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________________ १८३ ११.२३] विलासवईकहा नाणेण सुहासुहु मुणइ जांव चारित्तु पयट्टइ नरह तांव । तं दुविहु होइ संजम-तवेहिं संजमु सत्तरसेहिं भेयएहिं । . तवु दुविहु जिणिंदेहि समुवइठु अहवा वि दुवालस-भेउ सिदछ । एक्केक्कु भेउ जा वित्थरेइ ता एत्थ विसेसु वि अवयरेइ । १० अह तं चारितु सवित्थरेण साहियउ तुम्ह ते मुणिवरेण । एरिसु निसुणेविणु तो पणमेविणु तई पुच्छिउ सो मुणि-पवरु । भयवं इह संजमु एरिसु दुग्गमु जो काऊण न तरइ नरु ।। २१॥ [२२] सो केरिसु धम्मु समायरेइ केण व संसारु समुत्तरेइ । मुणिवरु भणेइ जो न वि चरित्तु सक्कइ नीसेसु गुणाइरित्तु । सो सावय-धम्मु समायरेइ जह-सस्ति दोसह वज्जणु करेइ । अहवा जिण-पूयण-चंदणेण संसार-रुक्ख-निक्कंदणेण । अज्जिणइ पुण्ण भावप्पहाणु सो पावइ मोक्ख-महा-निहाणु । जो पुज्जइ पडिमाउ वि जिणाण बहुमाणु कुणइ उत्तम-गुणाण। उत्तमु वि धम्मु सो अज्जिणेइ कम्मारि-सेन्नु जें निज्जिणेइ । उत्तम-कुलेसु सो संभवेइ पउ उत्तम--सत्तह सो लहेइ । जिह उदय-बिंदु रयणायरम्मि निक्खित्तउ अक्खउ होइ तम्मि । १० तह पूयणु विहिउ जिणेसराण अक्खउ अक्खलिय-गुणायराण । जिह खित्ति विसुद्धइ नीर-समिद्धइ बीउ पइण्णउं बहुय-फल । तह वियलिय-रायह नाण-सहायह पूया-बीउ अणंत-फल ॥२२॥ मुणि कहिउ तुज्झु परिणमिउ एउ पुज्जमि विहीए जिणयंदु देउ । एसो वि धम्मु निव्वहइ मज्झ आढत्तउं पूयणु तिण्णि संझ । हारप्पहा वि तुह भावसारु उत्रणेइ सव्वु पूओवयारु । देवी वि दुइय तुह चंदलेह हारप्पहाए सहि आसि एह । [२१] ६. लाजाव......ताव । ८. पु० जिणेंदिहिं ९. ला० एत्थ असेसु [२२] ४. ला० संसार--दुक्ख- ५. ला० पुनु भाव० ६. ला० पडिमाओ ७. ला० ज निज्जिा ११. ला. खित्त १२. पु० पूजाबीउ [२३] १. ला० जिणइंदु ४. ला० तह चंद० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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