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विलासवईकहा अह नहयल-मग्गे निरंतरेहिं पढमं पि ताव वरिसिय-सरेहिं । छिंदत परोप्परु बाण-जालु दिव्वत्थेहिं जुज्झिय को वि कालु ।
पुणु गेण्हेवि खेडय मंडलग्ग रोसारुण-लोयण चे वि लग्ग । १० वंचंतहं अवरोप्परइं घाउ सुर-पेच्छणिज्जु संगामु जाउ ।
मेंढय व्य खणे दूरि पाविया खणे पुणो वि संमुह पहाविया । कुक्कुड व्व खणि मिलिय महियले खणि पुणो वि उच्छलिय नहयले ॥११॥
[१२]
खग्गेहिं दोण्णि वि भिडिय तांव अह ति रोसारुण-लोयणेण जज्जरिय-सीसु तो तेण चेव मुच्छा-विहलंघलु पत्तलम्मि ५ एत्थंतरि भवियव्वय-वसेण उहाविउ परम-दयालुएण ओसहि-वलएण य सित्तु घाउ अह परम-विम्हियाऊरिएण चिंतिउ अचिंत-सामत्थु होइ पुच्छिउ मई भयवं मह कहेह किं निमित्तु तुहुँ एत्थ पत्तउ कवणु कज्जु जं हउं जियाविउ
तुट्टई करवालई दो वि जांव ।
हउ उत्तिमंगे हडं मोग्गरेण । , सोणिउ वमंतु हउं पडिउ देव ।
निवडिउ रयणायर-तड-जलम्मि । हउं दिटु पडतउ तावसेण । अहिसित्त कमंडलु-पाणिएण । तो तखणे रूढउ सत्थु जाउ । मइं किउ पणामु तस्सायरेण । ' पेच्छहि मणि-मंतोसहिहिं लोइ ।
किह ओसहि पाविय दिव्य एह । किह व दिट्ठ गयणह पडतउ । परमु एहु उवयारु किह किउ ॥१२॥
[१३]
तें भणिउं महंति य एह वत्त संखेविं निसुणसु तह वि मित्त । हउं तामलित्तिपुरि-वसिउ निच्चु ईसाणचंद-नरवइहि भिच्चु । तेण य पहाविउ पेसणेण पडिवन-पुत्त-अन्नेसणेण ।
सो उचिय-पएसेहिं मइं गविठु भो सुपुरिस तह विन कहिं दिछ । [११] ८. ला. देव्वत्थेहिं १०. पु. वच्चंतहं....पेच्छणिज्ज ११. ला० सिढिय व्व खण
दूर १२. पु० खणे [१२] २. पु० अह तं....उत्तमंगे ९. ला० पेच्छह...मंतोसहिहि १०. ला. कहेहिं ११.
ला०पत्तओ...पडतओ १२. पु० कज्ज... जिवाविउ [१३] ३. पु० पडिवन्नु ४. पु० न कत्थ दिदछु
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