________________
१४४
साहारणकइघिरइया ससिलेहा-विणयंधर-समाणि आरो वय तायह वर-विमाणि ।
तो देव सयल-परिवार-जुत्त वेगेण नियय-पुरवरे पहुत्त । ५ आणंदियाई जण-परियणाई विहियाई महा-बद्धावणाई ।
तो सामिय विणयंधर सहाउ पय-कमल-मूले हउं तुम्ह आउ । इय वयणु सुणेवि सणंकुमारु न वहेविणु सक्कइ तोस-भारु । जंपइ लहु अक्खहि अनिलवेय विणयंधरु अच्छइ कहिं सुच्छेय ।
सो भणइ तुम्ह देसणह रेसि पहु अच्छइ सीह-दुवार-देसि । १० राएण भणिउ जं ऊसुय-मणेण आणेह सिग्घु पेच्छामु जेण ।
अनिलवेउ तो सिग्घु निग्गउ तेण सहिउ सहसा समागउ । दूरओ वि पहुणा नमंतउ दिठु मित्तु वियसंत-नेत्तउ ॥१७॥
अब्भुट्टेवि खयर-सामिएण आलिंगिउ पसरिय बाहुएण । पणमिय विलासवइ तेण देवि वसुभूइहि विणयंजलि रएवि । तो उवविसंतु धरणियलम्मि बइसारिउ सन्निहियासणम्मि । पुणु पुच्छिउ राएं कुसल-वत्त भी मित्त तुम्हे किह एत्थु पत्त । ५ विणयंधर चोज्जु करेइ मज्झ अम्हहं सयासि भागमणु तुज्झ । उप्पाइय-पणइ-पयाणुराउ अवि कुसलेहिं अच्छइ तुम्ह राउ । राणिय अणंगवइ किं करेइ किं अम्ह न अवगुण संभरेइ । तइयह अम्हाण विणिग्गमम्मि किं पच्छइ वित्तउ पुरवरम्मि ।
किं विहिउ नरिंदे किं तएं वि किह हूयउं अणंगवइ वि देवि । १० का अम्हहं पसरिय वत्त लोइ कि हूउ विलासवई विओइ ।
सो अम्हई परियणु किं हूउ किं ताएं पेसिउ को वि दउ । तुहं राणइं पेसिउ किं निमित्तु वाहुडियउं रायह केंव वित्तु ।
इय असेसु परिपुच्छिउ सम सामिएण विणयंधरो इमं ।
भणइ देव सयलं कहिज्जए खण-मुहुत्तु महु कण्णु दिज्जए ॥ १८॥ [१७] ८. ला० अक्विहि ९. पु० रेसे... सोहयवारदेसे १२. पु० पहु पय नमंतत्र [१८] ४. ला० एत्थ ५. ला० अम्हं ९. ला० नरिंदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org