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११.१९]
विलासवईकहा जिह ऊसर-खेत्तई पुव्व-पलित्तई वण दवु थक्कइ न य दहइ । तिह मिच्छह अणुदइ जं सुहु विदइ तं उवसम-दंसणु लहइ ॥१७॥
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तं तिविहु वि होइ निसग्गएण अहवा जिण-आगम-अभिगमेण । उक्कोसिय कम्महं ठिइ खवेवि सायरह कोडि अणिय धरेवि । सुंदर अउव्वकरण-कमेण दढ-कम्म-गंठि भिंदइ खणेण । तयणंतर नं सिव-रुक्ख-बीउ भव-सिद्धिउ पावइ भव्व-जीउ । ५ उप्पज्जइ दंसणु एउ जासु नियमेण कुणइ दोग्गइ-विणासु ।
जइ तं सम्मत्तु वि न य वमेइ न य पुव-निवद्धाउऊ हवेइ । सम्मत्ते पत्ते उवसमु करेइ संविग्गु मोक्खु पर अहिलसेइ । निविण्णु वसइ दारुण-भवम्मि अणुकंप कुणइ सो दुक्खियेम्मि ।
मन्नइ नीसंकु जिणोवइछ इय चिंधेहिं तं सम्मत्तु सिठ्ठ। १० परिवज्जिय-कुग्गहु मुद्ध-भाउ सो मन्नइ देवु वि वीयराउ ।
जसु भुक्ख-पियासइं राग-दोसई खेउ सेउ मलु मोह भउ । भय-मय-जर-जम्मणु चिंता-वंचणु निद्द पमाउ विमोहु गउ ॥१८।।
इमेहिं च अट्ठारसेहिं पि मुक्को असेसाण संसार-दुक्खाण चुक्को । अणंगो वि झाणानले जेण दड्ढो न जो सेवए कामिणी काम-थड्ढो। न उद्धलए जो य छारेण अंगं सिरे जडाओ न धारेइ गंगं ।
न खटुंगमुग्गं कवालाण माला सरीरम्मि नो जस्स नागा कराला । ५ न जो नच्चए गायए नट्ठ-हासो मसाणम्मि भूयाउले नत्थि वासो ।
न पक्खीसु सीहे बलदे व रूढो न जो मारए चूरए ने य मूढो । न चक्कं धणूं धारए ने य मूलं न खग्गाइयं आउहं दोस-मूलं । न अप्फालए डमरुयं ने य संखं कयंतो व्व संहारए नो असंख ।
नडो जेंव नो धारए ऽनेय रूवं न माया-पवंचेहि वंचेइ लोयं । [१८] २. पु० कोडे ऊणिय ५. पु० दसण ११. ला. रोग-दोसइं .. भओ । १२. ला०
पमाओ वि मोह गओ। [१९] ३. पु० सिरेणं जडाउ न ६. ला० मारए दूरए
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