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साहारणकविरइया
[१०.१७ तं निमुणेवि राउ रोमंचियउ नेमिस्तियहं तुट्ठउ ।। रयण-सुवण्ण-धण-धन्न-धारेहिं घणु जिह ताहं वुट्टउ ॥ १६ ॥
अन्नहि खणे पर-तीरह पहुत्तु सेटिहि समिद्धदत्तस्स पुत्तु । नामेण मणोरहदत्तु देव तें कहिउ जहट्ठिउ सव्वमेव । पच्चक्ख निरिक्खिय अक्खणेण आणंदिउ नरवइ तक्खणेण । विणयंधर-आस-परिट्ठियाण गय एत्तिय दिण उक्कंठियाण । ५ वसुभूइ हि वयणि पुणु विराउ अइसय उक्कंठिउ देव जाउ ।
आणयण-कज्जे एएहिं समाणु हउं पेसिउ संपइ तुहुं पमाणु । अन्नं च देव इय भणिउ तेण मइं नायर-लोयहं कारणेण । अवमाणु कोवि जो कियउ तुज्झ अवराहु एक्कु सो खमहि मज्झ ।
तं मुणेवि विलासवइए वुत्तु ता कीस विलंबइ अज्जउत्तु । १० वसुभूइ-अनिलवेयाइएहिं तं वयणु समस्थिउ सेवएहिं ।
ईसाणचंदु नरवइ भणित सुमुहुत्तु गमण-दिवसु वि गणिउ । दोणाइहिं दाणु दियावियउ सव्वहं वि गमणु जाणावियउ ।
तो अणुगम्ममाणु नरनाहें परिवारिं समग्गउ । पणमिउ बहुमाण-घण-सोएहि लोएहिं पुरिहिं निग्गउ ॥ १७ ॥
तो कि पि दूरु जाएवि तेण खामिउ नरिंदु खयराहिवेण । ते भणिउ पुत्त निय-पुर गओ वि दंसणु देज्जसु कइय वि पुणो वि । पणमेविणु खयराहिवु भणेइ जं किंचि ताउ मई आणवेइ ।
ताव य तायह पायहिं पडेवि रोवेइ विलासवई वि देवि । ५ तेण वि नयणंसु-फुसंतएण संधीरिय धीय भणंतरण ।
मा पुत्ति करेजसि किं पि सोउ अम्ह वि दुव्विसह उ तुह विओउ । [१६] १४. पु०-धारहिं [१७] ९. ला० सुगवि ११. ला०-दिवसो १३. ला० नरनाहि...समग्गओ । १४. ला०
निग्गओ [१८] १. ला० खामियु ४. पु० कन्न तायह........
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