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________________ १०३ ७.११] विलासघई कहा ता साम-नयम्मि वहंतयम्मि भेयह विण्णाणि फुरंतयम्मि । दाणं पि जस्स किर संपडेइ को मित्त दंडि आयरु करेइ । पढमु सामु ता तहिं करहु इय नीइ जहटिय । कहि हुंतहं पडियाहं पुणु भूमि तहट्ठिय ॥११॥ [१२] बंभयत्तु तं निमुणिवि भासइ एहु न मंतु अम्ह पडिहासइ । नियय-कलत्तु चेव आणतह कवणु सामु पर-दप्पु-दलंतहं । समरसेणु पुणु भणइ अलक्खिउ नीइ-मग्गु कहिं एरिसु लक्खिउ । जो पर-नारि-हरणु कुल-दूसणु तस्स वि कांइ दूय-संपेसणु । ५ वाउवेग पुणु चित्ति विसण्णउ महु अहिलसिउ नाहिं संपन्नउ । वाउमित्त-मुहडेण वि वुत्तउं देवो चिय जाणइ जं जुत्तउं । फुरिय-महंत-रोस-पयडेण वि विहसिउ चंडसीह-सुहडेण वि । कोवि वियंभिय-मुहउं धारें उमाडिउ पिगलगंधारें। दप्पेण य पयडिय-मुह-भंगि आयंपिउ सहस ति मयंगि । १० नीससेइ केवल अमियप्पहु खणु वि न चलिउ तत्थ देवोसहु । इय वीरेक्करसाहं तहिं विज्जाहर-मुहडहं । न य पडिहासइ दय-गमु रण-रस-मण-पयडहं ॥१२॥ ठिइ एरिस त्ति तो साहिऊण सव्वे वि सुहड संबोहिऊण । संदिसिय विविह वयणाणुरूउ पवणगइ चेव पट्टविउ दुउ । भणिउ सो भद्दय तर्हि गएण सो भाणियध्वु इय मह मुहेण । जिह भो विज्जाहर नरवरिद कम्मेण जेण जणु कुणइ निंद । ५ जिं अयस-पडहु तिहुयणे भमेइ ज चिय अत्ताणउ हारवेइ । चित्तह धीइ जेण न कह वि होइ हासउं उप्पज्जइ जेण लोइ । [११] १२. ला० विन्नाणे १३. ला. दंडे, पु० आयरु कुणेइ । [१२] १. ला० निसुणेवि ३. ला. अणक्खिउ ५. पु० चित्ते.. अहलसिउ, ला० संपु न्नउ । ६. पु० उत्तउँ ८. पु० कोव-वियंभिय-, ला० ओनाडिउ ९. पु० -भंगि.... मयंगि । १०. ला० खणो [१३] ३. ला० भणियउ...सो भावियव्वु ५. पु० जे ६. पु० लोए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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