दुराउ वि तायह सपरिवार विणएं अवणमिउ सणकुमारू । उवसप्पेवि सायरु नरवरेण आलिंगिउ नेह-सुनिब्भरेण । भणिउ य पुत्त अइ कियउं सुट्ट निय-जणउ जेण जीवंतु दिट्ठ । आणंद-जलोल्लिय-लोयणाए पुणु पाएहि पडियउ माउयाए । १० पुणरवि पन्हुइय-पओहराए आलिंगेवि चुंबिउ सीसि ताए । पुणु माइ-सबत्तिहिं किय विणउ सम्वेहिं सामंतेहिं सो पणउ । सव्वेहिं वि सेटि-महंतएहिं पणमिज्जइ पाहुड-हत्थएहिं । लग्गउ कंठे निब्भरुक्कंठिउ खयराहिवु नमंतहो । बहुय-मणोरहेहिं संपन्न मणोरहदत्त-मित्तहो ॥ १९ ॥ एत्तहे विलासवइ चंदलेड रूवें अहरिय-रइ-रूव-रेह । पाएहिं पडिय ससुरस्स दो वि पेच्छेवि वहुय विभियउ सो वि । [१८] १३. पु०-धूयहि [१९] २. ला० खयराहिव ४. पु० सम्मुह ६. पु. दूराओ...... अवणमिउ ८. ला० ___ भणिओ. पु० निय जणो जेण ९. पु० पडिय माउ० १०. पु०-पउहराए... ...सीसे [२०] १. ला० रूवि २. पु० पेच्छवि, ला० विम्हियउ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [१०.२० आसीसहि तो अभिणंदियाउ पुत्तय हवेह चिरु अविहवाउ । पाएहि पडिय पुणु सासुयाए आणंद-गलिय--नयणंसुयाए । आलिंगेवि कित्तिमईए दो वि आसीसहिं अहिणंदिय पुणो वि । पणमियउ असेसउ राणियाउ ताहि पि ताउ संमाणियाउ । पडिवत्ति उचिय किय सब जाव एत्तहि नरिंद--वयणेण ताव । उल्लसिय--पमोएहिं सायरेहिं सा नयरि विहूसिय नायरेहिं । किय हट्ट-सोह वर-तोरणाइं घरे घरे विहियई वद्धावणाई । १० सिंगार-समिद्धिहिं पुरि विहाइ पिय-संगम-ऊसुय तरुणि नाइ । अह नरवइ निय-नंदण-सहिउ सुंदरे विमाणे तहिं आरूहिउ । दुइयइ विमाणे सासुय-सहिय आरूढिय दोन्नि वि वर-बहुय । हय-गय-रह-विमाण-वर-जाणेहिं पाणेहिं हल्लियं ।' अणुमग्गे नरिंद-खयरिंदहं तं बलु सयलु चल्लियं ॥ २० ॥ [२१] तउ वज्जिया तूर-भेया असंखा समाऊरिया काहल दिव्व--संखा । पणच्चंति तोसेण य पाउलाई सुसदेण गायंति वा मंगलाई । पुरो ताव नाणाउहा बद्ध--सोहा पयट्टा सुसंगाम-निव्वूढ--जोहा । सुवेगा वि तो मंदमंदं पयट्टा सुखंचिय खलीणा तुरंगाण थट्टा । ५ रहा किंकिणी-जाल-मालाहिरामा झयाली--सुज्झलंत-पप्फुल्ल-दामा । गया पज्झरंता मयं साम-गत्ता नवा अंबुवाह व्व गज्जति मत्ता । पयट्टा य देवालयाणं समाणा अदूरे नहेणेव रम्मा विमाणा । तउ तं असेसं सुरेहिं पि दिलं बलं चाउरंगं पुरीए पविढे । असेसा पुरी पेक्खिउं ताव खुद्धा गवक्खा खणेणं पुरंधीहि रुद्धा । हले एस विज्जाहराण स राया कयत्था य कित्तीमई जस्स माया । इमा एत्थ ईसाणचंदस्स धूया इमस्सेव देवी रई-तुल्ल-रूया । इमा पेच्छ विज्जाहरी चंदलेहा न दिट्ठा सवत्तीण एवं सिणेहा । हले पेच्छ सारेहिं पुण्णेहिं जुत्तो इमो सो जसोवम्मदेवस्स पुत्तो । पुरंधीहिं एवं च वणिज्जमाणो नरिंदस्स गेहे पहुत्तो समाणो। [२०] ३. ला० अभिनंदियओ .पु० एत्तहे ९. ला० विहियई १०. ला०-समिद्धेहि १४, ला० अणुमगि [२१] १. ला• समापूरिया ५. ला०-मालाहिरम्मा ६. ला०पक्खरंता Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.२३ ] १५ पावेवि असेसई मंगलई नरनाहें भवणि पवेसियउ विलासat कहा मोतिय-किय-चक्क विणिवेसिवि परिहाविउ सपरियरो | चंदन-दहिय-दुख आरत्तिय किउ लवणाइ वित्थरो ॥ २१ ॥ [२२] मज्जण - देवच्चण-- भोयणाई संभासिय सयल विबंधु - मित्त दीणाइहिं दिन्न महंत दाण सम्माणिय सयल वि सुहड वग्ग ५ एवं च कइ वि सुह-संगयाई अन्नहि दिणि नरवर भणइ एउ सो भणइ ताय महुं नाहिं कज्जु पर मई जड़ पट्टावेहि सामि सुन्न रहनेउरचक्कवालु १० कित्तिम भणइ नरवइ ससोउ एत्तिय कालह अहहं मिलिउ तुह दंसण आसई जीवियई आवासेहि पेसेविणु बलई । सीहास पवरे निवेसियउ । कारवियई वर- वद्धावणाई | अवरोपरु पुच्छिय कुसल-वत्त । परिओ विहिउ पणईयणाण | आणंदिय जणवय-पय समग्ग । तत्थेव ताहं दिवस गयाई । पुत्तय पडिच्छि रज्जाभिसेउ । तुह पाय पसाएं लडु रज्जु । तो हउं निय-नयरह ताय जामि । तो न खमइ मुक्कउ बहुय - कालु । किह पुत्त सहेस्सहं तु विओउ । एवहिं तुहुं निय-नयरह चलिउ । far अम्हे पुणो वि तई रहियई । किंचि वि तुज्झ कज्जयं । पेच्छहु तुज्झ रज्जयं ॥ २२ ॥ ता जीवंतएहि जइ अम्हेहिं ता तत्थेव हि अप्पणि सहुं [२३] खयराहि भइ महा-पसाउ तु पाय कमल सेवंतयस्स एक्कउं उम्महिय सई मणेणं ता किं न पट्ट सिग्घ ताउ । महुं सफल जम्मु सामिय अवस्स । atri पुणु लविय वरहिणेणं । इय मुणिवि नराहि तुट्टु चित्ति सुन्न न रज्जु एउ मुच्चइति । [२१] १६. ला० नरनाहिं १७ पु० - चउक्के १८. ला०दोव्व- आरत्तिय [२२] २ ला० संभालिय ९ ला० सुन्नं रह० [२३] ३. पु० एक्कं १६७ सयले ३. पु० परिउसु ४ ला सयले ८. ला० पठावेह १२ पु० दंसण आसए... किय अम्हे सयं मुणेण बीयं पुणु.... ४. ला० सुणवि Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ साहारणकइविरइया [१०.२३ ५ आलोच्चेवि तो नंदणु कणिटु तहिं किन्तिवम्मु नरवइ निविट्ठ । सामंतहं मंतिहिं अप्पिऊण विविहोवएस सिक्खाविऊण । उचिएसु निउंजेवि संपयाउ संथाविऊण सयलउ पयाउ । सरिसउ अंतेउर-परियणेण चल्लिउ नरिंदु सहुं नंदणेण । खयराहिवेण ससिणेह-चित्तु चालियउ मणोरहदत्तु मित्।। वसुभूइ-वयंसह माणुसाइं चालियइं तेण सह सहरिसाई । परिवारु आसि जो तस्स हिउ कुमरत्तणे सो चल्लिउ सहिउ । अहवा. जो सुह-संचउ करइ तं को न महापहुमणुसरइ । चल्लिउ सणंकुमार वेयड्ढहो छाइय-गयण-मंडलो । वर-सेन्नेण जेंव मंदरसिरि देवेहिं सहुं अखंडलो ॥ २३ ॥ [२४] पाविय रहनेउरचक्कवालि जणु तुट्टउ पत्तए सामिसालि । तो परम-विभूइहि तर्हि पविट्ठ पुरु पेच्छेवि सिरि-जसवम्मु तुटु । किं सग्गु एहु किं असुर-वासु किं अलय-नयरि धणयह निवासु । इय तं वर-नयरु निरूवमाणु गउ मंदिरे सव्वु निरूबमाणु । ५ पडिवत्ति विणउ किउ सयलु तस्स पुत्तेण तह य अंबा-जणस्स । पासाए रम्मे उत्तरिउ राउ अच्छइ सुहेण परिणी-सहाउ । ठावियउ मणोरहदत्त सेट्टि पट्टणु असेसु किउ तस्स हेहि । पडिहारु वि विणयंधरु अजेउ सेणावइ ठाविउ अनिलवेउ । अन्नो वि को वि जो जस्स जोग्गु सो तस्स समप्पिर निय--निओगु । परिपुण्ण-कोसबलु सोक्ख-सारु तो पालइ रज्जु सणंकुमारु । निय-जणणी-जणय--नमंतयह पंचविह-सोक्ख-संपत्तयह । बच्चहिं विलासवइ-मोहियस्स दियहाइं तस्स दढ-सोहियस्स । कइय वि सत्त-तलह-पासायह हम्मिय-तले निविट्ठउ । अच्छइ देवि-सहिउ सुविणोएहिं खयराहिवइ हिट्ठउ ॥ २४ ॥ [२३] १४. ला० देविहिं सहुं [२४] १. ला० . वाले... . सामिसाले । ४. ला० सव्वु सरूवमाणु । ९. पु० निय-निउ. गगु १०. ला० पडिपुन - १२. ला०-मोहियह .. सोहियह । १३. ला० निविदओ . १४.ला. हेट्ठओ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.२५ ] विलासबईकहा १६९ पभणइ विलासवइ उदिसेवि जाणहि पण्होत्तरु एक्कु देवि । सा भणइ भणिज्जउ अज्जउत्त हउं हूइय एह दिढोवउत्त । के देवि महारणे विप्फुरंति के तरुणि-चरण-मंडणु करंति । के रयणिहिं पावहिं पिय-विओउ को न मुणइ सुह-असुहप्पओउ । ५ किं सुरपुर-सन्निहु सव्व-कालु ? जाणसु त्ति देवीए भणियं जाणिउ रहनेउरचक्कवालु ॥ पुणो भणियं -... के घर हवंति नउलाइयाई का कुणइ समासासणु जियाहं । का फलिय-खेत्त-रक्खणु करेइ का महिल कंत-मणु अवहरेइ ॥ १० चंदलेहाए भणियं-विलासबई ॥ देवीए भणियं--- अलमेएहिं पिय पण्होत्तरेहि तुहुँ एक पहेलिय महुं सुणेहि । विज्जाहरि-रूय समाण-कंति आयासह लग्गइ पज्जलंति । संपुण्ण चंदमुहि गोर-देह तुहुं वीर कहहि तिय कवण एह ॥ १५ पुणो पढाविऊण जाणिया - तुं वी (चंद्रलेखा) ॥ देवीए पढियं-- क वि दिट्ठ बाल अंबरे भर्मति सुकुमाल न मेल्लइ रिक्खपंति । सा असइ देव पिय-रत्तिया वि नहार न होइ कहि जुबइ का वि ? ॥ जाणिया - जया एसा ।। २० चंदलेहाए पढियं - खामोरि कंतय-गुण-सुबद्ध अणुरत्त-सुहय सुनयण विअद्ध । ससिणेहिय मग्गेवि लइ विवाहि पाणप्पिय न महिलिय अन्न वा हि । पुणो पढाविऊण तेण जाणिया-पाणहिया चंद लेहा । [२५] १. ला० पण्होत्तर एक ३. ला०-मंडणु कुणंति । ९. ला० फलिह खेत्त १३. ला० विज्जाहरि-राय १४. पु० गोरदेहि २१. पु. कन्नय-गुण २२ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० साहारणकइविरइया [१०.२६ विज्जाहरु अजियबलप्पहाउ निज्जिय-अणंगरइ परम-राउ । २५ निब्भउ विलासवइ-कंतु चेव लोयप्पिउ न तुहुं को मुणिसु देव । हसिऊण भणियं----मुणीसो ॥ एवं च विविह-पण्होत्तरेहिं वुड्ढा पहेलिय अंतक्खरेहिं । अक्खर-बिंदुय-मत्ताचुएहिं अच्छंति विणोएहिं अब्भुएहिं ॥ कइय वि वर-विमाणु विरएविणु नंदणवणेहिं बच्चए । ३० कइय वि मलय-सिहरि हरियंदण-अंदोलणेहि नच्चए ॥२५॥ [२६] कइय वि पेक्खणय-निरिक्खणेण कइया वि कहाणिय-अक्खणेण । कइय वि गोटिहिं सुवियस्खणेण कइय वि य रज्ज-चिंतक्खणेण । कइया वि सुद्ध वाएइ वीण कइया वि मज्झि चिट्ठइ कवीण । कइया वि मंति पुच्छइ पवीण कइया विरयइ कणयच्छवीण । ५ कइय वि पुण बहु-सोहग्गएहिं पण्हेहिं कलत्तेहि सोहणेहि । पढणा-ऽऽहरणेहिं सुहासिएहि मित्तेहिं समुद्देहि मंदिरेहिं । कइय वि पुण कीलइ सुरयणेहिं बुह-मुह-कव्वं-सुय-भूसणेहिं । कइय वि दीणाइहिं देइ दाणु कइया वि कुणइ वइरीण दाणु । कइया वि विहिय-गमणो रहेण मित्तेहिं सहुं ललइ मणोरहेण । १० ताउ वि विलासवइ-चंदलेह कीलंति परोप्परु घण-सिणेह । पंचविह-भोय-मुंजंतयह मुविसाउं रज्जु करंतयह । देवी विलासवइ अंगरूहु संजणय जणय-जण-जणिय-सुहु । पुत्तह जम्मि तम्मि अइ-रम्मउं वद्धावणउं कारियं । बंधण-मोयणाइ दीणाइहिं दाणु तहा अणिवारियं ॥२६॥ उद्दाम-सदु बंदिण-विमदु मद्दल मउंद-आनंद-सद्दु । उल्लसिय-मल्ल पेल्लिय-पमल्लु तंबाल-पूर-पूरिय-मुगल्लु । [२५] २८. पु० विणोयहिं अच्चुएहिं [२६] ३. पु० मज्झे ९. ला०-मगोहरेग ११. ला० सुविसालं रज्ज--१२. पु० संजइ जणय-१४. ला० तहा निवारियं । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०.२७] विलासवईकहा कुंकुम - कप्पूर-कुरंग-गंधु वच्चंत चेडि अच्चंत -हासु ५ हीरंत-पोत विहसंत- मित्तु परिपुण्ण मासि तो बालयस्स एवं च महाबलु अइवलो य उत्पन्न पुत्त पंच वि सुरूय पढमं विसालबलु धिइबलो य १० एवं अन्नाण वि राणियाण इय जणणि जणय अंतेउरेहिं संपुण्ण मणोरहु विगय- भउ मच्चंत भिच्च नच्चण-पबंधु | तरलंत तरुणि वडिय -विलासु । इय मणहरु वद्धावणउं वित्तु । अजियबलु नाम संठविउ तस्स । अतुलबल नाम अगणियबलो य । अह चंदलेह - देवीए हूय । सत्तीबलु तह साहसबलो य । उप्पन्न पुत्त सव्वहं पहाण | मित्तेहिं य पुत्तेहिं सुंदरेहिं । सो कालु न याणइ को विगउ । तं निय-बंधु - मित्त-साहारणु भुंजइ पुत्र- पुण्ण आवज्जिउ || इ विलासवई - कहाए जणय-समागमो नाम दसमा संधी समत्ता ॥ सई वज्जिय अकज्जयं । विज्जाहरहं रज्जयं ॥ २७ ॥ [२७] ४. पु० - चेडिय ६ ला नाउं संठविय ९. ला० पढमउ वि० १७१ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधि-११ आइउ तहिं पुरवरे तो एत्थंतरे चित्तंगउ नामेण मुणि । चउनाणेहिं जुत्तउ लद्धि-फुरंतउ सीसि विहिय सज्झाय-झुणि ॥ चारण-रिसि जंगम-कप्परुक्खु सण-मेत्तिय वि दलिय-दुक्खु । भव्वाण भवण्णव-जाणवत्तु विहरंतु कमेण ममत्त-चत्तु । ५ पत्तउ रहनेउरचक्वालि उज्जाणि मणोरमि ठिउ विसालि । खयरिंदह हरिसभरालएहिं साहिउ उज्जाणह पालएहि । जिह को वि देव बहु-मुणि-सहाउ चारण-रिसि तुह उज्जाण आउ । तं निसुणेवि तुडु सणकुमारु परिओस-दाणु तहु देवि सारु । निय-जणय-जणणि-परिवारु लेवि गिण्हेवि विलासवइ-पमुह देवि । १० चालिय-अस-पिय-बंधु-मित्तु चल्लियउ तस्स बंदण-निमित्तु । अह गरुय-विभूइहिं पुर-समेउ उज्जाणि पत्तु तहिं सिग्घ-वेउ । विज्जाहर-साहु-सहा-निविदछु दूरह चित्तंगय-सूरि दिछु । उत्तरिउ गइंदह नं भव-विंदह रज-चिण्ह पुणु परिहरइ । नं गुरु आसन्नउ दंसण-पुण्णउ पंच-विसय-वज्जणु करइ ॥ १॥ तो गरुय-भत्तिभरुल्लसिय-चित्तेणं सो साहु-मज्झद्विउ दिठ्ठ मुणि तेणं । सूरो व्व नहे फार-विप्फुरिय-तव-तेउ दीवो व्व अन्नाण-घण-तिमिर-कयच्छेउ । चंदो व्व आणंदणो भब्व-नयणाण जलहि व आवासु गुण-दिव्व-रयणाण । मेरु व्ब निक्कंपु उवसग्ग-पवणेहिं वर-फलिय-रुक्खु व्व न य मुक्कु सउणेहिं । ५ कण्हो व्व जत्तेण असुरक्खणासत्तु सव्वो व्व निद्दड्ढ-मयणो महा-सत्तु । बंभो व्व तिण्हं पि वेयाण गय-पारु लंकाए नाहो व्य बहु-सीस-परिवारु । अन्ने वि मइमंतया साहुणो दिट्ट बाणा व गुण-सहिय धम्मम्मि सुनिविट्ट । [१] २. ला० चउनाणिं जुत्तउ...सोस विहिय, ३. ला० दंसणमेत्तेण ५ पु० ०वाले.... ___ मणोरमे....विसाले । ७. ला० उज्जाणे ११. ला० पुरा-समेउ [२] १. ला०-मज्जडिओ ५. ला० असुरक्खणासंतु ६. ला० लंकाइ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] ११.४ ] विलासवईकहा १७३ अइ-दुब्बला नाइ सिद्धि-बहु-विरहेण हय-कम्म-मायंग चारित्त-सरहेणं । सिद्धत-साराई केई पयासंति अन्नेवि अन्नाण अन्नाणु नासंति । १० उवसप्पिऊणं च तो खयर-नाहेण गुरु-सहिय ते वंदिया जण-सणाहेण । तो दुह-तरु-कुंजरु हय-भव-पंजरु मोक्ख-बीउ अ विदिन्नउ । गुरु-पमुहेहि सव्वे हि हय-मय-गव्वेहिं धम्म-लाहु तसु दिन्नउ ॥ २ ॥ गंभीर-सजल-जलहर-सरेण संभासिय सव्वे मुणीसरेण । मुणिनाणु निएविणु परम-हिट्ठ मुद्धइ धरणीयलि ते बइठ्ठ । एत्यंतरे पत्थुय वित्थरेणं वर धम्मह देसण मुणिवरेणं । भो भव्वहो भूरि भयंतएहि भव-सायरे भीमे भमंतएहिं । पेक्खेवि चउरासी जोणि लक्ख विसहं तेहिं जम्मण-मरण-दुक्ख । ५ कह कह वि खवेविणु असुह-कम्मु पाविज्जइ दुलहउ मणुय-जम्मु । चउ-गइहि मज्झि मणुयत्तु सारु जं एत्थ होइ धम्मह वियारु । विसयाउर तावहिं देव हुंति ते धम्म-कज्जु कइयहं कुणंति । पेक्खणयमाइ अक्खित्तयाहं एक्कु वि न समप्पइ कज्जु ताहं । १० जइ पर जिणिद-कल्लाणएमु मुणिनाणेहि अह नंदीसरेसु । तहिं पुज्ज-महिम जाएवि कुणंति सब्भूय-गुणेहि य संथुणंति । निव्वत्तहिं पवरु जिणाहिसेउ पर धम्म-कज्जु जइ ताहं एउ । ता विसयासत्तहं गाढ-पमत्तहं इंदाइ सुकय-सेवयहं । एहु विरइ-लक्खणु किह धम्मक्खणु संपज्जइ किर देवयह ॥ ३॥ नरएमु वि जे नारय हवंति ते दुक्खु निरंतर अणुहवंति । पुन्व-कय-पाव परिणइ-बसेणं हम्मंति के वि मोग्गर-झसेणं । पीलिज्जहिं दारुण-जंतएहिं फालिज्जहिं तह करवत्तएहि । पच्चंति कुंभिपाएस के वि खिप्पंति कहंति कडाह लेवि । ५ सव्वंगेहिं छिज्जहिं असिवणेसु भिज्जहिं सिंबलि-आलिंगणेसु । [२] १०. ला० तो वंदिया ११. पु० हय-भय-पंजरु १२. ला० धम्मलाभु [३] ८. पु० ताव हे देव ११. पु० तेहिं पुज्ज ..गुणेहि वि संथु० १२. पु० पउरु जिणा० १३.पु. सुक्य-सेवहं १४. पु० विरए - लक्खणु...देवहं । [४] ४. पु. कड्ढंत कडाहे ५. ला० सियलि आलिंगणेसु Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ साहारणकइविरइया [११.५ छुब्भहिं वेयरणी-नइ-पवाहे डज्झहिं नरयानल-घोर-दाहे । एमाइ दुहत्तहं नरय-लोइ किह धम्म-बुद्धि नार यहं होइ । पायाले सत्त-पुढवी-ठियाहं जाएवि धम्मु को कहइ ताहं । जइ पुव्व-पत्त-सम्मत्त के वि जाणंति ओहि-उवभोगु देवि । १० अह पुव्व-नेह पडिबधु होइ बलभद्ददेउ जिंव कहइ कोइ । ता नारय-सत्तहं बहु-दुक्खत्तहं सुविसिटउ खयराहिवइ । संसारुनारणु दुक्ख-निवारणु धम्मक्खणु किह संभवइ ॥४॥ तिरियहं वि कुजोणिहिं पत्तियाहं अण्णाण-मोह-बस-वत्तियाहं । भय-दुक्ख-निरंतर-पूरियाई किह धम्म-बुद्धि जायइ जियाह । पुढवी-जल-जलणानिल-वणाण पंच-पचार एगिदियाण । बेइंदिय-तिइंदिय-चउरिदियाण समुच्छिम तह पंचिंदियाण । ५ एयाण ताव न मणं पि होइ गब्भयह चेव मणु तिरिय--लोइ । ताण वि न तहाविह का वि बुद्धि आहार-निद-मेहुणेहि गिद्धि । गम्मागम्माई न ते मुणंति भय-दुक्खहिं पीडिय किं कुणंति । न परिच्छहि भासिउ माणुसाण ता धम्म-विवेउ न होइ ताण । जइ पर जाइस्सरणुब्भवेणं अहवा सुनाणि-मुणि-दसणेणं । १० सम्मत्त-मेत्तु के वि लहंति तह देस-विरइ विरला कुणंति । ता बहु--भेयहं नट्ठ-विवेयहं सव-कालु दुह-भरियहं । वर-धम्माराहणु मोक्खह साहणु किह संपज्जइ तिरियहं ॥ ५॥ आहार-निदा-भय-मेहुणाई माणुसहं वि तिरियाण वि समाई । अब्भहिउ धम्मु पर माणुसाण सो जाह नस्थि ते पसु-समाण । जे देसे हि होति अणारिएम सुह-धम्म-बुद्धि किह होइ तेसु । आरिय-देसम्मि वि को विसेसु जे हुय मेच्छाइमु दुक्कुलेसु । ५ सुकुलाम्म वि उप्पज्जहिं कुरूय वाहिल्ल हुंति बहिरं-ऽध मय । [४] ६. पु० नरमानले घोरडाहे [५] ४. पु० बिंदिय-तिदिय-चउं... पंचेदियाण । ६. ला० आहार-निंद.. [६] २. पु० अब्भहिउ धम्म ३. ला० जे देसहिं हुति...होइ तस्सु । Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११.८] १७५ विलासवईकहा सगुणा वि लहहिं जणयावमाणु माणेण चयहिं निय-देह-ठाणु । पर-देसि कलंकह संघडंति कह कह वि जीय संसइ पडंति । पुणु पुणु पावहिं पिय-विप्पओउ मित्तहं विरहम्मि य गरुय-सोउ । पिय-विरह-विमोहिय अवि मरंति दुह-नासणु धम्मु न आयरंति । १० अह सयल-सोक्ख-संपुण्णु होइ रागंधु न सेवइ धम्मु तोइ । आरिय-देसम्मि वि कुलि विमलम्मि निरुवमं तु जइ संभवइ । तो वि गुणेहि समिद्धउ पुण्णेहि लद्धउ मणुय-जम्मु सो हारवइ ॥६॥ ता दुल्लहु पावेवि मणुय-जम्मु खयराहिव किज्जउ जिणह धम्मु । भो भो भव्यहो जसवम्म-राय वज्जेह सव्वे दारुण पमाय । जियलोइ असासउ सव्वु एउ चिंतह असार-संसारच्छेउ । पेच्छह धावंतु कयंत-हत्थि जसु पासह छुट्टेवउं न अस्थि । ५ जर-रक्खसि अंतरि संचरेइ अप्पणु सरिच्छ जा तणु करेइ । खणमेत्त-सोक्ख बहु-दुक्ख-जोय जाणह महुबिंदु-सरिच्छ भोय । दुक्ख चिय सव्वु भवटियाहं पर होइ सोक्खु मोक्खह गयाहं । आहरणु एक्कु एक्कु वि सुणेह मुह दुक्ख जेण मणुयह मुणेह । भुवणउरि वसंतउ पुरिसु कोइ दारिदिउ दुखिउ हुयउ सोइ । १० सोक्खई वंछंतउ नियमणेणं नीसरिउ कह वि देसंतरेणं । सो मग्ग-पणट्टउ सावय-तद्वउ तिसियउ माइण्हिय-नडिउ । नाणा-तरु-छन्नहिं अइ-वित्थिण्णहिं भीसण-घण-अडविहिं पडिउ ॥७॥ कत्थ वि अलंघ-गुरु-पव्वएहिं कत्थ वि भीसावण-वण-दवेहिं । बहु वंक-विवंकिय नइ वहति दीसंति गड्ड कत्थ वि महंति । कत्थ वि विस-तरुवर महुर-साय आमल-बहेड-हरडइ कसाय । वियरंति घोर तहिं वग्ध-सिंघ कत्थ वि घण-लय-जालेहिं अलंघ । ५ सो तत्थ जाइ ढंढोलएणं पावइ न मग्गु दिसि-भोलएणं । [६] ६ ला० सवणा वि १०. ला०- सोक्ख-संपुन्न १२. ला० गुणेहि [७] १ पु० पावेविणु ३.ला० जिय-लोए १६. पु. कहिं वि [८] २. पु० वंकविवंक नइ हवंति ५. ला-लय-जालहिं ५. पु० दिस-भोलएण Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ साहारणकइविरइया [११.९ एत्तहे नव-उन्नय-मेह-वण्णु चउ-दसण दीह-करु चवल-कण्णु । आरूठ्ठ जीव-संहारयंतु तसु धाविउ वण-कुंजरु महंतु । पुरउ य तस्स कत्तिय-कराल पयलंत-दंत बीभच्छ-बाल । खायति मंसु लोहिउ पियंति वण-रक्खसि धावइ लहलहंति । १० तं पेच्छवि पंथिउ निरह भीउ न वि एयहं पासह मज्झ जीउ । एरिसु चिंतंतई दिसि जोयंतइं नाइदूरे विणिविट्ठउ । गयणग्ग-विलग्गउ सउण-समग्गउ तें वन-पायवु दिट्ठउ ॥ ८ ॥ तो छुट्टउं इह तरुवरे चडेवि धावियउ पहिउ इय चिंतवेवि । पत्तउ नग्गोहह मूलि जाव आरूहेवि न सक्कइ तत्थ ताव । तरुवरु अण्ण जो नहयरेहि आरूहियइ किह अम्हारिसेहिं । इय चिंतेवि गरुय भयाभिभूर पेच्छइ वड-हेट्टइ जुण्ण-कूउ । ५ तण-निवह-वल्लि-छाइय-मुहम्मि पहिएण मुक्कु अप्पाणु तम्मि । तस्स य तडम्मि सरथंभु जाउ तर्हि लग्गउ पहिउ पलंब-काउ । कूवस्स पलोइय जाव हेट्छु ता अयगरु घोरु महंतु दिट्ट । चउसु वि तडेसु चउरो सदप्प डसणाहिलास तिं दिट्ट सप्प । सरथंभु जाव ता मज्झ जीउ इय चितेवि जोवइ मलु भीठ ! १० तं तिक्ख-दाढ दुइ धवल-काल छिदंति मूलु मृसय कराल । सा रक्खसि दुट्ठिय कूव-तड-ट्ठिय खणे खणे कत्तिय वाहइ । वण-कुंजरु मत्तउ रोस-फुरंतउ सो पुणु पंथिउ बाहइ ॥ ९ ॥ [१०] तो पुरिसु तेण अनियत्तएणं वडे वेज्झु दिन्नु आरूढएणं । हल्लाविउ वड-पायवु सभग्गु साहाए तस्स महुयालु लग्गु । फुटटेवि पडि उ तं कूवम्मि महुबिंदु लग्गु पहियह सिरम्मि । सो ओगलंतु तसु मुहि पविठु तं आसायंतउ पहिउ हिटछ । ५ ताओ वि महुयालह मक्खियाउ कोवेण य पुरिसह लग्गियाउ । तं दुक्खु सहंतु वि न य विसन्तु इच्छइ महुबिंदु पडंतु अन्नु । [९] ३. ला० हेठइ उधु कूउ । [१०] १. पु० दिदछु आरुटु. १. पु० सो उगलंतु ..मुहे ६. ला० सहतो Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ ११.१२] विलासवई कहा एत्तहे वि भमंतउ दिव्य-जोइ आइउ विज्जाहरु तत्थ कोइ । अणुकंप धरेविणु निय-मणेण सो भणिउ पुरिसु विज्जाहरेण । भो भद्द पडिउ तुहं संकडम्मि ता तइं आरोवउं इह वडम्मि । १० जंपइ खणु एक्कु पडिक्खि तांव अन्नु वि महुबिंदु पडेइ जांव । करि-रक्खसि-अयगर मूसय-विसहर अगणेवि महुमक्खियह डरु । अवमनिय-खेयरु वज्जिय वडतर आसायइ महुबिंदु नरु ॥१०॥ [११] मई अक्खिउ ता वित्तंतु एहु संपइ इमस्स उवणउ सुणेहु । भुवणोयरु जं पुरु साहियं ति लोयहं आयासु फुडं तयं ति । दालिदिउ जो नरु दुहवरीउ | सो धम्म-धणुज्झिउ मुणह जीउ । सोक्खई सया वि इच्छइ मणेणं न य पावइ विणु धम्मह धणेणं । ५ णीसरिउ भवंतर-गुरु-गईए पडियउ संसार-महाडवीए। . जिण-धम्म-पवर-मग्गह पणछ भय-दुक्ख-सोय-सावयहं तछ । अच्चंत तिसिउ विसयहं तिसाए विनडियउ आस-मायण्डियाए । जहिं कम्म-महातरु बहु-पयारु संसार-महाडइ सा अपारु । मय-माण-गव्व-पव्वएहि दुग्ग पज्जलिय-कोह वर्ण-दाव उग्ग । १० माया-पवंच कुडिलय-गईउ बहु-वंक-विवंकउ तहिं नईउ । लोहाइय गइडउ अइसय उंडउ महुर-साय विस-तरु विसय । हासह छक्कं चिय वेय-तियं चिय आमलयाई भणहिं रिसय ॥११॥ तहिं वग्ध-सिंघ सम राग-दोस लय-जाल गुविल-जोणि-विसेस । पडियउ कुधम्म-ढंढोलएणं मिच्छत्त गरुय दिसि-भोलएण। पावइ न जीउ जिण-धम्म-मग्गु पट्टिहिं जम कुंजरू तस्स लग्गु । चउविह आउक्खय गरुय-दंतु संसारि जीव संहारयंतु । [१०] ११ पु०-मक्खियह दरु । १२. ला० आसाइय महुपिंडु नरु [११] ३. पु० दुह-परीउ ५. ला० संसार-महा-नईए ८ ला० संसार महा-नइ सा अवार। १०. लाल-गईओ...विवंकओ... नईओ। ११. ला० गड्डओ...उंडओ १२. ला. छक्कं विय वेयतियं विय। २३ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ साहारणकविरइया [११.१३ ५ सो चवल कण्णु समयाइएणं दूरह व लेइ दीहर-करेणं । पुरओ जर-रक्खसि तस्स धाइ जहरूव निरूविय मुणह सा इ । जो तुंगु कहिउ नग्गोह-रुक्खु सो मरण-भउज्झिउ मुणह मोक्खु । सो सिद्ध-निलउ विसयाउरेहिं आरूहिवि न सक्किज्जइ नरेहिं । मणुयत्तु मुणेज्जह जुण्ण-कूउ बहु-जोणि लयाहिं छन्न-रूवु । जो वि य तडे तहिं सरथंभु जाड़ तं जीव-पहिय-अवलंबु आउ । जो हेतुइ अयगरु घोरु वुत्तु सो नरय-वासु जाणहि निरुत्तु । जे विसहर दारुण गरुय-काय ते डसहि जीउ जाणहि कसाय । जे मूसय सर-कट्टणेसु दक्ख ते धवल-कसण दुइ मुणह पक्ख । जा पुण महुयालह मक्खियाउ ता बहुविह वाहिउ अक्खियाउ । १५ खणमित्त-सुहाणि य बहु-दुहाई महुबिंदु-समई विसयहं सुहाई । विज्जाहरु धम्माइरिउ कोइ उत्तारण-मणइ दयाए सोइ । महुबिंदु-सरिच्छेहि भोएहि तुच्छेहिं गिद्धउ जीउ विमूढ-मइ । बहु-दुक्खेहि जडियउ संकडि पडियउ तो वि न धम्मेहिं उज्जमइ ॥१२॥ तो अकय-धम्मु नरयम्मि जाइ जहिं सोक्खहं नत्थि पवित्ति काइ । तो भव्यहो एयारिसु मुणेवि उज्जमह पमाउ परिच्चएवि । थेवई वि पमायह विलसियाई उप्पायहिं पर-भवे दुह-सयाइं । एत्थंतरे पणमिवि विणय-सारु गुरु पुच्छइ एउ सणंकुमारु । ५ भयवं किं पर-भवे कियउ आसि मइं पाविउ जे बहु-दुक्ख-रासि । बहु-वार विलासवइ-विओउ विरहम्मि तीए किं दुसहु सोउ । किं एह आसि महु अन्न-जम्मि घण-पेम्म वसइ जे मह मणम्मि । सुकिएण केण सुकुलम्मि आउ उप्पन्नउ विज्जाहरह राउ । मुणि जंपइ नाण-पयास-भाणु मुव्वउ खयराहिव निय-नियाणु । १० इह भरह-वासि पंचाल-देसि कंपिल्ल नामु पुरवरु अहेसि । [१२] ७. पु० तुंगु कलिउ ८. ला० सिद्धि-निल १० ला• अवलंबु जाउ । ११. पु. जाणह १७. ला०-सरिच्छहिं...तुच्छिहिं [१३] २. ला० सुणेवि ४. पु० पणभेविणु १०. पु० कंपेल्लु नाम पुर वरु Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ ११.१५] विलासवईकहा धण-कणय-समिद्धउं पुहइ-पसिद्धउं भाईरहि-नइ-तडि वसिउ । धरणिहि अवइण्णहं लणहं सउण्णहं सग-खंडु नावइ खसिउ ॥ १३ ॥ [१४] पय-पालणु पत्थिव-गुणेहिं जुत्तु तहिं आसि नरा हिवु चंदउत्तु । कुवलयसिरि राणिय आसि तस्स हिय-इट्ठिय सिरि जिह महमहस्स । सोंडीरवाय सोहग्ग-जुत्तु ताण य कुमारु तुहु रामगुत्तु । एसा पुण गज्जणयाहिवस्स सिरि-तारावीढ-नराहिवस्स । ५ जोव्वण-विलास-लायण्ण-रासि हारप्पह नामेण ध्य आसि । सा तेण दिन्न तुह साणुरूय घण-पेम्म-परायण घरिणि हूय । एईए सरिसु तुहं सुहु विसालु मुंजतु न जाणहि गयउ कालु । अह विविह-वियारेहिं उल्लसंतु संपत्तु जणह मणहरु वसंतु । तो तुम्हि महंते चडयरेण ___ कीला-निमित्तु सहुं पुर-जणेण । १० नाणा-उवगरणेहिं संगयाइं रमणीय-तीरे गंगहे गयाई । हल्लंत-तरंगेहि हंस-हंगेहिं तहिं रमणीय-लया-हरइ । दोन्नि वि सविलासई वड्डिय-हासई ठियई तुम्हे जिह मयण-रइ ॥१४॥ [१५] मयणाहि-गंधु ससहरु बहक्कु नव-घुसिण-विलेवणु तुम्ह हुक्कु । अवरोप्पर-हास-परायणाई मुह-कमल-निवेसिय-लोयणाई। जा तत्थ तुम्हे सयमेव तेण उबट्टह अंगु विलेवणेण । ता हंसहं मिहुणु मणाहिरामु तहिं पत्तु लया-हरि धवल-धामु । ५ तो गरुय हास-वियसिय-मुहाए तुहुं भणिउ एउ हारप्पहाए । पिय हंस-जुयलु गिण्हह खणेणं एउ जेण विलिंपह कुंकुमेणं । तो धरिय हंसि तइं कोउगेणं देवीए हंसु पुणु करयलेणं । दोण्णि वि किय घुसिण-विलित्त अंग जाणंति परोप्पर जिह रहंग। खणमेत्तु धरेविणु मेल्लियाई नियडे वि न परियाणंति ताई। १० तो गरुय-विरह-वेयण-वसेणं कूवंति दो वि करुणई सरेणं । [१४] ४. ला० एसा उण ६. ला० घरणि ७. ला० एई य सरिसु, पु० न याणहि ९. पु० तुम्हें महंते [१५) १. पु० तुम्हे ढुक्कु ६. पु. गेण्हहं ७. पु० तं कोउगेणं Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० साहारणकइविरइया [११.१६ आहारु न इच्छहिं मरणह वंछहिं खणु अच्छहिं चिंतावियइं। खणे गयणह उड्डहिं खणे जलि बुड्डहिं विरह-जलण-संतावियई ॥१५॥ खणे तीर-लया-वणे संकमंति सुर-सरिहि पुलिणि विउलई भमंति । निमुणेवि सदु एक्कहिं मिलंति पुणु चक्कवाय-संकए छलंति । तो गरुय-सोय-अभिभूययाइं हुय बे वि मरण-कय-निच्छयाई । सुर-सरिहि सोत्ति बुड्डंति जांव पक्खालिउ कुंकुमु सयलु तांव । ५ पेक्खवि परोप्परु धवल-काउ तो दोण्ह वि पच्चभिजाणु जाउ । मिलियाइं ताई तुट्टई मणेण ___खयराहिव तई पुण तत्तिएण । तेहिं कम्मु उवज्जिउ अंतराउ तें पुणु पुणु देवि-विओउ जाउ । तम्हा हासेण वि परह पील मा कुणह भवे भवि सुद्ध-सील । जं पुण पई पाविउ पउ पहाणु तं कारणु सुणसु कहिज्जमाणु । १० जो एहु मणोरहदत्तु मित्तु तर्हि जम्मि आसि तुह एग-चित्तु । जिणदासह नंदणु नामें चंदणु जीवाइय-तत्तेहिं कुसलु । साहम्मिय-रत्तउ मुणि-गण-भत्तउ जिणवर-पय-पंकय-भसलु ॥ १६ ॥ दढनेह सुमित्तिं चंदणेण तुहु भय भाव निविठ्ठ तेण । उत्तारवि गुरु-मिच्छत्त-भारु किउ किंचि वि वियाणिय-तत्त-सारु । अह तत्थ नयरे मुणि धम्मघोसु संपत्तु नाण-तव-चरण-कोसु । सो तुज्झ निवेइउ चंदणेण वंदण-निमित्तु गउ सरिसु तेण । तहिं नीय देवि हारप्पहा वि पय-कमले पणय मुणिवरह सा वि । आसीस देवि तो मुणिवरेण जिण-धम्मु पवेइउ वित्थरेण । सम्मत्तु नाणु संजमु विसिट्ठ अपवग्ग सग्गु एहु जिणेहिं दिछु । सम्मत्तु पढमु मोक्खह पहाणु जीवाइ पयत्थहं सदहाणु। भण्णइ सुहाइ परिणाम-रूवु धन्नो च्चिय पावइ कोइ जीवु । १० उप्पज्जइ मिच्छत्तह खएण अहवा वि तस्स खय-उवसमेण । १६] २. ला०-संकए वलंति ४. ला०-सरिहि सुत्ति ५. पु० पच्चभयाणु ११. पु० जीवाइय-तत्तर्हि [१७] ७. ला० सम्मत्त नाणु ९. ला० को वि जीवु Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ ११.१९] विलासवईकहा जिह ऊसर-खेत्तई पुव्व-पलित्तई वण दवु थक्कइ न य दहइ । तिह मिच्छह अणुदइ जं सुहु विदइ तं उवसम-दंसणु लहइ ॥१७॥ __ [१८] तं तिविहु वि होइ निसग्गएण अहवा जिण-आगम-अभिगमेण । उक्कोसिय कम्महं ठिइ खवेवि सायरह कोडि अणिय धरेवि । सुंदर अउव्वकरण-कमेण दढ-कम्म-गंठि भिंदइ खणेण । तयणंतर नं सिव-रुक्ख-बीउ भव-सिद्धिउ पावइ भव्व-जीउ । ५ उप्पज्जइ दंसणु एउ जासु नियमेण कुणइ दोग्गइ-विणासु । जइ तं सम्मत्तु वि न य वमेइ न य पुव-निवद्धाउऊ हवेइ । सम्मत्ते पत्ते उवसमु करेइ संविग्गु मोक्खु पर अहिलसेइ । निविण्णु वसइ दारुण-भवम्मि अणुकंप कुणइ सो दुक्खियेम्मि । मन्नइ नीसंकु जिणोवइछ इय चिंधेहिं तं सम्मत्तु सिठ्ठ। १० परिवज्जिय-कुग्गहु मुद्ध-भाउ सो मन्नइ देवु वि वीयराउ । जसु भुक्ख-पियासइं राग-दोसई खेउ सेउ मलु मोह भउ । भय-मय-जर-जम्मणु चिंता-वंचणु निद्द पमाउ विमोहु गउ ॥१८।। इमेहिं च अट्ठारसेहिं पि मुक्को असेसाण संसार-दुक्खाण चुक्को । अणंगो वि झाणानले जेण दड्ढो न जो सेवए कामिणी काम-थड्ढो। न उद्धलए जो य छारेण अंगं सिरे जडाओ न धारेइ गंगं । न खटुंगमुग्गं कवालाण माला सरीरम्मि नो जस्स नागा कराला । ५ न जो नच्चए गायए नट्ठ-हासो मसाणम्मि भूयाउले नत्थि वासो । न पक्खीसु सीहे बलदे व रूढो न जो मारए चूरए ने य मूढो । न चक्कं धणूं धारए ने य मूलं न खग्गाइयं आउहं दोस-मूलं । न अप्फालए डमरुयं ने य संखं कयंतो व्व संहारए नो असंख । नडो जेंव नो धारए ऽनेय रूवं न माया-पवंचेहि वंचेइ लोयं । [१८] २. पु० कोडे ऊणिय ५. पु० दसण ११. ला. रोग-दोसइं .. भओ । १२. ला० पमाओ वि मोह गओ। [१९] ३. पु० सिरेणं जडाउ न ६. ला० मारए दूरए Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ साहारणकइविरइया [११.२० १० पुणो मच्च-लोए न जस्सऽस्थि कज्जं परं पालए अक्खयं मोक्ख-रज्जं । हसिज्जंति जेहिं वियारेहिं भंडा जणे तेहिं देव त्ति रूढा पयंडा । अभक्खे अपेए अकज्जे अगम्मे रया कप्पिया देवया लोय-धम्मे । अवराहि न रूसइ थुणिउ न तूसइ वीय-राउ जो मुक्क-कलु । विहि-आराहतहं उत्तम-सत्तहं चिंतामणि जिह देइ फलु ॥ १९ ॥ २०] तेण य सव्वण्णु-जिणेसरेणं उप्पन्न-विमल-केवल-वरेणं । जीवाइ पयत्थई साहियाई सम्मत्त-जुत्तु सद्दहइ ताई । जीवा अजीव तह पुन्न -पावु आसव-संवर-निज्जर-सहावु । बंधो य मोक्खु कम्मक्खएणं नव तत्त होंति एयक्कमेण । ५ एयाण पयत्थहं वित्थरत्थु अवयरइ जिणागम् इह समत्थु । एत्थ य जिण-सासणि जे निविट्ठ वज्जिय-घर-पुत्त-कलत्त-इट्ठ । उवसम-पहाण उज्जुय अमाण तव-संजम-सव्व-विमुद्धि-हाण । निक्किचण बंभव्यय-सुगुत्त गुरु मन्नइ दसविह-धम्म-जुत्त । गुरु-देव-धम्म-पडिवत्ति-जुत्तु सुविसुद्ध एउ सम्मत्तु वुत्तु । १० सम्मत्त-सहिउ नाणं पि सारु तं पुण भणंति पंचप्पयारु । तहिं मइ-सुय गणइं ओहि-पहाणइं मणपज्जवु केवलु अवरु । चत्तारि य मूयई सेसई हूयई परूवारि मुयना गु वरु ॥२०॥ [२१] मइ अठ्ठावीसइ भेय होइ सुय-नाणु चउद्दस-भेउ लोइ । छन्भेयई अहव असंखु ओहि मणपज्जवु दुविहु मणुस्सओ हि । अप्पडिहउ सासउ अप्पमाणु एग-विहु वि केवल होइ नाणु । एयाई य नाणई होति जासु दीवो व्य कुणहिं भावहं पयासु । ५ सपरोवयारि सुय-नाणु जेण तहिं किरइ भव्यहु जत्तु तेण । [१९] १३. पु० अवराहे [२०] १. ला०-केवल-धरेणं । ३. पु०पुण्णु-पावु ७. ला० संजम- सत्थ-विसुद्धि-१२. पु. सुय-नाण-धरु । [२१] ३. ला० एगविहो Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ ११.२३] विलासवईकहा नाणेण सुहासुहु मुणइ जांव चारित्तु पयट्टइ नरह तांव । तं दुविहु होइ संजम-तवेहिं संजमु सत्तरसेहिं भेयएहिं । . तवु दुविहु जिणिंदेहि समुवइठु अहवा वि दुवालस-भेउ सिदछ । एक्केक्कु भेउ जा वित्थरेइ ता एत्थ विसेसु वि अवयरेइ । १० अह तं चारितु सवित्थरेण साहियउ तुम्ह ते मुणिवरेण । एरिसु निसुणेविणु तो पणमेविणु तई पुच्छिउ सो मुणि-पवरु । भयवं इह संजमु एरिसु दुग्गमु जो काऊण न तरइ नरु ।। २१॥ [२२] सो केरिसु धम्मु समायरेइ केण व संसारु समुत्तरेइ । मुणिवरु भणेइ जो न वि चरित्तु सक्कइ नीसेसु गुणाइरित्तु । सो सावय-धम्मु समायरेइ जह-सस्ति दोसह वज्जणु करेइ । अहवा जिण-पूयण-चंदणेण संसार-रुक्ख-निक्कंदणेण । अज्जिणइ पुण्ण भावप्पहाणु सो पावइ मोक्ख-महा-निहाणु । जो पुज्जइ पडिमाउ वि जिणाण बहुमाणु कुणइ उत्तम-गुणाण। उत्तमु वि धम्मु सो अज्जिणेइ कम्मारि-सेन्नु जें निज्जिणेइ । उत्तम-कुलेसु सो संभवेइ पउ उत्तम--सत्तह सो लहेइ । जिह उदय-बिंदु रयणायरम्मि निक्खित्तउ अक्खउ होइ तम्मि । १० तह पूयणु विहिउ जिणेसराण अक्खउ अक्खलिय-गुणायराण । जिह खित्ति विसुद्धइ नीर-समिद्धइ बीउ पइण्णउं बहुय-फल । तह वियलिय-रायह नाण-सहायह पूया-बीउ अणंत-फल ॥२२॥ मुणि कहिउ तुज्झु परिणमिउ एउ पुज्जमि विहीए जिणयंदु देउ । एसो वि धम्मु निव्वहइ मज्झ आढत्तउं पूयणु तिण्णि संझ । हारप्पहा वि तुह भावसारु उत्रणेइ सव्वु पूओवयारु । देवी वि दुइय तुह चंदलेह हारप्पहाए सहि आसि एह । [२१] ६. लाजाव......ताव । ८. पु० जिणेंदिहिं ९. ला० एत्थ असेसु [२२] ४. ला० संसार--दुक्ख- ५. ला० पुनु भाव० ६. ला० पडिमाओ ७. ला० ज निज्जिा ११. ला. खित्त १२. पु० पूजाबीउ [२३] १. ला० जिणइंदु ४. ला० तह चंद० Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ साहारणकइविरइया [११.२४ ५ तहिं जम्मि परम-भाविय-मइए मुणिवरहं दाणु दिन्नउं इमीए । सव्वइं सिणेह-सुह-संगयाई धम्मेण तेण सग्गहो गयाई । अवयरिवि एत्थ उववज्जियाई इय पुनइं तुम्ह उवज्जियाई । पुणु जंपइ एउ सणंकुमारु भयवं सव्वं चिय मज्झ सारु । पर तामलिस्ति-नयरिहि गएण किह लधु अयसु राणिय-मिसेण । १० तो कहिउ एउ चित्तंगएण तहि चेव जम्मि रज्जट्टिएण । कंपिल्ल-महापुरि नामि सुंदरि सेटिहे धृय मुहंकरहो। साविय अकलंकिय सीलालंकिय उज्जोवणि निय-कुलहरहो ॥ २३॥ सा रूवमंति जहिं संचरेइ तहिं तर्हि जुवाणह मणु अवहरेइ । अवलोयइ संमुह बाल जासु निवडइ मयरद्धय-धाडि तासु । जड पुणु कह वि सा उल्लवेइ ता पुरिसहं चित्तइं संतवेइ । अह सा मयणानिल-ताविएण पत्थिय कह वि मंतिहि सुरण । ५ तीए वि जिणागम-भावियाए सो नेच्छिउ उत्तम-सावियाए । तो तीए उवरि तमु हुयउ रोसु तुह पुरउ पयासिउ तेण दोसु । तं वयणु तस्स अवियारिऊण आणाविउ सेट्टि धराविऊण । अह सुंदरीए उव्वेउ जाउ मह दोसें राउलि धरिउ ताउ । ता करि पसाउ सासणह देवि अलियउ कलंकु मह अवहरेवि । १० मेल्लावहि भयवइ मज्झ ताउ किउ काउसग्गु निच्छय-सहाउ । तो तम गुण-भाविय सासण-देवय पाडिहेरु सेट्रिहि कुणइ । सहस त्ति समग्गइं नियलई भग्गइं विम्हउ सयल-जणह जणइ ॥२४॥ [२५] पत्तावयारु विरएवि तीए तुहुं साहिउ नरवइ भयवइए । सुंदरि सुसराविय सुद्ध-चित्ति पर-पुरिसह निच्छउ किय-निवित्ति । [२३] ७. पु० तुम्हे उव० ८. पु० भयवं मज्झ वि सव्वु सारु । ११. ला० नामे... सेट्रिठहि [२४] १. ला० जुवाण मणु ४. पु० सा पुरिसह १०. पु० निच्छई-सहाउ ११. पुo पाडिहेरि [२५] २. ला० सुठु-चित्ति, पु. कय-निवित्ति । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११.२६ ] पावेण तेण मंतिहि सुएण ता भो नरनाह खमाविऊण ५ तो पच्छुत्तावि तुहुं नरेस far from a मंतिहि सुयस्स पडिवन्न भइणि सुंदरि तए वि तो सुंदरि तह य सुहंकरो वि थी-कम् खवेवि एत्थ आउ १० जो सो वि सुहंकरु सेट्ठि आसि विलासवई कहा राहिव एत्तिउतई निव्वत्तिउ एरिस आण्णेवि असुहं मन्नेवि [२६] वित्तंग भासिउ इय सुणेवि खयराहिव देवि-मणोरहाण हि हापोह करतयाण ता पुव्व - जम्मु सयल वि मुणेवि ५ भयवं जइ एत्तिय - मेत्तिएण ता जीवेहिं गुरु-कम्मई कयाई मुणि जंपर सुणसु महाणुभावि अणुर्भुजेवि कम्म मोक्खु होइ गुरु-पासि जांव नालोइयाई १० जान किउ पायच्छित्तहं विसेसु १८५ त लाइ दो अणिच्छिएण । पेसेहि सिधु सम्माणिकण | ते देवय-वय पुरि असेस । पूया सुंदरिहि सुहंकरस्स । साहिं धम्मु निम्मल करेवि । उपपन्नसुरालाइ देव दो वि । वसुभूइ मित्तु तुहु एउ जाउ । fariधरु सो विहु तुझ पासि । कहिउ कलंकह कारणु । कीरइ दोस - निवारणु ॥ २५ ॥ नीसेसु पुत्र- वइयरु मुणेवि । वसुभूमित्त-विणयंधराण । उप्पन्नउं जाइ- सरणु ताण । जंपइ विलासवइ मुणिनमेव । परि विवाउ इह दक्खिरण | far aयह जंति साहेह ताई | जीवe vage विवि- पावि | निज्जरः तवेण व अहव कोइ । नय जावहिं निंदिय-गरहियाई । उत्तरइ न त कम्महं किलेसु । इय सुणेवि विसणिय ं भव- निव्विन्निय जंप एउ विलासवइ । पिय- विरहु खदूसहु भयवं संसह कवणहिं गइर्हि न संभवइ ||२६|| [२५] ३. ला० तहि लाइय, पु० अणित्थिरण ४. ला० हो नरनाह ५. ला० पच्छुत्ताविओ ९. ला० एहु जाउ । १२. पु० असुहउ मन्नेवि [२६] ३. ला०- करंतयाह.. ताहं । ४. पु० तो पु०ब०, ला० सयको ६. पु० ता जीवई गुह— २४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ साहारणकविरइया [११२७ [२७] सुणि धम्म-सीले मुणि भणइ एउ मोक्खम्मि होइ पर दुक्ख-छेउ। दुक्खई हवंति पिय-मूलयाई तो राय-विहीणहं किह पियाई । अन्नो वि उवहवु नत्थि कोइ ससरीरहं जेण हवेज्ज सोइ । तहिं न हवइ जम्मु जरा न मच्चु न य रोगु सोगु न होइ वच्चु । ५ दारिद्द न परिहवु पिय-पिओउ न य भउ नाऽणिहं संपओउ । सयल-बाहार्हि विहीणु मोक्खु एगंते परमाणंद-सोक्खु । संगेण वि तत्थ न दुक्खु होइ तं सिद्धि-सोक्खु किं व कहइ कोइ। पभणइ विलासवइ इय सुणेवि पिय-संमुहु विणयंजलि करेवि । सामिय जाइज्जइ मोक्खि तत्थ पिय-विरह-पमुह दुह नाहि जत्थ । १० परितुट्ठउ भणइ सणंकुमारु तइं देवि भणि उ एउ वयणु सारु । दुपरिचय अम्हहं तुहि जि एक्क छुडु एवहिं हूइय एक्कवक्क । ता सयलु वि संगु परिच्चएमि भयवंत-भणिय जिण-दिक्ख लेमि । नरवइ जसवम्मह निसुणिय-धम्मह तणय-वहुय-चरियइं सुणेवि । भव-भउ उप्पन्नउ तो निविण्णउ मुणि-संमुहु लग्गउ भणेवि ॥ २७ ॥ भयवं जइ एत्तिय-मेत्तिएण इह-पुव्व-जम्म-निव्वत्तिएण । सुय-बहुयई दुक्खई पावियाई अच्चंतु जेहिं संतावियाइं । ता मई जं रज्जु करतएण इह भव-सरूवु अमुणंतरण । अइ-दारुण-दुच्चरियई कयाई फल काई करेस्सहिं मज्झ ताई । ५ मुणि जंपइ गरुयारंभएण अपरिमिय-महंत-परिग्गहेण । अणवरय-कुणिम-आहारणेण नरवइ तह पंचेंदिग-वहेण । नरयाउय-कम्मइ बंधयंति जे वर-तवेण न य सोहयति । जे पुण करेवि बहुयं पि पावु तवु करहिं धरेविण पच्छयावु । [२७] २. पु० पिय मूलियाई ४. पु० रोउ न सोगु ६. ला०मुक्खु एयंते परमा) ११. पु. अम्हह तुहई एक८० १२. पु० भयवंतें भणिय । [२८) १. ला० जम्मि-४पु० फलु कयाई करे० ६. ला. पंचिंदिय-८. ला० पि पाउ... पच्छाया Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११.३०] विलासवईकहा कम्म दहंति ते दारुणाई हुयवह-कणु जिह बहुयई तणाई । १० विसु जिह सरीरि पसरिउ भरेण नासेंति एक्क-मंतक्खरेण । पच्छा वि नरूत्तमु जो धम्मुज्जमु कुणइ भवण्णवु सो तरइ । सा किर सइ बुत्तिय लज्जा-जुत्तिय जा पहाइ घरु संभरइ ॥ २८ ।। [२९] निसुणेवि भणइ जसवम्म-देउ सामिय तह त्ति फुडु एवमेउ । उप्पन्नु नाह वेरग्ग-भाउ मुणि-दिक्खइं ता मह करि पसाउ । अह भणिउ सूरि-चित्तंगएण भव्यहो गेण्हह जहा-सुहेण । भो देवाणुप्पिय उजमेह पडिबंधु को वि मा भवे करेह । ५ नरनाहें भणिउ सणं कुमारु पुत्तय भयवंतेहि भणिउ सारु । ता मई अनुमन्नसु विन्नवेमि जं तुम्ह पसाई दिक्ख लेमि । खयरिंदु भणइ मा भणह देव विण्णवणह जोग्गउ तं सि चेव । निय-भिच्चावयवे महंतु एहु मा देव तुम्हे गउरउ करेहु । जंपइ नरिंदु हउं पुण्णमंतु तई जइसउ जसु उप्पन्नु पुत्तु । १० भुवणुत्तमो वि जो विणय-सारु निय-गुण-आवज्जिय-रज्ज-भारु । मई तुज्झ पसाएं चत्त-विसाएं विज्जाहर-सुहु माणियउ । एरिसु गुरु लद्धउ धम्मु विसुद्धउ तुज्झ पसाएं जाणियउ ॥ २९ ॥ [३०] सो भणइ ताय मा इय भणेहु गुरु-देवह सव्वु पभाउ एहु । आढत्तु जं च तुम्हेहि ताय तं कुणह अम्हे तुम्हह सहाय । वसुभूइ-पमुह-बहुएहिं जणेहिं जंपिउ तहेव पमुइय-मणेहिं । तो दिवसु लग्गु सुंदरु मुहुत्तु गुरु पुच्छिउ जे वय-गहणि जुत्तु । ५ तें साहियउ इय नवमइ दिणम्मि सुंदर मुहुत्तु सूरूग्गमम्मि । गुरु वंदेवि तो तहिं नयरि पत्त आढत्तिय जिण-भवणेसु जत्त । तह तिय-चउक्क-रत्यहिं धरेवि आढत्तु जहिच्छिय दाणु देवि । [२८] ९. ला० दहति अइ--दारुणाई १०. पु. नासेंत [२९] २. पु० दिवखए, ला० करे पसाउ ६. ला० पसाए [३०] १. ला० पहाउ ५. पु० सुंदरु निमित्तु सुरू. Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ अजियबल नाम जो पढम- पुत्तु संथवि पुत्त अन्नेव असेस १० उपदेस दिन्न सव्वहं सुयाहं बलि- पुज्ज - विहाणई साहू विदाई साहारणकविरइया जिणवर हवाई दिन्न पहाण अम दिवस अत्थमिय-सूरे अत्थाणु विसज्जिवि खयर - राउ आलिंगेवि जंपिय तेण देवि सुकुमाल सरीर मयच्छि जेण ५ सा भणइ नाह उज्झिय सिणेह संसारु तुम्हे अपणु चएह संसारु सारु जइ देव होइ सो भइ खमेज्जसु मज्झ देवि अवसाणुसणेह देवि हु १० तबु उम्ग करेज्जसि निष्पकंप इय जंपवि सो वेरग्ग-चित्तु पच्छिम जामि निदा-खयम्मि [११.३१ तहें खयर-रज्जे तेणाऽहिसित्तु । देविणुपुर पट्टण सन्निवेस । किय सयल भलावण जणवयाहं । जयहिं जिणंद इंद-वंदियक्कम अक्खय- मोक्ख- सोक्ख-निहि-कारण जयहिं सुनिम्मल नाण-दिवायर चतीसह अइसएहिं समिद्धा अट्ठ वि दिवस करावियई । असण-पत्त-वत्थाइयई || ३० || [३१] वज्जिय - सेज्जाहर - गहीर तूरे | ठिउ सयणे विलासवइ- सहाउ | तु कंते न सहित करेवि । तुहुं पुत्तह पासि पडिक्खि तेण । मह उपरि तुम्हे तो इय भणेह | मह पुण किं एरिस बुद्धि देह । ता पंडिउ छड नाहि कोइ । जे तुज्झ विहिय अवराह के वि । महु उवरि विमुंच सव्व-नेहु । अन्नह दिज्जइ दोग्गइहिं झंप | वोलेवि स्यणि किंचि विपत्तु । परमेद्वि-पंच चिंत मणम्मि । नमिमो अरहंत उत्तम सत्तहं नमिमो सिद्धहं गणहरहं । नमिमो उज्झायहं कय-सज्झायहं नमिमो सव्वहं मुणिवरहं ।। ३१ ।। [३२] मोह-महारि - मल्ल - हय - विक्कम | दुत्तर- भव-समुद्द- उत्तारण । तित्थ पत्रत्तणम्मि विहियायर | दारुण-विसय सुसु अगिद्धा । [३०] ८. पु० तेहिं खयर० १२. ला० अपण वत्थ पत्ताइयहिं [३१] १. ला० अत्थमिय सुरि ५. पु० उवरे तुम्हे Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११.३२] ५ जयहिं परमु इस्सरिउ लहंता भरह - एरवय- विदेहप्पन्ना जयहिं निबिड - मिच्छत्त विणासण जयहिं भव्वहं पडिबोहु करंता जयहिं सिद्ध निर्द्धत कम्मया १० एक्कतीस वर-गुण-समिद्धया जयहि एग अहवा अणेगया जे कुलिंगे तित्थयर सिद्धया बुद्ध-बोह सबुद्ध सासया मुक्क-काय कय- दुक्ख छेयया १५ तिविह-काले तिविहे वि जे वए दिवस - रत्ति बहु- भेय-ठाणया आयरिय जयंतु महा-गुणिणो जिवित्व सिद्धि गया forate अत्थु सुंदरु कहिउ २० तित्थयर-हत्थु मत्थइ चडिउ २५ विलासवई कहा सयमेव विदिष्ण पहाण- पया ts सूरि-पवन हौति नणे चउद्दस नव-पुव्वाइधरा विहरहिं उज्जुत कसाय-जए पुणु जयहिं उज्झाय जे बारसंगाई पाढेंति मुणि-सत्थु जे पवर- मइ-जुत्त उत्तम - विहाणेण पुत्र [३२] ५. ला० अरिहंता ११. ला० जे सिलिंगि १२. ला० कुलिंगि १५. ला० तिविहे व जे १७ पु० जेहिं सया १८ २०. ला० चडिओ...पडिओ २२ २४. ला० जयंतु सया २७ ला० ला अवि पाडिहेर अरहंता । परम- रूव नानाविह वण्णा | जिणवरिंद अप्पडिय - सासण | तीय अणागय जे विहरंता | मुक्क-रोग- जर-मरण - जम्मया । जे तिथे तिथे वि सिद्धया जे सलिंगे गिहि-लिंगें संगया । जे य अजिण पत्तेय-बुद्धया । इत्थि पुरिस अहवा नपुंसया । ते जयंतु पन्नरस - भेयया । दीव जलहि सिद्धाय पव्वए । ते जयंतु सिद्धा पहाणया । सोहेति जेहिं सहिया मुणिणो । सूरीहिं धरिज्जइ तं च सया । सुत्ते जेहिं सो संगहिउ । मणि जाह मंतु सुंदरु पडिउ । ते गणहर-देव जयंति जया । मिच्छत्त- तिमिरु को हणइ खणे । बहु-य पंच विहायार-परा | आयरिय जयंति सया विजए । कय-निच्च सज्झाय । घोसंति चंगाई | जाणंति परमत्थु | तव चरण-उज्जुत । उस दाणेण । १८९ जिणि तित्थे पवत्तिवि ला० सूरीहि चरिज्जइ हरइ खणे २३. पु० चोद्दस दस नव पुव्वाइ पाति पाढें सुणि सत्थु । पु० Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणकइविरइया [११.३२ ३५ जे भव्य तारेति दोग्गइ निवारेति । आगमड सुत्ताई जेसिं सुमुत्ताई । जीहग्गे निवसति मणयं पि न खसंति । जे विमल-नाणेण उज्जोय करणेण। दीवय अविज्झाय ते जयहि उज्झाय । जयंतु सव्य-साहुणो अणंग चंद राहुणो । खमाइ-धम्म-धारया तवुग्ग-तेय-सारया । सिद्धि-विओवि दुब्बला विद्वत्त-सार संबला । सीलंग-भार-वाहिणो भव्याण कप्प-साहिणो । सज्झाय-झाण-बावडा गुणेहिं लोग पायडा । गुरूण भत्ति-संतया वितत्थ-मल-मंतया । पयंत दंत-इंदिया जम्मि जे अणि दिया । भव्वाण मोह-नासया अ मुक्क-गच्छ-वासया । विभिन्न-माण-कुंजरा पण?-मोह-पंजरा । अण्णाण-रुक्ख-भंजया जयंतु सव्व-संजया। ४५ एवं तेलोक्क-पुज्जा महा-सत्तया सिद्धि-सिद्धंगणाए समासत्तया । धम्म-ववहार करणम्मि जे सेट्टिणो संथुया ते मए पंच-परमेद्विणो । दुक्करो जेहिं घोरो तवो चिण्णउ जेहिं भव्याण मोक्ख-पहो दिण्णउ । जेहिं संसार-रयणायरो तिण्णउ जेहिं मिच्छत्त-गुरु-पवउ भिन्नउ । जाण नामेण दुरियाई जति खयं पाव-सत्तूण जे सत्थु अइति क्खयं । ५० जाण नामेण पावंति सुहमग्गलं पंच-परमेट्ठिणो देंतु ते मंगलं । जिणवरा सिद्ध-सूरी हिं संजुत्तया थुणिय उज्झाय साहू य तिहिं गुत्तया । देंतु बोहिं समाहिं च सुह-कारणा भीम-भव-खुत्त-सत्ताण साहारणा । निय-गुरु-चित्तंगह निहयाणंगह पणममि सुंदरु पय-कमल । मिच्छत्त-विणासणु जिणवर-सासणु दिन्नु जेण अम्हं विमलु ॥३२॥ [३२] ३७. पु. सिद्धि-विओय-दु० ४१. ला० पयंति दन- ४७ ला० मोक्ख-पभो दिन्नओ ५२. पु० देति Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११.३४ ) विलासवईकहा [३३] एरिस पणाम-पय उच्चरंतु कंताए सहिउ उद्विउ तुरंतु । उन्वेल्लिय कोमल बाहु-दंडु करयल-निम्मज्जिय विमल-गंडु । काऊण असेस वि गोस-किच्च आणत्त तेण तो नियय-भिच्च । सामग्गि सयल सहसा करेह वय-गहणह वेल संपत्त एह । ५ आएसाणंतरु सव्वु तेहिं संपाडिउ तक्खणे सेवएहिं । तो हाय विलित्त विसुद्ध-वेस नरनाह-पमुह हुय निरवसेस । किय सयल वि अजियबलेण ताहं निक्खमण-महिम जणयाइयाहं । सह-सेण चलइ जा नहयराण सा कारिय सिविय महप्पमाण । जसवम्म-सहिउ तहिं खयर-राउ आरूटु देवि-मित्तेहिं सहाउ । १० उच्छलि उ महंत उ तूर सदु जणु खुहिउ असेसु महा-विमद्द । तो दाणई देंतउ जणु खामंतउ राय-मग्गि पहु अवयरिउ । लोएहिं रुयंतेहि अंसु फुसंतेहिं गुण सुमरंतेहिं परियरिउ ॥३३॥ पुर-मज्झि विभूइहि जाव जाइ नायरियहं दिद्विहिं ताव ठाइ । जंति परोप्पर दुक्खियाउ सोए नयणंसु फुसंतियाउ । हले कीस नराहिव दिक्ख लेइ किं एरिसु रज्जु न चिरु करेइ । वेरग्गु कवणु हूउ इमस्स मण-इठ्ठ सयलु संपडइ जस्स । ५ एह अज्ज वि तरुणउ कसिण-चालु तो हले पवज्जहे कवणु कालु । एहु लइउ कवणें वुड्ढत्तणेण छड्डइ संसारहं सोक्खु जेण । कवि जंपइ अइ-सोहग्गियाए अवमाणि उ होसइ महिलियाए । सा भणइ न जुत्तउं कियउं ताए पुरिसेहिं सहुं का अक्खडिय माए । सा तारिस होसइ कवण देवि वाहोडइ किं न पाएहिं पडेवि । १० रूसंतई सरिसउं कवणु माणु माणह वि बहिणि भल्लउ पहाणु । [३३] २ ला० करयलेहि निमज्जिय १. पु०-गहण-वेल ५. ला० तक्खणेणं ११. पु. ____ दाणई चिंतउ . मग्गे १२ ला०अंसु मुयतेहि [३५] ४. ला० हूयउ इमस्स ५ ला० पवज्जहि ८. ला० पुरिसहिं Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ साहारणकइविरइया [११.३५ जं विणु न चलिज्जइ सो अणुणिज्जइ जइ अवराह-सयई करइ । हुयवहु पज्जलियउ पुरु अइ बलियउ दहइ तो वि को न घरे धरइ ॥३४॥ अन्ना पुण भणइ म भणह एउ इह लोइ ताव किउ रज्जु सारु देवीउ इमेण वि सरिसियाउ धन्नाउ करिस्सहिं तवु विसालु ५ इय नायरियाहिं भणिज्जमाणु नयराउ विणिग्गउ गरुय-तेउ सव्वालंकार परिचएवि आगम-विहीए जहक्कमेण अणुसहि जहट्ठिय विहिय ताहं १० देवी-पमुहाउ वि राणियाउ संसार-विरत्तउ अम्ह देउ । एवर्हि पुणु इच्छइ भवह पारु । वच्चंति पेच्छ सहि हरिसियाउ । तुम्हे पुणु झंखहु आलुमाल । गयणट्ठिय-सुर-पूइज्जमाणु । गुरु-पासि पहुत्तउ सिग्घ-वेउ । वय-गहण-सज्जु ठिउ गुरु नमेवि । मुणि-दिक्ख दिन्न चित्तंगरण । नरवइ-खयराहिव-मुणिवराह । संजम-सिरीए हुय संमाणियाउ । सिक्खा सिक्खाविय विहि लक्खाविय वक्खाणियई महव्वयई । किय दिवस वहावण पुण उट्ठावण सुत्तई तेहि अहिज्जियई ॥३५॥ तो मास-कप्पु तावहिं समत्त विहरिउ कमेण गुरु निम्ममत्तु । पढमाणु दुवालस-अंगु सारु विहरइ राय-रिसि सणंकुमारु । जसवम्मु साहु एगारसंगु पढिउ तवु कुणइ अणेय-मंगु । वसुभूइ-साहु-विणयंधरेहि किंचूण दुवालस पढिय तेहिं । ५ अन्ने वि मणोरह-पमुह साहु जह-सत्तिए पावहि सुयह लाह । ताउ वि विलासवइ-अज्जियाउ एगारस-अंग अहिज्जियाउ । सव्वे वि सुदुक्करु तवु कुणंति सव्वे वि पवरु आगमु गुणति । कालकमेण मुणि खयर-राउ सो गहिय-सयल-सुत्नत्थु जाउ । चित्तंगएण तो निय-पयम्मि ठावियउ मूरि रहनेउम्मि । १० तहि अजियबलेण महा-पमोउ कारिउ आणदिउ सयल लोउ । [३५] ५ पु० नायरियाहं ७. पु०-सज्ज [३६] १. ला०-कप्पु जावहि ५. ला० पावेहिं Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३ ११.३८] विलासवईकहा गुरु-आणावत्तिणि सा वि पवत्तिणि ठाविय गणिणि विलासवइ । अहवा कय-पुण्णहं गुण-संपुण्णहं जहि तहिं उत्तमु पउ हवड़ ॥३६॥ अह उग्ग-तवेण य विहरमाणु संपन्नु सूरि सो दिव्व-नाणु । मइ-सुयइं ओहि-मणपज्जवाइं जाणंति अईय-अणागयाइं । चारण-मुणीण संघेण जुत्तु कार्यदिहिं नयरिहिं सो पहुत्तु । पंचम-भवे समराइच्च-जीवु जयकुमारु विबोहिउ कुल-पईवु । ५ पुणु तामलित्ति-नयरिहिं नरिंदु पव्वाविउ सिरि-ईसाणचंदु । सिंगारवई-पमुहउ राणियाउ पवइय पत्तिणि पासि ताउ । सा पुण अणंगवइ नाम देवि गय देव-लोइ अणसणु करेवि । तो भव्य-कमल पडिवोहिऊण नाणा-देसेसु य विहरिऊण । जाणेविणु अप्पणु थोव आउ सोरट्ठ-देसि विहरंतु आउ । १० अह सा वि सयल-साहुणि-सहाय विहरंत पत्तिणि तत्थ आय । सुर-मिहुण-मणोहरु गिरिवर सेहरु धरिय-विविह-वण-गहण-सिरि । सुपवित्त-सिलायलु रुद्ध-धरायलु दिट्ट विसिटर विमलगिरि ॥३७॥ जहिं भरहेसर-नरवइ-नंदणु रिसह-नाह-गणहरु भव-मद्दणु । पढममेव पुंडरिउ पसिद्धउ समण-सहस्सेहिं सरिसउ सिद्धउ । जहिं नमि-विनमि-पमुह विजाहर दोलि कोडि सिद्धिय मुणि-सेहर । भरह-सगर-वंसम्मि य राय कालक्कमेण विणिज्जिय-रायहं । ५ जस्स सिहरि उत्तुंगि पहाणइ सिद्ध अणेय कोडि को जाणइ । हरिवंसम्मि य जायव-सारह जत्थ कोडि आहट कुमारह । बारवइ-विणासि निविण्णहं सरिसिय सिद्ध संव-पज्जुण्णहं । पंडव-वीर भुवणे सुपसिद्ध जहिं दोवइ-कुंतिहि सहुँ सिद्ध । [३६] ११. ला० पवित्तिणि १२.ला. अह ता कयउन्नह गुणसंपुन्नह [३७] १. ला संपुण्ण सरि ४. पु०पंचमे-भवे ७. पु०देव-लोय ११. ला०गिरिवर-सिहरु [३८] ४. पु० उसह-सगर- ६. ला० तत्थ कोडि २५ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ साहारणकरविरइया [११.३९ पंच-कोडि जहि द्रविड-नरिंदह सिद्ध कमेण दलिय-दुह-विंदह । १० जो फरिसिउ तेवीस-जिणिदेहिं सिहरि मणाहरि पणय-सुरिंदेहि । तत्थ सणंकुमार आरूढउ संजम-भारु पवरु उव्वूढउ । बहु समणेहिं सहियउ अणसणु गहियउ कियउ परम पायव-गमणु । तणु-चलणु निसिद्धउ चित्तु निरुद्धउ खवग-सेढि आरूढ-मणु ॥३८॥ तो नीसेसु कम्मु तें झाडिउ केवल दिव्व-नाणु उप्पाडिउ । सयल जोय-वावारु निरूद्धउ एक्केण वि समएण य सिद्धउ । तह जसवम्म-मणोरहदत्तेहिं वसुभूई-विणयंधर-मित्तेहिं । अन्नेहिं वि मुणिवरेहि सुहाविउ गेवेजाणुत्तर-पउ पाविउ । ५ बहु-तव-चरणेहि कम्म विमुद्धिय से विलासवइ पवत्तिणि सिद्धिय । अनाउ वि अज्जिय कय-उण्णिय देव-लोइ सव्वउ उप्पन्निय । तेण तित्थु सेत्तुंजु पसिद्धउ अंत-कालि कय-उण्णहं लद्धउ । विमल-गिरिहि जो अणसणु पावइ सो संसारि न पुणु पुणु आवइ । जेंव सुखेत्ति बीउ सुपइन्नउं तिंव सेतुंजे महाफलु दिन्नउं । १० जहिं पुंडरिउ परम-पउ पाविउ तहिं जिण-हरु भरहेण कराविउ । कालि वहंति जाव उद्दरियउ सगर-नराहिवेण उद्धरियउ । तयणतरु नरवइहि सउन्नहि उद्धरियउं तं चिय अन्नान्नहिं । तहिं पुंडरिउ जो जाएवि वंदइ सो अवस्स भव-तरु निक्कंदइ । कह विलासवइ एह समाणिय निय-बुद्धिहि मई जारिस जाणिय । १५ एह कह निसुणेविण सारु मुणे विणु सयल पमायइं परिहरहु । असुहहं मणु खंचहु जिणवरु अंचहु साहारणु विरमणु वरहु ॥३९॥ ॥ इइ विलासवई-कहाए एगारसमा संधी समत्ता ॥ ॥ समत्ता विलासवई-कहा ॥ [३८] १०. ला. फरिसिओ.......जिणिदिहि, पु०-सुरिंदिहिं । [३९] १. पु० तें साडिउ ४ पु० मुणिवरेहिं सोभाविउ १६. ला० साहारणु मणुथिरु धरहु । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवि - प्रशस्ति वाणिज्ज-मूल-कुले कोडिय - गणे विउल - वर - साहाए । विमलम्मिय चंद-कुले सम्मि य कव्व-कलाण संताणे ॥१॥ राय - सहा- सेहर - सिरि-बप्पहट्टिसूरिस्स | जसरि - गच्छे महुरा - देसे सिरोहाए || २ || आसि सिरि-संतिरि तस्स पर आसि सूरि- जसदेवो । सिरि-सिद्धसेरो तस्स वि सीसो जडमई सो ॥३॥ साहारणो ति नामं सुपसिद्धो अस्थि पुव्व-नामेणं । थुइ थोत्ता बहु-भेया जस्स पढिज्जंति देसेसु ॥ ४॥ सिरि- भिल्लमाल- कुल-गयण चंद गोवइरि - सिहर-निलयस्स । वयणेण साहू लच्छीहरस्स रइया कहा तेण ||५॥ समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहले एसा पसन्न -वया विलासवई || ६ || एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस वरिस अहिएहि । पोस- चउद्दसि सोमे सिद्धा धंधुक्कयपुरम्मि ॥७॥ एसा य गणिज्जंती पारणाऽणुभेण छंदेण । संपूण्णाई जाया छत्तीस सयाई वीसाई ||८|| जं चरियाओ अहियं किं पि इह कप्पियं मए रइयं । पडिवोह - कारणेणं खमियन्वं मज्झ सुयणेहिं ॥ ९ ॥ जय तियसिंद-सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुडयण - विदिष्ण-वाणी सरस्सई सयल- सुह- खाणी ॥१०॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द-कोष [अहीं महत्त्वपूर्ण शब्दो अकारादि क्रमे मूळ शब्द, कौंसमां संस्कृत पर्याय अने पछी गुजराती अर्थ-ए क्रमे आप्या छे. अंको क्रमशः संधि, कडवक अने पंक्तिनो निर्देश करे छे. क्रियापदोनी पहेला V आq चिह्न मूक्युं छे अने पेटामां ते ते क्रियाओना रूपो आप्यां छे. देश्य शब्दो * चिह्नथी दर्शाव्या छे अने हेमचंद्राचार्यनी देशीनाममालामां जो ते शब्द होय तो उल्लेख करेल छे. संशयात्मक शब्दो अने अर्थो प्रश्नार्थथी सूचव्या छे. संकेत -- अ. चि.=अभिधान-चिन्तामणि, आ. आज्ञार्थ; ए. एक वचन; क.=कर्मणि; कृ. कृदन्त; गु.-गुजराती; तुल.=तुलनीय; तृ.-तृतीय पुरुष; दे. ना. हेमचन्द्राचार्यकृत देशीनाममाला; द्वि. द्विवचन, द्वितीय पुरुष; पउम.-पउमचरिउ; पुहइ.=पुहइचंदचरियं; पा.स. पाइअसद्द-महण्णवो; प्र. प्रथम पुरुष; प्रा.व्या. प्राकृत व्याकरण (सिद्धहेम-अष्टम अध्याय); प्रे.-प्रेरक; ब. बहु वचन; भ. भविष्यकाळ; भू.-भूतकाळ; म.-मराठी; व. वर्तमान काळ; वि.विध्यर्थ; सं.-संस्कृत; सं.भू.कृ.=संबंधक भूत कृदन्त; सम.-समराइच्चकहा; स्त्री.-स्त्री-लिंग; हिं. हिंदी; हे.=हेत्वर्थ; है. धा. हैम धातुपाठ] अंध-गड-७. १०. ११ (अन्ध-गडु)-आं- अणझाइय- ९. ३१. ७ (अ+ध्यात)-अणधळु गुमडुं चिंतव्यु अधारिअ-२. २२. ७, ७. १८. ६ अणहिअ ५. ९. ११ (अ+हृदय)-हृदय(अन्धकारित)-अंधायु (आकाश) हीन, निष्ठुर अंबिल-८. ३६. ११ (अम्ल)-खाटुं अणहोंत-४. १५. ११ (अ+भवत्) अक्खडिय-११. ३४. ८ (खड्=भेदQ ____ अविद्यमान परथी)-आखडी, वेर अणारिअ-११.६.३ (अनार्य)-अनार्य अक्खण-११.३ १४ (आख्यान) उपदेश अणिवारिय-१०. २६. १४ (अनिवारित)अगालवाहिया-५. ११. ७ (अकाल-वाहिका) __ अनवरत, वणरोक्यु -(गमे त्यारे वहन करनारी) होडी अणुचिट्ठिअ २. ४. १२ -(अनुष्ठित)-आ(जुओ गालवाहिया-सम० पृ० ४२६) ___ चर्यु, कयु अग्गल-२. १६. ६ (अग्र+ल)-अधिक अणुजेटूिठया-९. ९. १० (अनुज्येष्ठिका)अग्गाहुइ-८. २. ६ (अग्न्याहुति)-अग्निर्मा ___ मोटीथी पछीनी, बीजा नंबरे मोटी आहुति अणुवाअ-५. २१. १ (अनुपाय)-निरूपाय अग्गि-सक्कार ८. २४. ११ (अग्नि-संस्कार)- अणुसठि ११.३५.९ (अनुशिष्टि)शीखामण मृतकनो अमिसंस्कार, अमि-दाह Vअणुहुंज-(अनु+भुज्ज)-भोगववू अचुक्क -२. ११. ७(अ+च्युत+क)-अचूक अणुहुंजिवि ४.१५.१० सं० भू०० Vअच्छ (आस् )-बेसवु अणुहुंजेवि ६.१३.५ सं०५०० अच्छहि-१. १०.१० वर्त० द्वि० ए० अणेय-४.५.२ (अज्ञेय)-जाणी न शकाय तेवु अच्छिअ १. ९ ६ भू० कृ० अणोरपार-२. ४. २ (अनवरपार)-प्रचुर, अच्छेवंउ-५. २३. ६ वि० कृ० अनन्त-अपार अणज्ज ४, ६, २ (अनार्य)-दुष्ट अमियअ-५. ५. ११ (अस्तमित+क) आथम्युं, अस्त थयु Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अथाह २. २ १० (अस्ताघ)-अथाग (दे० ना० १. ५४) अदिवसइ (१) २. २०. ८ (?) अदिधण(?) ७. २९. २ (अर्द्धन्धन)-अधुं बळतण, बळतण जेवू, अथवा-(दग्धेन्धन) बळेलु, बाळवा लायक इंधण (१) अन्नह ५. १९. १४-(अर्णस)-पाणी अनिवुइ २. १४. ८-(अनिवृत्ति)-अस्व स्थता, दुःख अनु-भव ६. ३. ९-(अनु+भव)-पछीनो ___ भव, बीजो जन्म अन्नारिस ३. २२. ३-अन्यादृश)-बीजानी _जेवु, मिथ्या अपच्छिम १. १४.२-(अपश्चिम)-अन्तिम, जेनी पछी कई नथी तेवु, छेल्लु. अपरिप्फुड १. १७. ८-(अपरिस्फुट)-अस्पष्ट अपाविय ३. १६. २ -(अप्राप्त)-अप्राप्त अप्पणअ १. ५. ९-(आत्मनः)-आपणु, पोतानु अप्पणी २. १६. २ -(आत्मीया)-आपणी, पोतानी अप्पत्त-मुल्ल १. २३. १० (अप्राप्त-मूल्य) -अमूल्य, जेनुं मूल्य मळतुं नथी तेवू /अपरियाण-(अ+परि+ज्ञा)-न जाणवु अप्परियाणंत-६ १६. ११ वर्त० कृ० अप्पतक्किय ६.३०.१-(अप्रतर्कित)-अस- भावित अपमालिअ ३.१.९ -(आस्फालित)-अफा- ळ्यु, हाथथी ठोक्यु *अभिट्टय ५. २०. ४-सामसामे टकरायेल (प्रा० व्या० .. १६४) अलिक्कअ-४. ५. ८ (अलीक ? )-खोटुं अलेक्वअ-३. २. ६ (अलेख्य )-लखाय नहीं एवं, अलेखे ? अबउल-१०. ६. ५ (अवचूल) मोतीनु तोरण अवविखअ-३. २. १ ( अवेक्षित ) जोयेल (प्रा० व्या ४. १८१) अवज्जा -७. २३. ८ ( अवज्ञा ) अनादर Vअवट्ट- ( अप+वृत् )-फेरवद्, घुमाववु अवट्ट-५. २०. १ आज्ञा द्वि० ब०व० अवदार-९. ७. ९ (अपद्वार)-खोटो रस्तो. कुमार्ग Vअवमुत्त (अपमूत्र) -मूतरवू अवमुत्तिवि-८. ७. २ सं० भू० कृ० Vअवयास-(अवपाश) आलिंगन करवं अवयासियअ-१०.१०.११ भू०० अवरोप्पर-८.२२. ११ (परस्पर)-परस्पर (प्रा० व्या० ४.४०९) अवसरि-९. १५. ८ (अपस्मृति)-चिंता अवहत्थिअ ६.२७. १३ (अपहस्तित)-हा__ थथी धक्को मारेल, परित्यक्त अवाय-६. ३२. ७ (अम्लान)-तार्नु, कर मायेल नहीं तेवु (प्रा० व्या० ४. १८) अवियपिपअ-१. १३. १९ ( अविकल्पित ) निःसंशय, निःशंक अविसज्जिया-१. १८.६ ( अविसर्जिता) _ विदाय नहीं करेली एवी अविहाविय -५. २७. ११ ( अविभावित) __ अनालोचित /अवे-( अप+इ)- दूर थर्बु अवेइ-६. २४. ८ वर्त० तृ० ए० व० असउण-२.१४.५ ( अशकुन ) अपशुकन असमंजस-२. १३. २ (असमञ्जस) गरबड असमाणिअ-६. ३१. १४ ( असमाप्त) पूरूं नहीं करेल ( प्रा० व्या० ४. १४२) असवार-९. २१. ९ (अश्ववार) अस वार, घोडेसवार असासअ-११. ७. ३ ( अशाश्वत ) नाशवंत Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरक्खणासत्त-११. २. ५ ( असु+ रक्षण+आसक्त) जीवोनु रक्षण करवामां आसक्त असोहण-४. १८. ४ ( अशोभन ) असुंदर । अहय-३. ८. १ ( अहत ) अखंड अहवइ १. १२. १२ ( अथवा ) अथवा अहि अहिय-७. १८. ११ ( अधिकाधिक) वधारे ने वधारे अहिज्जिय-११. ३५. १२ ( अधीत )- अभ्यस्त अहिट्ठिय-१. १. १ ( अधिष्ठित ) आविष्ट, थी वीटायेल अहिमुह-१. १२. २ ( अभिमुख) संमुख । अहिवासिया-३. ९. २ ( अधिवाशिता) आह्वान करायेली (वाश् शब्दे -है ० धा०) V अहिहब -(अभे + भू ) जीतबु, पराभव करवो अहिहवइ ७. ७. २ वर्त ० तृ० ए० व० अहेसि - ११. १३. १० ( आस त् )-हतुं (प्रा० व्या० ३. १६४) आअ - ६. ११. ५ ( आगत ) आव्यु (प्रा० व्या० १.२६८) आइय - २.६. १०, ३. २. ६ ( आगत ) आवेल आओहण - २. ११. ३, ८. १८. १ (आयोधन ) युद्ध आढत्त - १. ४. २, २. १३. ८ (आ- रब्ध) शरू कर्यु आण- ( आ + नी)-लावधू, आणतं ७. १२. २ वर्त० कृ० आणिज्जहि १.२०.८ वि०द्वि०ए० आणदयार – १. ६ ४ (आनंदकार ) - आनंद आपनार /आमेल्ल - (आ + मुच् - मेल्ल ) - मेलघु, छोडधं (प्रा० व्या० ४.९१) आमिल्लिऊण-४. १. १२ सं० भू० कृ० आमेल्लिय - ३. १२. ३ भू० कृ० *आयंबिर - ७. २९.५ (आतम्बिर ) रातुं (प्रा० व्या० २.५६) आय-१०. २. ११ (आय)- लाभ आयइ - २. २.८ (आयति)-भविष्यकाळ *आयड्ढिय- २. ११. ६, ८. १८. ६ (आकृष्ट )- खेंचेलं आयण्ण - ८. १८. ६ ( आकर्ण ) कान सुधी /आयन्न - ( आ + कर्णय ) सांभळg आयन्नि-१.१६.१२ आज्ञा० द्वि० ए० व० आरंभ ११.२८.५ ( आरम्भ ) हिंसा आरत्तिय १०.४.१३ (आरात्रिक)-आरती *आरोलिअ ९.१६.१० (पुञ्जित) एकहुं करेल (दे०ना० १ ७१, प्रा० व्या० ४. १०२) आल १०.९ १० (आल) आळ , तहोमत *आलजाल ४.२०.६ जुर्छ आलाव ८४.६ (आलाप)-वातचीत *आलुमालु ११.३५.४ आधु-अवबँ, फावे तेम मिथ्या प्रलाप (प्रा०व्या०४. ३७९) आवइ-- ८. ३१. १३ (आपद् )- आपत्ति आवज्ज- १०.३ वाजूं Vआवड- ( आ+पत् ) आवड, आवडइ-१०.१२.१२वर्ततृ०ए०व० *आवल्लय ३.१.४ -हलेसां *आवल्लिय ५.२०.२ हलेसां *आसुपासु १.१६.४ आसपास आहरण ११.७.८ (आहरण)-उदाहरण आहोरण - ६. २५. १ (आधोरण )-महा वत इण्हि - ५. ९. ९ ( इदानीम् )- अत्यारे (प्रा० व्या० २. १३४) इत्थ-८. ३२. ८ ( अत्र )- अहीं इम - ५. ३. १ ( इदम् )- आ इय - ५. १. ९ ( इति)-आ प्रमाणे (प्रा० ___व्या० १.९१) Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00 इसअ १०.१५.१३ ( ईदृश) आंबु, हिं० ऐसा ईसीसि - १. १३.८ ( ईषत् - ईषत् ) - थोडुडु उउ - १. २१.४ ( ऋतु ) - ऋतु *उंडअ ११. ११ ११ ऊंड (दे० ना० १.८५ ) उकंठय - ४. ८. ७ ( उपकण्ठ ) पासे, कांठानो प्रदेश उक्कुट्ठि - ७.२२.६ ( उत्कृष्टि ) -ऊंचे स्वरे V उक्केल्ल - ( उत् + कीलू ) -उकेलवु ( कीलू बन्धे - ३० धा० ) उकेल्ले विणु - ३.२० . ८ सं० भू० कृ० उक्कोसिय- ११. १८. २ ( उत्कृष्ट ) अधिकाधिक ( उक्कोसं उत्कृष्टम्, प्रा० व्या० ४. २५८ ) उक्खणिय - १.३.५ ( उत्खात, उत्खनित ) उखाडेल २. ८. ३ ( उत्क्षिप्त ) - ऊंचु ३. २३. ३ ( उद्गमितक ) उक्खित्त करेल उग्गमियअ - उ V उग्गाम उग्गामिय ( उत् + क्रम्) - उगामवु - ७. १६. ११ भू० कृ० उग्गोमेव - ८. १५. ३ सं०भू० कृ० V उग्गिल - ( उद् + गृ) - उगळं, वमन कर उग्गलिअ - ५.२६. १० भू० कृ० उग्घट्टण - १. २. ४ ( उद्घट्टन ) - खुल्लुं करवु, उघाडु कर - उग्घुट्ठ ७. २९. १० ( उद्घुष्ट ) - उद्घोष कर्यो उच्चल्लिय - ३.१.४ ( उच्चलित ) - ऊंचु कर्यु, उपाड्यं उच्छालिअ ३.१.९ ( उच्छालित) उछाळेल V उट्ठ - (उत्+स्था) ऊडवुं (प्रा० व्या० ४. १७) उट्ठिअ - २.१९ ३ भू० कृ० उट्ठे हि - १.१८.२ आज्ञा ० द्वि०ए० व० उट्ठण - ७.६. ९ ( उत्थान ) - ऊभा थ उडवय - ४. २३. ३ ( उटजक) पर्णकुटि उत्तत्तिया - ८ ३५.६ ( उत्तप्ती) - ऊनी ऊनी V उत्तर - ( अव + तृ) - उतरखुं उत्तरइ ११. २६.१० वर्त तृ०ए०व० उत्तरिय - ३. ३. १ भू० कृ० उत्तारेवि - ४.१४.११ सं० भू० कृ० उत्तर- साहग - ६. १६. ३ - ( उत्तर - साधक ) साधनामां मदद करनार उत्तराहारि - ६. २५. ५ ( उत्तराध रिन्) - उ. उत्तराषाढा नो (मेघ) १ उत्तसियअ - ६ २९.११ ( उत्त्रस्तक) - भयभीत उत्तर-४. ७. १० ( उत्तार ) -उतार, उपाय * उत्तावल ३. ५. ३ उतावळु उत्थरिअ - ८. १६. ६ ( उ + स्थलित ) - स्थळ पर ( मैदानमां) आग्यो - अथवा (उच्छलित ) उछळूयो (उच्छल-उत्थल्ल, प्रा० व्या० ४. १७४) *उद्दरिय- ११. ३९. ११. उत्खात, उखाडेलुं (दे०ना०१.१००) उद्देस - ५. ३१. ९ ( उद्देश ) - प्रदेश * उद्धुंधुल-८. ६. १० धुंधलुं V उन्नम - ( उद् + नम) ऊंचु कखुं उन्नमंति ९.३.९ वर्त० तृ० ब० व० उन्नमिअ-७. १८. ५ भू० कृ० उन्नाडिय - ७. १२. ८ ( उन्नादित ) - हर्ष - सूचक अवाज कर्यो V उप्पाड - (उत्+पाटयू) - उखाडं उप्पाडइ - २.६.९वर्त० तृ० ए० व० उबाहुलिया ५.१२.९ ( उद् + बाहु+लिका) ऊंचा हाथ करेली उब्भडअ - ५ २६.१२ ( उद्भट क ) - भयं कर, प्रचंड Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vउभिद (उद्+भिद्)-१. विकसवु २. ऊंचु करवं, ऊभुं करवू १. उभिज्जमाण-१.२३.९ वर्त० कृ० २. उब्भिज्जमाण -८. ९.५ वर्त० कृ० उब्भिया -८.२८.४ ( उर्वीकृता) ऊभी करेली, ऊंची करेली उम्मेल्लिय ४. १०.६ (उन्मिलित) विकसित *उम्महिय १०. २३. ३ उत्कण्ठित उम्माहिअ ८ ३३. १२ उत्कण्ठित * उम्माहियअ १०. ११. ७ उत्कण्ठित * उम्मिंठ ३. ११. १२ महावत-रहित, निरंकुश (हाथी) उयय ३. १४. ११ (उदक) पाणी उयारण १०. ४. १२ ( अवतारण) ओवा. रणा उल्लबण ४. ६. १३, ५. २९. १२ (उल्लम्बन) लटकवू Vउल्लल (उत्+ ललू) उलळवू उल्ललंति ८.२१.१२वर्त ० तृ०ब० व० उल्ललेइ ७.१५. ३ वर्त ० तृ० ए० व० उल्लोय १०. ६.३ (उल्लोच) चंदरवो *उल्लोल ३. १. १० कोलाहल उवइ8अ ५. १.१ (उपदिष्टक) उपदेशेल उवणय ३.२१.१२, ११.११. १ (उपनय) उपसंहार उवप्पयाण- ७. १०. २,७. ११. १ (उप प्रदान) दाम नीति, लालच । Vउवलोह- (उप+लोभय) लोभावq उवलोहइ ४. २०.५ वर्त० तृ०ए०व० Vउव्वट्ट (उद्+ वृत्-वर्त्तयू) उबटवू उव्वगृह ११.१५.३ वर्त० द्वि०ए०व० उबट्टण ८. ३८. ३ (उद्वर्तन) उबटन उव्वरिय ३. १४. ६ (उवृत्त) बचो गयेल, अवशिष्ट उव्वार ६. १८. ११ (उद्धार) उद्धार, उगारो उव्विल्ल ६. १. ५ (उद्वेल) चपल,चंचळ उव्वेवणअ १. ६. १२ (उद्वेजनक) उद्वेग करावनार उसर ४. ५. ६ (अप्सर) चाल्या जवू ऊसरखेत्त ११. १७. ११ (ऊषर क्षेत्र) खारी जमीन ऊसा-जोग १०. २. १२ (ऊषा-योग) मुहूर्त-विशेष ऊसिय ३. ११. २ (उच्छित) उन्नत, ऊंचं __ करेल ऊसुय ३. ५. १ (उत्सुक) उत्सुक, उत्कंठित Vए (आ+इ) आवq एइ २. २०.९ वर्त० तृ०ए० व० एंति ८. ६.८ वर्त० तृ० ब० व० एकवक्क ११.२७.११ (एकवाक्य) एकवचनी एक्कंत १.१७. ११ (एकान्त) अवश्य, जरूर एक्कमेक्क- २. ११. ७ (एकैक)-प्रत्येक *एक्कल्लअ- ६.९.१ एकलो, असाधारण एगोयर- ३. १३. १२ (एकोदर)-सहोदर, भाई एगोवगयअ- ६. ५. ११ (एकोपगतक) एक साथे गयेल एत्तहि- १. ४. ३ (इतस)- अहींथी एमाइ- ११. ४. ७ (एवमादि)- इत्यादि एवहिं- ५. २.१२, १०. २२.११ (इदा नीम्)- अत्यारे (प्रा० व्या० ४. ४२०) एहउ- ४. १७. १२ (ईदृक्)-आवु एहु- १.३.१० (ईदृक्) आबु (प्रा० व्या० ४. ४०२) Vओगल-(उद्+ गलू)-ओगळवू ओगलंत-११ ११.४ वर्त• कृ० *ओढाविय- ५. २३. ४ ओढाड्यु (तुल० ओढण-दे० ना० १. १५५) ओणामिय ६ १२. २ (अवनामित)-नमन करेल Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्थरिय- ८. २१. ६ (उत्+स्थलित)__ स्थळ पर आव्यो, (जुओ 'उत्थरिअ') ओन्नडिय- ८. २९. ९ (अवनटित)-अव गणित, तिरस्कृत ओमालिया- ६. ३०.७ (अपमालिका)-माळा (तुल० निर्माल्य-प्रा० व्या० १. ३८) आयालिया- ३.१०. ७ (अवचालिता)-चा लती, फरकती (धजाओ) ओलंभअ- ४. १८. १२ (उपालम्भक) ठपको *ओल्लरिअ- ५. १. १२ सुप्त (दे० ना० १. १६३) ओल्लिय ८. २३. २ (आर्द्रित)-भीजावेल Vओसर (अप+स-ओसरवू, दूर थर्बु, पाछा हठवू ओसरहिं ८.२१.११ वर्त० तृ० ब०व० ओसरिअ- ३. १. १३ भू० कृ० Vओहट्ट- (अप+घट्ट)-पाछु हटवू ओहट्टइं-८. २०.१ भू० कृ० ओहट्टहिं- ८. २१.१३ वर्त तृ०व०व० ओहलिय- ८. १६. ५ (अवहलित) हलेलु कइयहं ५. १२. २ (कदा) क्यारे कंठअ १. २७. ८ (कण्ठक) कंठो, हार कंदअ- ६. १९. ६ (कन्दक) कंद-मूळ । कक्कड- १०. २. ८ (कर्कट)-कर्क राशि *कक्का - ९. २३. ३ काका (१) कच्चोल ८. २७. ७ (कच्चोलक)- कचोठं कट्ट-७. ११. १५ (खट्ट?)-खाट (?) Vकटूट (कृत् )कापवू, हिं० काटना कटिज्जइ-७. १०.५ कर्म० व० तृ० ए० व० कठिया- ८. ४. ९ (कष्टिता) कष्ट कर- कड़यडअ- ६. २८. २७ कड कड अवाज करवो Vकड्ढ (कृष्)- खेंचवू, काढवू कड्दतअ १.२२.११ वर्त० कृ० कति ११.४.४ वर्ततृ ००व० काड्ढय-८.४.१०, १०.१६.६ भू० कृ० कढिअ.- ८. ३७. १२ (क्वथित)-कढेलु *कणकणकण-७. २१. ७ 'कण कण' आवाज करवो *कण्णवालिया-- ६. २५.२ काननुं घरेणुं, वाळी (तुल० कण्णवालं-देना २. २३) * करकर- ८.७.८ (ध्वनिधातु)-'कर कर' ___ अवाज करवो करय- ८. १८. १३ (करक)- करा करवय ८. ३८. २ (करक, करपात्र) जल पात्र, (सरखावो-करपाय, पा. स. म., __करव-सुपा.२१४) *कराडी ३. १५. २ कराड कल ४.३. २ (कला), विज्ञान कल (कलय्) कळवू, जाणवू कलिय ४. १८. ४ भू०० कलेऊण ५. १६. ५ सं० भू० कृ० कलयल- २ ८. ७ (कलकल) कलबलाट, __ कोलाहल /कलयल- (कल कलय्-कलकल अवाज करवो कलयलंति १.७.४ वर्त ० तृ०व०व० कवण १. २. ४, १. १४. ३ (किम्)_, कोण कवल- (कवलय्) कोळ्यिो करी जवू हडप करवू('कवल' नाम उपरथी धातु) कवलेइ ४.६.१६. वर्त० तृ० ए ० कविसीस- ८. २६. ९ १. कपिशीर्षक= गु. कोसीसु-(प्राकार साथे) २. कवि-शीर्ष = कवि मूर्धन्य (विहार साथे) ३. कपि-शीर्षक-वानर - मस्तक- गिरितट साथे) कहाणिया १०.२६. १ (कथनिका) कहाणी नारी कड- ३. १६. १० (कट)- हाथ *कडप्प ६. २९. १० समूह,कलाप (दे० ना० २. १३) Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का इ- ८.२९.७ (का अपि का चित् ) कोई कांइ २. ८. १७, २. ९. ३ (किम् ) शुं, कई ७. १२. ४ ( कथम् ) शा माटे * काणि - २. १०.७ काण, महोकाण ( तुल० कण् शब्दे - है. धा.) काम थड्ढो ११. १९. २ ( काम स्तब्ध ) विषय-व्याकुळ ( प्रा. व्या. २. ३९ ) किकिरिक किकिरिकि - ७ २१. ३ ( ध्वनि विशेष ) 'करडी' नामना वाद्यनो अवाज किच्च ११. ३३. ३ ( कृत्य) कृत्य, कार्य किमि २. १७.६, ( कथम्) केम किमेड ४. ५. २ ( किमेतत् ) ए शुं V किलकिल - ( किलकिलायू ) - (कलकिल अवाज करवो- (किलकिलाट ) किलिकिलंत ३.७.६ - वर्त० कृ० किलिकिलिउ ६.२७.१२-भू० कृ० किहविह - ८.९६७ - ( कथंविध ) - केवी रीते कुंड कुंडय ९.२२. २ ( कुण्डक कुण्डक) - कुंडाळे - टोळे वळीने ? कुंडलिकरण - ६.१०.२ ( कुण्डलि - करण ) - कुंडा छानो आकार धारण करवो, गुंचळु वळवं कुंडलिय - ६.२५.३ - ( कुण्डलित ) - गोळाकार कुंभिपाअ - ११.४.४ ( कुम्भीपाक ) - नरकनी येक प्रकारनी यातना कुग्गह - ११.१८.१०. ० - (कु-ग्रह) - कदाग्रह कुम्मुन्नअ - १.२३.२ (कुर्मोन्नत= कूर्म + उन्नत ) - काचवा जेवा ऊँचा कुरुलिय - ८.७.१० ( कुरुलित ) - 'कुरल कुरल'वो अवाज कर्यो ( सारसे) * कुल फंसण २.१३.९ - ( कुल - पांसन) - कुळने हलकुं पाडनार (दे० ना० २.४२ - कुलफंसणो कुलकलङ्कः) कुल विइ १०.९.३ ( कुलवृत्ति) - कुळ- मर्यादा √ कुव्व - (कु-कुर्व् ) - करवुं V कुव्वंति - ३ १६.४ वर्त० तृ० ब० व० *कुसुमाल १.११.६ चोर (दे० ०ना० २.१० ) कूविया ३.१८.४ - ( कूपिका ) - कूं पी केंत्र ८.१६.८ - ( कथम् ) - केम, देवी रीते केर ३.२.७ - ( सत्क ) - केरुं, नुं ( सम्बन्ध - विभक्तिनो अनुसर्ग, प्रा० व्या ०१.१४७ ) केवड्ड २.३४ - ( कियत् ) - केवडुं केस-कड्ढण ७.२६.८ - (केश-कर्षण) वाळ खचवानी लडाई, केशाकेशी केसर १.६.११ - ( केसर) १. केसर- पुष्प ( उद्यान साथै ) २. केशवाळी ( सिंह साथे ) केसराल ६.२८.४ ( केसरिन् ) - केसरि सिंह केहउं २.१५.२ - ( कीदृश) केवुं कोउय ७.२०.१४ - (कौतुक ) - मंगळ-विधि, सौभाग्य माटे करवामां आवती होम आदि क्रियाओ *कोड्ड ३.६.१०, ६.१.१३ १. आश्वर्य, कौतुक, कुतूहल २. कोड, आशा, होंश (दे० ना० २. ३३) V*खंच - खेंचं, वश कर खंचहु११.३९.१६- आज्ञा ० द्वि०ब०व० खंडअ ७.१४.१३ (खण्डक) खंडियो, ताबेदार खंड - आसुरिय ८.३६.१ (खण्ड- आपुरिय) - खांड पूरे, खांडी भरेलुं खंध ६.२७.७. ~ ( स्कन्ध ) - खभो, कांध खंधार - खंधावार ८.१०.४ - ( स्कन्धावार) - सैन्य-शिबिर, छावणी खंभ १.१६.२ - (स्तम्भ) - खभी खग्ग-गाम ९.१६.