SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विलासवईकहा इह चित्तवेय-विज्जाहरेण ताउ वि चलिउ सहुं बहु-बलेण । ५ सो अनिलवेय-सुहडेण दिठ्ठ मइं लेवि मलय-वणे इह पविठु । इह धरेवि करेविणु विज्ज-छेउ भयवं वाहुडियउ चित्तवेउ । उवरिं पुण तक्कमि निय-मणेण जुज्झिस्सइ सह मह भाउएण । अवसरि गरुय मह वहइ चित्ति किं तत्थ रणंगणि होसइ ति । एहु ताव महा-बलु चित्तवेउ ता दुक्करु जीवइ अनिल वेउ । १० मई वुत्तिय धोरिय होहि तांव हउं दोण्ह वि सुद्धि लहेमि जांव । इय भणेवि हउं एत्थ पत्तउ तं सि दिठ्ठ गयणह पडंतउ । ताव सिग्घु हउं मित्त धाविउ ओसहिस्स बलई जियाविउ ॥१५॥ ता एत्तहे वत्तहे एउ सारु देक्खालहि मज्झ सणंकुमारु । तो मई विणयंधरु देव वुत्तु भो परम-मित्त तई कियउं जुत्तु । जं तइं जीवाविउ एत्थ कालि पर वइरि मुक्क मई अंतरालि । सो जाएवि जाव पराजिणेमि तो तइं सणंकुमारस्स नेमि । ५ ता तुम्हे ताव एत्तिउ करेह . जाएवि आसासहि चंदलेह । इय भणेवि तस्स मइं किउ पणामु. उप्पइयउ नहयलु खग्गगामु । तो दिलु विमाणारूढु ताउ मई पेच्छिवि तायह तोसु जाउ । आणंद-जलाविल-लोयणेण आलिंगिउ ताए हरिसिएण । अह सो वि वइरि अम्हहं बलेण वेढिउ खयराहिव कलयलेण । १० तं दलु आरोलिउ तेण केंव सीहेण कुरंग-समूहु जेंव । ता मई वि गरुय-अमरिसु बहेवि सुनिसिय करालु करवालु लेवि । उत्तमंगे तमु घाउ दिन्नउ तेण सीस-सिरताणु भिन्नउ । धरणि पडिउ सोणिउ वमंतउ सो कयंत मंदिरि पहुत्तउ ॥ १६ ॥ [१७] किउ कलयलु तो विज्जाहरेहिं घुट्टउ जय-सहु सुरासुरेहिं । अह चित्तवेउ भडु मारिऊण तर्हि मलय-महावणे जाइऊण । [१] १. ला० वलिउ ६. पु० धरेविणु विजछेउ, ला. विजाछेउ ७. पु० महु ८. ला० रणांगणे १०. पु० सुद्ध [१६] १. ला० एयहे .. पु० तो में विणयं. ५ ला० आसासह ६. ला० भणवि ७. ला० पेच्छवि, पु. पुच्छिवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy