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________________ ९.२०] विलासवईकहा तइयहं रयणायर - भरि पवत्ति सोण य देव विसरण -चित्तु चिंतेमि य नियमणे खयरराय सुर्याणि सहुं कुल उवयारएण ५ हा देवि किं एरिसु तुज्झ जुत्तु अहंसणु वरि सुयणेहिं समाणु हा हा विणयंधर जडहि पाव उवयारह पच्चुवयारु दिन्नु हा नरas निरगुण निव्विवेय १० अहवा सो धन्न पुन्नवंतु [13] तुम्हे आरूढेहिं जाणवत्ति । पव्वालिय- लोयणु हउं नियत्तु । पेच्छह कहिं अवसरि भेट्ट जाय । सुकुलुग्गय- बहु-गुण- सारएण । मेलिउ अकाले जं रायउत्तु । न समागमु इय विरसावसाणु | नीसारेवि सुहि पंजल - सहाव । सय-खंडु किं न तुह हियउं भिन्तु । कुमईओ होंति तुह मणि किमेय । जहिं तहिं न दीसह रायउत्तु । नियय-भवणे हउं देव पत्तउ | दिवस लच्छि हुय रवि करालिया ॥ १९ ॥ एवमाइ बहु चिंतयंतउ रयणि कह विदुक्खेण वोलिया [१०] Jain Education International तम्मिय दिवसम्म घरम्मि चेव पडिहारु पहुंत्तु दुइ दिणम्मि सो पुण अगव-भवणे राउ तो किउ पणामु विणओणपण ५ भ य सुहास - सन्निविट्ठ साहिउ महुं अंगु न पवरु आसि पुच्छिउ नरिंदें पुणु वि एंव ह थक्क उलिन गउ देव । हक्कारेवि नीय राउलम्मि । मई दिठु अप्प - परियर - सहाउ । सम्माणु मज्झ किउ आयरेण । विणयंधर कीस न कल्लि दिछु । तें देव न पत्त तुम्ह पासि । सो दुहसील तई कियउ केंव । मई बोल्लिउ far for सो कुमारु जिह पुण विन पावइ तुम्ह बारु । एरिसु मह भासि तं सुणेवि अणंगव सुट्ट देवि । १० तो दोहिं वि तुट्ठेहिं किउ पसाउ हउं देव विसज्जिउ घरह आउ । १४५ सो वि देव तुम्हह परिम्गहु तुम्ह सुद्धि अलहंतु दुक्ख [१९] १. ला०-भरे पु० पवत्ते... जाणवत्ते ३. ला० अवसरे ४ पु० सुयण [२०] १. पु० राउळे २. पु० पत्तु दुइय..., ला० हत्रकारवि ४. पु० विणउनएण सम्माण, ला० सम्माणु मह ८. ला० तह किरन यावर तुम्ह यारु । ११. पु० तुम्हहं १९ सामि-विरह- अक्कत - विग्गहु | दिवस दोन्नि ठिउ तिसिउ भुक्खिउ ॥२०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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