६ ( खड्गगाम ) तलवारनी जेम ऊभी गति करनारो V * खडड (ध्वनि-क्रिया) - 'खडड' शब्द करवो खडहडंति७.७.७–व० कृ० *खद्धिइया ५.२५.६- - खवायेली, (खद्धं = भुक्तम्, दे० ना० २.६७) खलिय ४.१४.१२ (स्खलित ) - स्खलन, भूल *खत्रखवंत ८.२५.८ ( ध्वनिशब्द ) खवखव करतां, थनगनतां (घोडा) Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ V*खस-खस खसंति ११.३२.३२ वर्त० तृ० ब०व० खसिय ३८६ भू० कृ० खाण-पाणय ९८.१२ ( खादन- पानक) - खानपान खिज्जिअ ४.१०.९ ( खिन्न ) - खिन्न खित्त ७.१४. ३ (क्षिप्त ) - मोकलेल V*खुट्ट (तुड्) - खुटवं, (दे० ना० २.७५, प्रा० व्या० ४.११६) खुट्टए ९.८.११९ वर्त० तृ० ए० व० खुट्टउ ८.५.१० भू० कृ० *खुडुहुडिय ८.३५.६-भेळवेलुं (१) * खुत्त ११.३२५२ - खुतेल, निमग्न (दे० ना० २.७४) * खुरहुर ७.१५१२ डंफास मारवी, बडाई मारवी (?) V*खुसफुस - घुसपुस करवी खुसफुसहि - ९.२३.१ वर्त० तृ० ब०व० खोह ३.७.१२ - ( क्षोभ ) - खळभळाट गंडवास ३.८.४ ( गण्ड - पार्श्व) गालनो एक भाग गग्गय-गिर ६.१६.९ ( गद्गद् - गिर) --गद्गद् कंठे, गळगळा थईने. गड्ड ११.८.२ - (गर्ल्स) - खाडो, हिं. गड्ढा *गड्ड २.११.१ गाडुं (दे० ना० २.८१गड्डी) गब्भय ७.२०.४ ( गर्भ क ) - गर्भ गृह, घरनो अंदरनो भाग गम ५.१९.१४ (गम ) - मार्ग, रस्तो गयत्रइय १.६.१२ ( १ . गजपतिक) हाथी - आनो राजा (२. गतिका) प्राषितभर्तृका गरुयअ ४.८.१२ - ( गुर+क+क) महान गल ५२१.६ (गल ) - गल, माछली पकड़वानो कांटो गहगहियअ १.१२.१२ ( ग्रह - गृहीत+क ) - भूत-प्रेतादिथी आक्रान्त हवइरिय ( १ ) ६.५.१२. - ( सन्दर्भ परथी ) गृहस्थ अने तेनी स्त्री ? गामिय ४.३.६ - ( कामित ? ) इच्छित * गिरिव ८.३५.९ - गर्भवाळु ( फळ ), अंदर मावावाळु ( फळ )? * गुडिया ८. २४.४ - पुतळी, हिं० गुडिया V*गुमुगुम (गुमगुमाय् ) - ( ध्व० क्रि० ) गुम गुम अवाज करवो, गुमुगुमंत १.७.५ - वर्त०तृ० ब० व० √/* गुलुगुल - ( गुलगुलायू ) (ध्व०क्रि० ) गुल गुल अवाज करवो गुलुगुलंत ८.२५.८ वर्त० कृ० गुलगुलिङ ६.२४ ४ भू० कृ० * गुविल ११.१२.१ ( गुपिल ) - गुंचवा - येल ( गुमिल गहनम्, दे० ना० २.१०२) * गुवुड ९.३१.७ ( गड्डु ? ) - गुमडु ? *गोस ११३३.३ प्रभात (दे० - ना० २०.९२ ) गोसामिय (१) ७.२९.२ - ( गोस्वामिज ? ) - छाण (?) घग्घर वयण ४.१९.१ ( घर्घर वचन ) - खोखरो अवाज, गद्गद् अवाज घल्लिय ३.१.६,४.१५.९,६.४.१०, ७.२.२ घाल्युं, घटित घल्लियअ ७.२.२ - (क्षिप्त ) - फेंक्युं घुण - अक्खर - नाय - १.२४.४ ( घुणाक्षरन्याय ) अनायास कार्य-सिद्धि घुम्मिय ८.२२.३ ( घूर्णित ) - घुमी - फरी गयेल ( घुम्म-घूमकुं प्रा० व्या० ४.११७ ) * घुरुहुरिय ३७.७ - ( घुरुघुरायित ) • घुरक्यां ( कुतरां ) * घुसिण ११.१५.१ ( घुसृण ) - सुगन्धित द्रव्य - विशेष, केशर V घे ( ग्रह् ) - पकडवु घेतून - ६.२६.८ सं० भू० कृ० Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ /*घेप्प-(ग्रह ) पकडवु, घेप्पइ ९.५.१०वर्त ० तृ० ए० व० Vघोल-(चूर्ण)-घुमवू घोलंत-२.१ ११ वर्त. कृ० (प्रा० व्या० ४.११७) घोलिर-९.२.४.(घूर्णतृ)-घुमतुं * चउक्क-८.२८.५ (चतुष्क)-चोक, चौटुं (दे० ना० ३.२) चउपास-२.८.६(चतुष्पाव)-चोपास चंदण-वंदणाई- १०.४.१३ (चंदन-वन्दन) चंदन वांदवु चंद-होर १०.२.९ (चंद्र-होरा) चंद्रनी होरा Voचंप-चांपवू दबावQ चंपंत-६.२५.७ वर्त० कृ० चप्पियहि-५.८.३ कर्मवर्ततृ० ब०व० *चक्कलिय- ८.१८.६ (चक्रलित)-चक्राकार करेल चक्कहर-९.८.४ (चक्रधर)-चक्रवर्ती राजा चच्चर-७.५.७ (चत्वर)-चोतरो चच्चरी-१.६.९ (चर्चरी)-समूहगान-विशेष चच्चरी-गण-१.१४.९ (चर्चरी-गण) गायक-टोळी चिड-(आ+रूह)-चडवू (प्रा.व्या.४.२०६) चडावियउ-५.१३.४ प्रे. भू. कृ. चडेवि-९.११.९ सं. भू . कृ. चडण-५.३१.५ (आरोहण)-चढाण *चडयर-२.५.१३-आडंबर, आटोप चहुट्ट-चोंदवु (दे. ना. ३.२) चहुट्टइ-५.१७.४ वर्त. तृ. ए. व. चहुट्टउ-२.१३.५ भू. कृ. चारहडीवाय-८.१४ ६ (चारभटीवाद) शौर्यवृत्तिनो वाद चिंधय - ७. २७. ५, ८.९. ५ (चिह्न+ । क)- चिह्न (प्रा० व्या० २. ५०) चिरि चिरि सर - ८. ७. ७. ('चिरि चिरि' स्वर) -चिरि चिरि अवाज *चुपालय - ८. २८. ९ बेसवानी खुल्ली जग्या. हिं०-चोपाल-चोपाड. (दे० ना० ३. १७- चुप्पालअ) *चुज्ज - (चोद्य)- ७. २. ११. आश्चर्य (दे० ना० ३. १४) *चुल्ल - (क्षुद्र)-३. २. ७ नानु, क्षुद्र । *चोक्ख - ८. ३८. २ - चोक्खं *छंछोलई - ७. २१. ८ छंछोळ- अवाज, (कंसाल' वाद्यनो अवाज) छक्क - ११. ११. १२. (षट्क)- छनो समूह, षट्क /* छज्ज - वागवू, ( 'हुडुक्किया' नामे वाद्यनुं वागवू) छज्जइ-७. २१. ४ वर्त० तृ० ए० व० *छज्जिआ-४. १८. ६,५.८.७ छाबडी, पुष्प-पात्र । छड्ड – (छर्दय्, मुच् ) छोडवू छड्डहि-१.१२.३ आज्ञा द्वि० ए० व. छड्डिज्जइ-२.१०.१३ कर्म० वर्त० तृ. ए० व० छण-मयलंछण - ६. ३१. ९-(क्षण-मृग लाञ्छन ) शरद पूर्णिमानो चंद्र छप्पवि - १. २१. ४ (षड् अपि ) छ प्रकारनु छाहिंय - ५. १६. १०, ८. ६. ३ (छाया) प्रतिबिंब *छिक्क - २. १४. ७ छींक (दे० ना. ३. ३६) *छिक्किअ - २. १४. ४ छींक खाधी, छींक्यु *छुडु - ६. १५. २, ७. १६. ६ शीघ्र, तरत ज (प्रा० व्या०४. ४०१) Vछुब्भ (छुप्) - स्पर्श करवो, हिं० छूना छुब्भए - ६.१९.१० वर्त० तृ०ए० व० छुब्भहिं - ११.४.६ वर्त० तृ. ३० व० (छि - प्रा० व्या० ४. १८२) ५० व० Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ V छुह - (क्षिप् ) - फेंकवु ( प्रा. व्या० ४. १४३) छुहंति - २. १३ ११ वर्त ० तृ० ब०व० जंतअ - ११. ४. ३ (यन्त्रक) यंत्र *जंपाण- १०. २०.१३ पालखी *जक्क - ९. ३. ७ - जक, आग्रह(?) जडिअ - ९. ५. १. (जटित) - जडेल (जट् संघाते, है० धा०) (दे० ना० जत्ताहियअ - १०. १. १७ ( यात्राहृदय ) - यात्रा-गमन माटे उत्सुक जरढामल - १०. ६. २ (जरठ + अमल) - पक्व अने निर्मळ जबसखाण - १०.४.८ (यवस + खादन) -घोडाओ वगेरे माटेनू खाण जाणय - ३. ११. ११ ( यानक) - वहाण जाणवत्त - २.२३. १ ( यानपात्र)- वहाण Vजिम - (जिम्) - जमवु (जिम् अदने है. धा.) जिमंति . ८.३५.९ वर्त० तृ० ब० व० जिमिय - ३.३.१३ भू० कृ० /जियाव - ('जीव' नुं प्रेरक)-जीवाडवू जियाविय - ९ १२. १२ भू० कृ. जियावेज्जसि-९ ३४.८ वि०द्वि०ए०व० जियावेज्जसु ९. १३. ९ , ज्जि - १.८.४ (एव, प्रा० चिय) -ज, निश्चयार्थक अव्यय जीरव - ( जीरय् )- जीरवq जीरवइ -१०.९.४ वर्त० तृ० ए० व० जीवण- १. ६. १, १. २०.३ (जीवन) - आजीविका जुग्गय - १. २६. १२ (योग्य + क ) - योग्य / जुज्झ - (युध् ) - लडवू, जूझवू जुझंत - २. १०. ९ वर्त० कृ० Vजुज्ज - (युज् ) योग्य थg - होवू जुज्जइ -६ २०.१४ वर्त ० तृ० ए० व० V*जो- (दृशू) जोवू जोइज्जंत-- ३. ६. २ कर्म• वर्त कृ० जोएवउं ३.५.२ वि० कृ० जोयावमि - ४ २३.१ प्रे० वर्त०प्र० ए० जोयावियउ - १०.१४.१२ प्रे० भू०० जोविज्ञहि- ३.४.६ वि० द्वि० ए० व० जोविय- ५. २. ३ भू० कृ० जोवेज्जहि- ३ ४.६ वि. द्वि० ए ५० जोक्कार-२.५.३ (जयकार )-जय जय श ब्द, जयकार Vशंख- (वि+लप्)- बोलवं. बकवाद करखो झंखहि-८.३१.६ वर्त० द्वि० ए० व० झखहु- ११.३५.४ वर्त द्वि०ब० व० (प्रा० व्या० ४.१४८) झंप-९.३३.९.,११.३१.१० - कुदको (सरखावो-झपापात ) झयालि-१०.२१.५ (ध्वजालि)-धजाओनी हार /*झलक्क-झळकवु (प्रा० व्या० ४. ३९५) झलक्कहिं-८.३३.४ वर्त० तृ० ब०व० झलक्किय- ३.११.७ भू. कृ० झाडिअ-११.३९.१ ( झाटित )-नष्ट कर्यु, __झाड्युं ( झट् संघाते-है ० धा० ) टणक्कअ- २.१७.१० (टणत्कार)-टणकारो टालिअ--६.२८.१२-(टालित) टाळ्यु (टल्-वैक्लव्ये-है० धा० ) ठक्कुर-४.१४.९-(ठक्कुर)-मालिक, ठाकोर Vठा-(स्था)-ऊभा रहे, ठायसु-५.१३.८ आज्ञा० द्वि०२० व० ठाहो- ७.१.८ आज्ञा० द्वि० ब० व० ठवेवि- ५.२.१४ प्रे० सं० भ० कृ० । डर-११.१०.११- (दर)-डर, भय (प्रा० व्या० १. १२७) *डोहिय-५.१५ १०-डहोळेल (-अडोहिउ. अनवगाहितम् , प्रा० व्या० ४. ४३९) Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' * ढंढोलअ - ११.८.५ - ढोळवु *ढंढोलिअ - ५.२४.५ ( गवेषित ) - ढढोळे ( प्रा० व्या० ४. १९८९ ) * ढुक्क - २.११.७ ( ढौकित ) - मळ्यु, भेट्युं, दुक्युं *दुक्कअ-७.१६.२ - उपस्थित V * ढोअ - ढोवु, वहन कर ढोइअ - २.११.७ भू० कृ० ढोविय - ३.२१. भू० कृ० ढोइज्जहिं - ८.४.८कर्म० वर्त० तृ० ब० ढोएवि - ३.५ ११ सं० भू० कृ० * णुवण्ण- ३.१६.१० -सुतेलुं (दे० ना० ४. २५ ) तंति - ७.२८.१० ( तन्त्री ) - अतिरडानी तांत * तंति - ९.२२.११ - निन्दा तइज्जअ - ६.७.११ ( तृतीय ) - त्रीजुं तट्ठिया - ६ १२१२ ( त्रस्ता ) - बीधेली ड- ७.२०१२ ( तत ) - ताणेल, बांधेल तण-४.५.६, २.१९.७, २.१८.१ - ( तनुं) - नुं (छडी विभक्तिनो अनुमर्ग, प्रा० व्या० ४. ४२२ ) *तत्ति - १.२. ३. वात तत्ति - ११.१६.६ ( तावत् ) - तेटलं V/ तप्प - ( तल्प ) - चिंता करवी तप्पहि-६.१२.६ - आज्ञा० द्वि०ए० व० * तरिअ - ८.३७.१२ मलाइवाळु, तरियुं (दुध) तिंत ३.१३. ३ ( तं मित ) - भींजायेल भीनुं तिउण - २. १०.४ - ( त्रिकोण ) - त्रणे बाजुथी तिउस - २.१६९ ( त्रिदोष ) - वात-पित्तकफनो दोष, त्रिदोष तिभाय - ६.२९.७ ( त्रिभाग - अतिभाग ) - त्रण भाग, घणो भाग तुरंति - ४.२१.९ ( त्वरत् ) - तुरत थक्किया - २.७६ ( स्थिता) - ऊमेली, अट केली * थटूट १०.२१.४ - ठठ ११ थड्ढ - ११.१९.२ ( स्तब्ध ) - स्तब्ध थयेल, थत्ति - ४.११. ३ ( स्थिति ) स्थिति V * थरहर - थरथर कांपवु ( थरहरिअं कम्पितम्, दे० ना० ५.२७ ) , थरहरइ - २.७.५ वर्त० तृ० ए० व० *थाल - ८.२७.७ ( स्थाल ) - थाळ (दे०ना० ६.१२ ) * थोर - १.२३.४ ( स्थूल ) - स्थूळ, मोटुं (दे० ना० ५.३० ) दिन्नया - ९.१४.१२ दिनेल्लिया - ८.३६.८ (दत्ता) दीघेली दट्ठव्वय - ३.१०.१२ ( द्रष्टव्यक ) -संभाळ राखवा योग्य ( 'दृश्' नु वि० कृ० ) दडिअ (?) ७.१५.१२ ( 1 ) ( दरिअ - दप्त, प्रा० व्या० १.१४४ ) *दर - १.२३.१६ अर्द्ध, अडधुं (दे० ना० ५. ३३ ) दाण - १०.५.३ ( दान ) - दाण, लागो दिढ़ - १.१६.१ ( दृढ ) - दृढ दिव्व - २.१८.५ ( दिव्य ) - दिव्य, कसोटी दिसि - भोलअ - ११.८.५ (दिग्भ्रंश) - दिशा भ्रम (भ्रंश भुल्ल, प्रा० व्या० ४.१७७ ) दिसिवाल - ६.२३.९ ( दिकूपाल) - दिक्पाल, दिशाओनुं रक्षण करनार देव दिसोदिसि - ६ . २९.१२ ( दिशोदिशि ) दशे दिशामां, बधी दिशामां दिसोदिसु - ७.४.५ ( दिशोदिशि ) - दशे दिशामां, बधी दिशामां - दुइज्ज दुइय दु - निंद्य आचरण, पाप दुव्वि - ९. ६. १४ ( जुगुप्सितव्य ) घृणा करवी, निंदा ५. ११.९ (द्वितीय) - बीजुं ४. १४. ३ ( द्वितीय ) - बीजु १०. ९.९ ( दुष्कृत + क ) - निंदनीय (जुगुप्स् करवी - नुं वि० कृ० ( प्रा० व्या० ४.४ ) V दुह - ( दुःखय्) - दुःख आपवुं दुभववुं दुहइ - २.१०.१३ वर्त० तृ० ए० व० 1 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुहिया - ४. २३. १५ (दुःखिता )- दुभायेली, दुखियारी दूस - ७. २०. ८ (दुष्य) - वस्त्र, देक्काण - १०. २. ९ (द्रेष्काण ) - द्रेकाण, ( ज्योतिषनो पारिभाषिक शब्द) *दोग्घट्ट - ८. १७. ३ - हाथी (दुग्घट्टो हस्ती, दे० ना० ५. ४४) धर - ८. ३३. ७ (द्रह-हृद) - धरो *धहावंतअ - ५. २०. १ - धा नांखतुं धाडो - ११. २४.२ (धाटो) - धाड *धाहा - ४. १८. ११ - धा, *धाहाविय - २.२२.८- धा नाखी, Vधुम्म-(ध्वन्यात्मक क्रिया )-'मद्दल' वाद्यनो अवाज धुम्मइ-७.२१.३ वर्त० तृ० ए० ० धुरगय - ६. ६. ७ (धुरागत) - धूंस रीए जोडेल *नंगर - ३. १. ४ - वहाणन लंगर नवि - ४ २. २ (निषेधार्थक अव्यय) नव, नहीं नाहिं - २. १. ४, ९. २२. १२ (नहि) -नहीं, (प्रा० व्या० ४.४१९) निउंछण - १०. ४. १२ (न्युञ्छन -) - दुःखणा लेवा निक्खत्तु - ९. २४. १० (निःक्षत्र) - नक्खोद ? निक्खुट्ट - ७. २७. २ (नि + खुट्ट) - खूटी गयु, (-खुट्ट %D तुइ, प्रा० व्या० ४. ११६) *निच्चोल - ५. १५. ९-जाडु, म टुं निच्छुलिय - ५.२७. ८ (निः + छुडित ) -- पहोळी थई (छुड् = पाथरवू, पहोळु करवं, है० धा०) निच्छोडिय - ५. २९. १ (निश्छुटित ) छोड्यु *निज्जूह - ५.१३. ९ (नियूह) -बार| नित्थाम-८.५.५ (निःस्थामन् ) निर्बळ Vनित्थर- (नि+तृ)-पार कर नित्थरेइ-१.२.८ वर्त० तृ० ए० व० निद्धाहिअ-१०.१५.१२ (निर्धावित)-परवारेल निन्नास-५.७.२ (निर्णाश) विनाश निम्महिय-६.२५.४ ( गत-प्रसरित)- फे____लायेल (निम्मह-गम्, प्रा०व्या ० ४.१६२) *निरह-११.८.१०-नयु निरु-८.१४ ११ नयु (प्रा०व्या ०४.३४४) Vनिसाम- (नि+शमय्) -सांभळवू निसामेवि-३.८.१ सं० भू० कृ० (णिसामिअं-श्रुतम् दे० ना० ४. २७) /निसुण-(नि+श्रु) -सांभळवू निसुणि-९.२ ८ आज्ञा द्वि० ए० व० निसुणेविणु-१.१७ १२ सं० भू० कृ० निसुणेहु-१.२.१२ आज्ञा ० द्वि० ब० व० (णसुअं - श्रुतम्, दे० ना० ४. २७) निहिदठ-१.३.६ (निवृष्ट )- घसायेल नीसरियअ-१.४.१२ (निःसृतक) नीकळ्यो, नीसों नीसरिया- ४.११.१२ (निःसृता) नीकळी नुवन्निया-९.२६.३-सुतेली (दे० ना० ४. २५) पंगुर- (प्र+आ+ )-ढांकg पंगुरंति-८.३०.३ वर्त० तृ० ब० व० (पङ्गुरणं-पावरणं, प्रा० व्या० १. १७५) पंचवास-१.२४.१३ ( पञ्चवास )-पांच प्रकारना सुगंधि द्रव्यो नाखेलु (पान) पंचहाअ-९ २३.५ (पञ्च भाव)-पंचत्व, मृत्यु पच्चल्लिय-७ ८ ३ (प्रत्युत)-विपरीत, ऊलटुं पच्छइ-६.३१.१६ (पश्चात् )-पछी । पच्छइ-४.१८.५ (पश्चात् -पाछळ (प्रा० व्या० ४. ४२० ) Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *पच्छिया-३.२०.८,५.९.३-छाबडी (पच्छि- पिटिका-पटारी, दे० ना० ६.१) । /पटव- ( प्रस्थापय् ) मोकलयु, पाठवधु पठविय-१.२६.८ भू० कृ० पदहाव है- ३.५.७ आज्ञा० द्वि० ए० व० पडवाअ-९.२८.७ (प्रतिवाद )-टेको पडिच्छंद -१०.१९.१० (प्रतिच्छन्द)प्रतिकृति। Vपडिच्छ-(प्रति + इष्) - ग्रहण क वृं। पडिच्छसु-६.३ ३.९ आज्ञा ० द्वि० ए०व० पडिच्छि-१०.२२.६ आज्ञा ० द्वि०ए०व० पडिच्छिउ -१.६.२ भू० कृ. पडिवत्ति - १. २७. ८ (प्रतिपत्ति) - आदर, सत्कार पडिवन्न - २. ७. २ ( प्रतिपन्न ) - स्वीकृत /पडिवाल - ( प्रति+पालय् ) - वाट जोवी पडिवालि-९.३१.७ आज्ञा ० द्वि० ए० व. पणोल्लिय- ४. ९. ९ (प्रणोदित) - प्रेरेत पत्तयाल - ५. १८. १२, ६. २१. ३, ७. ९. ११ (प्राप्तकाल) - अवसरोचित पत्तल - ९. १२. ४ (पाताल) - पाताळ Vपत्तिअ-(प्रति + इ) - विश्वास करवो, पतीज पडवी पत्तियइ - ५.१.९ वर्त० तृ० ए० व० पत्तियहि- २.९.४ वर्त० द्वि० ए. व. पन्हुइय - १०. १९. १० (प्रस्तुत ) - झरेलु, पानो आवेलुं (पण्हओ - स्नन धारा, दे० ना० ६.३) परट्ठय - ७. १५. १ (परार्थक) - V पराणी-(परा + णो )- पहोंचाडवं पराणिऊण - २.१२.४ सं० भू० कृ. पराविय- ३.३.२ ( प्राप्त )-पहोंच्या परित्त -४.६.१५ (परीत)-परिमित परिमुसिय-५.२९ ३ (परिमृष्ट)-मर्दन कयु परियाअ-३.१२.८ (परिपाक -परिणाम (काल --परियाई-आयुष्य पुरु थतां) परिहणय-३.१०.२ (परिधानक )-वस्त्र, ___ पहेरण (परिहण-परिधानम्. दे० ना० ६. २१) * परिहाविअ-१०.२१.१७ (परिधापित)-पहे. राव्यु, पहेरामणी करी पलाणअ - ८. १५. १२ (पलायन) - पलायन थयु पलायमाण - ७. २८. १ (परा + अय् नुं व० कृ० )-पलायन थतुं पलित्त - १. ९, ११, १. १६. १ (प्रदीप्त )- ज्वलित ( तुल० गु० पलीतो) पलोदिटय - ८. १२. २ ( पर्यस्त) - साम सामा पवाह - ५. १९. ११ (प्रवाह) - परिवार पवाविअ - ११. ३७. ५ (प्रवाजित ) - दीक्षित पहल्लिय - ६. २४. । (पूर्णित) - कंप्यु (प्रा० व्या० ४. ११७ ) *पहिरण - ८. २९. १० (परिधान ) - पहेरण पहिल्लिया - ९. २२. ५ ( प्रथिल्ल )-पहेली पहुत्त १. ५. ३ (प्रभूत ) - पहोंच्यु (भू प्राप्तौ-हे. धा०) पहेलिया-१०.२५.१२ (प्रहेलिका)- ऊखाणुं, हिं. पहेली पाइक्क-२.११.७ ( पदाति )- पायदळ-सैनिक __ (प्रा० व्या० २. १३८) पाउल-१०.२१.२ (पादपूर)-पायल पाडिहेर-११.२४.११ (प्रातिहार्य)-देवी सहाय पाण-पियार- १.२.११ (प्राण+प्रियतर ) प्राणथी प्यार पाविय-पअ-४.८.११ (१) पाविय पउम(प्राप्त-पद्मा)-जेमांथी लक्ष्मीजी प्राप्त थया ते, सागर २. पावियपउ -(प्राप्तपद)जेमणे पद-सिद्धिनी प्राप्ति करी छे ते, मुनि पारका माटे Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहुड-१.२७.११ (प्राभृत,-भेट पिंजण-७.१६.९ (पिजन )-हिंसा ( पिज हिंसायाम्-है ० धा०) पिंजरिय-१. २३.३ (पिञ्जरित)-पीळं करेल *पिड -९.२७.६-अधीनता (सुगा० १७६) पिसुणिय-६.३.१ (कथित-सुचित)-कहेवायेल, सूचवायेल (पा० व्या० ४.२) पोयल-५.१६.७ (पीत+ल)-पीळु (प्रा. व्या० २.१७३) Vपुंछ-(प्र+उञ्छू)-लुछg, हिं० पोंछना पुंछमाणी-४.१६.१० वर्त० कृ० स्त्री० (मृज-पुञ्छ, प्रा. व्या० ४.१०५) पुणन्नव-१.६.८ (पुनर्नव)-ताजु पुत्तलअ-९.२३.५ (पुत्रक)-पूतळु *पूणिया - ४.६.१९ - पूणो (पूणो-तूललता, देना० ६.५६) पूराण-६.९.५ (पूर्ण)-पूरूं *पेट्ट-८.३.१२-पेट *पोट्ट-८ १३.९ - पेट (देना० ६.६०) *फसलिय-८.२७.४-विभूषित (दे० ना० ६८३) *फारक्क -२.११.८ (स्फारक)-स्फारकास्त्र . धारण करनार सैनिक फालिअ ६.२८.१२ (पाटित)-फाड्युं (पाट फाल-प्रा० व्या० १.२३२) /फिट्ट-फोटq, (स्फिट, स्फिट्ट हणवू, फेडवू, है ० धा०) फिटिस्सइ-७.१६.९-भवि० तृ० ए ० व. फुक्करिअ-६.२७.५ (फुत्कृत) फुफाडो मारेल Vफुक्क-(फुत् +कृ)-कुंकवं फुस्कवि .७.८.६ -सं० भू० कृ० फेकार-सह-३.७.८ (फेत्कार)-फेंकार, शिया ळनो अवाज Vबइस-(उप+विश) बेसवु बइसह-१.२४.११ आज्ञा द्वि० ए० व० बइसारिउ-२.१९.४ प्रे० भू० कृ. *बक्कर-१.२७.६-परिहास (दे० ना० ६. ८९) (तुल० वर्कर-हास, अ०चि० ३.५५६) बप्प-१.१५.७-बाप (दे० ना० ६. ८८) (तुल० वातृ-चाप, अ० चि०३ ५५६) बपरिया-१.१५८ (वर्बोरेका)-वर्बरदेशनी निवासी दासी बलइंत-८.२१.७ (बलवत्) बळवंत बलिक्किअ-९.२३.९(बलिकृत, समर्पण करेल *बलि मड्डा-७.७.५ -बलात्कार (दे० ना०६. ९२-बल-मड्डा ) बलेद-६.६.७ (बलीवर्द)-बळद बहक्क--११.१५ १ (प्रसरित)-महेक्यु (प्रा० व्या० ४.७८) बहुत्त-२.१०.