________________
१३०
साहारणकविरइया
[८.३. अन्ना वि कण्णु कंडुयइ मुद्ध मयणेण नाइ तहिं बाण छुद्ध ।
क वि कुमरु निएविणु गुण-विसाल तक्खणि परिचुंबइ नियय-बालु। १० क वि करइ सहिहिं सहुं अलिय-हासु एसो च्चिय मयरद्धय-विलासु ।
चालियउ चलंतइ वलिउ वलंतइ कोय वि कंठ तहा वलिउ । जिह कुमरु नियंतिहिं कुवलय-नेत्तिहि वेणि-दंड थण-हरि मिलिउ ॥३०॥
तो कुमरु पलोएवि विम्हियाओ अवरोप्परु जंपहिं महिलियाो । सहि रूचे होइ अणंगु एहु नं नं कहिं पयडउ तासु देहु । सुंदरि ए पुरंदरु न वरि होइ नं नं बहु-लोयण-भरिउ सो इ।
ता एहु वयंसिए होइ रुडु नं नं कवाल-सप्पेहिं रउदु । ५ ता एहु नारायणु भुवण-वीरु नं सो अलि-कज्जल-सम-सरोरु ।
ता फुडउं दिणेसह अणुहरेइ नं नं किं झंखहि सो दहेइ । ता जाणिउ हल सहि एहु मयंकु नं नं सो मुद्धि न निक्कलंकु । ता सहि एहु होसइ देउ कोइ नं नं सो अणि मिस-नयणु होइ ।
इय उवम कुमारह न य लहंति अन्नाओ वि अन्नह परिकहति । १० सा धन्न सलक्खणि पुण्णमंति जा एयह कुमरह हूय पत्ति ।
तवु कवणु विलासवईए चिण्णु भत्तारु जेण तहे एहु दिन्नु । अम्हे हिं सुकिउ किय किं पि आसि जे पाविउ एहु पहु गुणहं रासि । जो सुद्ध सहावह जणह अपावहं पिय-वयंसि वंचणु करइ । तसु आवइ आवइ सोक्खु न पावइ जिह संपत्तु अणंगरइ ॥३१॥
__ [३२] क वि कहइ पासे जो सन्निविठु सहि कुमर-मित्तु वसुभूई दिछु ।
नाणाविह-आउह भिन्न-गत्तु एहु वच्चइ पिय-सहि बंभयन्तु । [३०] १०. पु० मयरद्वय -निवासु । ११. पु० कंतु तहा १२. ला० नियंतहिं, पु०
नेत्तेहिं...थण-हरे [३१] १. पु० विभियाओ २. ला० रूविं ३. ला० पुरंदरु तवरु... ४. पु० कवाल
सथिहिं ५. पु० नारायण ६. पु० झंखदि ८. ला० अणमिस- ९. ला०भन्नहं १२. पु० सुहिउ किउ, ला० जं पाविउ १३. ला० सहावह...अपावह....वयंसे १४. पु सपछु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org