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________________ ७.८] विलासवईकहा १०१ हूयउ पुणो वि नयरह विणासु नायरहं तेण उप्पन्नु तासु । ५ तो नयर-विणासासंकिएहिं किउ संति-कम्मु एउ नायरेहिं । जो दुढे दड्ढउ किर हवेइ दहियं पि हु फुक्कवि सो पिएइ । दुह-कारणु सयल वि कहिउ एउ मई भणिउं अन्नु सुपुरिस कहेउ । जसु कारणि नयरहं इय अवत्थ सा दिव्व-नारि तिं धरिय कत्थ । ति अक्खिउ भवणुज्जाणि तस्स छायाहि सहयार-महादुमस्स। . १० तो पुच्छिवि विज्जाहरु खणेण गउ देविहि दसण-कारणेण । नाइदूर गयणि ठिएण अह सा मई दिद्विय । अइ-विसाल-सहयार-तरु-मूलि उवविद्विय ॥ ८ ॥ नाणा-पयार-चाडयकरीहिं सा वेढिय बहु-विज्जाहरी हिं। मुह-कमलु वाम-करयलि वहंति मुत्ताहल-सम अंसुय मुयंति । परिचत्त-पाण-भोयण-विहाण अच्छइ अदिन्न-पडिक्यण ताण । सन्नाह-विविह-आउहधरेहि रक्खिय जा बहु-विज्जाहरेहि । ५ देवह आएमु न आसि जांव हउं देविहि पासु न पत्तु तांव । इय वत्त लहेविणु आउ एत्थ संपइ पुणु देउ पमाणु तत्थ । इय जांव निवेइउ सव्वु तेण वसुभूइ पलोइउ तो इमेण । किं कीरइ विग्गह तहिं न व ति अक्खिज्जउ नियय वियप्पु झत्ति । अह सो वि भणइ भो वर-वयंस निसुणसु विज्जाहर-रायहंस । १० सो ताव नगर-देवय-वसेण विलिओ च्चिय निय-दुच्चेट्टिएण । ता पत्तयालु एउ तत्थ होइ ज तर्हि पेसिज्जउ दुउ कोइ । जो जाएविणु तेण सहुं पर सामु पउंजइ । अह मग्गियउ न देइ तो दंडु वि किज्जइ ॥९॥ [0] ५. ला० इय नायरेहिं ६. ला० दुद्धेहिं डड्डउ' ...पि य, पु०फुक्केवि सो पिवेइ ७. पु० भणिउ ९. ला० तें ... भुवणुज्जाणि ...साहहिं सहयार--१९. लाo.गयणदिठएण १२. पु० अइ-दिहर-सहयार-तरु-मूले [९] २. ला० करयले ४. ला० रक्खिज्जइ बहु- ७. ला० जाव ८. पु. अक्खिज्जइ १०. पु० निय दुब्भेदिठएग ११. पु० पेसिज्जइ १३. पु० मग्गियओ, ला० तो डंडु वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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