SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ साहारणकइविरइया [११.२० १० पुणो मच्च-लोए न जस्सऽस्थि कज्जं परं पालए अक्खयं मोक्ख-रज्जं । हसिज्जंति जेहिं वियारेहिं भंडा जणे तेहिं देव त्ति रूढा पयंडा । अभक्खे अपेए अकज्जे अगम्मे रया कप्पिया देवया लोय-धम्मे । अवराहि न रूसइ थुणिउ न तूसइ वीय-राउ जो मुक्क-कलु । विहि-आराहतहं उत्तम-सत्तहं चिंतामणि जिह देइ फलु ॥ १९ ॥ २०] तेण य सव्वण्णु-जिणेसरेणं उप्पन्न-विमल-केवल-वरेणं । जीवाइ पयत्थई साहियाई सम्मत्त-जुत्तु सद्दहइ ताई । जीवा अजीव तह पुन्न -पावु आसव-संवर-निज्जर-सहावु । बंधो य मोक्खु कम्मक्खएणं नव तत्त होंति एयक्कमेण । ५ एयाण पयत्थहं वित्थरत्थु अवयरइ जिणागम् इह समत्थु । एत्थ य जिण-सासणि जे निविट्ठ वज्जिय-घर-पुत्त-कलत्त-इट्ठ । उवसम-पहाण उज्जुय अमाण तव-संजम-सव्व-विमुद्धि-हाण । निक्किचण बंभव्यय-सुगुत्त गुरु मन्नइ दसविह-धम्म-जुत्त । गुरु-देव-धम्म-पडिवत्ति-जुत्तु सुविसुद्ध एउ सम्मत्तु वुत्तु । १० सम्मत्त-सहिउ नाणं पि सारु तं पुण भणंति पंचप्पयारु । तहिं मइ-सुय गणइं ओहि-पहाणइं मणपज्जवु केवलु अवरु । चत्तारि य मूयई सेसई हूयई परूवारि मुयना गु वरु ॥२०॥ [२१] मइ अठ्ठावीसइ भेय होइ सुय-नाणु चउद्दस-भेउ लोइ । छन्भेयई अहव असंखु ओहि मणपज्जवु दुविहु मणुस्सओ हि । अप्पडिहउ सासउ अप्पमाणु एग-विहु वि केवल होइ नाणु । एयाई य नाणई होति जासु दीवो व्य कुणहिं भावहं पयासु । ५ सपरोवयारि सुय-नाणु जेण तहिं किरइ भव्यहु जत्तु तेण । [१९] १३. पु० अवराहे [२०] १. ला०-केवल-धरेणं । ३. पु०पुण्णु-पावु ७. ला० संजम- सत्थ-विसुद्धि-१२. पु. सुय-नाण-धरु । [२१] ३. ला० एगविहो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy