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________________ १८८ अजियबल नाम जो पढम- पुत्तु संथवि पुत्त अन्नेव असेस १० उपदेस दिन्न सव्वहं सुयाहं बलि- पुज्ज - विहाणई साहू विदाई साहारणकविरइया जिणवर हवाई दिन्न पहाण अम दिवस अत्थमिय-सूरे अत्थाणु विसज्जिवि खयर - राउ आलिंगेवि जंपिय तेण देवि सुकुमाल सरीर मयच्छि जेण ५ सा भणइ नाह उज्झिय सिणेह संसारु तुम्हे अपणु चएह संसारु सारु जइ देव होइ सो भइ खमेज्जसु मज्झ देवि अवसाणुसणेह देवि हु १० तबु उम्ग करेज्जसि निष्पकंप इय जंपवि सो वेरग्ग-चित्तु पच्छिम जामि निदा-खयम्मि Jain Education International [११.३१ तहें खयर-रज्जे तेणाऽहिसित्तु । देविणुपुर पट्टण सन्निवेस । किय सयल भलावण जणवयाहं । जयहिं जिणंद इंद-वंदियक्कम अक्खय- मोक्ख- सोक्ख-निहि-कारण जयहिं सुनिम्मल नाण-दिवायर चतीसह अइसएहिं समिद्धा अट्ठ वि दिवस करावियई । असण-पत्त-वत्थाइयई || ३० || [३१] वज्जिय - सेज्जाहर - गहीर तूरे | ठिउ सयणे विलासवइ- सहाउ | तु कंते न सहित करेवि । तुहुं पुत्तह पासि पडिक्खि तेण । मह उपरि तुम्हे तो इय भणेह | मह पुण किं एरिस बुद्धि देह । ता पंडिउ छड नाहि कोइ । जे तुज्झ विहिय अवराह के वि । महु उवरि विमुंच सव्व-नेहु । अन्नह दिज्जइ दोग्गइहिं झंप | वोलेवि स्यणि किंचि विपत्तु । परमेद्वि-पंच चिंत मणम्मि । नमिमो अरहंत उत्तम सत्तहं नमिमो सिद्धहं गणहरहं । नमिमो उज्झायहं कय-सज्झायहं नमिमो सव्वहं मुणिवरहं ।। ३१ ।। [३२] मोह-महारि - मल्ल - हय - विक्कम | दुत्तर- भव-समुद्द- उत्तारण । तित्थ पत्रत्तणम्मि विहियायर | दारुण-विसय सुसु अगिद्धा । [३०] ८. पु० तेहिं खयर० १२. ला० अपण वत्थ पत्ताइयहिं [३१] १. ला० अत्थमिय सुरि ५. पु० उवरे तुम्हे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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