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________________ १०० साहारणकइविरइया कोवानल-जलिउ सणंकुमार तो जंपइ एरिसु दुन्निवारु । रे रे विज्जाहर दुट्ठभाव मज्जाय-विवज्जिय अहम पाव । मह जाय नेवि तुहुं अवहरेहि मई चेव जियंतई ता मरेहि । को एत्थ समप्पह खग्गु खग्गु एरिसु भणंतु उढणह लग्गु । १० सो जाव पयट्टउ अमरिसेण ता धरिउ झत्ति विज्जाहरेण । देव पसाउ पसाउ करि पवणगइ पयंपइ । एउ कहाणउं तुज्झ पहु जं साहिउ संपइ ॥६॥ न य पुणु पहु सीह-किसोर-जाय सयमवि सत्ताहिय पिय-सहाय । अहिहवइ कयाइ वि सारमेउ ता कह-अवसाणु सुणेउ देउ । तो किंचि विलक्खिय-मुह-वियारु उवविदछु पुणो वि सणंकुमारु । पुणरवि आढत्तउं कहेवि तेण इय कहिउ देव विज्जाहरेण । ५ तो सुपुरिस अम्हहं सामियस्स बलिमड्डाए वि पयट्टयस्स। विज्जाहराण असमउ भणेवि रुट्ठिय उद्विय महकालि-देवि । तो भुमिकंपु अइ-रोहु जाउ तह खडहडंतु निवडिउ निघाउ । उक्काउ महंतिउ निवडियाउ उपायहं पंतिउ पयट्टियाउ । भणिउ य अणंगरई वि तीए पच्चक्खए होएवि भयवईए। १० भो भो अजुत्तु तुहुं इय करेवि विज्जाहर रायत्तणु लहेवि। एरिसु कापुरिसह चरिउ जइ पाव करिस्सहि । तो रुवाए महासइए नियमेण मरिस्सहि ॥ ७॥ [८] इय देविहि वयणि भीय गत्तु सो एयह ववसायह नियन्तु । सा दिव्य नारि परहरिय तेण कारण वि केवलु न य मणेण । अह सुपुरिस नयरह देवयाए पुव्वं पि कयाइ पच्चल्लियाए । [६] ८. पु० तुहुं परिहवेहि मई चेव जियंते ९. पु खग्ग खग्गु... उट्ठणहं [७] ३. ला० विलविखउ ६. पु० असमओ भरेवि ७. पु० निहाउ ८. ला० उक्काओ महंतिओ निवडियाओ... पंतिओ पयट्टियाओ ९. ला. भणिओ...पच्चक्खई होइवि १० ला० तुह ११. ला० कावुरिसह १२. पु० मरिस्सइ [4] १. पु०वयणे...सो यह वव० ३. ला० कया वि. पु० य चल्लि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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