३ (प्रभूत)-घj. हिं० बहुत (प्रा० व्या० १. २३३) बहुसुय-८.२६.८ १. (बहु-सुन)-घगां छोकरावाळु-('कोडुंबि' साथे) २. (बहु-शुक) बहु पोपटवाळू-('सालि' साये) ३. (बहु-श्रुत)-विद्वान- 'पंडिय' साथे) Vबुड्ड-(ब्रुड्)-बुडवू, डुबg बुड्डहिं ११.१५.१ २ वर्त० तृ० ब० व० बुड्डिज्जइ ४ २१.५ कर्म• वर्त० तृ. ए० व० बुढियो-८.३.१० (वृद्धा)-बुड्ढी, हिं० बुढिया *बेडिया-५.१०.१२-होडो, बेडी-बेडो (बेडो नौः, दे० ना० ६. ९५) (बेडा-होडी, अ० चि० ३.८७७) *बोल्ल-बोलवू (कथय-बोल्ल, प्रा०व्या ०४.२) बोल्लह-९.२२. आज्ञा० द्वि० ब० व० बोल्लिअ-१ २०.१, ९.२०.९ भू० कृ० बोल्लाविअ-प्रे० भू० कृ० ६.११.७ बोहित्थ-३.५.६-वहाण, (बोहित्थो-प्रवहणम्, दे० ना० ६.९६, बोहित्थ, अ० चि. ३. ८७६) Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंडारिय-८.३५.४ (भाण्डागारिक)-भंडारी /भमाड-(भ्रमय् ) भ्रमण करावयु, भमावयु भमाडेवि-८.१५.२ सं० भू० कृ० (प्रा० व्या० ३.१५१) * भलावण- ११.३०.१० भलामण भल्लअ-११.३ ४.१०-(भद्र+क) भलुं Vभस-(भष)-भस भसेइ-१.१९.२ वर्त० तृ० ए० व० *भाड-७.१५.३ भट्ठो, भट्ठी V*भिड-युद्ध करवू, भीड भिडहि-७.२६.९ वर्त० तृ० ब० व० भिडिय-९ १२.१ भू० कृ० । भिन्नअ (भणितम्) -४.१९.१२ कहेवामां आव्यु भिन्नअ-(भिन्न+क)-३.१३.१ भीजायेलु, भीनु भीसावण-(भीषण)-११.८.१ भयानक *भुंजिय--३.२.५ भुंजेल, भुंजायुं भुमया-(भ्र) १.२३.१५ भवां प्रा० व्या ०२. १६७) *भेद-९.१९.३ भेटो, मेळाप मं १.१८.१० (मा) नहीं मंडल-(मण्डल)-५.३.८ फेरा (लग्नमां चोरीना फेरा) मंदअ-(मन्द+क) ६.१९.६ खल मइलिय-२ १५.१२ मेली, लांछनरूप (प्रा० व्या० २. १३८) *मग्गअ-९.१०.१२ पाछळ गयुं (दे० ना० ६.१११) मग्गाविया-(मार्गापिता)-९.१०.३ मंग वी, मागु कयु Vमच्च-(मद्।-गर्व करवो (प्रा व्या०४.२२५) मच्चंत-१०.२७.३वर्त० कृ० मच्छरसायण-४.८.११ (१) मत्स्य-रसा यण सागर २. मत्सर-सादन-मुनि *मडप्फर-७.११.६ गर्व-(दे० ना० ६.१२०) *मड्डा -२.२०.५ बलात्कार, तुल गुज० मांड ___ मांड (दे० ना० ६.१४०) मत्तंडअ-(मार्तण्डक)-७.१४ १४ सूर्य *मत्तवाल ५.२६.१ मदोन्मत्त, मत्त, हिं. मतवाला (दे० ना० ६.१ २२) मयरहिअ-४.८.११ (१) मकर-हित-सागर (२) मद-रहित-मुनि मयलणा-२.१७.११ (मलिनता) लांछन, कलंक मरु मरेइ-६ ६.५- ('मृ'-भारदर्शक द्वित्व) मरी पडे छे Vमरिस-(मृष् ) क्षमा करवी मरिसियव्व-४.२२.५ वि. कृ० Vमल-(मृद्-मल)-मर्दन करवू, चोळवु (प्रा. व्या० ४.१२६) मलिज्जइ-८.२४.३ कर्म०वर्त ०तृ०ए०व० मलेवि-८.३.१२-सं० भू० कृ. *महंत-१०.८.२ महेतो *महल्ल-१.२४.१६,१.२५.११ नोकर, महेतो (तुल० महल्लो- १. वृद्धः २. मुखरः, दे० ना, ६.१४३) महेलिया-१.२७.१२ (महेला-महेलिका ) ___ महिला, स्त्री माइण्हिया-(मृगतृष्णिका -११.७.११-मृगजळ माइ-सवत्ति--'मातृ-सपत्नी)-१०.१९.११ ___ अपरमा मिट्ठय-(मिष्टक)-८.३६.१ मीठाइ मुद्धि-(मूर्धन्)-७.१.७.१ मथाळु, (छरीनो)हाथो V*मुसुमुर-(दे०)-मसळवू (मुसुमुर-भञ्ज, प्रा० व्या० ४.१०६) मुसुमुरंत -३.१.१२. व० कृ० मुसुमुरिय-८.२ ३.२ भू० कृ० मुहवड-फेडावणिआ १०.५.१६ (मुखपट स्फेटानिका)- मों ऊघडामण, धुंघट-दूर करवा माटे नववधूने आपवामां आपवामां आवती रकम, Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लडिय ३ १५ ४ (ललित)-सुन्दर लवियउं-१०.२३.३ (लपितकम् )-बोलेल Vलाव (ला) लावq लाइज्जहि-७.१५.४ कर्म० वर्त० तृ० ब० व० लाया-१० ६.७ (लाजा)-तल वगेरे (लग्न विधि प्रसंगे होमवा माटेनो पदार्थ) Vले (ला)-लेवु लीहु-७.२५.३-भवि० प्र० ए० व० लेह-९.१० ९ आशा० द्वि० ब० व० लेहि-१.६.१आशा० द्वि० ए० व० Vलुड-(लुट्)-हलवं, हिं. लोटना लुडंत-५.१५.१४ वर्त० कृ० लुढिय-६ २५.२ (लुढित)-लोठेलु, आळो टेल मेच्छ-(म्लेच्छ)-११.६.५ यवन, अनाय Vमेल-(मेलय् )-मेळवद्यु मेले में ६ १५.१० वर्त प्र० ए० व० मेलिअ ७.१५ ५ भू० कु.. V*मेल्ल (मुच्) -मुकवू, मेलधुं मेल्लंति १ ७.३ वर्त ० तृ० ५० ५० मेल्लिअ-३ ११.२ भू० कृ. मेल्लाविअ-१ ४.६. प्रे० भू० कु. मोक्कल्लिय-३.१.६ (मुक्त+लिका) मुक्त, छुटी करी Vयाण-(ज्ञा)-जाणवू याणमो-६.१३.१० वर्त० प्र० ३० ३० /रंग-(रङग्)-आमतेम चालवु (रङगु गतौ है. धा०) रंगतय-५.२०६ वर्ग कृ० *रच्छ -१०.६.११ गच रचीलुं ? राणअ - १.२६.११ - (राजन् ) राणो, राजा राव-४.२.११-(राव) कलरव, अवाज रीणिय--५.२२.१० (गण) पीडित रुयावणअ-५.२५.५-(रोदनक रोवरावनारु, भयानक रुहिरोल्ल (रुधिर+आई)-६.२६ ४ लोही भीरूसण-२.१२.१,१ . १४.८-(रोषण) रीस, रूसणु *रेल्लिअ-७.१२७.२ रेल्यु, न्यु रेसि-६.१३.९-(तादर्थे निपात) ने माटे (प्रा० व्या० ४. ४२५) रोज्झ-६.६.७-(राध्य) रंधायेल *रोल-३.१७.३;८.२२.८ अवाज (गेलो-रवः, दे० ना० ७.१५) रोवण-६.१४.९-(रोदन) रोवू, गेणु रोसाणिय-८.३० ३- (मृष्ट) शुद्ध करेल (मृज्-रोसाण, प्रा० व्या० ४.१०५) लक्ख होम-७.५.७ (लक्ष-होम) लक्ष-याग लज्जावणअ-६.२०.१२ (लज्जन )-लज्जा Vलुण- (लू -लणवू, कारवू लुणेइ-२.११.२ वर्त० तृ० ए० व० लुलिय-३.१.१२ (ललित)- चलित *लोणह भामणाई-१०.४.१३-लूण उतार वानी क्रिया लोणिआ-९.२७.७ (लवणिका)-सलूण *लोहिल्लअ ५.८.६ (लोभिन् )-लुब्ध (लोहिल्लो-लम्पटः, दे० ना० ७. २५) ल्हसिअ-९ २८ ३ (स्रस्त)-लपस्यु वंदणमालअ ८.२८.६ (वंदनमाला)- तोरण, प्रा० गु० वंदुरवाल वंस-विसुद्ध २.११.४ (वंश-विशुद्ध)-१.वंश (वांस)-विशुद्ध धनुष्य साथे) २. वंश (कुळ)-विशुद्ध (स्त्री साथे) *वक्ख-५.१२.३-वखो, कष्ट ? *वग्घारिय-८.३६.७ (व्याधारित )-वघारेल वच्च-११.२ ७.४ (वर्चस् )-कचगे, विष्टा ? __ Vवज्ज-(वद्)-वाजिंत्र वागवू वज्जिय-७,२१.१० भू० कृ. *वट -४.११.४ (वर्त्मन्)- वाट, रस्तो (दे, ना० ७. ३१) Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ *वट्टअ-८.५.१० वृत्तक, पात्रक)-वाटको विणु-३.१४ २,४.२०.९ (विना) विना Vवड्ढ (वृध्-वर्ध)-वध विण्णासिअ-३.६.३ (विन्यासित)-राख्यु वड्ढइ-२.३.१७ वर्त० तृ० ए० व० वित्थरो-१०.२१.१८ (विस्तर -बिस्तरो वड्ढउ-३ १९.६ आज्ञा ० तृ० ए० व० Vविन्नव-(वि+ज्ञप्)-विनव, वडिढय १.५.५ भू० कृ० विनवियअ २.१.२-भू० कृ० वण-कम्म ८.२४.११ (व्रण-कर्म) घानी विन्नवेवि ६.२१.१० सं० भू० कृ० सारवार विन्नवेसु १.१७.११ भवि० प्र०ए०व० वत्तडिया-१०.११.९ (वार्ता -वातडो विम्हयणीअ-५.४.२० (विस्मयनीय)-विस्मय *त्रद्धावण-९.१७.५ (वर्धापन-वधामणां करनार ( वड्ढवणं-अभ्युदयावेदनम्, दे० ना०वियाणय-७.२०.१२ (वितान+क)-चंदरवो ७.८७) Vविरल-(तन् )-विस्तारवु वद्धाविअ--१०.४.५ (वर्धापित)-वधाव्यु विरलेवि ५.६.४ सं० भ० कृ० “वमाल-१ १५.१ गुंजारव (वमालो कलकलः, (विरल्ल-तन्=फेलावयु, प्रा०व्या० ४.१३७) देना० ६.९०) वयणिज्ज-२.३.१४ (वचनीय)-निन्दनीय, विलक्खअ-३.२०.२ (विलक्षक)-विलखु, त्याग करवा लायक भोटु पडेल वरि-२.१७.११ (वरम् ) - उत्तम, सारु, विवराहुत्त-८.१८.१६ (विपराङ्मुख-विपरावारु भूत)-विमुख वरुण-दिसा-१०.१६.३ (वरुण-दिशा)- *विसट्ट-१.९.१२ विकसेलु दक्षिण-दिशा *विहाणअ-२.६.२ (विभानक)-वहाणु *वसेरी-४.१६.९ शोध, गवेषणा (दे० ना० ७. ९०) वहणी-५.२४.१२ (वहनी)-चलो । विहाणअ-४.१६.५ (विधानक)-बहानु वहावण-११.३५.१२ वही जवू, वीती जवू वील-१.२७.३ (बीटक)-पान बीडुं (जुभो *वहिल्लअ-१.२४ १५,३.११.४ वहेलु सुपा०३३९) (प्रा० व्या० ४. ४२२) *वीसविसो-९.२३.१० वीशे वसा, पूरेपुरु वाइअ-३.२.६ (वाचित)-वाच्यु /*वुक्कर- (बुत्कृ)-वानरनो अवाज वावडअ ५.२५.४ (व्यापृतक)-प्रवृत्त बुक्करंति- ६.१.१२ वर्त० तृ०ब० व० वाहिल्ल-११.६.५ (व्याधिमत् )-रोगी वुड्ढा-१०.२५.२७ (वर्धिता )-वधी, *वाहुडिअ- १२.४ ___ आगळ चाली *वुण्ण-५.२४.९-भीत, बीधेलु, व्याकुळ ५.१७.१३ चाल्यु. पाछु फर्यु (दे० ना० ७.९४) Vवाहोड - वि+आ+घुद -पाछु फेरवद्, वुस- १०.६.४ (भृश)-मजबुत, मनाव वेय - ११.२.६ (वेद)-वेद (-त्रयी) वाहोडइ ११.३४.९ वर्त० तृ० ए०व० /*वेयार- ठगq ( वेआरिअं-प्रतारित्, दिणड-(वि+नट )-नडवू, हेरान करवू दे० ना० ७.९५) विणडिज्जइ-५.७ १ कर्म० वन तृ०ए०व० वेयारहि-५.१.७ वर्त० द्वि० ए० व० वेयारिउ-१.१५.१३ भू० कृ० *वाहुडियअ- -२.१२.४,३.२०.४; Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ संधुक्किअ - ३.१९.२ (संधुक्षित ) - संधुक्युं, भूक्युं ( धुनि संदीपने है० घा० ) संपत्त ७. २५ . २ ( संपत्ति ) संपत सई २. २०.९ ( स्वयम् ) - पोते V समाण - (मम् +आपू ) - समाप्त करवुं ( प्रा० व्या० ४. १४२ ) समाणमि - ७.२४.१० वर्त० प्र०ए०व० समूसिय ५. ३१.१० ( समुच्छ्रित+क ) ऊंचे रहेलं - * सयत्तअ ६. ९. १२ • हर्षित, खुश थयेल (दे० ना० ८.५ ) सयाणिया ५. ३. १ ( सज्ञाना ) - शाणी सरथंभ - ११.९.६ ( शर-स्तम्ब ) - तृण - समूह *सरे २.१०.९ माटे V * सलवल -सळवळ सलवलंत - १.२३.१० वर्त००० ० सलूगअ - ४.५.५ ( सलावण्यक) - सलूणुं, सुन्दर सलोअ ९. २४. ३ ( सलावण्यक ) - सलूं, सुन्दर वाणिय ८. २६. १० १. स - वर्णक - वर्णक-सुगंधी मसाला. वाळु (तंबोला) २. स - वणिक - वणिकवाळु ( - हाट साथे ) ३. स - पाणिय- पाणीवाळु (सरिता साथे ) ४. स - वाणी - वाणीवाळु ( नर-मुख साधे ) सव्वरिय - १०.१४.११ ( शर्वरी ) रात सहिण - ३१८.१ (लक्ष्ण ) - बारीक सूक्ष्म सहेज्जअ - ६ १६.४. ( सहायक ) - सहायक सइणी ८. १२. ७ (शाकिनी ) डाकण, शाकणी सारिखिया ३. २२.९ ( सहशिका ) - - - - - सरखी, समान सारिच्छिया सरखी, समान साली - — ८. ४.९ ( सहशिका ) - १०.५.१३ ( रयाली) -साळी सालि इंजिया भञ्जिका ) साबअ ८. २६. १३ १. ( श्वापद् ) - कुतरुं २. ( श्रावक ) सावज्ज - ह साहि ८. पूतळी जंगली हिंसक प्राणीओ २९. ८ ( शाल जैन गृहस्थ ( सावद्य ) - सावज सिंह आदि - १०.५.१७ (शाखिन् ) - वृक्ष ६. १४. १२-१३ १. (स्वाख्यात) सारी रीते क २. (स्वाधीन) पोताने अधीन ३. ( साधित) - सिद्ध कर्यु, सायुं ४. ( स + अधिक) - विशेष V साह ( कथयू ) - कहेतुं साहेसु - ३.१९.१२ आज्ञा ० द्वि०ए०व० सिंबलि ११. ४. ५ ( शाल्मलि ) नरकमां आवेलुं शाल्मलि नामनुं वृक्ष सिक्खाव - ( शिक्षापय् ) शीखववुं सिक्खाविऊण १०.२३.६ - सं०भू० कृ० *सिड - ३.११.२ ( सितपट ) - सद सिद्धत्थ - ३.६१२ ( सिद्धार्थ ) - सरसव सिप्पी ३. १. ११ ( शुक्ति ) – सीप, छीपली ( प्रा० व्या० २.१३८ ) सियभड्ड - २.२०.९ (सित-भद्र ) - मुंडित साधु सियas - ३.१.३ ( सित-पट ) - सढ, पाल सिलिप्स - ८.३३.७ (लिट ) - सुन्दर, सुयुक्त *सिहिण - १२३.९,५.२.३ - स्तन (दे०ना० ८.३१ ) सीस - ११.२.६ १. शीर्ष = मस्तक ( रावण साये ) २. शिष्य = शिष्य ( मुनि साथे ) V सुण- (श्रु ) - सांभळवु सुणि- १०.१४.११ - आज्ञा ० द्वि०ए०व० सुति - ६.१.१० वर्त० ० ० ० सुत्र - ९.३२.४ - कर्म० वर्त० तृ०ए०व० सुव्वङ ५.११.३ कर्म० आज्ञा ०तृ०ए०व० सुणे - १.२.१ - आज्ञा ० द्वि० ब० ब० Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुतइड विय-६.२८.२ (सु+तत ) -विस्तृत, फेलायेल, सारी रीते ताणेलु सुत्ति-१०.२.१० (स्रोत ) प्रवाह सुप्प-३.२.५ ( शूर्प) मुडु सुरवारुगी- २.१३.११ (सुरवारुण)-इन्द्र वारुणी ना ५ळ, इन्द्रवाणां सुवण्णाहिदिठयअ-- १ १.१ ( सुवर्णधिष्ठित) -- १. सु+वर्ण-साग वर्ण वाळ (काव्य साथे) २. सुवर्ण-सोनु मढेलु (हार साथे सुवाण-८.२९.४ ( सोपान )- पगलियु सुसर-८.२६.११ १.सुरवर सारा अवाज- कलबलाटवाळु (घर साथे)२ सुशर-सारा घास वालु (डांगर साथे) ३. सुस्वर-सारा रागवाळु (गीत साथे) ४. सुसर-सासरावाळो (वर साथे) ५. सुशर-सारा बाण- वाळु (धनुष्य साथे) सुसुत्त-९ २२ ३ (सुश्रुत)-सार! ज्ञानालु सूयार-८.२.११ (सूपकार )-रसोइयो सेणाभडी-८.३.३ (सेनामटी)-सैन्यमां रहेली स्त्री सोंडोरवाय-११.१४.३ (शौण्डीरवाद) शूर होवानो वाद हक्क- आह्वान करवू हक्कंन-२.११.७ वर्त० कृ० हकर -१.२१ १२ (हाकार )- होकारा, कालाहल *हक्कारिअ-५.३.५ बोलाव्यु अकारित पा०स० म०) *हक्कोहक्क-८.११.४-कोलाहल *हड्ड-६.२६.७-(अस्थि)-हाडकां (दे० ना० ८. ५९) * हम्मिय-८.२६.२ (हर्म्य)-हवेली ( हम्मिों -गृहम्, दे० ना० ८.६२) हयासि- १.१५.७ (हताश)-- हताश *हलबोल-३.१७.३ धमाल, घोंघाट (दे० ना० ८.६४) हलुयत्तण-२.३.८ (लघुकत्व)-हलकापणं *हल..प्फल अ-८ २८.८-हडफडाट, हांफ ळापणुं आकुळता (दे० ना० ८.५९; प्रा० व्या० २. १७४) हल्ल --हलवु (हल्लिअं-चलितम्, देना० ८.६२) हल्लावंतउ-३.११.८ प्रे० वर्त० कु. ___ हल्लाविउ-३.१.१० प्रे० भू० कृ० हव-८.१९.३ ( हव )-हवन हिययय - ३. १२. १२ (हृदय + क ) __- हैडु, हैयु, हृदय हुंकारअ-८.२.१५ (हुकारक)-होकारो हुट्ठ-११.३८.६(अर्धचतुर्थ) ऊंटु, साडा त्रण *हुत्त-१.१५.३-अभिमुख, सामे (दे. ना. ८.७०) Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अइबल - १०.२७.७ ( अतिबल) अगणियबल - १०.२७.७ अगणितबल अजित - १.१.३ ( अजित ) - अजितनाथ - द्वितीय तीर्थंकर अजियबल १० २७. ६ ( अजितबल ) सनत्कुमारनो पाटवी पुत्र अजियबला ६. १५. ५ ( अजितबला) - ते नामनी विद्यादेवी परिशिष्ट १ व्यक्ति - नोमो अगर ७. ५. ११ - अनङ्गरति अणंगवई - १. २५. १५ अनङ्गवती अगंगसुंदर - १.२६१० अनंगसुंदरी अत १. १. ९ (अनन्त) - अनन्तनाथ - चौदमा तीर्थंकर - अतुलबल १०. २७. ७ अतुलबल अनिलवेय ९. २. १२, ९, १४.५ व० अनिल वेग अभिनंदण - १.१.४ अभिनन्दन - चोथा तीर्थंकर अमरगुत्त - १०.१३.१०, १०.१४६ अमरगुप्त अमियगइ - ८.१०.७ ( अमितगति ) - अमिअप - ७.१२.१०, ७.१८.९ ( अमि तप्रभ) अयल संजत्तिअ- ४.१३.१० (अचलसांयात्रिक) अर सामि - १.१.१० (अर - स्वामि) अढारमा तीर्थंकर अरिकेसरि ९.३२.२ ( अरि केसरि) अरिनेम - १.१.११ (अरिष्टनेमि) बावीतमा तीर्थकर माथ 1 असणिवेग - ९.१०.१ (अशनिवेग ) असोअ - ८.१०.९,८.३२. ७ (अशोक) - असोयसीह - ८.१८.४ ( अशोक सिंह ) - ईसरदत्त - ३.१०.१० ( ईश्वरदत्त ) ईसाणचंद - १.५.५,१.८.२ ( ईशानचन्द्र ) - सहसामि - १.१.३ ( ऋषभ - स्वामिन्) प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव कंचणदाढ - ८.१०.८, ८.११.२,८.१४. १२ ( काञ्चनदंष्ट्र) करव वीर - ७.१६.८ ( कौरव - वीर ) कण्ह - ११.२.५ (कृष्ण) कालजीह - ८.१०.९,८.१८.४, ८.३२.७ ( काल (जह व ) - कित्तिमई - १.३.७,१०.२०.५ - (कीर्तिमती ) कित्तिवम्म- १०.२३.५ (कीर्तिवर्मन् ) - कुंति - ११.३८.८ ( कुन्ति) - कुंथु - १.१.१० ( कुन्थु ) - सत्तरमा तीर्थंकर कुंथुनाथ कुवलयसिरि- ११.१४.२ ( कुवलयश्री) - चक्कसेण- ६.८.८,७.१२.७ (चक्रसेन ) चंडसीह - ६.३३.५, ७.१२.७ ( चण्ड सिंह) चंदउत्त- ११.१४.१ ( चन्द्रगुप्त ) चंदण - ११.१६.११, ११.१७.१ ( चन्दन ) - चंद पह - १.१.६ ( चन्द्रप्रभ ) - आठमा तीर्थ कर चित्तंगअ - ११.१.१ ( चित्रांगदसूरि ) चित्तंगयसूरि - ११.२३.१० (,, ) चित्तलेह - ९.२.१९ (चित्रलेखा ) - चंदलेह - ९.३.१,९.९.७ (चन्द्रलेखा) - चित्तवेय९.१०.२,९.११.१, ९.१५.४ (चित्तवेग) - जयकुमार - ११ ३७.४ ( जयकुमार ) - जसवम्म- १.३.५,१.१९.३ ( यशोवर्मन् ) - जिणदास ११.१६.११ (जिनदास ) - तारावीढ - ११.१४.४ ( तारापीठ ) दुम्मुह— ७.२३.८,७.२४.५ (दुर्मुख) - देवजस - ८.१०.११ (देवयशस् ) - देवनंद - ४.५.१७ (देवनन्द) - Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ देवोसह- ७.१२.१०,७.१८.१० (देवौषध) भरह- ११.३२.६,११.३८.४,११.३९. दोवई- ७.१६ ८,११.३८.८ (द्रौपदी)- १० (भरत)- भरत चक्रवर्ती द्रविड- ११.३८.९ (द्रविड) | मइसायर मंते- १०.१३.१०. (मतिसागर धम्म- १.१.९ (धर्म)- पंदरमा तीर्थकर - ___ मन्त्रिन्। धर्मनाथ मणोरहदत्त- ३.३५,३.४.१ (मनोरथ-दत्त) धम्मघोस-मुणि- ११.१७.३ (धर्मघोष मुनि) मयंग- ७.१२.९,७.१८ ८ (मतङ्ग)धिइबल- १०.२७.९ (धृतिबल) मयणमंजरि- ४.३.४,४.६.१ (मदनमजी नमि- १.१.११ (नमि)- एकवीसमा तीर्थ- मल्लि - १.१.१० (मल्लि)-ओगणीसमा कर नमिनाथ तीर्थकर मल्लिनाथ नमि-विनमि ११.३८.३ (नमि-विनमि) महकालि देवी- ७.७.६ (महाकाली देवो) नारायण भुवणवीर- ८.३ १.५ (नारायण । महाबल- १०. २७. ७ (महाबल)-- भुवनवीर)- विष्णु मित्तभूइ- १.२४.१६ (मित्रभूति)पउमप्पह (पद्मप्रभ)- १.१.५ छठा तीर्थंकर । मुगिसुब्बय- १.१.१० (मुनिसुव्रत) वोशमा पंडववीर- ११.३८.८ (पाण्डव-वीर) तीर्थकर पत्थ- ८.१६.६ (पार्थ)- अर्जुन राम- ७.१४.३ (राम)-- पवणगइ- ४.३.७ (पवनगति)-विद्याधर कुमार रामगुत्त- ११.१४.३ (रामगुप्त)पवणगइ- ७.४.६,७.६.११ (पवनगति)- रावण- ७.१४.३,७.१६.७ (रावण)सनकुत्मारनो दूत रिसहनाह- ११.३८.१ (ऋषभनाथ)- प्रथम पवण-सुअ-७.१४.३ (पवन-सुत)- हनुमान तीर्थकर पास- १.१.११ (पाच)-त्रेवीसमा तीर्थ- रुद्द- ८.३ १.४ (रुद्र)- शंकर कर पार्श्वनाथ लच्छि - ४.१६.११ (लक्ष्मी)पिंगलगंधार- ७.१२.८,७.१८.७ (पिङ्गल वज्ज बाहु- ९२.१० (वज्रबाहु)गान्धर्व) वसुपुज्ज- १.१.८ (वासुपूज्य)-बारमा तीर्थपुंडरिअ- ८. १०.११ (पुण्डरीक)- एक सुभट वसुभूइ- १.८ ९,१.१०.५ (वसुभूति)पुंडरिअ- ११.३८.२,११.३९.१० (पुण्ड- वाउमित्त-७.१८.५ ( वायुमित्र) रीक)- ऋषभदेवना प्रथम गणधर वाउवेग-७.१२.५,७.१८.४ (वायुवेग) पुप्फयंत-१.१.७ (पुष्पदंत)- नवमा तीर्थ- विजयवम्म-२.८.११ ( विजयवर्मन् ) कर सुविधिनाथ विणयंधर-२.५ २,२.१३.९ (विनयंधर) पुरंदर- ८.३१.३ (पुरन्दर)- इन्द्र विमल-१.१.९ ( विमल )-तेरमा तीर्थकर बंभ- ११.२.६ (ब्रह्म)- ब्रह्मा विमलनाथ बंभयत्त- ७ १२.१,७.१८.२,८.३२.२ ।। विरुअ-८.१०.१०,८.१८.३ (विरुत )(ब्रह्मदत्त) विलासबल-१०.२७.९ ( विलासबल )बलभद्द देउ- ११.४.१० (बलभद्र देव) विलासबई-१.२.१२,१.८.२,१.१२.५,१. देव-विशेष बाहुबलि- ८.२२.१२ (बाहुबलि) १४.१ ( विलासवती ) कर Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ चोर-१.१.११ ( वीर )-अंतिम तीर्थंकर महा- साहारण-१.२७.१२,२.२३.१५ (साधारण) वीर स्वामी -ग्रन्थकारनु उपनाम वीरसेण-२.५.७,२.६.११,२.१०.१० सिंगारवई-९.२६.६,१० ११.४,११.३७.४ ( वीरसेन ) ( शृङगारवती )संति-१.१.