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________________ [७.११ साहारणकइघिरइया [१०] इह होइ चउबिहु नीइ-मग्गु नायव्वु नरिंदेहि सो समम्गु । तहिं सामु भेउ उपप्पयाणु दंडो य चउत्थउ दलइ माणु । तहिं पढमु सामु सहु। रिउजणेण कायव्वु होइ उवसंतरण । महुरेण गुलेण वि जो मरेइ विसु तस्स नराहिव कवणु देह । ५ जं लोलई छिज्जइ किर नहेहिं कट्टिज्जइ तं न कुहाडएहिं । जो कुवियउ थोविं कारणेण सो तूसइ सामेण वि किएण । जो पुणु अइ-कढिणु महंत-रोसु उत्रसमइ न सामेहि बहुय-दोसु । अभंतर-दुट्ठउ कुणइ खेउ कीरइ य वणस्म व तस्स भेउ । पाविय-भेएण वि सीयलेण पन्चय वि पडहिं पेच्छह जलेण । १० भेए नियय-बलह अवीससंतु रिउ जिप्पइ जइ वि महा-महंतु । दुदृ3 जिह पहु अंध-गडु फोडिवि वाहिज्जइ । तिह पडिवक्खु वि अइ-बलिउ भेए साहिज्जइ ॥१०॥ जो पुणु अइ-बलियउ साहिमाणु तमु कीरइ मित्त उपप्पयाणु । दाणेण सुरुटो वि उवसमेइ दाणेण वि अवराहई खमेइ । दाणेण वि भूयई वसि हवंति दाणेण वि वेरइं खयह जति । दाणेण परो वि हु होइ बंधु दाणं पि हणइ आवइ-पबंधु । ५ जो सम-बलु तह वि हु होइ चंड उवगरइ तेण सहु मित्त दंडु । दुहत्तणु न मुयइ सत्तु तांव भज्जइ न मडप्फरु तस्स जांव । उक्खणिय दाढ जइ विसहरस्स ता कवण सत्ति किर होइ तस्स । एहु नीइहि मग्गु चउप्पयारु जाणेवि बलाबलु होइ सारु । जे एय कमेण समायरंति ते लच्छिहि भायण पुरिस हुति । १० इह राय-लच्छि न य विक्कमेहिं पालिज्जइ सम्वेहिं पत्थिवेहि । एगंते विक्कम-रस-पहाण भायणु न होंति नरवइ मुहाण । [१०] २. पु० भेओ ५. पु० लीलइ ६. पु० थोवें...कारण ९. पु० पाविय-भीएण य ...परिहिं १०. ला० तेएं नियय- ११. ला० फोडेवि १२. ला. पडिवक्सो [११] ३. ला० व सह होति ५. पु० दंदु ९. पु. होति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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