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________________ ८.३०] विलासवईकहा १२९ सिंजंत-मणि-नेउरा का वि वेगेण धावेइ किर कुमरु जोवेइ मई जेण। अन्ना वि पुण का वि हिंदोलयारूढ जि कुमरु पेच्छेइ मिसु लेवि अइ मूढ । अन्ना वि कंची-कलावम्मि पक्खुलइ कुमरस्स जिं दिट्ठि मह संमुहा वलइ । मरगय सुवाणेसु लहलहइ पुणु अन्न विज्जु व्व घण-मग्गे तवणीय-सम-वण्ण। धावंति क वि भरिय-नीसास-पवणेण वाये व्व बाणेण नं भिन्न मयणेण । तुट्टेहिं हारेहिं अन्नाओ दीसंति धावंति तह चेव मोत्तिएहिं वरिसंति । पासेय-सलिलेण पवहंतिया काइ मयरद्धएं भिन्न वारुण-सरे नाइ । तोरणह साहाए अन्ना पलोवेइ तो सालिहंजियहिं लीला विलंबेइ । अन्ना य घर-देहली-निहिय-निय-पाय अवलोयए कुमरु ओन्नडिय वर-काय। १० वेगेण उच्छु? पहिरणउं धारंति धावेइ कहिं कहिं कुमारो त्ति जंपंति । अन्ना वि उल्लवइ गरुएण सट्टेण मह वयणु आयण्णए कुमरु किर जेण । अन्ना वि पुणु का वि सहियाई सहुँ हसइ कुमरस्स अवलोयणं कह वि अहिलसइ । इय सयल-पुरंघिहिं सहियण-खंधिहिं ललिय-निवेसिय-बाहियहिं । चरणंगुलि-अंतिहिं धरणि-लिहंतिहिं दिडु कुमरु अणुराइयहिं ॥२९॥ कुमरेण पलोइय तत्थ बाल संजमइ सुबद्ध वि का वि बाल । लायण्ण-नीर-परिपुण्ण का वि दंसेइ नाहिं नं मयण-चावि । अन्ना पुण पयडइ पंगुरंति भुय-तल-रोसाणिय-कणय-कंति । संठवइ का वि थण-वटु थोरु सुर-कुंभि-कुंभ-विब्भमहं चोरु । ५ अन्ना रोमावलि-कसिण-भंगु दंसइ मयरद्धय-निहि-भुयंगु । परिमुसइ का वि पुणु अहर-देसु जहि वसइ कामु किर निरवसेसु । निवडेइ का वि पहिरणय-गंठि ऊससिउ मयणु नं वलइ कंठि । [२९] १. ला०-नेउर, पु० मइ २. पु० जें कुमरु ३. पु. जं दिट्ठि ४. ला० मरगय. विमाणेसु ५. पु० वाय व्व माणेण जं भिन्न-६. पु० धायंति ९. पु० उन्नडिय १०. पु० उच्छुट्ट, ला० परिहरणइ धारिंति १३. ला० सयल-पुरंधेहिं सहियण-खंधेहिं १४ ला० पु० अंतेहिं...लिहंतेहिं [३०] १. ला० संजमइ सुवइ वि ३. पु०पुण वा पयडइ पंगुवंति, ला. भुय-तलु ४. ला० संथुणइ का वि ७. ला० परिहणय-गंठि १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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