SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ साहारणकविरइया [११२७ [२७] सुणि धम्म-सीले मुणि भणइ एउ मोक्खम्मि होइ पर दुक्ख-छेउ। दुक्खई हवंति पिय-मूलयाई तो राय-विहीणहं किह पियाई । अन्नो वि उवहवु नत्थि कोइ ससरीरहं जेण हवेज्ज सोइ । तहिं न हवइ जम्मु जरा न मच्चु न य रोगु सोगु न होइ वच्चु । ५ दारिद्द न परिहवु पिय-पिओउ न य भउ नाऽणिहं संपओउ । सयल-बाहार्हि विहीणु मोक्खु एगंते परमाणंद-सोक्खु । संगेण वि तत्थ न दुक्खु होइ तं सिद्धि-सोक्खु किं व कहइ कोइ। पभणइ विलासवइ इय सुणेवि पिय-संमुहु विणयंजलि करेवि । सामिय जाइज्जइ मोक्खि तत्थ पिय-विरह-पमुह दुह नाहि जत्थ । १० परितुट्ठउ भणइ सणंकुमारु तइं देवि भणि उ एउ वयणु सारु । दुपरिचय अम्हहं तुहि जि एक्क छुडु एवहिं हूइय एक्कवक्क । ता सयलु वि संगु परिच्चएमि भयवंत-भणिय जिण-दिक्ख लेमि । नरवइ जसवम्मह निसुणिय-धम्मह तणय-वहुय-चरियइं सुणेवि । भव-भउ उप्पन्नउ तो निविण्णउ मुणि-संमुहु लग्गउ भणेवि ॥ २७ ॥ भयवं जइ एत्तिय-मेत्तिएण इह-पुव्व-जम्म-निव्वत्तिएण । सुय-बहुयई दुक्खई पावियाई अच्चंतु जेहिं संतावियाइं । ता मई जं रज्जु करतएण इह भव-सरूवु अमुणंतरण । अइ-दारुण-दुच्चरियई कयाई फल काई करेस्सहिं मज्झ ताई । ५ मुणि जंपइ गरुयारंभएण अपरिमिय-महंत-परिग्गहेण । अणवरय-कुणिम-आहारणेण नरवइ तह पंचेंदिग-वहेण । नरयाउय-कम्मइ बंधयंति जे वर-तवेण न य सोहयति । जे पुण करेवि बहुयं पि पावु तवु करहिं धरेविण पच्छयावु । [२७] २. पु० पिय मूलियाई ४. पु० रोउ न सोगु ६. ला०मुक्खु एयंते परमा) ११. पु. अम्हह तुहई एक८० १२. पु० भयवंतें भणिय । [२८) १. ला० जम्मि-४पु० फलु कयाई करे० ६. ला. पंचिंदिय-८. ला० पि पाउ... पच्छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy