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________________ ११.३२] ५ जयहिं परमु इस्सरिउ लहंता भरह - एरवय- विदेहप्पन्ना जयहिं निबिड - मिच्छत्त विणासण जयहिं भव्वहं पडिबोहु करंता जयहिं सिद्ध निर्द्धत कम्मया १० एक्कतीस वर-गुण-समिद्धया जयहि एग अहवा अणेगया जे कुलिंगे तित्थयर सिद्धया बुद्ध-बोह सबुद्ध सासया मुक्क-काय कय- दुक्ख छेयया १५ तिविह-काले तिविहे वि जे वए दिवस - रत्ति बहु- भेय-ठाणया आयरिय जयंतु महा-गुणिणो जिवित्व सिद्धि गया forate अत्थु सुंदरु कहिउ २० तित्थयर-हत्थु मत्थइ चडिउ २५ विलासवई कहा सयमेव विदिष्ण पहाण- पया ts सूरि-पवन हौति नणे चउद्दस नव-पुव्वाइधरा विहरहिं उज्जुत कसाय-जए पुणु जयहिं उज्झाय जे बारसंगाई पाढेंति मुणि-सत्थु जे पवर- मइ-जुत्त उत्तम - विहाणेण Jain Education International पुत्र [३२] ५. ला० अरिहंता ११. ला० जे सिलिंगि १२. ला० कुलिंगि १५. ला० तिविहे व जे १७ पु० जेहिं सया १८ २०. ला० चडिओ...पडिओ २२ २४. ला० जयंतु सया २७ ला० ला अवि पाडिहेर अरहंता । परम- रूव नानाविह वण्णा | जिणवरिंद अप्पडिय - सासण | तीय अणागय जे विहरंता | मुक्क-रोग- जर-मरण - जम्मया । जे तिथे तिथे वि सिद्धया जे सलिंगे गिहि-लिंगें संगया । जे य अजिण पत्तेय-बुद्धया । इत्थि पुरिस अहवा नपुंसया । ते जयंतु पन्नरस - भेयया । दीव जलहि सिद्धाय पव्वए । ते जयंतु सिद्धा पहाणया । सोहेति जेहिं सहिया मुणिणो । सूरीहिं धरिज्जइ तं च सया । सुत्ते जेहिं सो संगहिउ । मणि जाह मंतु सुंदरु पडिउ । ते गणहर-देव जयंति जया । मिच्छत्त- तिमिरु को हणइ खणे । बहु-य पंच विहायार-परा | आयरिय जयंति सया विजए । कय-निच्च सज्झाय । घोसंति चंगाई | जाणंति परमत्थु | तव चरण-उज्जुत । उस दाणेण । १८९ जिणि तित्थे पवत्तिवि ला० सूरीहि चरिज्जइ हरइ खणे २३. पु० चोद्दस दस नव पुव्वाइ पाति पाढें सुणि सत्थु । पु० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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