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________________ ११.२६ ] पावेण तेण मंतिहि सुएण ता भो नरनाह खमाविऊण ५ तो पच्छुत्तावि तुहुं नरेस far from a मंतिहि सुयस्स पडिवन्न भइणि सुंदरि तए वि तो सुंदरि तह य सुहंकरो वि थी-कम् खवेवि एत्थ आउ १० जो सो वि सुहंकरु सेट्ठि आसि विलासवई कहा राहिव एत्तिउतई निव्वत्तिउ एरिस आण्णेवि असुहं मन्नेवि [२६] वित्तंग भासिउ इय सुणेवि खयराहिव देवि-मणोरहाण हि हापोह करतयाण ता पुव्व - जम्मु सयल वि मुणेवि ५ भयवं जइ एत्तिय - मेत्तिएण ता जीवेहिं गुरु-कम्मई कयाई मुणि जंपर सुणसु महाणुभावि अणुर्भुजेवि कम्म मोक्खु होइ गुरु-पासि जांव नालोइयाई १० जान किउ पायच्छित्तहं विसेसु १८५ त लाइ दो अणिच्छिएण । पेसेहि सिधु सम्माणिकण | ते देवय-वय पुरि असेस । पूया सुंदरिहि सुहंकरस्स । साहिं धम्मु निम्मल करेवि । उपपन्नसुरालाइ देव दो वि । वसुभूइ मित्तु तुहु एउ जाउ । fariधरु सो विहु तुझ पासि । Jain Education International कहिउ कलंकह कारणु । कीरइ दोस - निवारणु ॥ २५ ॥ नीसेसु पुत्र- वइयरु मुणेवि । वसुभूमित्त-विणयंधराण । उप्पन्नउं जाइ- सरणु ताण । जंपइ विलासवइ मुणिनमेव । परि विवाउ इह दक्खिरण | far aयह जंति साहेह ताई | जीवe vage विवि- पावि | निज्जरः तवेण व अहव कोइ । नय जावहिं निंदिय-गरहियाई । उत्तरइ न त कम्महं किलेसु । इय सुणेवि विसणिय ं भव- निव्विन्निय जंप एउ विलासवइ । पिय- विरहु खदूसहु भयवं संसह कवणहिं गइर्हि न संभवइ ||२६|| [२५] ३. ला० तहि लाइय, पु० अणित्थिरण ४. ला० हो नरनाह ५. ला० पच्छुत्ताविओ ९. ला० एहु जाउ । १२. पु० असुहउ मन्नेवि [२६] ३. ला०- करंतयाह.. ताहं । ४. पु० तो पु०ब०, ला० सयको ६. पु० ता जीवई गुह— २४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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