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________________ १०.१६] -- हा अहिमाण - मेरु गुण - साबर हो कोमल - सरीर सुललिय--भुय हा हा मरउं पुत्त तुह नयणहं १० पुहइ - -वीदु जइ सयलु गवोसइ हा विहि किं तुह मई अवरद्धउ हा हा मई freeraण माइए इसउ पुत्तु जसु हत्थह छुट्ट मरणहं रेसि पुत्त नीसरियउ १५ जं जम्म-दिवस आइट्टु तुहु नेमित्तिय वयणु विसंघडिउ विलासवई कहा इय देवहि परियंदणु सुणेवि हक्कारेवि पुच्छिय पुणु त्रिवेण ते भणहि चलइ जइ मंदरो वि afa अलिउन होसह देव एउ ५ अन्नाउ वि दीवह सायराउ जिउ कम्मे after जाइ तत्थ ता कुमरह देव इह द्वियस नेमित्तिय वयणु निसुणेवि राउ तो तामलितिपुरि पुरिस खित्तु १० जाणेवि पुण वि पच्चागएण जिह नरवई पच्छुत्तावियउ जिह वरिस - पण वि तें विद्दिय Jain Education International हा ईसाणचंद निक्कारण- वरिय किं अणुद्वियं । मह पुत्तयह आसि न कयाइ वि एरि दुट्ठ-चेट्ठियं ॥ १५ ॥ [ १६ ] पुत्तय विवेय- रयणायर हो । हा पंडिवन्न सूर मइ -संजय । आणदिय-सज्ज हूं सलोणहं । तुह पडिच्छंदु पुत्त न दीसह । जेण पुत्तु देवखणहं न लद्धउ । काई करेहि भग्गे निद्धाहिए । तो वि हयासु न हियडउं फुट्ट । जणय - सिणेह तुज्झ वीसरियउ । किर होस विज्जाहर पहु । तं पुत्त मरणु अंतरे पडिउ । १६३ [१५] १०. ला० पडिच्छंदइ । [१६] ९. ला०-पुरे ११ ला पच्छोत्तवियउ १२ ला० पुरिसं कहिय नेमित्तिय वयणई संभरेवि । far मरणु कुमारह अंतरेण । उगम वरुण-दिसि दिणयरो वि । जीव कुमारु मा करह खेउ । तह चैव दूर देसंतराउ । पावेइ सुहासुह-फलई जत्थ । arrang for होइ तस्स । परिचत्त-सोउ कह कह वि जाउ । तुह देव सुद्धि लहणहं निमित्तु । साहिउ विणयंधर-गमणु तेण । आरक्खउ जिह पट्टावियउ । तिह सयल-वत्त पुरिसेहिं कहिय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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