९ ( शान्ति )-सोळमा तीर्थकर सिंहलराय-३.४.४ ( सिंहलराय )शांतिनाथ सिद्धसूरि-११.३२ ५१ (सिद्धसूरि ) ग्रन्थकार सब-पज्जुग्ण- ११.३८.७ (शाम्ब-प्रद्युम्न) (श्लेषथी) संभव-१.१.४ (संभव )-तृतीय तीर्थंकर संभ- सिद्धसेण - ३.६.६,४.८.१० (सिद्धसेन )वनाथ एक तान्त्रिक सगर-११.३८.५,११.३९.११( सगर )सगर सिरिहर २.१८.३ ( श्रीधर )बीजो चक्रवर्ती सीयल -१.१.७ ( शीतल )-दशमा तीर्थकर सणंकुमार-१.३.८,१.४.९,१.५.६ (सनत्कु शीतलनाथ मार ) सीया -७.१४.३ ( सीता )सणि-१०.२.११ ( शनि)-शनिश्चर ग्रह सत्तिबल-१०.२७.९ (शक्तिबल ) सीहा-६.३.३ ( सिंहा) सुन्दरि-११ २३.११,११.२४.८ (सुन्दरी) समरसेग-७.१२.३,७.१८.३,८.१०.२ सुपास-१.१.६ (सुपार्श्व ) सातमा तीर्थकर (समरसेन) सुप्पम ४.३.३ (सुप्रभा )समराइच्च-११.३ ७.४ (समरादित्य ) सुमई-१.१.६ (सुमति )-पांचमा तीर्थकर समिद्धदत-३.३.४,१०.१७.१(समृद्धदत्त ) सुमतिनाथ समुद्ददत्त-२.२३.१ ( समुद्रदत्त ) सुहंकर-११.२३.११,११.२५.१० (शुभंकर) सव्व-११.२.५ ( शर्व ) शंकर सेयंस-१.५.८ ( श्रेयांस ) अगियारमा तीर्थसहस्सबल-४.३.२ ( सहस्रबल) कर श्रेयांसनाथ साणुदेअ-५ ११.४,५.१३.७ ( सानुदेव )- हरि-११.३८ ६ (हरि)-श्रीकृष्ण साभिलअ-६.६.२ ( साभिलक) हारप्पहा-११.१४.२,११.१५.५,११ २३. साहसबल-१०.२७.९ ( साहसबल )१७.९ ( साहसबल )- ३ ( हारप्रभा ) २. भौगोलिक नामो अणंगनंदण - १.७.१२,१.९.२,४.१२.७- कंपिल्लपुर-११. २३. ११ ( कांपिल्यपुर ) (अनङ्गनन्दन)-ताम्रलिप्तिनु एक उद्यान पंजाबनुं एक प्राचीन नगर अमरावई-८.२७.१२ (अमरावती)-स्वर्ग-- कणियार-सिव-६.६.२ (कर्णिकार-शिव)-एक सन्निवेश नगरी कन्नाड-(कर्णाट) १०.१४.१३ कर्णाटक अलयनयर-१०.२४.३ (अलकानगरी) कुबे- कायं दिनयरि-११.३७.३ (काकन्दिनगरी) रनी राजधानी बिहारनी एक प्राचीन नगरी आणंदउर ३.६.५ (आनन्दपुर)-नगरविशेष किन्नरगीय-९.२.९,१०.४.४ (किन्नरगीत) एरवय-११.३२.६ (ऐरवत)-क्षेत्र-विशेष गान्धर्वोनु एक नगर Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गन्धसमिद्ध-पुर-४.३.१ (गन्धसमृद्ध-पुर) एक गान्धर्व नगर गज्जणय-११.१४.४ (गर्जनक)-नगर-विशेष, गीजनी जयत्थल-२.६.१,२.१२.५ (जयस्थल)-नगर- विशेष तामलित्ति-१.५.४,२.२२.११,३.१३.९, ३.१९.८,४.११.३ (ताम्रलिप्ति) वंगदेशनी प्राचीन राजधानी नन्दणवण-१०.२५.२९- नन्दनवन) जैन मान्यता मुजब मेरुपर्वत पर आवेलु एक प्रसिद्ध वन. नंदासर-११.३.१० (नन्दीश्वर) एक द्वीप पंचालदेस-११.१ ३.१०-(पञ्चालदेश) देश विशेष, प्राचीन पंजाब बब्बरकूल-४.१३.१० (बर्बर-कूल)-अनार्य देश विशेपनो कोठो बारवइ-१५.३८.७ (द्वारामती) द्वारका मरहवास - १३.१०, १.३.१,४.२.८,११. (भारतवर्ष)-भारत-देश भाईरहिनई - ११.१३.११-(भागीरथी नदी) गंगा दी भुवण उर-११ ७.९ (भुवनपुर,-कल्पित नगर, संसाग्नु कल्पित नाम. मंदर १०.१६.३,१०.२३.१४ (मन्दर -- पर्वत विशेष, मेरु पर्वत मगह-१०.१४.१३ (मगध)-प्राचीन मगध देश मगोरहपूरण ६.१.१४.६.३.८ ५.३१.४ (मनोरथ-पूरण) ए. नामनु पर्वत-शिखर मलय-६.९.३,७.४.७,१.२५ ३० (मलय) मलय-पर्वतनो समीपवर्ती प्रदेश मलयागर-६.१.३,७.१.५ (मलयगिरि) मलय पर्वत मलयमहापण-९.१७.२ (मलपमहावन) मलय- प्रदेशमां आवेलु वन महाकडाह दीव-५.११.३ (महाकटाह द्वीप) द्वीप-विशेष. माणस-५.१५.१ (मानस)-प्रसिद्ध मानत सरोवर, मानसरोवर मालव-१०.१४.१३ (मालव)-माळवा मालवअ-देस १.२५.११ (मालवक देश) माळवा. मेरु-११.२.४ (मेरु) पर्वत-विशेष रहने उरचक्कवाल-७.५.१,८.२५.७,८.२८.१ (स्थनूपुरचक्रवाल)-नगर-विशेष लंका-११.२.६ (लंका)-प्रसिद्ध लंका-द्वीप, लाड-१०.१४.१३ (लाट)-लाट प्रदेश, गुजरातनो हालनो भरू चनी चोपासनो प्रदेश दक्षिण गुजरात विदेह-११.३२.६ (विदेह) क्षेत्र -विशेष, ____महाविदेह क्षेत्र विमल गरि-१..३७.१२,११.३९.८ (विमलगिरि) शत्रुजय-पर्वत, जैनोनु महान तार्थ, ज्यां भगवान ऋषभदेवनु मुख्य मन्दिर बीजा सेंकडो जिनालयो साथे छे. विलासउर-४.३.६ (विलासपुर)-नगर-विशेष वेयड्ढ - ४.२.१२,६.८.५,७.४.१२ ८.१.२ (वैताब्य)-पर्वत-विशेष वेयरणी नई -११.४.६ (वैतरणी-नदी)-वैत रणी नदी जे नरकमां होवानु मनाय छे. सत्थिमई-२.५.६ (स्वस्तिमती)-नगरी-विशेष सिंहल दीव-३.१३.१०,३.१९.९ (सिंहल द्वीप) लंका सिद्धकूड-४.८ २ (भिद्धकूट)-एक पर्वत-शिखर सिद्धखेत्त-६.८.९ (सिद्धक्षेत्र)-प्रदेश-विशेष सिद्धिनिलया-६.९.३ (सिद्धिनिलया) ए नामनी गुफा तिर उर-३.३.२,९.३१.११ (श्रीपुर)-नगर. विशेष सिरि पव्वय-४.१६.७ (श्री पर्वत) पर्वत-विशेष सोहल दीव-३.४.१०,३.५.६ (सिंहल द्वीप) लंका Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुंदरवण-उज्जाण ५.३.१० - (सुन्दरवन जैनोनु पवित्र तीर्थधाम छे, ज्यां अनेक उद्यान) उद्यान-विशेष महानपुरुषो मोक्षे गयानु जैन-श्रति नोंधे छे. सुवणभूमि-२.२१.१६,३.२.१२-(सुवर्णभूमि) । सेत्तुज--(शत्रुजय ११.३९.७ सौराष्ट्रमां सेयविया.१ ३.१,२.६.१,३.३.३ (श्वेतविका) पालिताणा गाम नजीक आवेल पर्वत, जे सोरट्ठ देस-११.३७.९ (सौराष्ट्र देश)जैन देवालयोनो नगरी समान छे अने सौराष्ट्र ३. वृक्ष-वनस्पति अइमुत्तलया-४.२०.१ ० (अतिमुक्तलता) कसेरु-५ ४.३ (कशेरु)-पाणीमां थतो एक माधवी-लता __कंद अंकोल्ल-५.४.९ (अङ्कोठ)-आंकोल कुंद-१.७.३,५.४.१७ (कुन्द) पुष्प-विशेष, अंजण-४.४.४ (अञ्जन)-आंजणो पुष्प-वृक्ष - विशेष अंबय-५.४.१६ (आम्रक)-आंबो कुमुइणी-१.१५.१० (कुमुदिनी)-पोयणी अंबाड-५.४.२,८.३५.९ (आम्रातक) कुमुय-५.१५.५ (कुमुद)-पोय' अज्जुण-५.४.१७ (अर्जुन)-अर्जुन-वृक्ष, कुवलय-५.१७.१० (कुवलय)-नीलोत्पल साजड़ केलि-३.१५.१,५.४.७ (कदलि)-केळ असोय-१.२१.५,५.४.२ (अशोक)-अशोक केसर-५.४.३ (केसर)-बकुल, बोरसल्ली वृक्ष खइर-१.२६.१५ (खदिर) खेर आमल-५.४.२ (आमलक)-आमळानु वृक्ष खंजण-५.४.४ (खजन) वृक्ष-विशेष आरु-५.४.२ (आरुक?)-वनस्पति-विशेष खज्ज-६.४.४ (खर्ज)-वृक्ष-विशेष आसत्थ-८.२८.६ (अश्वत्थ)-पीपळो खजूरि-५.४.१५ (खर्जूरी)-खजूरी उंब-'५.४.३ (उम्ब)-वृक्ष-विशेष खीरिय- ५.४.१५ (क्षीरिन् )-जेमांथी दूध उंबर-५.४.३ (उदुम्बर)-उबरो नीकळे छे एवा प्रकारचें वृक्ष एरंड-५.४.१२ (एरण्ड)-एरंडो गंगय-५.४.५ (गांगेरुक?)-वृक्ष-विशेष, गंगेटी? एलालया-५.५.४ (एलालता)-एलायची ती वेल । गंठिवना ५.४.१४ (ग्रन्थिपर्ण कंकेल्लि-१ २३ १० (दे० ककेल्लि) अशोक गुंजा-२.१६.३ (गुजा)-चणोठी चंदण-५.४.८,६.२.१० (चन्दन)-चंदन-वृक्ष कंचण-५.४.६ (काञ्चनार) वृक्ष-विशेष, चंपय-५.४.१८ (चम्पक) चम्पो कांचनार, चंगकाटो, म० कांचन चार-५.४.१८ (चार)-प्रियाल कक्कोल -१.२६.१४,५.५.६ (कङ्कोल)- चिंचा-५.४.१८ (चिञ्चा)-आमली शतलचीनी वृनो एक भेद, तेनुं फळ जंबीर-५.४.१८ (जम्बीरी)-लीबुडी कपूर ५.४.१८ (कर्पूर) कपूर-वृक्ष जंबु-५.४.१६ (जम्बू)-जांबू-वृक्ष कमलिणी-'.७.१ (कमलिनी) जाइ-५.४.१५ (जाति)-जाइ मालतीनी वेल कयंद-५ ४.८ (?) जासोण-५.४.१५ (जपा-सुमनस्)-जासूद कयंब-५.४.३ (कदम्ब) कदंब वृक्ष, गंठोडियो । जूहिया-५.४ १५ (यूथिका)-जूई करंज-५.४.४ (करज)-वृक्ष-विशेष, कणजी तमाल-५.४.११ (तमाल)-तमाल-वृक्ष हिं. करिंजा तल-५.४.११ (तल)-ताड़ वृक्ष Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ तामरस-३.१५.३,५.१६.७-(तामरस) कमळ पोफलितरु-४.१८.१ (पूगफली-तरु) फोफळताल-५.४.११-(ताल)-वृक्ष-विशेष सोपारीनु वृक्ष तिणीस-५.४.१४-(तिनिश)-वृक्ष-विशेष, फणस्स-५.४.१२ (पनस).-फणसनु वृक्ष तणछ फणिलया-४.१८.१ (फणिलता) वेलीतिलय-१.२१.५ (तिलक)-वृक्ष-विशेष विशेष, नाग-लता तेंदु-५.४.८ (तिन्दुक)-टिंबरु, हिं० तेंदू बंधुजीव-१.२३.११ (बन्धुज व)-पुष्प-विशेष, थल-कमल-१.२३.१ (स्थल-कमल)-जमीन बपोरियो पर उगनारु कमळ बब्बूल-५.४.१६ (बब्बूल)-बावळ, हिं० दक्ख-५.४.१५ (द्राक्षा)-द्राक्ष-वेली बबूलका पेड दब्भ-५.७.७ (दर्भ)-दर्भ बहेड-५.४.१ ० (बिभीतक)-बहेडानु वृक्ष. दाडिमी-५.४.१०,८.३६.६ (दाडिमी)- बिज्जउर-५.४.१५,३.१५.१ (बीजपूर)दाडमी बीजोरानु वृक्ष, बीजोरान फळ देवदार-५.४.१३ (देवदारु)-देवदार बिल्ल-५.४.९ (बिल्व)-बोली धत्तूरय-१.२६.४ (धत्तूरक)-धतूरो बेरि-५.४.१६ (बदरी)-बोरडी धम्मण-५.४.६ (दे०)-वृक्ष-विशेष मंदार-५.४.१३-(मन्दार)-वृक्ष-विशेष धव-५.४.६ (धव)-धावडो मल्लिया- ५.४.९,१.२१.६ (मल्लिका)धाई-५.४.६ (धातकी)-धावडी हिं० धाय ____ मोगरानो छोड, मोगराना पुष्प नग्गोह-५.४.५ (न्यग्रोध)-वड ___ महुय-तरु- ३.८.८ (मघूक-तरु)- महुडो नलिणी- ५.७.५ (नलिनी)-कमलिनो माहविलया- ४.१.१ (माधवी-लता)नागय-५.४.५ (नाग+क)-वृक्ष-विशेष मायंद- ५.४.८ (दे०)आंबो (दे० ना० ६. नारंग-५.४.५ (नारङ्ग)-नारङ्गीनु वृक्ष १२८) निंबय-५.४.१६ (निम्ब+क) मुंज- ५.४.४ (मुञ्ज)- मूंज, एक प्रकारचें नील-वारिरुह-५.१५.४ (नील-वारिसह)नील-कमळ मुणाल- ५.१५.९ (मृणाल)- कमळ-नाळ नीव-तरु-५.१४.१२ (नीप-तरु) कदम्ब-वृक्ष रत्त-कमल- ५.१५.७ (रक्त-कमल)-रातुं पलास-५.५.७,७.२६.१० (पलाश)-खाखरो कमळ पाडल-५.४.१२,१.६.११ (गटल)-पाटल- रत्तासोय-३.१८.८ (रक्ताशोक)-रातो गोल वृक्ष, पाटल-पुष्प रिउंज- ५.४.४ (१)- वृक्ष-विशेष पारियायय-५.४.१८ (पारिजातक)-पारिजातक लवंग -लया-५.५.५ (लवंग-लता ) लविगनी पिप्पल-५.४.७ (पिप्पल)-पीपळो पियंगुमंजरी-१.२१.८,५.५.७ (प्रियङ्गु वंजुल-५.४.७ ( वजुल )-वेतस-वृक्ष मञ्जरी) लता-विशेष वंदण-५.४.७ ( ? )-वृक्ष-विशेष ? पियाल-५.४ ७ (प्रियाल)-पियाल वड-५.२३.१०,११८.१२ ( वट)-वड पीलु-५ ४.७ (पीलु)-पीलुद्दी, वानडो विज्जय-५.४.१७. ( ? )-वृक्ष-विशेष पूग-५.४ ५ - (पूग) सोगरीनु वृक्ष वेइल्ल-५.४.९ (विचकिल्ल)-पुष्प-लता, बेला घास वेली Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ सज्ज - ५.४.१७ ( सर्ज) वृक्ष - विशेष, शाल, हि ० साल, सखुआ सत्तच्छद - १.२१.७ ( सप्तच्छद) - सादड, हिं० ० सतवन, सतौना सत्तिवण्ण - ५.४.१४- (सप्तपर्ण ) - सादड, हिं० सतवन, सतौना सप्फ- ५.४.१२ (दे० ) - कुमुद, कैरव समो - ५.४.१० ( शमी ) - समडी ( सौराष्ट्रमां खीजडो ) सयवत्त ५.१५.४ ( शतपत्र ) - सो पांखडीवाळु कमल सल्लई-लया-५.४.९ - ( शल्लकी - लता ) शालेडी, धूपडो सहयार - १.१६.१५, ३.१५.१ ( सहकार ) - आंबो सालय - ५ ४.११ ( साल+क ) - वृक्ष - विशेष साल अयगर - ५.२४.१४. ( अजगर ) - अजगर इंदगोव - ८.३३.८ ( इन्द्रगोप) - गोकळगाय उलुअ- ७.१४.१४ ( उलूक) - घुवड कथूरिय - कुरंग - ६.१.९ - (कस्तूरेका कुरंग ) कस्तूरी मृग कराइया - ८.७.७ पक्षी विशेष कलहंस - ५.१५.२,५.१५.१६ ( कलहंस) राजहंस कारंड - ३.१५.५ ( कारण्ड ) - पक्षी - विशेष कीडिया - ६.९.१० (कीटिका ) - कीडो कुंच - ३.१५५,५१५.२ ( क्रौंचपक्षी) - क्रौंचपक्षी कुक्कुड - ९.११.१२ ( कुक्कुट ) - कुकडो कुक्कुर - ७.१६.३ ( कुक्कुर ) -- कुतसं कुरंग - ८.७.६ ( कुरङ्ग ) - हरण कुरर - ३.१५.५,५.१५.२ ( कुरर) - कुरर के सरि- ८.१९.८,६.२८.११ ( केसरिन् ) - केसर सिंह सिंदुवार - १.२१.५,५.४.१३ (सिन्दुवार )-- निर्गुडा-वृक्ष सिंबल सिंबलि - ५.४.२, ४१.४.५ ( शाल्मलि ) सिसव - ९.४.१० ( शिशपा ) - सीसम सिग्गु - ५ ४.५ ( शिग्रु ) - सरगवो, हिं० सहि जना का पेड ४. पशु-पक्षी - जलचरादि सिरीस - ५.४.१० ( शिरीष ) शिरीष, सरसडो सेंदी - ५.४.२ ( दे० ) - खजूरी सेलु - ५, ४११ ( शैल) - इलेष्म-नाशक वृक्षविशेष सेहाल - ५.४.११ ( शेफाल) - लता - विशेष सोंठी- ५.४.१४ ( शुण्ठ ) - पर्व - वनस्पतिविशेष, सुंठ हरियंदण - ५.५.४,१०.२५.३० (हरिचन्दन) कुंकुम - वृक्ष, उत्तम प्रकारनं चंदन हलिह - ५.४.१३ ( हरिद्र) - दारू हळदर कोइल - ६.१.१९ ( कोकिल ) - कोयल कोल - ५.१५.९ (कोल ) - शूकर, भुंड कोल्हूय - ८.९९.८ (दे० ) - शियाळ (कोल्हुओ- शृगाल, दे० ना० २.६५ ) को सिय- ८.७.५ कौशिक गिद्ध - ७.२६.१५ ( ग्रत्र ) - गीध खर- ८.७.५ (खर) - गवेडुं चक्काय - २.२२.६ ३.१५.५ (चक्रवाक) - चकवो घुवड चिल्ला- ८.७९ (दे० ) - चील, समी (दे० ना० ३. ९) जल-कर- ३.१.११- ( जल - करि ) - जळ - हाथी ज्या - १०.२५.१९ ( यूका जू तित्तिर ८७.९ ( तित्तिरि ) - ते तर तुश्य - २१२.१० ( तुरग ) -- अश्व ददुर - ८.३३.९ (दर्दुर) - देङको नउल - १०.२५.८ ( नकुल ) - नोळियो नक्कय - ५.१५.१३ (नक्र ) - मगर Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ नाडअ-७.१५.५ बिलाडा? रिक्ख-१०.२५.१७ (लिक्षा)-लिख नील-कच्छअ-५.१५.१२-नील-कावबो रोहिय-५.१५.१० (रोहित)-मत्स्य-विशेष पयंग-२.९.५,५.७.३ (पतङ्ग)-पतंगियु वग्घ-११.८.४ (व्याघ्र)-वाघ परिहत्थ-४.९.४ (दे०)-जल--जन्तु-विशेष वच्छय-१०.१०.६ (वत्स+क)-वाछरडं पिपोलिया ७.१५.१० (पिपीलिका) कीडी वरहिण-१०.२३.३ (बहिन्,-मोर पोलु-२.३.१३ (पीलु)-हाथी वसह-८.२१.१० (वृषभ)-आखलो बलद-११.१९.६ (बलिवर्द)- बळद वानर-६.१.१२ (वानर)- वानर, वांदरो बलाया ८.३३.५ (बलाका)-बगली वायस-८.७.८ (वायस)-कागडो बिरोलिया-५.२१.८ (बिडालिका)-बिलाडी सप्प-२.२१.११,६.१९.७ (सर्प) साप भमर-१.२३.९ (भ्रमर)-भमरो सप्पिणो-२.१६.२ (सर्पिणी)-सापण भल्लउकि-३.७.८-शियाळ सलह-८.१६.८ (शलभ)-तीड भल्लुइ-८.१८.१५ ,, सस-८.७.१० (शश)-ससलं (भल्लुक्कि- दे० ना० ६.१०१) ससअ-७.१४.११ (शशक)-ससलं भल्लु य-८.७.९ (भल्लुक)- छ। सान-८.७.१ (श्वान)-कुतरु भसल-११.१६.१२ (भ्रमर)-भमरो साम-८.७.७ (श्यामा)-पक्षी-विशेष भुयंग-५.१७.३ (भुजङ्ग)-सर्प, भोरिंग ___ (काळो कागडो, भविस ० ४.५.३) मक्खिया-१.२५.१३,११.१०.५ (मक्षिका) सारमेअ-७.७.२ (सारमेय)-कुतरो माखी सारस-३.१५.५,५.१५.११ (सारस)-सारस मच्छ-३.१.९,३.१५.३ (मत्स्य)-माछलु सियाल-८.१८.१४ (शृगाल)-शियाळ, मयर-३.१.९ (मकर)-मगर सिंघ-५.६.२ (सिंह) सिंह मसअ-७.१४ १२ (मशक)-मच्छर सिहंडिण-५.६.२ (शिखंडिन् )-मोर महिस-८.४.९,८.७.४ (महिष)-पाडो सिहिंडी-६.११.११ (शिखंडिन् ). मोर महुयर-१.१५.१३ (मधुकर)-भमरो सिहि-४.२.११ (शिखिन्)-मोर महुयरो-१.२२.९ (मधुकरी)-भमरी हंस-५.१५.१६ (हंस)-हंस महुलिह-१ १५.२ (मधुलिह)-भमरो हंसिया-५.१६.२ (हंसी)-हंसी मुसय-७.१५.५ (मूषक)-उंदर हत्थी-६.१९.२ (हस्ती)-हाथी मेंढय-९.११.११ (मेढक) मेंढो हरिण-२.१७.२ (हरिण)-हरण रहंग-११.१५.८ (रथाङ्ग)-चक्रवाक . ५. खाद्य-पदार्थों अंबटी ८.३, ८ (१) कोइ खाटो पदार्थ असोयवटि-८.३७.६(अशोकवर्ति)-फेणी? (आंबलीवाळो) कंचणार-८.३६.७ (काञ्चनार)- कांचनार अंबाड-८.३५.५ (आम्रातक)-अंबाडो नामे (एना फुलन शाक थाय छे नि०आ०) वृक्षना पळनी वानगी (नि० आ०) कंजी-८ ३६.९ (कञ्जिकम् )-कांजी अंबोइय-८.३६ ३ आंबोळियां ? कक्कड-८.३५.८ (कर्कट)-काकडी अद्दय--८.३५.८ आदु कक्कडिया-२.१६.९ (कर्कटिका)-काकडी अद्दवड-८.३६.९ आदुवडा कक्कोडय-८.३५.९ (कर्कोटक) कंकोडा Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कच्चर-८.३६.३ (दे०)-काचरी कढिअ दुद्ध-८.३७.१२ (क्वथित दुग्ध) ___ कढेलं दूध कयवंदी-८.३६.१० (करमन्दी)-करमदां करंब-२.२०.११ (करम्ब)-दही-भातनी एक वानगी करवंदय-८.३५.८ (करमन्दक)-करमदां करवंदी-८.३६.१० (करमन्दी)-करमदां। करीर-८.३५.७,८.३५.८ (करीर)-केरेडा कलमकूर-८.३७.१-(कलम-कूर)-कलमो चोखानो भात कारेल्लिया-८.३६.८ (कारवेल्लिका) कारेलां कालिंग-८.३६.२ (कालिङ्ग)-कालिंगडा, तरबूच कासमद-८.३६.२ (काशमर्द) कासुंदरो (वनस्पति-विशेष - नि०आ०) कासार-८.३७.७ (कासार) कंसार ? कोक्करी-८.३७.८ खंड-८.३६.३ (खण्ड)-खांड खंड-खज्जु-८.३७.१०-(खण्ड-खाद्य)__ खांड भरेला खाजां खजूर-८.३५.६ (खजूर)-खजूर खीरवड-८.३६.९ खीरवडा खुडुहुडिय-८.३५.६ (म० म० साधुराज गणि कृत 'जिनस्तुति' मां भोजननी वस्तुओमा 'खडहडी' नामे कोई खाद्य-पदार्थनो उल्लेख छे) गज्जर-८.३५.८ (दे०)-गाजर (गृजन, अभि० चि ४. २५२) गिरि-८.३५.९ गर, फळनो गर्भ गुल-७ १०.४,८.३६.१ (गुड)-गोळ गोहुम-८.३५.११,८.३६.५ (गोधूम)-घऊं घिअ-८.३७.३,१०.६.७ (घृत)-घी घेउर-८.३७.५ (घृतपूर)-घेबर घोल-८.३७.११ (घोल)-दहोंनु घोळवू घोलवड-८.३६.९-दि०)-घोल-वंडां (जैनोनी प्रतिक्रमणविधिमां पाक्षिक अति-. चारमा घोलवडा नामे जैन-दृष्टिए अभक्ष्य एवा खाद्यपदार्थनुं नाम आवे छे.) चणअ-७.१५.३ (चणक)-चणा चणय-८.२.९ (चणक)-चणा चणउर-८.३६.२ (चणपूर)-चणानो लोट भरेल वानगी चणयवल्ला-८.३६.५ चणा अने वाल चणस-८.३६.४ (१) चनलाइया-८.३६.४ (१) चमलय-८.३६.४ (१) चुइय-८.३७.७ (१) चुंचु-८.३६.४ (१) जाईफल-१.२६.१४ (जातिफल)-जायफल टक्कारिय-८.३६.७ (तर्कारी)-अरणी __ (है० नि० १. ८४) टिंट-८.३६.१० टीडोरा ? तंबोल-१.१०.२ (ताम्बूल)-पानबीड (पंचवासु तंबोलु-१.२४.१३ पांच सुगन्धी द्रव्योवाळु पान, सवाणउ-तंबोलु १.२६.१६ -सुगंधी द्रव्योवाळु पान) तिंडिस ८.३६.३ (१) तुंडीरिय-८.३६.३ टोंडोरा? दक्ख-८.३५.६ (द्राक्ष)-द्राक्ष, धराख दहिय-७.८.६ (दधि)-दहीं दुद्ध-८.३७.१० (दुग्ध -दूध दुद्धवड-८.३६.९,८.३७.९ (दुग्ध-वटक) दूधवडा नारंग-३.१५.१ (नारङ्गी)-नारंगी नासपेअ-८.३७.३ नासपाती ? निंबाडय ८ ३७ ९ (?) निबिया ८.३६.६ (?) पट्टविडिया-८.३६.६ (?) पडओल-८.३६.८ (पटोल)-पडोळा Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पप्पड - ८.३५.१२ पापड (तिविह पप्पड - त्रण प्रकारना पापड ) पासुंगरो - ८.३६.५ (१) पिट्ठय ८३६.९ पीठु पूरण - ८.३६.१० प्रण पोटफल - १.२६.१५ ( पूगफल ) - फोफळ, सोपारी फीणी - ८.३७.६ फेणी फोग्ग - ८. ३६.७ फोग, एक जातनुं शाक बेरवडी - ८. ३६.६ बोर-वडां मंडअ - १.२५.११ - ( मण्डक) मांडां, एक मिष्टान्न मिरिअ - ८.३७.१२ मरि, तीखा मिरिया - ८.२.९ मरवां मिरियवड - ८.३६.९ - मरचा - वडां मुग्ग - ८.३७.२ मग मुग्गह दाली - ८.३५.११ मगनी दाळ मुरुक्क - वडिया ८.३७.८ - मुरकी मोतीया - ८.३७.९ - मोतीया लाडु राइय - ८. ३६.४ राई रिंगग - ८.३६.२ रीगणा लड्डु - ८.३७.९ (लड्डुक) - लाडु लप्पसिया - ८.३७.८ (लापनश्री) - लापसी लत्रण - ८.३६.११ ( लवण ) - लवण, मीठु लावणा- ८.३७.९ एक प्रकारना लाडु लोणरुक्ख - ८.