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३. १५]
विलासवईकहा ५ थेव दूरु जाएवि अह दिद्वउ जंबु-रुक्खु तहु तलि उवविद्वउ ।
जलहि-पवणि आसासिय-गत्तउ तो एरिसु चिंतणह पयत्तउ । एयई ताई जहिच्छाविहियइं विहि-विलसियई अचिंतिय-रूवई । एह सा कम्महं सत्ति अचिंतिय कहिं सेयविय-नयरि परिचत्तिय ।
कहिं पुरि-तामलित्ति छड्डेविणु कहिं अपारु सायरु लंधेविणु । १० कहिं हउँ सिंहल-दीवि पयट्टउ अंतरालि किह पवहणु फुट्टउ ।
किह अवत्थ एरिस पाविज्जइ तो अज्ज वि जीविउ धारिज्जइ । एगोयर-सन्निहेण वा विरहियस्स वसुभूइणा । किं अज्ज वि जीविएण मे एरिस विविह-किलेस-भाइणा ॥१३॥
हा सुमित्त हा गुण-रयणायर हा वसुभूइ कत्थ मइ-सायर । हा किह जलहिहि मयि विवनउ तइं विणु किं करेमि हडं सुन्न । आवइ-गयहं सोय-संतत्तहं वाहीणहं देसंतरि पत्तहं । दूसह-दुक्ख-जाल-उत्तारउ मित्तु एक्कु पर होइ सहारउ । ५ तो तसु विरहे जीउ न धरिज्जइ अहवा निच्छउ न वि जाणिज्जइ । जिह इउं वहण-भंगे उव्वरियउ तिह जइ कह वि सो वि उत्तरियउ । कम्मह परिणइ जेण विचित्तय कज्जहं गइ संभवइ अचिंतिय । ता इह फज्जे विसाउ न किज्जइ जीवंतिहिं पर पिउ पाविज्जइ । जिह रणिहिं अंतरियइं दिवसई तिह संजोय-विओयई सरिसइं । मिलइ कयावि सो वि जीवंतउ तम्हा अम्हहं मरणु न जुत्तउ । भुक्खिय-तिसिओ य उढिओ चलिओ उयय-फलाइ-कारणेण । जा वच्चइ उत्तरामुहो अह थोवंतरु ताव तत्थ तेण ॥१४॥
केलि-सहयार-फणसेहिं संच्छन्नया पक्क-नारंग-बिज्जउर-संपन्नया।
पउर-पय-पूर-पब्भार-पाडिय-तडा कढिण-कक्कर-कराडीहिं किय-संकडा। [१३] ५. पु० तहे तले ६. पु० जल हि-पवण-आसासिय १०. ला० अंतराले १२.
पु० इय गोयर[१४] २. ला० मज्झ ३. ला० देसंतरे १. ला० परो ५. ला• ता, पु० विरहि
६. पु० वहणभंगि ८. पु० कजि, ला० जीवंतेहिं [१५] १. ला० नारंगि-विज्जतरि-संपुण्णया २. पु० कय-संझडा
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