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साधारणकविरा
[३. १६
सरस - विय संत - तामरस-सय- सोहिया मच्छ- पुच्छ च्छडा घाय-संखोहिया । तीर-तरु- कुसुम - रय-राय- रंजिय-जला लडिय-तड- विटव- निवडंत-सडिय-फला । ५ कुरर - कारंड - कलहंस-कोलाहला कुंच- चक्काय - सारसिय-सद्दाउला । विविह-विहग- उल - वणराइ - मज्झट्ठिया पवर- निम्मल-जला गिरि-नई दिट्टिया । सरिय-नीरं च पाऊण दुह-मोयणं । तेण नइ पुलिणे अह सारसो दिओ । सरस-सद्देण समयं च वासंतओ । सा विलासवइ - देवी वि तर्हि सुमरिया ।
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तत्थ काऊण फणसाइ-फल- मोयणं तीर-सहयार मूलम्भि उवविद्वओ नियय - दइयाए चाडूणि कुव्वंतओ १० तं च पेच्छेवि कुमरेण निय-भारिया
हा मह दइया गुणावली हय-विहिणा विच्छोइया महं । किं काही सा तवसिणी मह विओइ [१६]
अहो es अदि- पिय विरह- दुक्खा अविन्नाय - पर- जायणाऽदीण-भावा न दूरप्पवासीय संतोस - जुत्ता सुणंति न दुब्भासियं दुज्जणाणं ५ न याति दारिद्द- चिंताण भारं न कुव्वंति तत्तिं परिचत्त-संगा ओ माणुसणं पि अम्हाण सोक्खं इमं अच्छए जाव सो चिंतयंतो सिलाए विसाला अइ-कोमले हिं १० करेऊण तो देवयाए पणामं
जीवस्सए कह || १५ ||
समुपपन्न-साही आहार- सोक्खा | अपाविय- कलंका अमच्छर - सहावा । सया - पास सन्निहिय- पणइणि-पसत्ता । निवासं च कुव्वंति मझे वाणं । जहिच्छाए कीति इच्छा-विहारं । सुहेण व जीवंति रणे विहंगा । समुपज्जए एरिसं जत्थ दुक्खं । रवी ताव अत्थइरि- सिहर म्मि पत्तो । ओ सत्थरो तेण तरु - पल्लवेहिं । gaurt कर्ड गिहिणं च वामं ।
मिउ- सुरहि सुगंध - मंदणं आसासिओ सिसिरेण मारुणं । बहु-दिवस- परिसमे से निद्दा वि य संपत्त तक्खणं ॥१६॥
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अह सा सोक्खेहिं वोलिय जामिणि कसिण-वेस असई जिह कामिणि । कमल-वण घण-नि दलंतउ पसरिउ तरणि- तेउ दिष्पंतउ ।
[१५] ५. पु० कुरकारेंड ६. पु० तत्थ पदंद निम्मल-जला १० पु० देवि तह १२. पु० महा-विओए
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[१६] १. पु० अहो रड़ दि० ६. ला० सुहेण वि १०. ला० देवयागुरु-पणामं, पु० गेहिऊणं च नाम १२ पु० निदोवियत तक्ख०
[१७] २. ला० घण - निलैतड
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