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________________ १५ साहारणकइविरइया [११.२४ ५ तहिं जम्मि परम-भाविय-मइए मुणिवरहं दाणु दिन्नउं इमीए । सव्वइं सिणेह-सुह-संगयाई धम्मेण तेण सग्गहो गयाई । अवयरिवि एत्थ उववज्जियाई इय पुनइं तुम्ह उवज्जियाई । पुणु जंपइ एउ सणंकुमारु भयवं सव्वं चिय मज्झ सारु । पर तामलिस्ति-नयरिहि गएण किह लधु अयसु राणिय-मिसेण । १० तो कहिउ एउ चित्तंगएण तहि चेव जम्मि रज्जट्टिएण । कंपिल्ल-महापुरि नामि सुंदरि सेटिहे धृय मुहंकरहो। साविय अकलंकिय सीलालंकिय उज्जोवणि निय-कुलहरहो ॥ २३॥ सा रूवमंति जहिं संचरेइ तहिं तर्हि जुवाणह मणु अवहरेइ । अवलोयइ संमुह बाल जासु निवडइ मयरद्धय-धाडि तासु । जड पुणु कह वि सा उल्लवेइ ता पुरिसहं चित्तइं संतवेइ । अह सा मयणानिल-ताविएण पत्थिय कह वि मंतिहि सुरण । ५ तीए वि जिणागम-भावियाए सो नेच्छिउ उत्तम-सावियाए । तो तीए उवरि तमु हुयउ रोसु तुह पुरउ पयासिउ तेण दोसु । तं वयणु तस्स अवियारिऊण आणाविउ सेट्टि धराविऊण । अह सुंदरीए उव्वेउ जाउ मह दोसें राउलि धरिउ ताउ । ता करि पसाउ सासणह देवि अलियउ कलंकु मह अवहरेवि । १० मेल्लावहि भयवइ मज्झ ताउ किउ काउसग्गु निच्छय-सहाउ । तो तम गुण-भाविय सासण-देवय पाडिहेरु सेट्रिहि कुणइ । सहस त्ति समग्गइं नियलई भग्गइं विम्हउ सयल-जणह जणइ ॥२४॥ [२५] पत्तावयारु विरएवि तीए तुहुं साहिउ नरवइ भयवइए । सुंदरि सुसराविय सुद्ध-चित्ति पर-पुरिसह निच्छउ किय-निवित्ति । [२३] ७. पु० तुम्हे उव० ८. पु० भयवं मज्झ वि सव्वु सारु । ११. ला० नामे... सेट्रिठहि [२४] १. ला० जुवाण मणु ४. पु० सा पुरिसह १०. पु० निच्छई-सहाउ ११. पुo पाडिहेरि [२५] २. ला० सुठु-चित्ति, पु. कय-निवित्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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