३५.९ (१) लोणओ- १ - ८.३५.४ लोण अग्गेयत्थ - ८.२०११ ( आग्नेयास्त्र ) जेमांथी अग्नि नीक्ळे एवं अत्र असि - ८ ४.४ ( असि ) तरवार कंड - १ ७.८ ( काण्ड + क ) - बाण कत्तिय - ६.२६.८ ( कर्तिका) छरी, काती करवत्त - ६.१९.७ ( करपत्र ) - करवत करवाल - ७.१६.११ ( करवाल ) तरवार कुंटि - ८.४.९ ( कुन्ति ) - शस्त्र - विशेष कुडअ - ७.१०.५ ( कुठार + क ) - कुहाडी वंग - ८.३६.८ (दे०) वृताक, वेंगण (दे० ना० ७. २९) वंस - आमलय ८ ३५.१० - ( वंश आमलक ) वांसनं अथाणुं ? वडिया - ८.३६.६ वडी वत्थुलो - ८.३६.४ बथवानी भाजी व रेसोल - ८.३५.६ (दे० वर्षोलक) वाइंगण - ८. ३५.१०,८.३६.२ वेंगण, रींगणां संगरो - ८.३६.५ (?) संधाणय - ८.३५.१० अथाणां सन्न - ८.३७.७ (१) समोसिय-८. ३६.१० समोसानु ? सरिसवी - ८.६६.४ सरसवनी भाजी ? सालग - ८.३५.७ ( सारणक) - कढी जेवुं कोइ पेय सालि - ८. ३५.११ ( शालि ) - चोखा सिंधुलत्रण - ८.३५.७ - (सिन्धु - लवण) सैंधव, सिंघालूण २९ सिहरिगी - ८.३७.११ (शिखरिणो) शीखंड सीह के सरा - ८.३७.९ - (सिंइ - केसरा ) -एलची अने मरी नाखेला लाडु (अ० चि०) सुंठे - ८.३७.१२ ( झुण्ठि) - सुंठ सुंहालियां-८ ३७.७ सुवाळी सूरण - ८.३६.१० सूरण सेव - ८.३७.१० सेव ६. शस्त्रास्त्र सोहं जग - ८.३६.७ (शोभाञ्जन) - सरगवो हरडइ - ८.३६.६ ( हरडे) - हरडे हिंगु - ८.३५.१९ (हिङ्गु) - हिंग कोयंड - १.२३.७ ( कोदण्ड ) - धनुष्य खट्टग - ११.१९४ ( खट्वाङ्ग ) शिवजीनुं एक आयुध खुरुप्प - ८.१८.११,८.१२.११ ( क्षुरप्र ) - खुरपी, अहीं एक प्रकारना बाण तरीके उल्लेख लागे छे. खेडय-९.११.९ ( खेटक ) - ढाल, खेडुं गया- ७.२९.३,८.४.८ ( गदा ) - गदा गरुडत्थ - ८ २१.१ ( गरुडास ) - गरुडास Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० चक्क-२.११.७,११.१९.७ ( चक्र ) चक्र चाव - ८.१३.२ ( चाप ) - धनुष्य छुरिया- ७.१७.१,७.२६.८ ( क्षुरिका ) - छरी तरवारि - ८.१२.१० ( तरवार ) - तरवार तामस अत्थ - ८.२१. २ ( तामस - अस्त्र ) - अंधकार फैलावी दे तेवुं अस्र तिस्सूल - ६.२७.१० ( त्रिशूल ) - त्रिशूळ तूणीर - १.२३.४ ( तूणीर ) - बाण भरवानुं भाथुं दिवायरत्थ - ८.२१ ३ ( दिवाकरास्त्र ) तेज प्रसारी दे तेवुं अस्त्र धणु - १.२२.११ ( धनुष्य ) - धनुष्य धणुह - २.११.५ ( धनुष्य ) - धनुष्य धणुहिय - ८.४.५ धनुष्य ( प्रा० व्या० १.२२) धणुक्क - ३.१.१४ ( धनुष्य ) - धनुष्य नाय - पास - ८. २१.१ (नाग - पाश ) - नाग पाश नाराय-८.४ ७,८.१२.५ . ( नाराच ) एक प्रकार बा फलह - ८.१५. २ ( परिघ ) - कडीवाळी लाकडी बाण - २.११.६, ८.१३२ ( बाण ) - बाण कंसाल - ७.२१.८ ( कांस्याल ) - कांसी - जोडा करडिया - ७.२१. ३ ( करटिका ) - वाद्य - विशेष काहल - १०.२१.१ भेरी १०.३.४ ( यमल - शङ्ख ) - चक्क - १०.३.३ ( चक्र ) - १ जमल-संखजोडियो शंख झल्लरि - १०.३.३ ( झल्लरी) - झालर डमरुय - ११.१९.८ ( डमरु + क ) - डमरु ढक्का - १०.३.३ (ढक्का ) - ढक्का, डाक ७. वाघो अइसय- ११.३२.४ ( अतिशय ) - अतिशय, विशेषता. तीर्थकरोना चोत्रीस अतिशयो होय छे. भल्ल-२.८.५,२.११.९ ( भल्ल ) - भालो भल्लि - ८ . ४ . २ ( भल्लि ) - भालो मंडलग्ग - २.९.१०, ३.७.१० ( मण्डलाग्र) खड्ग मोग्गर - ८.१२.८ ( मुद्गर ) - आयुध - विशेष, मोगरी लट्ठिया - ८. ४. ४ ( यष्टिका ) - लाठी, लाकडी वज्ज - २.२.११ ( वज्र ) - वज्र वारुणत्थ - ८.२०१२ ( वारुणास्त्र ) - वरसाद वरसावे तेवुं अस्त्र वावल्ल - २८.५ ( दे ० ) - शस्त्र - विशेष सत्ति - ८.१२.७ (शक्ति) - एक छुटुं फेंकवानुं आयुध सन्नाह - ८.५१ ( संनाह ) - बख्तर, कवच सिरताण - ९.१६.१२ ( शिरस्त्राण ) - मस्तकनु रक्षण करनार टोप सूल - ११.१९.७ (शूल) - त्रिशूळ सेल्ल- २.८.५, २.११.९ (दे०) भालो, बरछी अवकरण- ११.१८.३ ( अपूर्वकरण) अनादि संसार-चक्रमां फरतां फरतां भव्ययोग्य आत्मामां एवी भाव-शुद्धि थई जाय तूर ६.११.५,७.२१.१ ( तूर्य) - तूरी, वाजु दुंदुभि - (दुन्दुभि ) - दुन्दुभि पडह - ७.१३.५ ( पटह ) - ढोल मउंद - १०.२७.१ ( मृदङ्ग ) - ढोलक मद्दल - १०.२७.१ (मर्दल ) - मुरज (दे० ना० ६. ११९ ) ८. जैन पारिभाषिक शब्दो मुख- ८.३३.३,१०.३.३ (मुख) - वीणा - १.१८.२,१०.२६.३ ( वीणा ) - वीणा जे पहेलां कदी पण न थई होय अथवा करवामां न आवी होय. आवी भावशुद्धि ए अपूर्व-करण कहेवाय छे. आत्मिकआध्यामिक विकासना चौद सोपान ( गुणस्थान) मां आ आठमुं छे. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तराअ-कम्म- ११.१६ ७ (अंतराय-कर्म) कर्मनी आठ प्रकृति(प्रकार)मां अन्तिम कर्म, जेना द्वाग जीवने दानादिमां विघ्न (अंतगय) उपस्थित थाय छे. अजिग- ११.३१.१२ (अजिन)- जिन न होय अर्थात् तीर्थकर न होय अने सिद्ध थया होय ते. अजीव- ११.२०.३ (अजीव) - नव तत्वोमां बजु, अजीव एटले अचेतन पदार्थ. १. धर्मास्तिकाय. २, अधर्ना स्तकाय अने ४. पुद्गलास्तिकाय ए चार अस्तिकाय अने ५. काळ. ए पांचे अजीव गणाय छे. अणपण- ११.३७.७ (अनशन)- मर्यादित वखत माटे के जोवनना अंत सुधो सर्वे प्रकारना आहारनो त्याग करवो ते अनशन अणुव्वय- ९.६.५ (अणुव्रत)- श्रावको माटेना अहिंसा आदि व्रत, महाव्रतनुं संपूर्ण। पणे पाला करवू श्रावक (गृहस्थ) माटे शक्य न होवाथी अहिंसादि पांचे महाव्रतर्नु आंशिक पालन ते पांच अणुव्रत छे. अगुप दठ-११.३५.९ ( अनुशिष्टि)शिखामण अरहंत-११.३१.१३ ( अर्हत् )-तीर्थकर, जिन भगवान अववाय-१.५.८ (अपवाद)-व्रतोमा मूकवामां आवेली छूटछाटो-अपवाद. आगार-९.५.८ ( आकार )-प्रत्याख्यानमां राखवामां आवेली छूटछाटो-अपवाद आयरिय - १.१.१२,११.३२.१७ (आचार्य) -समुदायना नायक मुख्य साधु पंच परमेठिमां त्रीजा आभि ११ २८.५ ( आरम्भ )-हिंता, पाप कारी गणाती प्रवृत्ति. आलो यगा-९.५.५ ( आलोचना )-आलोय णा -गुरु समक्ष निखालसपणे पोतानी भूल प्रकट करवो ते. प्रायश्चित्तनो अक प्रकार. आसव-११.२०.३ (आस्रव )-आस्रव एट ले कर्मनुं प्रवशेदार, मन, वचन, अने काया नी प्रवृत्ति योग कहेवाय छे. अने तेना लीधे ज आत्मने कर्मनो संबंध थाय छे. तेथी योग ए ज आ व छे. उज्झाय-१.१.१२,११.३२ २५(उपाध्याय)पंच परमेष्ठिमा चोथा, आचार्य पछीन पद धरावनार, शास्त्र भणावनार साधु उत्तर-गुण-वयाई-९.९.३ ( उत्तर-गुणव्रत)-गृहस्थना पांच अणुव्रतो मूलभूत एटले के प्रथम पायारूपे होवाथी 'भूल गुण' के 'मूल व्रत' कहेवाय छे. ए मूल व्रतोनी पुष्टि अर्थे बीजा पण केटलाक व्रत छ जे उत्तर व्रत तरीके प्रसिद्ध छे. तेमां त्रण गुणवतो अने चार शिक्षाव्रतो मळी सात व्रतोनो समावेश थाय छे. उवओग-६.३१.११,४.१२.१ ( उपयोग ) आत्माना बोधरूप व्यापार-ज्ञान अनें दर्शनने अयोग कहेवामां आवे छे. उववास-७.२.२ ( उपवास )-आहारनो त्याग उवसम-८.२०.१२,९.५.७ ( उपशम ) कषायोने दबाववा ते उवसम दंसण-११.१७.१२ ( उवशम-दर्शन) -दर्शन - मोहनीय कर्मना उपशमथी प्रगट थतुं सम्यग् दर्शन. ओहि-११.२०.११ ( अवधि)-अवधि-ज्ञान, ज्ञानना पांच प्रकारोमा त्रीजं. इन्द्रियोनी सहाय विना आत्मप्रकाशथी रूपो पदार्थोनुं ज्ञान. कम्मासय-५.२८.१७ ( कर्माशय )-कर्म बंध कल्लाणअ-११.३.१० (कल्याणक)-तीर्थकरो ना च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवळज्ञान अने मोक्ष-प्रादिनरूप पांच मांगलिक अवसगे कल्या णक कहेवाय छे. कसाय-६.१९.४.११.१२.१२ ( कषाय ) जीवना शुद्ध स्वभावने कर्मरूप मेल लगाडी मलीन करे अने संसार-भव-भ्रमण-नी वृद्धि करे ते क्रोध, मान, माया अने लोभ चार कषाय छे. Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ काउसग्ग-११.२४.१० ( कायोत्सर्ग)कायाना व्यापारनो अमूक समय सुधी त्याग करवो ते-गमे तेवी प्रतिकूळता होवा छतां शरीरने निश्चल राखq. कुणिम-आहार-११.२८.६ (कुणप-आहार) -मांसाहार कुपल -जोय : ६.४.४ (कुशल-योग)- मन वचन-कायाना शुभ व्यापार, पुण्य -प्रवृत्ति. कुपल-संच अ- ५.३०.५ (कुशल-सञ्चय) पुण्योपार्जन खय-उपसम- ११.१७.१० (क्षय-उपशम) -केटलेक अंशे कर्मनो नाश ते क्षय अने केटले अंशे कर्मने दबाव वां ते उपशम. खगसेंदि- ११.३८.१३ (क्षपक-श्रेणि)___ कषायोनो समूळगो नाश करवानो क्रम गच्छ- ११.३२.४२ (गच्छ)- गण, संघ, साधु-समुदाय गणहर- ११ ३२.११ (गणधर)- तीर्थकरना प्रधान शिष्य, गच्छना नायक गणिणी ११.२६.११ (गणिनी)- गणमां मुख्य स्थान धरावनारी साध्वी गरहिय- ११.२६.९ (गर्हित)- निंदेलं. गुरु समक्ष पोते करेला पापनी निंदा करवी ते गरिहा (सं० गर्दा) गिहिलिंग- ११.३२.११ (ग्रहिन् + लिङ्ग) गृहस्थ वेशमा ज सिद्ध थनार गेवेज्जाणुत्तर- ११.३९.४ (अवेयक-अनुत्तर)-लोकमां निवा स्थाने रहेनार देवलोक ते गैवेयक अने तेथी पण उपरना देवलोक ते अनुत्तर चउगइ- ९.४.१०,११.३.७ (चतुर्गति) चार गति-चार प्रकारनी जीव योनिः नारक तिर्यंच, मनुष्य अने देव चउणाण-धारणो- ९.३.१२ (चतुर्शान धारक) मति, श्रुत, अवधि अने मन:पर्याय ए चार ज्ञान धारण करन र चउरासी-जोणि-लक्ख ११.३.५ (चतुर. शीति-योनि-लक्ष)- चोराशी लाख प्रकारनी जीव-योनि चरण- ११.१७.३,११.३२.२८ (चरण) चारित्र, संयम चारण- ९.३.१२,११.१.३ (चारण-मुनि) 'चरणं गमणं विद्यते येषाम्'- जे आकाशमां सर्वत्र जवा-आववानी शक्ति धर। वे छे तेवा साधु चारित्त- ११.२१.६ (चारित्र्य)- चारित्र, संयम जइणो- ५.२९.१० (यतिनः)- यतिओ, साघुओ जाइस्सरण- ११.५.९ (जाति-स्मरण)- पूर्व जन्मनु स्मरण जिण-१.१.५ (जिन)- राग-द्वेषने जित्या छे जेणे ते, जिन-तीर्थकर जिणवर- १.१४.५ - जिन-जैन तीर्थकर जिण-आगम- ११.१८.१,११.२०.५ (जिन-आगम)- जैन तीर्थकरे उपदेशेला _अने गणधरे गुंथेला आगम ग्रंथो जिणहर- ११.३९.१० (जिन-गृह)-जिना__ लय, जिन-मन्दिर जीव- ११.२०.३ (जीव)- चैतन्य, नव तत्त्वोमां प्रथम तत्त- ११ १६.११,११.१७.२ (तत्व)परमार्थ. जैन दर्शनमां नव तत्त्वनी विचारणा करवामां आवी छे१. जीव २. अजीव. ३. पुण्य. ४. पाप. ५. आस्रव. ६. संवर. ७. बन्ध. ८. निर्जरा अने ९. मोक्ष. जगतमां बेज तत्वो छ-जीव (चेतन)अने अजीव (जड). एने विस्तारथी, मोक्षमार्गने लक्षमा राखी. समजाववा माटे ज बाकीना तत्वोनु जैन शास्त्रकारोए प्रतिपादन कयु छे. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्र-९.९.२,११.११.७, ११.३२.२८ (तर) :- जेनाथी कर्मनो क्षय थाय ते तप कर्म. अनशन आदि बार प्रकारना तप छे. वासनाओने क्षीण करवा वास्ते जोइतुं आध्यात्मिक बळ . केळववा माटे शरीर, इंद्रिय अने मनने जे जे तापणीमां तपावाय छे ते ते तप कहेवाय छे. बाह्य अने आभ्यंतर एवा एना बे मुख्य मेदो छे. तिरिय - ११.५.१ ( तिर्येच ) पशु-पक्षी वगेरे तिविह - ९.७.१० ( त्रिविध ) – मन, वचन अने काया ए त्रण करणोनो प्रकार. थो - कम्मु - ११.२९.९ ( स्त्री - कर्म ) - जे वडे स्त्री-रूपे जन्म लेवो पडे तेषु कर्म दव्वओ - ४.१२.४ ( द्रव्यतः ) - द्रव्यनी अपे क्षाथी दुवाल अंग - ११.३६.२ ( द्वादश अंग ) - बार अंगो. आचारांग, सूत्रकृतांग वगेरे बार अंग ग्रन्थो. देखणा - ११.३.३ ( देशना ) उपदेश, धर्मोपदेश देसविरइ - ११.५.१० ( देशविति ) - व्रतोनुं आंशिक पालन, अहिंसादि महाव्रतोनुं संपूर्ण पालन ते सर्वविरति. श्रावको माटे पवत्तिणी - ११.३६.११ ( प्रवर्तिनी ) - साध्वी दसविह पच्छित्त्- ९.५.६ ( दशविध प्रायश्चित) - दश प्रकारनं प्रायश्चित. पोते लीघेला व्रतमां थयेल प्रमादजनित दोषोनुं जेना वडे ओने संयममां प्रवर्त्तावनार मुख्य साध्वी पायवगमण - ११३८.१२ ( प्रायोपगमन ) - अनशन - विशेष, मरण समये स्वीकारातु अनशन - विशेष. शोधन करी शकाय, ते प्रायश्चित. आलोचना : पारणय- ८.३८.१ ( पारणक ) - उपवासादि वगैरे तेना दश प्रकार छे. पूर्ण था पछी खाते, पारणं . शक्य न होवाथी एमने अहिंसादि व्रतो आंशिक पालन करवानुं होय छे-ते देशविरति देश एटले अंश. धम्मक्खणु-११.४.१२ (धर्माख्यान ) धर्मोपदेश धम्मलाह - ११.२.१२ ( धर्मलाभ ) - धर्म - लाभ 'धर्मनो लाभ तमने थाओ' - एवो अशीर्वाद. निजरा - ११२०.३ ( निर्जरा - कर्मनो क्षय करवा नियाण - ११.१३.९ ( निदान ) - कारण, हेतु. कोई पण शुभ कार्य करी तेना फळनी आकांक्षा करवी ते. ३३ पंच परमेट्ठि - ११.३२.५० (पञ्च - परमेष्टिन् ) - अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु ए पांच पंच-परमेष्ठि छे. पंच- महव्वय - ९.५.३, ९.६.२ ( पञ्च - महाव्रत) १. अहिंसा. २. सत्य. ३. अस्तेय. ४. ब्रह्मचर्य अने ५. अपरिग्रह ए पांच महाव्रत पडिबोह - ११.३२.८ ( प्रतिबंध ) -- उपदेश पाय - १.२.९, ( प्रमाद ) - प्रमाद, असावधानी. कर्मबंधना पांच कारणोमांनुं एक परिग्गह - ९.८. १ ( परिग्रह ) - संग्रह. जमीन, सोनुं द्रव्य आदि उपर आसक्ति. पवज्जा-४.७.४ ( प्रव्रज्या ) दीक्षा साधु - जीवननो अंगीकार पाव ११.२० . ३ ( पाप ) - पाप, अशुभ कार्य. पुव्वक्कअ - ४.१२.१०,६. १८.११ (पूर्वकृत ) - पूर्वे - पूर्व जन्ममां करेल कर्म. पुव्वा - ११.३२.१३ (पूर्वाणि) - 'पूर्व' नामे ओळखातां चौद शास्त्रो. पोरिस - १.१३.५ (पौरुषी) प्रहर संबंधी पच्च क्खाण. पुरुष प्रमाण छाया पड़े ते समय बंध - १९.२०.४ (बन्ध ) - कर्म-बन्ध बंभचेर - ६. २२.११ ( ब्रह्मचर्य) ब्रह्मचर्य. विषय-त्याग बं भव्वय - ११.२०.७ ( ब्रह्मव्रत ) - ब्रह्मचर्य बारसंगाई-११.३२.२६ ( द्वादशाङ्गानि ) - आचारांग आदि बार अंग ग्रन्थो बुद्धबोह - ११.३२.१३ (बुद्ध-बोषित) — बुद्ध - केवळशानी - द्वारा उपदेश पामी सिद्ध थनार, Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जात बोहि- .११.३२ ५२ (बोधि)- सम्यक्त्व, संजम-११.२१.७ (संयम )-इन्द्रियो, मन सम्यगदर्शन वगेरेने काबुमा राखीने पृथ्वी आदि र्ज वोर्नु भष- १.२.१०,११.१८.४ (भव्य)-मोक्ष- रक्षण करवु. . प्राप्ति माटे लायक जीव संमुच्छिम- ११.५.४ (समुच्छिम)-माता भाव- ४.१:२.५ (भाव)- विशेष, वस्तु- पित ना संयोग विना उत्पन्न थयेल जीव. स्वभाव . . स वर- ११.२०.३ (संवर)-कर्मना द्वारने मइ-११.२०.११ (मति)- मतिज्ञान, पांच बंध करवा ते. नव तत्त्वमानु छट्टुं तत्व. . इन्द्रिय अने मन द्वारा जे बोध थाय ते. सईबुद्ध-११.३२.१३ (स्वयंबुद्ध)-पोतानी मणपज्जव- ११.२०.११ (मनःपर्याय)- पांच जाते ज बुद्ध बनी सिद्ध थयेल. । ज्ञान-प्रकारोमा चोथु, अन्यना मनन प्रत्यक्ष सज्झाय-९.५.१० (स्वाध्याय % सु + आ कर ते. ' +ध्याय अथवा स्व +अध्याय) मासकप्प-११.३६.१ (मासकल्प)-शेषकाळ, शास्त्रोनु वारंवार वाचन, ज्ञान मेळवधू, -साधुए चोमासा सिवाय एक गाममां एक तेने निःशंक,विशद अने परिपक्व करवू अने मास उपरांत न रहेवु तेवो नियम. स्वनु- आत्मानु चिंतन करवु ए सपळू मिछत्त-९:५.१२,११.१७.१० (मिथ्यात्व) स्वाध्यायमा आवी जाय छे.. विपरीत मान्यता, मिथ्या दृष्टि समण- ८.२०.४ (श्रमण)-मुनि, निग्रंथ मूलायरणी-९.२३.४ (मूलाचार्या )-मुख्य समाहि- ११.३२.५२ (समाधि)-समाधि, आचार्या, गणिनी.. ___ शान्तभाव मेहण-९.७.१० ( मैथुन )-विषय-सेवन सराविया- ११.२५.२ (श्राविका)- जैन मोक्ख-११.७.१०,११.२०.४ ( मोक्ष )- धर्मनु पालन करनार गृहस्थ स्त्री मुक्ति, कर्म-बन्धथी ऐटले के भवभ्रमणथी सलिंग- ११.३२.११ (स्व-लिङ्ग)- जैन छूटकासे : धर्ममां बतावेल साधुओनो वेश धारण वअ-४.५.१७,४.१३.१४ (व्रत ) हिंसा, करी सिद्ध-मुक्त थयेल आत्मा . असत्य, चोरी,मैथुन, अने परिग्रहथी ( मन, सव्वण्णू - ११.२०.१ (सर्वज्ञ)-सर्व देश वचन, कायावडे ) निवृत्त थq ते ब्रत. काळना ज्ञाता विरह-११.३.१३ (विरति )-व्रत सामन्न- २.१९ १ (सामान्य)-सामान्य विरमण-११.३९.१६ (विरमण)-, सायर- ११.१८.२ (सागर)- सागरोपम, विवाअ.-१.२.९,२.१४.११,५.२१.७ संख्या-विशेष .. *-(विशक)-कर्म- फळ, कर्म-परिणाम मावय-धम्म-११.२२.३ (श्रावक-धर्म)विसेस-२.१९.१ ( विशेष )-सामान्य नाही. गृहस्थनो धर्म. जन गृहस्थे पांच अणुवत, धीयराअ-११.१८.१०. ( वीतराग ) राग- त्रण गुणव्रत अन चार शिक्षाव्रत पाळवाना द्वेषथी रहित, जिन. होय छे. गृहस्थाश्रमो जैन पुरुष अनुसया वेबड़िया १.१.११.१२ (वेद-त्रिक)-पुरुष- श्रावक कहेवाय छे. वेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद साविया- ११.२३.१२ (श्राविका)- गृह स्थाश्रमी जैन स्त्री श्राविका कहेवाय छे. Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सासण - देवया ११.२४ ९ ११.२४.११ ( शासन - देवता ) - शासन देवता साहम्मिय - ११.१६.१२ ( साधर्मिक) - पोताना धर्मना अन्य अनुयायीओ, समान धर्मवाळा सिद्ध- १.१.१२ (सिद्ध) के ळ- ज्ञान मेळवी मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करनार महात्मा. सिद्धाययण - ७.५.६ ( सिद्धायतन ) - सिद्धमुक्तिप्रास-नुं निवास-स्थान सिद्धि - ३.९.१० (सिद्धि) - सिद्ध- मुक्तिप्राप्त नुं निवास स्थान. सिद्धिवसहि - ९.५.१२ (सद्धिवमति) - सिद्ध मुक्तिप्राप्त - नुं निवास स्थान. सित्रपुरे- ९.६६ (शिवपुरी)- मुक्तिरूपो नगरी सित्र - रुक्ख-बीअ ११.१८.४ ( शिव- वृक्षबीज ) - मोक्ष रूपो वृक्षनुं बी ३५ सीलिंग - ९.५.७,११.३२.३८ ( शीलाङ्ग ) - शीलना अंगो, जे सोळ हजार होय छे. सुगुत्त - ११.२०.८ ( सुगुप्त ) - 'सम्यग्योनिग्रहगुप्ति: ।' बुद्धि अने श्रद्धापूर्वक मन, वचन अने कायाने उन्मार्गथी रोकवा ते त्रण गुप्ति कहेवाय छे. तेमां सारी रीते प्रवृत्त साधु ते सुगुप्त. सुत्त - ११.३२.१९ ( सूत्र ) - आगमादि शास्त्र. सुयनाण - ११.२०.१९ ( श्रुतज्ञान ) - पांच ज्ञानोमां बीजु, आगम. सुय - सामिणी - १. १. १३ ( श्रुत-स्वामिनी ) - ज्ञाननी देवी, सरस्वती. सूर्-११.३२.१८ ( सूरि ) आचार्य, गच्छ के साधु समुदायना नायक हासह छक्क - ९१.११.१२ हास्यादि छनो समूह - हास्य, रति, अरति, शोक, भय अने जुगुप्सा हास्य-षट्क ) Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________