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________________ ७.४] विलासवईकहा भयवइ-आएर्सि सपरिवारु तहिं मलय-सिहरि संठिउ कुमारु । अह तइय-दिवसि विय संत-गत्तु पवणगइ कुमारह पासि पत्तु । सविणउ नमेवि लग्गठ कहेवि उवलद्ध देव मई तुम्ह देवि । १० कुमरेण वुत्तु उवलद्ध कत्थ ते भणिउ देव निमुणेहु जत्थ । देवह आएसेण हउं पुहईहि भमंतउ ।। देविहि सुद्धि करंतु गिरि-वेयडूढे पहुत्तउ ॥४॥ तहि दाहिण-सेविहिं गुण-विसालु पुरवरु रहनेउरचक्कवालु । तर्हि तुम्ह घरणि उवलद्ध देव पुणु भणिउ कुमार कहहि केंव । आढत्तु कहेविणु पुणु वि तेण आएसें तुम्हहं हउँ खणेण । भमडंतउ महि-मंडलि विसालि पत्तउ रहनेउरचक्कवालि । ५ तो दिउ पुरवरु तं च देव उबिग्ग-जणाउलु सव्वमेव । सिद्धाययणेसु य बहु-पयारु संपाडिय विविहु पूओवयारु । भामिय-सगड-बलि-सहस्स-सोमु चचर-पारंभिय-लक्ख-होमु । तो मई विज्जाहरु तत्थ एक्कु परिपुच्छिउ नयर-दुवारि थक्कु । तुह भद्द किमेरिसु नयरु एउ तेणावि भणिउ सुपुरिसु सुणेउ । १० एहु अम्ह सामि-दुग्णय-फलस्स दीसइ कुसुमुग्गमु मुविउलस्स । मई पुच्छिउ किड सो कहइ निसुणसु अस्थि अणंगरइ । विज्जा-बल-दप्पिउ अम्ह पहु इह विज्जाहर नयरवइ ॥५॥ अह तें पर-लोय-परंमुहेण अक्कतें मयण महा-गहेण । कस्स वि य महंतह सुपुरिसस्स निय-विज्जा-साहण-उज्जयस्स । पिययम इह आणिय अवहरेवि आढत्तिय निय-गेहिणि करेवि । अह सा वि महासइ विलवमाणि मुंजेवि पयत्तु अणिच्छमाणि । ५ एत्थंतरि एउ निसामिऊण कह एह एउ अवियारिऊण । [४] ७ ला सिहरे ८. ला०-दिवसे ९. ला० मइ १०. ला० निसुणेसु ११. ला० आएसण हं पुहइ भमंतउ १२. पु०-वेयड्ढ [५] २. ला० कुमारि ३. ला० पुण...आएसिं ४. ला० मंडले ६. पु० संपाडिय बहु पृओ. ९. पु० तुह रुद्द किमे० [६] २. पु० महतह ३. पु० इय आणिय ४ पु० अँजिवि ५ ला• एत्यंतरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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