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११.३०]
विलासवईकहा
कम्म दहंति ते दारुणाई हुयवह-कणु जिह बहुयई तणाई । १० विसु जिह सरीरि पसरिउ भरेण नासेंति एक्क-मंतक्खरेण ।
पच्छा वि नरूत्तमु जो धम्मुज्जमु कुणइ भवण्णवु सो तरइ । सा किर सइ बुत्तिय लज्जा-जुत्तिय जा पहाइ घरु संभरइ ॥ २८ ।।
[२९] निसुणेवि भणइ जसवम्म-देउ सामिय तह त्ति फुडु एवमेउ । उप्पन्नु नाह वेरग्ग-भाउ मुणि-दिक्खइं ता मह करि पसाउ । अह भणिउ सूरि-चित्तंगएण भव्यहो गेण्हह जहा-सुहेण ।
भो देवाणुप्पिय उजमेह पडिबंधु को वि मा भवे करेह । ५ नरनाहें भणिउ सणं कुमारु पुत्तय भयवंतेहि भणिउ सारु । ता मई अनुमन्नसु विन्नवेमि जं तुम्ह पसाई दिक्ख लेमि । खयरिंदु भणइ मा भणह देव विण्णवणह जोग्गउ तं सि चेव । निय-भिच्चावयवे महंतु एहु मा देव तुम्हे गउरउ करेहु ।
जंपइ नरिंदु हउं पुण्णमंतु तई जइसउ जसु उप्पन्नु पुत्तु । १० भुवणुत्तमो वि जो विणय-सारु निय-गुण-आवज्जिय-रज्ज-भारु ।
मई तुज्झ पसाएं चत्त-विसाएं विज्जाहर-सुहु माणियउ । एरिसु गुरु लद्धउ धम्मु विसुद्धउ तुज्झ पसाएं जाणियउ ॥ २९ ॥
[३०] सो भणइ ताय मा इय भणेहु गुरु-देवह सव्वु पभाउ एहु । आढत्तु जं च तुम्हेहि ताय तं कुणह अम्हे तुम्हह सहाय । वसुभूइ-पमुह-बहुएहिं जणेहिं जंपिउ तहेव पमुइय-मणेहिं ।
तो दिवसु लग्गु सुंदरु मुहुत्तु गुरु पुच्छिउ जे वय-गहणि जुत्तु । ५ तें साहियउ इय नवमइ दिणम्मि सुंदर मुहुत्तु सूरूग्गमम्मि ।
गुरु वंदेवि तो तहिं नयरि पत्त आढत्तिय जिण-भवणेसु जत्त ।
तह तिय-चउक्क-रत्यहिं धरेवि आढत्तु जहिच्छिय दाणु देवि । [२८] ९. ला० दहति अइ--दारुणाई १०. पु. नासेंत [२९] २. पु० दिवखए, ला० करे पसाउ ६. ला० पसाए [३०] १. ला० पहाउ ५. पु० सुंदरु निमित्तु सुरू.
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