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________________ साहारणकइविरइया [७.४ अह अडूढ-रत्त-समयम्मि पत्ते अइरोद-विहीसिय-भरे पवत्ते । बहु-विह-विज्जाहर-भड-समाणु संपत्तउं एक्कु महा-विमाणु । १० तो मई बिहीसिय-संकिएण अवमन्निउ तो निच्चल-मणेण । वोलिय जावहिं वेल का वि ता चुज्ज-समन्निउ । हा अज्जउत्त इय करुणु सरु देविहि आयण्णिउ ॥२॥ आसंक पडिय तो मज्झ चित्ति किं देवि एह इह निज्जइ ति। तो दिद्विय विज्जाहर-विमाणि आरूढ देवि इय विलवमाणि । वसुभूइ अज्ज हा धावहि त्ति परितायहि मइ परितायहि त्ति । तं सुणेवि वयंस संभमेण गुह-मज्झि निरूविय संकिरण । ५ तहिं जाव नत्थि ताव य तुरंतु धाविउ विमाण-पह अणुसरंतु । गयणेण जंतु अइसय-पहाणु तं मित्त न पाविउ मई विमाणु । संपइ न वियाणमि कत्थ देवि तो तुहुं पमाणु एरिसु सुणेवि । चिंतइ कुमारु तो निय-मणेण अवहरिय देवि विज्जाहरेण । अस्थि य महु नहयल-गमण-सत्ति ता वच्चउ कत्थ नइस्सइ ति । १० आसासिउ तो वसुभूइ तेण मा करि विसाउ किंचि वि मणेण । सिद्धिय सा महं अजियबल बहु विज्जहं सारिय । ता विज्जाहर-अवहरिय लभिस्सइ भारिय ॥३॥ ता थेव कज्जु इय भणइ जाव संपत्त अजियबल विज्ज ताव । भणियं च तीए वच्छय किमेउ कि अज्ज वि किज्जइ काल-खेउ । तो कहिउ तीए वित्तंतु तेण मह घरिणि नीय विज्जाहरेण । तो कुविय विज्ज एरिसु भणेइ को मई विज्जाहरु परिभवेइ । ५ अन्नेसणत्थु तो सिग्घु तीए पट्टविय दिसोदिसु भयवईए । पवणगइ-पमुह नहयर विणीय जाणेवि कहह सा केण नीय । [२] ९. पु० एकु १०. पु० तं निच्चल ११. पु. भुज्ज-समन्निउ [३] ३. पु० मई ४. ला० सुणवि ८. ला0 कुमारो ९. पु० महुं १०. ला० आसासिय ११. पु० बहुं [५] १. ला० थेवु...संपत्ता ३. ला० घरणी ५. पु० सिग्घ ६. ला• से केण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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