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________________ ३८ साहारणकइविरइया [३.१२ तो अंबरि विज्जुलिय झलक्किय जीविय-आस तेहिं न मुक्किय । तह गिरि-काणण-उम्मूलंतउ तं जलनिहि-जलु हल्लावंतउ । अइ-महल्ल-कल्लोल-खिवंतउ वाइउ विसम-पवणु सुमहंतउ । १० निवडिउ असणि-वरिसु अइ-दारुणु इय उप्पाउ जाउ जण-मारणु । अणियमिय-गमणु जाणयं अणवसिहयउ न मग्गु पावए । उम्मिठ-करि व्य मत्तउ खणि खणि सयल-दिसासु धावए ॥११॥ [१२] तो निज्जामय सव्वि विसण्णा जाणवत्तु धारंत वि खिन्ना । अह कुमरें धीरन्तु धरेविणु सिडु पाडियउ रज्जु छिन्नेविणु। कूवा-खंभय पाडिवि घल्लिय अइ-महंत नंगर आमेल्लिय । तह वि हु जेण भंड अइ-भारिउ जेण य पवणु वाइ अनिवारिउ । ५ जेण सयलु जलनिहि संखुद्धउ जेण य असणि-परिसु संवद्ध । अन्नु विसन्नयाए निज्जामहं तह य विचित्तयाए निय-कम्महं । इत्थिर्हि जिह रहस्सु पत्तउं मणे जाणवत्तु तिह फुट्टउं । तक्खणे बंधव जेंव काल-परियाई विहडिय सयल-सत्त-संघाई । तो कुमरेण फलहु संपाविउ तत्थ विलग्गु कंठ-गय-जीविउ । १० तिहिं दिवसेहिं फलह-संजुत्तउ कह वि कुमारु तीरि संपत्तउ । अंधारय-रेह-संनिहा तो कुमरें वण-राइ दिठिया । ऊससियं झस्ति हियवयं जीविय-आस मणे पइट्ठिया ॥१२॥ तो अच्चंत-खार-जल-भिन्नउ सो कुमारु जलहिहि उत्तिण्णउ । निप्पीलई तेण निय-पोत्तई पुणु वि कियई सरीर-आयत्तई । अह परिहणय-गंठि-निवसंतउं तं पड-रयणु न किंचि वि तितउं । तो कुमारह विम्हउ उप्पन्नउ पेच्छह पड-माहप्पु न भिन्नउ । [११] ८. ला० तहिं १०. पु० असण-वरिसु ११. ला० अणिवसिहूयउ. पु० अणवसिह उ १२. पु० खणे खणे [१२] १. ला० सव्वे......धार ते ३. ला० पाडेवि ४. ला० अणिवारिउ ७. ला० तिर फुटउ, पु० तह फुट्टउ १०. पु० दिवासहिं फलहिं ला० तीरु ११. ला० कुमरिं [१३] २. पु० निप्पोलियह तेग नियणेतह, ला० पुण ३. ला. किंचि विति विर्तितउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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